Monday, August 4, 2014

कौन बनेगा करोड़पति


कल रात फिर कई स्वप्न देखे पर अब कोई याद नहीं है. सुबह वे उठे तो रोज से देर हो गयी थी. बादल आज भी बने हैं, हल्की बूंदा-बांदी हुई और मौसम कल से बेहतर हो गया है. आज उसका राजसी भाव जाग्रत है तभी मौसम का ख्याल आ रहा है. सात्विक भाव अधिक दिन टिकता नहीं, कारण कई हो सकते हैं एक टीवी भी हो सकता है. “जिन्दगी के बोझ को हंसकर उठाना चाहिए, राह की दुश्वारियों पे मुस्कुराना चाहिए”. सदाचारी बलवान होता है. आज बाबा जी के प्रवचन में स्कूल के बच्चे बैठे हैं. दस बजकर बीस मिनट हो गये हैं, यानि उसके पास केवल दस मिनट हैं लिखने के लिए, फिर किचन में जाना है. आज सुबह-सुबह माली का बेटा आया गया, लॉन में घास काट दी है और कल ही नैनी के बेटे ने हेज काट दी है, पर अभी भी बहुत काम शेष है. धीरे-धीरे सब हो जायेगा, और बगीचा पहले के समान सुंदर हो जायेगा. कल रात वे ‘कौन बनेगा करोड़पति’ देखकर सोये थे. रात को स्वप्न सम्भवतः इसी संबंध में रहे होंगे. अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज और मुस्कुराहट से सारे हिंदुस्तान का दिल जीत लिया है. कल दो पत्र मिले, एक फुफेरी बहन का और दूसरा छोटे भाई का. जून के लिए जन्मदिन का सुंदर कार्ड भी भाई ने भेजा है. नन्हे का टेस्ट ठीक रहा, कल उसने परीक्षा फार्म भी जमा कर दिया.

उसने सुना, मन का माधुर्य बनाये रखना, सदा प्रसन्न रहना ईश्वर की सर्वोच्च उपासना है. चिन्तन बुद्धि को सबल करता है पर चिंता बुद्धि को कुंठित करती है, और उसने गलत चिंता से समय तो व्यर्थ किया ही अपनी मानसिक शांति भंग की, ऊर्जा व्यर्थ की, तभी तो आज दोपहर के एक बजे वह डायरी लिख रही है. इस वक्त तक आज की कविता लिख चुकी होती है, पर आज सुबह से ही मन अस्थिर है, एक जगह नहीं लग रहा है. कल रात नींद भी ठीक से आई. सुबह एक स्वप्न देखा, शायद उसके ही किसी पूर्व जन्म का, वह राजकुमारी है पर घमंडी राजकुमारी और एक सैनिक उसका गलत हुक्म मानने से इंकार कर देता है. आज फिर सुबह से वर्षा हो रही है, सो गर्मी भी कम है. एक सखी से कुछ देर इधर-उधर की बातें करती रही, गलत-सलत और सही भी. संगीत अध्यापिका से भी दो मिनट बात की उन्होंने बुलाया है पर जाने का मन नहीं है. कैसी तो खुमारी अभी भी छायी है, जून के जाने के बाद भी सोती रही पन्द्रह-बीस मिनट. यह सब तामसिक प्रवृत्ति के लक्षण हैं. कल शाम भी उन्होंने रोज की तरह ढेर सारे अमरूद तोड़े, बांटे भी. समाज के किसी काम तो आ रहे हैं उस व्यक्ति के लगाये पेड़ के अमरूद जो उनसे पहले इस घर में रहता होगा. कल अरुंधती राय की एक किताब में पढ़ा कि बड़ी-बड़ी योजनायें चाहे वह डैम हों या अन्य कुछ, लाभ से ज्यादा हानि पहुंचाती हैं. नर्मदा बचाव आन्दोलन से प्रभावित होकर वह वहाँ गयीं, अध्ययन किया और इतने आंकड़ों के साथ किताब छपवायी, उनकी मेहनत अनुपम है.

आज गीता में ईश्वर की विभूतियों का वर्णन पढ़ा. ईश्वर की कल्पना कितनी मधुर है यदि वास्तव में उसका साक्षात्कार हो तो कैसा अद्भुत दृश्य होगा. कबीर ने कहा है जब वह ईश्वर को खोजने गये तो खुद ही खो गये, पर उसके लिए खुद को एक क्षण के लिए भी खोना सम्भव नहीं लगता. आजकल ध्यान भी नहीं कर पाती, मन जाने कहाँ-कहाँ भटकाता है व खुद भी भटकता है. कभी टीवी पर देखे किसी धारावाहिक का दृश्य तो कभी कुछ और, अपेक्षाकृत आज मन शांत है, कल दिनभर बहुत अस्त-व्यस्त सा रहा. संयम, एकाग्रता और अनुशासन इन तीनों में से कोई भी कम हो तो ऐसा होना स्वाभाविक है. सुबह-सुबह जीजाजी को उनके जन्मदिन की बधाई दी, पर उनका जन्मदिन कल है. माँ व भाभी से बात की, अभी तक उन्हें उसका पत्र व राखियाँ नहीं मिली हैं, डाक विभाग अब पहले सा चुस्त व ईमानदार नहीं रहा. जून ने इस पेन में नई जान डाल दी है, वह हमेशा की तरह घर का उसका व नन्हे का बहुत ख्याल रखते हैं. उसे सारी चिताओं से मुक्त कर दिया है. अभी कुछ देर पूर्व प्रार्थना करते समय वह यही कह रही थी कि न तो उसे अपनी जीविका की चिंता है न घर चलाने की, न ही परिवार में कोई परेशानी है, न ही कोई अस्वस्थ है, वह सभी की और ईश्वर की कृतज्ञ है कि उसे सारे सुख दिए हैं. वक्त है उसके पास की ईश्वर चिन्तन कर सके, समझ है, बुद्धि भी ठीक-ठाक सी दी है, स्वयं को सुधारने की इच्छा भी है, पर तब भी मीलों चल चुकने के बाद कभी-कभी लगता है वह जहाँ से चली थी वहीं खड़ी है. मन रह-रह कर सांसारिक आकर्षणों में फंसता है. कभी न कभी चाहे निर्दोष ही क्यों न हो मुंह से असत्य भाषण होता है, प्रमाद छाता है, ऐसे में कोई गुरू होता जो साथ-साथ रहता, सहेजता, वह गुरू तो उसे स्वयं ही बनना होगा.

 


2 comments:

  1. अमित जी के बारे में जो भी लिखा वो बिल्कुल सही है... उनकी हँसी, उनकी आवाज़, उनका सहज सा लगने वाला अन्दाज़.. सब मनमोहक.
    आज एक बात ने सचमुच दिल को छू लिया - चिन्तन बुद्धि को सबल करता है पर चिंता बुद्धि को कुंठित करती है! कितनी साधारण सी बात, लेकिन कितनी गहरी. दिन के विभिन्न प्रहरों की तरह बदलते उसके लक्षण सात्विक, राजसी और फिर तामसी! यही होता है हम सब के साथ.
    कबीर की वाणी के साथ साथ खुसरो का प्रतीकात्मक प्रेम भी प्रभावित करता है मुझे - लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गयी लाल!! घर और रिश्तेदारों के साथ मधुर सम्बन्धों के बीच परमात्मा का धन्यवाद - सच कहा उसने, यही सच्ची प्रार्थना है!

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  2. सचमुच खुसरो का जिक्र आते ही मन एक अलग ही ख़ुशी का अनुभव करता है...उनकी मुकरियां भी अनोखी हैं..

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