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Wednesday, September 23, 2020

गार्लिक ब्रेड

 

आज एक ऐतिहासिक दिन है. महीनों से इस दिन की प्रतीक्षा सारा देश कर रहा था, बल्कि विश्व के कई देश कर रहे थे, जहाँ भी भारतीय मूल के लोग रहते हैं अथवा जो देश भारत के मित्र हैं. बीजेपी ने भारी बहुमत से विजय हासिल की है तथा एनडीए एक बार फिर पांच वर्षों के लिए भारत को एक मजबूत सरकार देने वाला है. वे सुबह से ही चुनाव परिणाम पर नजर रखे हुए हैं. सुबह कम्पनी बाग घूमने गए, लोगों का एक हुजूम था वहाँ. कुछ लोग दौड़ रहे थे, कुछ योगासन कर रहे थे, कुछ टहल रहे थे , कुछ तस्वीरें उतार रहे थे. उन्होंने भी विशाल वृक्षों के चित्र लिए, आलूबुखारा व एक बेल खरीदी. वापसी में चचेरे भाई से मिलने का प्रयत्न किया, घर पर नहीं था, जिस दुकान पर चाय पीने आता है वहाँ भी देखा, पर नहीं मिला. उसकी कहानी भी बहुत विचित्र है पर मानव जीवन और यह सृष्टि सदा से ही विचित्रताओं से भरी है. वापस आकर नाश्ता किया फिर छोटी ननद की ससुराल गए. उसकी सासूमाँ बहुत स्नेही महिला हैं. उसके ज्येष्ठ के पुत्र से मिले जिसके पिताजी चाहते हैं वह उनकी दुकान संभाले, वह बीसीए करने के बाद घर आया हुआ था. वह निर्णय नहीं ले पा रहा है कि उसे क्या करना चाहिए. ढेर सारे फल खरीद कर जब वे वापस लौटे तो चुनाव परिणाम आने शुरू हो गए थे. एग्जिट पोल को सही सिद्ध करती हुई विजयमाल नरेंद्र मोदी जी के गले में सुशोभित हो गयी है. छोटी भाभी ने स्वादिष्ट मैंगो शेक बनाया व घर के बने आलू चिप्स भी तले. उन्होंने फल खाये और टीवी पर अमित शाह व नरेंद्र मोदी के भाषण सुने. कांग्रेस की हार पर अफ़सोस भी जताया, क्योंकि एक मजबूत विपक्ष भी लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है. 


सुबह मौसम सुहाना था. वे रजवाहे के किनारे-किनारे टहलने गए. सड़क सीमेंट की बनी है व साफ-सुथरी थी. इस मोहल्ले में भी सड़क पक्की हो गयी है. वापसी में वर्षा होने लगी, ठंडक बढ़ गयी. पिताजी अपने नियमों के अनुसार काम करते हैं, हिसाब-किताब भी पूरा रखते हैं. किस दिन गैस सिलेंडर लगाया था, इसकी डेट भी नोट करते हैं. नए प्रयोग करने से भी हिचकिचाते नहीं हैं. उनके जीवन से काफी कुछ सीखा जा सकता है. जून ने उन्हें मालिश के लिए तेजस तेल लाकर दिया है, वह स्वयं ही मालिश कर पा रहे हैं. आज घर पर गार्लिक ब्रेड बनी थी, जिसे पुलअपार्ट ब्रेड भी कहते हैं, साथ में मायोनीज की चटनी भी. नाश्ते के बाद टीवी पर मोदी जी की तकरीर फिर से सुनी. बीजेपी को तीन सौ तीन सीटें मिली हैं और एनडीए को तीन सौ बावन. पास ही की दुकान से वे मिठाई लाये, छोटे भाई ने दिल्ली के लिए भी मिठाई खरीद दी है. एक रात वे मंझले भाई के यहाँ बिताकर परसों असम वापस जा रहे हैं. दोपहर को दाल माखनी, रात को पनीर, इतना गरिष्ठ  भोजन वे घर पर नहीं करते हैं. शाम को टेलर से गुलाबी सूट लेकर आये, उसने वादा निभाया और समय पर सिल दिया. दोपहर को चचेरी बहन अपने दोनों बच्चों को लेकर आयी, दोनों बहुत प्यारे बच्चे हैं. उसने अपने पति व उसके काम के बारे में बातें बतायीं, उसे पथरी की समस्या हो गयी है, जबकि स्वयं उसे थायराइड की समस्या हो गयी है. देर रात्रि को दोनों भतीजियां आ रही हैं पर वे उसने सुबह ही मिलेंगे. 


