Wednesday, July 31, 2013

अभी मत जाओ भैया..


आज पूरे चार दिनों के बाद नन्हे का स्कूल खुला था और जून का दफ्तर भी, सो सुबह व्यस्त थी. कल दोपहर का भोज अच्छा रहा, उसकी सखी का घर कुछ बिखरा-बिखरा सा है और इसी तरह उसका मिजाज भी, शायद स्वास्थ्य के कारण, पर सदा ही वह अपने इर्द-गिर्द बुने एक दायरे में ही रहती है. इसके विपरीत एक दूसरी सखी अन्यों की बात सुनती है. तीन दिनों के बाद जून को फिर से जाना है, सो इस साथ को अधिक से अधिक खुशगवार बनाना है. मौसम ने अपना रुख वही रखा है, दिल्ली तथा उत्तर भारत में शीत लहर, कश्मीर में हिमपात और असम में बादल हैं. उनके बगीचे में कैलेंडुला खिल गये हैं, बहुत सुंदर लगते हैं और दो गुलाब भी, उस पौधे में जो मार्केट से लाकर उन्होंने पिछले साल लगाया था.

आज शाम को वे एक मित्र के यहाँ गये, एक शंख तथा ‘की रिंग’ लेकर, पहले किसी भी उपहार को देखकर उसकी सखी ने इतनी ख़ुशी जाहिर की हो, याद नहीं पड़ता, आज का उसका उत्साह देखते ही बनता था, उसे भी अंदर तक छू गया और आज की शाम अच्छी बीती, उसने मन लगाकर चाय बनाई और अपने आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में बताया, आजकल वह स्वामी योगानन्द जी की किताब पढ़ रही है, पहली बार जब यह पुस्तक नूना ने पढ़ी थी अद्भुत असर हुआ था, उन दिनों जून अस्वस्थ थे, छोटी बहन की परेशानी भरी चिट्ठी आई थी और उसका मन शांत था, एक अपूर्व शक्ति का अनुभव होता था, ईश्वर पर विश्वास प्रगाढ़ हो गया था और प्रतिक्षण उसे उसकी निकटता का अनुभव होता था. आज भी यह पुस्तक पढ़ना उसे अच्छा लगता है. परमहंस योगानन्द जी जैसे साधकों के कारण ही भारत का स्थान विश्व में अनुपम है. यह एक ऐसा ज्ञान है जिसे हर व्यक्ति को चाहे वह वैज्ञानिक हो या सिपाही व्यापारी हो या विद्वान् सभी को आवश्यकता है. अपने आप को जानने का प्रयास और फिर अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास सभी को आगे ही ले जायेगा. प्रारब्ध में आये सभी कर्मों को निस्वार्थ भाव से किन्तु पूरे मनोयोग से करते जाना ही ज्ञानी का लक्षण है. सुख-दुःख, हानि-लाभ में सम भाव रखते हुए जीवन के मार्ग पर चले जाना उस ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन है.

...और आज जून जाने वाले हैं, शाम चार बजे नाईट सुपर से, फिर कुछ दिन उसे ऐसे मिलेंगे जब अपने आप का साथ देना होगा, खुद से बातें करनी होंगी, थोड़ा अपने को बेहतर जानने का मौका मिलेगा और दूर रहकर जून को भी ठीक से देख पायेगी, मन की आँखों से, उनकी याद आएगी, ठीक है पर उदासी नहीं होगी, इसका उसे यकीन है. वह उन दिनों को भी उनकी खूबसूरती के साथ जियेगी. शाम को नन्हे के साथ घूमने जाना फिर उसकी बातें और उसके साथ पढ़ना-खेलना, बीच- बीच में यह कहते जाना, पापा यह कर रहे होंगे ! आज उसने सभी पत्रों के जवाब दे दिए. बुआ जी के यहाँ पोता हुआ है. उन्हें बधाई का पत्र भेजना है. कल शाम वे एक मित्र परिवार में गये, उनका छोटा सा बेटा नन्हे को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था, बड़ी मुश्किल से वे वापस लौटे.



Tuesday, July 30, 2013

शंख और सीपियाँ


सुबह उठते ही दादा वासवानी का प्रवचन सुना. कितनी अच्छी बातें कहीं उन्होंने, ‘’हर रात्रि विश्राम से पहले तथा सुबह शैया त्यागने से पूर्व शांति पाठ करना चाहिए, सबके लिए भेजी गयी शुभकामना लौट कर हमारे ही पास आती है. हर घंटे पर कुछ क्षणों के लिए स्मरण करें’’. आज इस मौसम की सबसे ज्यादा ठंड है, सुबह से ही वर्षा हो रही है, मद्रास में तो धूप होगी और गर्मी भी. सफाई का काम लगभग समाप्त हो गया है, कल अंतिम काम फ्रिज की सफाई करेगी. रजाई के कवर उसने अकेले ही चढ़ाये और सिल भी दिए, जून होते तो चार-पांच बार याद दिलाते तब वह सिलती.

आज लोहरी है, पिछले साल उन्होंने पारंपरिक विधि से लोहरी मनायी थी. आज नन्हे का अवकाश है वे असमिया सखी के यहाँ गये चार घंटे वहाँ बिताये. वहाँ उसने गाजर का हलवा बनाया, उसकी सखी का इस बात में पूरा विश्वास है कि जब खाना है तो बनायें भी वे क्यूं न, यहाँ तक की काली गाजरें भी उसी से छिलवायीं, सुबह ही उसने हाथ अच्छी तरह साफ़ किये थे, जो वापस आकर फिर से किये, उसकी सखी बहुत प्रेक्टिकल है, उसना सोचा. शायद आज जून का फोन आए, या न भी आये क्योंकि कल वे आ रहे हैं, उनके साथ उसका प्रेम है और उसके साथ उनका विश्वास.

लेकिन आज वे नहीं आ सके, दोपहर को उनके बॉस ने फोन पर  बताया, फ्लाईट छूट जाने के कारण वे गोहाटी जा रहे हैं. और कल आएंगे. सुनते ही उसे रुलाई सी आने को हुई, नन्हे को बताया तो वह भी उदास हो गया, उसकी सखी को पता चला तो वे उन्हें अपने घर ले गये, कुछ देर उनो खेला, फिर उपमा खिलाई, उसकी सखी उपमा बहुत अच्छी बनती है. वापस आकर नन्हे को आग जलाने का शौक हुआ, नैनी के लडके ने लकड़ियाँ इकट्ठी कर दीं और उन्होंने लोहरी के दूसरे दिन लोहरी मनायी.

आज भी छुट्टी थी नन्हे की, पर वह सुबह उस वक्त जग रही थी जब साढ़े पांच बजे जून का फोन आया, वह आ गये हैं और कार का इंतजार कर रहे हैं, एक मित्र उन्हें लेने गये थे. उनके फोन के बाद पन्द्रह मिनट में उसने इतने सारे काम कर लिए. वह बेहद खुश थी. उन्होंने चाय पी और फिर आधे एक घंटे बाद उन्होंने अपने साथ लाये उपहार दिखाने शुरू किये, सुंदर से कई शंख व सीपियों से बनी ‘की रिंग्स’ और स्वीट होम लिखी एक बड़ी सी कौड़ी. नन्हे के लिए ग्लोब, स्केल, वीडियो गेम और उसके लिए दो साड़ियाँ, जिनमें से एक का रंग समुद्री या आकाशी नीला है जिसमें सुनहरा काम किया हुआ है तथा दूसरी सूती है, दोनों मद्रास की सबसे बड़ी दुकानों से खरीदी हुई, नेल्ली और कुमार सिल्क ! पर जून ने अपने लिए कुछ भी नहीं लिया. नन्हा भी थोड़ी देर में उठ गया, वीडियो गेम में व्यस्त हो गया. इतवार को उसका ड्राइंग टेस्ट ठीक रहा था और पढ़ाई के मूड में वह जरा भी नहीं था. जून कुछ देर के लिए सो गये और उन्होंने इतने दिनों बाद साथ-साथ लंच लिया. शाम को दो मित्र परिवार मिलने आये, अगले दिन भी बीहू का अवकाश था, सो तय हुआ कि एक जगह सब इकट्ठे होकर ‘बीहू भोज’ करेंगे, उसे गोभी मुसल्लम तथा आलू का रायता बनाना है.

