Wednesday, February 28, 2018

योग का योगदान



अक्तूबर आरम्भ हुए चार दिन हो गये, आज पहली बार डायरी खोली है. योग की दो कक्षाएं हो चुकी हैं. तीसरी सम्भवतः परसों सुबह होगी. कल शाम शायद क्लब में पार्टी है, सो हॉल नहीं मिलेगा, ऐसा संयोजिका ने कहा, इस ‘शायद’ का अर्थ वही जानती है. गुरूजी कहते हैं, इस दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं, सच्चे, कच्चे व..ज्ञानी सभी को साक्षी भाव से देखता है, व मस्त रहता है. सामाजिक क्षेत्र में कदम रखने पर इन सबका सामना तो करना ही होगा. बच्चों को योग सिखाना कितना सहज है, कितने मासूम होते हैं वे ! आज सुबह स्कूल में सिखाते वक्त तितली के रूप में अस्तित्त्व फिर आया, वह तो यूँ भी हर क्षण, हर पल साथ ही है. उसके ही नहीं, सबके साथ, वे सजग रहें तो उसका अनुभव सहज ही होता है. असजग होते ही भीतर स्वप्न चलने लगता है, ऊर्जा व्यर्थ चली जाती है. कुछ भी हाथ नहीं आता. वह परमात्मा अकारण ही दयालु है. प्रेम उसका स्वभाव है, शांति उसका वस्त्र है, ज्ञान और शक्ति के रूप में वह परिपूर्ण है. सुख और पवित्रता उसके भीतर रचे-बसे हैं. वह पतितपावन है. उसमें रहकर वे भी पवित्र हो जाते हैं. जीवन कितना अनमोल है यदि उसका साथ हो, अन्यथा एक बोझ..ईश्वर उन सभी को सद्बुद्धि दे जो उससे विमुख हैं और दुखपूर्ण हैं..ग्यारह बजने को हैं, कुछ देर में जून आने वाले हैं, उनका जीवन भी समृद्धि की ओर जा रहा है. उन्हें तरक्की मिली है. कुछ ही  दिनों में एसी कार भी मिल जाएगी.

कल दिन भर व्यस्तता रही. शाम को क्लब गयी. आज भी दो मीटिंग्स हैं. पहली मृणाल ज्योति में विश्व विकलांग दिवस के लिए और दूसरी महिला क्लब की. आज सुबह योग कक्षा में दो महिलाएं ही  उपस्थित थीं. कल व परसों उन्हें घर पर आने को ही कहा है. मन कैसी शांति का अनुभव कर रहा है, किसी को कुछ देने के बाद मन कैसा तृप्त हो जाता है. परमात्मा ही बंटता है जैसे..ऊर्जा ही तो बंटती है. आज योगनिद्रा का अभ्यास कराया, यकीनन उन्हें अच्छा लगा होगा. कुछ देर पहले असमिया सखी से बात की, आवाज से लगा वह काफी परेशान है. स्वास्थ्य ठीक न रहे तो व्यक्ति का जीवन एक भार बन जाता है, लेकिन उन्हें अपने जीवन को सुंदर बनाने का प्रयत्न प्रतिपल करना है. ईश्वर का अनुग्रह तो बरस ही रहा है.  
कल की दोनों मीटिंग्स अच्छी रहीं और अच्छा रहा आज का योग अभ्यास भी. आज चार लोग आये थे. सुबह उठी तो गला कुछ खराब लग रहा था. कल शाम को तली हुई कुछ वस्तुएं खायीं, फिर वापस आकर ठंडा पानी पिया, शायद इसी कारण. उपाय आरम्भ कर दिये हैं. तीर टोपी ही लेकर जायेगा, गर्दन नहीं. आज एकादशी है, भोजन भी हल्का रहेगा. कल क्लब में ‘सेल’ है, सुबह नौ बजे ही उन्हें जाना है. आज संध्या भी तैयारी हेतु जाना होगा. विश्व विकलांग दिवस पर एक लेख लिखना है, जो एक बुलेटिन में छपेगा, जिसका भार उसे सौंपा गया है. बुलेटिन में अन्य लेखों के लिए आग्रह पत्र भी लिखकर भेजने हैं. जब कोई किसी काम को करने में सक्षम  होता है, तभी अस्तित्त्व उसे उस काम के लिए चुनता है.

