रात के ग्यारह बजने वाले हैं,
माँ अभी तक रसोईघर में हैं, पिता पानी भर रहे हैं, ननद पास के घर में है. शाम को
बिजली का वोल्टेज बहुत कम था, बल्ब भी मद्धिम जल रहा था. अब जाकर वोल्टेज बढ़ा है.
दिन में वे लोग बाहर गए थे, नन्हा दिन भर नहीं सोया, सो नौ बजे ही सो गया, पिछले
तीन-चार दिन से वह ठीक से खाना नहीं खा रहा है. उसकी आँखें भी हल्की लाल है,
फैमिली डॉक्टर को दिखाया है. जून देहरादून गए हैं, दीदी के यहाँ उसे उसके पत्र भी
मिले होंगे.
आज यहाँ आने के बाद पहली बार उसे वक्त मिला है कि वह सुबह-सुबह डायरी लिख सके.
जल्दी उठी थी सो.. बाकी सब सो रहे हैं. सूर्योदय के कुछ देर बाद उसने छत पर कुछ
चक्कर भी लगाये. मकानमालिक की बेटी भी ऊपर थीं. यहाँ का मौसम बहुत अच्छा है,
ज्यादा सर्दी नहीं पड़ती, ठिठुरन वाली सर्दी का तो यहाँ अहसास ही नहीं हुआ. उसे आये
डेढ़ महीना हो गया है. मई में वे लोग दुबारा आएंगे. वह यहीं रहकर आगे पढ़ाई करना
चाहती है. बीएड या कम्पयूटर डिप्लोमा. उसकी बड़ी ननद की सहेली से इस बारे में
जानकारी लेनी है.
कल रात टीवी पर थोड़ी देर साहब-बीबी-गुलाम देखी, अच्छी थी पर सबको नींद भी आ रही थी.
जून क्रिसमस के दिन आ रहे हैं, उसके बाद चार-पांच दिन तो पलक झपकते गुजर जायेंगे.
छोटी बहन भी आ रही है दो दिन के लिये. उसने सोचा उसे भी नन्हें के साथ हेयर ड्रेसर
के पास ले जायेगी, वह चुस्त नहीं दिखती है. समय अपनी रफ्तार से चलता ही रहता है,
हम ही हैं जो सुस्त पड़ जाते हैं. कल शाम दो सम्बन्धियों के शोक पत्र आये और परसों
उसके भी किसी मित्र का एक पत्र आया था.
आज वह आ रहे हैं, उसमें कुछ अतिरिक्त उत्साह है, और इसी उत्साह की रौ में बहकर
वह डायरी और पेन लेकर एकांत की आशा में छत पर चली गयी, हवा थी, पर सुहा रही थी,
ठंड पैदा नहीं कर रही थी, पर वहाँ और लोग थे, इस बड़े घर में कई परिवार रहते हैं. सो
नीचे कमरे में आ गयी है. कल एक छात्र ने उससे कुछेक प्रश्नों के उत्तर जानने चाहे,
वह बता तो पायी पर उतने असरदार तरीके से
नहीं. अब यहाँ चार-पांच दिन ही रह गए हैं, यह उलझाव कैसा अब.
No comments:
Post a Comment