Tuesday, April 9, 2013

बैसाखी और बीहू



आज बैसाखी है, बचपन में इस दिन दादीजी सूखे मेवों, मखानों, व पतासों के हार पहनातीं थीं सभी बच्चों को. सुबह टीवी पर बैसाखी का अच्छा सा रंगारंग कार्यक्रम देखा. जून को परसों शाम से हल्का ज्वर हो गया है, कल सुबह उतर गया था पर दोपहर को फिर हो गया. आज अभी तक वह दफ्तर से आए नहीं हैं, कल से बीहू का अवकाश है, आज सम्भव है स्ट्रेट शिफ्ट हो, यानि बिना लंच ब्रेक के. घर जाने में मात्र दस दिन रह गए हैं, अभी काफी काम है सिलाई का और घर भी पिछले दिनों नन्हे की परीक्षा के कारण पूरी तरह से साफ नहीं हो पा रहा था. कल उन्हें दोपहर का खाना बाहर खाना है, ‘बीहू भोज’, उसे बस घर से राजमा बनाकर ले जाने हैं. मिलजुल कर रहना, त्योहार मनाना कितना अच्छा लगता है, उसकी पुरानी पड़ोसिन का फोन भी आया था, शाम को वे लोग आएंगे. नन्हा पड़ोस के दोस्त के यहाँ गया है, आजकल छुट्टियाँ हैं वह बेहद खुश रहता है. आज मौसम भी मेहरबान है, लगता है आस-पास ही कहीं वर्षा हुई है, हवा में ठंडक है. उसे जून की याद आ रही है, ऐसा क्यों है, पर ऐसा है कि उनकी तबियत ढीली होने पर उनका ध्यान बना रहता है, उनकी देखभाल करने का मन होता है. उनका उतरा हुआ और उदास चेहरा उसे सबसे ज्यादा उदास करने वाली चीजों में से है.

  परसों उन्हें जाना है, अभी तक पैकिंग शुरू नहीं की है, पिछले दिनों दो बार जून और उसके बीच गलतफहमी हो गयी, लेकिन उसके बाद बादल छंट गए और प्यार का सूरज पहले से ज्यादा चमकदार होकर निकल आया है. जून को परेशान करना ...उसकी यह कभी मंशा नहीं हो सकती पर हालात ही ऐसे बनते चले जाते हैं कि .. उस दिन जून को उसका लेडीज क्लब में टीटी खेलना पसंद नहीं आया, उसने नाम दे दिया था सो जाना जरूरी था, पर ऐसे उदास मन से खेलने से वह हार गयी, उसकी पार्टनर जरूर नूना से नाराज होगी, उसे अच्छा न लगा हो शायद उसके साथ खेलना. कल शाम को उसकी पुरानी पड़ोसिन आई थी, बल्कि वे उसे ले आये थे, उसकी बातें सुनकर लगता है अभी बचपना गया नहीं है, कहीं न कहीं इंसान बूढ़ा होने तक बच्चा बना रहता है.
 आज मौसम फिर ठंडा है, कल रात वर्षा हुई, चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है घर से बाहर निकलते ही. कल सुबह से ही उसकी गर्दन में दायीं तरफ हल्का खिंचाव व दर्द महसूस हो रहा है, अभी-अभी जून का फोन आया है, वह सवा दस बजे ले जायेंगे उसे अस्पताल. कल सफर करना है इसलिए कुछ विशेष चिंता हो रही है. ईश्वर उसके साथ है..हर छोटी-बड़ी विपत्ति में ईश्वर ही हमेशा मदद करता है सदा सर्वदा... सुबह उसकी असमिया सखी का फोन आया, फिर तेलगु सखी का और फिर पुरानी पड़ोसिन का, जिसने शाम को नाश्ते पर बुलाया है. उसने मना किया पर ज्यादा मना करते हुए भी अच्छा नहीं लगता, वक्त-वक्त की बात है...इसलिए तो विद्वानों ने कहा है – सुखेदुखे समेकृत्वा..परिस्थिति कैसी भी हो मन का संयम, दृढ़ता, धीरता व आस्था नहीं खोनी चाहिए.

1 comment:

  1. थोड़ा देर से ही सही, बैसाखी और बीहू की बधाई!

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