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Saturday, September 21, 2019

नंदी हिल पर एक सुबह



आज बैसाखी है. बाहर तेज धूप है. कुछ देर में वे आश्रम जायेंगे, उससे पूर्व बाजार, जहाँ जून को थोड़ा काम है. घर का सामान खरीदने की जिम्मेदारी उन्हीं की है, उन्होंने संभाली हुई है. आज सुबह देर से उठे वे, कारण कल रात देर से सोये. कल शाम डेंटिस्ट के यहाँ पहुँचे तो क्लिनिक पर कोई नहीं था. आठ बजे तक का समय सामने की दुकान पर काफ़ी पीकर व स्नैप सीड पर फोटो ठीक करके बिताया. कल दोपहर को दोनों मित्र परिवार आये थे. उन्हें पुलाव खिलाया, पुरानी यादें ताजा कीं, भविष्य के लिए योजनायें बनायीं और दो घंटे का समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला. असमिया सखी तीन दिन बाद अपने पुत्र के यहाँ जा रही है, जिसके यहाँ सन्तान का जन्म होने वाला है. आज सुबह व कल शाम को ओशो पर बनी एक डॉक्युमेंट्री देखी. उनके आश्रम में क्या चल रहा था, वह उससे अनभिज्ञ तो नहीं रहे होंगे. जीवन विरोधाभासों से भरा है. इंसान जब अपने भीतर के पशु को पूरी तरह से देख लेगा, तभी उसके भीतर नये मानव का जन्म होगा, शायद इसीलिए ऐसा करते रहें हों वे लोग.

आज सुबह वे चार बजे से भी पहले उठे. कल शाम को ही नंदी हिल जाने का कार्यक्रम नन्हे ने बनाया था. नहा-धोकर वे तैयार हुए और पांच बजे उसके मित्र की कार लेकर निकल पड़े. रास्ते में ही लालिमा दिखाई दी, अर्थात सूर्योदय तो हो चुका था. लगभग डेढ़-पौने दो घंटे की यात्रा के बाद सुंदर पर्वत आरंभ हो गये. घुमावदार चढ़ाई पर कार के टायर घिसने लगे और एक गंध हवा में भर गयी. सैकड़ों लोग वहाँ पहुँच चुके थे. मौसम ठंडा था. बादल, धुंध और कोहरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. पेड़ों से गिरती पानी की बूंदों ने सडकों को गीला कर दिया था. हवा ठंडी थी. उन्होंने जैकेट पहन लिए थे और सिर भी ढक लिए थे. ऊपर कई रेस्तरां थे. एक जगह बैठकर चाय पी और एक प्लेट सांबर बड़ा में से सबने आधा-आधा बड़ा खाया, जिसका स्वाद अच्छा था, क्योंकि यह सुबह का पहला भोजन था. जगह-जगह वाचिंग टावर बने थे. जिसपर चढ़कर सूर्योदय तथा नीचे की घाटी का दृश्य देखा जा सकता था. थोड़ी देर बाद वहाँ बन्दर आने लगे, जो आदमियों को देखकर जरा भी नहीं डर रहे थे. कुछ समय बिताकर वे वापस आये तो पता चला कि गाड़ी का एक टायर पंक्चर हो गया है. रास्ते में पंक्चर ठीक कराया, बीस मिनट लगे, वापसी में परांठे की एक प्रसिद्ध दुकान पर नाश्ता किया, आलू, मूली, गोभी और पिज़ा परांठे का नाश्ता !

पौने दो बजे हैं दोपहर के. आज ओशो की फिल्म का अंतिम भाग भी देख लिया. उन जैसे व्यक्ति दुनिया में हलचल मचाने के लिए ही आते हैं. वे सोये हुए लोगों के भीतर क्रांति के जागरण का बीज बोते हैं. कल उन्हें वापस जाना है, पैकिंग लगभग हो गयी है. आज बीहू है, यहाँ हर दिन ही उत्सव है. नन्हा ढेर सारा भोजन ऑन लाइन मंगवा लेता है. सोनू ने केक बनाया है. जून ने आम काटे और कल नंदी हिल से वापसी की यात्रा में लिए काले अंगूर धोकर खिलाये. शाम को नन्हे के एक परिचित के यहाँ जाना है. बनारस के रहने वाले हैं. सुबह उसका एक सहकर्मी परिवार सहित आया था. नीचे बच्चों के तैरने की आवाजें आ रही हैं. सोसाइटी के तरणताल पर दिन भर रौनक लगी रहती है.

आज वे घर वापस लौट आये हैं. सुबह चार बजे से थोड़ा पूर्व ही उठे. साढ़े पांच बजे एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए और साढ़े छह बजे पहुँच गये. कल शाम नन्हा और सोनू ढेर सारा सामान ले आये साथ ले जाने के लिए. अंजीर की बर्फी के रोल स्वादिष्ट थे और रिबन पकौड़ा भी. साढ़े ग्यारह बजे कोलकाता पहुँचे अगली फ्लाईट के लिए. हिन्दू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया पढ़ते हुए समय बीत गया. साढ़े तीन बजे वे घर पहुँच गये. ढेर सारे फूल खिले हैं बगीचे में. सामने वाला गुलाबी फूलों वाला पेड़ फूलों से पूरा भर गया है. घर आकर सफाई आदि करते-कराते सात बज गये. नैनी अपनी देवरानी को ले आई, माली की दोनों पत्नियों को भी बुला लिया, चारों ने मिलकर सफाई की व कपड़े धोये.     

Friday, August 25, 2017

नामफाके की पिकनिक


आज सुबह पौने सात बजे ही वे पिकनिक के लिए निकल पड़े थे, ‘नामफाके’ नामक स्थान पर जो यहाँ से बीस किमी दूर है, लगभग पचास लोग इक्कठे हुए. बहुत आनंद मनाया, पानी में उतरे, खेल खेले, अच्छा नाश्ता व भोजन किया, फिर कुछ लोगों द्वारा किया गया बीहू नृत्य देखा. कुल मिलाकर पिकनिक अच्छी रही. शाम को साढ़े तीन बजे घर लौटे, यानि कुल साढ़े छह घंटे वहाँ बिताये और शेष यात्रा में, तैयारी में जो समय गया वह अलग है. जून ने कल दोपहर को खीर बना दी थी, और शाम को तैयारी करके उसने सुबह सबके लिए उपमा बनायी, सभी को पसंद आयी. पिकनिक के मुक्त वातावरण में तन व मन दोनों ही हल्के हो जाते हैं.  

इस वर्ष की कम्पनी की डायरी का रंग अच्छा है. आज ही मिली है हरी-भरी यह डायरी. कल की पिकनिक की तारीफ आज भी हुई, फोटो भी अच्छे आये हैं. बड़ी भांजी के विवाह की वर्षगांठ है, दस वर्ष हो गये उसके विवाह को. नन्हा आज वापस बंगलुरू जा रहा है, इस समय शायद फ्लाईट में होगा. जून कल दिल्ली जा रहे हैं. सुबह सद्गुरू को सुना, अब उनकी बात उसे सीधे वहाँ तक ले जाती है, जहाँ वे उन्हें ले जाना चाहते हैं. जीवन एक यात्रा ही तो है सभी कहीं न कहीं जा रहे हैं,

रात्रि के सवा नौ बजे हैं. दूर कहीं से गाने की आवाजें आ रही हैं, उसकी आँखों में नींद का नाम भी नहीं है. आज सुबह गुरू पूजा और रूद्र पूजा में सम्मिलित होने का अवसर मिला. मौसम अब ज्यादा ठंडा नहीं रह गया है, परसों वसंत पंचमी है अर्थात वसंत भी आरम्भ हो चुका है. आज दोपहर वह बुजुर्ग आंटी से मिलने गयी, उसे देखकर वह सदा की तरह प्रसन्न हुईं, उसे भी उनसे मिलकर अच्छा लगता है. इस उम्र में भी उन्हें अपने वस्त्रों का बहुत ध्यान रहता है, साफ-सुथरे मैचिंग वस्त्र पहनती हैं, बंगाली उपन्यास पढ़ती हैं. शाम को बगीचे में टहलते हुए ओशो की किताब पढ़ी, सारे सदगुरुओं का स्वाद एक सा होता है. अभी कुछ देर पहले उसने कितने ही पन्ने कविताओं से भर डाले हैं..कृपा हुई है ऐसी कि इसकी कोई मिसाल नहीं दी जा सकती. जो कलम दो शब्द नहीं लिख रही थी पिछले कई दिनों से, आज मुखर हो गयी है. बसंत का मौसम जैसे भीतर उतर आया है. परमात्मा की कृपा अनंत है, वह नजर नहीं आता पर अपनी मौजूदगी जाहिर कर देता है. वह यहीं है आसपास ही ! 

