लहरें सागर में जन्मती, रहती और
नष्ट होती हैं पर मानवों को इसका भान नहीं होता, ऐसे ही वे ईश्वर में ही जन्मते,
रहते और नष्ट होते हैं. उन्हें अपने अस्तित्त्व का भान अपने जिंदा रहने का प्रमाण
मृत्यु के समय मिलता है. जीवन भर वे मृतकों के समान जीते रहते हैं, एक बेहोशी की
हालत में, तभी उन्हें अपने भीतर रहने वाले ईश्वर के दर्शन नहीं होते. वे हर पल
बाहर की ओर भाग रहे हैं, अपने आप से दूर होते जा रहे हैं, और फिर एकाएक मौत का
बुलावा आ जाता है तब मुड़कर देखने का भी
वक्त नहीं होता. उन्हें समय रहते जागना होगा. जीवन में सन्यास घटित हो जाये तो
अनासक्त होकर, अलिप्त होकर जीना आ जाये. जो भीतर जायेगा वह भी-तर जायेगा. मौन रहते
हुए, वाणी का सदुपयोग करते हुए परिवार जनों से, परिचितों से व्यवहार करना होगा. मन
के दरवाजे खोलकर, झाड़-बुहार कर उस पाहुने की प्रतीक्षा करनी होगी जो आने के लिए
स्वयं ही प्रतीक्षा कर रहा है. क्रन्तिकारी सन्त की बातें हृदय पर गहरा असर छोडती
हैं, बाबाजी ने भी उसी बात को आगे बढ़ाया, और कहा कि ईश्वर ही सबसे बड़ा सुह्रद है,
परम हितैषी है, सदा , सर्वदा सबके साथ है, उसे कोई देखना नहीं चाहता इसीलिए देख
नहीं पाता. मन पर माया का पर्दा है, जब मन विकार रहित होगा, निर्मल होगा तभी उसके
दर्शन होंगे. उसे प्रतिक्षण अपने पर नजर रखनी होगी, वाणी पर संयम रखना होगा.
सांसारिक वस्तुओं का आकर्षण धीरे-धीरे खत्म हो रहा है ऐसा लग तो रहा है, हर पल मन
खुश रहता तो है, विवेक को जगाये रखना होगा. अपने कर्त्तव्यों का भली-भांति पालन कर
सके, अपनी आवश्यकताओं को कम से कम करते हुए सात्विक जीवन बिताये, न सुख-सुविधाओं
का आग्रह रहे न ही प्रतिकूलताओं से भय लगे. हे ईश्वर अब यही प्रार्थना तुझसे है !
अभी-अभी नन्हा अस्पताल से वापस आ गया है, उसे लगा था कि डाक्टर आज ही उसका
प्लास्टर खोल देंगे पर उन्होंने दो दिन और रखने को कहा है. वह इसी कारण आज स्कूल
भी नहीं गया. अज से नवरात्रि भी शुरू हो गयी है. अब साढ़े आठ होने को हैं, पिछले एक
घंटे में उसने सन्त वाणी सुनी, नन्हे से साइंटिस्ट्स के बारे में पूछा, नैनी को
पैसे दिए और इस वक्त मन में कहीं हल्की सी चुभन है, लेकिन जब उसका परम हितैषी उसके
साथ है तो संशय कैसा, किसी भी परिस्थिति में कैसे भी रहे, वह सुहृद तो सदा-सर्वदा
साथ रहता है. फिर यह तनाव क्यों ? आज क्रन्तिकारी सन्त का भाषण नहीं सुन पायी,
क्या इसीलिए ? उनकी बातें झकझोर कर रख देती हैं और बाबा जी की बातें मरहम का काम
करती हैं. कल मंझले भाई को पत्र लिखने का विचार मन में आया था पर विचार
कार्यान्वित नहीं कर पाई. आज लिखेगी.
Yesterday they
went to Digboi, tinsukiya then again Digboi. It was good to meet Sardarji’s
family in digboi and the shopping spree in TSK. They purchased new curtains fur
drawing room, new cushions and covers for bed room, new dresses for her and
Nanha, dry fruits and other grocery items for their kitchen from a new shop, ‘kaamdhenu’. In Nanha’s school they
enjoyed very much. They took idli and dosa with samber and chutney, drank
coffee and watched children doing different types of jobs, selling things,
playing games, selling tea and coffee with teachers helping them and vice verse. Today jun is doing his office work, Nanha is
watching TV and she is thinking what to do first- she has so many jobs to
do-sewing the curtains, sewing the cushion covers, altering her new white
dress, sewing fall to her new sari, arranging her wardrobe, arranging drawing
room for puja, cutting the Olympics news and pasting them in file, writing new
poem.
Today’s
quotation is, Ability is of little
account without opportunity - Napoleon
…and they all have golden opportunity- to live
a life which is pure, blissful and simple. Today is the birth anniversary of one great soul, in fact two great souls. Father of
nation “Bapu” and great leader Lal Bahadur Shastriji. Jun and
Nanha are also at home. She has done all her morning chores. Jun suggested that
they should go tsk to change Nanha’s shirt, which they bought for him but which
he did not like. Jun has gone to deptt for some job. They can go after lunch. One
friend called to say that they will not go with them but want something from
TSK for their sun’s birthday.
आज मेरे कहने के लिये कुछ नहीं है... परमात्मा की प्रार्थना में उसके साथ मेरा भी स्वर सम्मिलित माना जाए. नन्हा का प्लास्टर भारतवर्ष की पंचवर्षीय योजना की तरह हो गया है.. पूअर चाइल्ड!!
ReplyDeleteएक बार एक कविता में मैंने मध्य प्रदेश के स्थान पर म.प्र. लिखे जाने पर टोक दिया था कवि को, जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था. लेकिन यह न तो कविता है न कहानी (एक जीवन - एक कहानी अवश्य है) इसलिये तिनसुकिया के स्थान पर टीएसके को नज़रअन्दाज़ कर रहा हूँ!
:) :)
ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया, कोई भी नाम हो पूरा ही लिखा जाना चाहिए
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