मन ही मुक्ति के आकाश में
उड़ना सिखाता है, मन ही बंधन की खाई में पटक देता है. मन को सात्विक आहार, एकाग्रता
और अनासक्ति मिले तभी वह ऊंचे केन्द्रों में रह सकेगा, ये सुंदर वचन आज ही उसने
सुने थे. आजकल उसके मन ने एक नई आसक्ति पैदा कर ली है, टीवी के एक कार्यक्रम के
प्रति, निश्चित समय होते ही अपने आप कदम टीवी की ओर बढ़ते हैं, इस आसक्ति की जड़ों
को गहरा होने से पूर्व ही काटना होगा. अपने को आगे ले जाना है न कि पीछे, मुक्त
होना है न कि नये-नये बंधनों में स्वयं को बांधना है. माँ-पिता का पत्र आये हफ्तों
हो गये हैं, उसे पत्र लिखे हुए भी, नन्हे की बात लिखने का मन ही नहीं होता, क्यों,
सही कारण शायद उसे खुद भी मालूम नहीं है. उन्हें बुरा लगेगा और माँ जो पहले ही
अस्वस्थ हैं, उन्हें दुखद समाचार न ही दिए जाएँ तो बेहतर है. चचेरे भाई का पत्र
आया है, जिसका जवाब देना ही पड़ेगा. वर्षों बाद बिन माँ के बच्चों के जीवन में
खुशियाँ आने वाली हैं. बहन की शादी तय हो गयी हैं, भाई के लिए भी बात चल रही है. उन्हें
एक बधाई कार्ड भेजना चाहिए. जून को कहेगी तो वे अवश्य ला देंगे. जून ने उसे कभी
निराश नहीं किया, विवाह में वे क्या देंगे यह भी उन्होंने उस पर ही छोड़ दिया है.
माँ से फोन करके इस बारे में बताना होगा. अगले हफ्ते भांजी का जन्मदिन है, उसे
बधाई देते समय मंझले भाई से भी बात हो जाएगी.
आज इस क्षण ऐसा लग रहा है कि दिनों बाद स्वयं से मिल रही है. पिछले दिनों जीवन
क्रम चलता रहा, कुछ सहज, कुछ असहज क्षण आये, किन्हीं पलों में मन कृतज्ञ हुआ,
आनन्दित भी हुई जब ओलम्पिक खेलों का उद्घाटन समारोह देखा, कुछ दृश्य अद्भुत थे. फिर
कुछ लोगों से मिलना भी हुआ, उनके परिचित ही हैं पर कई बार वर्षों जानने के बाद भी
कुछ अनजाना रह ही जाता है. नन्हा स्कूल से आया तो बहुत खुश था, उसके मित्रों ने
बहुत सहायता की और उसे जरा भी परेशानी नहीं हुई बस में, ऐसा उसने कहा. कल
विश्वकर्मा पूजा थी, जून ने ऑफिस में ही लंच लिया. उनका दूधवाला भी इस दिन अपनी साइकिल
की पूजा करता है, अच्छी तरह धो-पोंछ कर माला चढ़ाता है. लोगों को आस्था के लिए कुछ
तो चाहिए, गोयनकाजी कहते हैं कि नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई नाम नहीं, किसी परम्परा
का सहारा नहीं, बस प्रतिक्षण अपनी श्वास को देखते जाना है. साँस का सीधा संबंध मन
से है जहाँ मन में उद्ग्विनता जगी कि साँस तेज हो जाती है. मन शांत है तो साँस भी
नीरव धारा की तरह समान गति से चलती है. अपने मन में किसी आत्मा या परमात्मा के
दर्शन करने के उद्देश्य से नहीं बैठना है बल्कि मन को विकारों से मुक्त करते जाना
है. पहले तो विकारों के दर्शन होंगे फिर धीरे-धीरे संस्कार मिटेंगे, गांठे
खुलेंगी, पर्दे हटेंगे तो मुक्त आकाश सा मन सम्मुख होगा जिसे कोई भी नाम दे दें,
आत्मा या परमात्मा. मन में ऊपर-ऊपर से तो लगता है कि स्वच्छता आ गयी है निर्मलता आ
गयी है पर जरा प्रतिकूल परिस्थिति आते ही कैसा बेचैन हो उठता है, किसी को को कुछ
देकर पछताने लगता है, किसी के कुछ मांगने पर व्याकुल हो उठता है. यह विकारों का ही
तो सूचक है. जो हो रहा है चाहे वह शरीर के स्तर पर हो या बाहर, साक्षी भाव से
देखना आ जाये तो मन शांत रहना सीख लेगा.
