Saturday, February 9, 2013

अयोध्याकाण्ड


  
 दिसम्बर शुरू हो गया है, उसके पास फुर्सत नहीं कि आते-जाते दिनों, महीनों का हिसाब रख सके. पता नहीं कहाँ से एकाएक इतनी व्यस्तता आ गयी है. लाइब्रेरी से लायी किताबें व घर से लायी दो किताबें भी अनपढ़ी रह गयी हैं, पत्रिकाएँ भी बिन पढ़े लौटा दी जाती हैं, कुछ मित्रों ने मिलकर एक पत्रिका क्लब बनाया है, हर हफ्ते ही नई आ जाती हैं. पिछ्ले दिनों वीसीपी पर तीन फ़िल्में जरूर देखीं, पर्दे सिले, चादर पूरी की, मिक्सी का कवर भी बनाना आरम्भ किया है उसने. नन्हे के लिए एक टोपी भी बनानी है उसे. चिट्ठियाँ लिखीं. अभी नए साल के कार्ड सहित कुछ पत्र और लिखने हैं.  कल बड़े भाई का जन्मदिन था, उन्हें कार्ड मिला होगा, उसने मन ही मन पुनः शुभकामनायें दीं. कल पंजाबी दीदी का भी एक बड़ा लम्बा सा पत्र आया है. सुबह से सूरज महाशय छिपे हुए थे बादलों के पीछे, अभी-अभी दर्शन दिए हैं. परसों जो बड़ियां बनाई थीं, वह तो रसोईघर में सूख रही हैं, यहाँ गैस का चूल्हा चौबीसों घंटे जलता रहता है कभी मद्धिम कभी तेज, सो गीले कपड़े हों या चिप्स और वड़ियाँ, सभी किचन में सुखाये जा सकते हैं. लेकिन उसे आश्चर्य होता है, हर बार जब भी मुन्गौड़ी आदि बनाये, धूप गायब..मौसम का मिजाज समझना बहुत मुश्किल है यहाँ..

आज फिर वही कल का वक्त है, लेकिन धूप नहीं है, कल थोड़ी बहुत निकली भी थी, आज तो बदल छंटे भी नहीं, ठंड काफी बढ़ गयी है. सुबह किसी का भी बिस्तर छोड़ने का मन नहीं था, नन्हा सुबह स्कूल जाने में एक बार तो डरा. पर फिर समझ गया कि स्कूल एक दिन छोड़ सकता है पर ठंड तो रोज रहेगी ही. महीने के अंतिम सप्ताह में छोटा भाई परिवार सहित आने वाला है, वे बहुत उत्साहित हैं. कल शाम जून का एक मित्र परिवार विदा लेने आया, वे अपना मकान बनवाने का शुभारम्भ करने जा रहे हैं, उनका भी मकान बनवाने का स्वप्न है, जमीन खरीदने की बात वे करके आये थे.

अयोध्या में हुए टकराव की वजह से देश के कई शहरों में, उतर प्रदेश के अठारह जिलों में कर्फ्यू लगना पड़ा है. हालात कब तक सुधरेंगे कहा नहीं जा सकता. पता नहीं यात्राएँ भी सुरक्षित होंगी या..उसे भाई का स्मरण हो आया. कहीं उसे कार्यक्रम स्थगित न करना पड़े, क्या इतना निराश होना सही है, पर इस अनिश्चित वातावरण में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. नन्हे की परीक्षाएं चल रही हैं, आज उसका तीसरा पेपर है, गणित का. कल शाम से ही उसका मन अस्थिर है, बात यूँ तो कुछ भी नहीं, पर मन का कोई क्या करे जो ‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज पर चलता है.


 


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