किसी के प्रति द्वेष न रखो, अपने सब
कर्म ईश्वर को अर्पण कर निस्वार्थ भाव से जीवन जीते चलो, ऐसे में न मन में कोई
चिंता होगी न विकार, शांत मन और व्यर्थ भावुकता से परे हृदय ! आज गीता में यही
पढ़ा. बारहवें अध्याय में कृष्ण कहते हैं- “सुख-दुःख, निंदा-स्तुति में समान, हर्ष
व द्वेष से रहित, मान-अपमान से परे, आशा मुक्त, चिंताओं से दूर मेरा भक्त मुझे
प्रिय है.” कितने सुंदर विचार भरे पड़े हैं गीता में. कल रात को माँ से बात हुई, लगा
जैसे आमने-सामने बातें कर रहे हों, अभी एक पत्र लिखेगी उन्हें, दोनों बहनों को भी
पत्र लिखने हैं. कल दोपहर भर नन्हे के लिए नाईट ड्रेस सिलती रही, उसका चेहरा कितना
खिल गया था, कहने लगा, आप हमेशा कपड़े खुद सिलकर मुझे दीजियेगा, देखें, कितने साल
तक घर के सिले कपड़े पहनता है. शाम को वे
क्लब गए खाना वहीं खाया.
आज सुबह ईश्वर की
विभूतियों का वर्णन पढ़ा, पहले वह बादलों, सूरज और हरियाली... सभी में भगवान को
महसूस करती थी, लेकिन बौद्धिकता के साथ आध्यात्मिकता नहीं रह जाती, अब ईश्वर याद
आता है तो तब जब मन हर तरफ से निरुपाय हो जाता है, लेकिन कहीं न कहीं ईश्वर की
सत्ता है जरूर, यह तो मन मानता ही है. नन्हे का स्कूल बीहू के कारण चार दिनों के
लिए बंद है, एक दिन खुलेगा फिर “गुड फ्राई डे” का अवकाश होगा. सुबह उसने व्यायाम
किया, और चार दिन बाद होने वाली कला प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है. कल उनके लॉन में पंजाबी दीदी का दिया
झूला लग गया, उनके अहसान बढ़ते ही जा रहे हैं. कल सुबह जो पढ़ा था, शाम को ही भूल
गयी, जब क्लब में खाने को देखकर नापसंदगी जाहिर की, अपना मन तो परेशान हुआ ही, जून
और सोनू का भी. जून तो आज सुबह भी उदास थे उसकी नासमझी के कारण ही तो. न जाने कब
उसका सम भाव का सपना पूर्ण होगा. पढ़ने में जो बातें अच्छी लगती हैं, उनपर चलना
उतना ही मुश्किल होता है, पर बार-बार पढ़ने से तत्व को आचरण में लाया जा सकता है,
या तत्व व आचरण का अंतर कम किया जा सकता है.
वे लोग छुट्टियों में
घूमने गए, उसने एक साड़ी खरीदी, हल्के शेड में कोटा की साड़ी. वीसीपी पर फ़िल्में
देखीं. मित्रों के यहाँ गए और मजे-मजे में दिन बीत गए. उसने किसी किताब में ये
लाइनें पढीं- “पहले वैष्णव बनो, नरसिंह मेहता के बताए रास्ते पर चलकर फिर गुणातीत व सतोगुणी स्वयं बन जाओगे”. सात्विकता इतनी
दुर्लभ तो नहीं ? अगर वह दैवी सम्पदा लेकर इस जगत में आई है तो आचरण भी उसके
अनुसार ही करना चाहिए.
आज बहुत दिनों का सोचा हुआ
एक काम किया, गमलों की देखभाल, पानी नहीं दिया, धूप तेज हो गयी थी. शाम को सभी
पत्तों को नहला कर पानी डालेगी. जरा सी देख-रेख से कैसे खिल उठा है बरामदा. पौधों
को उगा कर छोड़ देने से वे उद्दंड बच्चों की तरह हो जाते हैं. कल क्लब में एक रोचक
विषय पर डिबेट सुनी. आज क्विज है. नन्हा कल रामायण की अपनी किताब स्कूल में ही छोड़
आया है, पता नहीं आज उसे मिलेगी या.. जून हैं सदा की तरह स्नेहिल..पर उसे ही आजकल
पता नहीं क्यों कुछ अच्छा नहीं लगता.
आज मन हल्का है तन भी,
मालिश के बाद स्नान से कितना सुकून मिलता है, समय जरूर ज्यादा लग गया पर उसने सोचा
हफ्ते में एक बार तो इतना समय स्नान को देना ही चाहिए. आजकल पिछले कुछ दिनों से वह
‘होमर’ की ‘ओडिसी’ पढ़ रही है, अनुवाद है अंग्रेजी में. बहुत
रोचक है.
१
एकांत में खिले फूल के पास
जाओ
फूल के पास अकेले जाओ
जैसे हवा जाती है
जैसे तितली जाती है
जैसे माँ जाती है
अपने घर में कोई खाली जगह
ढूंढो
२
मिट्टी ! यह तन मिट्टी
धरती और आकाश की मिट्टी
जाहिर में बेरंग है मिट्टी
!
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