Thursday, March 29, 2018

रोइंग में पार्टी



मायोदिया में मंजिल पर पहुंच कर बर्फ दिखी जो सड़क के दोनों किनारों पर जमी थी, पहाड़ों की ढलान पर भी बर्फ थी और वातावरण में ठंड बढ़ गयी थी. उन्होंने स्वेटर, दस्ताने, टोपी सभी कुछ पहन लिए और फोटोग्राफी करते हुए बर्फ का आनन्द लिया. वापसी की यात्रा अपेक्षाकृत सरल थी. दोपहर डेढ़ बजे वे वापस लौट आये. दोपहर का भोजन कर वे पास के बाजार गये. छोटा सा ही बाजार है, जहाँ आवश्यकता का सब सामान मिलता है. बाहर नव वर्ष की पार्टी की तैयारी हो चुकी है. सुबह ही टेंट लगाने वाले आ गये थे, एक तरफ शामियाने में बुफे का इंतजाम है. दूसरी तरफ गोल श्वेत टेंट के नीचे कुर्सियां लगी थीं. दोपहर से ही भोजन बनाने का कार्य भी आरम्भ हो गया है.

संध्या के बाद श्री पुलू ने उन्हें बुलाया, उनका परिवार भी आ चुका था. दो कमरों के मध्य के हॉल में आग जलाने का प्रबंध है. एक टीन की शीट पर मिट्टी का लेप था उस पर एक लोहे का चूल्हा था जिसमें लकड़ियाँ जलाकर आग सुलगाई जाती है. चारों तरफ चटाइयाँ तथा कार्पेट बिछे थे. उन्होंने ग्रीन टी के साथ गाजर का हलवा पेश किया, बाहर भी कुछ मेहमान आ चुके थे. सुबह से आकाश पर छाये बादल अब छंट गये थे और तारे चमक रहे थे. जैसे प्रकृति भी मेहरबान हो गयी थी, क्योंकि वर्षा होने का अर्थ था सभी को भीतर जाना पड़ता. श्रीमती पुलू डिस्ट्रिक ऑफिस में एकाउंटेंट हैं. वह तेजू में रहती हैं. दोनों बच्चों को पिता ही सम्भालते हैं. श्री पुलू ने कहा, वे हाउस-हसबैंड हैं. उनके कैम्प में देश-विदेश से कई शोध विद्यार्थी आते हैं. अरुणाचल के जंगलों में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का अध्ययन करते हैं तथा यहाँ के जंगली प्राणियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करते हैं. वे स्वयं उनके साथ जंगलों में मीलों पैदल चलकर कैमरे तथा अन्य उपकरण आदि लगाने में मदद करते हैं. पक्षी प्रेमी भी वहाँ आकर ठहरते हैं. प्रदेश के इतिहास के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि अरुणाचल वासी शताब्दियों पूर्व चीन से म्यांमार  होते हुए यहाँ आये थे. वे कबीले बनाकर रहते थे. उन्होंने यह भी बताया कि खुदाई करने पर इस इलाके से जो स्तम्भ प्राप्त हुए हैं उन पर लिखी भाषा को पढ़ा नहीं जा सका है यहाँ विवाह संबंध मध्यस्थों के द्वारा तय होते हैं. लड़के वाले लड़की का हाथ मांगने जाते हैं तथा दहेज भी उन्हें ही देना पड़ता है. देखा जाता है कि पिछली दस पुश्तों में दोनों परिवारों में कोई रक्त संबंध तो नहीं था. रोइंग में कोई कालेज नहीं है, पढ़ने के लिए तेजू जाना पड़ता है, पर वहाँ भी केवल कला विषय पढाये जाते हैं. रोचक चर्चा चल रही थी कि भोजन का समय हो गया. पहले उन्होंने वह केक काटा, जो एगलेस केक मांगने पर हलवाई ने उन्हें थमा दिया था पर वह केक के स्थान पर मिठाई निकली, खोये की मिठाई जिसे केक की तरह सजाया गया था.. हमने नये वर्ष का स्वागत करते हुए वह बर्फी केक खाया. भोजन में केले के फूल व आलू की स्वादिष्ट सब्जी थी, लाई का सूखा साग बना था. रोटी सफेद व कोमल थी. बाहर की पार्टी का शोर बढ़ता जा रहा था. अग्नि के पास बैठकर सबने रात्रि भोजन किया, जो मेजबान द्वारा अति प्रेम से परोसा गया था.

कुछ देर बाद वे नये वर्ष की पार्टी में शामिल होने गये. सभी आनन्दमग्न थे, पुराने हिंदी फ़िल्मी गीत बज रह थे, पता चला कि मिथि साहब मुहम्मद रफी के फैन हैं तथा स्वयं भी गाते हैं. महिलाएं डाइनिंग रूम में थीं, नूना वहाँ पहुंची तो आकर्षक परिधानों में सजी स्त्रियाँ समूह में बैठी थीं, श्रीमती मिथि से पहले मिल चुकी थी सो उन्होंने सबसे परिचय कराया, लगभग सभी के पति सरकारी नौकरियों में थे. एक सुंदर गौरवर्णी महिला कहने लगीं उनके समाज में अधेड़ उम्र की महिलाएं उत्सवों में चावल की बनी मदिरा का पान करती हैं. वे इसके फायदे भी गिनाने लगीं. जब उसने कहा बिना पिए ही ये सब प्राप्त हो सकता है तो उन्होंने स्वीकार किया और वहीँ बैठी दो महिलाओं को दिखाकर कहा, ये दोनों बिलकुल नहीं पीतीं. आधा घंटा वहाँ बिताकर वे कमरे में आ गये.     

आज नये वर्ष का पहला  दिन है, सुबह साढ़े पांच बजे नींद खुली. रात को पार्टी सम्भवतः साढ़े दस-ग्यारह बजे तक चली होगी. ठंड काफी थी और और छोटे बच्चे वाले परिवार बहुत थे, सो लोग जल्दी चले गये होंगे. सुबह नहा-धोकर आठ बजे नाश्ता करके वे रोइंग से विदा लेकर रवाना हुए और मार्ग में चार नदियों को पार कर तिनसुकिया में खरीदारी करते हुए वापस एक बजे घर पहुंच गये. मौसम अच्छा है. धूप खिली है. नये वर्ष की पहली शाम का स्वागत करने के लिए वे तैयार हैं.

Wednesday, March 28, 2018

ब्रह्मपुत्र की कहानी



दोपहर का भोजन आते ही मिल गया, हल्का-फुल्का शाकाहारी भोजन स्वादिष्ट था. उसके बाद उन्होंने स्थानीय दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी हासिल की, सौभाग्य से यहाँ के वर्तमान संसद सदस्य वहीं थे, वे नये वर्ष पर उसी रिजॉर्ट में पार्टी आयोजन करने के सिलसिले में बात करने आये थे. उन्होंने ‘सैली लेक’ तथा ‘नेहरु उद्यान’ देख आने के लिए कहा. रोइंग से छह किमी दूर स्थित ‘सैली झील’ हरे-भरे वृक्षों तथा पहाड़ियों से घिरी है. झील के चारों ओर सुंदर भ्रमण पथ बने हैं. तस्वीरों में उसकी सुन्दरता को कैद किया और कुछ देर वहाँ रुकने के बाद वे नेहरु उद्यान पहुंचे, जो एक विस्तृत इलाके में फैला है, बच्चों के लिए झूले, ग्रीन हॉउस तथा फूलों के बगीचे और विशाल पेड़ों से सजा यह उद्यान सुबह-शाम घूमने वालों के लिए आदर्श स्थान है. लौटे तो नदी किनारे जाकर कुछ तस्वीरें लीं शाम ढलने को थी, डूबते हुए सूर्य को प्रणाम करते हुए वे कमरे में  लौट आये.

