Friday, April 29, 2016

परमाणु ऊर्जा का उपयोग


आज एक भतीजी का जन्मदिन है, उनके परिचितों में भी एक मित्र का. शाम को उन्हें बधाई देने जाना है. पिछले दो-तीन दिनों से ध्यान पर सुना और ध्यान भी किया. बहुत सारे भ्रम टूटे, भीतर प्रकाश हुआ, अनादि काल से मानव इस सृष्टि के रहस्यों को जानने का प्रयास करता आया है लेकिन कोई भी आजतक इसे जानने का दावा नहीं कर पाया है. यह रहस्य उतना गहरा होता जाता है जितना वे इसके निकट जाते हैं. वे कुछ भी नहीं जानते ऐसा भाव दृढ़ होता जाता है. परमात्मा कौन है, कहाँ है, कैसा है, यह सृष्टि क्यों बनी, कैसे बनी, ये सारे अति प्रश्न हैं, आजतक कोई इनका उत्तर नहीं दे पाया. परमात्मा के प्रतीक गढ़ लिए लोगों ने और उन्हें प्रेम करने लगे, प्रेम में आनन्द है, प्रेम ऊपर उठा देता है, प्रतीकों के सम्मुख झुकने से भीतर कुछ हल्का हुआ होगा, मानव ने मान लिया कि कोई परमात्मा है जो उसके साथ है, उसकी रक्षा करता है, यह मानना उनके लिए सही था जो प्रेम से भरे थे पर धीरे-धीरे लोग बिना भाव के ही मूर्तियों के सामने झुकने लगे. परमात्मा को जिसने भी पाया है अपने भीतर ही पाया है, वह मन की गहराई में छिपा है जब शरीर स्थिर हो, मन अडोल हो, शान्त हो और भीतर कोई द्वंद्व न हो तो जिस शांति व आनन्द का अनुभव उन्हें भीतर होता है, वह परमात्मा से ही आयी है.

जून दोपहर का भोजन करके गये तो वह नेट सर्फिंग करने लगी. पेपर पढ़ा, धरती पर जगमगायेंगे छोटे-छोटे सूर्य, वैज्ञानिक एटोमिक ऊर्जा का उपयोग कर धरती को ऊर्जा की कमी से मुक्त कर देंगे. भारतीय वैज्ञानिक भी जुटे हैं, न्यूक्लियर विघटन की जगह विलयन के द्वारा यह कार्य होगा. सुबह रामदेव जी भी कह रहे थे आगे आने वाले समय में भारत का पुनर्जागरण होगा. कलियुग की समाप्ति और सतयुग का आगमन होने वाला है, यह संधि युग है. न कोई ईमेल भेजा न आया, कम्प्यूटर पर टाइप करने का कार्य भी अभी शुरू नहीं हुआ है. उसके सिर के ऊपरी भाग में हल्का-हल्का सा दर्द है, कल भी था, शायद कोई प्रारब्ध कर्म उदित हुआ है. आज सुबह बाहर लॉन में सूर्य ध्यान किया. इस समय दोपहर को भी धूप-छाँव में बैठी है. शाम को उनके यहाँ सत्संग है, प्रसाद के लिए चिवड़ा-मटर बनाने हैं. माँ बड़ी ननद के पास गुजरात गयी हुई हैं. वहाँ का मौसम ठंडा नहीं है, खुशनुमा है. इस वक्त मन शान्त है, और न भी हो तो क्या फर्क पड़ता है, जो प्रकाश, प्रवृत्ति तथा मोह में भी सम रहता है, वही तो वह है. जो घट रहा है, चाहे वह शरीर में हो अथवा मन में, बदलने ही वाला है, वह साक्षी है, साक्षी रहकर वह इन प्रपंचों से पूर्णतया पृथक है, द्रष्टा है, यह हाथ लिख रहा है, परमात्मा की शक्ति से ही, यदि वह स्वयं को पृथक न जाने तो शरीर व मन के दुःख के साथ स्वयं भी दुखी रहे, लेकिन ऐसा नहीं है, मन कहता है उसे ढेर सारे कार्य करने हैं. कार्य किये बिना वह अपने को अधूरा मानता है, वह महत्वाकांक्षी है, लेकिन वह उसकी इस छटपटाहट को देखती है और मुस्कुराती है !

आज जून घर पर हैं, साल का अंतिम महीना, धूप गुनगुनी है, छुट्टियाँ शेष हैं सो आज उन्होंने घर के कुछ काम निपटाए. sun meditation किया, आंगन में झूला लगाया, जिस पर बैठकर संतरे खाए. बगीचे में पानी डाला, फ्रेंच बीन्स तोड़े और अब वह पढ़ने आने वाले छात्र की प्रतीक्षा करते हुए लिख रही है. मन को समाधान मिल गया है. आज गुरूजी को भी सुना. कितने सीधे, सरल, निष्पाप तथा सहज लगते हैं, प्रेम से लबालब, जीवन को जैसा है वैसा स्वीकारने वाले. जबकि वे व्यर्थ के विचारों में उलझ कर तन व मन दोनों को बोझिल बना लेते हैं. उसके सर का वह दर्द पित्त की अधिकता से था न कि प्रारब्ध के कारण, बड़े-बड़े शब्द सीख कर वे स्वयं को ज्ञानी समझते हैं, जो सबसे बड़ी भूल है. श्रद्धा, विश्वास को यदि रटते रहे और यूँ ही रटते-रटते स्वयं को श्रद्धालु, विश्वासी मानते रहे तो उनका उद्धार नहीं हो सकता. शब्दों के जाल से मुक्त होकर सहज होकर अपने मन में झाँकने की जरूरत है. मन यदि लोभ, मोह, क्रोध, वासना तथा अहंकार से मुक्त है तो सहज ही विश्वासी होगा, उसे बनाना नहीं होगा, ऐसा मन शरण में होता ही है. मन न रहे अर्थात मन जो विकारी है न रहे तो जो शेष रहता है वही तो आत्मा है. शांति है, वही तो परमात्मा है !

Thursday, April 28, 2016

इंटरनेट की दुनिया


एक शिष्य के जीवन में दो ही ऋतुएं होती हैं, एक जब वह सद्गुरू की निकटता का अनुभव करता है और दूसरी जब वह उनसे दूरी का अनुभव करता है. आजकल उसके जीवन में दूसरा मौसम चल रहा है, लेकिन उनकी ‘कृपा’ असीम है कि वह उसे इस ऋतु में नहीं देखना चाहती, वह पुनः उसी निकटता का अनुभव कराना चाहती है, जिसे पाकर उनके भीतर एक प्रेम की लहर दौड़ जाती है. आज भी सद्वचन सुने थे, खुदा का अर्थ है जो खुद आये, उन्हें केवल इंतजार करना है. काल के दायरे में रहने पर मन उन्हें इस दुनिया में खींच कर ले जाता है, पर उन्हें काल से परे उस देश में जाना है, जहाँ आनन्द का मौसम है. उस दुनिया में उड़ान भरने के लिए वे उन्हें बार-बार बुलाते हैं. उनकी पुकार को वे अनसुनी कर ही नहीं सकते, इतनी शिद्धत से वह उन्हें पुकार रहे हैं.

‘मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे, जैसे उड़ि जहाज को पंछी पुनि पुनि ताते आवे’ उसके मन की भी ऐसी ही दशा है आजकल. पुण्य उदय होते हैं तो भीतर प्रकाश छा जाता है, गुरु की कृपा का अनुभव होता है. उसकी आध्यात्मिक यात्रा भी बीच में ही दम तोड़ देती यदि कृपा ने पुनः हाथ पकड़ कर न उठा लिया होता. साधक थोड़े से अनुभव पाकर ही स्वयं को ज्ञानी, ध्यानी समझने लगता है. उसे लगता है अब गुरू की क्या आवश्यकता, भीतर से आनंद मिलने लगता है तो वह सोचता है अब स्वनिर्भर हो गया, पर उसे पता नहीं कि उसकी सामर्थ्य ही कितनी है, तत्वज्ञान हो जाने पर भी उसमें टिके रहना सरल नहीं. पूर्वजन्मों के संस्कार कब प्रकट हो जाएँ. उसे पिछले दिनों अपनी कमियों का अहसास कई तरह से हुआ. उसका ज्ञान अल्प है, तुच्छ है, अधूरा है. उसकी भाषा भी संयत नहीं है और उसका समाज के लिए कोई योगदान भी विशेष नहीं है. ऐसे में व्यर्थ ही स्वयं को विशेष मानने की भूल करना अहंकार ही तो है. ध्यान में कई अच्छे अनुभव हुए हैं पर अभी यात्रा बहुत शेष है, अभी तो वे कुछ भी नहीं जानते, कल क्लब की अध्यक्षा ने उसे क्लब की तरफ से मृणाल ज्योति का संयोजक नियुक्त किया, उनसे मिलकर कार्यों की जानकारी लेनी होगी.