आज सुबह उठकर जून ने कहा, इतने दिनों बाद वे अच्छी तरह सोये, और उसे भी कल दोपहर इतने दिनों बाद गहरी नींद आई ऐसे मदहोश कर देने वाली नींद जिसमें आँखें खुलने का नाम ही नहीं लेतीं, जून के घर आने से वे तीनों खुश हैं वरना शामें खाली-खाली लगती थीं और खास तौर पर बेहद ठंडे मौसम में हीटर के सामने अकेले बैठे रहने पर ठंड कम ही नहीं होती. यूँ ठंड का मौसम उसे पसंद है, चेहरे को स्पर्श करती शीतल हवा बहुत भली लगती है, अंदर तक ठंडक पहुंच जाती है वह कहते हैं न कलेजे को ठंडक पहुंच गयी. मिजाज भी जल्दी गर्म नहीं होता और यूँ भी डायरी के इस पन्ने के नीचे लिखी बात सच है.

Winter wind is not so unkind as man’s ingratitude.


Monday, July 29, 2013

अनुभव-एक यादगार फिल्म


आज मन शांत है, कल की उदासी के बादल छंट गये हैं, हर रात के बाद सबेरा आता है. लेकिन जब कोई परेशान या दुखी हो तो यह बात भूल जाता है. कल शाम उसने माँ-पापा से बात की, बहुत अच्छा लगा, वाकई उन्होंने बहुत असर नहीं लिया है चोरी की इस घटना का, अब वह भी सुख-दुःख, हानि-लाभ में समभाव रखने का प्रयत्न करेगी. जून कल कोलकाता जा रहे हैं, वहाँ से मद्रास जायेंगे. मौसम इस नये साल में अच्छा रहा है अब तक, खिली हुई धूप, चिड़ियों और दूसरे कई पंछियों की अलग-अलग आवाजों के बीच-बीच में गाय के रम्भाने की आवाज और लॉन के खिले हुए फूलों के बीच बैठकर लिखना उसे अच्छा  लग रहा है. दोपहर को दो लडकियाँ हिंदी पढने आ गयीं, अच्छा लगा, उन्हें ‘प्रबोध’ से पढ़ा रही है. शाम को जून और वह टहलने गये तो मार्च में की जाने वाली यात्रा के बारे में बात करते रहे. इस बार उनका जाना ज्यादा खल रहा है, यह उनके प्रति प्रेम की वजह से है या उनके बिना अकेले रहने के भय के कारण, पता नहीं. शायद दोनों के कारण, भय सिर्फ अकेलेपन का है और किसी बात से उसे डर नहीं लगता. उसने सोचा, अकेलेपन का इलाज है टीवी और उसकी परिचित महिलाएं, किसी के भी पास जा सकती है, नन्हे के स्कूल से आ जाने के बाद तो पढ़ते-पढाते, खेलते ही समय गुजर जायेगा.
जून के जाने के बाद वह कुछ देर एक पत्रिका पढ़ती रही, स्वेटर बनाया, शाम को बगीचे में कुछ देर काम किया. देर शाम को एक मित्र परिवार आ गया. कल क्लब मीट का अंतिम दिन है, वे लोग दोपहर लंच के लिए जायेंगे.
आज जून से फोन पर बात हो गयी, उसकी बैक डोर पड़ोसिन ने जब उसे बुलाया तो मन ख़ुशी से भर गया, पूरी लेन में सिर्फ उनके यहाँ ‘पी एंड टी’ फोन है, और फिर उनकी आवाज आयी, वह ठीक से मद्रास पहुंच गये. उसने सोचा है इन दिनों का उपयोग घर की अच्छी तरह सफाई करने में करेगी, मच्छरदानी धुलवाई और रजाइयों के कवर भी, तीनो अलमारियां व सारी दराजें कल से साफ करेगी. फ़िलहाल तो खतों के जवाब देने हैं.
आज जून को गये चौथा दिन है, दोपहर को पीटीवी पर उसने एक नया धारावाहिक देखा, ज्यादा अच्छा नहीं था पर पता नहीं क्यों शायद पिछले जन्म की कोई याद है जो उसे इन किरदारों से जोडती है. नन्हा आज देर से आया, उसकी असमिया क्लास थी. कल रात उसका गृह कार्य खत्म होने में नौ बज गये, तब उन्होंने खाना खाया, जून होते तो सब काम समय पर हुआ होता.

सुबह से बारिश हो रही है, उसने सोचा, मद्रास में तो धूप निकली होगी, शाम को वे क्लब गये लाइब्रेरी, वहाँ बीहू के त्यौहार की तयारी शुरू हो गयी है. लाइब्रेरी में उसने धर्मयुग पढ़ा, उसे पढना हमेशा ही अच्छा लगता है. आदर्शोन्मुख लेख, मार्मिक कहानियाँ और सीधी सारी कविताएँ, चिन्तन या दर्शन पर लेख सभी कुछ प्रेरणास्पद है, लेकिन कुछ देर पढ़कर महसूस कर लेने से क्या कर्त्तव्य की इतिश्री हो जाती है. दुनिया में करने को कितना कुछ है पर इसके लिए चाहिए दृढ इच्छा शक्ति, लगन और सेवा की भावना. वे लोग किसी और ही मिट्टी के बने होते हैं, जो कुछ करके इस दुनिया से जाते हैं. वह इन विचारों में खोयी थी कि नन्हे ने कहा असमिया आंटी ने कहा है की ‘एल’ देखे, यानि टीवी का एल चैनल और विचारों का तारतम्य टूट सा गया है.

‘फिर कहीं कोई फूल खिला चाहत न कहो इसको
फिर कहीं कोई दीप जला मंजिल न कहो इसको’

आज वर्षों बाद अनुभव देखी, ‘पराग’ में एक बार अनुभव, सारा आकाश, भुवन शोम जैसी फिल्मों के नाम पढ़े थे, तभी से मन में एक छोटी सी इच्छा थी इसे देखने की. संजीव कुमार और तनुजा की यह फिल्म उसे गहरे तक छू गयी है. जून होते तो साथ-साथ वे इसे देखते. उसने डायरी उठा ली मन के उन भावों को उतारने के लिए जो इस फिल्म ने उभार दिए हैं, ढेर सा प्यार और बहुत गहरा विश्वास, किसी के इतने करीब आने का अहसास कि गुजर सके न दरम्यां से हवा  !

जब दिल के नजदीक किसी कली के चटकने की आवाज आयी
और दरख्त से कोई पत्ता हवा में लहराता हुआ घास से टकराया
 ओस की बूंद किरन से ले गर्माहट बादल बन गयी
 मन्दिर में जलता दिया बुझने से पहले फड़फड़ाया  
 शाम से रात होने में जब एक पल बाकी था
हर उस घड़ी एक याद उसके साथ थी
गहरी धड़कन जो विश्वास में सम रहती है
शांत बहती नदी की धारा की तरह
है आँखों में चमक दोस्ती की
जो सम्भालती है हर ऊँचे नीचे रस्ते और ऊबड़ खाबड़ जमीन पर कदमों को
तुम जीवन की आस ही नहीं, उसका सत्व हो ! जीवन का तत्व !