सवा आठ बजने को हैं, आज उनकी यहाँ अंतिम सुबह है. सुबह का टहलना छत पर ही हुआ. मौसम आज गर्म है, धुप बहुत तेज है. वे आगे की यात्रा पर जाने के लिए तैयार हैं. चचेरा भाई भी उस दिन मिल नहीं पाया था, सुबह-सुबह स्वयं ही आ गया है. उसकी बहन  ने कल उसे बताया होगा, कल शाम वह अपने ममेरे भाइयों से भी मिलकर आई, तीन वर्ष बाद उसका आना हुआ है. 


आज वे पूरे एक महीने बाद घर वापस आये हैं, हवाई अड्डे से बाहर निकलने पर हरियाली ही हरियाली नजर आयी. ड्राइवर ने बताया महीने भर यहाँ वर्षा होती रही है. घर में कहीं चीटियों, कहीं चीटों और तिलचट्टों ने अपना घर बना लिया है. धूल, मिट्टी व मकड़ी के जाले तो हैं ही. दोनों नैनी व मालिन आ गयी हैं, मिलकर सफाई करेंगी. जून सब्जियां व फल लाने बाजार चले गए हैं। बाहर से कोयल के कूजन की आवाज लगातार आ रही है. 


अतीत के पन्ने खोले - उस दिन लाल स्याही से इतना ही लिखा था, माँ उसे कितना प्यार करती हैं, कितना ख्याल रखती हैं वह उसका ! कल शाम भी और आज सुबह भी ! 

  

उसका मन बस में नहीं है इस वक्त, यहाँ-वहाँ, इधर-उधर सारे संसार की सैर करता पागल मन ! वह नास्तिक होती जा रही थी, किन्तु अभी-अभी उसके मस्तिष्क में यह विचार कौंध गया कि इससे भयानक स्थिति क्या होगी ? ईश्वर का स्मरण मात्र ही पवित्रता को स्मरण करना है. शुभ, सुंदर, अच्छा, सत्य, प्रिय यही तो ईश्वर है. समय-असमय जो कुविचार उसे घेर लेते हैं उनसे त्राण पाने का एक अचूक साधन ! हे ईश्वर ! उसे ले चल ! उस राह पर जो पवित्र है, वह ... स्थिर मना, स्थितप्रज्ञ बन सके, अचंचल, दृढ बने. ऐसी भक्ति उसका मन करे कि तेरा दर्शन चहुँ और हो, और तब हे ईश्वर ! वह वह सब नहीं करेगी जो अब न चाहते हुए भी कर जाती है, कभी अनजाने में कभी जानबूझ कर. उसे अपनी शरण में ले, वह उसका चरवाहा बने, भटक जाये इससे पहले वह उसे संभाल लेगा, सहेज लेगा. उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया. 


Thursday, December 28, 2017

पृथ्वी की गंध


रात्रि के सवा आठ बजे हैं. अभी-अभी वे बाहर से टहल कर आये हैं, रात की रानी की ख़ुशबू से बगीचा महक रहा है, सड़क पर आने-जाने वाले भी पल भर के लिए थम जाते होंगे, एक छोटी सी टहनी कमरे में लाकर रख दी है. पता नहीं धरती के गर्भ में कितनी गंध छुपी है, अनगिनत प्रकार की गंध लिए है पृथ्वी, जिन्हें युगों से वह लुटा रही है. शाम को मूसलाधार पानी बरसा, उन्होंने बरामदे में कुछ देर चहलकदमी की, टहलते हुए वह जून से दिनभर का हाल-चाल ले लेती है, कमरे में आकर बैठकर बातें करने में एक औपचारिकता सी लगती है. अकबर की मृत्यु हो गयी आज के अंक में. उसका पुत्र सलीम ही जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ. कल दोपहर को नींद खोलने के लिए अस्तित्त्व ने कितना अच्छा उपाय किया, सचमुच ‘गॉड लव्स फन’ वह एक कार में है, दो सखियाँ भी हैं, ड्राइवर उतर गया है पर कार अपने आप ही चलती जा रही है. आगे जाकर टकराती नहीं है, पीछे लौटती है और तभी नींद खुल जाती है. ईश्वर हर क्षण उसके साथ है, उसका साथ इतना हसीन होगा, कभी नहीं सोचा था. आज से दो हफ्तों के बाद उन्हें लेह जाना है, कल से उसके बारे में कुछ पढ़ेगी. मंझला भाई अस्वस्थ है, अभी देहली में है, उनके जाने तक वह अवश्य ठीक हो जायेगा. बड़े भाई अपनी बिटिया के साथ छोटी बहन के पास विदेश गये हैं.