कल का आयोजन भी हो गया. उसने भी काफी कुछ खरीदारी की. अब दिसम्बर में उन्हें पुनः एक सेल आयोजित करनी है. आज सप्ताहांत है, सुबह घर की साप्ताहिक विशेष सफाई भी हुई और तन की भी, मन की तो हर क्षण  होती है, जब चाहा अमनी भाव में चले गये, वही उसकी सफाई है. अब परमात्मा और संसार दो नहीं रह गये हैं, एक ही है सब. जून विशेष साप्ताहिक खरीदारी करने बाजार गये हैं. नैनी की छोटी बिटिया का जन्मदिन है, उसके लिए उपहार भी लायेंगे. मृणाल ज्योति की मीटिंग कल होगी, इतवार को वह व्यस्त रहती है, एक व्यस्तता और सही. जिसे स्वयं के लिए कुछ नहीं चाहिए उसका सारा समय संसार के लिए या भगवान के लिए. एक सखी के परिवार के किसी सदस्य ने एक बंगाली लघु फिल्म बनाई है, अच्छी लगी. बताया गया है, परिवार में संस्कार कैसे एक पीढ़ी से दूसरी में जाते हैं. उसके भीतर जो ऊर्जा थी वही नन्हे को मिली है, साहसी है वह भी और उसे भी अपनी ऊर्जा को सकारात्मक बनाना होगा, समय ही सिखाएगा उसे ! महिला क्लब की प्रेसीडेंट का विदाई दिन भी नजदीक आ रहा है, उनसे मिलकर कुछ जानकारी लेनी है. वह एक बेबाक, खरी-खरी सुना देने वाली महिला हैं. रोबदार बुलंद आवाज है उनकी, अपने रुतबे का लाभ उठाती हैं और मस्त रहती हैं !



Monday, February 26, 2018

बड़ा सा कार्पेट



शाम के छह बजने को हैं. वे सवा तीन बजे ही घर पहुंच गये थे. आते ही सफाई का कार्य आरम्भ करवाया, काफी साफ हो गया है घर, शेष कल होगा या कहे, कल से होगा. पिछले सात दिन पलक झपकते गुजर गये, अच्छा लगा नन्हे का नया घर. उसके सभी मित्रगण मिलजुल कर रहते हैं. घर को साफ रखने का भरसक प्रयत्न करते हैं और खुश रहते हैं. वे नन्हे की नयी मित्र से भी मिले. पता नहीं कब तक निभेगा यह रिश्ता, वे खुद भी नहीं जानते. आज की पीढ़ी कई मायनों में जिन्दगी को ज्यादा गहराई से जी रही है. वे खतरा उठाने को तैयार हैं. बंधन उन्हें पसंद नहीं, पता नहीं जीने का यह तरीका कितना सही है. अभी-अभी उसने उनके लिए एक कविता लिखी, नन्हे को भेजी. इस यात्रा में उसने कई किताबें भी खरीदीं. तीन इस्कॉन से तथा दो एयरपोर्ट से.

आज एक पुरानी सखी का फोन आया, वे लोग चार-पाँच वर्ष पहले यहाँ से चले गये थे. नन्हे का फोन भी आया, उसने कहा कविता उसे अच्छी लगी. जून का काम आजकल बढ़ गया है. शाम का नाश्ता ( कुछ फल) साथ ले गये हैं. दोपहर को वह बाजार गयी, एक सखी के लिए क्लब की ओर से दिया जाने वाला उपहार खरीदा. एक सुंदर सी असमिया साड़ी, उसे अवश्य पसंद आएगी. कल ही विदाई समारोह है, वह बगीचे से फूल तोड़कर उसके लिए एक गुलदस्ता भी बनाएगी. उसके लिए एक कविता भी लिखी थी, जून उसे एक कार्ड में प्रिंट करके लायेंगे. कल मीटिंग के अंत में उसे धन्यवाद ज्ञापन भी करना है. सोचती है पहले से ही प्रिंट कर लेगी. उसने क्लब में योग साधना के लिए एक नया प्रोजेक्ट आरम्भ करने की योजना बनाई है. प्रेसिडेंट भी राजी हैं. दो दिन बाद ईद का अवकाश है वह उसी दिन जाकर बड़ा सा कार्पेट खरीदेगी. अगले महीने दो अक्तूबर को प्रोजेक्ट का शुभारम्भ होगा. पूजा का उत्सव भी आने वाला है, उन्हें घर व बगीचे में सहयोग देने वालों तथा उनके परिवार के लिए उपहार खरीदने हैं, दूधवाला, धोबी और ड्राइवर भी उनमें शामिल हैं.
 
दो दिनों का अन्तराल, परसों जून गोहाटी गये थे. आज का दिन घटनापूर्ण रहा, सुबह उठने से पूर्व भीतर अक्षर देखे, अ, आ,....ज्ञ. पश्यन्ति इसे ही कहते हैं शायद. सुबह मृणाल ज्योति जाना था और दोपहर को एक और सदस्या के लिए उपहार लेने बाजार. दोपहर को लेखन कार्य. शाम को क्लब के काम से एक सदस्या के घर जाना था, वहाँ से क्लब. लौटकर देर हो गयी थी, सो रात्रि भोजन में दिन के बचे मूली के साग का परांठा ही खाया. जून कल आ रहे हैं. कल शाम से फिर दिनचर्या नियमित हो जाएगी. आज उनका फोटो अख़बार में छपा, गोहाटी में जो कांफ्रेस हुई थी उसी सिलसिले में. सभी ने बधाई दी.

