कल वे सारे कार्य कर सके जो
विचारे थे. धूप तेज थी और मन में उत्साह था. कल शाम को एल मित्र परिवार अपनी
यात्रा से वापस आ गया. परसों एक सखी ने गुड़हल
पर चार पंक्तियाँ लिखने की बात कही थी, पर वह भूल ही गयी, शाम को उसने फोन करके
याद दिलाया. आज करवाचौथ का व्रत है, पर उसने सिर्फ एक बार विवाह के बाद मायके में यह
व्रत रखा था, तब जून भी वहाँ नहीं थे. एक बार मंगनी के बाद भी. न ही जून को, न उसे
व्रत आदि में विश्वास है. उसे विश्वास है अच्छाई में, नैतिकता में, सत्य और अहिंसा
में, प्रतिपल निर्लोभी होकर जीने में, सम्यक जीवन दृष्टि में और स्वच्छता में, सो
आज से हर दिन एक घंटा विशेष सफाई के लिए, दीवाली आने तक उनका घर दीयों के लिए
तैयार हो जायेगा. आज गोयनका जी ने शिवजी , श्री राम, भगवान कृष्ण और गणेश देवता की
भक्ति का वास्तविक अर्थ बताया. शिवजी प्रतिक्षण काल से घिरे रहने के बाद भी शीतलता
धारण किये हैं, कामनाओं को भस्म कर चुके हैं. गणेश जी की मेधा इतनी ज्यादा है कि
उन्हें हाथी का सिर चाहिए. राम त्याग की मूर्ति हैं, भाई के प्रति स्नेह का आदर्श
रखते हैं. कृष्ण को वे भक्त प्रिय हैं जो अपेक्षा रहित हैं, राग-द्वेष से मुक्त
हैं, निर्मल चित्त वाले हैं न कि वे जो उनके रूप का बखान तो करते हैं पर उनकी
बातों को नहीं मानते. उसे और सहनशील होना
होगा और कर्मठ भी. स्वास्थ्य ( पूरे परिवार का ) के प्रति भी और सजग रहना होगा और
सबसे बड़ी बात अपनी वाणी पर संयम रखना होगा. वाणी को जीतना पहली सीढी है.
पर्व प्रेरणा देते हैं. शुभ संकल्प जगाते हैं, उत्साह भरते हैं. जीवन जो एकरस
प्रतीत होता है उसमें नवरस भरते हैं. अगले हफ्ते दीपावली का त्योहार आ रहा है वे
सभी उत्सुक हैं. जीवन है ही क्या? कुछ पल ख़ुशी के कुछ पल उदासी के ! जीवन बहती धारा
है, जो गुजर जाता है, लौटकर नहीं आता. सुख-सुविधा भी नहीं रहेगी और तप भी नहीं
रहेगा, पर तप का लाभ बाद में मिलेगा. लोभवश किये कार्य और उनका त्याग दोनों ही
नहीं रहेंगे पर त्याग अनासक्ति सिखाता है, मन निर्भार हो जाता है. मधुर शब्द और
कटु शब्द दोनों ही नहीं रहने वाले हैं पर प्रेम, प्रेम को जन्म देता है, उसके सौदे
में घाटे का कोई काम नहीं, लाभ ही लाभ है. आज बाबाजी ने उपरोक्त ज्ञान दिया. सुबह
के कार्य हो चुके हैं, अभी ध्यान करेगी फिर कर्म. कई दिनों से कविताओं वाली डायरी
नहीं खोली है मन में भाव तो उपजते हैं पर टिकते नहीं क्यों कि प्रयास ही नहीं किया.
नन्हे ने डिबेट में भाग लिया था पर सलेक्ट नहीं हो पाया, उसने कहा लडकियाँ बहुत
अच्छा बोलीं, वे लड़के समझ गये, उनका चुनाव नहीं होगा. जून कल दीवाली के लिए काफी
कुछ लाए और अगले हफ्ते डिब्रूगढ़ जाकर फिर लायेंगे. वह चीजें खत्म होने ही नहीं
देते पहले से ही और लाकर रख देते हैं. उसे इस बारे में कुछ सोचना नहीं पड़ता. वाकई
वह बहुत भाग्यशालिनी है.