Saturday, July 27, 2013

चोर चोर


आज सुबह सफाई करने-कराने में बीती, कल ही उसने स्वीपर से कह दिया था, आज जाला साफ करना है, फौरन मान गया, नये साल में शायद उसने भी पक्का इरादा किया होगा कि... नूना ने तो अभी तक एक भी पक्का इरादा नहीं किया, जानती है सारे टूट ही जाते हैं चाहे कितने भी पक्के हों. दोपहर को  उसकी पुरानी पड़ोसिन आ गयी, सारा वक्त वे बातें करते रहे, थोड़ी थकान तो स्वाभाविक थी. नन्हे को आज सोशल के नम्बर भी मिल गये, उसने मैडम से कहकर अपने छह नम्बर कम करवाए, उसकी टीचर भी क्या सोचती होंगी. शेष सभी विषयों में मार्क्स कल ही मिल गये थे. नन्हे खेलने गया तो वह जून की लायी चिट्ठियां और कार्ड्स देखने लगी, इस वर्ष सोलह कार्ड्स आ चुके हैं अभी तक. छोटे भाई की चिट्ठी पढ़ी तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ या कहें खबर की गम्भीरता को उस वक्त महसूस नहीं किया, पर शाम होते-होते मन ने पूरी तरह उस खबर को जो दुखद थी आत्मसात कर लिया और बाद में ‘नमक हराम’ फिल्म देखते समय भी या क्लब में मैच देखते वक्त भी वही बात याद आती रही. क्लब में साढ़े आठ बजे चाय मिली जिसमें दक्षिण भारतीय व्यंजन थे, ठंड कल से भी ज्यादा थी. उसके सिर में शाम से होता दर्द बढ़ गया, जो घर आकर दवा लेकर सोने पर ही गया. जून और नन्हा भी बिना कुछ खाए सो गये. रात को सपने में उसने दीदी और बच्चों को भी देखा, वही छोटे-छोटे बच्चे.
जिस डायरी में वह इस वर्ष लिख रही है, जून ने दी है उसकी ‘आयल’ से मिली अपनी डायरी, वह उसे बेहद चाहते हैं इसका छोटा सा सबूत है यह, और उसके लिए वह क्या हैं इसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है. उनके बिना जीवन की कल्पना ही व्यर्थ है. परसों शाम दफ्तर से आकर जब उन्होंने बताया मद्रास की उनकी ट्रेनिंग पक्की हो गयी है तो मन कैसे घायल हो गया था, उनके बिना इस महीने उसे और नन्हे को दो बार रहना होगा, पहले आठ दिन और बाद में दस दिन, पर आज उसकी आँखें किसी और वजह से ही नम हैं. छोटे भाई ने लिखा है, माँ-पापा की अनुपस्थिति में घर में चोरी हो गई. हजारों का सामान गया, बात हजारों की नहीं है चोरी हुई यही सबसे दुखद बात है. आज भी सुबह से मन उदास है, माँ पापा के दुःख में शामिल, उन्हें मिलने का उन्हें खुश देखने का मन होता है. भाई ने लिखा है वे लोग स्वस्थ व प्रसन्न हैं, उसे उन पर गर्व है. उन्हें कुछ उपहार भेजने का मन है, नये वर्ष में उसकी, जून व नन्हे की तरफ से स्नेह सहित एक उपहार. भाई ने लिखे है, कपड़े, गहने, साइकिल, बिस्तर, ट्रांजिस्टर सभी कुछ चला गया. वे चोर जो भी हों कभी खुश नहीं रहेगें, ईश्वर उन्हें उनके किये की सजा जरुर देगा. एक खत व एक चेक भाई के नाम भेजा है, पता नहीं वे लोग इस बात को किस रूप में लें पर उसे थोड़ा संतोष जरुर हुआ है. शाम को वे फोन करने भी जायेंगे. आज उसे शिद्दत से इस बात का अहसास हो रहा है कि वह उनसे अलग नहीं है.


Thursday, July 25, 2013

नये वर्ष में पिज़ा पार्टी

आज का दिन कुछ इस तरह व्यस्तता में गुजरा कि नये वर्ष के प्रथम दिन न तो वे ढंग से सुबह का नाश्ता ही खा सके न लंच. सुबह देर से उठे क्योंकि रात बारह बजे तक जगना था नये वर्ष का स्वागत करने के लिए. देर से उठने पर कैसा तो आलस्य छा जाता है, थोड़ा सा कुछ खाकर एक मित्र के यहाँ कैसेट लेने निकले वे मिले नहीं, बाजार होते हुए दूसरे मित्र के यहाँ पहुंच गये, वहाँ से बारह बजे लौटे तो शाम की पार्टी का कार्यक्रम बनाकर. वापसी में फिर पहले मित्र के यहाँ गये वापस आये दो बजे, उन्हें लंच पर आने का निमत्रंण देकर, पहले तहरी बनाई, फिर कैरम खेला, उनके जाने के बाद शाम की पिज़ा पार्टी की तैयारी, जो खत्म हुई रात के दस बजे. सो पहला दिन रहा मित्रों के नाम. पिज़ा ठीक बना था बस बेस थोड़ा पतला था जिससे कड़ा हो गया था, मित्रों के मध्य वेज, नॉन  वेज को लेकर थोड़ी बहस भी हो गयी, बात उसने ही शुरू की थी पर यहाँ तक फ़ैल जाएगी अंदेशा नहीं था. नन्हे ने दोस्तों के लिए कार्ड बनाये हैं, उसे मिले भी हैं, उसे पिज़ा भी पसंद आया, उसने अपनी लिखी कविता भी सबको सुनाई.
 आज बहुत दिनों बाद नन्हे का स्कूल खुला है, सुबह से वही पुरानी दिनचर्या शुरू हो गयी. उसे इतवार को धुले कपड़े भी प्रेस करने थे और रात की पार्टी के बाद किचन में फैले सामान को भी. काम तो सभी हो गया जून के आने से पहले, फिर खाना खाते वक्त उन्होंने वह कैसेट भी देख लिया जो कल लेने गये थे, ‘सिलसिला’ फिल्म उसे तो अच्छी नहीं लगी किसी भी लिहाज से. अभी एक और फिल्म ‘नमक हराम’ जो उसकी सखी ने उनके लिए रिकार्ड की है, भी देखनी है, पर समय कहाँ है, आज शाम से क्लब में क्लब मीट के कार्यक्रम आरम्भ हो गये हैं, वे लोग देर से पहुंचे तब तक ‘टी’ लगभग समाप्ति पर थी. कुछ देर बैडमिन्टन का मैच देखते रहे फिर एक कटलेट और चाय ली, ठंड बहुत थी. दोपहर को वह savey पढ़ती रही, ऋचा दत्त का इन्टरव्यू पढ़ा, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित होने पर भी वह इतनी आशावान है, दुःख इन्सान को साहसी बना देता है. और एक वह है जो छोटी-छोटी बातों से घबरा जाती है. यूँ थोड़े बहुत परिवर्तन उसमें भी आये हैं, मसलन अब वह बीमार पड़ने पर या सिरदर्द होने पर उतनी परेशान नहीं होती. नन्हे पर झुंझलाती भी कम है और जून से नाराज हुए तो महीनों बीत जाते हैं, वैसे वह इतना ख्याल रखते हैं कि ऐसा मौका ही नहीं दते, पहले-पहल वह यूँ ही बहस करने लगती थी पर अब न तो वक्त है न ही energy. रोजाना के काम से थोड़ा सा ज्यादा काम किसी दिन हो जाये तो सिर में दर्द हो जाता है, फिर ऐसे में गुस्सा करके सरदर्द मोल ले ऐसा मूर्ख कौन होगा ?  