सितम्बर का अंतिम दिन ! सुबह एक सखी का फोन आया, उन्हें क्लब में एक कार्यक्रम का आयोजन करना है जिसमें विभिन्न स्थानीय फैशन डिजाइनर तथा महिला दुकानदार अपने वस्त्रों के स्टाल लगायेंगे. बड़े हॉल में लगभग बीस मेजें लगवानी हैं और वस्त्र टांगने के लिए स्टैंड आदि लगवाने हैं. इसका विज्ञापन भी देना है. परसों से योग कक्षा की शुरूआत भी करनी है. अभी-अभी एक निमन्त्रण संदेश लिखा है उसने, जो व्हाट्सएप के जरिये सभी को भेजना है. उसने सोचा एक बार सेक्रेटरी को दिखा लेना ठीक रहेगा. परसों के लिए कुछ सामान भी खरीदना होगा. प्रसाद के लिए मूंग साबुत दाल, काबुली व काले चने, एक नारियल, एक दीपक, अगरबत्ती और कागज की प्लेट्स. कुछ फूल भी ले जाने हैं. 

Friday, February 23, 2018

विघ्नविनाशक हे गणनायक



आज सुबह उसे टीवी पर सद्गुरू के पावन वचन सुनने का मौका मिला है. वह गणेशजी का वन्दन उस स्त्रोत से कर रहे हैं जो आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया है. गणेश जी प्रथम मूलाधार चक्र के अधिपति हैं. उन का जागरण ही चैतन्य को जगाता है, भीतर शक्ति को मुक्त करता है. वे अजन्मा, निर्विकार, निराकार, गुणातीत, चिदानन्दरूप हैं, पर उनका साकार रूप भी बहुत अनुपम है. सद्गुरू उनकी वन्दना करते हुए कह रहे हैं, साकार के आलम्बन के साथ-साथ निराकार में पहुँचना है, निरंजन तक पहुंचना है. जो परब्रह्म है, सर्वव्यापी है, जगत का कारण है, सुख प्रदाता है, दुःख हर्ता है. जो ज्ञान, ज्ञाता व ज्ञेय तीनों है, सब के भीतर देखने वाला ही वह चैतन्य है. गणेश पूजा के उत्सव के दौरान भक्त भगवान के साथ खेलना चाहते हैं. उनकी मूर्ति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, भीतर की चेतना को ही उसमें स्थापित करते हैं. भगवान जो कुछ भक्त को देते हैं, वे भी उन्हें अर्पण करना चाहते हैं. जैसे सूरज व चाँद भगवान की आरती करते हैं, भक्त कपूर जलाकर आरती करते हैं. पुनः उन्हें अपने हृदय में स्थापित करके साकार मूर्ति को जल में प्रवाहित कर देते हैं. गणपति विद्या के अधिपति भी हैं, सर्व पूजित ब्रह्म तत्व भी वही हैं. उन्हें स्वयं के भीतर अनुभव करना ही सच्ची पूजा है. स्वयं के भीतर विराजमान निराकार शक्ति के साथ खेलना ही पूजा है. चेतना में छिपे गुणों को जागृत करना ही पूजा का लक्ष्य है.

बंगलूरू में दो दिन उन्हें और बिताने हैं. आज गणेश पूजा है. जून यहीं निकट ही कुछ सामान लेने गये हैं. नन्हा भी किसी काम से बाहर गया है. आज उसका अवकाश है. कुछ देर पहले नेट पर उसने एक इंटरव्यू लिया. आज बाई नहीं आई है. सुबह कुक आया था, नाश्ते में पोहा बनाया है. कुछ देर बाद वे तीनों घूमने जायेंगे. पहले चिड़ियाघर, फिर राजधानी में दोपहर का भोजन, जहाँ बड़े भाई की बिटिया भी आ जाएगी, जो यहीं रहकर पढ़ाई करती है. उसके बाद वे आर्ट ऑफ़ लिविंग आश्रम जायेंगे. उसने आज सुबह महाभारत में भगवद गीता का एपिसोड देखा. गीता अब कुछ-कुछ समझ में आने लगी है. पहले कृष्ण ज्ञान योग की बात करते हैं, आत्मा के ज्ञान की बात, पर अर्जुन उसे समझ नहीं पाता. फिर वे निष्काम कर्मयोग की बात करते हैं. कर्म किये बिना कोई रह नहीं सकता, पर कर्म बंधन न बने इसके लिए स्वार्थ के बिना कर्म करना होगा. फल पर उनका अधिकार नहीं है, केवल कर्म पर ही है. यज्ञ रूप में किये गये कर्म उन्हें बांधते नहीं हैं तथा रजोगुण को शांत रखते हैं. अर्जुन जब यहाँ भी संदेह से मुक्त नहीं हो पाया तब कृष्ण ने भक्ति योग की बात कही. परमात्मा को अर्पण हुए कर्म भी मुक्ति का कारण बनते हैं. कृष्ण की महिमा को जानकर अर्जुन के मन में श्रद्धा का जन्म होता है, वह उनकी बात समझ जाता है.


