Saturday, August 25, 2012

बात फूलों की रात फूलों की



आज बड़ी भाभी के परिवार में एक शादी है, उसने सोचा सभी वहाँ गए होंगे. कुछ महीने पूर्व जहाँ एक मृत्यु के कारण गमी का माहौल था अब रौनक होगी, फिर भी उस दुःख की छाया कहीं न कहीं अवश्य पड़ रही होगी. उन्हें भी कार्ड मिला है, उसने सोचा जवाब लिखेगी. बड़ी ननद का खत आया है तथा सदा की तरह उसे नहीं भाई को लिखा है, अब उसका जवाब तो उन्हीं को देने दो.

मन में कैसी अनजानी अनदेखी हिलोरें सी उठ रही हैं. पोर-पोर प्यार में डूबा हुआ, मौसम भी मन को भाने वाला है, ठंडा ठंडा...मन-प्राण को शांत करने वाला. वर्षा की बूंदें एक संगीत उत्पन्न कर रही हैं, कल द्विजेंद्रनाथ निर्गुण की एक अनूठी सी कहानी पढ़ी, ‘सरस्वती’ पढ़ते-पढ़ते विजयलक्ष्मी याद आती रही, ऐसी ही तो थी वह वाचाल, लगातार कुछ न कुछ बोलते रहने वाली. शायद उसने भी पढ़ी हो यह कहानी. उसकी भी शादी अब तक हो गयी होगी, उसका पता शायद किसी पुरानी डायरी में हो. कल क्लब में एक फिल्म थी, हिंसा की पराकाष्ठा थी जिसमें, वे जल्दी ही लौट आये.

कल शाम से ही मन उद्वगिन था, रात को नींद नहीं आ रही यही. साढ़े ग्यारह तक पढ़ती रही उसके बाद सोयी, जून भी उसे देखकर परेशान हो गए थे, पर वह खुद ही अपनी उदासी का कारण नहीं समझ पाती. उसी का परिणाम है आज सुबह एक घंटा बगीची में काम किया, डहेलिया की कटिंग्स लगायी हैं, देखें कितनी बचती हैं. गुलदाउदी के पौधों को भी ठीक किया, माली ने क्यारी ठीक कर दी है, शाम को फ्लॉक्स के बीजों का छिड़काव भी कर देगी. पौधों की प्यार से देखभाल करने से मन प्रसन्न है. उसने सोचा आज से नियमित कुछ देर बगीचे में काम करेगी. आज दोपहर उसे दोनों साड़ियों पर फाल भी लगानी है.

पूजा की छुट्टियाँ भी गुजर गयीं, आज तीन दिन बाद जून ऑफिस गए हैं और धूप भी निकली है आज बहुत दिनों के बाद. सोनू पूरे एक घंटे से दूध का गिलास लेकर बैठा है, बीच बीच में खेलने लगता है, चम्मच से पिलाऊं तो फटाफट पी लेगा पर उसे खुद पीना कभी तो सीखना पड़ेगा. आज सुबह माली आया, पैंजी के बीज भी लगा दिए हैं अब सिर्फ स्वीटपी के बाकी हैं. पूजा के दौरान एक दिन वे दिगबोई गए था, वहाँ गोल्फ फील्ड का खुला मैदान बहुत अच्छा लगा. कल दशहरा देखने गए, बारिश के कारण रावण ठीक से जल नहीं पाया.

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