Wednesday, July 24, 2013

इम्तहान इम्तहान

पिछले चार दिन व्यस्तता में बीते. पहला दिन रविवार था, सोमवार को एक सखी के यहाँ गयी थी, शाम को नन्हे को पढ़ाने में व्यस्त थी, मंगल, बुध को शाम को खेलने भी नहीं जा पाई. आज नन्हे का पहला इम्तहान है, गणित का तैयारी ठीक हुई है, अब उसके अपने ऊपर है. जितनी चिंता उसे है उससे ज्यादा नहीं तो उतनी उन्हें भी है, जून से थोड़ी ज्यादा उसे है, अभी सोशल साइंस का पेपर बनाना है. इस तरह छोटे-छोटे इम्तहान देते वह एक दिन जिन्दगी के बड़े इम्तहान देने के योग्य भी बन जायेगा. सुबह के दस बजे हैं, अभी-अभी ‘सोना चाँदी’ पीटीवी का एक हास्य धारावाहिक देखा. आज बगीचा बहुत साफ-सुथरा लग रहा है, कल ही घास काटी गयी है. गुलाबी फूल इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं. कल जून ने क्लब की पत्रिका के लिए लिखी उसकी दूसरी रचना भी टाइप कर दी है कम्प्यूटर पर. उन्होंने यह भी कहा, वह लिख सकती है और उसे कुछ कविताएँ हिंदी पत्रिकाओं को भी भेजनी चाहिएं. उसने सोचा कि उन्हें कहेगी वह सिर्फ लिख सकती है उन्हें टाइप करने, भेजने का काम उसके बस के बाहर है. वह  जानती है उसके कहने पर वे ये काम भी कर देंगे. उन्हें अगले महीने शायद मद्रास जाना पड़े, उनकी विवाह की सालगिरह पर उसे अकेले रहना होगा.
कल नन्हे ने परीक्षा में एक प्रश्न का उत्तर नहीं लिखा, आते हुए भी भूल से छूट गया, बहुत देर तक परेशान था, लेकिन बाद में भूल गया, अपनी गलतियों पर देर तक दुःख मनाते रहना भी कहाँ की बुद्धिमानी है? हाँ, इतना जरुर है कि वही  गलती भविष्य में न करे. आज ठंड ज्यादा नहीं है, धूप निकली है चाहे धुंधली सी ही है. नन्हे और उसके मित्र को बस में बैठकर जब वह और पड़ोसिन लौट रहे थे तो उसने अपनी परेशानी के बारे में बताया, वह अपनी लम्बी बीमारी से घबरा गयी है. नूना को लगता है, किसी भी तरह से उसकी सहायता करे, उसने सोचा जब भी समय मिलेगा वह कुछ देर के लिए उसके पास जाएगी. उसे मेडिकल गाइड में दिल के बारे में पढ़ना भी चाहिए.
पिछले कई दिनों से कुछ नहीं लिखा. इस पल अचानक महसूस होने लगा, कहीं कुछ छूट रहा है, जो पकड़ में नहीं आ रहा. दिल में एक हौल सा उठ रहा हो जैसे, अकेलेपन का एक अहसास कचोटने लगा है. यह साल विदा लेने को है, सिर्फ तीन दिनों के बाद एक नया साल आ जायेगा कुछ नई उम्मीदें और नये सपने लिए. इस बार आने वाले साल के लिए कोई कविता नहीं लिखी, कोशिश ही नहीं की. नये वर्ष के कार्ड आने शुरू हो गये हैं जैसे उन्होंने भी सभी को भेजे हैं, उन सभी को जिन्हें इस विशाल संसार में अपना कहते हैं, जिनसे उनका  परिचय है अगर वे लोग भी न होते तो वे कितने अकेले होते....
वर्ष का अंतिम दिन, समय, शाम के सात बजे हैं. वे लोग डिश एंटीना पर ‘जी टीवी’ पर नये वर्ष के उपलक्ष में कार्यक्रम देख रहे हैं. वे बहुत खुश हैं. कल एक मित्र परिवार के साथ तिनसुकिया गये थे, खाना भी बाहर खाया, जून ने उसे एक पुलोवर उपहार में दिया, विवाह की वर्षगाँठ के लिए. आज साल के अंतिम दिन बीते साल की की बातें याद आ रही हैं, कुल मिलाकर यह वर्ष अच्छा बीता लेकिन कुछ घटनाएँ ऐसी भी हुईं जो दुखद थीं जैसे हरियाणा में हुआ अग्निकांड.





बैड नहीं गुड मिन्टन

अभी-अभी बैडमिन्टन का एक थकाने वाला गेम खेलकर प्रसन्नचित वह घर वापस आई है, जून सवा छह तक आएंगे, घर कितना शांत है, केवल घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही है. नन्हा पढ़ाई में व्यस्त है सो लिखने का यह सर्वोत्तम समय है कम से कम उसके लिए, वरना लिखने वाले तो ट्रेन में भी लिख लेते हैं. दरवाजा खोलते समय नन्हे ने कहा, नैनी की बेटी आयी थी, जरुर कोई छोटी-मोटी वस्तु मांगने आई होगी, वह कुछ देर बाद पूछेगी, अभी तो साँस तेज चल रही है, आते वक्त सड़क खाली थी तो कुछ दूर तक दौड़ कर आयी, उसे अच्छा लगता है ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए हल्के धुंधलके में अकेले चल कर आना, पीपल की पत्तियों से झांकता चाँद (पूर्णिमा का लगता है) देखकर मन में एक कविता जग उठी. अभी पौने छह बजे हैं, बाद में वे सब एक मित्र परिवार से मिलने जायेंगे. यहाँ बैठक के इस कोने में मच्छर मोजों के ऊपर से पैरों में काट रहे हैं, उसे आश्चर्य हुआ, इतनी ठंड में भी मच्छर सही-सलामत हैं.
अभी-अभी वह घर लौटी है. सुबह के व्यायाम के बाद उसे जैसा अच्छा महसूस होता है, वैसा ही खेल कर भी. जून ने आज उसे एक गाइड दी है ‘अक्षर’, जो कम्प्यूटर पर हिंदी में काम करने में सहायक है, आज से वह इसे पढ़ेगी और शनि व रविवार को अभ्यास करेगी. जहाँ चाह वहाँ राह..कितनी बार और कितने तरीकों से ईश्वर उसकी सहायता करते हैं, वह उनकी आभारी है.
आज शनिवार है, सुबह नींद अपने आप ही जल्दी खुल गयी, नन्हे का अवकाश है. आंवले का मुरब्बा बनाने का दूसरा चरण शुरू हुआ. शाम को जून के दफ्तर गये, कम्प्यूटर पर हिंदी में कुछ पंक्तियाँ लिखीं और एक गेम खेला. बाजार से गाजर-पालक के बीज और फ्लौस्क के बीज लिए, जो कल सुबह लगा देंगे. कल शाम पंजाबी दीदी के पति उनका एक खत और कुछ पकवान लेकर आये, उन्होंने रिटायर्मेंट के बाद एक कम्पनी ज्वाइन कर ली है, उसी के सिलसिले में आए थे.

अभी कुछ देर पूर्व ही वे सांध्य भ्रमण से वापस आए हैं और उसे रास्ते भर यह अहसास होता रहा, रोज वह वास्तव में अकेली होती थी आज साथ होते हुए भी अकेली है, जून चुपचाप रहे सारे रास्ते, शायद किसी चिंतन में व्यस्त, और संवाद हीनता की यह स्थिति भी शायद वही महसूस कर रही है, अन्यथा वह इसे दूर करने का प्रयास तो करते ही. किसी ने सच कहा है डायरी भी एक मित्र के समान है यदि किसी के पास कोई ऐसा नहीं जिससे वह दिल की बात कह सके तो इसके पन्नों को ही हाले-दिल सुना दे, सब कुछ सुनकर वे दिल का भार तो हल्का कर ही देगें. 