Wednesday, February 21, 2018

मेट्टुर बांध- तमिलनाडू



आज वे घर लौट आये हैं, दोपहर को सिटी टूर के लिए निकले थे. यरकौड झील तथा अन्ना पार्क के दर्शन के बाद एक मन्दिर देखने गये जो यहाँ के उच्चतम स्थान पर बना है, साढ़े पाँच हजार की ऊँचाई पर बना वह मन्दिर एक चट्टान के भीतर गुफा में स्थित है. वहाँ कुछ देर ही रुके, अद्भुत शांति का अनुभव हुआ पर उसे भंग कर दिया हाथ में पकड़े मोबाइल ने, जिस पर चित्र खींचने का अभ्यास इतना पक्का हो चुका था कि मूर्ति की भी तस्वीर खींच ली. पुजारी ने डांटा, जो पूर्णरूपेण उचित था. अब के बाद कभी मन्दिर में तस्वीर लेने की गुस्ताखी नहीं हो सकेगी. वापस आकर लंच की तरह नाश्ता किया, नाश्ते में सभी कुछ था, जो विविधतापूर्ण था. कुछ देर नन्हे ने ड्रोन उड़ाने का प्रयास किया. छोटी सी एक काली चिड़िया अपनी मनमोहक उड़ान से मानव निर्मित ड्रोन को मात दे रही थी. एक बार फिर होटल में घूमने के बाद दोपहर साढ़े बारह बजे वापसी की यात्रा आरम्भ की. यह एक तीन सितारा होटल है. एक पहाड़ को ही दीवार का रूप दे दिया गया है, जिसपर लताएँ इस तरह चढ़ा दी गयी हैं, जैसे उसी का भाग हों. उसे लगा, पौधों की इतनी प्रजातियाँ एक ही स्थान पर उगाना और बगीचा लगाना कितना श्रम साध्य कार्य रहा होगा. 'रॉक पर्च स्टर्लिंग होलीडेज' में रहना उनके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बन गया है. कॉफ़ी, संतरे तथा काली मिर्च के बागानों को देखते तथा चन्दन, सौगान और सिल्वर ओक के जंगलों को पार करते हुए वे आगे बढ़े. मार्ग में मेटुर बाँध पहुँच कर वे उसके रिजर्वायर तक पहुंचे. गूगल की सहायता से वे होगेनक्कल झरने देखने निकले पर पहुंच गये झील तक. मोबाईल एप कह रहा था कि फेरी से झील को पार करके वहाँ पहुँचा जा सकता है. कुछ समय झील पर बिताकर उन्होंने वापसी की यात्रा आरम्भ की और देर शाम घर लौट आये.

सुबह के साढ़े सात बजे हैं. सितम्बर में ही बंगलूरू का मौसम उतना ठंडा है, जितना असम में नवम्बर में होता है. हवा शीतल है. कुक ने नाश्ते में ‘उपमा’ बना दिया है, दोपहर का भोजन भी लगभग तैयार है. जून बाहर गये हैं. नन्हा सो रहा है. कल दिन में आँखों का चेकअप कराना था. शाम को वे इस सोसाइटी का निरीक्षण करने निकले, जहाँ नन्हे ने घर लिया है. यहाँ सभी आधुनिकतम सुविधाएँ मौजूद हैं. स्वीमिंग पूल, जिम, टेनिस टेबल, बिलियर्ड, कैरम, टेनिस कोर्ट सभी कुछ है. कमी थी तो केवल लोगों की, जिन्हें इनका उपयोग करना था. बच्चे खेल रहे थे. अचानक सीढ़ियों से उतरते समय उसका पैर फिसल गया और बाएं पैर की एड़ी में मोच आ गयी. सौभाग्य से नन्हे का एक डाक्टर मित्र घर पर ही था, उसने उपाय बताया और घर में सभी ने काफी देखभाल की. सुबह उठने के बाद काफी आराम महसूस हो रहा है. एक-दो दिन में सभी कुछ ठीक हो ही जाने वाला है.

Tuesday, February 20, 2018

सेलम से यरकाड



दोपहर के तीन बजे हैं, आज कई दिनों के बाद इस वक्त डायरी खोली है. सुबह नींद खुलते ही योग निद्रा का जो अभ्यास कल शाम को किया था उसे दोहराया. मन जो संकल्प करता वही मूर्त होकर दिखने लगता ! काफी दिनों बाद आज ब्लॉग पर लिखा. कुछ प्रसिद्ध लेखकों की तस्वीरें भी प्रकाशित कीं फेसबुक पर. क्लब में सम्भावित कार्यक्रमों की एक सूची भी बनाई, अगली मीटिंग में पढ़ेगी. कुछ संबंधियों और सखियों से फोन पर वार्तालाप हुआ. शाम को क्लब की एक सदस्य के घर जाना है. नैनी अभी तक काम करने नहीं आयी है, वह गर्भवती है पर सामान्य व्यवहार करती है, किसी भी तरह का विशेष ध्यान नहीं रखती.

कल शाम जून आ गये. उन्होंने मिलकर लड्डू बनाये और आज सुबह उसने चिवड़ा-मूंगफली भी बनाया, जो वे नन्हे के लिए ले जा रहे हैं. परसों दस दिनों की यात्रा पर निकलना है. इस बार की यात्रा भिन्न होगी पहले से. एक दो दिन की गर्मी के बाद आज मौसम में बदलाव नजर आ रहा है, शायद शाम तक वर्षा होगी. कल स्कूल में शिक्षक दिवस पर उसे अच्छा सा उपहार मिला, फूलों वाला मगसेट तथा विद्यार्थियों की ओर से एकम बड़ा सा मग.