दोपहर को संडे क्लास में जाने के लिए जैसे ही तैयार होकर बाहर निकली, अचानक तेज वर्षा आरम्भ हो गयी, पूरे चालीस मिनट होती रही, रुकने पर वहाँ पहुँची तो कोई बच्चा नहीं था, या तो वे आकर चले गये अथवा आये ही नहीं. नन्हे से बात की, उसका एक मित्र मोटरसाईकिल से ‘भारत यात्रा’ पर निकला है, शायद उन्हें भी लेह में मिले, वह उन्हीं तिथियों में वहाँ जाने वाला है. कल उसके सहकर्मियों ने उस घर में एक भोज समारोह किया जहाँ से छह वर्ष पूर्व कम्पनी की शुरुआत हुई थी. सुबह अजीब सा स्वप्न देखा, उसका अर्थ था, साधना करके यदि कुछ पाने की, कुछ बनने की चाह है तो साधना व्यर्थ है. परमात्मा को पाकर यदि अपना कद ही ऊंचा करना है तो उससे कभी मिलन होगा ही नहीं. स्वयं को पवित्र करना ही साधना का उद्देश्य है. भीतर यदि कोई भी चाह शेष है तो चित्त शुद्ध हुआ ही नहीं. परमात्मा कितनी अच्छी तरह से उसे पढ़ा रहा है. वह कभी स्वप्नों के माध्यम से, कभी सीधे शब्दों के माध्यम से उसे मार्ग पर ले जा रहा है. वह कितना कृपालु है. उसकी महिमा को कौन जान सकता है. आज से औरंगजेब की कहानी शुरू हुई है. देश में मोदी जी नये-नये कदम उठा रहे हैं ताकि भारत की समृद्धि बढ़े, विश्व में उसका नाम हो !  


आज वर्षा रुकी हुई थी सो स्कूल में बच्चों को बाहर मैदान में योग कराया. उन्हें योग दिवस के बार में भी बताया. दोपहर को लद्दाख की तस्वीरें देखीं, जानकारी हासिल की जो वहाँ जाने वाले यात्रियों के लिए आवश्यक है. वहाँ ठंड भी होगी और वर्षा भी. जलरोधी वस्त्र और जूते ले जाने होंगे. आज पुनः मन में एक खालीपन है, आश्चर्य भी होता है ऐसी अनुभूति पर, लेकिन ईश्वर के मार्ग पर तृप्ति का अर्थ है पूर्ण विश्राम. यानि रुक जाना, पर यहाँ तो चलते ही जाना है, इसका कोई अंत नहीं ! कल जून को गोहाटी जाना है दो दिनों के लिए. उसे अधिक समय मिलेगा साधना के लिए, पर साधना का लक्ष्य तो सभी के साथ एक्य की भावना का अनुभव करना ही है, जो वे इसी क्षण कर सकते हैं. वे विशिष्ट हैं, यही भाव तो उन्हें अलग करता है. इस सृष्टि में सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं, सभी की अपनी-अपनी भूमिका है, सभी महत्वपूर्ण हैं समान रूप से. यही भावना तो उन्हें परमात्मा के साथ भी जोड़ती है. परमात्मा साक्षी है, सभी पर समान कृपा करता है पर जो उससे प्रेम करता है अर्थात स्वयं को विशिष्ट नहीं मानता, उससे वह प्रेम से मिलता है. अस्तित्त्व उसका हो जाता है उतना ही, जितना वह अस्तित्त्व का !

Sunday, May 1, 2016

झाऊ के वन


मुहब्बत का दिया मद्धम न होगा
उजालों का परचम कभी खम न होगा
अगर अश्कों से दामन नम न होगा
बिछड़ने का हमें क्या गम न होगा
तेरा जलवा यकीनन कम न होगा
मेरी आँखों में लेकिन दम न होगा

ये शेर उसके दिल की हालत की कितनी सही बयानी करते हैं. उसकी आंख्ने भले सूख गयी थीं पर भीतर तड़प थी, ‘उसका’ जलवा तो पहले सा कायम था, वह तो सृष्टि के अस्तित्त्व में आने से पहले भी था और बाद में भी रहेगा. उनकी आँखों में वह शक्ति नहीं होती कि वे उसे देख सकें. वह तो हर क्षण उन्हें संदेश भेजता रहता है. चौबीसों घंटे वह उसके पास ही रहता है. वह उसकी हाजिरी को नजर अंदाज कर जाती थी. आज सुबह अनोखा अनुभव हुआ, अनुभव होना कठिन नहीं पर उसमें टिकना कठिन है. कभी प्रमाद कभी प्रारब्ध उन्हें भटका देता है. साधक के भीतर प्रेम नदिया की धारा की तरह कभी-कभी गुफाओं में छिप जाता है.

