कल
शाम को इतने वर्षों में उनके यहाँ ‘बीहू नृत्य’ का आयोजन हुआ. ‘मृणाल ज्योति’ के
ग्रुप ने मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया. कुछ देर के लिए उसने भी भाग लिया. जून ने
पूरे मन से इसमें सहयोग दिया. पिताजी ने भी बहुत सहायता की. उनका कर्मठ स्वभाव
देखकर बहुत आश्चर्य होता है. इस उम्र में भी उनमें युवाओं से बढ़कर उत्साह व
ऊर्जा है. सुबह टहलने जाते हैं तो फूल उठा लाते हैं, बगीचे से आंवले ले आते हैं.
जून ने कल भोजन परोसने का कार्य किया. मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल तथा उनके पति
दोनों बहुत खुश लग रहे थे. नूना और जून को भी बहुत अच्छा लगा. उसका नया फोन एकाएक
चलते-चलते बंद हो गया है. नन्हे का नंबर उसे याद नहीं है, लैंड लाइन से बात कर ले.
वह वापस चला गया है. अब जून के आने पर ही बात होगी. आज कई दिनों के बाद व्यायाम
करने बैठी तो देह साथ नहीं दे रही थी, एकाध दिन में ठीक हो जाएगी. आज हनुमान जयंती
है, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा. कल से वैसाख का आरम्भ है. दस बजे हैं, बाहर धूप तेज है
पर भीतर कितनी ठंडक है, ऐसे ही उनका मन बाहर कितना अशांत है पर भीतर कितन ठहरा हुआ
है. वहाँ तक जाने का मार्ग जिसने खोज लिया वही चैन पा सकता है. पिछले दिनों कितना
कुछ घटा, लेकिन भीतर कहीं यह विश्वास था कि सब ठीक है. नन्हा सूफिज्म पर पुस्तक ले
गया है. इसका अर्थ है कि परमात्मा के प्रति उसके अंतर में आकर्षण तो जग ही चुका
है, वह ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता. उसका संग यदि सुधर जाये तो यह काम और जल्दी
हो सकता है, लेकिन हर कार्य अपने समय पर ही होता है. आज चर्चामंच पर उसकी कविता
पोस्ट हुई है, वह भी ‘उसी’ की याद दिलाती है. कई ब्लॉग पढ़े, एकाध अच्छे भी लगे,
शब्दों का जाल ही हैं ज्यादातर तो, जो मौन को उपजा दें वही शब्द सार्थक हैं.
गुरूजी को भी सुना, उन्होंने कहा धर्म व राजनीति दोनों में आध्यात्मिकता को बढ़ावा
दिया जाए, सभी धर्मों के लोग एक दूसरे से परिचित हों. अभी कुछ देर में बच्चे पढ़ने
के लिए आने वाले हैं. माँ जो अपनी कुर्सी से उठती नहीं हैं, भय के कारण पीछे के
आंगन का दरवाजा बंद आयी हैं.
दस बजे
हैं सुबह के, रात से ही वर्षा की झड़ी लगी है. दिन में अंधकार छा गया है. सुबह बड़े
भाई-भाभी से बात की, भतीजी ने डांस क्लास ज्वाइन की है, साथ ही नारायण कोचिंग भी.
आजकल बच्चे सभी कुछ एक साथ करना चाहते हैं. उसने ब्लॉग पर बीहू की तस्वीरें डाली
हैं. दीदी ने प्रतिक्रिया भेजी है, और वीडियो की फरमाइश की है. कल शाम को जून की
बात नहीं मानी तो उदास हो गये. मानव अपने ही मन द्वारा छला जाता है..इस क्षण में
उसके भीतर एक प्रतीक्षा है, भीतर बहुत कुछ है जो प्रकट होना चाहता है.
आज भी
वही कल का सा समय है, पर अब बादल छंटने लगे हैं. आज वर्षा पर लिखी एक नई कविता
ब्लॉग पर पोस्ट करनी है, यहाँ तो पावस का आरम्भ हो ही चुका है. कुछ देर पहले माँ
पूछती हुई आयीं, खाना नहीं बनायी हो, आजकल वह ज्यादा बात नहीं करती हैं, पर आज
उन्हें बात करते देखकर अच्छा लगा. जब उसने पूछा, आप खायेंगी, तो पहले कुछ नहीं
बोलीं फिर अपना ही प्रश्न दोहराने लगीं, उसने अब थोड़ा ऊंची आवाज में जवाब दिया, पर
अगले ही पल लगा पिताजी को अच्छा नहीं लगा होगा. फिर वही वाणी का दोष..या अधैर्य का
संस्कार. आज सुबह का स्वप्न भी जगाने के लिए था, किसी बच्ची के जन्मदिन पर जून एक
बहुत ही सामान्य सा स्कूल बैग लाये हैं. उसके सामने ही वह खोलती है और कहती है,
इतना खराब गिफ्ट है, वह शरम के मारे कुछ बोल नहीं रही है फिर हाथ बढ़ाती है और नींद
टूट जाती है. वर्षा हो रही थी सो टहलने नहीं गये वे, प्राणायाम किया, एक आचार्य को
सुना, सत्यार्थ प्रकाश के बारे में वे बता रहे थे.
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