नैनी के घर में फिर झगड़ा हो रहा है. नर्क में रहना शायद इसी को कहते हैं. अज्ञान में डूबे ये लोग आपस में प्रेम से रहना ही नहीं जानते. काहिली, प्रमाद तथा नशा, तामसिक भोजन सभी मिलकर कैसा माहौल पैदा करेंगे इसकी कल्पना ही की जा सकती है. क्या वह इनके जीवन में सुधार लाने के लिए कुछ कर सकती है ? उसे स्वयं के भीतर व्यर्थ का चिन्तन रोकना होगा, उन्हें मानसिक शुभकामनायें देनी हैं, उन्हें सन्मार्ग पर जाने का उपदेश नहीं देना, उन्हें प्रेम से समझाना है. आज सुबह अलार्म बज ने से पहले किसी ने कहा( वह उसके सिवा कौन हो सकता है ? ) अब मरे हुए लोग जगेंगे. सारी सुबह इसी भाव में बीत गयी, नींद मृत्यु की निशानी है, सोया हुआ व्यक्ति मृतक के समान ही होता है. परमात्मा किस तरह हर समय उनके साथ ही रहते हैं. उनके मन की गहराई में और इससे पार अनंत तक विस्तारित भी...

परसों दिन भर वे सफर में रहे, रात्रि ग्यारह बजे नन्हे के घर पहुँचे. कल दोपहर ही पुनः एक छोटी सी यात्रा के लिए निकल पड़े. इस समय सुबह के ग्यारह बजने वाले हैं. बंदरों की उछल-कूद की आवाजें कमरे के भीतर तक आ रही हैं. बच्चों को पेट से चिपकाये मादा बन्दर इधर से उधर छलांगे लगा रही हैं और बड़े-बड़े नर बन्दर झुण्ड की अगुवाई करते हैं. कल वे यहाँ पहुंचे तभी होटल के स्वागत अधिकारी ने बताया, कमरे का दरवाजा तथा खिड़की बंद रखें नहीं तो भीतर बन्दर आ जायेंगे. सुबह जरा सी खिड़की हवा के लिए खोली, अब बंद कमरे में तो व्यायाम नहीं किया जा सकता तो एक महाशय भीतर आ गये, नजर पड़ गयी वरना सब सामान खुला पड़ा था, पता नहीं किस पर उसकी नजर पड़ जाती. एकदम नजदीक से उनकी तस्वीरें लीं पर उन्हें शायद इसकी आदत हो गयी है, कोई हील-हुज्जत नहीं की, आराम से फोटो खिंचवाते रहे. पंछियों और झींगुरों की आवाजें भी लगातार आ रही हैं, कल शाम को वे यहाँ सेलम से पहुंचे, तभी से. यह रिजार्ट एक पहाड़ी पर बना है. ऊपर-नीचे सीढ़ियों से आते-जाते सुंदर बगीचे व मीलों दूर तक फैली हरी-भरी घाटी के मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ते हैं. तमिलनाडू का एक दर्शनीय पहाड़ी स्थल है यरकाड, ऊटी और कडाईकोनाल का नाम तो प्रसिद्ध है पर इसका नाम यहीं पहली बार सुना है. किन्तु यह भी प्राकृतिक सुन्दरता का धनी है. कल शाम से आज सुबह तक वे यहाँ के कई स्थान देख चुके हैं तथा ट्रैकिंग आदि का आनन्द भी ले चुके हैं. रात्रि को भोजन से पूर्व छह खिलाडियों द्वारा खेलने योग्य कैरम बोर्ड पर एक बंगाली दम्पत्ति भी उन चार जनों के साथ शामिल हो गये. भोजन के बाद जब वे कमरे में आये तो बालकनी से सेलम का जगमगाता रूप देखकर मन्त्र मुग्ध रह गये. दिन में जो घाटी हरियाली से मन मोह रही थी अब रंग-बिरंगी रोशनियों से भरी एक स्वप्नलोक का निर्माण कर रही थी. आकाश पर बादल थे, चाँद-तारों का दूर-दूर तक निशान नहीं था. घाटी में रंगीन बत्तियां ऐसे झिलमिला रही थीं जैसे आकाश धरा पर उतर आया था. याद आया कि एक अंग्रेज महिला इसी घाटी में सूर्यास्त देखने के लिए जिस स्थान पर बैठती थी उसे लेडीज सीट का नाम दे दिया गया. यरकाड को तस्वीरों में कैद कर लिया है, अब यह उनके मनों में जीवित रहेगा.

Thursday, February 15, 2018

तेल का रिसाव



शनिवार और इतवार फिर गुजर गये. वर्षा लगातार होती रही है पिछले दिनों. आज थमी है. सुबह वह स्कूल गयी, लौटते समय किसी गाँव के एक खेत में, जिसमें वर्षा का पानी भरा हुआ था, तेल का रिसाव हो रहा था. वहाँ सम्भवतः नाला भी रहा होगा. गाँव के लोग कम्पनी के वाहनों को रोक रहे थे. उनकी कार भी रोकी तो भीरु ड्राइवर झट बिना किसी प्रतिवाद के रुक गया और उसे भी बाहर निकलने से मना करने लगा, पर कुछ क्षणों के बाद उसने उनमें से एक व्यक्ति से इतना कहा, वह स्कूल से आ रही है, उसे जाने दें, तो उसने कहा, ठीक है जाइये. भला व्यक्ति था वह. उन्हें अधिकारियों तक अपनी बात पहुँचानी थी, ताकि जो नुकसान हो रहा है, उसे रोका जाये. तेल के नुकसान के साथ-साथ खेत का नुकसान भी हो रहा था. अब शायद अगले कुछ समय तक वहाँ कुछ भी नहीं उगेगा. पौने ग्यारह बजे हैं, जून आने वाले होंगे. आज सुबह उठते ही मोबाइल के प्रयोग पर उसने उन्हें टोका, शायद उन्हें अच्छा नहीं लगा होगा, पर हर चीज का एक वक्त होता है, यह वह खुद ही कहते हैं. जन्माष्टमी का उत्सव आने वाला है. उसे कृष्ण के लिए एक सुंदर कविता या गीत लिखना है.

