Monday, February 18, 2013

पिकनिक का भोज



जून का फोन आया है, वह नाहरकटिया जा रहे हैं, लंच पर देर से आएंगे. उसने बहुत दिनों बाद वह नीली साड़ी पहनी है, जो छोटी चाची ने खरीदी थी, सुंदर है, लेकिन चाचीजी अब पहले जैसी नहीं रहीं, परेशानियों ने उन्हें तोडकर रख दिया है, वक्त से पहले बूढी हो चली हैं. कल लगभग एक वर्ष बाद वे अपनी पुराने घर के पड़ोस में गए, उड़िया पडोसिन के यहाँ, वहाँ एक और परिचिता मिलीं, दुबली-पतली सी, पूरी तरह से अपने छोटे छोटे दो बच्चों में व्यस्त..कल पिता का पत्र आया है, जमीन की रजिस्ट्री जून के नाम हो गयी है. और शायद इसी वर्ष के अंत तक उनका मकान बन भी जाये. थर्मोकोल पर पेंटिंग करने में उसे बहुत आनंद आ रहा है, इसके बाद कागज पर करेगी. लेकिन वह एक घंटे से ज्यादा नहीं कर पाती क्रोशिये का मेजपोश भी बनने वाला है फिर टैटिंग करेगी. कल रात स्वप्न में देखा, गणित पढ़ा रही है, वह भी उसका एक प्रिय काम है.

वह लॉन में झूले पर बैठ कर धूप में बाल सुखाते हुए लिख रही है, पीठ पर धूप का तेज ताप भीतर तक छू रहा है. डहेलिया का दूसरा फूल भी आधा खिल गया है. परसों इतवार को उन्हें पिकनिक पर जाना है, डेरॉक है जगह का नाम, पूरे ग्रुप के लिए “मटर-पनीर” उसे शाम को बना कर रखना है, क्योकि सुबह जल्दी निकलना है, शाम को उन्हें एक शादी में भी जाना है, पड़ोस के खाली घर में, लगता है वह विवाह घर बनता जा रहा है. The day of the feast पढ़ ली है, अब एक और अंग्रेजी उपन्यास पढ़ना शुरू किया है, सारे काम करते हुए बीच-बीच में थोड़ी देर के लिए कोई किताब पढ़ने का समय निकाल लेना, चाहे तीन-चार पेज ही क्यों न हों, अच्छा लगता है, जैसे धूप में चलते-चलते कुछ पल के लिए कोई छांह में रुक जाये. कल रात नन्हा नींद में नीचे गिर गया और उसे पता भी नहीं चला, नीचे भी आराम से सो रह था, उसकी नींद बहुत पक्की है. उसके स्कूल में आजकल ज्यादा पढ़ाई नहीं हो रही, नहीं जायेगा कहकर फिर चला गया है, उसे अनुपस्थित होना पसंद नहीं है.

कल इतवार था और पिकनिक के कारण एक यादगार इतवार बन गया, वे सुबह साढ़े छ बजे निकले और शाम साढ़े पांच बजे लौटे. मौसम अच्छा है, अब चिप्स बनाने का समय आ गया है, अगले महीने आज ही के दिन होली है. कल रात स्वप्न में छोटी बहन को देखा, बहुत कमजोर और अस्वस्थ लग रही थी, उसकी फ्रेंड्स भी थीं, वह माँ को बुला रही रही थी. आज जून को दिल्ली फोन करके पता करने को कहा है, इसी महीने उसकी डिलीवरी डेट है, ईश्वर सब कुशल करेगा.

होली पर वे क्या-क्या बनाएंगे, इस बात पर उसने जून के साथ बात की, मतभेद स्वाभाविक ही था, कभी कभी इस तरह नोक-झोंक होनी ही चाहिए, एक-दूसरे के विचार पता चल जाते हैं. आज उसने आलू चिप्स बनाये हैं. छोटे भाई का पत्र आया है फोटोग्राफ्स भी, बहुत अच्छे आए हैं फोटोग्राफ. आजकल उसने अपने दिन को कई टुकड़ों में बाँट लिया है और हर एक टुकड़े का एक खास काम है, व्यस्तता के कारण कुछ और सोचने का समय ही नहीं मिलता, समय मिलते ही कोई किताब सामने आ जाती है. कविताओं से इतनी दूर चली गयी है कि..लगता है कविता खाली समय की उपज होती है. बहुत दिनों से टीवी पर कोई कवि सम्मेलन भी नहीं आया जिससे प्रेरणा मिले.  





2 comments:

  1. अनमोल जीवन ....
    प्रसन्न मन ...
    सुंदर वर्णन ...
    शुभकामनायें अनीता जी पहली बार आपका ये ब्लॉग देखा ,सदस्य बन गयी हूँ ...

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  2. अनुपमा जी, आपका स्वागत है इस ब्लॉग पर..आते रहिये..

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