आज क्रिसमस है, यानि बड़ा दिन. ईसामसीह का जन्मदिवस. दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में लोग इस त्यौहार को मना रहे हैं. उनका भी मन उल्लास से भरा है. सुबह सभी को sms भेजे, कुछ ने जवाब भी दिए. जून का अवकाश है, वे शाम से थोड़ा पहले दिन रहते लम्बी ड्राइव पर जायेंगे. कल शाम क्लब में विशेष सज्जा की गयी थी. एक सखी के यहाँ विवाह की वर्षगांठ की पार्टी भी थी. आज वे अपने मित्रों, संबंधियों की सूची भी बनाने वाले हैं, जिन्हें नये वर्ष के शुभकामना संदेश व कार्ड्स भेजने वाले हैं. कल वे निकट ही स्थित पक्षी विहार जा रहे हैं. आजकल मौसम बहुत अच्छा है. धूप, नीला आकाश, फूल और सूखी हरी घास ! टीवी पर एक व्यक्ति पानी में बड़े, मोटे सर्प के साथ तैर रहा है, खेल रहा है, वे व्यर्थ ही डरते रहते हैं. डर उनके मन की उपज है. प्रकृति के निकट रहकर ही वे अपने सहज रूप में आ सकते हैं. मनुष्यों के निकट वे बनावटी व्यवहार करते हैं.


आज वे ‘डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क’ देखने गये. सुबह साढ़े आठ बजे वे निकले और साढ़े नौ बजे पहुंच गये. बनश्री नामका छोटा सा रिजोर्ट रंगीन वस्त्र की झंडियों से सजा हुआ था, आर्मी की एक यूनिट ने उसे शाम तक के लिए लिया हुआ था वे हीरक जयंती मना रहे थे, उन्होंने एक नाव किराये पर ली और डिब्रू नदी के नील स्वच्छ जल में निकल पड़े. हवा ठंडी थी और आकाश नीला था. नाविक एक बूढ़ा व्यक्ति था उसका सहायक एक छोटा बच्चा था. वे उन्हें नदी के दूसरे किनारे पर ले गये, जहाँ हरियाली के मध्य में जगह-जगह श्वेत रेत बिछी थी, जो सुबह की रौशनी में चमचमा रही थी. वे चलते रहे और काफी दूर चलने के बाद झाऊ वन आये, जिसे पार करने के बाद पुनः रेतीले स्थान, जिन्हें पार करने के बाद फिर से वन मिले जहाँ नीचे हरी घास उगी थी. वे कुछ देर के लिए वहाँ बैठ गये, साथ लायी लेमन टी, कॉफ़ी बिस्किट और नमकीन खाकर तरोताजा हो गये. गायों का एक झुण्ड और कुछ भैंसें वहाँ घास चर रही थीं और सफेद बगुले उनके साथी बने साथ साथ चल रहे थे. विशाल नीले गगन के नीचे और कोई मनुष्य उस समय वहाँ नहीं था. उन्होंने विभिन्न प्रकार के पक्षियों को भी आते व जाते समय देखा. वापसी में तिनसुकिया में दोपहर का भोजन करके वे तीन बजे घर लौट आये.

Saturday, May 23, 2015

हरिवंशराय बच्चन की आत्म कथा


आज उसने सुना, जिसका जन्म होता है वह विनाश को प्राप्त होगा ही. आज पुनः उसे कृष्ण मिले, भक्ति भी प्यार की तरह है जो कभी-कभी अपने मुखर रूप में होता है. तन-मन दोनों फूल की तरह हल्के हैं. हृदय में ज्ञान की ज्योति जल रही है, अभी कुछ कितना स्पष्ट है. यह सृष्टि, ईश्वर, प्राणी और इनका आपस में संबंध ! सत्य ही जानने योग्य है, सभी उसी की खोज में हैं. कोई पहली सीढ़ी पर है, कोई पांचवीं तो कोई सौवीं पर पहुंच गया है. जब कोई भीतर-बाहर एक हो तभी उसे अनुभव कर सकता है. उसको जानने के लिए उसके जैसा होना पड़ता है. आज सद्गुरु की आँखों में नमी थी, वह अपने गुरू के प्रति कृतज्ञता का अनुभव कर रहे थे. गुरू का ऋण चुकाना असम्भव है. वह इतना अनमोल खजाना साधक को सौंप देते हैं. सुबह साढ़े चार पर उठे वे, कोहरा भी था और बदली भी. नन्हे को स्कूल भेजा. छोटी बहन को फोन किया वह ‘हवन’ करके अपनी शादी की वर्षगाँठ मना रही है. भांजियों से भी बात की. कल छब्बीस जनवरी के विशेष भोज के लिए सभी सखियों को आमंत्रित किया.