जून आज वापस आ गये हैं, ढेर सारा सामान लाये हैं, अमरूद, रसभरी और बेर भी.. और शायद भारी सामान उठाने के कारण ही उनकी कमर का दर्द भी. कल रविवार है, विश्राम उन्हें स्वस्थ कर देगा. आज उनकी लायी विशेष सब्जी बनानी है, शलजम तथा भिस. बगीचे से भी ढेर सारी सब्जियां तोड़ीं. टीवी पर शशि पांडे की बातचीत सुनी, उनकी कोई किताब उसने पढ़ी तो नहीं है, मौका मिलने पर पढ़ेगी.

आज बच्चों को उसने ‘सरस्वती पूजा’ और ‘गणतन्त्र दिवस’ पर प्रश्नोत्तरी करवाई. आज छोटी बहन के विवाह की वर्षगांठ है और छोटी भांजी की बिटिया का जन्मदिन..और बराक ओबामा भारत आये हैं. सुबह से टीवी पर उन्हीं से जुड़े कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं. मोदीजी और ओबामा की मित्रता काफी गहरी होती जा रही है. भारत विकास की बुलंदियों को छुएगा. सजग नागरिक होने के नाते उन्हें भी इसके लिए कुछ करना होगा. फ़िलहाल तो कल सुबह ‘गणतन्त्र दिवस’ की परेड देखने जाना है. वापस आकर टीवी पर भी परेड देखनी है. ओबामा के आने से इस बार परेड कुछ विशेष लग रही है. शाम को एक मित्र परिवार को बुलाया है, वह दक्षिण भारतीय व्यंजन बनाएगी.



Thursday, August 24, 2017

परशुराम कुंड की यात्रा


अभी तक जून को नये वर्ष की डायरी नहीं मिली है, वह पुराने साल की डायरी के पीछे के नोट्स के पन्नों पर लिख रही है. मौसम ठंडा है, जनवरी के महीने में बादल छाये हैं नभ पर. कल क्लब का वार्षिकोत्सव था, वे गये थे दोपहर के लंच में. हर साल की तरह शाकाहारी टेबल पर उसकी ड्यूटी भी थी. भोज आरम्भ हुआ ही था कि वर्षा आरम्भ हो गयी, फिर सुरक्षित स्थान पर सब कुछ ले जाना पड़ा. चार बजे घर लौटे. शाम को प्रेस गयी, उसके लेख के साथ पुराना फोटो दिया गया था, उसने बदलवा दिया, यानि अब भी निज लाभ ही दृष्टि में है. यह कितना स्वाभाविक है न, ‘सहज रहो’ यही तो साधना का लक्ष्य है. कल जून ने दो-तीन समूह बना दिए हैं व्हाट्सएप पर, सामाजिक आदान-प्रदान का कितना अच्छा साधन है यह “व्हाट्सएप”.

पिछला सप्ताह व्यस्तताओं से घिरा था. आज ‘मकर संक्रांति’ है, अगले दो दिन जून का दफ्तर बंद है. लेडीज क्लब का कार्यक्रम अच्छी तरह सम्पन्न हो गया. उस दिन दोपहर को जैसे किसी ने उसे कहा, क्लब जाना चाहिए, जहाँ कई सदस्याएं काम में व्यस्त थीं, लगा जैसे वे उसका इंतजार ही कर रही थीं. वे रात्रि को एक बजे वापस आये. अगले दिन विवाह की वर्षगांठ थी, शाम को बाहर खुले में अग्नि जलाकर दो मित्र परिवारों के साथ यह दिन मनाया. उसके अगले दिन तबियत नासाज थी, शायद ठंड लग गयी थी. दो दिन विश्राम किया, अगले दिन वे अरुणाचल प्रदेश स्थित ‘परशुराम कुंड’ नामक एक तीर्थस्थल देखने गये, यह यात्रा एक सुखद स्मृति बनकर उनके अंतर में अंकित हो गयी है. वापसी में एक रात सर्किट हाउस में रुककर घर लौटे, जिसके अगले दिन क्लब में उन सभी सदस्याओं के लिए आभार प्रदर्शन के लिए भोज का आयोजन किया गया था, जिन्होंने कार्यक्रम में किसी न किसी तरह का काम किया था. उसके बाद मृणाल ज्योति में ‘बीहू’ मनाया गया और आज फिर जून ने बाहर लोहड़ी की आग जलाने का प्रबंध किया है.

आज बीहू का प्रथम अवकाश बीत गया. सुबह दही+गुड़+चिवड़ा का नाश्ता किया, जून ने ब्रोकोली की विशेष सब्जी भी बनाई थी. दोपहर को लॉन में धूप में बैठकर देर तक किताबें पढ़ीं, तथा मोबाईल से कई तस्वीरें व वीडियोज हटा दिए, ज्यादा कुछ संग्रह करके रखना अब नहीं भाता, मन भी खाली रहे और फोन भी. शाम होने  से कुछ पहले बैडमिंटन खेला फिर एक मित्र परिवार से मिलने गये. आज डिनर में मटर की भरवा तंदूरी रोटी बनानी है. सप्ताहांत में पहले दिन राजगढ़ जाना है और इतवार को पिकनिक. निकट स्थित एक इलाके ‘राजगढ़’ में मृणाल ज्योति की एक शाखा खुल रही है. इस इलाके में दिव्यांगों के लिए कोई स्कूल नहीं है, सर्वे करने पर पता चला, लगभग पचास बच्चे आस-पास के गांवों में हैं जिन्हें कोई शिक्षा या इलाज नहीं मिला है. कल वे लोग जायेंगे, राजगढ़ के पुलिस अधिकारी व आर्मी के मेजर को भी बुलाया है. अगले महीने कोलकाता जाना है, जून की ट्रेनिंग है पूरे दस दिन की, सो ‘विपासना कोर्स’ करने का उसका बहुत दिनों का स्वप्न पूरा हो जायेगा.


दूसरा अवकाश भी बीत गया. सुबह की साधना अब सहज ही होती है, परमात्मा ही करा रहा हो जैसे. आज एकादशी है, कुट्टू की रोटी व सागू की खिचड़ी खाने का दिन. नन्हा आज पिलानी में है, कल रांची में था, उसे अपनी कम्पनी के लिए नये लोग चाहिए. कैम्पस इंटरव्यू के लिए गया है. 

Tuesday, May 16, 2017

आम का मौसम


पिताजी पिछले कई हफ्तों से अस्वस्थ तो थे ही, अब उन्हें डिमेंशिया की समस्या भी हो गयी लगती है. समय का पता नहीं चलता उन्हें और अपने रोजमर्रा के काम करने में भी कठिनाई होती है. इस समय सो रहे हैं, दोपहर को उन्हें उठाया, पानी चाय, नाश्ता आदि दिया, दवा दी, फिर सो गये. प्रकृति  का यह नियम है जैसे एक चक्र पूरा हो रहा है. बूढ़ा फिर से बच्चा बन गया है, दीन-दुखिया से बेखबर..अपनी ही दुनिया में खोया हुआ. आज ‘मृणाल ज्योति’ की बीहू मंडली आने वाली है. पाँच बजे का समय दिया था पर अब तो साढ़े पांच हो गये हैं, किसी भी क्षण आते होंगे. जून आज दिल्ली गये हैं, दोपहर उनके जाने के बाद फिल्म देखी, ‘धूल का फूल’, नाम सुना था. पहले कभी देखी नहीं थी. महिलाओं पर अत्याचार न जाने कितने युगों से होते आये है. उन्हें इसके खिलाफ आवाज उठानी ही होगी, उसने भी उठायी थी अपने स्तर पर, आज आजादी का अनुभव भी होता है. कोयल के कूकने की आवाज आ रही है, आमों का मौसम है, कच्ची केरियों से पेड़ भरे हैं. उसने बाहर देखा, अब तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था, पर भारत में समय की कीमत कहाँ पहचानते हैं वे लोग !
सुबह शीतल थी, भ्रमण को गयी, लौटकर पिताजी को उठाया, सहायक को बुलाकर स्नान आदि कराया. नाश्ता दिया पर वे पचा नहीं सके, दोपहर तक वे अस्वस्थ ही रहे, उन्हें बेल का शरबत दिया जिसके बाद से वे ठीक रहे. जून के फोन आते रहे, दोनों ननदों के फोन भी आये. बच्चों की तरह हो गये हैं वे, फुसला कर खिलाना पड़ता है उन्हें.