Tuesday, July 23, 2013

जालोनी क्लब - घर जैसा


जून अभी तक नहीं आए हैं, वह कुछ देर पूर्व क्लब से पैदल वापस आ गयी है, और पिछले पांच मिनटों से समझने में असमर्थ थी कि  इस वक्त का सबसे अच्छा उपयोग कैसे करना चाहिए. नजर आ गया बिन पढ़ा अख़बार, कुछ देर पढ़ा और पीया जून के हाथ का बना गर्म-गर्म अच्छा सा सूप, नन्हे को पढ़ाया. दोपहर को छोटी बहन की लिखी चिट्ठी मिली उसने बिस्तर में बैठकर मूंगफली खाने की बात लिखी है, वह तो यहाँ हो नहीं सकता, पहली बात यहाँ मूंगफली छिली हुई ही मिलती है, दूसरी वे बिस्तर में बैठकर कुछ भी नहीं खाते, ब्रश करने के बाद ही न बिस्तर में आते हैं.

क्लब से आते वक्त सोच रही थी कि क्लब की वार्षिक पत्रिका के लिए क्या लिखे, तभी मन में एक शीर्षक कौंधा, “घर से दूर एक घर, जालोनी क्लब”. विचार क्रम स्वतः ही चल पड़ा, वर्षों पूर्व जब वे यहाँ आये थे तो प्रतिदिन संध्या को उनके कदम क्लब की ओर बढ़ जाते थे. पुस्तकालय का विशेष आकर्षण था, पहली बार अंग्रेजी पुस्तकों से साक्षात्कार हुआ था और जिन लेखकों के सिर्फ नाम भर सुने थे, उनकी किताबें हाथों में पाकर एक नई दुनिया के जैसे द्वार खुल गये थे. उन दिनों टीवी भी नहीं था, सोनी और स्टार का तो किसी ने नाम भी नहीं सुना था. कितनी ही शामों को जब मन बेवजह उदास हो जाता, अपनी बाहें फैलाये क्लब स्वागत करता, चाहे बैडमिन्टन या टीटी कोर्ट में दो-दो हाथ करके समय गुजरा हो या हर शुक्रवार को दिखाई जाने वाली हिंदी फिल्म देखकर. और कुछ नहीं तो सर्दियों में खिलने वाले फूलों को निहारते ही. वार्षिक क्लब मीट हो या गर्मी की छुट्टियों में नन्हे-मुन्नों के कार्यक्रम, गीत या गजल नाईट हो अथवा किसी अतिथि का भाषण, हर मिजाज के लोगों के लिए कुछ न कुछ आकर्षण रहता ही है. यह लिखते समय यह अहसास मन को कचोट रहा है कि उसे यह इतना कुछ देता  है पर बदले में उसने यदि कुछ दिया है तो बस अपना मूक स्नेह.


उसने आगे लिखा, ईश्वर की बनाई इस अनोखी नगरी में यूँ हर व्यक्ति अकेला है उसे परिवार के सहारे के साथ समाज का सहयोग भी अपेक्षित है और क्लब जैसी संस्थाएं इस कमी को पूरा करती हैं,.. यह क्लब उन्हें एक मंच प्रदान करता है. इन्सान की यह प्रवृत्ति होती है कि कहीं न कहीं से जुड़ा रहे  जमीन से जुड़ कर जैसे पौधे अपना रंगरूप पाते हैं, मानव मन भी एक आधार चाहता है. तभी तो पहले परिवार, फिर कबीले, गाँव, शहर और राष्ट्र की रचना हुई होगी. यही अपनेपन की भावना उन्हें इस क्लब से जोड़ती है. आने वाले वर्षों में इसी तरह यह फले-फूले, और जब वे यहाँ नहीं रहें तब भी इसकी यादें मन में संजोये रहें, आखिर यह घर से दूर एक घर ही तो है.

Monday, July 22, 2013

जंगल का फूल


आज सुबह पता नहीं किस ख्याल में वह सब्जी में नमक डालना ही भूल गयी, नन्हे को टिफिन में वही सब्जी दी है, पर जून के आने पर उसे नमक वाली सब्जी भेजनी होगी, अन्यथा वह भोजन नहीं कर पायेगा. उसने माली को डहेलिया की क्यारी साफ करने को कहा, उसमें पहला फूल अगले हफ्ते खिल जायेगा, चन्द्र मल्लिका पहले ही खिल चुकी है., सफेद, बैंगनी, पीले, गुलाबी और मैरून फूल ! जून कल शाम खेल न पा सकने के कारण बेहद परेशान लग रहे थे, उनके बैडमिन्टन के पार्टनर के पैर में चोट लग गयी है, अभी कुछ दिन और वह नहीं खेल पाएंगे, क्विज में भी वह उनकी सहायता नहीं कर पा रहे हैं.

आज सुबह जून से जब उसने होमियोपैथी डॉक्टर को दिखाने की बात कही तो उनका रेस्पॉंस वही था उदासीनता भरा, कल रात भी यही हुआ, हो सकता है वह भी उनकी परेशानियों के प्रति उदासीनता का प्रदर्शन करती रही हो. उसकी समस्या तो समझ से बाहर है, इस बार बैंडेज करने पर शायद ठीक हो जाये. यूँ उसके कारण उसे फ़िलहाल तो कोई परेशानी नहीं है पर भविष्य में क्या होगा कहना मुश्किल है, लगता है धोबी आया है, कैसा भी मौसम हो वह नियमित रूप से अपने निर्धारित समय पर आता है. कल दोपहर वह एक परिचित के यहाँ गयी, जो असमिया में लिखती हैं, साहित्य के बारे में कुछ चर्चा हुई, आते-आते पौने तीन बज गये. जून ने कुछ देर पूर्व फोन करके हिंदी सप्ताह के लिए स्वागत भाषण लिखने को कहा था उसने ड्राफ्ट लिखा तो है उन्हें दिखाकर फिर से लिखना ठीक रहेगा. आज उनके यहाँ क्विज है, उसने मन ही न उन्हें शुभकामनायें दीं. आज नन्हे के स्कूल में भी इंस्पेक्शन है, कब्स की ड्रेस पहन कर गया है, आज सुबह जल्दी उठ गया था, सारे काम भी समय पर कर लिये जबकि परसों इतवार को आर्ट स्कूल के लिए तैयार होने में पूरे दो घंटे लगाये. उस दिन पहली बार इतना रोया था बाथरूम में नहाते हुए, और कल शाम को उसके इतना कहने पर कि उसका रजिस्टर किसी को दे दिया, आँखें भर लाया, शायद उसकी drawings थीं उसमें, लेकिन जल्दी ही संभल गया. he is growing up fast.

माह का अंतिम दिन, कल जून ने उसे दो अच्छे समाचार दिए, पहला था उसकी कविता के लिए पुरस्कार और दूसरा उसकी बंगाली सखी का भेजा पत्र और उपहार. आज नन्हे का स्कूल बंद है, उसकी पड़ोसिन अपने पति के साथ कोलकाता जा रही है, हृदय रोग का परिक्षण कराने.