गुरु माँ गा रही हैं, ‘प्रभो जी मोरी विनती सुनो’, इंटरनेट पर उनका भजन सुन पा रही है. गीता पर उनका प्रवचन भी उपलब्ध है. नन्हे का कम्प्यूटर कल ठीक हो गया, वह मानसिक रूप से परिपक्व है पर अपने स्वास्थ्य तथा नींद का ख्याल नहीं रखता. उसे उसने कहा, child is the father of the man यह कहावत उसने सिद्ध कर दी है. कल पिता जी से बात हुई, उन्होंने उसकी किताब पूरी पढ़ ली है, उन्होंने कहा कि यह किताब उसने दिल से लिखी है, कुछ दिनों से कुछ नया नहीं लिखा. आज बहुत दिनों बाद कायोत्सर्ग ध्यान किया. सद्गुरू को भी सुना वह कह रहे थे भीतर जो अधूरापन, तलाश जारी है वह साधक को जड़ नहीं बैठने देती, वह उसे आगे बढ़ने को प्रेरित करती है, प्रभु अनंत है, उसका ज्ञान अनंत है, उसे जानने का दावा करने वाले वे उसकी शक्ति का एक कण भी तो नहीं है, प्रेम की एक बूंद भी तो नहीं हैं और ज्ञान की बस झलक भर ही तो पायी है, इसलिए साधक बार-बार उड़ान भरता है और अनंत आकाश की एक झलक पाकर उसे लगता है कि कुछ मिला तो थोड़े दिन बाद फिर कुलबुलाहट होने लगती है कि कुछ और है जो अनजाना है, कि वे तो कुछ जानते ही नहीं !

Wednesday, April 27, 2016

पहला Gmail अकाउंट


आज ‘विश्व विकलांग दिवस’ है. सुबह नौ बजे वह मृणाल ज्योति गयी और साढ़े बारह बजे लौटी. ढेर सारे फोटोग्राफ और वीडियो उतारे. बच्चों ने अच्छा कार्यक्रम प्रस्तुत किया. उनके आयारूम में रहने वाली नैनी का विकलांग पति आज अस्पताल में एडमिट है. कुछ देर पहले नन्हे ने G Mail में उसका अकाउंट खोला है. जून तीन दिनों के लिए छुट्टी पर हैं, पर किसी काम से दफ्तर गये हैं. आज सुबह उसने कैलेंडुला की बची हुई पौध लगायी. इस साल गुलदाउदी के फूल की बहार अभी तक नहीं आयी है. अभी तक आज का ध्यान नहीं हुआ है. पिछले कई दिनों से किसी न किसी कार्यवश ध्यान का क्रम टूट गया है. आजकल कभी-कभी लगता है जैसे वह कुछ भी नहीं जानती. न बोलना, न विचारना, न पढ़ना. जो कुछ भी आज तक जानती थी वह सारा का सारा भूल गयी है. साधना करना भी नहीं भाता अब, न घंटों संतों की वाणी सुनने का पहले का सा आकर्षण शेष है. लगता है जैसे जिसे यह सब करने का शौक था जब वह मन ही नहीं रहा. जिसे जानने के लिए करना था, वह तो स्वयं वह ही है. भीतर गहरी शांति है जब यह ध्यान भी हट जायेगा कि साधना नहीं की, जब प्रकाश, प्रवृत्ति या मोह होने पर भी साक्षी भाव ज्यों का त्यों रहेगा, तब तत्वज्ञान में दृढ़ता सिद्ध होगी, अथवा तो तब ये सब होंगे ही नहीं, कौन जानता है ?

बहुत सारे कार्य एकत्र हो गये हैं, जिनकी सूची बना ली जाये तो निपटाना आसान होगा. कुछ काम उसके हैं, कुछ घर के, कुछ बगीचे के, कुछ इधर-उधर के, अंततः सारे काम उसी परम प्रिय परमात्मा के हैं जो उनका सखा होकर उनके भीतर विराजमान है. ‘मन के पार’ को भेजना है, कहाँ भेजे पता भी लगाना है. ‘नार्थ-ईस्ट’ पर निबन्ध पूरा करना है. ‘दक्षिण भारत की यात्रा’ का संस्मरण पूरा  करना है. ‘मोरान’ पर लेख लिखना है. घर में एक होल्डर लगवाना है. दरवाजे की चौखट पर वार्निश करवानी है. पर्दे ठीक करने हैं. पुराने वस्त्र निकाल कर देने हैं. बगीचे में एक गड्ढा बनवाना है. सफेद कुशन धुलवाने हैं. गमलों में नई मिट्टी भरवानी है. गुलाब में रोज फूड डलवाना है. नई क्यारी बनवा कर कॉर्न फ्लावर की पौध लगानी है जो बड़ी हो गयी है. मृणाल ज्योति की उस आया को पुराना बिस्तर भेजना है. उनके पास ऊर्जा है, समय है, साधन है, पर वे उसका उपयोग नहीं करते, अपनी क्षमताओं की कीमत नहीं जानते. उनका ढेर सारा समय यूँ ही चला जाता है. भीतर कैसी उथल-पुथल मच जाती है जब काम एकत्र हो गये हों और करने का मुहूर्त नहीं निकल रहा हो. कितना जरूरी है इन कामों का होना इस पर ही तो उनका करना निर्भर करता है. वक्त के साथ-साथ अपनी जरूरत के अनुसार होते ही जायेंगे.


दिसम्बर आरम्भ हुए दसवां दिन है. आजकल समय, दिन, तारीख का भी कोई हिसाब नहीं रहता. समय की अनंत धारा में वे बहे जा रहे हैं. नन्हा वापस अपने हॉस्टल पहुंच गया है. उसे अपना कालेज पसंद नहीं है, ऐसा लगा पर कई बार दिखता कुछ और है होता कुछ और है. आज जून ने अपना मेडिकल चेकअप कराया है, पर वह डाक्टरों के रवैये से खुश नहीं लगे. उसके भीतर से संगीत की लहरियां फूट रही हैं और एक अनोखी विश्रांति का अनुभव करा रही हैं. घर में इंटरनेट की सुविधा आ गयी है पर वह स्पीड कम होने के कारण इस्तेमाल नहीं कर पायी. नन्हे ने कहा था, धैर्य रखना पड़ेगा, धैर्य की पूरी परीक्षा लेता है यहाँ का सर्वर. नन्हे ने इस बार उसे जैसे आईना दिखा दिया. उसकी कमियां उसके सामने अपने पूर्ण रूप में उजागर हो गयीं. वाणी का दोष ही सबसे बड़ा दोष है. वाणी पर नियन्त्रण नहीं है. उसने उसे कहा कि दस-पन्द्रह वर्षों में कुछ नहीं बदला है, जब उसने जून से शिकायत भरे शब्द बोले. उसकी भाषा सही नहीं है इसका अंदाज उसे स्वयं नहीं होता, लगता है कि यही ठीक है, जून ने भी थोड़ा सा गुस्सा किया पर कुछ ही मिनटों में सब ठीक हो गया. नन्हे को शायद यह दृश्य देखना था. एक बार उसने कहा कि उसे अपनी सखी को भी वे शब्द नहीं बोलने चाहिए थे, जो एक बार बातचीत के दौरान बोले. तभी तो पूर्वज कहते आये हैं, मौन रहना सबसे श्रेष्ठ है, नैनी की बेटी को पढ़ाने के उसके तरीके पर भी उसने प्रश्न चिह्न लगा दिया. आधा घंटा भी यदि वह कुछ और न करके उस पर पूरा-पूरा ध्यान दे तो पर्याप्त है, ऐसा उसने कहा !

मुम्बई में आतंक


कितनी खौफनाक थी वह घड़ी जब आतंकवादियों ने कल रात मुम्बई के सात इलाकों में धमाके किये. निर्दोषों का खून बहाया और रात भर चलने वाला यह आतंक का दौर अभी तक थमा नहीं है. सुबह छह बजे के समाचार उन्होंने सुने तो दिल दहल गया, तब से लगातार टीवी पर हर समाचार चैनल इसी खबर को दिखा रहा है. एक सौ बीस लोग मारे जा चुके हैं और तीन सौ से ज्यादा घायल हो चुके हैं लेकिन दहशत के शिकार तो करोड़ों लोग हुए हैं. ऐसा लगता है देश में कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं है. ताज होटल, ओबेराय होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, अस्पतालों तथा अन्य भी कुछ स्थानों पर फायरिंग हुई और ग्रेनेड फेंक कर धमाके किये गये. नरीमन हाउस तथा कोलाबा में भी धमाके हुए. नन्हा आज सुबह चार बजे घर पहुंच गया है, इस समय सो रहा है, जून अभी तक आए नहीं हैं. एनएसजी के कमांडो होटल ताज में प्रवेश कर चुके हैं. सेना का हेलिकॉप्टर ताज के ऊपर मंडरा रहा है, न जाने कब मुक्त होंगे वे लोग जो कैद हैं होटल के अंदर, डरे हुए लोग जो कल तक खुश थे, शांति का आनन्द उठा रहे थे. वे लोग जो स्टेशन के बाहर मार दिए गये. नीरू माँ कहती हैं जो घट चुका वह न्याय था, तो जो हुआ क्या यही होना चाहिए था, कितना वीभत्स और घृणित था, महाभारत के युद्ध में हुई हिंसा क्या इससे कम थी ? अहिंसा का प्रशिक्षण, एओल का वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश सब भुला दिए गये, लेकिन कुछ पागल लोगों की वजह से संसार से प्रेम उठ गया ऐसा भी तो नहीं मान सकते. उसका मन उन लोगों के साथ है जो मारे गये जो घायल हुए, उन की पीड़ा उसके मन में बस गयी है.