आज सुबह माँ से बात की, वे सोलन में हैं, बहन, बच्चे व पिता जी घूमने गये थे. सुबह
ध्यान में बैठी तो एक फोन आया, एकाएक उठना सम्भव नहीं था, पता नहीं किसका था.
बगीचे से एक पपीता तोड़ा है जरा सा पकते ही पक्षी खाना शुरू कर देते हैं, उनका यह
पपीते का वृक्ष बहुत मीठे व रस भरे फल देता है निस्वार्थ भाव से, ऐसे ही मानव को
चाहिए कि दूसरों के काम आए. अभी तक तो वे संचित पुण्यों के फलस्वरूप प्राप्त वैभव
का आनंद ले रहे हैं, लेकिन कभी तो ये संचित पुण्य समाप्त हो जायेंगे. भविष्य के
लिए नये पुण्यों का संचय इसीलिए करना चाहिए. सद्विचारों से, सद्कर्मों से तथा
सद्भावों से. ईश्वर से प्रार्थना भी इसी बात की करनी चाहिए कि कोई असद्विचार न
जन्मे, यदि एक बार बीज पड़ गया तो अनुकूलता पाते ही वह पनपेगा अवश्य. कभी-कभी क्रोध
व् द्वेष के भाव जो न चाहने पर भी मन को घेर लेते हैं वे इसी का सूचक हैं कि कभी न
कभी बीज बोये जरूर गये थे. सुबह जल विभाग के लोग आये थे जो कल दोपहर को भी आए थे,
पानी आजकल बहुत कम आता है, ऊपर चढ़ता ही नहीं, अपनी आँखों से देखकर गये हैं शायद
अगले कुछ दिनों में सुधार हो. ओलम्पिक में भारत ने अर्जेंटीना को तीन गोल से हरा
दिया अपने पहले मैच में. अटलजी ने उस दिन अमेरिका में कहा, पाकिस्तान से क्या बात
करें, मौसम की अथवा बीवी-बच्चों की, उनकी चुटकियाँ लाजवाब थीं.
मैं ख़ुद भी सोच रहा था कि उससे कहूँ कि टीवी के इस कार्यक्रम विशेष के प्रति उसकी आसक्ति अच्छी नहीं... एक बन्धन है, जो हमेशा मुक्ति के मार्ग में बाधक होता है... परिवार में अच्छे सन्देशों का संचार सभी को खुश कर देता है... खुशियों का भी एक मौसम होता है... बिना किसी प्लानिंग के कभी-कभी लगता है कि हर ओर से सुखद समाचार प्राप्त हो रहे हैं.
ReplyDeleteभविष्य के लिये पुण्य का संचयन एक सकारात्मक सोच है. एक बच्चा ट्रेन में खिड़की से बाहर का दृश्य देख रहा था. सामने एक व्यक्ति थैली में से कुछ निकाल निकालकर बाहर फेंकता जा रहा था. उस बच्चे को बड़ा अजीब लगा, लेकिन अनजान लोगों से बात करने में हिचक रहा था, इसलिये पूछ नहीं पाया. बरसों बाद जब वो बच्चा एक युवक के रूप में ट्रेन से उसी मार्ग पर यात्रा कर रहा था तो उसने देखा कि लाइन के किनारे बहुत खूबसूरत छायादार और सुन्दर फूलों से लदे पेड़ लगे हुए थे. उसे अचानक याद आया कि बरसों पहले वो अनजान व्यक्ति शायद इन्हीं पेड़ों के बीज बिखेर रहा होगा खिड़की से.
यही तो है पुण्य, ख़ुद के लिये नहीं आगामी पीढ़ी के लिये!
सचमुच पुण्य वही है जो सबके हित में हो देखा जाये तो जो सबके हित में न हो वह अक्सर अपने हित में भी नहीं होता..
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