पिताजी को पुनः अस्पताल ले जाना पड़ा है. कल रात को उन्हें शुभरात्रि कहने के बाद से कई बार उनके कमरे में गयी, उनके पास जाकर आवाज दी पर उन्हें कुछ पता नहीं था. सुबह चार बजे के लगभग वह उठ गयी थी, टहलने गयी पर वापसी में एक विचार आया कहीं पिताजी उठ न गये हों, जल्दी-जल्दी लौटी तो वह वैसे ही आराम से सोये थे. धीरे-धीरे उनकी चेतना भीतर सिकुड़ती जा रही है, स्वाद का भी पता नहीं चलता और न ही प्राकृतिक वेगों का. कल से नैनी कितनी चादरें व वस्त्र धो चुकी है. वृद्धावस्था का यह काल शायद सभी को देखना पड़ता है. जून जब दिल्ली से वापस आये तो उनकी हालत देखकर तुरंत ही डाक्टर को फोन किया और उन्हें अस्पताल ले गये.

पिछले दो दिन उसके सिर में दर्द बना रहा, मन भी ठीक नहीं रहा, तन के स्वास्थ्य पर मन का स्वास्थ्य निर्भर करता है. आज सुबह प्राणायाम के बाद ध्यान में चाय का कप दो बार दिखा. पिछले दिनों दिन में दो बार चाय पी, अम्लता बढ़ गयी थी, सो कल से नहीं पी रही है, मन भी अपेक्षाकृत ठीक है. परसों नन्हा यहाँ आ रहा है. जून आज चौथे दिन भी अस्पताल में सोने गये हैं, कल से सहायक आ जायेगा जो कुछ दिनों से बाहर गया हुआ था. पिताजी का स्वास्थ्य सुधर रहा है, पर जब तक खुद चलने-फिरने लायक नहीं हो जाते घर नहीं आ पाएंगे. उसे अपना स्वास्थ्य भी पहले सा नहीं लग रहा है. उसके भीतर के भय और अन्य विकार भी स्पष्ट दिखने लगे हैं, जैसे कोई आपरेशन  चल रहा हो, सब कुछ निकाल कर स्वच्छ करना हो मन को ताकि परमात्मा अपनी पूरी गरिमा के साथ प्रकट हो सके.     


Tuesday, April 25, 2017

कुम्भ का मेला


कल नहीं लिखा, सुबह स्कूल गयी, दोपहर को नेट और ट्यूशन, शाम को भ्रमण और सत्संग, फिर बालिका वधू और समाचार, दिन निकल गया. बीच-बीच में पिताजी से सम्मुख, जून और नन्हे से फोन से बातचीत. आज इस समय शाम के साढ़े सात बजे हैं, जून दोपहर बाद लौट आये हैं. सदा की तरह उसके लिए एक उपहार लाये हैं, सिल्क का सूट ..बहुत सुंदर है और बहुत महंगा भी ! नन्हे ने कहा, उन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, वह परिपक्व है, जल्दी हो गया है, हर आगे वाली पीढ़ी पहले से ज्यादा समझदार होती है. वह अपने जीवन पर नजर डालती है तो साफ लगता है, उसकी दृष्टि ही साफ नहीं थी, बुद्धि परिपक्व नहीं थी, परमात्मा ने उसे धीरे-धीरे अपनी ओर आकर्षित किया.
बाहर लॉन में झूले पर बैठकर गर्म जैकेट और कॉट्स वुल के वस्त्रों के बावजूद सुरमई शाम की ठन्डक को महसूस करते हुए लिखना एक अनोखा अनुभव है. सामने साईकस का विशाल पेड़ है, गमले में है पर पत्ते कितने बड़े हो गये हैं, जिनमें मकड़ी ने अपना घर बना लिया है. सुबह ओस के कारण श्वेत रुई से बना प्रतीत होता है. आकाश का रंग सलेटी है, बादल हैं या कोहरा, कुछ समझ में नहीं आता. लोहे के झूले का स्पर्श ठंडा लग रहा है पर गालों को छूती शीतलता भली लग रही है. अभी कुछ देर में वे सांध्य भ्रमण के लिए जायेंगे. सुबह ‘महादेव’ देखा, गणेश का चरित्र कितना अच्छा दिखाया है तभी वे प्रथम पूज्य हैं.
वर्षों पूर्व जो सफर आरम्भ हुआ था अनजाने ही, अब वह पूर्णता की और जाता प्रतीत होता है. हर सवाल का जवाब भीतर ही है, बाहर नहीं है, बाहर आते ही सब कुछ असत्य हो जाता है. पौने आठ बजे हैं, जून और पिताजी टीवी पर अपनी-अपनी पसंद के कार्यक्रम देख रहे हैं. उसे इस क्षण कुछ देखने की चाहत नहीं है. आज सुबह परमात्मा शब्दों के रूप में बरसा. महाकुम्भ पर लेख पूर्ण हो गया, भेज दिया है. परमात्मा परम प्रसाद है, रसपूर्ण है. सुबह के घने कोहरे के बाद अब धूप निकल आई है.
आज मकर संक्रांति है, सुबह से उत्सव का माहौल ! उन्होंने प्रातःराश में चिवड़ा, गुड़ व दही ग्रहण किया साथ में आलूगोभी की सब्जी. टीवी पर कुम्भ के मेले में लोगों द्वारा स्नान करने के चित्र देखे. भीतर से प्रेरणा उठी उन्हें भी एक बार कुम्भ जाना चाहिए. जून ने कहा यदि वे दिल्ली गये तो उसे ले जा सकते हैं. नाश्ते के बाद वह मृणाल ज्योति के बच्चों द्वारा बनाये नये वर्ष के कार्ड्स बांटने गयी. पहले एक उड़िया सखी के यहाँ, वह स्नान कर रही थी, पतिदेव आये, धोती पहने हुए पूजा के वस्त्रों में, फिर एक बिहारी सखी के यहाँ गयी, वह पूजा कर रही थी. उसके पतिदेव सिल्क का कुरता पहने हुए थे, तिल का लड्डू खिलाया. असमिया परिचिता के यहाँ तिल व मूंगफली का एक लड्डू मिला, उनके यहाँ भी बीहू का नाश्ता लॉन में सजा था. एक अन्य उड़िया परिचिता घंटी वाले मन्दिर के बाहर बैठे लोगों के लिए भोजन  ले जाने की तैयारी में लगी थी, उसका लॉन बहुत सुंदर था, कमल की कलियां भी थीं. उसके एक छात्र की माँ ने चावल की खीर परोसी, जो गुड़ डालकर बनाई थी. वह चने की दाल, पूरी व खीर का नाश्ता कई लोगों को करा चुकी थीं. उनके यहाँ तीन सर्वेंट परिवार हैं. सभी लोग इस दिन दान-पुन्य करते हैं. एक अन्य सखी के यहाँ भी कई बच्चे थे. वह अपने भाई के पुत्र को नहलाकर तैयार कर रही थी, वे लोग यात्रा पर जाने वाले थे. एक अन्य परिचिता ने अदरक व तेज पत्ता डालकर लाल चाय पिलाई. लोग कितने प्यार से मिलते हैं, स्वागत करते हैं, एक महिला घर पर नहीं मिलीं, उनके पतिदेव ने कहा, आइये आंटी जी, क्या वह इतनी बुजुर्ग लगने लगी है. एक अन्य परिचिता पूजा करके उठी थीं, उन्हें शाम को सत्संग में आने के लिए कहा. दो अन्य को संदेश भेजे हैं, दोनों क्लब गयी होंगी, आज के दिन क्लब में भी विशेष भोज होता है. जून दफ्तर गये हैं. कल शाम वे जून के बॉस के परिवार को पहली बार बुला रहे हैं, पहले बाहर आग जलाएंगे, फिर भीतर रात्रि भोज.

बीहू का अवकाश समाप्त हो गया. कल दोपहर वे नदी किनारे गये, पानी में लहरों के हिलने पर डूबते सूर्य का पतिबिम्ब अनोखी छटा प्रस्तुत कर रहा था. कल शाम का आयोजन अच्छा रहा. सुबह वह नर्सरी गयी थी. गेंदे, कैंडीटफ्ट व पिटुनिया के पौधे लाने. मार्च तक फूल आ जायेंगे उनमें.  