आज उसके भीतर का कवि जाग उठा है...
अनगिनत अफसाने, हजारों कविताएँ लिखी जा चुकी हैं कबीर के जिस ढाई आखर वाले प्रेम पर और जो आज भी उतना ही अछूता है उतना ही कोमल और  नई दुल्हन सा सजीला, उसी को शब्दों में बाँधने का प्रयास है यह रचना-

दूर कहीं उजाला फैलाता
एक नन्हा सा दिया माटी का
जैसे दिल के आंगन में प्यार की लौ
जो आस्था, विश्वास और श्रद्धा के अमृत से जलती है
लौ जो चिरन्तन है, जिसे आंधी, पानियों का कोई खौफ नहीं

दूर कहीं जंगल में खिला एक अकेला फूल
जैसे दिल के आंगन में प्यार की खुशबू
जो युगों से कस्तूरी सी बिखेर रही है सुगंध
जिसे बन्धनों और दीवारों का कोई भय नहीं

सुदूर पहाड़ी से उतरती जलधार
जैसे दिल के रास्तों पर प्यार की ठंडक
जो युगों से प्रवाहित है अविरत
जिसे जंगलों और बीहड़ों दोनों को खिलाना है






Friday, July 19, 2013

पर्ल एस बक - एक महान लेखिका


आजकल हर पल एक ख्याल साये की तरह उसके वजूद के आस-पास टहला करता है कि कहीं कुछ है, अधूरा सा.. जो पूरा होना चाहिए. हर काम करते वक्त यह अहसास तारी रहता है कि इस वक्त उसे कुछ और बेहतर काम करते हुए होना चाहिए था. और बस इसी कशमकश में वह किसी भी काम को पूरे मन से नहीं कर पाती, यह नामालूम सी बेचैनी उसकी फितरत में यूँ तो हमेशा से है पर आजकल यह ज्यादा ही असरदार हो गयी है. शायद इसकी वजह यह है कि हफ्तों से उसका पढ़ना-लिखना छूटता जा रहा है. इसका सबसे बड़ा फायदा है कि  जिन्दगी बेकायदा नहीं रहती, कोई रहता है जो अनुशासित रहना सिखाता है, टोकता है, और यह वही आत्मा ही तो नहीं जिसके बारे में कई जगह पढ़ती रहती है, सुबह जागरण में जिसे सुनती है और एक योगी की आत्मकथा पढ़कर महसूस करने का प्रयत्न करती है. जाने क्यों उसकी दायीं आँख में हल्का दर्द है, यूँ दर्द का किस्सा सुनाने बैठे तो अफसाना लम्बा होता चला जायेगा, अभी तो वह पड़ोस के बच्चे के जन्मदिन की पार्टी से आ रही है, जून भी आते होंगे, नन्हा अभी वही है. बच्चे बहुत खुश हैं, बच्चों को हंसते-खिलखिलाते देखकर रश्क होता है, एक वे हैं की बेबात ही खुश हुए जाते हैं और एक उसके जैसे बड़े हैं कि  उदास होने का बहाना हर पल ढूँढा करते हैं.

आज कई दिनों बाद सुबह के साढ़े दस बजे उसके सुबह के सारे काम हो चुके हैं. मौसम में जादू है, गुनगुनी सी धूप बेहद भली लग रही है. नवम्बर का अंतिम सप्ताह आने को है पर ठंड अभी उतनी ज्यादा शुरू नहीं हुई है. कल शाम नन्हे को पढ़ाने से पूर्व वह अकेले टहलने गयी, अच्छा लगता है शामों की ठंडक और अँधेरे को अपने तेज कदमों से चीरते हुए भेदना. और थक जाने के अहसास होने तक चलते ही चले जाना. फिर वापस आकर लेडीज क्लब की पत्रिका ‘जागृति’ में असमिया के लेख व कहानी पढने का प्रयत्न किया. पढ़ सकेगी एकाध बार और इसी तरह मन लगाकर पढ़ने का प्रयत्न किया तो. कल उन्हें पिकनिक पर जाना है, उसकी तैयारी आज से ही करनी है,.. नदी की तेज धारा, बड़े-बड़े पत्थरों का किनारा, खुला आकाश और उड़ान भरता मन, सचमुच अच्छा लगेगा, ऐसे पलों को शिद्दत से महसूस करना चाहिए, सारी उलझनों को पीछे छोडकर, यूं उसकी तो फ़िलहाल कोई उलझन ही नहीं है, ‘ऊर्जा संरक्षण’ की प्रतियोगिता के लिए कविता लिखने को जून ने कहा था, सो कल दोपहर को लिख दी है, उसे लगता है इस बार कोई पुरस्कार मिलना चाहिए. यूँ न भी मिले, स्वान्तः सुखाय से प्रेरित होकर लिखी है, मात्र अपने मन की खुशी के लिए. क्लब की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में नन्हे को द्वितीय पुरस्कार मिला है, वह जेम्स बॉंड बना था.

फिर दो दिन का अन्तराल, रविवार को वे पिकनिक पर गये, और उसी दिन सुबह-सुबह उसकी पड़ोसिन को छाती में दर्द के कारण अस्पताल में दाखिल होना पड़ा, अब वह ठीक है लेकिन दिल की बीमारी क्यों और कितनी है, किसी बड़े अस्पताल में जाकर विस्तृत जांच से ही पता चलेगा. उसके बेटे को भी मम्प्स हो गये हैं. परेशानी आती है तो सब ओर से एक साथ. सोमवार को जून ने प्रथम अर्धांश में अवकाश लिया, पिकनिक की थकान थी, और कल मंगल को वह सुबह  धर्मयुग की एक कहानी पढ़ने बैठ गयी सो सारे काम देर से हुए, काम खत्म करके पड़ोसिन का हाल-चाल पता करने चली गयी. दोपहर को अरुण शौरी की किताब ‘द वर्ल्डस ऑफ़ फ़तवा’ के अंश पढ़े ‘संडे’ में, वह मुस्लिम विरोधी लगते हैं लेकिन वास्तव में ऐसे हैं नहीं, उनकी विचारधारा से किसी हद तक वह सहमत है, लेकिन एक किताब को इतना महत्व देने की आवश्यकता ही क्या है.परसों लाइब्रेरी से वह कुछ किताबें लायी है, एक Pearl. S. Buck की China as I see it,  इस किताब के बारे में कई जगह उसने पढ़ा है. एक सामान्य ज्ञान की किताब जून की आने वाली क्विज प्रतियोगिता के लिए और अंतिम योग की किताब जो दुबारा ली है. पर सबसे पहले वह असमिया ही पढ़ेगी यानि उनके क्लब की पत्रिका ‘जागृति’ !


Thursday, July 18, 2013

सूर्य ग्रहण - अद्भुत घटना



दीवाली आई और चली भी गयी, इतने दिनों तक सुबह उसे डायरी खोलने का वक्त ही नहीं मिला, आज उसका काम जल्दी हो गया है, लंच भी लगभग तैयार है, सोच रही है लिखने के बाद पड़ोस में एक सखी के यहाँ भी हो आये. पिछले दिनों किसी बात को लेकर उसकी पुरानी पड़ोसिन से कुछ गलतफहमी भी हो गयी, उसे वह बात कहनी तो थी पर कहने का ढंग बेहतर हो सकता था, जो उसके लिए सदा मुश्किल काम रहा है. पर उसे यह विश्वास है, उसके मन का स्नेह और शुभकामनायें उस तक पहुंच ही जाएँगी. सूर्य ग्रहण के दिन उसने अपने घर से ग्रहण देखने के लिए बुलाया था, देखते-देखते सूर्य को एक छाया ने घेर लिया, उन्होंने एक्सरे फिल्म में से ग्रहण देखा. कल व परसों दोनों दिन क्लास अच्छी रही. पर आज प्राज्ञ के विषय में संदेह है, पर जाना तो है ही. आज सुबह जून भी झुंझला कर गये हैं, उसने उन्हें थोड़ा ‘लोभ’ कम करने को कहा था.

