भाई ने घर पहुंच कर खत भेजा है, उनके
साथ बिताए दिन अब तस्वीरों में कैद हैं, जो कुछ दिन बाद ही बन कर आयेंगी. कल से
बीहू का अवकाश है, शाम को क्लब में बीहू का कार्यक्रम देखने भी वे जायेंगे.
सर्वोत्तम में एक लेख आया है, क्या आपके “पति भी चुप्पे हैं”, रोचक लेख है, क्या
दुनिया भर की पत्नियों की एक जैसी समस्याएं हैं, जून ने भी पढ़ा है यह लेख, वैसे वह
इतने चुप्पे भी नहीं हैं, पर बातचीत शुरू कभी नहीं करते, बल्कि बचना चाहते हैं,
उन्हें उकसाना पड़ता है. लिखना-पढ़ना पिछले दिनों छूट सा गया था, उसने पिजा बनाने की
एक रेसिपी जरूर लिखी एक पत्रिका से, और उन्होंने बनाया भी है पिजा, खमीर की गंध
कुछ ज्यादा आ रही थी, वैसे अच्छा लगा.
पिछले चार दिन फिर अवकाश...बीहू
का भी और उसके लिखने का भी. कल दो मित्र परिवार आए थे, दोपहर बाद वे गए. इस समय
दोपहर के पौने एक बजे हैं, वह बाहर लॉन में बैठी है, पंछियों की मिली-जुली आवाजें
हैं, किसी ने किसी कुत्ते को लाठी से मार दिया है शायद, उसके चिल्लाने की आवाजें आ
रही है, और तभी एक आवाज आई, हॉकर की, हर
माल एक दाम पर, उसने एक साबुनदानी खरीदी, एक स्पून स्टैंड और तीन छोटे-छोटे
फूलदान..यानि पांच वस्तुएँ सब समान दाम की. सामान रखने घर में गयी तो भीतर मसालों
की गंध भरी हुई थी, शायद पीछे वाले घर से आ रही थी. बाहर आई तो उसकी छात्रा पढ़ने आ
गयी थी, धूप में ही बैठे वे, मगर उसकी ओर पीठ करके, वरना आँखों को चुभती है. अभी
तक उसने चादर पर फूल पेंट करना शुरू नहीं किया है, जबकि छोटी पेंटर भाभी को गए नौ
दिन हो गए हैं, वह सिखा कर गयी थी. नन्हा यदि आज भारत की बैटिंग देखता तो तो बेहद
खुश होता, कामले और तेंदुलकर ने बहुत अच्छा खेला, दूसरी इनिंग शुरू हो गयी होगी पर
अंदर जाने का उसका मन नहीं है.
इस साल उसे जो डायरी मिली
है, वह इतनी बड़ी है कि लिखने में असुविधा होती है, लेकिन यह असुविधा उसे अच्छी
लगती है, जैसे प्रिय के दोष भी गुण लगते हैं. सुबह ही है अभी, उसने गुलाब के तीन
गमलों की निराई की, वे बनारस से लाए थे ये तीन गुलाब. आज धूप फिर आराम करने चली
गयी है और अपनी जगह बादलों को भेज दिया है. रात को ‘तंदूरी नाइट’ देखकर सोयी थी,
स्वप्न में दक्षिण अफ्रीका में घूम रही थी, नैरोबी के रेलवे स्टेशन पर. कुछ
अंग्रेजों से मिलती है, एक लड़की भी है उनमें और सपने में वह उन पंजाबी दीदी के
बेटे की मित्र है. सुबह तक यह स्वप्न सजीव था. नन्हा स्कूल गया है, कल कह रहा था,
नहीं जायेगा, क्योंकि स्कूल में लड़ाई बहुत होती है. जुलाई में उसका टेस्ट है पिलानी
में, अगर वहाँ दाखिला हो जाये, लेकिन क्या गारंटी है कि वहाँ लड़ाई नहीं होगी और
खर्चा भी तो बहुत है, अभी मकान का भी कुछ निर्णय नहीं हो पाया है. कल उसने एक फूल
पेंट किया था सफेद चादर पर गुलाबी फूल.
कल रात पहली बार विनोद दुआ
का कार्यक्रम ‘परख’ देखा, अच्छा लगा. शाम को वे दो मित्रों के यहाँ गए, एक ने
ब्रेड का एक नया नाश्ता खिला दिया और दूसरे ने कचौड़ी, घर आकर वे बिना कुछ खाए ही सो
गए. आज नन्हा घर पर ही है, पढ़ाई कर रहा है, बीच-बीच में कुछ पूछ लेता है, अभी
लक्ष्मी आई थी, कह रही थी, आलू की क्यारी में चूहे घुस गए हैं, आलू खा रहे हैं, वह
आलू निकलना चाहती थी. पता नहीं इस साल इतने सारे चूहे बैग में कैसे हो गए हैं, दवा
का असर भी विशेष नहीं हुआ.
आज मन बुझा-बुझा सा है, मन
में डर है कि कहीं...थोड़े से दिन ज्यादा हो जाने पर ऐसा मानसिक तनाव उसे हो जाता
है, क्या ऐसा औरों के साथ भी होता होगा, जून और नन्हा उसे परेशान देखकर खुद भी
उलझन में पड़ जाते हैं. उसने स्वयं से कहा, निराशावादी नहीं होना चाहिए, जो भी होगा
ठीक ही होगा. कल शाम वे फिर एक मित्र के यहाँ गए, ताकि कुछ देर मन भूल जाये, शायद
वह व्यर्थ ही भयभीत है, जो होना है वह होगा ही, क्योंकि जब बात अपने हाथ में न हो
तो उसे वक्त के हाथों में ही छोड़ देना चाहिए.
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