कल का भोज अच्छा रहा. सभी मित्र परिवार आये थे. बाहर लॉन में सब बैठे थे. सुबह कुछ देर परेड देखी. नन्हा नेहरू मैदान में परेड देखने गया था. उसने वापस आने में बहुत देर की. वे परेशान हो गये थे, मन कहीं लग नहीं रहा था. जून को गुस्सा था और उसे चिंता, पर दोनों ही व्यर्थ थे, क्योंकि नन्हा आराम से वहाँ परेड देख रहा था. आज उसने छोटी भाभी से बात की. कल सुबह मंझले भाई ने भी ‘हवन’ करवाया, माँ की बरसी इस तरह उन्होंने मनायी. वे लोग उनके बारे में, उनकी बीमारी व उनके इलाज के बारे में बातें करते हैं, उनके वस्त्र वक्त-वक्त पर दान करते हैं. आज वह भी मन्दिर जाएगी और कुछ दान देगी. माँ कहाँ होंगी कोई नहीं जानता. उनकी आत्मा तो शाश्वत है, वह किसी देह को धारण कर चुकी होंगी और सम्भवतः इस जन्म की बातें भूल भी गयी हों. वे जन्म से पूर्व भी अव्यक्त होते हैं और मृत्यु के बाद भी, बीच में कुछ ही समय तक व्यक्त रहते हैं. इस क्षणिक जीवन में जितने शुद्ध होते जाते हैं, उतना ही मृत्यु का भय कम होता जाता है. अपने उस स्वरूप का अनुभव इसी रूप में होने लगता है जो मृत्यु के बाद अनुभव में आने वाला है. यह रूप तो उन्हें अपनी पूर्वजन्म की इच्छाओं और वासनाओं के कारण मिला है. उनके कर्म यदि इस जन्म में निष्काम हों तो अपने शुद्धतम रूप में प्रकट हो सकते हैं, वैसे भी इस जगत में ऐसा है ही क्या जो उन्हें तुष्ट कर सके !
आज बहुत दिनों बाद सुबह टीवी पर जागरण नहीं सुन पा रही है. केबल नहीं आ रहा है. सुबह वे समय पर उठे, नन्हे को पढ़ने जाना था, गया, पर टीचर नहीं मिले. आज बसंत पंचमी का अवकाश है. आज ही सरस्वती पूजा भी है. उसके लिए तो एकमात्र आराध्य कृष्ण हैं, उन्हीं से सभी देवी-देवताओं का प्रागट्य हुआ है. कल उसने जून से गुस्सा किया जब उन्होंने कहा केबल एक साल के लिए कटवा देते हैं, उसे सुबह के सत्संग का आकर्षण था, पर देखो, आज कृष्ण ने वह भी मिटवा दिया. उन्हें किसी भी वस्तु से बंधना नहीं है. मुक्ति के पथ पर चलना शुरू किया है तो जंजीर यदि सोने की भी हो तो उसे काट देना चाहिए. सतोगुण तक पहुंच कर उससे भी पार जाना होता है सच्चे साधक को, पर वह तो अभी भी तमोगुण का शिकार हो जाती है. कल जून ने उसे ‘हरिवंशराय बच्चन’ की आत्मकथा के तीन भाग  उनकी सर्वश्रेष्ठ कविताओं का संकलन तथा दो अन्य कविता की पुस्तकें लाकर दीं. उनका प्रेम ही तो है यह, वह उसकी हर छोटी-बड़ी इच्छा को पूर्ण करना चाहते हैं, यही प्रेम है, पर वह इसका प्रतिदन नहीं दे पाती है. ईश्वर साक्षी है कि उसके मन में शुद्ध प्रेम जगा है, जो सामान्य प्रेम से थोड़ा अलग है. इस संसार के हर जीव के प्रति, जड़-चेतन सभी के प्रति, उस परम सत्ता के प्रति, पंचभूतों, धरा, आकाश, नक्षत्र, सूर्य तथा चन्द्रमा सभी उसके प्रेम के पात्र हैं. इस प्रेम का कोई रूप नहीं, यह अव्यक्त है, अनंत है और सर्वव्यापी है. इस प्रेम ने उसके स्व को अनंत विस्तार दे दिया है. कृष्ण को प्रेम करो तो वही प्रेम कृष्ण की सृष्टि की ओर भी प्रवाहित होने लगता है !