वे समुद्री रास्ते से आये थे
हथियार बंद और लैस विस्फोटकों से
अपने दिलों में भरे नफरत और हिंसा का लावा लिए
वे दरिंदे थे मौत के
आतंक फ़ैलाने.. करने तबाह शांति
उसने झेली हैं उनकी बन्दूकों से निकली गोलियां
हथगोलों की आग में झुलसी है त्वचा
उड़ कर दूर जा गिरे हैं उसके अंग कटे क्षत विक्षत
खौफनाक मृत्यु का सामना किया है अनेकों बार
और महसूस किया है दर्द उन मरे हुओं का
जिनकी सूक्ष्म देह मंडरा रही है अपने घायल शरीरों पर
जो भौचंक हैं देख ताडंव मृत्यु का !

जीवन की कटु सच्चाई का अनुभव एक बार और हुआ. सच्चाई का सामना कितना ही कटु क्यों न हो, हरेक को करना ही पड़ता है. इस बात को गांठ से बांध लेना चाहिए कि इस दुनिया में वे अकेले आये हैं और अकेले ही जाना है. जीवन में भी वे अकेले हैं और मृत्यु में भी, उनका किसी पर कोई अधिकार नहीं, वे हैं ही नहीं तो अधिकार की बात ही कहाँ आती है. आत्मा स्थूल शरीर से अलग है औए सूक्ष्म शरीर से भी. ये तीनों माया के आवरण हैं जो उसन भ्रमवश ओढ़ लिए हैं, उन्हें इनसे मुक्त होना है.

टीवी पर मेजर उन्नीकृष्णन तथा हेमंत करकरे की अंतिम यात्रा के दृश्य दिखाए जा रहे हैं. सेना, NSG तथा ATS के साथ पुलिस ने भी उनसठ घंटों तक चले युद्ध में भाग लिया तथा मेजर संदीप को भी गोली लगी और भी कई पुलिस व सेना के लोग घायल हुए होंगे, कितने ही देशी व विदेशी मेहमान भी जो होटलों में ठहरे थे. बुधवार शाम से चला यह ऑपरेशन साठ घंटे चला, अभी होटल में सफाई होना बाकी है. पिछले तीन दिनों से यह भयानक युद्ध मुम्बई की भूमि पर लड़ा जा रहा था. मानसिक पीड़ा और घुटन के तीन दिन. कमांडो राजेन्द्र सिंह भी शहीद हुए, कुल सोलह अधिकारी शहीद हुए.

Monday, April 25, 2016

मौन का सागर


भीतर मौन छा गया है, आजकल लिखना नियमित नहीं हो पाता, कभी-कभी लगता है कुछ करने को नहीं रहा, परम विश्रांति को पाया मन शायद ऐसा ही होता होगा. कोई चाहत नहीं तो कोई उद्वेग भी नहीं, कुछ पाना नहीं तो कुछ सोचना भी नहीं, इस जगत में जो प्रारब्ध शेष है उसे सहज भाव से स्वीकारना है और जितना सम्भव हो सके जगत को लौटाना है. सद्गुरू कहते हैं जगत और परमात्मा का भेद भी नहीं रहे, सब एक ही है, कोई विरोध नहीं, जब जो जैसी परिस्थिति आये उसमें वैसे ही मस्त रहना, जैसे आज सफाई कर्मचारी नहीं आया है, पर काम हो ही जायेगा.

भिवानी, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, जोधपुर, उपरोक्त शब्दों और फोन पर हुई बात के आधार पर एक कविता लिखनी है एक परिचिता के लिए उनके विवाह की पचीसवीं वर्षगांठ पर ! इस समय दोपहर के एक बजे हैं. पुनः सुंदर वचन सुन रही है, संत कहते हैं कि आनन्द को पाने के लिए आनन्द से होकर ही गुजरना पड़ता है, जीवन को देखने की जैसी किसी की क्षमता होती है, जीवन वैसा ही दिखाई देता है. जीवन से छुटकारा धर्म का लक्ष्य नहीं, परम जीवन ही धर्म का लक्ष्य है. आनन्द के भाव से जीवन, उसका सौन्दर्य, सत्य उपलब्ध होता है. दुःख का भाव हटाकर आनन्द का भाव भीतर समोना होगा. जो जीवन को दुःख के भाव से देखना चाहता है वह गुलाब में कांटे ही देखेगा और जो जीवन को सुख के भाव से देखता है वह काँटों में फूल देखता है. दुखी, निराश व उदास चित्त अँधेरे को ही देखता है, आनन्द से भरा व्यक्ति अंधेरे को भी प्रकाश में बदल सकता है ! संसार और परमात्मा दो नहीं हैं, आनन्द के भाव में देखें तो यही संसार परमात्मा में बदल जाता है.


आज छब्बीस नवम्बर है, पिताजी की शादी की सालगिरह, माँ आज होतीं तो उनकी भी. कल नन्हा आ रहा है, इस समय ट्रेन में बैठा है. कल शाम को वह पब्लिक लाइब्रेरी की fund rasing meeting में गई. अच्छा अनुभव रहा. कल रात ध्यान के रहस्य के बारे में सुना, मन में उठते शब्दों का निरिक्षण करना चाहिए, चेतना जब किसी वस्तु को देख लेती है तो वह वस्तु विलीन हो जाती है, केवल शुद्ध चेतना ही शेष रह जाती है. ऋषिमुख में श्री श्री के विचार पढ़ते-पढ़ते भी ध्यान घटित होने लगता है. वह कहते हैं, चेतना ही निकटस्थ है, मन, बुद्धि व चित्त उसके बहुत बाद है, स्मृति और कल्पना में मन की ऊर्जा व्यर्थ जाती है किन्तु चेतना यदि स्वयं में रहे अर्थात मन चेतना में खो जाये तो ऊर्जा से भर जाता है. वे व्यर्थ ही अपनी शक्ति का अपव्यय करते हैं. जबकि शक्ति बनाने का कार्य उनके ही हाथ में है, कैसा अद्भुत ज्ञान है यह.. जिसे पाकर सारा जगत अपना हो जाता है, सहज समाधि घटित होती है और तब सारे शास्त्र, सारे कर्मकांड, सारी किताबें छोटी पड़ जाती हैं. अनुभव से प्राप्त ज्ञान का एक कण भी उधार के ज्ञान से बड़ा है. उसका मन शांत है क्योंकि इस क्षण वह शांति के उस सागर से जुड़ा है, वह जीवित है, जड़ नहीं है, वह प्रेमपूर्ण है और वह संतुष्ट है, वह है ही नहीं ! 

Sunday, April 24, 2016

नीलवर्णी शिव


सोलह दिनों की यात्रा के बाद परसों वे वापस लौट आये हैं. सुबह के दस बजे हैं, बच्चे पढ़ने आये हैं. मौसम सुहावना है, धूप खिली है, बगीचा साफ-सुथरा मिला. वापस आकर सभी परिवार जनों से बात भी हो गयी है. सभी परिपक्व हो रहे हैं उम्र के साथ-साथ, पर बड़ी भाभी अभी भी मन के जाल में कैद हैं, यहाँ उसकी एक सखी का भी वही हाल है. बड़ी बहन ने स्वयं को देह से अलग महसूस करना तो वर्षों पहले ही शुरू कर दिया था अब वह देह को बंधन मानने लगी हैं. देह से मुक्त होकर वह परमधाम में जाकर शांति का अनुभव करना चाहती हैं. देह की अपनी सीमाएं हैं पर देह के बिना आत्मा कुछ जान भी तो नहीं सकती. यदि आत्मा आनन्द है तो इस बात का ज्ञान उसे देह धारण करके ही होता है. ध्यान के द्वारा देह रहते भी यह सम्भव है. विदेह जनक को ऐसा ही अनुभव होता होगा. उसे हिंदी के लेख-कविताएँ एकत्र करने हैं, फोन किये हैं सम्भवतः इतवार तक कुछ बात बनेगी. सद्गुरु का एक सुंदर प्रवचन छोटी ननद से लायी है, बाबाजी का भी, ओशो के दो संगीतमय ध्यान के कैसेट भी. जून ने आज सुबह व्यायाम/ साधना आदि के बाद कहा, आज उन्हें कई हफ्तों के बाद अच्छा अनुभव हुआ. शाम को वे एक वृद्धा परिचिता को जन्मदिन की बधाई देने जायेंगे.