Tuesday, November 8, 2016

बीहू नृत्य


कल शाम को इतने वर्षों में उनके यहाँ ‘बीहू नृत्य’ का आयोजन हुआ. ‘मृणाल ज्योति’ के ग्रुप ने मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया. कुछ देर के लिए उसने भी भाग लिया. जून ने पूरे मन से इसमें सहयोग दिया. पिताजी ने भी बहुत सहायता की. उनका कर्मठ स्वभाव देखकर बहुत आश्चर्य होता है. इस उम्र में भी उनमें युवाओं से बढ़कर उत्साह व ऊर्जा है. सुबह टहलने जाते हैं तो फूल उठा लाते हैं, बगीचे से आंवले ले आते हैं. जून ने कल भोजन परोसने का कार्य किया. मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल तथा उनके पति दोनों बहुत खुश लग रहे थे. नूना और जून को भी बहुत अच्छा लगा. उसका नया फोन एकाएक चलते-चलते बंद हो गया है. नन्हे का नंबर उसे याद नहीं है, लैंड लाइन से बात कर ले. वह वापस चला गया है. अब जून के आने पर ही बात होगी. आज कई दिनों के बाद व्यायाम करने बैठी तो देह साथ नहीं दे रही थी, एकाध दिन में ठीक हो जाएगी. आज हनुमान जयंती है, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा. कल से वैसाख का आरम्भ है. दस बजे हैं, बाहर धूप तेज है पर भीतर कितनी ठंडक है, ऐसे ही उनका मन बाहर कितना अशांत है पर भीतर कितन ठहरा हुआ है. वहाँ तक जाने का मार्ग जिसने खोज लिया वही चैन पा सकता है. पिछले दिनों कितना कुछ घटा, लेकिन भीतर कहीं यह विश्वास था कि सब ठीक है. नन्हा सूफिज्म पर पुस्तक ले गया है. इसका अर्थ है कि परमात्मा के प्रति उसके अंतर में आकर्षण तो जग ही चुका है, वह ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता. उसका संग यदि सुधर जाये तो यह काम और जल्दी हो सकता है, लेकिन हर कार्य अपने समय पर ही होता है. आज चर्चामंच पर उसकी कविता पोस्ट हुई है, वह भी ‘उसी’ की याद दिलाती है. कई ब्लॉग पढ़े, एकाध अच्छे भी लगे, शब्दों का जाल ही हैं ज्यादातर तो, जो मौन को उपजा दें वही शब्द सार्थक हैं. गुरूजी को भी सुना, उन्होंने कहा धर्म व राजनीति दोनों में आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया जाए, सभी धर्मों के लोग एक दूसरे से परिचित हों. अभी कुछ देर में बच्चे पढ़ने के लिए आने वाले हैं. माँ जो अपनी कुर्सी से उठती नहीं हैं, भय के कारण पीछे के आंगन का दरवाजा बंद आयी हैं.  

दस बजे हैं सुबह के, रात से ही वर्षा की झड़ी लगी है. दिन में अंधकार छा गया है. सुबह बड़े भाई-भाभी से बात की, भतीजी ने डांस क्लास ज्वाइन की है, साथ ही नारायण कोचिंग भी. आजकल बच्चे सभी कुछ एक साथ करना चाहते हैं. उसने ब्लॉग पर बीहू की तस्वीरें डाली हैं. दीदी ने प्रतिक्रिया भेजी है, और वीडियो की फरमाइश की है. कल शाम को जून की बात नहीं मानी तो उदास हो गये. मानव अपने ही मन द्वारा छला जाता है..इस क्षण में उसके भीतर एक प्रतीक्षा है, भीतर बहुत कुछ है जो प्रकट होना चाहता है.

आज भी वही कल का सा समय है, पर अब बादल छंटने लगे हैं. आज वर्षा पर लिखी एक नई कविता ब्लॉग पर पोस्ट करनी है, यहाँ तो पावस का आरम्भ हो ही चुका है. कुछ देर पहले माँ पूछती हुई आयीं, खाना नहीं बनायी हो, आजकल वह ज्यादा बात नहीं करती हैं, पर आज उन्हें बात करते देखकर अच्छा लगा. जब उसने पूछा, आप खायेंगी, तो पहले कुछ नहीं बोलीं फिर अपना ही प्रश्न दोहराने लगीं, उसने अब थोड़ा ऊंची आवाज में जवाब दिया, पर अगले ही पल लगा पिताजी को अच्छा नहीं लगा होगा. फिर वही वाणी का दोष..या अधैर्य का संस्कार. आज सुबह का स्वप्न भी जगाने के लिए था, किसी बच्ची के जन्मदिन पर जून एक बहुत ही सामान्य सा स्कूल बैग लाये हैं. उसके सामने ही वह खोलती है और कहती है, इतना खराब गिफ्ट है, वह शरम के मारे कुछ बोल नहीं रही है फिर हाथ बढ़ाती है और नींद टूट जाती है. वर्षा हो रही थी सो टहलने नहीं गये वे, प्राणायाम किया, एक आचार्य को सुना, सत्यार्थ प्रकाश के बारे में वे बता रहे थे.        


Wednesday, October 19, 2016

बीहू में हूसरी

आज जून अहमदाबाद जा रहे हैं. उसे सफाई के शेष कार्य पूरे करने हैं. आज सुना, काठवाडी़ गाँव में एक अद्भुत दुकान है, बिना दुकानदार की दुकान, ग्राहक अपने आप ही सामान लेते हैं तथा पैसे रखकर चले जाते हैं. सुबह जून से उसकी किसी बात पर बहस हो गयी, बाद में उसने सोचा तो लगा की अति उत्साह में आकर वह भला करने के बजे उल्टा ही काम कर बैठी. उसे अपनी वाणी के दोषों पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है. उसे लगता है जिस प्रकार वह स्वयं को शुद्ध, बुद्ध आत्मा मानती हैं, उसी प्रकार सभी पूर्ण शुद्ध तथा ज्ञानस्वरूप हैं, यह भी अकाट्य सत्य है तो जो भी विकार उसमें दीख रहे हैं, वे ऊपर-ऊपर ही हैं. जैसे गंगा जल की धारा में कभी कोई कचरा बहता चला जाये तो कभी फूल या दीपक..धरा तो शुद्ध ही रहती है. इस तरह तो किसी के दोष देखने ही नहीं चाहिए, आत्मा को ही देखना चाहिए, जैसे वह स्वयं को देखता है ! दूसरी बात कि यदि कोई स्वयं पूर्ण हो तभी उसे दूसरों को कुछ कहने का हक है. वह केवल गुरू ही हो सकता है. उसे अपने अंदर लाखों कमियां दीख पड़ती हैं तो फिर उसे कोई अधिकार ही नहीं है. उसने प्रार्थना की, कि जून अपने हृदय को उसके प्रति स्वच्छ करके सदा की तरह क्षमा कर दें. जैसे आज तक अनगिनत बार बिना कहे ही उसकी सभी गलतियों को माफ़ किया है. उसकी यात्रा शुभ हो.  


यदि कोई कार्य सेवा भाव से किया जाये तो ईश्वरीय सहायता अपने आप मिलने लगती है. जब लेडीज क्लब द्वारा मृणाल ज्योति जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल पायी तो एक एक सखी ने भेज दी. बच्चे खुश हुए और वह क्लब की ओर से डोनेशन चेक भी दे पायी. बीहू के दिन घर में ‘हूसरी’ करने की बात भी कह पायी. कल कुछ अन्य लोगों से भी कहेगी. आज भी वर्षा हो रही है. हिन्दयुग्म पर उसकी कविता आई है. वर्षों पहले लिखी यह कविता उसके भीतर के बीज का प्रतीक है, जो अंततः सर्वोच्च मुक्ति के रूप में प्रकट होने को है. एक धार्मिक या कहे अध्यात्मिक व्यक्ति ही परिवर्तन कर सकता है. वह कोई आवरण नहीं चाहता, वह अंतिम सत्य को चाहता है, उससे कम कुछ नहीं. चाहना ही है तो उसे चाहो जो वास्तव में चाहने योग्य हो और मांगना भी हो तो उससे मांगो जो ख़ुशी से दे दे. तन पर लगे पहरों से ज्यादा कठिन है मन पर लगे पहरों को खोलना..और सच्ची क्रांति भी तभी घटती है जब मन के पहरे तोड़ दिए जाएँ और भीतर से एक ऐसी ज्वाला को प्रकट किया जाये जिसे दुनिया का कोई जल बुझा ही नहीं सकता..क्रांति फलित हुई है उसके भीतर ! भीतर जाने के उपाय और साधन बहुत हैं, समय भी है. भगवद् गीता पर लिखना शुरू किया है कल, आज उसे आगे बढ़ाना है ! जून से बात हुई आज वह दूसरी फील्ड में जायेंगे. 

Wednesday, November 4, 2015

इंदिरा गाँधी की कहानी



पिछले दो-तीन दिन छुट्टी के थे, बीहू की छुट्टी, सो डायरी नहीं खोली. इस समय दोपहर के दो बजे हैं. मौसम अब बदल गया है, गर्मी की शुरुआत हो गयी है. पिछले दिनों बगीचे से तोड़ कर गन्ने खाए, दांत व मसूड़े में दर्द है, हर सुख की कीमत तो चुकानी ही पडती है. आज सुबह वे समय से उठे, ‘क्रिया’ आदि की. ध्यान कक्ष में पंखा नहीं लगा है टेबल फैन से आवाज ज्यादा आती है, सो इस वक्त वह इधर बैठी है अपने पुराने स्थान पर. संडे योग स्कूल के बच्चों ने कार्ड बनाने का कार्य शुरू कर दिया है, लिफाफे भी बनाने हैं. पत्रिका के लिए कल उन्हें प्रेस जाना है, किताब के लिए जून ने लिख दिया है. वह आजकल कैथरीन फ्रैंक द्वारा लिखी इंदिरा गाँधी की कहानी पढ़ रही है. बनारस पर जो लेख लिखा था, वह आंटी को पढ़ने के लिए दिया था, सम्भवतः अभी उन्होंने पढ़ा नहीं है. लिखने का बहुत सा कम पड़ा है, गीतांजलि पर आधारित जो छोटे-छोटे पद लिखे थे, उन्हें भी टाइप करना है. ऐसा लगता है जैसे कुछ छूटा जा रहा है, लेकिन वह क्या है, उस पर ऊँगली रखना कठिन है. भीतर एक बेचैनी सी है, मगर इतनी तीव्र भी नहीं बस मीठी-मीठी आंच सी बेचैनी. ईश्वर ने उसे इतनी शक्ति दी है, इतना ज्ञान, इतना प्रेम और इतना समय दिया है, उसका लाभ इस जग को नहीं मिल रहा है, वह तो सौ प्रतिशत लाभ में ही है हर पल !