जिस कमरे में बैठकर वह लिख रही है, उसके फर्श पर बेंत से बनी सुंदर चटाई बिछी है. दीवारें तथा छत भी लकड़ी तथा पतले बांस की बनी हैं. लकड़ी की ही शय्या है, दरवाजे से बाहर निकलते ही एक बड़ा सा अहाता है, जिसका फर्श भी लकड़ी का है. कुछ ही दूर पर भोजनालय है और दायीं ओर एक नदी बहती है. सामने ऊंचे पहाड़ हैं. इस कैम्प तक पहुंचने से कुछ कदम पहले ही यहाँ के भूतपूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान सांसद श्री मुकुट मिथि का बंगला है, जो शानदार है. अभी कुछ देर पहले वे  उनके निमन्त्रण पर एक कप कॉफ़ी पीने गये. उनकी मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाया, वे सरल स्वभाव के हैं तथा उन्हीं की तरह उनकी पत्नी भी बहुत गर्मजोशी से मिलीं. वे मिशिमी जन जाति के हैं, इस जाति की भी तीन उपजातियां हैं, जिनके लोगों की पहचान पारंपरिक वस्त्रों के रंगों से होती है. घर की साज-सज्जा पारंपरिक व आधुनिक वास्तुकला का मेल थी. देश के कई भूतपूर्व कांग्रेसी नेताओं के चित्रों को वहाँ देखा. घर के पिछले भाग में एक बड़ा सा हॉल था, जहाँ  बीचोंबीच व्यवस्थित ढंग से आग जल रही थी, छत से लटकता हुआ एक बांस का बना चौकोर तख्ता देखा, जिस पर महीन बेंत की चटाई लगी थी, जो धुंए को अपने में समा लेता है. फर्श पर भी चटाइयां बिछी थीं. कई बेंत के मूढ़े पड़े थे. उन्होंने बताया, उनके गाँव में हर घर में एक ऐसा स्थान होता है, परिवार का मुखिया उस स्थान पर बैठता है. दायीं तरफ पंक्तिबद्ध उसकी घर की महिलाओं के कमरे होते हैं. यहाँ पहले बहुपत्नी प्रथा थी. सभी महिलाएं अपने-अपने यहाँ पकाए भोजन को वहाँ लाकर रख देती हैं तथा सब मिलकर भोजन ग्रहण करते हैं. उन्होंने अरुणाचल के इतिहास व भूगोल के बारे में उनके साथ रोचक वार्तालाप का आनन्द लिया. ब्रह्मपुत्र के जन्म तथा परशुराम कुंड से जुड़ी पौराणिक कथाएँ भी उन्होंने सुनायीं. एक बार ऋषि शांतनु व उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रहे थे, प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी वर देने आये तो ऋषि वहाँ नहीं थे. उनकी पत्नी ब्रह्मा जी के चार मुख देखकर भयभीत हो गयीं. पुत्र का जन्म हुआ पर वह द्रव रूप में था, जो ब्रह्मपुत्र नद कहलाया. परशुराम ने जब पिता के कहने पर अपनी माता का सर काटा तो परशु उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था, वे इस स्थान पर आये जहाँ ब्रह्पुत्र का बहाव रुक हुआ था, उस पर्वत पर प्रहार करने से उनका परशु विलग हो गया. एक पंजाबी संत की कथा भी उन्होंने सुनाई जो घूमते हुए यहाँ आ गये थे. सदियों से यहाँ भारत के दूर-दूर स्थानों से साधू-संत आते रहे हैं. भारत एक अनोखी संस्कृति वाला देश है और देश की एकता के सूत्र हर क्षेत्र में बिखरे हुए हैं.  कल उन्हें ‘मायोदिया’ देखने जाना है जो आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक दर्रा है.

शाम के पांच बजे हैं. वे अभी-अभी अपने कैम्प में आये हैं. बेंत की चटाइयों से बनी दीवारों वाला यह कमरा आज की रात भी उनका निवास स्थान है. सुबह पांच बजे नींद खुली. बाहर अँधेरा था. वायदे के अनुसार यहाँ काम करने वाला एक किशोर दो बाल्टी गर्म पानी ले आया. यहाँ काम करने वाले तीनों किशोर पढ़ाई भी कर रहे हैं, सुबह का काम निपटा कर वे स्कूल चले जाते हैं, दोपहर बाद फिर से आ जाते हैं. साढ़े सात बजे वे भोजन कक्ष में नाश्ते के लिए पहुंचे. ठीक आठ बजे मायोदिया के लिए रवाना हुए जिसके आगे ‘हुलनी’ नामक स्थान है. रोइंग मात्र सोलह सौ फीट की ऊँचाई पर है. मात्र सत्तावन किमी की यात्रा में उन्हें साढ़े छह हजार फीट की ऊँचाई पर पहुंचना था. रास्ता मनोरम था किन्तु रोमांचक भी. ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से घिरे पहाड़ तथा गहरी घाटियाँ. नीली-हरी पर्वतों की श्रंखलायें अपनी ओर बुलाती प्रतीत होती थीं. काफी जगह सड़क टूटी हुई थी, सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था. मील के पत्थरों पर तिवारी गाँव का नाम पढ़कर उन्हें थोडा अचरज हुआ. पता चला कि वास्तव में ऐसा कोई गाँव नहीं था, पर एक जगह तिवारी नाम का एक व्यक्ति जो सड़क  निर्माण के कार्य में नियुक्त था, वर्षों तक रहा, उसी के नाम पर उस स्थान का यह नाम पड़ गया.



Tuesday, March 27, 2018

चोखम का बौद्ध मंदिर



यह वर्ष समाप्त होने में मात्र चार दिन रह गये हैं, जिनमें से दो वे अरुणाचल प्रदेश में बिताने वाले हैं. आज सुबह दो महिलाएं आई थीं योग कक्षा में. सोलह मिनट सूर्य नमस्कार किया, बीस मिनट का सूर्य ध्यान किया तथा शेष समय प्राणायाम तथा थोड़ा व्यायाम. सुबह का एक घंटे का अभ्यास दिन भर कैसा तरोताजा रखता है. दोपहर को बच्चे आये, कुछ नये भी थे. उन्होंने सुंदर चित्र बनाये. मंझले भाई-भाभी के विवाह की वर्षगांठ है आज. छोटी बहन ने व्हाट्सएप पर अच्छा सा गीत गाकर उन्हें शुभकामनायें दी हैं. अभी-अभी मोदी जी की ‘मन की बात’ सुनी, वह बहुत अच्छा बोलते हैं, उनका विरोध करने के लिए कांग्रेस को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

मात्र तीन दिन ही शेष हैं इस वर्ष को बीतने में. जीवन भी इसी तरह एक दिन चुक जायेगा. जब तक वे जीवित हैं, जीवित रहने का कुछ तो सबूत दें अपने कृत्यों द्वारा, अपने व्यवहार द्वारा किसी के जीवन में कोई परिवर्तन ला सकते हैं तो लायें, अपने शब्दों से किन्हीं हृदयों के सुप्त पड़े भावों को जगा सकें तो उनकी कलम सार्थक होगी. वे अपने विचारों को इतना शुद्ध बनाएं कि उनकी गरिमा उनके व्यक्तित्त्व से झलके. कल प्रधान मंत्री का भाषण सुनकर बहुत अच्छा लगा. आज रूस में दिया उनका एक भाषण सुना, एक पॉप सिंगर द्वारा गए वैदिक मन्त्रों को सुना. सचमुच विश्व पुनः दैवी संस्कृति की ओर बढ़ रहा है. भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सुधर रहे हैं. जैविक खेती के प्रयोग बढ़ रहे हैं. गली-मोहल्ले सफाई की तरफ ध्यान दे रहे हैं. विकलांगों के प्रति सोच बदली है, विश्व शरणार्थियों को बाहें फैलाये स्वागत करने को तैयार है. भारत में संस्कृत भाषा का प्रचार हो रहा है. देश में आशा की लहर जगी है.


अरुणाचल प्रदेश के रोइंग जिले का ‘मिशिमी हिल कैम्प’ दो दिनों के लिए उनका घर बन गया है. जिसे श्री पुलू चलाते हैं. इस प्रदेश की यह उनकी पहली यात्रा नहीं है, पिछले कई वर्षों के दौरान खोंसा, मियाओ, बोमडिला, तवांग, देवांग, परशुराम कुंड, आदि स्थानों को देखने के बाद इस वर्ष के दो अंतिम दिन बिताने वे रोइंग आए हैं. उत्तर-पूर्व भारत का सबसे बड़ा राज्य अरुणाचल जिसकी सीमाएं देश में असम तथा नागालैंड से मिलती हैं तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन, भूटान और बर्मा से, प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है. कल सुबह साढ़े सात बजे वे घर से रवाना हुए और असम की सीमा पार कर चोखम नामक स्थान में स्थित बौद्ध मन्दिर ‘पगोडा’ में कुछ देर रुक व नाश्ता करके पांच घंटों की रोमांचक यात्रा के बाद यहाँ पहुंच गये. आलूकबाड़ी में लोहित नदी को वाहन सहित फेरी से पार किया, एक साथ चार-पांच वाहन तथा बीस-पच्चीस व्यक्तियों को लेकर जब नाव नदी पार कर रही थी तो दृश्य देखने योग्य था. नदी पर पुल निर्माण का कार्य जोरों से चल रहा है, पर आगे भी दो-तीन जगह छोटी-उथली नदियों को उनमें से गुजर कर पार करना पड़ा, जिन पर पुल बनने में अभी काफी समय लगेगा. छोटे-बड़े श्वेत पत्थरों से ढके विशाल नदी तट देखकर प्रकृति की महिमा के आगे अवनत हो जाने अथवा विस्मय से भर जाने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता.