सामान्यत इस वक्त वह संगीत अभ्यास कर रही होती है, पर आज अभी तक न ही ‘ध्यान’
किया है न व्यायाम. सुबह फ्रिज की सफाई में कुछ वक्त चला गया, कुछ वक्त स्टोर से
चूहा भगाने में. एक छोटा सा चूहा जाने कहाँ से घुस आया है जो छिप जाता है. फिर उन
परिचित का फोन आया जो ससुराल के उनके घर गयीं थी. उनकी आवाज वह पहचान नहीं पाती,
उन्हें परिचय देना पड़ता है. नैनी ने कुछ दिन उनके यहाँ काम किया पर उनके अनुसार ठीक
से नहीं किया. पैसों के हिसाब को लेकर भी कुछ गलतफहमी थी, उसे वह समझाने लगीं.
नैनी ने सुबह उससे हिसाब करवाया था, जो उसे ठीक से पता नहीं था, खैर वह न जाने
क्या समझें और सोचें.. उसके मन में उनके लिए सहानुभति और पहले सा स्नेह ही है. वे
उनके यहाँ जायेंगे दीवाली के दौरान. कल ‘वृदावन सारंग’ के दो गीत लिखाये टीचर ने. अब
दोपहर को ही अभ्यास करेगी. आजकल न उसकी वाणी ही सौम्य, मधुर और अर्थपूर्ण रह गयी
है न ही खान-पान में कोई परहेज, जैसा जब चाहा कह दिया, खा लिया और हृदयहीनता की तो
हद ही नहीं है. जून को KBC का एडिक्शन हो गया है यह तक कह दिया. जून उसका इतना
ख्याल रखते हैं और उसे उनकी छोटी सी ख़ुशी भी सहन नहीं होती. सिर्फ किताबें पढ़ लेने
से या प्रवचन सुन लेने ही कोई ज्ञानी नहीं बन जाता. यह भी मन बहलाव ही है जब तक
आचरण पूर्ववत् है तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या पढ़ती है या सोचती है, सोच,
व्यवहार में तो झलकनी चाहिए न.
आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर ( संकलक ) ब्लॉग - चिठ्ठा के "विविध संकलन" कॉलम में शामिल किया गया है। कृपया हमारा मान बढ़ाने के लिए एक बार अवश्य पधारें। सादर …. अभिनन्दन।।
ReplyDeleteकृपया ब्लॉग - चिठ्ठा के लोगो अपने ब्लॉग या चिट्ठे पर लगाएँ। सादर।।
:)
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDelete"पर उसने सिर्फ एक बार विवाह के बाद मायके में यह व्रत रखा था" - दो बार विवाह करने के बाद यह व्रत रखने की परम्परा नहीं है शायद!! :) :) :)
ReplyDeleteहमारे यहाँ करवा चौथ नहीं होता, हमारे यहाँ हरितालिका तीज मनाती हैं... (आज हरितालिका तीज है और वो पूजा की तैयारी में लगी हैं).
वैसे व्रतों में मेरा भी विश्वास नहीं है, लेकिन जो करते हैं घर में, मैं उनमें मन से सहयोग करता हूँ. बहुत कुछ - स्वयम नहीं जाता औरों को पहुँचा देता मधुशाला - की तरह!!
पर्व-त्यौहारों के विषय में बहुत अच्छी बात कही है उसने. लेकिन एक शब्द खटक रहा है - भाग्यशालिनी. भाग्यशाली में दोनों ही आते हैं, पुरुष भी और स्त्री भी... हाँ, सौभाग्यवती कहा होता तो बिल्कुल जेण्डर स्पेसिफ़िक हो जाता! (वैसे मैं लिटरेचर में फिसड्डी हूँ - मेरी बात भूल भी हो सकती है).
जून की बातें जो अंतिम पंक्तियों में लिखी हैं उसपर मैं चुप रहूँगा! आफ़्टर ऑल परिवार के बीच में बाहरवाले को दखल नहीं देना चाहिये!! :) :) :)
हा हा हा,,बार बार वही गलती और बार-बार ध्यान दिलाना...मैंने भी शब्द कोष में देखा, भाग्यवान व भाग्यवती मिले पर भाग्यशालिनी शब्द नहीं मिला. आभार
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