दोपहर के सवा दो बजे हैं, अप्रैल माह की तपती हुई दोपहरी है, सूरज जैसे आग फेंक रहा है. अभी थोड़ी देर पहले वह प्रेस से आई है, क्लब की वाइस प्रेसिडेंट और एडिटर के साथ गयी थी. उसने वाराणसी वाला लेख छपने के लिए दिया है. आज उठने में दस मिनट देर हुई पर सुबह के वक्त इतना समय भी कीमती होता है. आज उसने कई दिन बाद क्रोध का अभिनय किया, नैनी की बेटी को डांटा कि वह अपना स्कूटर जून के गैरेज के आगे न धोये, बाद में कोई उसे भीतर से डांटता रहा, वह कौन है भीतर जो उससे कोई गलती हो जाये तो चुप नहीं रहता. कल नन्हे का फोन खो जाने की खबर आई तो जून बिलकुल चुप थे, उसे कुछ भी महसूस नहीं हुआ, न दुःख न अफ़सोस..जैसे कुछ हुआ ही नहीं. वह धीरे-धीरे आत्मा में स्थित होने का प्रयास दृढ़ करती जा रही है. छह वर्ष पहले जो यात्रा शुरू की थी वह अब काफी आगे आ चुकी है, लेकिन यह यात्रा जीवन भर बल्कि जन्मों तक चलने वाली है, इसकी मंजिल भी यही है और मार्ग भी यही है. आज जून ने भी तो थोड़ा गुस्सा किया, वह ड्रेसिंग टेबल देखने गये थे पर अभी भी उसमें कमी थी. वे यह जानते ही नहीं कि ऐसा करके वे अपने को कर्मों के बंधन में फंसा लेते हैं.

धर्म को यदि धारण नहीं किया तो व्यर्थ है, नहीं तो उनकी हालत भी दुर्योधन की तरह हो जाएगी जो कहता है, वह धर्म जानता है पर उसकी ओर प्रवृत्ति नहीं होती और अधर्म जानता है पर उससे निवृत्ति नहीं होती. उसे कृष्ण के भजन भाते हैं, उसकी सूरत भी, पर उसके कहे अनुसार चलना तो अभी नहीं आता. आज सद्गुरु को सुना, वह उनसे कितनी उम्मीदें लगाये हुए हैं, वह तो उन्हें अपने जैसा ही मानते हैं, कितने भोले हैं वह, सब समझते हुए भी उनका मान बढ़ाने के लिये जो गुण उनमें नहीं हैं वे भी बताते हैं, तब वे लज्जा से झुक जाते हैं. सद्गुरु की महानता की तो कोई सीमा ही नहीं है, वह कहते हैं कि थोड़ा सा विकार यदि रह गया हो तो उससे मत लड़ो, रहने दो, उन्हें पता ही नहीं यहाँ तो विकार का ढेर लगा है, अहंकार तो इतना ज्यादा है कि..आज भी गर्मी काफी है. अभी डेढ़ बजे हैं, संगीत का अभ्यास तो उसने कई महीनों से छोड़ दिया है, लिखने-पढ़ने का कार्य ही काफी है. आज सत्संग में भी जाना है. वहाँ पढ़ने के लिए आज से अपनी कविता की जगह गुरूजी का कोई ज्ञान सूत्र ही लेकर जाएगी. किताब का काम दस मई के बाद होगा, तब तक भूमिका का प्रबंध भी हो जायेगा. नन्हा दो रातों तक अपने मित्र के साथ अस्पताल में रहा, उसमें सेवा की भावना है, अच्छी बात है. उसका पुराना मोबाइल काम करने लगा है.    


  

Monday, October 20, 2014

एंथोनी रॉबिन्स की किताब


आज उसने सुना, “मन को बहते हुए पानी सा होना चाहिए, जिसमें निरंतरता हो, सत्य हो, अगर मन रुके हुए पानी सा निष्क्रिय हो जाये तो ऊर्जा चुक जाएगी. जहाँ से तन, मन तथा बुद्धि को सत्ता मिलती है, उस परमेश्वर का स्मरण सदा बना रहे, कर्मों में योगबल बना रहे. कर्म बंधन स्वरूप न हों.” सुबह उठी तो कुछ देर के लिए मन दुखाकार वृत्ति से एकाकार हो गया था पर शीघ्र ही सचेत हो गयी. ईश्वर उसके साथ है. आज भी प्रकाशक महोदय से बात हुई, उन्होंने कविताएँ पढ़ीं, सराहा भी, कुछ नये शीर्षक भी उन्होंने सुझाये, जिनमें से चुनकर दो भेजने हैं. आज भी वर्षा की झड़ी लगी हुई है, रात भर बरसने के बाद भी वर्षा थमी नहीं है. कल दोपहर उनके बाएं तरफ के पड़ोसी के यहाँ एक बीहू नृत्य और गायन मंडली आ गयी थी. शोर बहुत था, बिजली भी नहीं थी, वह कुछ पंक्तियाँ ही लिख पायी. आज से दूसरी किताब के लिए कविताएँ टाइप करने का कार्य आरम्भ करना है. एक सखी के लिए विवाह की वर्षगाँठ का कार्ड बनाना है तथा एक कविता भी उसके लिए लिखनी है. आज नन्हे की सोशल की परीक्षा है जो अंतिम है. हिंदी में वह पेपर समय पर पूरा नहीं कर पाया, उसे इन छुट्टियों में हिंदी तथा गणित नियमित पढ़ाना होगा.

कर्म अपने अहम का पोषण न करे, किसी को दुःख देने वाला न हो तो मुक्ति का कारण हो जाता है अथवा कर्म बंधन में डालने वाला होगा. मनसा, वाचा, कर्मणा जो भी हो अंतरात्मा की प्रसन्नता के लिए हो न कि अहम् को संतुष्ट करने के लिए. जीवन उस महान सूत्रधार का प्रतिबिम्ब हो, जीवन से उसका परिचय मिले, जीवन उसका प्रतिबिम्ब हो. ऐसा करने के लिए मन को संयमित करना होगा. कल शाम को Anthony Robinson की पुस्तक में भी इसी प्रकार के विचार पढ़े. यह सब आचरण में उतरे तो यात्रा पूरी हो सकती है. कलाकार का दिल पाया है तो उसकी कीमत भी चुकानी होगी. अपनी संवेदना को तीव्रतर करना होगा और भावनाओं को पुष्ट. चिन्तन करते हुए दर्शन भी तलाशना होगा और यही अध्यात्म के मार्ग पर ले जायेगा, जो भीतर से उपजेगा वही सार्थक होगा और सुंदर भी, वही शाश्वत भी होगा.

‘बीज बोते हुए सजग रहें तो फल अपने आप सही आयेगा, कर्म  करते समय सजग रहें तो उसका फल अपने आप ही सही आएगा. नीम का बीज लगाकर कोई आम की आशा करे तो मूर्ख ही कहायेगा, ऐसे ही कर्म यदि स्वार्थ हेतु, क्रोध भाव से किया गया हो तो परिणाम दुखद ही होगा.’ आज बहुत दिनों बाद उसने गोयनका जी का प्रवचन सुना. आज नन्हे का स्कूल ‘तिनसुकिया बंद’ के कारण बंद है. तिनसुकिया में सोनिया गाँधी चुनावी दौरे पर आ रही हैं. सुबह-सुबह समाचारों में सुना काश्मीर में हिंसा बढ़ गयी है तथा असम में उल्फा ने नेताओं व कार्यकर्ताओं पर आक्रमण तेज कर दिए हैं. इस बेमकसद हिंसा से किसी का भी लाभ होने वाला नहीं है. श्रीलंका में सैकड़ों सैनिक अपनी जान दे रहे हैं, अंतहीन लड़ाई जो जमीन के एक टुकड़े के लिए अपने ही देश के लोगों से लड़ी जा रही है. कल शाम ‘बंदिनी’ फिल्म देखी. नूतन का अभिनय प्रभावशाली था. वह उसे सदा से अच्छी लगती आयी है. आजकल उसका हृदय अलौकिक आनन्द से ओतप्रोत रहता है, उस ईश्वर की स्मृति बनी रहती है. जिसका स्मरण ही इतना शांतिदायक है उसका साक्षात दर्शन या अनुभव कितना मोहक होगा. लेकिन उस स्थिति को पाने के लिए अभी हृदय को विकारों से पूर्णतया मुक्त करना होगा, शुद्ध, निष्पाप, पवित्र हृदय ही उसका अधिकारी है !