कल वे हो जायेंगे विदा
और परसों भूल जायेंगे उन्हें लोग
इस तरह जैसे कि कभी था ही नहीं
उनका अस्तित्त्व इस दुनिया में
आज ही उनके हाथ में है
चाहे तो गीत गुनगुना लें
या अहंकार को सजा लें
जो है ही नहीं..
उसके कारण अपने पावों में
काँटों को चुभा लें
या दी है जिसने जिन्दगी की नेमत
उस रब को रिझा लें

आज सितम्बर की पहली तारीख है. दूधवाले का हिसाब कर लिया था, पर उसे पैसे देना भूल गयी, इसी तरह वे अनावश्यक कार्यों में स्वयं को उलझाकर सदा ही आवश्यक को भूल जाते हैं. कल दिन में एक-दो बार लगा जैसे मौसम में बदलाव आ रहा है. पर आज भी वर्षा की अनवरत झड़ी सुबह से लगी है. बरामदे में प्रातः भ्रमण किया, घर बड़ा होने का यह फायदा तो है ही. कल दोपहर को भागवद् व कल्याण का एक अंक पढ़ा. कृष्ण जन्माष्टमी के लिए कविता लिखनी आरम्भ की, कृष्ण की महिमा अनंत है और भक्तों से बढ़कर कौन उसका बखान कर सकता है. आज सुबह सद्गुरू ने विस्मय पर कितना अद्भुत प्रवचन दिया. इस जहाँ की हर शै उन्हें विस्मय से भर देती है. उस दिन, अरे, कल ही तो फिर वह बड़ी चमकीली मक्खी उसकी अंगुली पर आकर बैठी थी, उसने उसे उड़ा दिया. अस्तित्त्व उससे प्रेम करता है, वह यानि वही..फिर घनघोर वर्षा के बावजूद एक पीली तितली उडती नजर आई !

कल कुछ नहीं लिखा, ट्रेड यूनियन की हड़ताल के कारण जून का दफ्तर बंद था. तबियत भी उतनी ठीक नहीं थी, इस समय भी सिर की चोटी पर दर्द है, पर चाय से इसका कोई संबंध है, ऐसा तो नहीं होगा. मन भी आजकल कुछ का कुछ सोचता रहता है, ठीक ही कहा है स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है. वे वही होते हैं जो वे सोचते हैं, इन्सान चाहे तो आकाश की ऊंचाइयों को छू ले और न चाहे तो गहरी खाई भी कम होगी उसके लिए ! आश्चर्य होता है इतने वर्षों की साधना के बाद भी मन अपनी चाल से चलता है. आज सुबह स्कूल की उप प्रधानाचार्या ने कहा, कक्षा दस में गणित  पढ़ाना है कुछ दिनों के लिए, पिछले वर्ष भी पढ़ाया था शायद इन्हीं दिनों. इसका अर्थ है कुछ दिनों तक उसे रोज ही स्कूल जाना होगा. कल सांख्यकी का एक अध्याय पढ़ाना है. परसों मृणाल ज्योति भी जाना है, शिक्षक दिवस के उपलक्ष में.


Wednesday, February 14, 2018

अग्नि, वरुण, इंद्र, सोम



मौसम भला-भला सा है आज. सुबह उठने से पहले एक स्वप्न देखा, जिसमें पतीले में चाशनी जल जाती है. कल शाम टीवी पर ऐसा ही कुछ देखा था, जला हुआ केक खाकर एक व्यक्ति बेहाल हो रहा था. उनका मन भी टीवी से कम तो नहीं है. कितनी फ़िल्में और नाटक दिखता रहता है. छाता लेकर वे प्रातः भ्रमण के लिए गये. लौटकर टीवी पर वेदों के मन्त्र व व्याख्या सुनी. एक अद्भुत मन्त्र का भाव आज सुनाया प्रद्युम्न महाराज जी ने. अग्नि के रूप में परमात्मा सदा उन्हें आगे ही आगे ले जाता है. इंद्र के रूप में वह दक्षिण दिशा में रहकर उन्हें बलशाली बनता है. वरुण रूप में पीछे से उनकी रक्षा करता है, उन्हें पाप कर्मों से बचाता है. सोम रूप में उत्तर दिशा में रहकर उन्हें शांति प्रदान करता है. बृहस्पति रूप में वह ऊपर की दिशा में उन्हें प्रोत्साहित करता है. विष्णु रूप में नीचे की दिशा में वह उनका आधार बनता है तथा पालन करता है. परमात्मा चेतन है व उन्हें जड़ से मुक्त चैतन्य देखना चाहता है. किन्तु यह भी सत्य है कि देह में आने के बाद जड़ मन, बुद्धि के द्वारा ही उन्हें अपना बोध होता है. विचित्र है यह परमात्मा की बनाई सृष्टि..