It is about 6 pm. Nanha is watching TV and she is here before her diary after some days. Today in the morning Jun went to see off  MaPapa and they are alone here for a couple of days. She was feeling a strange sense of freedom since morning. she did whatever she liked at whatever time and slept on their bed after  many days. Nanha is missing them but also not much. she liked their stay here and they were also happy. She was at ease with herself  except two or three occasion when she felt some irritation.Tomorrow she will get cleaned the house in the morning and write letters in the evening.and day after tomorrow jun will come to fill her days and nights.she felt some pain in heart, pain of missing him. After two hour her friend will come to have dinner with them and time will pass like any thing. so she said to herself, don’t waste time and start reading the book. “The Four Yoga".

Yesterday  they got a nice group photo of didi’s family and a divali card. This year they got many beautiful divali cards, also one letter from her home, ma wrote about Nanha’s sweater, she will send it in December. Day after tomorrow is ‘Husband Night’ in Ladies club, and then she will wear the new dress. She will do piko on duppatta before that. Last evening jun was upset for few minutes when she gave money to naini for TV, but after that he was normal. She felt sleepy and stopped writing.



Tuesday, July 16, 2013

रसभरे गुलाबजामुन


चुप-चुप रहना कुछ नहीं कहना  
अपनी धुन में खोये रहना...

पीटीवी पर यह सुंदर गीत अभी-अभी सुना, जाने क्यों पाकिस्तानी संगीत उसे अंदर तक छू जाता है, राहत देता है. Soothing to nerves

देखो हरसूं फूल खिले हैं
साजन बरसों बाद मिले हैं
उनको हमसे बहुत गिले हैं
कितनी कलियाँ महक रही हैं
जब से उनके होंठ हिले हैं...

आज सुबह फोन की घंटी सुनकर बेड से उठी, आँख पहले ही खुल गयी थी. जून का संदेश था उनके सहकर्मी के द्वारा, वे लोग आज शाम की जगह कल सुबह  आ रहे हैं. माँपापा की ट्रेन २० घंटे लेट है. कल रात को देर तक नींद नहीं आ रही थी, बाद में स्वप्न में असमिया सखी से मिली, और दीदी से भी, वह भी डॉक्टर है, वह अपनी स्वास्थ्य समस्या के बारे में उन्हें बता रही है. रात से ही कभी-कभी हल्का दर्द होता है, उसने सोचा, क्या एक बार फिर उसे उस सब से गुजरना होगा. ईश्वर उसकी परीक्षा ले रहे हैं ! लेकिन इस बार दर्द सहना आसान होगा. पर हो सकता है दवा लेने से ही ठीक हो जाये, उसे कल या परसों डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए, उसे विटामिन सी, जिंक और प्रोटीन की जरूरत है, क्योंकि उसका जख्म देर से भर रहा है. आज से नियम से चार आंवले खाने शुरू करेगी, हर रोज दो सुबह, दो शाम को.

परसों माँ पापा आये और घर जैसे फिर से स्पंदन युक्त हो गया है. इतने सालों तक अकेले-अकेले रहने के बाद उन तीनों को सभी के साथ रहना अच्छा लग रहा है. इस वक्त वे दोनों आँख टेस्ट करने अस्पताल गये हैं. उसका मन शांत है और आँखों में मुस्कुराहट की कलियाँ चटख रही हैं. जून भी बहुत खुश हैं और नन्हा भी, पर कभी-कभी वह शांत हो जाता है. दीवाली को मात्र चार दिन रह गये हैं. कल पटाखे और दीए भी आ गये हैं. गुलाब जामुन के लिए गिट्स का पैकेट भी. जून उसके लिए एक बहुत सुंदर ड्रेस लाये हैं, अभी तक पहन कर नहीं देखी है, इतनी सुंदर है कि पहनने से डर लगता है. उसने अपनी एक सखी को फोन पर बताया, उसे अच्छा लगा होगा पर कुछ लोग ख़ुशी जाहिर करने में भी कंजूसी करते हैं. माँपापा भी उन तीनों के लिए कपड़े लाये हैं. उन दोनों को पसंद आए पर नन्हे के कपड़े खरीदना उन्हें उतनी अच्छी तरह से नहीं आता. कल लेडीज क्लब की एक महिला सदस्या ने अपना लेख भेज दिया एक ने आज शाम तक भेजने को कहा है. कल तक टाईप भी हो जायेंगे और शाम तक वह भिजवा देगी. आज दोपहर को हिंदी कक्षा के लिए भी जाना है.

जान कहके जो बुलाया तो बुरा मान गये
और न जो उनको बिठाया तो बुरा मान गये
आईना उनको दिखाया तो बुरा मान गये
वह थे बेहोश मुझे होश में लाने के लिए
और जब होश में आया तो बुरा मान गये  


पनीर टिक्का और बिरयानी



कई वर्ष पहले उसने पढ़ा था, हर व्यक्ति अंततः अकेला होता है, एक ही घर में बरसों तक साथ रहने वाले लोग भी एक दूसरे को पूरी तरह नहीं जान पाते, इन्सान खुद को तो जानता नहीं तो भी अन्यों को जानने का दम भरता है. लेकिन वह यह मानती थी कि उनके साथ ऐसा नहीं होगा, वे एक दूसरे  को भली-भांति जानते हैं. लेकिन इस क्षण उसे लग रहा है, ऊपर की बात ही सही है. उसे लगा उनका रिश्ता भय पर टिका  है न कि प्रेम पर, या तुलसी दास की बात ठीक है, ‘भय बिन होत न प्रीति गुसाईं’.....या मीरा की भी, ‘जो मैं ऐसा जानती प्रीत करे दुःख होए’...हो सकता है वह ओवर रिएक्ट कर रही हो, शायद उसका मन अभी ठीक नहीं है, पर कल शाम को जो हुआ उसकी उसने कल्पना नहीं की थी, कल शाम एक मित्र परिवार मिलने आया, वह कमरे में लेटी थी, उठने का जरा भी मन नहीं था सो बाहर नहीं गयी, वे कुछ देर रुके फिर चले गये, उसे लगा कि जून कारण पूछेंगे और उसकी बात समझेंगे, पर उसे झेलना पड़ा उनका क्रोध. उसने सोचा, समझदार होने का, शांत रहने का, मन की बात मन में ही रखने का अधिकार तो स्त्रियों को जन्म से ही मिला हुआ है, यह तथाकथित समानता की बातें बस यूँ ही हैं.