आज सुबह छोटी बहन से बात की वह फिर कुछ परेशान थी, निकट के व्यक्ति को समझ पाना या समझा पाना भी कभी-कभी कितना कठिन हो जाता है. उसने प्रार्थना की, ईश्वर उनके हृदयों में प्रेम उत्पन्न करे. मानव तो निमित्त मात्र हैं, रक्षक तो वही है. वही उसे व उसके परिवार को बुद्धियोग देगा. कल शाम उसने बैक डोर पड़ोसिन को पौधों के लिए फोन किया, वह घर पर नहीं थी पर उसका संदेश उस तक पहुंच गया होगा क्योंकि अभी कुछ देर पूर्व ही उसने माली की बेटी से कुछ पौधे भिजवाये हैं, कैसे न कहे कि वह उसकी सुनता है ! आठ बजने को हैं अभी तक स्नान-ध्यान शेष है. सन्त वाणी में इतना रस आता है कि टीवी के सामने से हटने का मन नहीं होता. मन उद्दात विचारों से भर जाता है, ईश्वर के निकट पहुंच जाता है. नन्हे को कल कई बातें बतायीं, वह सुनता तो  है पर महत्व नहीं समझता. वह भी उसकी उम्र में ऐसी रही होगी. पर ईश्वर तब भी उसके साथ था.   

Monday, March 17, 2014

नीना गुप्ता का धारावाहिक - सांस


आज बीहू है, टीवी पर भारत-आस्ट्रेलिया क्रिकेट पेप्सी कप का फाइनल आ रहा है, भारत के जीतने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं. छुट्टी के दिन सारी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है, देर से उठे, न व्यायाम हुआ न ध्यान... नाश्ते में खीर खायी, लंच में खिचड़ी. सुबह एक स्वप्न देख रही थी, उसका असर देर तक रहा यहाँ तक कि अब भी है, इन्सान कभी-कभी स्वयं के असली रूप को कितना स्पष्ट देख पाता है और अक्सर यह रूप कई परतों में छिपा रहता है. हो सकता है उसकी यह राय हारमोंस के कारण हो, या फिर यही वास्तविक वह है. कल जून एक कैसेट लाये थे “युग पुरुष” नाना पाटेकर और मनीषा कोइराला थे उसमें. फिल्म अच्छी थी मगर उसे लगा, चलेगी नहीं. कल शाम एक मित्र के यहाँ गये, वहाँ गृह स्वामिनी ने पनीर की पूड़ी खिलाई with grated carrot and coriander, स्वादिष्ट थी. वापस आकर ‘सांस’ देखा, नीना गुप्ता अपने ही क्रोध का शिकार बन गयी है, औरतों के साथ यही तो विडम्बना है, अन्याय का विरोध करे तो भी उसकी हार है और न करे तब तो है ही. कुछ देर पहले एक सखी का फोन आया, पर आजकल उसका मन बातें करने का नहीं होता, सम्भवतः आजकल वह स्नेह शून्य हो गयी है, अब हारमोंस को दोष देने का वक्त फिर आ गया है.

आज भी बीहू का अवकाश है, उसकी छात्रा ने तो बल्कि यह कहा कि आज ही बीहू है. बंगाल में आज से नया साल भी शुरू हो रहा है. आज वे जल्दी उठ गये थे, कल जून तिनसुकिया से कम्प्यूटर टेबल के लिए नया टॉप लाये थे, वह भी लगा दिया है. आज लंच में वे तरबूज खाने वाले हैं, इस मौसम का पहला तरबूज ! नन्हा सुबह से अंग्रेजी पढने में लगा है. अगले महीने से उसके यूनिट टेस्ट हैं. उसे home alone देखनी है पर पहले पढ़ाई, फिर फिल्म.. यह तय किया है, थोड़ा मुँह जरुर बनाया उसने पर बाद में समझ गया. नये स्कूल में किताबें भी ज्यादा हैं और पढ़ाई भी. उसकी कुछ किताबें उसे भी रोचक लगीं. कल उसका मन हिंदी लेखन की किताब पढ़ने में नहीं लग रहा था, बार-बार उन्हीं सिद्धांतों को दोहराने से शायद बोरियत महसूस होने लगी थी. कल शाम फिर वर्षा हुई थी पर आज धूप निकली है, मौसम का असर भी इंसानी फितरत पर पड़ता होगा, पड़ता ही है. आज सामान्य महसूस कर रही है. अभी एक घंटा रियाज करना है, किसी को बिना डिस्टर्ब किये घर में रियाज करना भी अपने आप में एक कला है.

जून को कल रात नींद नहीं आई, शायद उसकी वजह से. वह स्वयं तो उनके स्नेह की अधिकारिणी बने रहना चाहती है, प्रेम में हल्के से भी दुराव की पीड़ा क्या होती है उसे उसका मन पहले महसूस कर चुका है, पर कल वह क्यों नहीं समझ पायी. आज उसे संगीत की कक्षा में सुबह ही जाना है. वर्षों बाद अकेले बैठे गाते-गुनगुनाते समय इन अध्यापिका से सीखा संगीत बहुत याद आएगा. कल दूँ भर की कड़ी धूप के बाद शाम को हुई मूसलाधार वर्षा के कारण हवा में ठंडक है. नन्हा आज सुबह जल्दी से उठ गया, जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है, जिम्मेदारी समझ रहा है. कल रात स्वप्न में दोनों ननदों को देखा, छोटी ननद दूसरे बच्चे के आने की तयारी कर रही है. एक स्वप्न में देखा एक लडकी उससे एक गीत सीखना चाहती है. जे कृष्णा मूर्ति की पुस्तक पढ़ ली है, उनके अनुसार सचेतन मन से वर्तमान में जीवन जीना चाहिए संवेदन शील मन हो जो पिटी-पिटाई लकीरों पर न चले बल्कि अपना रास्ता स्वयं खोजे.






Tuesday, April 9, 2013

बैसाखी और बीहू



आज बैसाखी है, बचपन में इस दिन दादीजी सूखे मेवों, मखानों, व पतासों के हार पहनातीं थीं सभी बच्चों को. सुबह टीवी पर बैसाखी का अच्छा सा रंगारंग कार्यक्रम देखा. जून को परसों शाम से हल्का ज्वर हो गया है, कल सुबह उतर गया था पर दोपहर को फिर हो गया. आज अभी तक वह दफ्तर से आए नहीं हैं, कल से बीहू का अवकाश है, आज सम्भव है स्ट्रेट शिफ्ट हो, यानि बिना लंच ब्रेक के. घर जाने में मात्र दस दिन रह गए हैं, अभी काफी काम है सिलाई का और घर भी पिछले दिनों नन्हे की परीक्षा के कारण पूरी तरह से साफ नहीं हो पा रहा था. कल उन्हें दोपहर का खाना बाहर खाना है, ‘बीहू भोज’, उसे बस घर से राजमा बनाकर ले जाने हैं. मिलजुल कर रहना, त्योहार मनाना कितना अच्छा लगता है, उसकी पुरानी पड़ोसिन का फोन भी आया था, शाम को वे लोग आएंगे. नन्हा पड़ोस के दोस्त के यहाँ गया है, आजकल छुट्टियाँ हैं वह बेहद खुश रहता है. आज मौसम भी मेहरबान है, लगता है आस-पास ही कहीं वर्षा हुई है, हवा में ठंडक है. उसे जून की याद आ रही है, ऐसा क्यों है, पर ऐसा है कि उनकी तबियत ढीली होने पर उनका ध्यान बना रहता है, उनकी देखभाल करने का मन होता है. उनका उतरा हुआ और उदास चेहरा उसे सबसे ज्यादा उदास करने वाली चीजों में से है.

