पिताजी पिछले कई हफ्तों से अस्वस्थ तो थे ही, अब उन्हें डिमेंशिया
की समस्या भी हो गयी लगती है. समय का पता नहीं चलता उन्हें और अपने रोजमर्रा के काम
करने में भी कठिनाई होती है. इस समय सो रहे हैं, दोपहर को उन्हें उठाया, पानी चाय,
नाश्ता आदि दिया, दवा दी, फिर सो गये. प्रकृति का यह नियम है जैसे एक चक्र पूरा हो रहा है.
बूढ़ा फिर से बच्चा बन गया है, दीन-दुखिया से बेखबर..अपनी ही दुनिया में खोया हुआ. आज
‘मृणाल ज्योति’ की बीहू मंडली आने वाली है. पाँच बजे का समय दिया था पर अब तो साढ़े
पांच हो गये हैं, किसी भी क्षण आते होंगे. जून आज दिल्ली गये हैं, दोपहर उनके जाने
के बाद फिल्म देखी, ‘धूल का फूल’, नाम सुना था. पहले कभी देखी नहीं थी. महिलाओं पर
अत्याचार न जाने कितने युगों से होते आये है. उन्हें इसके खिलाफ आवाज उठानी ही
होगी, उसने भी उठायी थी अपने स्तर पर, आज आजादी का अनुभव भी होता है. कोयल के
कूकने की आवाज आ रही है, आमों का मौसम है, कच्ची केरियों से पेड़ भरे हैं. उसने
बाहर देखा, अब तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था, पर भारत में समय की कीमत कहाँ
पहचानते हैं वे लोग !
सुबह शीतल थी, भ्रमण
को गयी, लौटकर पिताजी को उठाया, सहायक को बुलाकर स्नान आदि कराया. नाश्ता दिया पर
वे पचा नहीं सके, दोपहर तक वे अस्वस्थ ही रहे, उन्हें बेल का शरबत दिया जिसके बाद
से वे ठीक रहे. जून के फोन आते रहे, दोनों ननदों के फोन भी आये. बच्चों की तरह हो
गये हैं वे, फुसला कर खिलाना पड़ता है उन्हें.
पिताजी को पुनः
अस्पताल ले जाना पड़ा है. कल रात को उन्हें शुभरात्रि कहने के बाद से कई बार उनके
कमरे में गयी, उनके पास जाकर आवाज दी पर उन्हें कुछ पता नहीं था. सुबह चार बजे के
लगभग वह उठ गयी थी, टहलने गयी पर वापसी में एक विचार आया कहीं पिताजी उठ न गये
हों, जल्दी-जल्दी लौटी तो वह वैसे ही आराम से सोये थे. धीरे-धीरे उनकी चेतना भीतर
सिकुड़ती जा रही है, स्वाद का भी पता नहीं चलता और न ही प्राकृतिक वेगों का. कल से
नैनी कितनी चादरें व वस्त्र धो चुकी है. वृद्धावस्था का यह काल शायद सभी को देखना
पड़ता है. जून जब दिल्ली से वापस आये तो उनकी हालत देखकर तुरंत ही डाक्टर को फोन
किया और उन्हें अस्पताल ले गये.
पिछले दो दिन उसके सिर
में दर्द बना रहा, मन भी ठीक नहीं रहा, तन के स्वास्थ्य पर मन का स्वास्थ्य निर्भर
करता है. आज सुबह प्राणायाम के बाद ध्यान में चाय का कप दो बार दिखा. पिछले दिनों
दिन में दो बार चाय पी, अम्लता बढ़ गयी थी, सो कल से नहीं पी रही है, मन भी
अपेक्षाकृत ठीक है. परसों नन्हा यहाँ आ रहा है. जून आज चौथे दिन भी अस्पताल में
सोने गये हैं, कल से सहायक आ जायेगा जो कुछ दिनों से बाहर गया हुआ था. पिताजी का
स्वास्थ्य सुधर रहा है, पर जब तक खुद चलने-फिरने लायक नहीं हो जाते घर नहीं आ
पाएंगे. उसे अपना स्वास्थ्य भी पहले सा नहीं लग रहा है. उसके भीतर के भय और अन्य
विकार भी स्पष्ट दिखने लगे हैं, जैसे कोई आपरेशन चल रहा हो, सब कुछ निकाल कर स्वच्छ करना हो मन
को ताकि परमात्मा अपनी पूरी गरिमा के साथ प्रकट हो सके.
बूढ़े के बच्चे बनने की अनंत कथा... बहुत खूबसूरती से कहे गए भरेपूरे शब्द... खासकर आम की केरियों का स्वाद घोलती सच्चाई ... पढ़कर बहुत अच्छा लगा अनीता जी
ReplyDeleteस्वागत व आभार अलकनंदा जी, आते रहिये.
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.05.2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2633 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
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