कल शाम को नई कमेटी की पहली मीटिंग थी, अच्छी रही, सिर्फ एक बात को छोड़कर. एक सदस्या बाजार में गिर गयीं. उन्हें चक्कर आ गया और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है. एक दूसरी सदस्या जो उनके साथ थीं, उन्हें अस्पताल ले गयीं. जून भी दफ्तर से कल देर से आये. रात सोने में देर हुई फिर सुबह उठने में भी. नाश्ता बना रही थी ख्याल आया कि अगले कुछ दिनों में एक सदस्या को विदाई देने जाना है, उनके लिए उपहार खरीदना है. मन में विचार आने लगे. परमात्मा का भजन करते समय भी एकाध बार आया. उसे लगा इतने से काम की जिम्मेदारी से उसका मन व्यस्त हो गया है, जिन पर ज्यादा जिम्मदारियां रहती होंगी, उनके मनों का क्या हाल होगा. उनके लिए एक कविता भी वह लिखेगी.

कल ‘रक्षा बंधन’ है, वे मृणाल ज्योति जायेंगे. आज सुबह वर्षा तेज थी, छाता लेकर जाना भी सम्भव नहीं था. इस समय असमान स्वच्छ है, तीन बजे हैं दोपहर के, उसने सोचा जून के आने तक बगीचे में ही टहलते हुए कोई किताब पढ़ेगी. कल रात नन्हे से बात हुई, वह अस्पताल में था, उसके मित्र के भाई को डेंगू बुखार हो गया है, उसे लेकर गया था. मित्र बाहर गया है, पर रात को उसकी बहन आने वाली थी. बारह बजे लौटा वह घर, सेवा की भावना है उसमें, ईश्वर उसे शक्ति दे ! नैनी काम कर रही है. उसका तीसरा महीना चल रहा है, अभी तक दोबारा अस्पताल नहीं गयी है. इंतजार कर रही थी कि देवरानी का बच्चा एक महीने का हो जायेगा तो उसका मेडिकल कार्ड अपने नाम करा लेगी और तब दिखाएगी. आश्चर्य होता है उसे इनकी सोच पर, कपड़ों और उत्सव पर खर्च कर सकते हैं, पर अपने स्वास्थ्य के लिए नहीं.

सुबह जून ने उठाया तो कोई स्वप्न चल रहा था, अब याद नहीं है. भीतर कोई जागरण महसूस हो रहा था. एक चेतना का अनुभव जो साक्षी है, जो सदा है, जो मीत है, जो अनंत है, जो उन पर प्रेमपूर्ण दृष्टि रखता है, जो मौन है, सभी कुछ उसके भीतर है पर वह किसी के भीतर नहीं है. वह सबसे अछूता है, अस्पृश्य ही रह जाता है वह, अलिप्त है वह सदा, उस साक्षी में टिके रहना भला लगता है, वहाँ रहकर दुनिया के नजरों को देखते रहना.. प्रकृति में प्रतिपल कितना कुछ घट रहा है पर सबके पीछे जो निराकार सत्ता है, वह सदा एक सी है. आत्मा उसी का अंश है, उसके जैसा है. आत्मा के लिए मन, बुद्धि, संस्कार सभी प्रकृति हैं, जो पल-पल बदल रहे हैं, आत्मा साक्षी है, पर मन व बुद्धि संस्कारों के अनुसार ही कार्य करते हैं, देह भी पुराने संस्कारों के अनुसार चलती है. उनका भविष्य भी इन्हीं संस्कारों से निर्धारित होता है. जब मन आत्मा में टिका रहता है और आत्मा अपने मूल में टिकी रहती है तो उतने समय उनके संस्कार शुद्ध होते हैं. बुद्धिमत्ता इसी में है कि वे अपने सच्चे स्वरूप में टिककर ही जगत का व्यवहार करें, उनका सच्चा स्वरूप शुद्ध है, बुद्ध है, तथा मुक्त है, वहाँ अहंकार नहीं है. वहँ केवल चेतन ऊर्जा है ! जो ऊर्जा समष्टि में व्याप्त है, वही ऊर्जा व्यष्टि में है. दोनों में कोई भेद नहीं है. आत्मा का परमात्मा से मिलन सम्भवतः इसी को कहते हैं. उसका मन अब बार-बार उसी मौन में लौटना चाहता है.