  परसों उन्हें जाना है, अभी तक पैकिंग शुरू नहीं की है, पिछले दिनों दो बार जून और उसके बीच गलतफहमी हो गयी, लेकिन उसके बाद बादल छंट गए और प्यार का सूरज पहले से ज्यादा चमकदार होकर निकल आया है. जून को परेशान करना ...उसकी यह कभी मंशा नहीं हो सकती पर हालात ही ऐसे बनते चले जाते हैं कि .. उस दिन जून को उसका लेडीज क्लब में टीटी खेलना पसंद नहीं आया, उसने नाम दे दिया था सो जाना जरूरी था, पर ऐसे उदास मन से खेलने से वह हार गयी, उसकी पार्टनर जरूर नूना से नाराज होगी, उसे अच्छा न लगा हो शायद उसके साथ खेलना. कल शाम को उसकी पुरानी पड़ोसिन आई थी, बल्कि वे उसे ले आये थे, उसकी बातें सुनकर लगता है अभी बचपना गया नहीं है, कहीं न कहीं इंसान बूढ़ा होने तक बच्चा बना रहता है.
 आज मौसम फिर ठंडा है, कल रात वर्षा हुई, चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है घर से बाहर निकलते ही. कल सुबह से ही उसकी गर्दन में दायीं तरफ हल्का खिंचाव व दर्द महसूस हो रहा है, अभी-अभी जून का फोन आया है, वह सवा दस बजे ले जायेंगे उसे अस्पताल. कल सफर करना है इसलिए कुछ विशेष चिंता हो रही है. ईश्वर उसके साथ है..हर छोटी-बड़ी विपत्ति में ईश्वर ही हमेशा मदद करता है सदा सर्वदा... सुबह उसकी असमिया सखी का फोन आया, फिर तेलगु सखी का और फिर पुरानी पड़ोसिन का, जिसने शाम को नाश्ते पर बुलाया है. उसने मना किया पर ज्यादा मना करते हुए भी अच्छा नहीं लगता, वक्त-वक्त की बात है...इसलिए तो विद्वानों ने कहा है – सुखेदुखे समेकृत्वा..परिस्थिति कैसी भी हो मन का संयम, दृढ़ता, धीरता व आस्था नहीं खोनी चाहिए.

Tuesday, February 12, 2013

तंदूरी नाइट



   भाई ने घर पहुंच कर खत भेजा है, उनके साथ बिताए दिन अब तस्वीरों में कैद हैं, जो कुछ दिन बाद ही बन कर आयेंगी. कल से बीहू का अवकाश है, शाम को क्लब में बीहू का कार्यक्रम देखने भी वे जायेंगे. सर्वोत्तम में एक लेख आया है, क्या आपके “पति भी चुप्पे हैं”, रोचक लेख है, क्या दुनिया भर की पत्नियों की एक जैसी समस्याएं हैं, जून ने भी पढ़ा है यह लेख, वैसे वह इतने चुप्पे भी नहीं हैं, पर बातचीत शुरू कभी नहीं करते, बल्कि बचना चाहते हैं, उन्हें उकसाना पड़ता है. लिखना-पढ़ना पिछले दिनों छूट सा गया था, उसने पिजा बनाने की एक रेसिपी जरूर लिखी एक पत्रिका से, और उन्होंने बनाया भी है पिजा, खमीर की गंध कुछ ज्यादा आ रही थी, वैसे अच्छा लगा.

पिछले चार दिन फिर अवकाश...बीहू का भी और उसके लिखने का भी. कल दो मित्र परिवार आए थे, दोपहर बाद वे गए. इस समय दोपहर के पौने एक बजे हैं, वह बाहर लॉन में बैठी है, पंछियों की मिली-जुली आवाजें हैं, किसी ने किसी कुत्ते को लाठी से मार दिया है शायद, उसके चिल्लाने की आवाजें आ रही है, और तभी एक आवाज आई,  हॉकर की, हर माल एक दाम पर, उसने एक साबुनदानी खरीदी, एक स्पून स्टैंड और तीन छोटे-छोटे फूलदान..यानि पांच वस्तुएँ सब समान दाम की. सामान रखने घर में गयी तो भीतर मसालों की गंध भरी हुई थी, शायद पीछे वाले घर से आ रही थी. बाहर आई तो उसकी छात्रा पढ़ने आ गयी थी, धूप में ही बैठे वे, मगर उसकी ओर पीठ करके, वरना आँखों को चुभती है. अभी तक उसने चादर पर फूल पेंट करना शुरू नहीं किया है, जबकि छोटी पेंटर भाभी को गए नौ दिन हो गए हैं, वह सिखा कर गयी थी. नन्हा यदि आज भारत की बैटिंग देखता तो तो बेहद खुश होता, कामले और तेंदुलकर ने बहुत अच्छा खेला, दूसरी इनिंग शुरू हो गयी होगी पर अंदर जाने का उसका मन नहीं है.

इस साल उसे जो डायरी मिली है, वह इतनी बड़ी है कि लिखने में असुविधा होती है, लेकिन यह असुविधा उसे अच्छी लगती है, जैसे प्रिय के दोष भी गुण लगते हैं. सुबह ही है अभी, उसने गुलाब के तीन गमलों की निराई की, वे बनारस से लाए थे ये तीन गुलाब. आज धूप फिर आराम करने चली गयी है और अपनी जगह बादलों को भेज दिया है. रात को ‘तंदूरी नाइट’ देखकर सोयी थी, स्वप्न में दक्षिण अफ्रीका में घूम रही थी, नैरोबी के रेलवे स्टेशन पर. कुछ अंग्रेजों से मिलती है, एक लड़की भी है उनमें और सपने में वह उन पंजाबी दीदी के बेटे की मित्र है. सुबह तक यह स्वप्न सजीव था. नन्हा स्कूल गया है, कल कह रहा था, नहीं जायेगा, क्योंकि स्कूल में लड़ाई बहुत होती है. जुलाई में उसका टेस्ट है पिलानी में, अगर वहाँ दाखिला हो जाये, लेकिन क्या गारंटी है कि वहाँ लड़ाई नहीं होगी और खर्चा भी तो बहुत है, अभी मकान का भी कुछ निर्णय नहीं हो पाया है. कल उसने एक फूल पेंट किया था सफेद चादर पर गुलाबी फूल.

कल रात पहली बार विनोद दुआ का कार्यक्रम ‘परख’ देखा, अच्छा लगा. शाम को वे दो मित्रों के यहाँ गए, एक ने ब्रेड का एक नया नाश्ता खिला दिया और दूसरे ने कचौड़ी, घर आकर वे बिना कुछ खाए ही सो गए. आज नन्हा घर पर ही है, पढ़ाई कर रहा है, बीच-बीच में कुछ पूछ लेता है, अभी लक्ष्मी आई थी, कह रही थी, आलू की क्यारी में चूहे घुस गए हैं, आलू खा रहे हैं, वह आलू निकलना चाहती थी. पता नहीं इस साल इतने सारे चूहे बैग में कैसे हो गए हैं, दवा का असर भी विशेष नहीं हुआ.

आज मन बुझा-बुझा सा है, मन में डर है कि कहीं...थोड़े से दिन ज्यादा हो जाने पर ऐसा मानसिक तनाव उसे हो जाता है, क्या ऐसा औरों के साथ भी होता होगा, जून और नन्हा उसे परेशान देखकर खुद भी उलझन में पड़ जाते हैं. उसने स्वयं से कहा, निराशावादी नहीं होना चाहिए, जो भी होगा ठीक ही होगा. कल शाम वे फिर एक मित्र के यहाँ गए, ताकि कुछ देर मन भूल जाये, शायद वह व्यर्थ ही भयभीत है, जो होना है वह होगा ही, क्योंकि जब बात अपने हाथ में न हो तो उसे वक्त के हाथों में ही छोड़ देना चाहिए.


Tuesday, January 22, 2013

होमर की किताब - ओडिसी



किसी के प्रति द्वेष न रखो, अपने सब कर्म ईश्वर को अर्पण कर निस्वार्थ भाव से जीवन जीते चलो, ऐसे में न मन में कोई चिंता होगी न विकार, शांत मन और व्यर्थ भावुकता से परे हृदय ! आज गीता में यही पढ़ा. बारहवें अध्याय में कृष्ण कहते हैं- “सुख-दुःख, निंदा-स्तुति में समान, हर्ष व द्वेष से रहित, मान-अपमान से परे, आशा मुक्त, चिंताओं से दूर मेरा भक्त मुझे प्रिय है.” कितने सुंदर विचार भरे पड़े हैं गीता में. कल रात को माँ से बात हुई, लगा जैसे आमने-सामने बातें कर रहे हों, अभी एक पत्र लिखेगी उन्हें, दोनों बहनों को भी पत्र लिखने हैं. कल दोपहर भर नन्हे के लिए नाईट ड्रेस सिलती रही, उसका चेहरा कितना खिल गया था, कहने लगा, आप हमेशा कपड़े खुद सिलकर मुझे दीजियेगा, देखें, कितने साल तक घर के  सिले कपड़े पहनता है. शाम को वे क्लब गए खाना वहीं खाया.

