Friday, August 22, 2014

गोभी की पौध


आज फिर बादल छाये हैं आकाश पर, पिछले कुछ दिन धूप भरे थे, उनका बगीचा खिल रहा था. आज सुबह उसने एक पपीता तोडा, और सोच रही है उन परिचिता को दे आये या भिजवा दे कल जिनसे फोन पर बात हुई थी, उसे लगा शायद उन्हें बुरा लगा हो. नन्हा आजकल सुबह फिर देर से उठने लगा है, फिर जल्दी-जल्दी चुपचाप सारे काम करता है, एक किशोर के लिए ये लक्षण क्या ठीक हैं. आज बड़ी भाभी के जन्मदिन पर उन्हें शुभकामना दी तो वह प्रसन्न हुईं, कहने लगीं, सबसे पहली बधाई उनकी ही है. रात एक स्वप्न में उसने बंगाली सखी को देखा, जून से कहेगी, इ-मेल से उन्हें  दीवाली की शुभकामनायें भेज दें. आज जे.कृष्णामूर्ति को सुना, वह कहते हैं, जो प्रतिकूलता को नहीं स्वीकारता वहीं संघर्ष पैदा होता है, सब कुछ अनुकूल होता रहे ऐसा तो सम्भव ही नहीं है, जीवन जिस रूप में सम्मुख आए उसे ही सच्चे दिल से स्वीकारना ईश्वर भक्ति है.
“बाहर के दीये तो बहुत जला लिए अब तो आत्मदीप जलाना है. मिठाई भी बहुत खा ली, अब तो अंतर की मधुरता चाहिए, बाहर की सफाई भी बहुत हो गयी अब तो अंतर्मन को स्वच्छ करना है. एहिक दीवाली तो बहुत मना ली अब प्रज्ञा दीवाली मनानी है”. आज बाबाजी ने दीवाली का तात्विक अर्थ बताया. नैनी का स्वास्थ्य आजकल ठीक नहीं है फिर भी वह काम पर आती है, विवशता कहें या कर्त्तव्य परायणता, अपने काम को वह महत्व देती है वरना घर में भी बैठ सकती थी. उससे भी नूना को कुछ सीखने को मिलता है. आज जून सम्भवतः गोभी की पौध लायेंगे. पालक, मेथी, गाजर, मटर, धनिया और प्याज के बीज पड़ चुके हैं पर गोभी की क्यारी खाली पड़ी है. आज सुबह एक और पपीता तोड़ा, उसने पड़ोसिन को दिया और कल के लिए उसे निमंत्रित भी किया. कल क्लब में दीवाली पर विशेष उत्सव है पर वे घर पर व्यस्त रहेंगे. सात परिवारों को उसने विशेष भोज के लिए आमंत्रित किया है. कल उसकी संगीत अध्यापिका ने आखिर कह ही दिया, अब वह नहीं सिखा पाएंगी, यह उसका अंतिम महीना होगा, इसके बाद नई शिक्षिका खोजनी होगी या घर पर ही अभ्यास जारी रखना होगा. संगीत तो एक वरदान है जिसकी जितनी संभाल की जाये उतनी कम है.

पिछले तीन दिन डायरी नहीं खोल सकी, उस दिन रात के आयोजन की तैयारी करनी थी, अगले दिन पार्टी के बाद की सार-संभाल तथा कल आराम करने के कारण. वे तीन जगह आमंत्रित थे, ज्यादा गरिष्ठ भोजन करने के बाद कल दिन भर उपवास करना पड़ा. कल शाम भी यहाँ दीवाली का ही माहौल था. सभी ओर दिए और रोशनियों की झालरें लगी थीं. पटाखों का शोर बढ़ता ही जा रहा था. आज दोपहर को जून के साथ बैंक जाना है, उसके अकाउंट को उन्हें जॉइंट अकाउंट बनाना है. कल जून ने उसे पैसे लाकर दिए, उसे कुछ भी रोमांचक नहीं लगा, बल्कि कुछ भी नहीं लगा, नये नोट देखकर भी कोई ललक नहीं उठी, लगता है मुक्ति की राह पर कदम तेजी से बढ़ रहे हैं. आज असमिया सखी ने ‘नीति वचन’ सुनने का फिर आग्रह किया, उसका मन भी अध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहा है. जीवन अद्भुत है, यह नित नवीन रूपों में प्रकट होता है. कभी सुख और आनन्द की वर्षा कर उसे निहाल कर जाता है तो अगले ही पल अचानक विपत्ति बन प्रश्नचिह्न लगा जाता है. कभी सहज लगता है कभी अनबुझ पहेली की तरह प्रतीत होता है. साहित्य भी इन रसों व रंगों से अछूता नहीं रहता. वह सजग बनाता है, कठिन परिस्थितियों से पार पाने की प्रेरणा देता है.




2 comments:

  1. नन्हा का देर तक सोना, पपीते को परिचिता के यहाँ भिजवा देना (परिचिता, पड़ोसन और सखी में किस प्रकार विभेद करती है वह जानने की इच्छा है). जे कृष्णमूर्ति की बात बिल्कुल सही है... और फिर अप्प दीपो भव भी! अब देखिए न, नैनी की भी एक अलग ही पूजा है (चाहे आर्थिक कारण हों या जो भी, किंतु उसकी साधना पर मुग्ध हूँ. बीमार होकर भी काम पर आना और उतने सारे कपड़े धोना.. ईश्वर की सच्ची प्रार्थना ही तो है)।

    बैंक में काम करता हूँ इसलिये पहली बार ज्वाइण्ट अकाउण्ट जैसा पढकर बड़ा सुखद लगा. नये नोटों का आकर्षण पब्लिक में बहुत होता है!

    और अंत में "साहित्य भी इन रसों व रंगों से अछूता नहीं रहता. वह सजग बनाता है, कठिन परिस्थितियों से पार पाने की प्रेरणा देता है." - इस परिभाषा के अंतर्गत ही मैं स्वयम को साहित्यकार की श्रेणी में पाता हूँ! धन्यवाद!!

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  2. परिचित व्यक्ति वे जो कभी-कभी मिलते हैं बस जान-पहचान ही है. पड़ोसिन दायें या बाएं तरफ रहने वाली महिलाएं जिनसे अपने आप सम्बन्ध बन जाता है. सखी वह जिनसे दिल की बात हो सकती है, जिनके साथ उत्सव, जन्मदिन मनाये जाते हैं. वाकई आप बहुत सूक्ष्मता से पोस्ट को पढ़ते हैं, आभार... साहित्यकार !

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