Monday, March 26, 2018

अंतरलोक का जाल



फिर एक अन्तराल, आज पाँच दिनों बाद लिखने का सुयोग मिला है. जून कल देहली गये हैं और वहाँ से सूरजकुंड जायेंगे, जहाँ एक दिन की कोई कांफ्रेस है. सो इस समय किसी भी कार्य की शीघ्रता नहीं है. साढ़े दस बजे हैं, कुछ देर पहले वह विशेष बच्चों के स्कूल से आई है. वहाँ बच्चों को व्यायाम करवाया और जून के लाये रेनकोट आदि दिए. लडकियों का हॉस्टल भी बन गया है, उसके लिए कुछ नियम आदि के लिए कुछ सुझाव उससे मांगे थे, लिखकर दिए. शाम को मीटिंग में जाना है. आज मन एक गहन चिन्तन में डूबा है. कल देर शाम को क्लब से फिल्म देखकर अकेले लौटते समय मन में जो भय की लहर दौड़ी वह व्यर्थ थी. भय का एक संस्कार कहीं गहरे बैठा है मन में, जो हल्की सी उत्तेजना से उभर आता है, लेकिन इससे मुक्ति पानी होगी. रात को नींद में थी, अचानक कुछ गिरने की आवाज आई. वही संस्कार जाग गया और मन ने कैसे-कैसे दृश्य दिखाने शुरू कर दिए. चाहिए तो यही था कि रौशनी करके देख लेती क्या गिरा है पर भय के कारण मन कल्पना करने लगा. एक स्वप्न में देखा, जून भी हैं और वे दोनों देखने गये हैं कि कौन सी तस्वीर गिरी है. फिर पूजा के कमरे में जाकर देखते हैं, कम्प्यूटर गायब है, यानि कोई चोर आया था. कितना स्पष्ट था सब कुछ. दूसरे स्वप्न में गैलरी में कोई पीला पेंट बह रहा है, जो छत से आती किसी पाइप से आ रहा है. छत पर देखा तो नैनी है, उसने एक प्लेट में पीला रंग रखा है, पानी उस पर से बह कर आ रहा है. माया इस तरह मानव को नचाती है. ये स्वप्न किस तरह उन्हें भ्रमित करते हैं, ये उनकी ही कल्पना होते हैं अक्सर. फिर सुबह उठी तो स्वयं पर ही आश्चर्य हो रहा था, क्या इतने दिनों की साधना भी भीतर का भय नहीं निकाल पायी. ध्यान करने बैठी तो राज खुलने लगे. सबके मूल में है मृत्यु का भय, यानि देह छूट जाने का भय. एक स्वप्न ने ही यह भ्रम पैदा कर दिया है कि अभी बीस वर्ष तो और जीवन है ही, सो बीस वर्ष तक देह को बचाए रखना होगा, पर कौन जानता है, कौन सा पल अंतिम होगा. देह बनी रहे इसलिए व्यायाम के प्रति भी गहन आसक्ति है. फिर दूसरे के शब्दों को, दूसरे के ज्ञान को प्रस्तुत करना, यह तो चोरी का संस्कार है, इसी कारण कई बार मन में यह भाव आता है कहीं चोरी तो नहीं कर रहा कोई उनकी. उनका स्वयं का मन जो कृत्य करता है, उसी की आशंका उन्हें होती है. संसार तो दर्पण है, उनका खुद का मन ही उसमें झलकता है. भावों की चोरी तो महानतम चोरी है. जब तक मन पूरी तरह से भय व आशंका से मुक्त नहीं हो जाता, समाधि नहीं घटती और समाधि ही तो लक्ष्य है. परमात्मा उसके भीतर के साारे विकारों को एक-एक कर दूर करने में उसकी सहायता कर रहे हैं. वृथा बोलना तो छूट गया है पर वृथा सोचना नहीं छूटा है, उसे भी छोड़ना होगा, मन को खाली करना होगा !

कल कुछ नहीं लिखा, सुबह बंगाली सखी के यहाँ गयी, वृद्धा आंटी से मिली. दोपहर बाद प्रेस, शाम को योग कक्षा और ऐसे ही दिन बीत गया. आज सुबह क्लब की एक सदस्या के साथ बाजार गयी, रेशमी कपड़े से बने गुलाब के फूल लेने थे, वार्षिक उत्सव के लिये, अगले हफ्ते मिलेंगे. वह थाईलैंड जा रही है, दो सप्ताह बाद लौटेगी. उसे सभी सदस्याओं के नामों की नई सूची बनानी है. योग पर भी कुछ और लिखना है. इस समय दिन के साढ़े तीन बजे हैं. जून दिल्ली से आ चुके हैं पर आते ही सीधे दफ्तर चले गये, शायद पांच बजे तक आयेंगे. ड्राइवर सामान दे गया है, ढेर सारे फल लाये हैं, देसी-विदेशी दोनों तरह के. एक स्टील का पतीला और छह कटोरी-प्लेट्स. उन्हें खरीदारी करने में काफी आनन्द आता है. परमात्मा की कृपा है कि इस समृद्धि के योग्य बनाया है. आज सुबह उठने से पूर्व एकतारता का अनुभव हो रहा था, तैलधारवत ध्यान का अनुभव ! परमात्मा के लोक में अपूर्व शांति है, उस शांति का प्रस्फुटन उन्हें उनके विचारों, कार्यों और शब्दों द्वारा करना है, यही तो आध्यात्मिकता है. रामकृष्ण परमहंस की कथा पढ़ते समय कितना आनन्द आता है. वे जीते-जागते परमात्मा ही थे, जैसे सद्गुरू हैं. उनका सान्निध्य उसे इस जन्म में मिलेगा अथवा नहीं ? किन्तु परमात्मा के साथ अभिन्नता का अनुभव जिसे होता हो, उसके लिए संत सान्निध्य का क्या अर्थ है, सद्गुरू के पास रहकर भी कुछ लोग भीतर के लोक में प्रवेश नहीं कर पाते हों शायद. दीदी कुछ दिनों के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप से चली गयी थीं, फिर लौट आई हैं और ग्रुप का नाम भी बदल दिया है, भाई ने नया नाम दिया है, अच्छा चिह्न है यह, सबके मध्य दूरी कम होगी.

Friday, March 23, 2018

छाया की माया



कल सुबह हफ्तों बाद कुछ कविताएँ लिखीं, यदि उन्हें कविता कहा जा सकता है तो, पर वे सहज स्फूर्त थीं. प्रातःकाल के दृश्यों को देखकर कुछ द्रवित होकर बहने लगा था. कल सुबह मृणाल ज्योति भी गयी. उससे पहले महिला क्लब की तरफ से स्कूल के छात्रावास में देने के लिए स्टील के तीस गिलास और दस जग खरीदे. जाते समय और वापसी में भी वाहनों की लम्बी कतारें मिली थीं सड़क पर. कम्पनी में कार आदि वाहन चलाने के लिए टेंडर भरे जा रहे हैं. हजारों की संख्या में लोग आये हैं जबकि आवश्यकता है, सौ-दो सौ वाहनों की. जाने किसकी किस्मत खुल जाये. आज भी वैसी ही भीड़ थी जब वह क्लब की प्रेसिडेंट के साथ प्रेस गयी, जहाँ वार्षिक उत्सव के लिए क्लब की पत्रिका प्रकाशित होने वाली है. उस दिन तो वह नहीं रहेगी सो उससे पहले जितना सम्भव हो काम कर देना चाहती है. चित्र एकत्र करने हैं, विभिन्न प्रोजेक्ट्स के चित्र भी चाहियें और उनकी संचालिकाओं के भी. आज सम्भवतः उसका फोन भी मिल जायेगा, उसमें भी कुछ तस्वीरें हो सकती हैं. इस समय शाम के चार बजे हैं, यानि फ्रूट टाइम और महाभारत देखने का समय, पिछले कुछ दिनों से वे एक एपिसोड देखते हैं इस समय. बाहर माली गमलों को रंग रहा है.

