Abraham Lincoln says, Most people are about as happy as
they make up their minds to be. She is agreed with him… Yes, she has made her
mind to be happy always ! yesterday she was busy in sewing fall to new saree
and mending new dress so could not open diary. In the evening they went to meet
and have dinner with one friend’s guest, they(four) all are happy, social persons.
Daughter is fat and sun is studious(seems to be) lady is talkative and has
jolly nature. Today she has invited them in their house for dinner. Nanha and
she will decorate the house and prepare food. He takes interest in keeping the
house clean and in cooking also. Jun(these days) is busy in his office work. Yesterday
she got didi’s letter after so many days. It was good and informative, she will
write her too and to brother also. Babaji told that God is always there so
never consider alone or helpless in any condition. Her mind is full of love for God, babaji and all.
She is at peace with herself most of the time. God’s love is great and sometimes
she feels very protective towards it. She enjoys each and every moment of her
stay at mother earth and she…
उसे लगा कि वे दुनियावी बातों में इस कदर उलझे रहते हैं कि सर उठाकर देखने की फुर्सत
भी नहीं निकाल पाते कि उलझाव से परे भी कोई दुनिया है. वे इस बात से बेखबर ही रहते
हैं कि कहीं कोई उलझन है. इसी भटकाव को जिन्दगी मानकर चलते चले जाते हैं, जैसे
पतंगों को दीपक की लौ में मर जाना ही अपने जीवन का परम उद्देश्य लगता है वैसे ही
वे भी इन रोजमर्रा के साधारण से दिखने वाले कामों में अपनी ऊर्जा (शारीरिक, मानसिक
तथा आत्मिक ) खपाते रहते हैं. इस ऊर्जा का कोई और भी उपयोग हो सकता है सोचने की
जरूरत ही महसूस नहीं करते. ईश्वर से की गयी प्रार्थनाएं भी स्वार्थ से परिपूर्ण
होती हैं. वे यही चाहते हैं कि इन झंझटों में वृद्धि हो कि वे इनमें और उलझे रहें,
मदहोश रहें ताकि बड़े प्रश्नों से बचे रहें, ऐसे सवाल जो मन को झकझोरते हैं, आत्मा
को कटघरे में खड़ा करते हैं, वे इस भूलभुलैया में मग्न रहना चाहते हैं.
दो अक्तूबर को पूज्य बापू के जन्मदिवस के अवसर पर उसने उनकी आत्मकथा ‘सत्य के
प्रयोग’ पढ़नी आरम्भ की थी जो अभी कुछ देर पूर्व ही समाप्त की है. उनके जीवन को
जितना गहराई से देखें उतने ही अद्भुत प्रसंग व आख्यान मिलते हैं. सागर की तरह
विशाल और गहरा है उनका जीवन, आत्मशुद्धि के लिए उनका प्रयास और उसके लिए किसी भी
स्तर तक पहुंच जाने की उनकी आतुरता, नम्रता में वह सबसे आगे थे तो निर्भीकता में
भी. उनकी कथनी व करनी में कोई भेद नहीं था, वह महानतम थे. उनकी इस पुस्तक से
आत्मदर्शन की प्रेरणा मिलती है, उसके लिए मार्ग मिलता है, सत्य और अहिंसा के प्रति
श्रद्धा जगती है. यदि प्रतिपल वह सत्य की खोज में चलती रहे तो ईश्वर दर्शन सम्भव
है और अहिंसक हुए बिना वह सत्य को नहीं पा सकती. अहिंसा मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों
से होनी चाहिए. उसका सौभाग्य है कि गाँधी भारत में हुए थे. उनकी बातें, उनके आदेश
व उनके प्रयोग आज भी प्रासंगिक हैं, वे शाश्वत हैं क्यों कि आत्मदर्शन की इच्छा शाश्वत
है, ईश्वर की खोज शाश्वत है. जैसे बाहरी शुद्धि आवश्यक है, उसी तरह मानसिक व
आंतरिक शुद्धि भी. जितनी देर कोई मन का प्रक्षालन करता है, शांति का अनुभव होता
है, लेकिन जैसे ही कोई विकार प्रबल होता है तो मन अशांत हो जाता है. बाबाजी ने
कहा, प्रतिक्रमण सीखना है, अविद्या के कारण उत्पन्न हुए दोषों को देखना है.
इच्छाओं को संयमित करना ही धर्म है, उन्हें शुद्ध करना ही उपासना है और उन्हें
निवृत करना ही योग है. योग ही लक्ष्य है.
गान्धी जी के लिये आपके विचारों को पढ़कर वह चौपाई याद आ रही है --जाकी रही भावना जैसी ...। अच्छा लगा पढ़कर ।
ReplyDeleteगिरिजाजी, बापू का जीवन बहुत आयाम लिए है जिसे जो भाये वह देख ले..आभार !
ReplyDeleteबापू की आत्मकथा के प्रसंगविशेष के आधार पर मेरी माँ (आ. प्रतिभा सक्सेना जी) ने एक लघुकथा लिखी थी. कथानक इतना सशक्त था कि मैं चकित रह गया. लेकिन मेरी दीदी (आ. गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी) ने इसपर भीषण आपत्ति दर्ज़ की. मैंने भी दीदी के लिये कुछ कटु टिप्पणियाँ कर दी थीं. लेकिन स्वस्थ सम्बन्ध ऐसे ही होते हैं, इन बातों से कटुता नहीं आती सम्बन्धों में. लेकिन इस विवाद का एक नुकसान यह हुआ कि माँ ने अपने ब्लॉग से वह कथा डिलीट कर दी!
ReplyDeleteसही कहा है आपने, अब हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार तो है ही..
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