कल शाम वह नैनी पर झुंझलाई और आज सुबह स्वीपर पर, दोनों
अपने काम को टालने का प्रयत्न कर रहे थे. कभी-कभी ऊपर से क्रोध करना जरूरी हो जाता
है, पर क्या वास्तव में सिर्फ ऊपर से ही क्रोध कर रही थी? इसका एक प्रमाण तो यह है
कि अगले ही पल मन शांत था जबकि पहले देर तक असर रहता था. पूसी ने अपने बच्चों को
बाहर खुले में ही रख छोड़ा है, जून का विचार है कि उन्हें प्राकृतिक रूप से पलने-बढ़ने
दिया जाये, उसका भी यही विचार है, उस दिन उनके लिए दफ्ती के डिब्बे का घर
बनाते-बनाते स्वयं को रोक लिया. आज भी धूप निकली है पर हवा बह रही है वह बाहर लॉन
में ही बैठी है. दूर से किसी वाहन की आवाज आ रही है. कभी संगीत की और पंछियों की
आवाजें भी ध्यान से सुनने पर आती हैं. कल शाम की पार्टी में पता चला कि ग्रेटर
नोएडा में अपना घर बनाने के लिए जो सोसायटी बनाई गयी है उसमें ज्यादातर लोग रहने
के लिए नहीं बल्कि इन्वेस्टमेंट के लिए पैसा लगा रहे हैं. जून भी कल की मीटिंग से
ज्यादा खुश नहीं थे. पहली किश्त भरने के लिए उन्होंने पहले मकान के किराये के जमा
हुए पैसे मंगाए हैं. सबकी बातें सुनकर तो उसे लगा कि एक बार और उन्हें भी सोच लेना
चाहिए. रोज के कामों के आलावा आज उसे नन्हे का स्वेटर बनाना है, सुभाष चन्द्र बोस
व शंकरदेव पर किताबें भी पढनी हैं. पत्रिकाएँ और अख़बार तो हैं ही. कविताओं वाली
डायरी खोलनी है. बगीचे में भी कुछ समय देना है. कुल मिलाकर आज का दिन व्यस्त रहने
वाला है.
आज उसने जो सुना, उसका सार
था, “साधना करने के लिए सम्पूर्ण समर्पण चाहिए, श्रद्धा, भावना और विश्वास चाहिये,
पुलक चाहिए, मन को पूरी तरह अहंकार से मुक्त करना होगा. भीतर डूबना आना चाहिए.
ध्यानस्थ होना पड़ता है. अपने चित्त की सौम्यता को नष्ट नहीं होने देना चाहिए.
मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा के भाव रखते हुए अपने चित्त को प्रसन्न रखना
होगा. समय की धारा के साथ पुराने कर्मों का लेन-देन चलता रहता है. नये कर्मों का
बंधन न बने यही प्रयास करना चाहिए.
कल वह गाने की प्रैक्टिस
में नहीं जा सकी, आज साढ़े पांच बजे जाना है. परसों मीटिंग है. वह बाहर है गेंदे की
क्यारी के पास, अभी एकाध फूल ही खिले हैं इसमें. आज सुबह माँ से फोन पर बात की. कल
चचेरी बहन की शादी अच्छी तरह सम्पन्न हो गयी. उसके मामा के परिवार ने काफी कुछ
दिया. इधर उनकी तरफ से सभी का सहयोग रहा. यहाँ बाहर बैठकर चेहरे पर जो शीतल हवा
छूकर जाती है, भली लगती है, उसका अहसास अंदर घर में नहीं हो सकता, पर तरह-तरह की
आवाजें आती रहती हैं सो गम्भीर कार्य नहीं हो पाते. आज सुबह वह जल्दी उठी थी सो सभी
कार्य समय से सम्पन्न हो चुके हैं. आजकल जून के प्रति उसका व्यवहार थोड़ा कम
स्नेहपूर्ण रहता है. छोटी-छोटी बातों से चिढ़कर वह जवाब दे देती है. सहनशीलता खोती
जा रही है या फिर अपनापन बढ़ता जा रहा है. अब
संगीत का समय है सो अंदर जाना चाहिए.
जीवन में ज्ञान और ध्यान हो
तभी मुक्ति सम्भव है ! कल सुबह उसके दायें हाथ की अंगूठे के पास वाली अंगुली में
जोड़ पर एक कांटा लग गया, बात छोटी सी है पर उसके मन ने उस हल्के दर्द को भी बड़ा
मानकर देखा. नन्हे के हाथ का दर्द इससे कहीं ज्यादा रहा होगा लेकिन उसने संयम से
सहा. इस वक्त सुबह के साढ़े सात बजे हैं वह टीवी पर बाबाजी के आने की प्रतीक्षा में है.
“अपने मन. बुद्धि, विचार
को देखने वाला इनसे अलग है, यदि इनसे जुडकर रहेंगे तो सही निर्णय नहीं कर पाएंगे. देह,
मन बुद्धि के साथ जुड़कर कोई ‘स्वयं’ को खो देता है. इसका कारण तमो व रजो गुण है.
यदि सात्विक गुण की प्रधानता हो तो धीरे-धीरे इन से मुक्त होना आयेगा. तमो गुण की
प्रधानता का अर्थ है आलस्य व स्वार्थ और रजो गुण की प्रधानता का अर्थ है अपने
मान-सम्मान की वृद्धि का सदा प्रयास करते रहना. देह की आवश्यकता सांसारिक वस्तुएं
हैं, पर ‘स्वयं’ की आवश्यकता परमात्मा का स्वभाव है. ‘स्वयं’ को खोजना ही वास्तविक
विज्ञान है. अंत में उन्होंने कहा एहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिन भर प्रयास
चलता रहता है पर स्वयं की आवश्यकता को नजर अंदाज कर दिया जाता है.
कभी कभी उसका व्यवहार अपने अपनों के प्रति भी अजीब सा हो जाता है... नैनी पर झुंझलाना, स्वीपर को डपटना या फिर जून से उतना स्नेहपूर्ण व्यवहार न करना. विज्ञान का विद्यार्थी हूँ इसलिये इन सभी अपवादों को नियम की सत्यता का प्रमान मान लेता हूँ. मानव की स्वभावगत कमज़ोरियाँ हैं यह.
ReplyDeleteपालतू पशुओं को भी प्राकृतिक वातावरण प्रदान करने से उनका विकास सही ढंग से हो पाता है.
आजकल मकान ख़रीदना बहुतों के लिये एक इंवेस्टमेण्ट का ही एक माध्यम है. एक बार पुन: आपने मेरे अन्दर के बैंकर को उकसा दिया. बैंकों की आवास ऋण योजना रहने के लिये आवास उपलब्ध कराती है तथा यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि यह ऋण किसी भी तौर पर स्पेक्युलेटिव परपज़ के लिये नहीं दिया जा रहा है. जबकि होता इसका उलट है!!
अंत में उसके लिये मेरी एक सलाह:
"हाँ बाहर बैठकर चेहरे पर जो शीतल हवा छूकर जाती है, भली लगती है"
इसे इस तरह अगर वो महसूस करे कि
"हाँ बाहर बैठकर चेहरे पर जो शीतल पवन छूकर जाती है, भली लगती है"
तो शायद उसे ठण्डक और भी अधिक महसूस होगी! :) :)
सचमुच शब्दों को बदल देने से भाव भी बदल जाते हैं..आपकी टिप्पणियों से विभिन्न विषयों की जानकारी बढ़ रही है
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