‘मैं’ से आच्छादित है ‘तू’, जब ‘मैं’ खो जाता है तब ‘तू’ प्रकट होता है और तब पता चलता है ‘तू’ ही ‘वह’ है. अस्तित्त्व ही सब कुछ है जब यह पता चलता है तो अब वह जीती जागती चेतना के रूप में प्रकट हो जाता है. अस्तित्त्व कोई जड़ पदार्थ नहीं है, चिदानन्द है, चैतन्य है, और भीतर से यह ज्ञान होता है कि सब कुछ वह एक है. पिछले दिनों उसे अपने ‘मैं’ का बखूबी पता चला, महिला क्लब की ट्रेजरर के व्यवहार से जो भीतर हलचल हुई, जून को बताया, एक अन्य सदस्या को बताया, वह अहंकार के कारण ही था. अभी भीतर काफी कल्मष है,  भय भी है. उस दिन रात्रि के समय लौटते हुए अपनी दो दो परछाई देखकर लगा कोई पीछे है. भीतर का चोर भी अभी तक बना हुआ है, तभी कल रात्रि किसी आवाज के कारण नींद खुल गयी जब भीतर भय की हल्की छाया दिखी. जून आज आने वाले हैं. ठंड अब बढ़ गयी है. रात को जो स्वप्न आते हैं वे भी भीतर चलते आवेगों का प्रभाव हो सकते हैं. पुराने जन्मों की स्मृतियाँ और बीती हुई बातें भी स्वप्न बनकर आती हैं, पर जब जागृत में मन सजग रहना सीख जायेगा तभी तो स्वप्न में भी रह पायेगा !

मौसम पिछले तीन चार दिनों से बहुत ठंडा चल रहा है, वर्षा भी हुई और शीत पवन भी बही. सुबह जब वे भ्रमण के लिए निकले, आकाश में तारे खिले थे और सड़क पर सन्नाटा था. वापसी में तीन-चार व्यक्ति दिखे, जो उनकी तरह प्रातः भ्रमण के लिए आए थे. फिर सुबह का क्रम आरम्भ हो गया, जून के जाने के बाद कम्प्यूटर खोला, कोई एक बार फेसबुक के सामने बैठ जाये तो समय कहाँ भाग जाता है पता ही नहीं चलता. उसके ब्लॉग में उस वर्ष की कहानी चल रही है जब सासु माँ साथ में रह रही थीं. अब अपने नये जीवन में जाने कहाँ होंगी वह, पर जहाँ भी हों वहाँ उन्हें हर ख़ुशी मिले, उसने मन ही मन प्रार्थना की. मोबाइल नहीं मिला है अभी तक, पर इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, अच्छा ही है, कुछ समय बच जाता है. शाम की योग कक्षा ठीक चल रही है, अपने लिए भी एक क्रम बन गया है और जो महिलाएं सीखने आती हैं, उनके लिए भी लाभप्रद है. फोन पर बात हुई, एक बहन व एक भाई के मध्य सब कुछ सामान्य नहीं है पर यही तो सामान्य है, संसार इसी का नाम है. कल शाम फिर प्रेस गये वे उत्सव के निमन्त्रण पत्र का आर्डर देने.


Monday, March 19, 2018

लहरों बिन सागर


दो दिनों का अन्तराल ! शाम के चार बजने वाले हैं. जून अभी नहीं आये हैं. दोपहर को उनसे किसी विषय पर मतभेद हो गया, यह आवश्यक तो नहीं कि जो भाव किसी भी विषय को लेकर उसके मन में हों, वे उनके मन में भी हों. वैसे भी दोपहर को वे भोजन के लिए आते हैं, कुछ ही समय उसके बाद आराम के लिए मिलता है, जिसे शांति से व्यतीत करना चाहिए. आज सुबह समय पर उठे, तारों की छाँव में प्रातः भ्रमण को गये, लौटकर प्राणायाम किया. बंगलूरू से आई मोटी पीली सूजी का मीठा नाश्ता बनाया. व्हाट्सएप पर संदेशों का आदान-प्रदान किया. विश्व विकलांग दिवस के कार्यक्रम के लिए मृणाल ज्योति के बच्चे क्लब में रिहर्सल कर रहे हैं, जिसे देखने गयी. कल भी रिहर्सल होगी, परसों तो कार्यक्रम ही है, दिन भर व्यस्तता बनी रहेगी. बड़े भाई का जन्मदिन है आज, उन्हें शुभकामनायें दीं. कल उनके लिए एक कविता लिखी थी, शायद पढ़ ली होगी अब तक. मंझले भाई की बिटिया को दिल्ली में जॉब मिल गयी है, वह खुश है, इसलिए फेसबुक पर उसकी एक पोस्ट को सराहा भी. वे सुख बाँटना चाहते हैं और दुःख में सिकुड़ जाते हैं. छोटी बुआ के साथ भी उसके संबंध पहले से मधुर हो ही जाने वाले हैं, प्रेम कभी मरता नहीं ! आज नूना के फोन का कवर भी आ गया है, अब सुरक्षित हो गया है फोन.

आज सुबह नींद खुली तो एक स्वप्न देख रही थी, पता चला कि खुद ही बना रही थी. स्वप्न यदि वे स्वयं गढ़ें तो वे उनके लिए सुखद ही होंगे, दुःस्वप्न तो नहीं होंगे, वैसे दुःस्वप्न भी वे ही बनाते हैं पर जब असजग होते हैं तब ! प्रातः भ्रमण के समय जून ने कहा, कल रात देहली से आये एक फोन ने उनकी नींद ही बिगाड़ दी, इस बात पर तो उसने उन्हें स्वयं को जानने के लिए एक पूरा वक्तव्य ही दे डाला. ध्यान के लिए उन्हें उकसाया, पता नहीं इसका उन पर कितना असर हुआ, पर उसके सामने बहुत कुछ स्पष्ट होता गया. स्नान के बाद जैसे भीतर से कोई पढ़ाने लगा. प्रकृति, पुरुष, परमात्मा, आत्मा, मन, बुद्धि, संस्कार के आपसी संबंध ! वे जो वास्तव में हैं, उसको जानने के बाद जीवन एक खेल बन जाता है, एक आनंदपूर्ण अवस्था..कल रात को सोने से पूर्व अष्टावक्र गीता का एक श्लोक सुना, अद्भुत है यह ज्ञान..वास्तव में उन्होंने न कभी कुछ किया है न करेंगे, वे साक्षी मात्र हैं. सागर की सतह पर उठती-गिरती लहरें ही तो सागर नहीं हैं, अम्बर पर उड़ते मेघ जैसे आकाश नहीं है, वह विशाल है, अनंत है, अचल है, सदा है, फिर चिंता व दुःख किस बात का ? अभी कुछ देर में ड्राइवर आने वाला होगा, आज भी क्लब जाना है, कल की तैयारी आज भी वहाँ चल रही होगी.  

उस दिन सुबह, दोपहर, शाम सभी मृणाल ज्योति के नाम थी. अगले दिन एक शादी में जाना था. तीसरे दिन दोपहर को आल्मारी सहेजी और शाम को महिला क्लब की मीटिंग थी. कल तो इतवार था ही, शाम को सामाजिक शिष्टाचार निभाने वे एक मित्र परिवार से मिलने गये, दोपहर को बच्चों की संडे क्लास. चार दिन पलक झपकते गुजर गये. आज जून को तीन दिनों के लिए देहली जाना है. उसे साधना के लिए अधिक समय मिलेगा. आजकल प्रतिपल आत्म स्मरण बना रहता है. आज सुबह स्वप्न था या ध्यान या तंद्रा, किसी ने कहा, तुम परमात्मा से प्रेम करती हो, यह सही नहीं है. तुम विशेष स्वाद से प्रेम करती हो. विशेष भोजन के प्रति उसकी यह आसक्ति शायद ठीक नहीं है. आसक्ति किसी भी वस्तु के प्रति ठीक नहीं है, पर यह निषेध की भावना, यह द्वंद्व उसका स्वयं का ही बनाया हुआ है. भोजन तो भोजन है, शायद यह उसका अज्ञान है जो भोजन के प्रति इतनी सावधानी रखना वह नहीं चाहती. साधक को तो सभी प्रकार की कामनाओं से ऊपर उठना ही होगा, यदि वह आगे बढ़ना चाहता है. अभी तक की उसकी साधना जहाँ तक ले आई है, वही तो लक्ष्य नहीं है. अभी तो मंजिलें और भी हैं ! दूर है वह परमात्मा का शांति धाम..हल्के होकर वहाँ जाना है, अभी भी आवाज ऊंची हो जाती है. अभी भी ‘न’ सुनने पर भीतर कुछ कम्पन होता है एक क्षण के लिए ही सही, अभी अखंड आनंद का वरदान फलित नहीं हुआ है. अनंत है आकाश और अनंत है उनकी सम्भावनाएं !  