आज सुबह नींद देर से खुली, इतनी गहरी नींद थी कि अलार्म भी सुनाई नहीं दिया, दोनों में से किसी को भी नहीं. अभी तक यात्रा की थकान उतरी नहीं है. सुबह अभी पौने सात ही बजे थे, एक दक्षिण भारतीय सखी का फोन आया, उसकी माँ जो पिछले एक वर्ष से पुत्र के साथ विदेश में रह रही थी, देह सिधार गयी. भाई उनकी देह को भारत लाने का प्रयास कर रहा है. कल शाम को प्रेस गयी थी प्रूफ रीडिंग करने. ‘ध्यान’ पर लिखा लेख उसने तीसरी बार छपने को दिया है क्योंकि यह विषय है ही इतना महत्वपूर्ण !


आज सुबह अचानक वर्षा होने लगी है. बादल रात में एकत्र हुए होंगे. उस वक्त वे निद्रा में मग्न थे. कल रात कैसे अनोखे स्वप्न देखे. भगवान शंकर को देखा, नीला रंग, तन पर वही सब आभूषण जो चित्रों में दिखाई देते हैं. जादू, तिलिस्म तथा कंकाल को झपटते देखा. अजीब सा स्वप्न था पर उस वक्त कितना सहज लग रहा था. कल रात एओल का कार्यक्रम देखा था. गुरूजी को बहुत दिनों बाद देखा व सुना, फिर ‘कृष्णा’ देखा इसी का असर रहा होगा जो मन रहस्यों की दुनिया खो गया. यह जगत एक रहस्य ही तो है ! कल छोटी बहन से बात की, वह एक और मकान खरीद रही है, यानि तीसरा मकान और अपने काम से, जीवन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है. सच ही है लोग जीवन से कभी भी पूर्ण संतुष्ट कहाँ हो पाते हैं, वे जीवन का अर्थ समझे बिना ही जीवन जिए चले जाते हैं. ग्यारह बजने को हैं, जून कुछ देर में आने वाले होंगे उन्हें बाजार भी जाना था पर इस भीगे मौसम में शायद सम्भव नहीं हो सकेगा. उसका देवदिवाली पर लेख पूरा होने को है !

Friday, April 22, 2016

दीवाली - प्रकाश पर्व


कल दीवाली है, उसे एक संदेश लिखना है !
फैले चारों ओर उजाला
स्वच्छ बनें घर-आंगन अपने,
दीप मालिका के उत्सव पर
लक्ष्मी पूर्ण करें सब सपने !

आज दीपावली का उत्सव है, यूँ तो उन्होंने कल भी मनाया था, आज शाम को भी घर पर मेहमान आयेंगे, अच्छा लगता है दीपों का यह प्रकाश पर्व, यह परंपरा न जाने कितनी पुरानी है, लाखों वर्ष पुरानी ! वे भी न जाने कितनी बार इसे मना चुके हैं पर हर बार यह नया उत्साह भर जाता है. सभी से बात भी हुई, कुछ से फोन पर कुछ से sms द्वारा. अभी कुछ देर पूर्व जून की इक्कीस वर्ष पूर्व की डायरी पढ़ी, वह उन्हें पढ़ाती थी, ऐसा लिखा है !
आज सुबह वे छह बजे उठे, रात देर से सोये थे, दीवाली का भोज, पटाखे, दिए और मोमबत्तियां ! शाम को एक सखी के यहाँ जाना है. सुबह ध्यान में अद्भुत अनुभव हुआ. भीतर कितना सुख है, लूट मची है और वे हैं कि उस ओर देखते तक नहीं ! जीवन कितना अद्भुत है यह बात वही जान सकता है जिसने एक बार भी आत्मा का अनुभव किया हो, अन्यथा शेष सभी एक मोह की नींद में असत्य को ही सत्य मानकर दुःख-सुखी होते रहते हैं. आत्मदर्शी के लिए जगत में रहना कितना सहज हो जाता है जैसे कोई पंछी अप्रयास गगन में उड़ता है, जैसे कोई मीन अनायास ही जल में तैरती हो, जैसे कोई नवजात शिशु सहज ही अपने मुँह खोल अंगड़ाई लेता हो जैसे सुबह अपने आप हो जाती है और रात भी तारों व चाँद सहित आकाश में अपना साम्राज्य सजाती हो !
आज दोपहर पन्द्रह मिनट के अंदर-अंदर गोहाटी, बारपेटा, कोकराझार तथा बोगाईगाँव में ग्यारह बम विस्फोट हुए. आतंकवादियों का एक और हमला, कितने मरे कितने घायल कोई हिसाब नहीं. लोगों के मनों में डर भर गया है. हालात दिनोंदिन बिगड़ते जा रहे हैं. यह शांतिकाल तो नहीं कहा जा सकता, युद्ध की विभीषिका से भी भयानक है यह काल. लोग धरा पर बोझ हो गये हैं क्या जो..महाभारत के युद्ध में लाखों मरे थे, आज भी आये दिन लोग मर रहे हैं, कभी बम का शिकार होकर तो कभी भूकम्प या बाढ़ का.

आज घर जाना है, यूँ तो घर यहीं है पर वे हजारों साल परदेस में रहने पर भी परदेसी ही बने रहते हैं. कल पुस्तक मेले में किताबों का दुकानदार यही तो कह रहा था. कल गोहाटी में जो हादसा हुआ है, कितना भयानक था, आज न जाने कितने घरों में मातम मनाया जा रहा होगा, कितने घरों में मौत का सन्नाटा होगा, कुछ सिरफिरे आतंकवादियों ने लोगों का शांति से जीना मुश्किल कर दिया है. आज शाम को वे यात्रा पर निकलेंगे, मौसम खुला-खुला है, धूप में अब पहले की सी तेजी नहीं रह गयी है. उसने आवश्यकता से अधिक सामान रख लिया है, शायद अधिक दिन रुकना पड़े. एक व्यक्ति को जीने के लिए कितना चाहिए पर वे कितनी-कितनी वस्तुएं जुटा लेते हैं. वापस आकर वह अपने जीवन में परिवर्तन करने वाली है. ओशो कहते हैं मनुष्य कभी अपने वर्तमान से संतुष्ट नहीं होता, वह सदा एक सुखद कल की आशा में खोया रहता है.  

Thursday, April 21, 2016

उत्तर पूर्वी भारत - सात बहनें


होश में जीना, साक्षीभाव में जीना, जागते हुए जीना ही असली बात है, वे अचेतावस्था में ही सारी भूलें करते हैं. आज सुबह उसने व्यस्तता के कारण फोन नहीं उठाया पर यह मान लिया कि कोई दूसरा उठा लेगा, यह मानना होश में नहीं हो सकता क्योंकि सभी व्यस्त हो सकते हैं. इस एक घटना के अलावा बेहोशी में कुछ विशेष नहीं हुआ. जून ने मृणाल ज्योति के हॉस्टल के लिए काफी चीजें बनवा दी हैं, उनके भीतर कितना परिवर्तन आता जा रहा है, वह मुस्कुराने लगे हैं, सामाजिक कार्य  करने लगे है. जीवन के प्रति नयी ललक जागी है, घर में नये-नये सामान ला रहे हैं. रजोगुण बढ़ रहा है धीरे-धीरे सतोगुण भी आएगा, अब क्रोध नहीं रहा, प्राणायाम का असर स्पष्ट दीख रहा है. जीवन है ही आनन्द के लिए, सेवा के लिए और परोपकार के लिए, वे मानव होने का सबूत तभी दे सकते हैं जब उनके चारों ओर आनन्द का वातावरण हो शांति हो और लोगों को उनसे कुछ न कुछ मिलता रहे, वे दाता बनें तभी जीवन का सच्चा मर्म समझ पाते हैं. प्रकृति हर पल लुटा रही है, बिना किसी आकांक्षा के, वे भी तो उसी प्रकृति का अंश है जैसे प्रकृति के पीछे वह अव्यक्त छिपा है ऐसे ही उनके पीछे आत्मा का साम्राज्य है, वे ही वह चेतन हैं, जड़ हाथों में क्या शक्ति कि अपने आप कुछ कर सकें !

