दोपहर का भोजन आते ही मिल गया, हल्का-फुल्का शाकाहारी भोजन स्वादिष्ट था. उसके बाद
उन्होंने स्थानीय दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी हासिल की, सौभाग्य से यहाँ
के वर्तमान संसद सदस्य वहीं थे, वे नये वर्ष पर उसी रिजॉर्ट में पार्टी आयोजन करने
के सिलसिले में बात करने आये थे. उन्होंने ‘सैली लेक’ तथा ‘नेहरु उद्यान’ देख आने
के लिए कहा. रोइंग से छह किमी दूर स्थित ‘सैली झील’ हरे-भरे वृक्षों तथा पहाड़ियों
से घिरी है. झील के चारों ओर सुंदर भ्रमण पथ बने हैं. तस्वीरों में उसकी सुन्दरता
को कैद किया और कुछ देर वहाँ रुकने के बाद वे नेहरु उद्यान पहुंचे, जो एक विस्तृत
इलाके में फैला है, बच्चों के लिए झूले, ग्रीन हॉउस तथा फूलों के बगीचे और विशाल
पेड़ों से सजा यह उद्यान सुबह-शाम घूमने वालों के लिए आदर्श स्थान है. लौटे तो नदी
किनारे जाकर कुछ तस्वीरें लीं शाम ढलने को थी, डूबते हुए सूर्य को प्रणाम करते हुए
वे कमरे में लौट आये.
जिस कमरे में बैठकर वह लिख रही है, उसके फर्श पर बेंत से बनी सुंदर चटाई बिछी
है. दीवारें तथा छत भी लकड़ी तथा पतले बांस की बनी हैं. लकड़ी की ही शय्या है,
दरवाजे से बाहर निकलते ही एक बड़ा सा अहाता है, जिसका फर्श भी लकड़ी का है. कुछ ही
दूर पर भोजनालय है और दायीं ओर एक नदी बहती है. सामने ऊंचे पहाड़ हैं. इस कैम्प तक
पहुंचने से कुछ कदम पहले ही यहाँ के भूतपूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान सांसद श्री
मुकुट मिथि का बंगला है, जो शानदार है. अभी कुछ देर पहले वे उनके निमन्त्रण पर एक कप कॉफ़ी पीने गये. उनकी मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाया, वे सरल स्वभाव के हैं तथा उन्हीं की तरह
उनकी पत्नी भी बहुत गर्मजोशी से मिलीं. वे मिशिमी जन जाति के हैं, इस जाति की भी
तीन उपजातियां हैं, जिनके लोगों की पहचान पारंपरिक वस्त्रों के रंगों से होती है.
घर की साज-सज्जा पारंपरिक व आधुनिक वास्तुकला का मेल
थी. देश के कई भूतपूर्व कांग्रेसी नेताओं के चित्रों को वहाँ देखा. घर के पिछले
भाग में एक बड़ा सा हॉल था, जहाँ बीचोंबीच
व्यवस्थित ढंग से आग जल रही थी, छत से लटकता हुआ एक बांस का बना चौकोर तख्ता देखा,
जिस पर महीन बेंत की चटाई लगी थी, जो धुंए को अपने में समा लेता है. फर्श पर भी
चटाइयां बिछी थीं. कई बेंत के मूढ़े पड़े थे. उन्होंने बताया, उनके गाँव में हर घर
में एक ऐसा स्थान होता है, परिवार का मुखिया उस स्थान पर बैठता है. दायीं तरफ
पंक्तिबद्ध उसकी घर की महिलाओं के कमरे होते हैं. यहाँ पहले बहुपत्नी प्रथा थी.
सभी महिलाएं अपने-अपने यहाँ पकाए भोजन को वहाँ लाकर रख देती हैं तथा सब मिलकर भोजन
ग्रहण करते हैं. उन्होंने अरुणाचल के इतिहास व भूगोल के बारे में उनके साथ रोचक
वार्तालाप का आनन्द लिया. ब्रह्मपुत्र के जन्म तथा परशुराम कुंड से जुड़ी पौराणिक
कथाएँ भी उन्होंने सुनायीं. एक बार ऋषि शांतनु व उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति के लिए
तप कर रहे थे, प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी वर देने आये तो ऋषि वहाँ नहीं थे. उनकी
पत्नी ब्रह्मा जी के चार मुख देखकर भयभीत हो गयीं. पुत्र का जन्म हुआ पर वह द्रव
रूप में था, जो ब्रह्मपुत्र नद कहलाया. परशुराम ने जब पिता के कहने पर अपनी माता
का सर काटा तो परशु उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था, वे इस स्थान पर आये जहाँ
ब्रह्पुत्र का बहाव रुक हुआ था, उस पर्वत पर प्रहार करने से उनका परशु विलग हो
गया. एक पंजाबी संत की कथा भी उन्होंने सुनाई जो घूमते हुए यहाँ आ गये थे. सदियों
से यहाँ भारत के दूर-दूर स्थानों से साधू-संत आते रहे हैं. भारत एक अनोखी संस्कृति
वाला देश है और देश की एकता के सूत्र हर क्षेत्र में बिखरे हुए हैं. कल उन्हें ‘मायोदिया’ देखने जाना है जो आठ हजार
फीट की ऊंचाई पर स्थित एक दर्रा है.
शाम के पांच बजे हैं. वे अभी-अभी अपने कैम्प में आये हैं. बेंत की चटाइयों से
बनी दीवारों वाला यह कमरा आज की रात भी उनका निवास स्थान है. सुबह पांच बजे नींद
खुली. बाहर अँधेरा था. वायदे के अनुसार यहाँ काम करने वाला एक किशोर दो बाल्टी
गर्म पानी ले आया. यहाँ काम करने वाले तीनों किशोर पढ़ाई भी कर रहे हैं, सुबह का
काम निपटा कर वे स्कूल चले जाते हैं, दोपहर बाद फिर से आ जाते हैं. साढ़े सात बजे वे
भोजन कक्ष में नाश्ते के लिए पहुंचे. ठीक आठ बजे मायोदिया के लिए रवाना हुए जिसके
आगे ‘हुलनी’ नामक स्थान है. रोइंग मात्र सोलह सौ फीट की ऊँचाई पर है. मात्र
सत्तावन किमी की यात्रा में उन्हें साढ़े छह हजार फीट की ऊँचाई पर पहुंचना था.
रास्ता मनोरम था किन्तु रोमांचक भी. ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से घिरे पहाड़ तथा गहरी
घाटियाँ. नीली-हरी पर्वतों की श्रंखलायें अपनी ओर बुलाती प्रतीत होती थीं. काफी
जगह सड़क टूटी हुई थी, सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था. मील के पत्थरों पर तिवारी
गाँव का नाम पढ़कर उन्हें थोडा अचरज हुआ. पता चला कि वास्तव में ऐसा कोई गाँव नहीं
था, पर एक जगह तिवारी नाम का एक व्यक्ति जो सड़क
निर्माण के कार्य में नियुक्त था, वर्षों तक रहा, उसी के नाम पर उस स्थान
का यह नाम पड़ गया.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरु अंगद देव और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
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