  

Wednesday, April 29, 2015

हरसिंगार के फूल


आज सुबह उसने डायरी नहीं खोली, फूलों को इकट्ठा किया और उन्हें सजाया घर में. इस वक्त तक हरसिंगार के ये पुष्प मुरझा गये हैं पर सुबह बहुत सुंदर लग रहे थे. ‘जागरण’ पर सद्वचन सुनकर अंतर्मन खिल गया है. भीतर ही ज्ञान है, शक्ति है, प्रेम है, साहस है, ऊर्जा है, उत्साह है, ईश्वर है पर मानव को उसका ज्ञान नहीं. शास्त्र और गुरू उससे परिचय कराते हैं, तब कोई नये उत्साह से जीवन का सामना करता है. सब कुछ बेहद सरल लगने लगता है, हृदय प्रेम से भर उठता है, अकारण प्रेम..सारी सृष्टि के लिए प्रेम...जैसे कृष्ण उन्हें दे रहे हैं अनवरत...उसकी ओर मुड़े तो पाएंगे कि वह उन्हें प्रेम भरी दृष्टि से देख रहे हैं ! उसके सभी कार्य वही तो सम्पन्न करते हैं, उनकी ही चेतना से सारी सृष्टि चल रही है. वे खुद उनके हाथों में एक साधन मात्र हैं. जैसे देह उसके लिए साधन है, चित्त भी साधन है, यदि कोई इसे उनकी ओर मोड़ दे तो वह स्वयंमेव ही आगे का कार्य सरल कर देते हैं. वही भीतर से निर्देश देते हैं, सामर्थ्य देते हैं, सत्कर्मों की प्रेरणा देते हैं. अपनी अनुभूति कराते हैं. कृष्ण को वह कितने ही रूपों में देख चुकी है, अपने मन की आँखों से भी और इन आँखों से भी...वह स्वयं जब चाहते हैं..मिलते हैं...   

उसने दिनकर की पुस्तक में डॉ राधा कृष्णन के विचार पढ़े तो डायरी में लिख लिए- “ सम्यक ज्ञान की स्फुरणा एकाग्र-चिंतन से होती है, एक ही विषय पर दिन-रात ध्यान लगाये रहने से होती है. निदिध्यासन सोचने की उस प्रक्रिया का नाम है, जिसमें मनुष्य सम्पूर्ण मस्तिष्क तथा समग्र अस्तित्त्व से सोचता होता है. सम्यक चिंतन संश्लिष्ट चिंतन है, पूर्ण चिंतन है. यह चिंतन की वह प्रक्रिया है जिसमें सभी इन्द्रियां, सम्पूर्ण बुद्धि, समग्र चेतना, वस्तुतः सारा अस्तित्त्व विचारों से संचालित रहता है. शरीर का कोई अवयव नहीं है जो मन या आत्मा के नियन्त्रण से परे हो. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मनुष्य का सारा व्यक्तित्व एक है. उसके अवयव, मन और चित्त उस एक ही व्यक्तित्व के भिन्न-भिन्न पक्ष हैं. बुद्धि से जो विचार तैयार होता है, उसे मनुष्य के अंतर्मन के भीतर पहुंचना चाहिए जिससे चिंतक के चेतन व अचेतन दोनों ही अंश उस विचार से अनुप्राणित हो सकें. शब्द और विचार दोनों को मनुष्य के मांस में मिल जाना है. मानव-मनोविज्ञान का यही रूपांतरण रचनात्मक कहलाता है. रचना मनुष्य की वह मानसिक प्रक्रिया है जिससे वह अपनी अपरिचित एवं निगूढ़ आत्मा को जानने में समर्थ होता है.”

पिछले तीन दिन फिर डायरी नहीं खोली. कल ‘सुदर्शन क्रिया’ का फालोअप था. योग शिक्षक पहले की तरह सभी को हँसाते नहीं है, कुछ दूरी बनाकर रखते हैं, खैर..वक्त बदलता है, रिश्ते बदलते हैं और इन्सान भी बदलते हैं. सड़क पर कुछ मजदूर हँसते हुए चले जा रहे हैं. इन्सान किसी भी स्थिति में क्यों न हो हँसी और ख़ुशी उसका साथ नहीं छोड़ती, जैसे कि दुःख..तो क्यों न वे दोनों को समान भाव से अपनाते चलें. दोनों ही आते-जाते रहेंगे भिन्न-भिन्न रूपों में, पर एक तो वही एक है अपना आप.. जिसे न सुख व्याप्ता है न दुःख. जो रसमय है, जो जीवन को अर्थ देता है, चुनौती देता है, लक्ष्य देता है. जो अपना दिव्य रूप धरे अपनी ओर आकर्षित करता है. वह खुद सा बनाना चाहता है, बल्कि उसने खुद सा ही बनाया था, पर वे उससे दूर होते चले गये और संसार को अपना मानकर उसमें फंसते गये जो हाथ से रेत की तरह फिसलता जाता है..देह जो दिन-प्रतिदिन जरा की ओर बढ़ रही है, कोई न कोई व्याधि उसे सताती है. मन जो सदा किसी न किसी ताप में जलता रहता है...और वह जो शीतल फुहार सा, अलमस्त झरने सा, प्रेम का झरना भीतर ही कहीं बह रहा है, उससे वे अनजान ही बने रहते हैं !  