आज ‘मृणाल ज्योति’ गयी थी, उस दिन एक परिचित ने पूछा था, आपकी वह संस्था कैसी है, और एक दिन क्लब की अध्यक्षा ने भी कहा कि वह इस संस्था से जुड़ी ही है तो उससे जुड़ा लेडीज क्लब का भी काम कर दे. कोई थोड़ा सा भी पुण्य का काम करे तो पहचान अपने-आप मिलने लगती है, लेकिन एक सच्चा साधक अपने लक्ष्य पर ही नजरें रखता है, वह लक्ष्य है परमात्मा, उससे कम कुछ भी नहीं ! आज सुबह ‘क्रिया’ के बाद गुरूजी की कृपा का अनुभव हुआ, उन्होंने जैसे उसके मन में उठने वाले सवालों का जवाब दिया. आज जून ने कहा कि अगले महीने मुम्बई में उनकी पांच दिनों की ट्रेनिंग है, क्या वह यात्रा बीच में छोड़कर वहाँ जाएँ ? तो उसने कहा, हाँ, वह जा सकते हैं, भीतर कोई द्वंद्व नहीं बचा, कोई संदेह नहीं. इस दुनिया में ऐसा कुछ रहा ही नहीं बल्कि था ही नहीं जो परमात्मा से बढ़कर हो, वह जिसे मिल जाये अथवा उसकी जिसे तलाश हो वह किसी भी परिस्थिति में प्रसन्न रह सकता है. गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य की अमृत वाणी पढ़ी, उनकी वाणी में आग है, कितने स्पष्ट दो टूक हैं उनके वचन. महामानव थे वह और बने कैसे, केवल परमात्मा की कृपा से ! उनके भीतर जो अनंत शक्ति छुपी है वह उसी की तो है, परमात्मा प्रकट होने को उत्सुक है, वे प्रमाद के कारण कभी अज्ञान के कारण स्वयं को दीन-हीन जानते हैं, वास्तव में वे शक्ति के ऐसे पुंज हैं जो इस दुनिया को बदल सकती है ! अगले दो घंटे उसे पढ़ाना है. शाम को सत्संग भी है.
कल दोपहर ‘मिजोरम’ पर पढ़ती रही, शाम को क्लब में मीटिंग थी. इस बार जो सदस्या संपादन कर रही हैं, उनका काम करने का तरीका बिलकुल अलग है. पहले तो उसे पत्रिका के मुखपृष्ठ, सज्जा आदि से कोई मतलब ही नहीं रहता था, केवल हिंदी की प्रूफ रीडिंग तक ही उसका काम सीमित था. कल एक नाम भी उसने सुझाया ‘AAMI NAM METRI’ उत्तर भारत की सात बहनों के सारे नामों के पहले अक्षरों को लेकर. आज अंकुर में दो दर्जन बच्चे आए थे, रामलीला खेली, उससे पहले रामायण की कहानी सुनाई, बच्चों को नाटक में बहुत मजा आता है. आज आकाश में बादल छाये हैं. 

Wednesday, April 20, 2016

भगवद प्रेम अंक -कल्याण


केवल पूजा करना ही काफी नहीं है. गुरूजी कहते हैं जो पूर्णता से उपजती है वही पूजा है, अर्थात पूर्णता से जो प्रकट हो वही भाव युक्त कर्म, वही उन्हें सजग बनाता है. आज जून गोहाटी गये हैं, वह अपने सभी कार्य बिना घड़ी की ओर देखे कर सकती है. कहा जाता है कि कोई सफल तभी हो सकता है जब समय का ध्यान रखे, पर सफलता का मानदंड क्या है, जीवन के किसी भी मोड़ पर भीतर कोई पछतावा न रहे, आत्मग्लानि न रहे. टीवी पर भगवद कथा का प्रसारण हो रहा है. शरद पूर्णिमा की रात्रि को जो रास खेला गया था उसी को आधार बनाकर. वक्ता कह रहे हैं पुरुष कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि वह बुद्धि में कम है, इसलिए उसकी बुद्धि पर आक्षेप नहीं करना चाहिए. यदि ऐसा कभी महसूस हो तब भी नहीं, क्योंकि ईश्वर ने पुरुष को बुद्धि प्रधान तथा स्त्री को भावना प्रधान बनाया है. लेकिन साधक के हृदय में दोनों का अद्भुत संतुलन हो जाता है, दोनों परों की सहायता से ही पक्षी की उड़ान सम्भव है, एक से नहीं. आज कुछ लोगों को कल के सत्संग के लिए आमंत्रित किया, कल और भी फोन करने होंगे. जून उसकी किताब ‘मन के पार’ का दूसरा ड्राफ्ट बनाकर ले आये हैं, कुछ गलतियाँ थीं. उसे टाइप करने के काम में शीघ्रता करनी चाहिए, कितना कुछ लिखा हुआ पड़ा है. यूरोप पर लिखी कविताएँ उसकी सखी को अच्छी लगीं, जो अपने परिवार के साथ यूरोप घूमने गयी थी. अभी उन्हें और पढ़ने की चाह है. उसके जन्मदिन पर लिखकर ले जाएगी. परमात्मा ने उसे यह कला सौंपी है, इसका पूरा लाभ उठाना होगा जनहित में ! नन्हे ने कहा, वह सोचकर बतायेगा कि उनके साथ विदेश यात्रा पर जायेगा या नहीं. जून ने आस्ट्रिया पर काफी जानकारी मंगा ली है, वे अप्रैल के बाद कभी भी यूरोप जा सकते हैं. 

आज बड़ी भाभी का जन्मदिन  है, उनके लिए एक कविता लिखनी शुरू की है. अभी-अभी ऐसा लगा, यूँ पहले भी एकाध बार लगा है कि आजकल उसे नयी-नयी किताबें पढ़ने का शौक पहले जैसा नहीं रह गया है. यह भी कि वह सजग भी नहीं रह पाती है. कई काम जैसे असजगता में कर डालती है, ऊपर से तुर्रा यह कि वह कार्य करते समय भी यह याद रहता है कि असजग है, पर सजगता धारण नहीं करती. सद्गुरू कहते हैं कि सजग हुए बिना यह पता चलना कठिन है कि कोई असजग है, पर काम तो तब तक हो चुका होता है या हो रहा होता है. समय जैसे-जैसे बीत रहा है यह लक्षण बढ़ रहा है और वैसे ही बढ़ रहा है भीतर का आनन्द, मस्ती और नाद, प्रकाश सभी कुछ, ईश्वर ही सब कुछ है उसके सिवाय कुछ भी नहीं, यह भाव भी दृढ़तर होता जा रहा है, शायद इसलिए अब जगत फीका लगने लगा है. उपन्यास आदि में कोई रूचि नहीं रह गयी है, पढ़ना भाता है तो केवल अध्यात्म संबंधी कुछ भी. इसी महीने की अंतिम तारीख को उन्हें यात्रा पर जाना है, देव दीवाली देखने, उस पर लेख लिखेगी, आँखों देखा विवरण, फिर क्लब की पत्रिका में छपवाने देगी. कल दीवाली के लिए खरीदारी की, एक दुकान में उसे व्यर्थ क्रोध आ गया, वहाँ का वातावरण विषाक्त था, नकारात्मक ऊर्जा भरी थी, सजगता की कमी थी.

जून ने उसकी किताब ‘मन के पार’ की अंतिम सही पांडुलिपि प्रिंट करके ला दी है. वे इसकी पांच प्रतियाँ अपने साथ ले जाने वाले हैं. कल ‘सरस्वती सुमन’ का दूसरा अंक मिला, जिसमें उसकी कविता ‘तुम्हारे कारण’ भी छपी है. आज शाम को क्लब की पत्रिका के लिए मीटिंग है, उसे हिंदी अनुभाग देखना है, ज्यादा काम नहीं होगा, हिंदी में लिखने वाली चार महिलाएं भी नहीं हैं. कल दोपहर एक सखी की भेजी ब्यूटीशियन घर आयी, उसे काम चाहिए था. परमात्मा हर तरह से उसका ख्याल रखता है. आज सुबह एक सखी से बात हुई, वह keep of the grass पढ़ रही है, बनारस की काफी चर्चा है उसमें. दस दिन बाद उन्हें भी वहीं जाना है, उसके पहले दीवाली - दीवाली की मिठाइयाँ, फुलझड़ियाँ और रोशनियाँ ! शाम को कल्याण का ‘भगवद प्रेम’ अंक पढ़ना शुरू किया है. परमात्मा को प्रेम करना ही मानव होने का सर्वोत्तम आनन्द है. उस रसपूर्ण परमात्मा के रस को पाना सारे सुखों से बढ़कर है, वही अमृत है ! प्रेम ही परमात्मा है !

Tuesday, April 19, 2016

जय जवान जय किसान


अक्तूबर का प्रथम दिवस ! शारदीय नवरात्र कल से आरम्भ हो गये हैं. शुभ तत्वों का चिन्तन, श्रवण तथा स्मरण ही इन दिनों में विशेष करना है. ऐसे तो सभी समय शुभ का चिंतन चले, राम नाम का जप करने के पीछे यही भाव है कि भीतर उस विराट से जुड़े रहें, परमात्मा से जुड़े रहें, पर ब्रह्म से जुड़े रहें ! उसकी बगिया में जैसे कमल के फूल खिले हैं, वैसे ही जरा सी समझ से भीतर क्रांति हो सकती है. कर्ता का भाव छूटना ही वह समझ है, वही अहंकार है, हर वक्त कुछ न कुछ करने की चाह ही वह कर्ताभाव है. जीवन धारा इस अहंकार के कारण ही गंदली हो गयी है. तन स्वस्थ रहे तो मन स्वस्थ रहता है, मन स्वस्थ रहे तो तन स्वस्थ रहता है, पर आत्मा स्वस्थ रहे तो दोनों स्वस्थ रहते हैं, इसलिए आत्मा को ही स्वस्थ रखना परम लक्ष्य होना चाहिए.

