इतने दिनों से सन्त वाणी सुनकर
उसे इतना तो निश्चय हो गया है कि उन्हें अपने जीवन को आध्यात्मिक बनाना है. बाबाजी
ने बताया, अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर उतरना, भीतर का संयोजन, नियोजन व शोधन,
आत्म विश्लेषण ! मन को उच्च आदर्शों, उत्थान, और मूल्यों के प्रति समर्पित करना,
अंतकरण को पवित्र करना और अपने मूल स्वरूप को पहचानना. ऊपरी मन बहुरूपिया है कभी
उत्थान की ओर जाता है कभी पतन की ओर ले जाता है. कभी संयमी हो जाता है कभी विलासी,
यह मन मात्र ही चरित्र का गठन नहीं कर सकता, इससे परे एक ऐसा मन भी है जिसे आत्मा
कह सकते हैं, जो निर्विकार है, जहाँ उतार-चढ़ाव नहीं हैं. वहीं तक पहुंचना, अभ्यास
व वैराग्य के द्वारा वहाँ तक पहुंचना ही अध्यात्म है. इसके लिए जरूरी है उनकी आस्था
का केंद्र उच्च हो, मन में श्रद्धा हो. मन इच्छाओं से मुक्त हो, ऐसा मन निर्मल
आकाश की तरह है - स्वच्छ, असीम, अनंत ! जीवन यदि प्रेम, भावना, करुणा से युक्त हो
तो मन आत्मा में ही रहता है.
आज उसने फिर सुना, प्रेम एक व्यापक तत्व है, समन्दर की तरह विशाल और आकाश की तरह
निस्सीम ! मोह संकीर्ण धारा की तरह है, मोह बंधन में डालता है जबकि प्रेम मुक्त
करता है. रात से ही वर्षा की झड़ी लगी थी, जून और नन्हा जब गये तो वर्षा हो ही रही
थी, अब थमी है, आकाश जो बादलों से ढक गया था फिर स्पष्ट दिखाई दे रहा है, नीला
आकाश जो उसके मन का स्वभाव है, स्वच्छ, निर्मल विशाल और मुक्त ! उन्हें अपने मन के
उसी स्वभाव में रहना सीखना है, विचारों के बादल उसे आच्छादित कर भी लें तो भी
उन्हें उसकी स्मृति को बनाये रखना है प्रतिपल, प्रतिक्षण ! उसका मन जो चारों
दिशाओं में बिखरा-बिखरा सा रहता है उसे एकत्रित करना है एक रूप देना है, यानि
प्रतिक्षण जागरूक रहना है. यह संसार जैसा उसे दिखाई देता है वास्तव में वैसा है
नहीं, प्रतिक्षण बदलते इस संसार को साक्षी भाव से देखते जाना है. दीदी ने बहुत
पहले लिखा था, प्रतिक्रिया ही दुःख का कारण है, देर-सबेर सत्य अपने आप ही सम्मुख आ
जाता है, सत्य की स्थापना नहीं करनी पडती, वह तो स्वयंभू है.
Sunday , it
is quarter to eight in the evening. Today they got up at six in the morning,
did all Sunday jobs, went for a walk in the afternoon. Watched ‘tera jadu chal gya’ on tv, talked to parents
and one friend, who came back today from Bombay. Now they are watching
‘Rishtey’ on Zee tv. Nanha is studying in his room, jun is here with her. ‘Rishtey’ is very very touchy and
warm serial, really they feel it in their
heart.
धर्म उसका है जो उस पर चलता है. जो खुद के प्रति ईमानदार है. जो नये-नये कर्म
बंधन नहीं बांधता, ह्रदय में जो गांठे पड़ गयी हैं उन्हें खोलता चलता है. जो स्वयं
के लिए सुख-सुविधापूर्ण जीवन की अभिलाषा नहीं रखता बल्कि जैसा समय और परिस्थितियां
हों स्वयं को उनके अनुसार ढाल लेता है. धर्म तो भीतर की वस्तु है, अंतर्मन की,
भीतर क्या-क्या चल रहा है, क्या वे अपने सहज स्वाभाविक रूप में सदा रह पाते हैं या
अपने आप से नजरें चुराते हैं, यदि वे स्वयं की नजरों में धार्मिक हैं तभी दुनिया
की नजरों में धार्मिक बने रहने का उन्हें अधिकार है.
उन्हें ऊपर की ओर उठना है, नीचे गिरना तो सहज है, पतन के लिए प्रयास नहीं करना
पड़ता, पुरुषार्थ तो उसी में है जब मन आत्मा में स्थित रहे. आज उन्हें दिगबोई जाना
है, नन्हे के स्कूल में पैरेंट-टीचर मीटिंग है. अगले सोमवार से उसकी परीक्षाएं
आरम्भ हो रही हैं. तैयारी ठीक चल रही है, अब हर वक्त उसे उसके साथ नहीं बैठना
होता, स्वयं ही याद करता है, स्वयं को ही सुनाता है. उसे उसकी पढ़ाई से कोई शिकायत
नहीं है, जून और वह दोनों संतुष्ट हैं कि उनका पुत्र बुद्धिमान है. कल दोपहर को
पहली बार उसे कुछ असहज सा महसूस हुआ शरीर में, कल रात ठीक से सो नहीं पायी. आज सुबह
से ही फिर अस्वस्थ महसूस कर रही है. आज ही किचन में रंग-रोगन होने की भी बात थी पर
रात से लगातार होती वर्षा के कारण शायद वे लोग आज न आयें, यही बेहतर होगा. कल शाम
वे एक मित्र-दंपत्ति से मिलने गये. अगले महीने वे फिर अगले इलाज के लिए जा रहे
हैं. ईश्वर चाहेंगे तो उसकी सखी की दिली इच्छा कि वह माँ बने जल्दी ही पूरी होगी.
इतने दिनों के हमारे साथ का यह प्रभाव मुझपर हुआ है कि मेरे अन्दर भी आध्यात्मिकता का पुनर संचार होने लगा है... आध्यात्म का सही अर्थ बता दिया बाबा जी ने.. बल्कि मैं आज शीर्षक से को-रेलेट करके सोच रहा था.. अध्यात्म रंग रोगन की तरह ही तो है जो अंतरात्मा पर उच्च आदर्शों और मूल्यों का... एक बार जो यह रंग चढ़ गया तो तो बस मैं भी हो गयी लाल!!
ReplyDeleteरक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
वाह तब तो शीर्षक हो सकता था..मन की रंगाई....या आत्मा की पुताई..सचमुच एक बार जो उसका हो गया फिर लौटना नहीं होता..
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