यहाँ आजकल एक छोटा सा मेला लगा है, वे
दो बार हो आए हैं, नन्हे का उत्साह देखते ही बनता है, बचपन में वे भी ऐसे ही
उत्साहित होते थे. वहाँ जादू का खेल भी देखा, जून को वहाँ बैठना पसंद नहीं था, पर
प्यार के कारण...उनका प्रेम नन्हे और उसके लिए असीम है. पिछले तीन-चार दिनों गर्मी
बहुत थी, आज अपेक्षाकृत कम है. कल माँ व दीदी के पत्र मिले, दीदी का पत्र बहुत
अच्छा था, उसके जन्मदिन की बधाई दोनों में थी. Whatever suffering arises
has a reaction as its cause, if all reactions cease to be then there is
no more suffering. दीदी के पत्र में लिखा था.
नूना सोच रही है कि छोटे भाई को व्यर्थ ही अंग्रेजी की गलती के लिए लिखा, उसका
जवाब आने पर एक अच्छा सा पत्र लिखेगी, किसी की आलोचना करने का भला क्या अधिकार है
उसे. उसने पुरानी पड़ोसिन को फोन किया, आजकल
वह कहीं आती-जाती नहीं, उसे शक है कि वह.. काश यह सच ही हो, उसे बच्चों से बहुत
प्रेम है. वह स्वयं ही उससे मिलने गयी, कॉटन के लाल-काले सूट में वह बहुत अच्छी लग
रही थी. उससे कुछ छोटी पुस्तिकाएँ व चार “कल्याण” पत्रिकाएँ लायी है, मन को एकाग्र
करने के लिए अच्छी हैं, जून भी एक पत्रिका लाए थे, दोपहर को नन्हा अगर सो गया तो
पढ़ सकती है. उसकी असमिया सखी ने कहा है कि अपने बगीचे के पेड़ से आम तुड़वा कर
रखेगी. वह अचार भी बनाएगी और जैम यानि मीठी चटनी भी. कल वे एक नए परिचित परिवार
में गए, उनके माता-पिता आए हुए हैं, जून के एक और सहकर्मी के माँ-पिता भी आए हुए
हैं, अच्छा लगता है उसे सबसे मिलकर.
जन्मदिन आकर चला गया, नया
महीना शुरू हो गया है. गर्मी का महीना, इस समय बिजली भी नहीं है, और धूप आज तेज
है, ऐसी ही गर्मी से उसे सिरदर्द हो जाता है. सुबह से मन अस्त-व्यस्त था, रात को
अजीब-अजीब स्वप्न देखे शायद इसी का असर था, दूध वाले को पैसे देना तो याद रहा इस
बार पहली तारीख को ही, पर बीस रूपये ज्यादा दे दिए. पता नहीं यह अस्थिरता कहाँ तक
छुपी बैठी है उसके भीतर. कल नन्हे का पिलानी में एडमिशन के लिए एडमिट कार्ड मिला,
शाम को तीनों का मूड ऑफ था, सिर्फ सोचने भर से यह हाल है तो जब वह वहाँ रहेगा...वह
नहीं रह सकेगा, वे भी नहीं रह सकेंगे उसके बिना.
पिछले दो-तीन दिनों से
वर्षा हो रही है. आज क्लब में Rhymes compition हो गया, फिर वही हुआ, उसकी
लापरवाही की वजह से वे नन्हे का नाम नहीं सुन सके, दुबारा पुकारने पर ही वह जा सका.
कल पर्यावरण दिवस पर “कला प्रतियोगिता” है, उसी के लिए वह अभ्यास कर रहा है. कल
फुफेरे भाई व छोटी ननद का बधाई कार्ड भी मिला. आज इस समय उसका मन यूँ ही बिना किसी
विशेष कारण के अशांत है, अभी यह लिखने के बाद कोई अच्छी पुस्तक पढ़ेगी, शायद अच्छा
लगेगा, लेकिन अच्छा कैसे लग सकता है, जब अपने अंतर्मन में ही शांति न हो तो कोई
बाहरी पदार्थ उसे क्या शांति दे पायेगा. लेकिन यह अकुलाहट यह व्याकुलता क्यों ? सब
कुछ छोड़ छाड़ कर सारे बन्धनों से मुक्ति पाकर एक क्षण के लिए भी क्या कभी वह रह
पायेगी...यूँ इस सारे उहापोह से मुक्ति पाने का एक साधक है, ‘कार्य’ - कुछ न कुछ करते
रहने से यह विचार मन में आते ही नहीं, या फिर कोई अच्छी सी पुस्तक ही पढ़ी जाये,
फ़िलहाल तो किचन में जायेगी नन्हे के लिए नाश्ता बनाना है.
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