आज से लक्ष्मी काम पर वापस आ गयी है, सब कार्य समय पर
हो गए हैं, जैसे घर बहुत दिनों बाद पुनः शांत हो गया हो. आज धूप कल से भी कम है,
अंततः चिप्स सुखाने के लिए रसोईघर में रखने ही होंगे. आज वह अपने कुछ अच्छे मूड्स
में से एक में है, गार्डन सिल्क की ब्राउन साडी पहनी है, वह भी स्टाइल से, अच्छा
लगता है खुला-खुला सा, बन्धनों में रहते रहते भूल ही गयी थी कि आजादी क्या होती है.
पता नहीं मरियम का क्या होगा, उस उपन्यास की नायिका का, जो कल देर तक पढ़ती रही. आज
क्रिकेट मैच भी है, जून आते ही स्कोर पूछेंगे, पर उसे अभी याद आया है, टीवी
बंद है. कल वे एक परिचित तेलेगु परिवार के यहाँ गए, गृहणी बहुत मोटी हो गयी हैं,
और नाश्ता सफाई से नहीं बनाती हैं, ऐसा उसे लगा, संस्कार और शिक्षा के कारण लोग
बहुत सी बातें सीख जाते हैं और बहुत सी नहीं सीख पाते. कल उसने पहली बार एग डालकर
केक बनाया, आज नन्हे को टिफिन में देना भूल गयी. उसे पसंद आया, पर जून को उतना
अच्छा नहीं लगा, पर वह उसे बहुत अच्छे लगते हैं जब कान में कुछ कहते हैं, जबकि
कमरे में उनकी बात सुनने वाला कोई भी नहीं होता.
इतने वर्षों में कल पहली
बार यहाँ पुस्तक मेला देखने गयी, सिर्फ पुस्तक मेला ही नहीं है और भी बहुत कुछ है
उसमें. इतना विशाल, इतना अच्छा लगा कि कल से सोच रही है, कब वे वहाँ दुबारा
जायेंगे, पर मौसम को भी आज ही बिगड़ना था, गर्जन-तर्जन करते बादल पता नहीं किस पर
क्रोधित हो रहे हैं. इतनी दूर-दूर से व्यापारी अपना सामान लेकर आये होंगे, और खुले
आसमान के नीचे बैठे थे, सिर्फ दुकानों पर ही तो तम्बू थे, आज कहाँ गए होंगे....और
सुना है मात्र तीन दिनों के लिए. वे लोग शायद ही आज जा पायें, अगर यह पानी बरसना
बंद हो जाये. बाहर पौधों को जी भर के पानी मिल गया पर बरामदे के गमले सूखे ही रह
गए, उसने सोचा लिख कर उन्हें भी पानी देगी. कल नन्हे का स्कूल भी बंद हो गया,
“शंकरदेव जयंती” के कारण, इसी उपलक्ष में ही तो मेला लगा है.
भारत की इंग्लैड पर एक और
विजय, सोनू बहुत उत्साहित है. आज वह स्कूल नहीं गया, कल दिन भर सर्दी से परेशान
था, आज ठीक लग रहा है. आज सुबह वह उठी तो मन उलझन से भरा था, लग रहा था कि कहीं
कुछ भी ठीक नहीं है, कि जिंदगी समझौतों का दूसरा नाम है और यह कि कितनी भी विपरीत
स्थितियां हों, चेहरे पर मुस्कान का लेबल लगाये रखना पड़ता है और भी न जाने क्या-क्या
..कल रात नींद नहीं आ रही थी. एक कहानी सोचने लगी, शब्द खुदबखुद आते जा रहे थे,
भावों की कमी नहीं थी. अगर कोई ऐसा टाइपराइटर होता जो मन के वाक्यों को टाइप कर
लेता तो एक सुंदर कहानी उसके सामने होती. उस समय सोच रही थी यही शब्द, यही वाक्य..
सुबह आराम से लिख सकेगी पर अब वे कितने दूर गए लगते हैं. वैसे भी अब समय नहीं है,
अभी खाना भी पूरा नहीं बना है. कल दोपहर जून से किसी बात पर मतभेद हो गया, लेकिन
वह विवाद से बचते हैं, एकाध बार कुछ कहकर चुप हो जाते हैं. उनका गला भी उतना ठीक
नहीं है आजकल, सुबह पूरा नाश्ता नहीं खा सके, आज उसे भी विशेष भूख नहीं लगी, नन्हे
की सर्दी..यानि पूरा परिवार ही.. खैर..अब वह शांत है और करने को इतना कुछ है कि और
कुछ सोचने का वक्त कहाँ है, खत भी तो लिखने हैं.
कल शाम की शुरुआत एक अच्छी
खबर से हुई, माँ-पिता के पत्र से मालूम हुआ कि छोटी बहन ने गुड़िया को जन्म दिया
है. अभी-अभी उसने एक खत और एक कविता लिखी है उसके लिए. कल क्लब में एक स्तरीय
कार्यक्रम था, वे गए थे नन्हे को ढाई घंटे के लिए उसके मित्र के यहाँ छोड़कर. आज
सुबह से ही वह रोजमर्रा के काम छोड़कर इधर-उधर के काम कर रही है, जो अक्सर रह जाते
हैं, दोपहर को करेगी रोज के काम.
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