Monday, August 25, 2014

इंदिरा प्रिय दर्शिनी



“To have the inward beauty, there must be complete abandonment; the sense of not being held, of no restrain, no defense, no resistance; but abandonment becomes choice if there is no austerity with it. To be austere is to be satisfied with little and not to think in terms of the more. It is the simplicity born of  abandonment with austerity that brings about the state of creative beauty. But if there is no love you can not be simple, you can not be austere”. These words were told by Krishnamurti to his listeners. She too is his listener. He says such nice things which touch the heart. Yesterday they saw a movie “ dil pat mat le yar” hero Ramsharan was a simple and loving person but time changes him into a murderer. Today morning  is pink warm and pleasant.  दो दिन बाद नवम्बर शुरू हो रहा है, यानि सर्दियों का पहला महीना, उन्हें गरम कपड़े निकालने हैं, सूती रखने हैं. आज यूँ लग रहा है जैसे कई दिनों बाद इस निस्तब्धता का अनुभव किया है, चारों ओर कैसी शांति है. नन्हे की आज हिंदी की परीक्षा है, जून का फील्ड जॉब चल रहा है. आजकल वह ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं, जो उसे अच्छा लगता है. इन्सान का जीवन कर्मयुक्त हो तभी शोभित होता है. बगीचे में नन्हे-नन्हे पौधे निकल रहे हैं जो भले लगते हैं.

आज श्रीमती इंदिरा गाँधी की पुण्य तिथि है, जब उनका स्वर्गवास हुआ था, तब वह मुज्जफरपुर में थी, कितने बुरे हालात हो गये थे उसके बाद उस मोहल्ले में. धूप आज भी मोहक लग रही है. उसके बाल अभी भीगे हैं, बगीचे में धूप सेंकते हुए चाय की चुस्कियां लेना और फूलों को निहारना, सभी कल्पनाओं को साकार करने का मौसम आ गया है. कल सुबह दो सखियों से फोन पर बतकही की. दोपहर को संगीत की अंतिम कक्षा में गयी. शाम को एक मित्र परिवार आया, उसने उन्हें कैलेंडुला और जीनिया की पौध दी. आज जून डिब्रूगढ़ गये हैं, उनकी यात्रा से वापसी की टिकट करने. देर से आएंगे. लंच उसे अकेले ही करना होगा, चाहे और रह सके तो उनका इंतजार भी कर सकती है. जून ने उसे कुछ और पैसे लाकर दिए पर पैसों की भाषा उसकी समझ में नहीं आती, कोई आकर्षण महसूस नहीं होता. उसकी सारी आवश्यकताएं अपने आप ही पूरी हो जाती हैं शायद इसीलिए, और देख रही है नन्हे को भी पैसों का कोई लोभ नहीं है जो बहुत अच्छा ही है. जून उनका हर तरह से ख्याल रखते हैं. आज बाबाजी ने बताया कि हर वस्तु, व्यक्ति, स्थान में परम की सत्ता का अनुभव करना होगा. उसी का तेज चहूँ ओर फैला है, उसके ब्रह्मांड के हम निवासी हैं. उसका बोध उन्हें हर पल अपने तन में होने वाली धड़कनों से, बहते हुए रक्त प्रवाह से. आँखों की ज्योति से और आंतरिक शांति से होता है. वह उनके कितने निकट है !

Today Nanha is at home due to some ‘bandh call’, Jun had to go to office by walking. She is not at ease with her this moment due to Nanha’s habit of doing things slowly. He got up at seven and till now he took bath and ate breakfast only. She has done her morning jobs and after writing will riyaz. She told him to use his time properly but of no use. Now she is able to see each and every reaction of her mind to different situations. At this moment it is tense and lo ! as soon as she wrote it is tense, it relaxed, so the best way to cope with any adversity is to accept it and then all becomes easy.





2 comments:

  1. कृष्णमूर्ति, गरम कपड़े, सर्दियों की आमद और जून की कर्तव्यपरायणता पर उसके विचार... सब बहुत ही प्यारे!
    उसकी बातों पर तालियाँ बजाने नन्हे नन्हे पौधे भी बगान में खिल उठे हैं..!

    जब इन्दिरा जी की हत्या हुई थी तब वो मुज़फ़्फ़रपुर में थी और मैं पटना में.. आज भी वह दृश्य आँखों में ताज़ा है. हम छठ की समाप्ति पर "जाने भी दो यारो" फ़िल्म देखने गये थे - नून शो! और जब बाहर निकले तो आग ही आग!!

    पैसों को लेकर उसके विचार मुझसे बहुत मिलते हैं. कभी पैसों के पीछे नहीं भागा, इसलिये पैसे झख मारकर पीछे भागते रहे! मगर आज भी अपनी ज़रूरत चादर के अन्दर पैरों की सलामती ही रही!

    और आख़िर में - ज़र्रे ज़र्रे में उसी का नूर है!!

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  2. सत्य के पथ के यात्री समान रूप से सोचते हों इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए..सत्य तो एक ही है न..

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