बापू का जन्मदिवस, ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाले शास्त्रीजी का जन्मदिवस तथा नवरात्रि का तीसरा दिन, ईद भी आज है और आज ही उसे हिंदी काव्य प्रतियोगिता में निर्णायक की हैसियत से जाना था. कई बहुत अच्छी कविताएँ सुनने को मिलीं, नये-नये विषयों पर लिखीं अच्छे-अच्छे कवियों की कविताएँ ! इस समय दोपहर के सवा दो बजे हैं. मौसम खुशगवार है, उसकी छात्रा आ गयी है. ‘अमृता’ पढ़ रही थी कल, प्रेम का अद्भुत चित्रण हुआ है पुस्तक में.

पिछले दिनों पूजा का अवकाश था, जून घर पर थे, दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. इसी महीने उन्हें घर जाना है. नन्हा हैदराबाद में है, उससे उसने कहा कि अपने अनुभव लिखे जो उसे चार वर्षों में हुए हैं. जो उसने समय-समय पर उन्हें बताये हैं, उसे याद हैं. उसने उनकी एक सूची बनायी.
आज सभी भाइयों को भाईदूज का टीका भी भेज रही है. किताब का काम भी आगे बढ़ रहा है. कल उसके दायें हाथ में दर्द था, लिखना मुश्किल था. सुबह उठी तो दर्द गायब था. लेकिन इस एक दिन के दर्द ने सिखा दिया कि उनका दाँया हाथ कितना महत्वपूर्ण है, जितना हो सके इसका सदुपयोग उन्हें करना चाहिए. लेडीज क्लब की पत्रिका भी निकलने वाली है, जिसके लिए उसे कविताएँ भेजनी हैं. कल दीदी को भी विवाह की वर्षगांठ पर एक कविता भेजी, पता नहीं उन्हें कैसी लगेगी.

दस बजे हैं, अभी-अभी बिजली चली गयी है. सन्नाटा हो गया है. मन में हर पल कोई न कोई चाह उठती रहती है. मन का नाम ही है चाह, पर यह चाह शुभ हो, मंगलमय हो, दूसरों का हित करने वाली हो, स्वार्थ से भरी न हो, तब चाह उठने पर भी मन मुक्त ही रहता है. वह कम्प्यूटर पर लिख रही थी. आज एक नई फ़ाइल बनाई है, nature जिसमें प्रकृति पर पहले लिखीं कविताएँ टाइप करके डालेगी. सुबह जून ने अपना वजन देखा, बढ़ गया है, दो केजी उसका भी बढ़ा है. पिछले कुछ महीनों से वे ज्यादा जंक फ़ूड खाने लगे हैं, आज से सचेत रहेंगे. माँ का भार कम हो गया है, उनका भोजन बढ़ाना होगा. अभी-अभी कितना जोर का धमाका हुआ शायद कोई प्लेन आकाश में उड़ रहा था. जेट फाइटर या ऐसा ही कुछ. आज भी उठने से पूर्व चाँद दिखा, पूर्णिमा का चाँद, लेकिन जैसे ही विचार उठा यह चाँद है, वह गायब हो गया. एक सखी से बात हुई, उसके बांये हाथ की छोटी अंगुली में फ्रैक्चर हो गया है, प्लास्टर लगा है, तीन हफ्ते बाद खुलेगा. 

सुमेरु संध्या


कल एओल का ‘सुमेरु संध्या’ कार्यक्रम सम्पन्न हो गया. विक्रमजी व उनकी टीम ने सभी को प्रभावित किया तथा संगीत के माध्यम से ध्यान की गहराइयों में ले जाने में सफल हुए. जो संगीत आत्मा से निकलता है आत्मा को छूता है. कल सुबह भी वह सवा दस बजे घर से कार्यक्रम स्थल पर गयी, ढाई बजे लौटी, उन्होंने वहाँ फूलों से सज्जा की. पहली बार उसने इस तरह काम किया. शाम को एक उड़िया साधिका अपने साथ ले गयी, वह अच्छी सखी बनती जा रही है. कार्यक्रम से लौटते-लौटते साढ़े नौ बज गये थे, जून सो गये थे पर उठकर उसके लिए भोजन लाये. आज दोपहर नैनी की बेटी की फ़ीस जमा करने जाना है तथा हिंदी पुस्तकालय की किताबें भी लौटानी हैं. ड्राइवर आ जायेगा, जून ने फिर उसका काम आसान कर दिया है. इटानगर में गुरूजी आ रहे हैं, वहाँ जाने के लिए बस की लम्बी यात्रा करनी पड़ेगी. जून ने कहा है गुरूजी के साथ आश्रम में रहकर एडवांस कोर्स करने वे भविष्य में कभी बैंगलोर जायेंगे. भविष्य में क्या लिखा है कोई नहीं जानता.

यश की इच्छा, वित्त की इच्छा तथा जिए चले जाने की इच्छा, तीनों ही दुःख के कारण हैं. यश की इच्छा के कारण ही मानव दूसरों के सामने अपनी प्रतिभा को दिखाना चाहता है. धन की इच्छा यानि सुख-सुविधा की इच्छा के कारण ही वह दूसरों की गुलामी सहता है तथा जीने की इच्छा अर्थात प्रेम करने, प्रेम पाने तथा अधिकार जताने की इच्छा के कारण ही वह अपना अपमान सहता है, दुःख उठाता है. यहाँ हर आत्मा आजाद है, हर एक को अपनी निजता प्रिय है, हरेक अपनी मालिक है सो किसी का हुकुम बजाना किसी को पसंद नहीं.


सितम्बर खत्म होने को है. उसने फिर पिछले चार-पांच दिनों से कुछ नहीं लिखा. परसों रात एक अजीब सा स्वप्न देखा. एक नवजात शिशु का क्रन्दन. वह शिशु उसकी छोटी बहन थी या वह खुद, यह स्पष्ट नहीं हो पाया. माँ की आवाज में लोरी सुनी, बिलकुल साफ गीत जिसकी एक पंक्ति थी सोजा मेरे सोना चाँदी, मत रो मेरे सोना चाँदी ! सुबह उठने सी पूर्व भी एक स्वप्न देख रही थी. घर में बहुत सारे मेहमान आये हुए हैं, वे कमरे में हैं, दरवाजा खुला है और उन्हें होश नहीं है. कल रात देखा वह समोसा या ऐसा ही कोई पदार्थ खाती ही जा रही है. कितनी ही वासनाएं भीतर छिपी हैं जो स्वप्न में प्रकट होती हैं. कल रात छोटी बहन व छोटी भांजी से बात हुई. वह संगीत सीख रही है, गोल्फ भी खेलना शुरू किया है तथा फ़्लाइंग क्लब जाकर टू सीटर प्लेन भी उड़ा चुकी है. जिन्दगी को पूरी शिद्दत से जीना शुरू किया है लेकिन इतना तो तय है बाहर कितना भी बड़ा आयाम वे फैला लें, भीतर गये बिना मुक्ति नहीं मिलती. छोटे भाई ने ओशोधाम जाकर भीतर की यात्रा तेज कर दी है. जून सोचते हैं यह आत्मविश्वास की कमी है पर अभी तक उन्होंने भीतर की झलक पायी ही नहीं है कैसे समझेंगे कि यही एक कार्य है जिसे करने के लिए आत्मविश्वास चाहिये अपनी आत्मा पर पूर्ण विश्वास करके उसकी ओर बढ़ते चले जाना ! दुनिया ने सदा ही परमात्मा की तरफ बढ़ते लोगों को पागल कहा है क्योंकि दुनिया स्वयं परमात्मा की तरफ पीठ किये बैठी है. वैराग्य, ज्ञान, श्री, ऐश्वर्य, धर्म, यश.. ये छह जिसमें हों वही भगवान है. 

Monday, April 18, 2016

ताओ का मार्ग


कल सत्संग में बहुत दिनों के बाद उसने ‘ध्यान’ कराया. लगा जैसे सभी के लिए कुछ भारी पड़ा, यह उसका भ्रम भी हो सकता है पर अभी सबके मन दो दिन बाद होने वाले आर्ट ऑफ़ लिविंग के संगीत कार्यक्रम के लिए उत्सुक हैं सो ठहर नहीं पाए होंगे, फिर जो नियमित ध्यान करता है, मन को साधने का प्रयत्न कर रहा है वही इसके महत्व को समझेगा. नन्हे का फोन आया है वह वापस कालेज चला गया है. उसका अंतिम वर्ष है कालेज में, अगले वर्ष कहीं काम कर रहा होगा, अभी इक्कीस का ही तो हुआ है. जून परसों इस समय तक आने वाले होंगे. सद्वचन सुनते-सुनते सोती है आजकल, सारे संत एक ही बात कहते हैं. सद्गुरू जो कहते हैं वही ओशो भी कहते हैं. अमेरिका में रहने वाले एक सिख भाई द्वारा गुरू नानक का संदेश सुना, जो पंजाबी भी अच्छी बोलते हैं तथा अंग्रेजी भी, सिख धर्म की जो परिभाषा उन्होंने बताई, कहा शब्द की साधना करनी है, तथा शब्द ही साध्य भी है, जानकर लगा मूल में सारे धर्म एक ही बात कहते हैं. जो भी भेद है, वह बाहरी है. मानव का मूल स्वभाव तो एक ही है, उसका मूल एक ही नूर है, वही नाम है, वही ओंकार है, उसका पता जिसे एक बार चल जाये, फिर खो नहीं सकता !