Friday, March 16, 2018

स्वेटर का मौसम



कल वे घर लौट आये, पिछले आठ-दस दिन यात्रा में बीते, बंगलूरु की यात्रा, जहाँ वे नन्हे के घर पर रहे और अब तो वहाँ उनका खुद का घर भी बनने वाला है. साइनिंग अमाउंट दे दिया गया है. मकान के मालिक काफी सुलझे हुए व्यक्ति हैं. उनकी पत्नी और वे खुद ईशा फाउंडेशन के सद्गुरू को मानते हैं. उनका व्यवसाय भी गाँव के लोगों की मदद से जुड़ा है. वह सोसाइटी भी काफी साफ-सुथरी है. वे वहाँ  के फूलों और बगीचों को निहारते हुए दिन में कई बार टहलते थे. अगले चार वर्षों में उनके कई चक्कर बंगलूरू के लगने वाले हैं. इस बार आश्रम नहीं जा पाई, गुरूजी भी बाहर गये हुए हैं, आश्रम में नहीं थे. स्कूल में पता चला मृणाल ज्योति के एक कर्मचारी को खेलते समय फेफड़े में चोट लग गयी है, वह अस्पताल में हैं. शाम को वे उनसे मिलने जायेंगे. ईश्वर उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य प्रदान करें.


पौने ग्यारह बजे हैं सुबह के. पिछले दो दिनों में बहुत कुछ घट गया. मंगल को जून ने दांत निकलवाया था, दोपहर को वे आकर लेटे थे. उसके सिर में हल्का दर्द था, सो कुछ देर खुली हवा में टहलने बाहर चली गयी. जून का फोन बजा जो डाइनिंग टेबल पर रखा था. आवाज सुनकर उसने शीघ्रता से क्यारी को छलांग कर आना चाहा पर पता ही नहीं चला, अगले ही क्षण वह धरा पर थी. फोन की स्क्रीन भी टूट गयी और दायें पैर का घुटना छिल गया. यह सब कुछ क्षणों में ही हुआ. गनीमत है ज्यादा चोट नहीं लगी. मन फिर भी शांत रहा. शाम को योग कक्षा भी ली और जून को भी शाम को बताया जब फोन ने काम करना ही बंद कर दिया. कल सुबह वह बाजार से सामान लेकर आये थे, तभी थैला लेकर सामान लेने रसोईघर से बाहर निकली और अगले ही क्षण जमीन पर थी. कुछ भी समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. जून को यही कहा, चक्कर आ गया था. नैनी के घर से सभी हाल-चाल पूछने आ गये. नैनी की सास तो रोने ही लगी. कितने भोले दिल हैं इनके. जितना आपस में लड़ते-झगड़ते हैं उतना ही प्रेम भी करते हैं. मन में कुछ छिपाकर नहीं रखते. उसे लगता है, कोई प्रारब्ध कर्म उदय हुआ है, अथवा तो परमात्मा उसे कह रहे हैं, हर क्षण सावधान रहे, एक पल के लिए भी उसे न भूले. सजगता न खोये. जून का दांत दर्द अब ठीक है पहले से, अभी दवा ले रहे हैं. नन्हा कल रात घर वापस गया दो दिन होटल में रहने के बाद. मौसम अब ठंडा हो गया है, दिन भर स्वेटर पहनने का मौसम..कल छोटी बहन से बात हुई, उसे संबंधियों से निराशा हाथ लगी है, पर वह ज्ञान के पथ पर है सो इसे अपने मोक्ष के लिए अच्छा ही मान रही है. मतभेदों को भुलाकर उन्हें एक होना है, एकता में ही शक्ति है !

कल कुछ नहीं लिखा, सुबह मृणाल ज्योति गयी. नन्हा भी अब इसका सदस्य बन गया है. विश्व विकलांग दिवस के कार्यक्रम के निमंत्रण कार्ड्स भी लेने थे. फिजियोथेरेपी सेंटर में नई मशीनें आई हैं, लडकियों के लिए छात्रावास भी बन रहा है. बाहर ही ऑफिस भी बन रहा है, उनका इरादा है कि अगले दो-तीन वर्षों में एक दुकान तथा एक गेस्टहाउस भी खोल दें. मृणाल ज्योति एक लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है. बुआ जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उसने फोन किया पर घंटी बजती रही, शायद वह सो रही हों. उस दिन चचेरी बहन को फोन किया तो उसने भाई की बिगड़ती मानसिक हालत के बारे में बताया. वे उसका इलाज करने को तैयार हैं, पर वह खुद नहीं करवाना चाहता. इन्सान की बुद्धि ही जब उसका साथ छोड़ देती है, तब उसे कौन बचा सकता है ? दोपहर के बारह बजने को हैं, जून अभी तक नहीं आये हैं, उसे भूख का अहसास हो रहा है, फ्राइड राइस बनाये हैं आज. सुबह घर की साप्ताहिक सफाई करवायी और साप्ताहिक स्नान किया. मन का स्नान संतों की वाणी सुनकर हुआ. परमात्मा की असीम कृपा उन पर बरस रही है, बस उसे महसूस भर करना है.       


Wednesday, March 14, 2018

यूनिवर्स के संदेश



दीवाली भी आकर चली गयी. घर फिर पहले का सा हो गया है, जो पहले जगमग-जगमग करने लगा था. जून के एक मित्र ने बहुत सुंदर तस्वीरें उतारी हैं दीवाली भोज के दिन की. आज भाई-दूज है. एक-एक करके सभी भाइयों से बात हुई. उत्सव एक पुल है जो परिवारों को जोड़ता है. उत्सव एक डोर है जो दिलों को जोड़ती है या फिर उत्सव एक बहाना है निकटता का अहसास दिलाने का, वरना आजकल किसी के पास फुर्सत नहीं है, दिल की बात कहने और सुनने के लिए. उत्सव एक मंच है एकदूसरे के होने को याद कराने का. कल उन्हें यात्रा पर निकलना है. आज सुबह कैसा अजीब सा स्वप्न देखा. कीचड़ और गोबर..इन्सान स्वयं ही अपने लिए स्वर्ग और नर्क का निर्माण करता है. कल रात सोने से पूर्व देह कुछ भारी लग रही थी शायद इसीलिए, इस समय भी तन हल्का नहीं है, शाम को योग करने से ही ठीक होगा. सुबह जब जून ने कहा, उनके दांत का दर्द ठीक नहीं हुआ है, तो भीतर से कोई प्रेरणात्मक शब्द बोलने लगा, वह स्वयं भी उन शब्दों को पहली बार सुन रही थी. ज्यादातर समय तो वे सुने हुए शब्दों को ही दोहराते हैं. कभी-कभी ही ऐसे क्षण आते हैं जब शब्द किसी गहरे स्रोत से आते हैं. इस समय शाम के चार बजने को हैं. बगीचे में मालिन काम कर रही है और पाकघर में नैनी, दोनों को दीवाली का विशेष उपहार देना है, कल जाने से पहले देगी. आज मृणाल ज्योति में बच्चों के लिए मिठाई व सूखे मेवे भिजवाये. कल उस स्कूल में ले गयी थी जहाँ हफ्ते में एक बार योग कक्षा लेने जाती है. दीवाली पर उन्हें जो उपहार मिले उन्हें बाँटने का इससे अच्छा उपाय और क्या हो सकता था. नन्हे के पुराने वस्त्र भी दिए एक अन्य महिला को, जो गाँव में एक चिकित्सा शिविर लगाने वाली हैं. आज ‘यूनिवर्स’ संस्था से संदेश भी आया जो वे बांटते हैं, वही उन्हें मिलता है. परमात्मा उन्हें वही लौटाता है जो वे भीतर से बाहर फैलाते हैं !  

