Saturday, February 2, 2013

बोर्डिंग स्कूल



आज बहुत देर से डायरी और पेन लेकर बैठी है वह. कल रात को सोते वक्त मन में कई डर थे और उन्हीं के कारण ईश्वर की याद आयी. फिर ईश्वर के साथ-साथ यह ख्याल कि हमेशा वह तभी याद आता है जब...शायद यह बात शायद हर शै के लिए सच है कोई भी चीज हमें तभी चाहिए जब उसकी जरूरत हो, लेकिन खुशी तो हर वक्त चाहिए. फिर खुशी में ईश्वर याद नहीं आता...ईश्वर को इंसान ने तभी बनाया होगा जब वह पहली बार डरा होगा...और चाहे युग बदल जाएँ इंसान की प्रवृत्तियां नहीं बदल सकतीं. तो रात को एक पंक्ति जहन में आयी थी –

एक नया दिन

कल रात अँधेरा बहुत घना था
बादलों ने ढ़क लिया था सारा आकाश
चाँद और तारे
उसने सोचा अगर कल न उगा सूरज
यूँ ही सोता रह जायेगा शहर
अँधेरे में लिपटे रहेंगे बाग-बगीचे, झोंपड़ी और महल
कोई फर्क नहीं रहता नींद में ड़ूबे राजा और फकीर में
लेकिन उसकी सोच को परे धकेल
सूरज की पहली किरण द्वार पर आ खड़ी है
एक नया दिन नई उम्मीदों के साथ
दस्तक दे रहा है
स्वागत करें या न करें सूरज हर रोज
एक नया मेहमान लाता रहेगा
कितना बड़ा दानी है सूरज
और हम खोखले दम्भ में अपनी छोटी सी उदारता का दम भरते नहीं थकते

आज शनिवार है लेकिन जून को कहीं न कहीं जरूर जाना होगा, हर शनिवार की तरह...पिछले दो बार ऐसा ही हुआ. सोनू स्कूल गया है सुबह उठा तो छींक रहा था. आज टेस्ट है उसका विज्ञानं का, पहली बार टेस्ट हो रहें स्कूल में. पिछले महीने भी इन्हीं दिनों उसे खांसी थी उसके जन्मदिन के आसपास. लेकिन वह बहादुर है अपनी सहायता खुद कर  सकता है, स्कूल में अगर कोई समस्या हुई तो फोन कर देगा ऐसा कहकर गया है. कितने काम आज नहीं कर पायी, नन्हे की देखभाल में लगी रही, उसने सोचा अगर बोर्डिंग स्कूल में उसे सर्दी लगी तो....लेकिन और बच्चे भी तो रहते हैं, फिर यह छोटी सी बात है. उसने सोचा, देखें, लौट कर उसकी तबियत कैसी है, वैसे स्कूल जाकर वह सब कुछ भूल जाता है..अखबार वाला कल देर शाम अखबार दे गया, रात को वर्षा में भीग गए, उसने खोलकर सुखाये अब जून ही आकर सिलसिलेवार लगाएंगे. लेकिन यह कैसी बात लिख दी उसने कि ईश्वर को इंसान ने बनाया है.. ईश्वर ने इंसान को बनाया है यही तो कहते हैं सब.

शनि-रवि-सोम-मंगल चार दिन वही उलझन भरे, वैसे भी इतवार को तो डायरी खोलने का सवाल ही नहीं पैदा होता, सोम को जून ने फोन करके कहा कि लंच पर किसी को साथ लायेंगे सो सारी सुबह उसमें लग गयी. कल यानि मंगल को दुलियाजान बंद था, दोनों पिता-पुत्र भी घर पर थे, ‘जागृति’ फिल्म भी देख ली उन्होंने, बस ऐसे ही है, करिश्मा कपूर इसमें उतनी अच्छी नहीं लगी जितनी प्रेमकैदी में लगी थी. परसों छोटी बहन की चिट्ठी आयी, घर से भी, माँ-पिता को उसकी कविता अच्छी लगी. कल उसकी असमिया सखी आयी उसके पतिदेव को लम्बे समय तक फील्ड में रहना होता है, उसने सोचा यदि जून को भी ऐसे ही रहना होता तो ... सोचने से ही घबराहट होती है. शायद इतनी समस्या नहीं होती जितनी अभी सोचकर लगती है, एडजस्ट कर ही लेते वे. आज गर्मी जरा भी नहीं है, भला-भला सा मौसम हो रहा है. ओलम्पिक खेलों की शुरुआत हुए पांचवा दिन है, भारत का नाम दूर-दूर नहीं है, वे लोग पच्चीस जुलाई को उद्घाटन समारोह भी नहीं देख सके थे.

अगस्त महीने का शुभारंभ हो चका है, पिछले दो दिन वैसे ही गुजरे जैसे हर शनि-रवि गुजरते हैं, अगर ये दो दिन न हों तो जिंदगी कितनी बोझिल हो जाये. इतवार की बेफिक्री हफ्ते के किसी और दिन नहीं मिल सकती. नन्हा भी साढ़े तीन बजे लौटेगा, दोपहर  को काफी वक्त मिलेगा, वह मेजपोश इसी हफ्ते पूरा कर लेगी.




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