कल वह उदास थी, आज नहीं है. जून और वह एक दूसरे के उतने ही करीब आ गये हैं, जितने तब थे जब उन्होंने एक-दूसरे को पहले-पहल जाना था.
आज हफ्तों बाद डायरी लिखने बैठी है, छोटी बहन आने वाली थी उसके पहले  ही सफाई आदि में फिर अपनी उसी स्वास्थ्य समस्या के कारण और उनके आने के बाद तो समय मिला ही नहीं. मिला भी तो एक दिन उसके शेफ पति से कुछ रेसिपीज नोट कीं. पनीर टिक्का, अरहर दाल, भरवां शिमला मिर्च और बिरयानी की रेसिपीज. उनका आना उन्हें उत्साह से भर गया. अभी सोचती है तो लगता है कितने खुश थे वे, सुबह से शाम तक बिना थके कभी यह काम कभी वह. और उसकी बिटिया की भोली शरारतें.... समय कितनी जल्दी बीत गया. आज शाम को जून भी जाने वाले हैं, परसों शाम को अपने माँ-पिता को लेकर आ जायेंगे. फिर कुछ दिन हँसी-ख़ुशी बीत जायेंगे.  आज सुबह कितने दिनों बाद उसने व्यायाम भी किया और पाठ भी. उसने मन ही मन नोट किया, उसकी पुरानी पड़ोसिन की दोनों ‘सेल्फ हेल्प’ की किताबें नियमित पढ़कर उसे वापस भी करनी हैं. कल शाम उसने कहा वह उदास लग रही है, शायद वह वाकई उदास थी पर उसे खुद इस बात का पता तक नहीं था. वह अंदर की बातें कैसे जान लेती है. कल दोपहर को प्राज्ञ की कक्षा लेने गयी थी, कोई नहीं आया, लगता है सभी के सभी भूल गये या उन्हें सूचना ही नहीं दी गयी थी.
जून इस समय गोहाटी में अपने मित्र के यहाँ होंगे, नॉर्थ-ईस्ट ट्रेन अभी आई नहीं होगी. वह उसके फोन का इंतजार करेगी, यह और बात है कि उसे तो केवल संदेश ही मिलेगा, सीधी बात नहीं हो सकेगी. आज धूप बहुत तेज है, सुबह से सोच रही है, शाम को बगीचे में काम करना है, देखें क्या होता है. शाम को उसकी पुरानी पड़ोसिन ने भी आने को कहा है. अभी नन्हे का प्रोजेक्ट वर्क भी बाकी है. उसका घाव अभी तक सूखा नहीं है, जून को बताना ही होगा कहीं ऐसा न हो कि फिर से... और क्या लिखे, मन है की इतनी सारी बातें एक साथ सोचने लगता है उन्हें सिलसिलेवार बैठाने का वक्त भी नहीं देता. मसलन कल जून ‘बनाना’ लाये थे कहा था, भूल नहीं जाना और वाकई वह अब तक भूली हुई थी, फिर यह कि प्याज और टमाटर खत्म हो गये हैं, मंगवाए या ऐसे ही काम चला ले. और अब नन्हे ने स्नान कर लिया है, उसका काम शुरू करवाना है. कल शाम वह उसकी बहुत फ़िक्र कर रहा था. उसे पापड़ सेंक कर ला दिया और.... अब वक्त नहीं है आगे कुछ लिखने का.  


Monday, July 15, 2013

वृन्दावन गार्डन


It is 10.10 am, she walked in the garden and did routine work, feeling OK. Yesterday was not pleasant. She was irritated at each and every thing, jun was gentle but adamant also, may be he was right in his own way. She was not feeling well physically or mentally. Doctor told her that wound was healing fast and on next Monday will be their last visit.

अभी-अभी सोचा पुरानी पड़ोसिन से बात करे, पर शायद व घर पर नहीं है, उसने सोचा जरुर वह भी अपनी मित्र से मिलने गयी होगी. कल शाम को जून के एक मित्र आये थे, वह पहली अक्तूबर को छोटी बहन को लेने गोहाटी जायेंगे, he is so considerate.पहले कई बार उसने उन्हें selfish सोचा है, पर उनके साथ उनका व्यवहार हमेशा अच्छा रहा है. So never think ill of any one at any time. कौन कब किस रूप में हमारे काम आयेगा कौन जानता है, जून आज भी व्यस्त हैं वह  घर के उन कार्यों में जो सफाई आदि से सम्बन्धित हैं उसकी मदद नहीं करा पा  रहे हैं But she knows all will be done as per their wishes before 2nd Oct. Yesterday she planted the seeds of cauli flower, cabbage and tomato.

The greatest tragedy of life is that people do wrong while they know that it is wrong. Today in the morning she scolded Nanha for no fault of him. She was mad in anger at that moment. Next moment she repented for it but the wrong was done. She knows that anger is not good for any of them but how could she not resist it. Nanha asked her to do his project work and she had no time. He ie their Nanha teaches her so many lessons of love and compassion. He forgot her anger within seconds and gave his warm smile as before. Her friend when said on phone that he is careless, she felt a pinch of anger but subsided it. She knows what he is for them. And in lunch time jun did dressing with so love and care that she was touched by his gesture. Her eyes were full of tears. In that moment she found him near to her heart. He rang her twice from his office; they will go to see ‘Bombay’ tomorrow.

Yesterday she wrote six letters and at 10.20 am in the morning still remembering them specially the one which she wrote to her Bengali friend. Long long back when she used to write to jun used to repeat the whole letter again and again in the mind. She thought this is the thing they call ‘ego’ or अहम् or may be this is self love. So mind is again not co-operating her. She talked to
two of her friends for pictures of vrindavan garden. Nanha has to make a model of that garden for his social project.

कल रात को जो बातें दिमाग में बिलकुल स्पष्ट थीं अब धुंधली हो गयी हैं. लेडीज क्लब की मीटिंग में उसे हिंदी के लेख, कविताओं आदि के बारे में कुछ कहना पड़े, सोने से पूर्व मन ही मन उसकी तैयारी कर रही थी. नन्हे का स्कूल पूजा की छुट्टियों के लिए बंद है. जून आज देर से आएंगे फील्ड गये हैं.



Saturday, July 13, 2013

नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस


And she is back ! she had thought that…anyway this experience of anesthesia was more painful. She was lost… and then gained consciousness. It was full of confusion. Yesterday till 3 pm she was feeling some traces of it and then a feeling of weakness but today morning was good except this moment when some fatigue had gripped her, since last one hour she was writing maths paper for Nanha, it may be the cause of it. Today they went for dressing, doctor has said for it alternate day. Her wound is fresh but her spirit is high.

दुर्गम पहाड़ों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरकर
कंटीले, पथरीले रास्तों की चुभन अपने में जज्ब किये
लौट आई है वापस उसकी आत्मा अपने गाँव में...
उस मुश्किल वक्त में भी उसकी पुकार सिर्फ खुद तक महफूज थी
सारे बंधन, वादे और वफायें
इस दुनिया की रीतें छूट गयीं थीं कहीं पीछे
साथ होकर भी जहाँ कोई साथ नहीं होता
ऐसे अनजाने ग्रहों की यात्रा से वापस लौट आई है उसकी आत्मा

आज वह बहुत खुश है, स्वस्थ है न दर्द न कमजोरी. उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की, वह जहाँ कहीं भी है, उसके अंतर्मन का शुक्रिया स्वीकार करे. जून ने फोन पर बताया उसकी छोटी बहन अपने पति व बेटी के साथ १ अक्तूबर को नॉर्थ इस्ट एक्सप्रेस से गोहाटी आ रही है. २ की शाम को वे लोग डे सुपर बस से यहाँ पहुंचेंगे. आज असम बंद है फिर भी नन्हे की बस आ गयी, हालंकि थोड़ा देर से आई. कल उसका अंतिम इम्तहान है और उसके बाद वे मेहमानों के स्वागत की तैयारी करेंगे. जून ने कहा है कम्पनी के हिंदी अनुभाग में हिंदी अध्यापक की जगह खाली है, सप्ताह में तीन दिन और केवल एक घंटे के लिए जाना होगा. यह उसके लिए अच्छा होगा बल्कि बहुत अच्छा.

Nothing seems important to write. Ladies club secretary rang her to tell that club is going to publish a souvenir this year in Nov and she is supposed to do the editing of hindi articles and poems etc. jun said that he has given her name and bio data for hindi classes.These two things might be enough to give her joy but not. It  means there is nothing in the world which can stimulate her mind when it is sad or God knows what. Those inspiring books and those good thoughts and things which sometimes she likes most, seem meaningless. It means when someone is good only then good things appeal to him/her,otherwise when mind is blank, hard and closed nothing can change its state. It means only inner things can help one not outer. It is truly said  that man is the best friend and as well as the worst enemy of himself.