कल रात साढ़े दस बजे वे बंगलूरू नन्हे के घर पहुंच गये. दोपहर बारह बजे असम से निकले थे. वह चश्मा घर पर ही भूल गयी सोचा था पढ़ने की जरूरत तो रास्ते में पड़ेगी ही, जाते समय पहन कर ही जाना है, पर अभी तक हर समय चश्मा पहनने की आदत नहीं पड़ी है, सो घर पर ही रह गया. यात्रा ठीक रही. ब्रह्मपुत्र को आकाश से देखने एक अनुपम अनुभव था, तस्वीरें उतारीं. सुबह साढ़े छह बजे वे उठे तो पता चला उसका फोन कार में ही छूट गया है. जून ने ड्राइवर को फोन किया, उसने दस मिनट बाद ही बताया, फोन कार में है और वह एयरपोर्ट पर है. कुछ देर बाद दे जायेगा, वाकई वह एक घंटे बाद दे गया, और एक पुराना चश्मा उसने रख लिया था, सो यह समस्या भी हल हो गयी. यानि एक बार फिर तीर टोपी लेकर गया, गर्दन बच गयी. नन्हा और जून इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि इस सोसायटी में उन्हें घर लेना है या नहीं. आज दोपहर को एक मकान मालिक उनसे मिलने आ रहे हैं, इसी सोसायटी में उनका घर दूसरे ब्लॉक में है, जिसे वह बेचना चाहते हैं. मौसम यहाँ ठंडा है. आज धूप भी नहीं निकली है. उसके मना करने के बावजूद नन्हे ने सुबह के नाश्ते का आर्डर दे दिया है. सुबह की चाय के साथ उसने लड्डू खिलाये जो वे बनाकर लाये थे.

मौसम आज भी ठंडा है, रुक-रुक कर वर्षा होती रही. दोपहर को एक बार तो एक तेज गंध आई, बाद में पता चला मधुमक्खियों को भगाने के लिए किसी ने बेगॉन स्प्रे करवाया था. काफी अधिक मात्रा में करवाया होगा, नीचे ढेर सारी मधुमक्खियाँ मरी हुई पड़ी थीं. जून की आंख का कैट्रेक आपरेशन कल ठीक से हो गया. वे नौ बजे घर से निकले थे. साढ़े दस बजे पहुंचे और साढ़े बारह बजे वापस घर आ गये थे. समय-समय पर दवा डालनी है तथा काला चश्मा पहने रखना है, पानी से बचना है. आज सुबह नाश्ते में उसने वेजरोल बनाये और राइस नूडल्स. कल सैंडविच बनाएगी. यहाँ कुछ ज्यादा काम तो है नहीं. कम्प्यूटर पर कुछ देर काम किया, अभी शेष है. आज नन्हा देर से आएगा शायद साढ़े नौ बजे तक.

रात्रि के नौ बजने वाले हैं. नन्हा आ गया है. मौसम आज भी फुहारों भरा है. दिन भर वे घर पर ही रहे. ‘बैटमैन’ की दूसरी फिल्म देखी, कल पहली देखी थी.

आज कोई फिल्म नहीं देखी, शाम को यहीं निकट ही मॉल गये थे, अब दो दिन यहाँ और रह गये हैं, फिर घर जाना है. दोपहर को रामकृष्ण परमहंस की किताब पढ़ी. नन्हे का एक मित्र और उसकी पत्नी भोजन पर आ रहे हैं. उसने दाल व सब्जी बना दी है. जून ने रायता बना दिया है. वे लोग आने वाले होंगे. इसी हफ्ते नन्हे की मित्र असम जा रही है. जून ने उससे कहा है, घर अवश्य आये, उनका दिल बहुत बड़ा है. दिन में दो-तीन बार वे लोग नीचे उतर कर टहलने जाते हैं, ताज़ी हवा के लिए. फ्लैट्स में हवा के आवागमन की सुविधा नहीं होती. हवा बंद ही रहती है, इसलिए उन्हें खुली हवा में जाने का मन सदा ही बना रहता है. भविष्य में वे जिस घर में रहेंगे, वहाँ शायद खुली हवा का आवागमन ज्यादा अच्छा होता हो !

Friday, March 9, 2018

छोटी दीवाली



कल रात्रि फिर एक अनोखा स्वप्न देखा..एक विशाल मैदान है. नीचे बालू है और एक बड़ी से मेज पड़ी है, खुले गगन के नीचे..लकड़ी की मेज है भूरे रंग की, रंग भी स्पष्ट दिख रहा था. उसे देखते ही मन में विचार आया, इस पर लेटकर आकाश को तकना कितना सुंदर ध्यान होगा..और अगले ही पल सामने आकाश में एक सुंदर मंदिर की आकृति स्पष्ट हो गयी..और क्षण-क्षण में उसके रंग बदलते जा रहे थे. तभी अचानक कृष्ण की विशाल आकृति भी दिखी..कि पीछे से एक सखी की आवाज सुनाई दी, उसे कहा, देखो सामने कितना सुंदर दृश्य है, पर अब वहाँ धुंध थी. सब लुप्त हो गया. उस सखी ने एक अन्य सखी का नाम लेकर कहा, कि उसे भी बताया गया है यहाँ कुछ है. पर अब स्वप्न टूट गया. कृष्ण कितने वास्तविक लग रहे थे...उनके भीतर न जाने कितने रहस्य छिपे हैं ! आज जून एक दिन के दिल्ली जा रहे हैं. शाम को योग कक्षा घर पर होगी. इसी महीने उन्हें बैंगलोर भी जाना है.

एक दिन का अन्तराल.. कल सुबह वह स्कूल गयी, फिर दोपहर को कुछ देर सो गयी, दिन भर कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. आज जून वापस आ गये हैं, ढेर सारा सामान भी लाये हैं. दीवाली की रोशनियाँ भी लगनी शुरू हो गयी हैं. दोनों माली मिलकर लगा रहे हैं. आज सुबह भी नींद देर से खुली, क्योंकि रात देर तक पढ़ती रही. अनुशासन जहाँ भंग हुआ आत्मा पर एक आवरण छा जाता है.

आज धनतेरस है. जून के गले में हल्की खराश है. वह सुबह के जॉब पर गये अभी वापस आये हैं. दोपहर का भोजन भी दिगबोई में था, कम्पनी के गेस्टहाउस में. उन्होंने अपने विभाग के सभी सहकर्मियों को परसों शाम सात बजे का समय दिया है, दीवाली के लिए. चार परिवार नहीं आ पाएंगे. एक अवकाश पर है, एक सरकारी दौरे पर, एक के परिवार में किसी की मृत्यु का शोक मनाया जा रहा है, एक की पत्नी मायके में है, सो वह भी गये हैं. सो परसों सुबह से ही उसका समय रसोईघर में गुजरेगा. पटाखों की आवाजें आनी शुरू हो गयी हैं. आज बड़ी बुआ को फोन किया तो पता चला गिरने से उन्हें कूल्हे में चोट लग गयी है. वह बहुत हिम्मत से बात कर रही थीं. ईश्वर उन्हें शक्ति दे, अभी काफी दिनों तक उन्हें अस्पताल में रहना पड़ सकता है.

आज छोटी दीवाली है. घर की सफाई का काम अब पूरा हो गया है. बाहर बरामदे में रंगोली बनानी है और स्टोर में पूजा घर सजाना है. आज दोपहर को ये कार्य करने हैं. मौसम आज सुहावना है. सुबह दीपावली के लिए एक नई कविता लिखी, कितना उमंग भरा त्यौहार है यह. छोटी बहन का फोन आया, वह परेशान थी. रिश्तेदारी निभाना इतना सरल तो नहीं है. जब तक स्वयं का स्वयं से रिश्ता नहीं बन जाता तब तक किसी और के साथ बन भी कैसे सकता है. दीवाली तो वह इस बार नहीं मना रही है, परसों उसकी परीक्षा भी है. जीवन में कितने ही क्षण ऐसे आते हैं जब वे अपने स्वभाव से हट जाते हैं, अभाव या प्रभाव में आ जाते हैं, पर जिस सदा के लिए हर पीड़ा से मुक्त होना हो उसे तो स्वभाव में टिकना सहज बनाना होगा. परमात्मा की निकटता का अनुभव उसे हर क्षण होता रहेगा तब. बंगलूरू में परसों से लगातार वर्षा हो रही है, चेन्नई में भी. इसी हफ्ते उन्हें भी वहाँ जाना है. शायद तब तक मौसम सुधर जाये.