Friday, March 27, 2015

दिल का ताला




ईश्वर उनका अन्तरंग है, उसकी उपासना करने के लिए विधि विधान की नहीं भाव भरे हृदय की आवश्यकता है. सहज रूप से जब अंतर में उसके प्रति प्रेम की हिलोर उठे तो उसी वक्त पूजा हो गयी, फिर धीरे-धीरे यह प्रेम उसकी सृष्टि के प्रत्येक प्राणी के प्रति उत्पन्न होने लगता है, सभी में उसी के दर्शन होते हैं. कल शाम को उसे सड़क पर साइकिल पर जाते एक हॉकर को देखकर उसे बुलाकर कुछ देने का मन हुआ, शुद्ध प्रेम के कारण, पर उसने स्वयं को रोका क्योंकि बिना कुछ काम कराए वह शायद कुछ लेना पसंद भी नहीं करता और जून को उसकी इस बात के पीछे की भावना भी समझ में नहीं आती. ...और आज सुबह एक दिवास्वप्न देखा कि उसे ईश्वर प्राप्ति हो गयी है और..खैर, दिवास्वप्नों की बात यहीं छोड़ दे. अभी बहुत सफर तय करना है. एकांत में रहे तो ज्ञान सदा साथ रहता है. मन प्रसन्न व मस्तिष्क उद्वेग रहित, स्पष्ट..लेकिन जब इस ज्ञान को व्यवहार में लाने का समय आता है तो मन पुराने संस्कारों के कारण विक्षेपित हो जाता है. सारा ज्ञान कुछ पल के लिए तो धरा ही रह जाता है, इतना अवश्य है कि शीघ्र ही कोई सचेत करता है पर तब तक वह क्षण गुजर चुका होता है. यह भी सही है कि पहले की तरह बाद में मन शीघ्र संयत हो जाता है, रेत पर पड़ी लकीर की तरह..पर उसे तो अपने मन को पानी की धार सा बनाना है जिस पर कोई लकीर पड़े ही न. अपने मन के विश्वास को, सरलता को बचाकर रखना है. आज भी वर्षा बदस्तूर जारी है. ‘जागरण’ में नारद भक्ति सूत्र पर चर्चा हो रही है. उसका भी अनुभव है कि जब कोई ईश्वर को याद करता है उसी क्षण वह जवाब देता है. पर जब कोई अभिमान वश या अन्य किसी कारण से उसे भुला देता है और दुःख में होता है तो वह नहीं आता अर्थात मन उसे ग्रहण नहीं करता. इसका अर्थ हुआ कि यदि लगातार उसका सान्निध्य चाहिए तो ध्यान भी अनवरत चलना चाहिए. एक पल का भी विस्मरण पुनः उसी स्थिति में ला देता है.

आज सुबह छोटी बहन को फोन किया उसका जन्मदिन है, बड़ी बिटिया को स्कूल छोड़ने जा रही थी सो थोड़ी देर ही बात हो सकी. दोनों ननदों से भी बात हुई, छोटी का स्वास्थय ठीक नहीं है. बड़ी ने बताया ननदोई जी मुम्बई में रहने लगे हैं, शनिवार को घर आते हैं. घर-बाहर के सारे कार्य उसे खुद ही करने होते हैं. सासु माँ आजकल आयी हुई हैं, इस वक्त टहलने गयी हैं. कल क्लब में लेडीज क्लब की चेयर परसन से मिलना हुआ, उनकी बातें सुनीं, आत्म विश्वास से परिपूर्ण ! कल उसने पत्र लिखने शुरू किये थे, अभी कुछ शेष हैं, कुल नौ पत्र लिखने हैं. आज सुबह ‘जागरण’ में दिल का ताला खोलने की चर्चा हुई, ताला जो ममता का है और जिसे खोलना वैराग्य से है. उसने प्रार्थना की, कृष्ण सदा उसकी स्मृति में रहें, वह उसे न भूले और साधना के पथ पर आगे बढ़े, ऐसा संकल्प करे. संकल्प उसका और बल परमात्मा का. उसी की कृपा होती है तो साधना का सामर्थ्य जगता है !


