मायोदिया में मंजिल पर पहुंच कर बर्फ दिखी जो सड़क के दोनों
किनारों पर जमी थी, पहाड़ों की ढलान पर भी बर्फ थी और वातावरण में ठंड बढ़ गयी थी. उन्होंने
स्वेटर, दस्ताने, टोपी सभी कुछ पहन लिए और फोटोग्राफी करते हुए बर्फ का आनन्द
लिया. वापसी की यात्रा अपेक्षाकृत सरल थी. दोपहर डेढ़ बजे वे वापस लौट आये. दोपहर का भोजन कर वे पास के बाजार गये. छोटा सा
ही बाजार है, जहाँ आवश्यकता का सब सामान मिलता है. बाहर नव वर्ष की पार्टी की
तैयारी हो चुकी है. सुबह ही टेंट लगाने वाले आ गये थे, एक तरफ शामियाने में बुफे
का इंतजाम है. दूसरी तरफ गोल श्वेत टेंट के नीचे कुर्सियां लगी थीं. दोपहर से ही
भोजन बनाने का कार्य भी आरम्भ हो गया है.
संध्या के बाद श्री पुलू ने उन्हें
बुलाया, उनका परिवार भी आ चुका था. दो कमरों के मध्य के हॉल में आग जलाने का
प्रबंध है. एक टीन की शीट पर मिट्टी का लेप था उस पर एक लोहे का चूल्हा था जिसमें
लकड़ियाँ जलाकर आग सुलगाई जाती है. चारों तरफ चटाइयाँ तथा कार्पेट बिछे थे.
उन्होंने ग्रीन टी के साथ गाजर का हलवा पेश किया, बाहर भी कुछ मेहमान आ चुके थे.
सुबह से आकाश पर छाये बादल अब छंट गये थे और तारे चमक रहे थे. जैसे प्रकृति भी
मेहरबान हो गयी थी, क्योंकि वर्षा होने का अर्थ था सभी को भीतर जाना पड़ता. श्रीमती
पुलू डिस्ट्रिक ऑफिस में एकाउंटेंट हैं. वह तेजू में रहती हैं. दोनों बच्चों को
पिता ही सम्भालते हैं. श्री पुलू ने कहा, वे हाउस-हसबैंड हैं. उनके कैम्प में
देश-विदेश से कई शोध विद्यार्थी आते हैं. अरुणाचल के जंगलों में जलवायु परिवर्तन
के दुष्परिणामों का अध्ययन करते हैं तथा यहाँ के जंगली प्राणियों के बारे में
महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करते हैं. वे स्वयं उनके साथ जंगलों में मीलों पैदल चलकर
कैमरे तथा अन्य उपकरण आदि लगाने में मदद करते हैं. पक्षी प्रेमी भी वहाँ आकर ठहरते
हैं. प्रदेश के इतिहास के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि अरुणाचल वासी
शताब्दियों पूर्व चीन से म्यांमार होते
हुए यहाँ आये थे. वे कबीले बनाकर रहते थे. उन्होंने यह भी बताया कि खुदाई करने पर
इस इलाके से जो स्तम्भ प्राप्त हुए हैं उन पर लिखी भाषा को पढ़ा नहीं जा सका है
यहाँ विवाह संबंध मध्यस्थों के द्वारा तय होते हैं. लड़के वाले लड़की का हाथ मांगने
जाते हैं तथा दहेज भी उन्हें ही देना पड़ता है. देखा जाता है कि पिछली दस पुश्तों
में दोनों परिवारों में कोई रक्त संबंध तो नहीं था. रोइंग में कोई कालेज नहीं है,
पढ़ने के लिए तेजू जाना पड़ता है, पर वहाँ भी केवल कला विषय पढाये जाते हैं. रोचक
चर्चा चल रही थी कि भोजन का समय हो गया. पहले उन्होंने वह केक काटा, जो एगलेस केक
मांगने पर हलवाई ने उन्हें थमा दिया था पर वह केक के स्थान पर मिठाई निकली, खोये
की मिठाई जिसे केक की तरह सजाया गया था.. हमने नये वर्ष का स्वागत करते हुए वह
बर्फी केक खाया. भोजन में केले के फूल व आलू की स्वादिष्ट सब्जी थी, लाई का सूखा
साग बना था. रोटी सफेद व कोमल थी. बाहर की पार्टी का शोर बढ़ता जा रहा था. अग्नि के
पास बैठकर सबने रात्रि भोजन किया, जो मेजबान द्वारा अति प्रेम से परोसा गया था.
कुछ देर बाद वे नये वर्ष की पार्टी में शामिल होने गये. सभी आनन्दमग्न थे,
पुराने हिंदी फ़िल्मी गीत बज रह थे, पता चला कि मिथि साहब मुहम्मद रफी के फैन हैं
तथा स्वयं भी गाते हैं. महिलाएं डाइनिंग रूम में थीं, नूना वहाँ पहुंची तो आकर्षक परिधानों में सजी
स्त्रियाँ समूह में बैठी थीं, श्रीमती मिथि से पहले मिल चुकी थी सो उन्होंने सबसे
परिचय कराया, लगभग सभी के पति सरकारी नौकरियों में थे. एक सुंदर गौरवर्णी महिला
कहने लगीं उनके समाज में अधेड़ उम्र की महिलाएं उत्सवों में चावल की बनी मदिरा का
पान करती हैं. वे इसके फायदे भी गिनाने लगीं. जब उसने कहा बिना पिए ही ये सब
प्राप्त हो सकता है तो उन्होंने स्वीकार किया और वहीँ बैठी दो महिलाओं को दिखाकर
कहा, ये दोनों बिलकुल नहीं पीतीं. आधा घंटा वहाँ बिताकर वे कमरे में आ गये.
आज नये वर्ष का पहला दिन है, सुबह
साढ़े पांच बजे नींद खुली. रात को पार्टी सम्भवतः साढ़े दस-ग्यारह बजे तक चली होगी.
ठंड काफी थी और और छोटे बच्चे वाले परिवार बहुत थे, सो लोग जल्दी चले गये होंगे.
सुबह नहा-धोकर आठ बजे नाश्ता करके वे रोइंग से विदा लेकर रवाना हुए और मार्ग में
चार नदियों को पार कर तिनसुकिया में खरीदारी करते हुए वापस एक बजे घर पहुंच गये.
मौसम अच्छा है. धूप खिली है. नये वर्ष की पहली शाम का स्वागत करने के लिए वे तैयार
हैं.