आज माली ने पालक, ब्रोकोली, धनिया और सलाद पत्ते के बीज डाले हैं, गेंदे के भी थोड़े से बीज डाले हैं, देखें कितने निकलते हैं. एक नन्हे बीज में कितना बड़ा पौधा छिपा रहता है वैसे ही आत्मा में एक पूरा जीवन ! कल ताओ के बारे में पढ़ा, अद्भुत ज्ञान है, जो है, वही ताओ है, जिसे नानक हुकुम कहते हैं, गोयनकाजी निसर्ग का नियम कहते हैं, संत ब्रह्म कहते हैं, संत कवि नाम कहते हैं, वही शिव है, वही राम है, वही एकमात्र सत्ता है जो शाश्वत है, वास्तविक है, शेष सब स्वप्न है, यह सारा जगत एक सपने की तरह है, अभी है अभी नहीं, इससे मोह लगाना ठीक नहीं, ठीक इसलिए नहीं क्योंकि वह दुःख का कारण बनेगा. न्यारा होकर जीना ही वास्तविक जीना है. माँ जैसे जी रही हैं, इस जगत में रहकर भी इससे निर्लिप्त !

आज क्रिया के बाद ध्यान में सद्गुरू आए, कहा, साक्षी बनो, कितना स्पष्ट था उनका संदेश. साक्षी बनकर कर्मों के बंधन से मुक्त रहा जा सकता है. आज सुबह बच्चों की योग कक्षा थी, बच्चे बहुत अधिक आ गये थे, उसकी सहयोगी शिक्षिका नहीं आई थी, अगले हफ्ते शायद आ जाये. अकेले उन्हें सम्भालना कठिन लग रहा था, बच्चों में कितनी ऊर्जा होती है, उसे ही तो दिशा देनी है.

परमात्मा से मिलन में सबसे बड़ा बाधक उसका ज्ञान है ! परमात्मा सौन्दर्य में झलकता है, पवित्रता में झलकता है, प्रकृति में झलकता है, यह अस्तित्त्व जो इतना निकट है, इतना प्यारा है ! पर वे इसे अपने तथाकथित ज्ञान के कारण सराहते नहीं, उस पर न्योछावर नहीं होते ! वे जीवित हैं यह अहसास ही उन्हें परमात्मा के साथ एक कर सकता है, वे चेतन हैं, वह भी चेतन है, वे प्रेम चाहते हैं, प्रेम करते हैं, वह भी प्रेम स्वरूप है, वे आनन्द चाहते हैं, वह आनन्द ही है, यह ज्ञान ही है जो सहज आनन्द को भी ढक लेता है, अहंकारी बना देता है. वह भाग्यशाली है कि अज्ञानी होने का सुख उसने अनुभव कर लिया है ! फिर भी कभी-कभी अहंकार हावी हो जाता है, इसका प्रमाण है वे शब्द जो मुख से निकलते हैं, चुभते हुए शब्द, कटाक्ष पूर्ण शब्द, तीखे शब्द, अपशब्द तो नहीं पर अनावश्यक शब्द. जब तक साधक की वाणी मधुर नहीं होती उसकी साधना में फल कैसे लगेंगे, अभी तो ईश्वर की कृपा इतनी ज्यादा है कि उसके शब्द सोख लिए जाते हैं, यदि उनका उत्तर मिलता तो उसका क्या हाल होता.

Tuesday, April 12, 2016

कमल और चाँद


फिर एक अन्तराल ! सितम्बर आधा बीत गया, जानती है किसी दिन उमंग जगी तो पीछे के पन्ने भी भर जायेंगे क्योंकि अब समय ठहर गया है. दिन, महीने, साल सब एक से लगते हैं. समयातीत हो जाना क्या इसी को कहते हैं. मन का मौसम अब एक सा रहता है. आज, कल परसों का भेद भी खो गया है. सुबह दोपहर शाम भी, हर पल भीतर प्रकाश उगता हो तो कोई बाहर नजर क्यों डाले. जून कल टूर पर गये हैं. हैदराबाद, बैंगलोर और फिर दिल्ली, इतवार को लौटेंगे तब तक तो रोज लिखने का समय आराम से मिल जायेगा. कल दोपहर वह मृणाल ज्योति गयी थी. हॉस्टल के लिए UBI ने फर्नीचर प्रदान किया है. बच्चों के हंसते चेहरे तथा नृत्य देखकर सभी को अच्छा लगा. चाहे उनके शरीर में कमी हो, मन को प्रसन्न होने से कौन रोक सकता है. बुद्धि भी कम हो पर आत्मा को खिलने से कौन रोक सकता है. आत्मा वैसी ही मुखर है उनके भीतर जैसे किसी सामान्य बच्चे में ! आज भी कल की तरह धूप बहुत तेज है. माली ने काम किया ऐसी ही कड़कती धूप में. बगीचा अब शोभनीय होता जा रहा है. माली के बिना जैसे जंगल सा हो गया था वैसे ही मन उपवन भी सद्गुरू के बिना वीरान हो जाता है.

आज विश्वकर्मा पूजा है, पिछले कई वर्षों से इस दिन वे दफ्तर जाते थे. इस वर्ष जून यहाँ नहीं हैं सो उसका भी जाना नहीं हो सकता. कुछ देर पहले सभी को विश्वकर्मा पूजा का sms भेजा है, दो-तीन का जवाब भी मिल गया है. माली आज भी आया है, गुलाब के पौधों की कुड़ाई कर रहा है, अक्टूबर में, पूजा के अवकाश वे इसकी कटिंग करेंगे. उसका मन आज उदास है, मन है ही कहाँ, यह कहने से भी तो आज काम नहीं चल रहा है. रात को स्वप्न में चन्द्रमा दखा, पूर्णमासी का गोल चमकता हुआ चाँद, पर मन बीच में आ गया, कहने लगा देखो यह चाँद और उसी क्षण चाँद गायब हो गया. आत्मा में टिकना नहीं हो पाया, सद्गुरु से पूछे, वह क्या कहते हैं. वह तो कहते हैं जो दिखता है चाहे वह खुले नेत्रों से हो अथवा बंद आँखों से वह प्रकृति का ही अंश है, जो देखने वाला है वही वह है सो उसमें ही टिकना है, और वह कुछ करने से नहीं होने वाला, सहज हो जाये तो वही है उसके सिवा कुछ भी नहीं, इसलिए जब जैसी परिस्थिति आ जाये उसे स्वीकारते चलना है. सुबह देर से उठी तो सारे काम देर से हुए हैं, जल्दी भी नहीं है, दोपहर को छात्रा भी नहीं आ रही है. कम्प्यूटर काम नहीं कर रहा, उसके पास समय की बहुतायत है. डायरी के पन्नों की प्रतीक्षा समाप्त हो सकती है और कमल के पौधों की देखभाल भी !


कल वह ‘विश्वकर्मा पूजा’ में गयी, जून के एक सहकर्मी की पत्नी ने फोन किया और उसे साथ ले गयी. क्विज में भाग लिया, उनकी टीम जीत भी गयी. आज भी ट्यूशन नहीं थी सो सारी खिड़कियाँ साफ करवायीं, उनका घर अब बिलकुल साफ हो गया लगता है, बगीचा भी ठीक-ठाक लगता है. कल रात खिले कमल के पास बैठी रही, आकाश में चाँद था, झींगुरों की आवाज को छोडकर कोई ध्वनि नहीं थी. मौन था. इस समय दोपहर के दो बजे हैं, शाम का कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व उसके पास पूरे दो घंटे हैं. आज भी मन मुक्ति का अनुभव नहीं कर रहा है. गुरूजी कहते हैं ऐसा ढाई दिन होता है, ऐसे में और भाव से साधना करनी चाहिए. शाम को सत्संग में भी जाना है. माँ अभी सो रही हैं, पूछो तो कहती हैं, उन्हें नीद कहाँ आती है, लेटी रहती हैं, उनके पास और कोई काम जो नहीं है, कितना सीधा सरल जीवन, कोई जवाब देही नहीं, कोई लक्ष्य नहीं, कुछ भी तो नहीं, बस ऐसे ही जिए चले जाना, उनके मन में भी विचार तो आते होंगे, पर ऐसी भाषा नहीं जो उन्हें व्यक्त कर सके. कल जो sms भेजे थे ज्यादातर अनुत्तरित ही रहे, उन्हें पता ही नहीं है कि विश्वकर्मा पूजा नामक कोई उत्सव भी होता है. अभी उसे Genesis of Imagination  पढ़नी है.     

