आज कृष्ण जन्माष्टमी है, टीवी पर सुबह भी और दोपहर को
भी इसी उपलक्ष में अच्छे कार्यक्रम दिखाए गए. अभी-अभी सोनू देखकर सोया है, जो खुद
भी एक नन्हा कन्हैया है, उनका प्यारा सा पुत्र, कितने आराम से सो रहा है, शायद कोई
स्वप्न देख रहा है. आज उसका स्कूल बंद है, तभी सुबह से उसका मन लगा है उसके
छोटे-छोटे कामों में हाथ बंटाते..कैसे रहेगी वह जब वह हॉस्टल में रहेगा..वह रह तो
पायेगा न. यहाँ की तरह कभी घुटनों पर तो कभी हाथों पर चोट लगाकर तो नहीं आयेगा
स्कूल से.
पिछले तीन-चार दिनों
से..हाँ पिछले गुरुवार से ही घर में कार्य चल रहा है. दिन भर यानि सुबह सात बजे
जून के दफ्तर जाने के बाद ही काम करने वाले आ जाते हैं, साढ़े तीन तक रहते हैं, अभी
काफी दिन लगेंगे. उसे समझ नहीं आता कहाँ बैठे, वैसे इसमें कोई परेशानी की बात नहीं
है, क्योंकि यह काम उन्होंने अपनी इच्छा से ही शुरू करवाया है. जब पूरा घर साफ हो
जायेगा, नए पेंट की खुशबू से महकेगा तो यह सारी गड़बड़ी भूल जायेगी, गड़बड़ी यानि
अव्यवस्था, इस कमरे का सामान उधर और उधर का इधर..अभी तो ऐसे ही चल रहा है. कल चार
पत्र लिखे उसने, पिछले हफ्ते घर से पत्र नहीं आया है इस बार तो आना ही चाहिए, बहुत
दिन हो गए हैं.
कल आखिर वह खत आ ही गया,
जिसका उसे इंतजार था. पिता ने लिखा है, शब्दों का प्रवाह निर्झर की तरह था, और माँ
को भी भाव सुंदर लगे. छोटे भाई ने अभी तक जवाब नहीं दिया है शायद वह ज्यादा ही
उदास है. आज ही पिलानी से चिट्ठी भी आ गयी है, रजिस्ट्रेशन हो गया है, जून आज
परीक्षा शुल्क भेज रहे हैं. नन्हा आज सुबह बिस्तर छोड़ना ही नहीं चाह रहा था, पर
स्नान के बाद ठीक हो गया..एक बार तो बोला ‘रोज-रोज स्कूल जाते जाते मेरा मन स्कूल
से उठ गया है’, वह जानती थी की वह जायेगा अवश्य...सिर्फ कह रहा है, उसका टेस्ट भी
हो सकता है आज. घर के अंदर डिस्टेम्पर का कार्य हो चुका है आज बाहर हो रहा है,
परसों से अंदर खिड़कियों की पेंटिंग का काम शुरु हो जायेगा. पिता ने लिखा है,
चिंतन, अध्ययन और लेखन यूँ ही चलता रहे तो..उसे जरूर गम्भीरतापूर्वक कुछ करना
चाहिए इस दिशा में. जून ने खत पढ़ा मगर कुछ नहीं कहा..कविता उनके लिए..इतनी
महत्वपूर्ण नहीं है..अपना-अपना स्वभाव है, लेकिन उनका मन जब प्यार करता है तो एक
कवि का सा ही लगता है..एक साथ ही वह इतने भावुक और इतने कठोर हैं. कठोर इस माने में कि वह
लोगों पर शीघ्रता से विश्वास नहीं करते..खैर.. उसने यहीं लिखना बंद किया और पत्र
लिखना शुरू किया.
आज मौसम ने फिर दरियादिली
दिखाई है, सुबह से टप-टप सुनाई दे रही है, नन्हा स्कूल गया है, जरूर उसके स्कूल के
मैदान में पानी भर गया होगा, कल रात से जो जल अनवरत बरस रहा है. ग्यारह बजने में
कुछ ही मिनट हैं, मन बार-बार रामायण में पढ़ी उन सुंदर पंक्तियों की और जा रहा है
जो राम चित्रकूट की शोभा का बखान करते हुए सीता से कहते हैं. सुंदर नीलधर मेघ उच्च
शिखरों पर वृष्टि करते हैं फिर मन्दाकिनी की शोभा का वर्णन भी अद्भुत है, एक सुंदर प्राकृतिक दृश्य आँखों के सामने आ
जाता है.
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