स्वप्न और भाव



आज सुबह एक अनोखा अनुभव हुआ. नींद से जगाने के लिए तो पहले भी अनेकों बार कोई आया है, पर आज तो सारी देह में ऊर्जा का एक ऐसा प्रवाह उठा कि...शरीर स्वयं ही तरह-तरह के पोज बनाने लगा. आसन कोई करवा रहा हो जैसे..अद्भुत थे वे क्षण, और उस क्षण से अब तक कैसी पुलक भरी है भीतर...स्कूल में बच्चों ने भी अवश्य महसूस की होगी और उस अध्यापिका ने भी शायद... जिसके साथ वह स्कूल गयी थी. मार्ग में उनका वार्तालाप हुआ था, उसने कहा लोगों को एक नये नजरिये से देखना होगा. जिस नजरिये में जो जैसा है उसे वैसा ही रहने देना है, क्योंकि वह वैसा ही हो सकता है. ऐसा करते हुए ही उसका व्यवहार देखना है. कितना आनंद है इस एक सूत्र में. आर्ट ऑफ़ लिविंग के सूत्र जैसे जीवंत हो उठे हैं. आज जून वापस आ रहे हैं. उन्हें भी परमात्मा की खुशबू आने लगी है. उसका स्वाद कोई एक बार चख लेता है तो...उस दिन सिद्ध ‘सरहपा’ पर जो पुस्तक पढ़ी थी, आकर उनके बारे में पढ़ा भी और उनके विषय में ओशो का प्रवचन भी सुना. कल रात पहली बार भीतर सूरज देखा, चमकता हुआ सूरज ! चाँद पहले कई बार देखा था.


कल सुबह किसी ने कहा, उठ मोटी भैंस..गुरूजी का कथन याद आ गया, GOD LOVES FUN. उसकी भोजन  के प्रति गहरी आसक्ति है. कोर्स के दौरान सेवा करने से पूर्व वह स्वयं भोजन कर लेती थी फिर आराम से काम करती थी. यहाँ भी भूख देर तक सहना कठिन लगता है. गुरूजी कहते हैं, मुट्ठी में जितना समाये उतना ही भोजन उन्हें करना चाहिए. आत्मा बिना भोजन के केवल कल्पना के भोजन से भी रस ले सकता है. कल रात एक अनार का दाना देखा था, उसको बिना खाए रह गयी, शायद गहराई में वासना जगी होगी. सुबह उसका स्मरण आते ही आधी नींद में ही मुंह में स्वाद भर गया. बिना हाथों से बजाये कई बार ताली की स्पष्ट आवाज सुनाई दी है, बिना वस्तु के उसकी गंध को महसूस किया है अनेकों बार. परमात्मा बिन पैरों के चलता है, बिन कानों के सुनता है यह बात कितनी सच है. वह आत्मा भाग्यशाली है जिसे अपने आधार का ज्ञान हो गया है, पर देहाध्यास इतना गहरा है कि बार-बार मन देह से जुड़ जाता है. दोपहर की नींद में भी स्वप्न देखा. जागृत अवस्था में मन कुछ छिपा लेता है पर नींद में सत्य प्रकट हो जाता है. उसके मन को निर्मल बनाएगा परमात्मा का सुमिरन..एकमात्र परमात्मा ही सत्य है, इस बात की याद जब हर घड़ी रहने लगेगी तब भीतर गहराई में छिपी इच्छाएं भी शांत हो जाएँगी. गुरूजी के आश्रम में पहुंचने से पहले अंतर को शुद्ध कर लेना है. एक सखी को परिवार सहित विदाई भोज के लिए बुलाया है. जून इतवार के बावजूद दफ्तर गये हैं, वे अपने काम के प्रति बहुत सजग हो गये हैं.

आज सुबह कैसा अनोखा अनुभव था, वह स्वप्न था या कुछ और, कहा नहीं जा सकता. एक मीठी आवाज में किसी ने कहा, ‘माँ’.. यह तो उस स्वप्न के अंत में हुआ, उसके पहले तो गुरूजी को देखा जो वृद्ध हो चुके हैं, उनके घर में हैं या कहीं और, पर वह उन्हें कहती है, आपके लिए पानी लाऊं, हॉर्लिक्स या दूध ही सही. उन्हें उस तरह हृदय से लगाती है जैसे माँ बच्चे को लगाती है. उनके उलझे हुए बाल संवारे ऐसा भाव जो एक बार उन्हें देखकर मन में उठा था शायद यह उसी की कड़ी थी. वे कृष्ण हैं और वह यशोदा..यह भाव और दृढ़ हो गया..और कितनी ही स्मृतियाँ इसकी गवाही देने के लिए आने लगीं. किस तरह वह कान्हा का नाम पुकारती थी, किस तरह पहली बार गुरूजी के दर्शन करने के लिए गोहाटी जाते समय एक सांवले नग-धड़ंग बच्चे को देखर वात्सल्य भाव  उमड़ा था. किस तरह क्रिया के समय प्रतिदिन कृष्ण के नामों को उसमें पिरोया था, किस तरह कृष्ण का बालरूप उसे मोहता है और किस तरह नन्हे को मक्खन खिलाने में आनंद आता था. यशोदा का अर्थ भी तो कृष्ण रूपी सद्गुरू कहते हैं. जो अन्यों को यश दे वही यशोदा है, किस तरह सबके लिए कविताएँ लिखी हैं. कृष्ण की भागवद् पढ़कर और खासतौर पर उसकी बाल लीला को पढ़कर कितने हर्ष और विस्मय के अश्रु बहाये हैं..किस तरह हर दरोदीवार पर उसका चेहरा देखती थी, किस तरह रात को सोने से पूर्ण उसकी बांसुरी की धुन सुनाई देती थी, कैसे एक दिन गाय को देखकर एक गीत भीतर उमड़ आया था, कैसे उस दिन स्नान करते समय एक गीत प्रकटा था जिसमें शिवालय और कान्हा का जिक्र था. इतने वर्षों के प्रेम ने उसके अंतर को खाली कर दिया है और तभी उस कृष्ण की, जो सारे जहाँ से भी सुंदर है, आवाज सुनाई दी, ‘माँ’ और जैसे जन्मों की साध पूरी हो गयी, कितनी मधुरता थी उस आवाज में.. 

