आज भगवद् गीता का दूसरा
अध्याय पढ़ा, ऐसे लगा जैसे पहली बार पढ़ रही है. एक-एक श्लोक अनमोल हीरे की तरह है,
सचमुच गीता भटके हुए को राह दिखाने वाली है. उसने सोचा कि भविष्य में सदा इसका
नियमित पाठ करेगी. सवा आठ बजे हैं, सोनू के उठने का समय. कल ‘एक बार फिर’ देखी,
कुछ खास नहीं लगी, शायद बड़े स्क्रीन पर ज्यादा सुंदर लगती खासतौर पर लन्दन के
दृश्य. आज ईदुलफितरहै. जून के दफ्तर में अवकाश है. सुबह उसने रसोईघर साफ किया, जून
ने सारे घर के जाले साफ किये. मौसम में वही ठंडक है और आसमान में बादल. कल शाम वे
इतवार की फिल्म देख रहे थे कि एक परिचित दम्पति मिलने आये, एक बार पहले भी वे
रविवार को आये थे, वे लोग स्वयं कभी किसी के यहाँ इतवार शाम नहीं जाते. वह लिख रही
थी कि नन्हा बार-बार उसका पेन लेने की
कोशिश करने लगा है और गोद में बैठना चाहता है, जब वह पाठ करती है तो किताब उठाता
है, कभी हाथ जोड़ कर प्रणाम करता है. उसकी बांह पर मच्छर ने काट लिया है, कोमल
त्वचा पर निशान उभर आया है.
आज डिब्रूगढ़ बंद है, जून घर में हैं, सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, सभी का स्नान, नाश्ता
हो गया है और अब सभी आराम से बैठे हैं. कल वे जून के बॉस के घर गए चाय पर गए थे.
उनका विशाल व भव्य बरामदा व बैठक देखकर तो वह मंत्रमुग्ध रह गयी. इतना साफ-सुथरा
आलीशान लग रहा था और शांत व शालीन भी. एक एक वस्तु चमक रही थी. उन्होंने भी अपनी
बैठक की साज-सज्जा में कुछ परिवर्तन किया है, आँखों को भला लग रहा है. अपने घर को
कैसे सुंदर बनाएँ यही सोच रहे हैं कल रात से. उसकी असमिया मित्र ने आज बहुत सुंदर पारंपरिक
पोषाक पहनी थी, मेखला-चादर, काले कपड़े पर लाल व हरे रंग से कढ़ाई की हुई थी. उसने
सोचा वह भी उससे सीखेगी और अपना एक कुरता काढ़ेगी.
कल रात पता नहीं जून को क्या सूझा कि अपनी मूँछें ही साफ कर दीं, अच्छा लग रहा
है उसका चेहरा ऐसे भी, अपनी उम्र से कम का मालूम होता है. आज सम्भवतः नन्हें के
जन्मदिन के फोटो मिल जाएँ. कल शाम वह जून के साथ सब्जी व चीनी लेने डेली मार्केट गयी
थी, चीनी नौ रूपये किलो हो गयी है. कल उनकी लेन की एक महिला ने पत्रिका क्लब का
सदस्य बनने से यह कहकर इंकार कर दिया कि उनके पास अखबार तक पढ़ने का समय नहीं है
पत्रिका तो दूर की बात है, नूना को बहुत आश्चर्य हुआ, वह एक और महिला से मिली, सुख
कर कांटा हो जाना किसे कहते हैं यह उन्हें देखकर जाना, बेहद दुबली हो गयी हैं कुछ
ही महीनों में, पता नहीं क्या दुःख है या क्या रोग है जो उन्हें खा रहा है. मौसम हसीन
है ऐसे में मन होता है कि दूर तक निकल जाएँ पर गृहस्थी के कामों में उलझे वे कहाँ
जा सकते हैं.
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