Wednesday, January 21, 2015

जीवन के पुरुषार्थ


आत्म समर्पण किये बिना मुक्ति नहीं ! अहंकार का त्याग कर ध्यान में बैठे तो कोई अपने कोमल स्पर्श से मन को शांत करता है. सारा ताप हर लेता है फिर उसे स्वच्छ करते हुए निर्दोष और सात्विक भावों से भर देता है, जो सबकी पीड़ा हर लेना चाहता है, सबको क्षमा कर देना चाहता है ! सांसारिक कार्य-व्यापार, उपलब्धियां, सांसारिक सुख तब अर्थहीन हो जाते हैं. मन किसी और दुनिया में पहुंच जाता है. जहाँ कोई कामना नहीं, कोई इच्छा नहीं, मात्र शांति और संतोष का साम्राज्य होता है ! यदि कोई इस शांति का भी उपभोग नहीं करता, उससे संतुष्ट होकर नहीं बैठ जाता तो अंत में मंजिल को पा लेता है !
आज ‘जागरण’ में सुना, संसार रूपी सागर में पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए उस बंदरगाह की तरह है जो तूफान में घिरे जहाज का आश्रय होता है. आज जून और उसके विवाह की वर्षगाँठ है. सुबह-सुबह जून ने उसे शुभकामना दी, फिर ससुराल से फोन आया. पिता ने शुभाशीष दी तो मन उनके प्रति कृतज्ञता से भर गया. सखियों, भाई-बहनों, सभी का फोन आया. परिवारजनों की शुभकामनाएँ पाकर मन खिल उठता है. ईश्वर के प्रति भी मन झुक जाता है कि उसे जून जैसे जीवनसाथी से मिलाया. वे दोनों इस समय एक-दूसरे के मन, भावों और विचारों में पूरी तरह समा गये हैं. हृदय में ईश्वर भक्ति हो तो सारे संबंध मधुर हो जाते हैं और जून उसके सहायक हैं हर क्षेत्र में. वह ही अपने आप में मग्न रहकर कभी न कभी उनकी उपेक्षा( अनजाने में) कर जाती है पर उनका एकनिष्ठ प्रेम उसे अनवरत प्राप्त होता रहता है.

सारी सृष्टि उसी एक का विस्तार है, एक को चाहो तो सब कुछ अपने आप ही मिल जाता है, लेकिन उस एक को पाना जितना सरल है उतना ही कठिन भी. उसका माधुर्य जीवन के पुरुषार्थ से ही मिल सकता है. जब मन झुक जाता है तभी वह अंतर में प्रवेश करता है और तब उसे याद नहीं करना पड़ता जीवन का मार्ग मधुमय हो जाता है. हर दुःख उसका प्रसाद प्रतीत होता है और हर सुख उसकी कृपा ! वह जो स्वयं रस का सागर है, प्रेम का प्रतिरूप है, ऐसा वह कृष्ण जिसके जीवन में हो उसे धरती पर ही स्वर्ग का सुख मिल जाता है. उसकी मोहक छवि, उसकी बांसुरी का मधुर स्वर, आँखों का अथाह स्नेह और मधुर वचन सभी तो ऐसे उपहार हैं जिनको पाने के लिए मन एक क्षण में संसार को त्याग देगा !   

कल उसने ‘महासमर’ के सारे उपलब्ध भाग पढ़ लिए. अभी भी कथा पूरी नहीं हुई है, युद्ध जारी है, जैसे युद्ध मानवों के मनों में निरंतर चलता रहता है जब तक वे ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं हो जाते. लेकिन उस समर्पण के बाद गुरूमाँ के शब्दों में हृदय में एक पीड़ा का जन्म होता है जो उसके वियोग की पीड़ा है और अधरों पर एक रहस्यमयी मुस्कान का जन्म होता है जो उसके सान्निध्य में हर पल रहने के कारण उत्पन्न होती है, ऊपर से देखें तो विरोधाभास होता है पर जो इस स्थिति तक पहुंच चुका है उसके लिए सारे पर्दे खुल चुके होते हैं, सत्य प्रकट हो चुका होता है और उसका सत्य है कि कृष्ण उसके जीवन के आधार हैं. मात्र वही तो हैं जो चारों ओर विस्तारित हो रहे हैं फिर उनकी बनायी इस सृष्टि में किसी से कैसा विरोध. सभी की प्रकृति उनके अपने-अपने गुणों के अनुसार काम करवाती है. यह सारा चक्र उसी के इशारे पर तो चल रहा है. उनकी सीमा कर्म करने तक की भी नहीं है क्यों कि अपने स्वभाव के वशीभूत होकर वे कार्य करते हैं यदि अपने स्वभाव को परिवर्तित करने की क्षमता कोई पाले तो आत्मा का विकास सम्भव है अर्थात जीवन का विकास ! उसके लिए स्वाध्याय, सजगता, सात्विकता का पालन करना होगा, क्यों कि ईश्वर का निवास पवित्र हृदयों में ही तो है !