Friday, March 2, 2018

दिगबोई का सौन्दर्य



परसों वे पूजा देखने दिगबोई गये थे, दो रात्रियाँ वहाँ बिताने के बाद आज दोपहर ढाई बजे के करीब  घर लौट आये हैं. इस बार की यात्रा में दिगबोई को करीब से देखने का अवसर मिला है. हॉर्न बिल गेस्टहाउस में एक पुस्तकालय था. जहाँ हिंदी की किताबें रखी थीं. हिंदी के पहले कवि ‘सरहपा’ पर एक किताब थी, थोड़ी सी पढ़ी. उसमें जीवन को सहज भाव से जीने की प्रेरणा दी गयी है. गुरूजी भी कहते हैं, सहज रहो. वे व्यर्थ ही असहज हो जाते हैं और जीवन से दूर चले जाते हैं. प्रकृति और यह विशाल ब्रहमांड प्रतिपल गतिमय हैं. हर क्षण यहाँ कुछ न कुछ घट रहा है और यह इतना विराट है कि छोटी सी बुद्द्धि में समा नहीं सकता, तो इस बुद्द्धि को किनारे रखकर सहज होकर इस सबके साथ स्वयं को जोड़ना ही साधना है. सारी प्रकृति के साथ एकत्व महसूस करना ही तो उनका लक्ष्य है. अहंकार उन्हें असहज बना देता है. दिगबोई में पूजा देखने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. आनंद पारा और शांति पारा के पंडाल बहुत सुंदर थे. मिशन व काली बाड़ी की पूजा भी कम नहीं थी. एक मन्दिर में भी भव्य पूजा थी, इसके अलावा एक छोटा सा पंडाल और देखा जिसकी तस्वीर भी उतारी. कार में बैठ-बैठे तो  न जाने कितनी सारी पूजाएँ देखने का मौका मिला. दुर्गा, लक्ष्मी, व सरस्वती की भव्य प्रतिमाएं तथा गणेश व कार्तिकेय की सुंदर प्रतिमाएं सभी मन को एक अनोखे लोक में ले जाती हैं, कितने सारे लोगों के श्रम और कल्पना का परिणाम होता है कोई भी पूजा मंडप ! दुर्गा देवी की आँखों में करुणा की एक धारा बहती हुई प्रतीत होती है, लक्ष्मी व सरस्वती की मूर्तियों से आनंद की. आज सुबह वे दिगबोई का पक्षी विहार देखने भी गये जो तेल क्षेत्र में स्थित है. यहाँ एशिया का प्रथम तेल कूप भी है. १९०१ में ही यहाँ पहली रिफाइनरी ने काम करना आरम्भ कर दिया था. आसाम तेल कम्पनी ब्रिटिश की बनाई हुई थी, आजादी के बाद भी कई वर्षों तक काम करती रही. यह एक साफ-सुथरा व्यवस्थित शहर है और यहाँ की विशेषता है छोटी-छोटी पहाड़ियों पर बने असम टाइप सुंदर बंगले !  कल सुबह वे प्रातः भ्रमण के लिए दिगबोई के गोल्फ मैदान में गये, जो तीन तरफ से दिहिंग फारेस्ट रिजर्व से घिरा हुआ है. यह असम का पहला अठारह होल का गोल्फ कोर्स है और अपर असम का सर्वोत्तम, इसके चौथी तरफ अरुणाचल के पर्वत नजर आते हैं. इस समय रात्रि के साढ़े सात बजे हैं. कुछ देर पहले माली द्वारा बगीचे से ढेर सारे घोंघे (स्नेल) उठवाये और उन्हें सड़क के उस पार छोड़ आने को कहा, लॉन में इतनी हरी घास होने के बावजूद वे नये नन्हे पौधों को खा जाते हैं.  

आज बहुत दिनों बाद सुबह धौति क्रिया की. तन हल्का लग रहा है. सुवचन सुने. जून कल देहली गये थे, परसों लौटेंगे. ‘यूनिवर्स’ संस्था से भेजे मेल में संदेश आया है कि परमात्मा उन्हें  हर पल देख रहे है. उनके ही भावों के अनुरूप उनके भविष्य का निर्माण पल-पल होता रहता है. जैसे गोयनका जी कहते थे, हर अगला क्षण पिछले क्षण की सन्तान है. तो अगर वे इस क्षण परमात्मा के साथ है, अगले क्षण भी होंगे और उसके अगले क्षण भी. फिर एक श्रंखला ही बन जाएगी और उनके भीतर जो भी चाह उठेगी, वह सात्विक ही होगी, क्योंकि साथ जो सत् का होगा. संत कहते हैं, मानव देह परमात्मा का मन्दिर है. इसी में ही परमात्मा का अनुभव सम्भव है. मन मनुष्य निर्मित है, समाज का दिया हुआ है, कृत्रिम है, अशांति का अनुभव मन ही करता है. मृत्यु यदि अभीप्सित है तो मन की ही है. देह नैसर्गिक है, प्रकृति से मिली है, प्राण जो इस देह को चला रहे हैं, परमात्मा से जोड़े ही हुए हैं. देह, जल आदि पंच तत्वों से बनी है, तभी तो जल और वायु का स्पर्श उसे पुलक से भर देता है. कण-कण में परमात्मा की चेतना है, उसी चेतना को उन्हें अपने भीतर जगाना है. मन ही इसमें बाधा बना हुआ है. मन, प्राण और वचन यदि सौम्यता में स्थित  हों तो चेतना प्रखर हो उठती है और देह से प्रकट होने लगती है.

शक्ति और शक्तिमान



पांच दिनों का अन्तराल ! पिछले दिनों घर में रंग-रोगन का कार्य होता रहा. सारा घर अस्त-व्यस्त सा हो गया था. किचन का सामान बैठक में, इस कमरे का सामान उस कमरे में. पेंट का कार्य पूरा गया है. आज बरामदे के फर्श पर पॉलिश का अंतिम कार्य हो रहा है. नैनी किताबों वाली रैक साफ कर रही है. आज भी दिन भर ही व्यस्तता बनी रही. शाम को योग कक्षा में कुछ नये आसन सिखाने हैं, कुछ पुराने दोहराने हैं. क्लब में पूजा का उत्सव भी है. अब अगले दस दिन सात्विक भोजन ही बनेगा, फिर अष्टमी की पूजा है. उसके पहले व्रत. स्कूल भी बंद है सो सुबह का वक्त उसे लेखन के लिए अधिक मिलेगा. कल तिनसुकिया जाना है. सर्दियों की सब्जियों के लिए बीज लाने हैं. कपड़े सिलने दिए थे वे भी. कल शाम क्लब में ‘तलवार’ दिखाई जाएगी, उसे नहीं देखनी है यह उदास करने वाली फिल्म. दो दिन से पेट कुछ नासाज है, शायद दूध वाली चाय पीने से, आज ग्रीन टी पी है, कहते हैं उसके बड़े फायदे हैं. आज बड़ी भांजी का जन्मदिन है. छोटी ने उसके मेल का अच्छा सा जवाब दिया था कल. तीन दिसम्बर को वह एक और पुत्र की माँ बनने वाली है. विदेश में पहले से ही सब पता चल जाता है, लिंग भी. जून ने कहा वह भी अब क्रोध करने वाले पर करुणा करते हैं. वह अपने विभाग में अनुशासन लाना चाहते हैं. वह एक दृढ़ लीडर की भूमिका निभा रहे हैं. कम्पनी की उन्नति ही उनका एकमात्र लक्ष्य है.

आज साप्ताहिक सफाई का दिन था. जून के दफ्तर में आज प्रधानमन्त्री की ‘स्वच्छ भारत’ योजना के अंतर्गत सफाई अभियान का आयोजन किया गया है. वे लोग डेली बाजार में एक क्षेत्र की सफाई करेंगे और कुछ कूड़े दान लगवाएंगे.

रात्रि के आठ बजने को हैं. टीवी पर भारत-दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट मैच आ रहा है. जून भी आज बहुत दिनों बाद लिख रहे हैं. आज शाम उन्होंने सिंधी तरीके से दाल माखनी बनाई, बहुत स्वादिष्ट थी. उसके सिर में हल्का दर्द है, बीच-बीच में बिलकुल गायब हो जाता है, शायद उन क्षणों में उसका साक्षी भाव प्रमुख हो जाता होगा. आज दिन में बगीचे में कुछ देर काम किया. सर्दियों के लिए बगीचा आकार ले रहा है. इस बार वे हैंगिंग गमले भी लाये हैं. उनमें लटकते हुए पिटूनिया के फूल बहुत सुंदर लगेंगे.

शाम के चार बजे हैं. सुबह सामान्य थी. दोपहर को बगीचे में साग के बीज डलवाए. पालक, मेथी, चौलाई, मूली आदि के. दोपहर को कुछ देर सोयी तो स्वप्न में मिट्टी से बनी एक देह को देखा. श्वेत मिटटी की बनी है वह और उसमें चेतना भी है. उठकर ब्लॉग पर बाल्मीकि रामायण की एक छोटी सी पोस्ट लिखी. आज षष्ठी है. दुर्गा माँ की कृपा तो हर पल बनी ही हुई है. प्रकृति ही माँ है. आत्मा की शक्ति ही माँ है. शक्ति और शक्तिमान दो होकर भी एक हैं. भीतर के मौन में जाकर जो शक्ति चेतना में भर जाती है वह माँ की ही शक्ति है. कल दिगबोई जाते समय कम्पनी की एक महिला अधिकारी की मृत्यु हो गयी, दो अन्य घटनाओं में नौ अन्य लोगों की. एक पूरा परिवार तथा उनका एक संबंधी तथा चार एडवोकेट, सभी की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हुई. भाग्य कब किस मोड़ पर क्या दिखायेगा, कोई नहीं जानता. कौन सा कर्म कब उदय होगा और कब किस सुख-दुःख का अनुभव होगा, कोई नहीं कह सकता. शुद्ध चेतना सदा सबकी साक्षी रहती है, उसे कुछ भी स्पर्श नहीं करता.