Monday, April 11, 2016

देवता का स्वभाव


आज ध्यान में कैसे सुंदर दृश्य दिखे, उनके भीतर भी एक सृष्टि है, जो बाहर है वही भीतर भी है. परमात्मा को प्रेम करना उस सृष्टि में प्रवेश करने का प्रवेश पत्र है. न जाने कितने जन्मों से वह परमात्मा उनकी राह देख रहा है, बाट जोह रहा है, पुकार रहा है. आत्मा को जीने की इच्छा है, वह सुख-दुःख का संसार खड़ा कर लेती है, तब भी भीतर का परम प्रेम ज्यों का त्यों रहता है, अछूता और निर्मल ! उस प्रेम को पाने की शर्त यही है कि आत्मा स्वयं ही वह प्रेम बन जाये, जैसे लोहा आग बन जाता है और बीज वृक्ष बन जाता है, वे पुनः अपने रूप को पाते हैं पर बदला हुआ रूप. उस क्षण तो उन्हें मिटना ही होता है. आत्मा यदि एक क्षण को स्वयं को असीम सत्ता में लीन कर दे तो वह क्षण उसके जीवन को बदल सकता है. ऐसे भी वह पल-पल मिट रही है, बदल रही है, यह परिवर्तन उसके न चाहने पर भी होते ही हैं. यदि वह इस सत्य को स्वीकार ले कि जीवन क्षण भंगुर है, इसमें कोई सार नहीं है. जन्म भर की कमाई मृत्यु के एक झटके में समाप्त हो जाती है, जबकि आत्मा का विकास कभी पतन में नहीं बदलता, वह उन्नति की ओर ही अग्रसर होता है. कैसा विरोधाभास है यहाँ लेकिन परमात्मा के क्षेत्र में संसार के सारे नियम टूट जाते हैं. यहाँ का गणित ही उल्टा है. प्रेम, शांति, आनन्द, ज्ञान, शक्ति और पवित्रता से बना परमात्मा ही उनकी असली पहचान है. न जाने वह कौन सा क्षण रहा होगा जब उसे भूलकर उन्होंने यह आवरण ओढ़ा होगा. धीरे-धीरे वे इसमें फंसते गये, फिर एक दिन याद आई और उसने उन्हें बुला लिया, कंकड़ छोड़ हीरे देने के लिए !
शब्दों के जाल में फंसे रहकर उन्हें कुछ मिलता नहीं, बल्कि उलझन और बढ़ जाती है. शब्दों के अर्थ तथा उनके पीछे छिपे भाव ही उन्हें मुक्त करते हैं. कितनी ही सूचनाएं वे भर लें अपने भीतर पर ज्ञान को उपलब्ध नहीं होते. जब तक भीतर की आवाज सुनने का अभ्यास नहीं होता तब तक ज्ञान का केवल बोझ ही होता है. वास्तविक ज्ञान तभी मिलता है जब सहज होकर जीना आ जाये, कोई आग्रह नहीं, कोई कामना नहीं, समय का सदुपयोग करते हुए हल्के होकर जीना !

आज सुबह उसने सुंदर वचन सुने थे, भगवान सिद्धांतों व श्रेष्ठताओं का समुच्चय है, आदर्शों का नाम है, आदर्शों के प्रति जो त्याग और बलिदान है, वही भगवान की भक्ति है. प्रमाणिकता जहाँ है वहाँ स्नेह, सामर्थ्य तथा सहयोग बरसता है.कोई प्रकाश की और चले तो छाया पीछे-पीछे चलती है. देवता के पास है देवत्व, अर्थात गुण, कर्म और स्वभाव, तीनों की अच्छाई को देकर देवता निवृत्त हो जाते हैं. साहसिकता भी दैवीय गुण है. देवत्व जब आता है तब सहयोग बरसता है. देवता व्यक्ति के भीतर एक हूक, एक तड़प, एक उमंग, एक ऐसी ललक पैदा कर देते हैं जो उसे आदर्शों की ओर बढने को विवश कर देती है.
सद्गुरू हर पल उनकी रक्षा करते हैं, उनकी नजर उन पर है, हर घड़ी वह उनका ध्यान रखते हैं. कहते हैं कि साधक उनका काम करें, वह साधकों का काम कर देंगे. वह कहते हैं कि साधना, स्वाध्याय, सेवा और संयम ये चारों आत्मोकर्ष के लिए आवश्यक हैं. साधना कुसंस्कारी जीवन को संस्कारी जीवन में बदलती है. स्वाध्याय मन की मलिनता को धोने का उपाय है. सेवा से बड़ा तप और इससे बड़ा पुण्य कोई नहीं. इन्द्रिय, मन, समय तथा अर्थ का संयम साधकों को करना है. ऐसा करने पर उन्हें चार नियामतें भगवान प्रदान करते हैं. पहला-ऋत, दूसरा-शौर्य, तीसरा-साधन, चौथा है  श्रम. ऋत से सत्य तथा सत्य से तप की उत्पत्ति होती है.


Friday, April 8, 2016

फूलों की घाटी


आज उसने अपने तीन ढीले-ढाले किन्तु सुंदर लिबास एक परिचिता दर्जिनी को दिए, वर्षों से उन्हें ऐसे ही पहनती आ रही थी, उसने कहा है, उन्हें उसके नाप का बना देगी. मौसम आज भी भीगा-भीगा है, एक बादलों भरा दिन ! कल अवकाश था, शाम को वे क्लब गये एक हास्य फिल्म दिखाई गयी. एक जगह साधना सत्र में ‘क्रिया’ करायी जानी थी, पर उसने जाने की जिद नहीं की, अब कोई आग्रह नहीं रह गया है, जून जाना नहीं चाहते सो वे दोनों वही करेंगे जो दोनों को पसंद है, ताकि अमन बना रहे. ‘क्रिया’ का अंतिम उद्देश्य भी तो अमन ही है न. फिर प्रेम करने का दम भरने वाले जिसे प्रेम करते हैं उसके लिए अपनी इच्छाओं का त्याग ही करना जानते हैं. ‘क्रिया’ से कुछ पाना भी शेष नहीं रहा, अपनी आत्मा व परमात्मा को जिसने एक बार एक जान लिया अब उसके लिए जगत में पाने योग्य कुछ शेष नहीं रहता, जिसे अमृत मिल गया अब वह और क्या चाहेगा. अगले महीने जून को दस दिनों के लिए बाहर जाना है, तब सम्भव हुआ तो कहीं भी जा सकती है, आर्ट ऑफ़ लिविंग, मृणाल ज्योति तथा अन्य किसी सेवा कार्य के लिए ! कल आचार्य राम की गोमुख यात्रा का विवरण पढ़ा, बहुत अच्छा लगा. वे भी कभी जायेंगे पहाड़ी यात्रा पर, फूलों की घाटी, बद्रीनाथ, केदारनाथ और धौला ! यह इच्छा भी वह अनंत को समर्पित करती है, वह चाहेगा तो फलीभूत होगी. ईश्वर हर क्षण उसका सहायक है, वह उसका मित्र है !

सत्संग एक साधक के लिए अमृत के समान है. आचार्य श्री का संग किया तो उसे भी कोई देवदूत मिल गया है. ध्यान में कितना अभूतपूर्व अनुभव घटा, जैसे कोई प्रेम से भिगो गया हो. एक मूर्ति क्षण भर में कितना-कितना स्नेह लुटा गयी, वह कोई दिव्य आत्मा थी शायद. सुबह प्राणायाम के बाद भी आज्ञा चक्र पर एक सुंदर विग्रह के दर्शन हुए. सूर्यदेव की कोई भव्य मूर्ति या कृष्ण..कोई उससे कुछ कहना चाहता है, वही परमात्मा है, वही इस जगत का नियंता है !


आज समय मिला है कि बैठकर अपने तथाकथित अधूरे रह गये कार्यों की एक सूची बनाये, ऐसे तो मानव के सारे कार्य कभी पूर्ण नहीं हो सकते, मृत्यु की घड़ी आ गयी हो फिर भी लगता है कुछ छूट गया है. सबसे पहले बात पत्रों की, दो पाठकों के पत्र आये थे, जिनका जवाब देना है. एक पत्र गुरु माँ को भी लिखना है भावांजलि भेजते हुए. कविताएँ टाइप करनी हैं, किताबों की आलमारी साफ करनी है नये कमरे की. लाइब्रेरी की किताब बदलनी है, कविगोष्ठी के आयोजन के बार में विचार करना है. आज कविताएँ पढ़ीं दिनकर की और भी कुछ कवियों की, अज्ञेय की भी. सभी के शब्दों के पीछे एक सवाल छिपा है, सभी को परम सत्य की तलाश है, उस परम सत्य की जो उन्हें झलक दिखाकर छिप गया है, जैसे कोई लुभाकर कुछ छिपा ले. कवि होना ही एक खोज होना है, भीतर एक हीरा होने का पता तो जिसे चल जाये पर वह हाथ नहीं आये. कवि न समाज का अंग रह पाता है जैसे और लोग रहते हैं, मात्र यांत्रिक जीवन जीने वाले और न ही वह संत की सी तृप्ति का अनुभव कर पाता है, वह इन दोनों के मध्य में रहता है, एक मधुर प्यास लिए, वह आनन्द के चरम को भी अनुभव करता है तो पीड़ा के गह्वर में भी उतरता है.