आज सुबह ईश्वर की विभूतियों का वर्णन पढ़ा, पहले वह बादलों, सूरज और हरियाली... सभी में भगवान को महसूस करती थी, लेकिन बौद्धिकता के साथ आध्यात्मिकता नहीं रह जाती, अब ईश्वर याद आता है तो तब जब मन हर तरफ से निरुपाय हो जाता है, लेकिन कहीं न कहीं ईश्वर की सत्ता है जरूर, यह तो मन मानता ही है. नन्हे का स्कूल बीहू के कारण चार दिनों के लिए बंद है, एक दिन खुलेगा फिर “गुड फ्राई डे” का अवकाश होगा. सुबह उसने व्यायाम किया, और चार दिन बाद होने वाली कला प्रतियोगिता की तैयारी कर  रहा है. कल उनके लॉन में पंजाबी दीदी का दिया झूला लग गया, उनके अहसान बढ़ते ही जा रहे हैं. कल सुबह जो पढ़ा था, शाम को ही भूल गयी, जब क्लब में खाने को देखकर नापसंदगी जाहिर की, अपना मन तो परेशान हुआ ही, जून और सोनू का भी. जून तो आज सुबह भी उदास थे उसकी नासमझी के कारण ही तो. न जाने कब उसका सम भाव का सपना पूर्ण होगा. पढ़ने में जो बातें अच्छी लगती हैं, उनपर चलना उतना ही मुश्किल होता है, पर बार-बार पढ़ने से तत्व को आचरण में लाया जा सकता है, या तत्व व आचरण का अंतर कम किया जा सकता है.

वे लोग छुट्टियों में घूमने गए, उसने एक साड़ी खरीदी, हल्के शेड में कोटा की साड़ी. वीसीपी पर फ़िल्में देखीं. मित्रों के यहाँ गए और मजे-मजे में दिन बीत गए. उसने किसी किताब में ये लाइनें पढीं- “पहले वैष्णव बनो, नरसिंह मेहता के बताए रास्ते पर चलकर फिर गुणातीत व  सतोगुणी स्वयं बन जाओगे”. सात्विकता इतनी दुर्लभ तो नहीं ? अगर वह दैवी सम्पदा लेकर इस जगत में आई है तो आचरण भी उसके अनुसार ही करना चाहिए.

आज बहुत दिनों का सोचा हुआ एक काम किया, गमलों की देखभाल, पानी नहीं दिया, धूप तेज हो गयी थी. शाम को सभी पत्तों को नहला कर पानी डालेगी. जरा सी देख-रेख से कैसे खिल उठा है बरामदा. पौधों को उगा कर छोड़ देने से वे उद्दंड बच्चों की तरह हो जाते हैं. कल क्लब में एक रोचक विषय पर डिबेट सुनी. आज क्विज है. नन्हा कल रामायण की अपनी किताब स्कूल में ही छोड़ आया है, पता नहीं आज उसे मिलेगी या.. जून हैं सदा की तरह स्नेहिल..पर उसे ही आजकल पता नहीं क्यों कुछ अच्छा नहीं लगता.

आज मन हल्का है तन भी, मालिश के बाद स्नान से कितना सुकून मिलता है, समय जरूर ज्यादा लग गया पर उसने सोचा हफ्ते में एक बार तो इतना समय स्नान को देना ही चाहिए. आजकल पिछले कुछ दिनों से वह ‘होमर’ की ‘ओडिसी’ पढ़ रही है, अनुवाद है अंग्रेजी में. बहुत रोचक है.

एकांत में खिले फूल के पास जाओ
फूल के पास अकेले जाओ
जैसे हवा जाती है
जैसे तितली जाती है
जैसे माँ जाती है
अपने घर में कोई खाली जगह ढूंढो
मिट्टी ! यह तन मिट्टी
धरती और आकाश की मिट्टी
जाहिर में बेरंग है मिट्टी !



Thursday, November 22, 2012

बीहू की चाय



उसने अपने बचे हुए कामों की एक सूची बनाई, कुछ कपड़ों को दुरस्त करना है, कढ़ाई का काम अधूरा है, आगे बढ़ाना है, कपड़े प्रेस करने हैं. नन्हे का स्वेटर ठीक करना है. मफलर बुनना है. व्यायाम करना है, नियमित न करने से उसका पाचन ठीक नहीं रह पाता. अखबार पढ़ना है. आज शाम उन्हें एक सहभोज में भी सम्मिलित होना है. जून अभी कुछ देर पूर्व आए थे, अब उसी भोज की तैयारी के सिलसिले में गए हैं. आजकल उनके कैम्प में रहने के कारण उसे काफी एकांत मिल जाता है कुछ लिखने के लिए, पर कहाँ लिख पाती है, भावनाएं जैसे शांत हो गयी हैं..विचार थम गए हैं..किसी ने सही कहा है कि मानसिक उथल-पुथल ही सशक्त रचना को जन्म देती है. मन शांत रहे तो फिर कैसी रचना ? लेकिन मन अशांत हो यह भी उसके लिए पीड़ादायक स्थिति होती है, तब उसकी झुंझलाहट का शिकार नन्हा और जून ही होते हैं.

कल शाम पार्टी में दो समूह बन गए, बल्कि तीन, पुरुष अलग, महिलाएँ दूसरे कमरे में और बच्चे तीसरे कमरे में. घर आकर जून देर तक ब्रश करते रहे, मुखवास से मुँह धोते रहे. उसे अच्छा नहीं लगेगा इसलिए. पर वह खुद ही नहीं समझ पाती कि उसे क्या अच्छा नहीं लगेगा. उसके भीतर एक डर है कि कहीं उसका इस तरफ झुकाव न हो जाये. आधी रात हो गयी सोते सोते, देर से सोये तो सुबह देर से उठे, जून बिना कुछ खाए गए, नन्हा स्कूल भी न जा सका और उसने भी उपवास किया. फिर वह लंचब्रेक में आए, उन्होंने एक साथ भोजन किया और अब सब ठीक है. पर जिस बात के कारण ऐसा हुआ उस पर कोई चर्चा नहीं हुई. सो मन में एक कसक तो रह ही गयी पता नहीं कब दूर होगी. उसकी छात्रा ने नन्हे को एक चाकलेट दी, उसका अंतिम दिन है आज, एक सवाल लायी है. वे दो फिल्मों के कैसेट भी लाए थे, एयरपोर्ट व बीस साल बाद... पर अभी तो उसे बहुत काम करना है, सामने वाली उड़िया लड़की को खाने पर बुलाया है, वह बोलती कुछ ज्यादा है लेकिन है बहुत अच्छी...अब शायद ही कभी उससे मिलना हो.

आज नन्हे के स्कूल से फोन आया, उसकी तबियत ठीक नहीं थी सो वे उसे घर ले आए, उसे खांसी है, इस समय सोया है, उसके दस्ताने व टोपी भी मिल गयी स्कूल ड्रेस की. जून कह गए हैं कि कोलकाता से लाने के लिए सामान की लिस्ट बना दे, उसने लिखा, एक बड़ा लैम्प शेड, लाल या हरा. नन्हे का जैकेट, जूता और एक हरी कैप, रील धुलवानी है. और कुछ उसे याद नहीं आया. वैसे भी उन्हें घर शिफ्ट करना है अगले छह महीनों में, नया सामान नए घर में ही लेना ठीक रहेगा. कल नहीं परसों या उससे भी एक दिन पहले माँ-पिता के दो पत्र आए थे और एक शुभकामना कार्ड भी, बहुत सुंदर सा.

जून घर पर होते हैं तो समय का पता ही नहीं चलता. आज शनिवार है. सुबह वह समाचार देख रही थी टीवी पर कि घंटी बजी, सोचा दूधवाला होगा, पर ऑफिस से ड्राइवर आया था, जून ने एक खाली चेक मंगवाया था. वह थोड़ी कन्फ्यूज हो गयी और बाद में बहुत देर तक परेशान रही कि इतना सा काम वह नहीं कर सकी. उस दिन उर्जा सरंक्षण पर प्रदर्शनी देखने गए थे, सेंट्रल स्कूल के एक छात्र ने अपने स्टाल दिखाया, फिर कमेन्ट लिखने को कहा था तो उसके गाल लाल हो गए...क्यों ऐसा होता है, इतनी उम्र हो गयी है  आखिर कब जाकर उसमें परिपक्वता आयेगी या यूँ ही कट जायेगी उम्र. पडोस की एक बालिका से एक किताब लायी है विज्ञान की, एक मैजिक स्क्वायर है उसमें, उसे नोट करना है.

रविवार है आज, जून दोपहर को ही चले गए, कल वह ऑफिस से आए तो जैसे कुछ हुआ ही न हो, ऐसे थे. वह बहुत अच्छे हैं और बहुत प्रिय..  परसों आएँगे. नन्हे की तबियत अब ठीक है, जून दो कैसेट दे गए हैं, गुरु दक्षिणा और अंकुर. दोनों ही अच्छी हैं, पर अंकुर कुछ अधिक.