Monday, February 12, 2018

वर्षा की फुहारें



आज सुबह उठी तो मन सजग था. भीतर एक अचल स्थिरता का अनुभव अब देर तक टिकने लगा है, पर जब वे प्रातः भ्रमण से लौट कर आये तो जून से एक विषय पर कुछ बात हो गयी. जिसके कारण व्यर्थ ही कुछ समय गया. अहंकार कितने सूक्ष्म रूप से भीतर रहता है, पता ही नहीं चलता. जून को तो क्षमा किया जा सकता है, अभी उन्होंने क्रोध पर विजय पाने की न तो साधना शुरू की है और न ही ऐसा दावा करते हैं, पर उसने तो साधना भी की है और दावे भी बहुत किये हैं. फिर भी इस तरह व्यर्थ ही मन को नकार से भरना..शायद यही परमात्मा चाहते थे, ताकि उसे अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो सके. उस दिन नन्हे से कहा था कि अब क्रोध का शिकार नहीं होता मन, पर कोई जड़ वस्तु ही ऐसा दावा कर सकती है. चेतन के पास अनंत सम्भावनाएं हैं. उसके बाद से सजगता बढ़ी है. प्राणायाम भी सही विधि से किया, वस्त्रों को सहेजा, व्यायाम किया और अब यह लेखन.. उनका जीवन यदि सत्य को प्रतिबिम्बित नहीं कर रहा तो साधना का फल प्राप्त नहीं हुआ. शाम को मीटिंग है, नई कमेटी को पहला बुलेटिन निकालना है. वर्षा लगातार हो रही है. कल दीदी से बात हुई, उनका हॉल कमरा बीजेपी की मीटिंग्स के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, पहले कांग्रेस के लिए भी वे दे चुके हैं और इसके लिए कोई चार्ज नहीं लेते. शादी के लिए देते वक्त भी वे कह देते हैं, जितना मन हो दे जाओ. सेवा का यह कार्य सहज ही उनसे हो रहा है.

आज बहुत दिनों के बाद भागवद का पाठ किया, अच्छा लगा. एक दिन समय निकाल कर राखियाँ बनाने का कार्य भी करना है, संडे क्लास में बच्चों को भी सिखाना है. आज सुबह से वर्षा थमी है. वातावरण शीतल है. पर सबसे जरूरी है भीतर की शीतलता. परमात्मा की बनाई इस सुंदर सृष्टि का आनन्द भी तभी ले सकता है कोई जब मन खाली हो. अहंकार से ग्रसित मन कुछ और देख ही नहीं पाता, वह स्वार्थ से भर जाता है और दुःख का भागी होता है. परसों ही जून ने कहा, ये लोग प्यार से रहना नहीं जानते, जब नैनी के घर में लोग लड़ रहे थे. तत्क्षण उसके मन में ख्याल आया था, क्या वे लोग स्वयं जानते हैं ? और कल सुबह ही उसका जवाब मिल गया. मानव रेत की दीवारों पर किले खड़ा करना चाहता है. नहीं सम्भव है यह. वर्षों साथ-साथ चलने के बाद भी आत्माएं अपनी-अपनी राह ही चलती हैं, और यही उनकी नियति है, यही उनके लिए सही है, क्योंकि वे अपनी-अपनी यात्रा पर हैं. परमात्मा के सिवा आत्मा का कोई सहयात्री नहीं है.

आज छोटे भाई का जन्मदिन है, सुबह उससे बात हुई. भाभी ने उसे सुंदर शब्दों में  बधाई दी है. सुबह अलार्म बजने से पहले ही किसी ने जगा दिया. जैसे कोई भीतर पल-पल की खबर रखता है. वे टहलने गये तो हल्की सी वर्षा हो रही थी न के बराबर. अब भी बदली है. आज विशेष सफाई का दिन है. घर की सफाई के साथ-साथ अंतर की सफाई भी आवश्यक है. आज भी सुमिरन किया, स्थिरता का अनुभव अब भीतर जाते ही हो जाता है. वह अनुभव तो सदा से वहीं था, वे ही दुनिया में उलझे थे. दोपहर को बाजार जाना है, शिक्षक दिवस के लिए क्लब की तरफ से उपहार खरीदने हैं. मृणाल ज्योति के लिए वे अपनी तरफ से भी कुछ उपहार खरीदेगी.

Friday, February 9, 2018

मोदीजी का भाषण



आज क्लब की मीटिंग थी, अभी तक नयी कमेटी का गठन का कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है. उससे पूर्व बगीचे में टहलते समय भगवद् गीता के एक श्लोक की व्याख्या सुनी. जगत को देखने का किसी का ढंग यदि विधायक है तो जगत सुखमय दिखाई देगा. भीतर यदि श्रद्धा होगी तो अस्तित्त्व उसके लिए अपना द्वार खोल ही देगा. दोपहर को बगीचे में कितनी सारी तितलियाँ उड़ रही थीं. एक की तस्वीरें लीं. कल छोटी भतीजी का जन्मदिन है, उसे फोन किया, पर शायद उसका फोन नम्बर बदल गया है. जून के न रहने पर उसे साढ़े तीन घंटे लगते हैं सुबह की सभी क्रियाओं में. परसों से दो घंटों में करना होगा सभी काम. उन्हें सुबह पौने सात बजे ही दफ्तर जो जाना होता है.

डायरी में पिछली एंट्री पांच तारीख की है. आज पूरे बारह दिन बाद लिख रही है. जून अगले दिन लौटे थे, फिर छोटी बहन परिवार सहित आई और साथ ही नन्हा भी. वे लोग अरुणाचल प्रदेश घूमने गये, नदी के तट पर घूमे और अनगित यादें समेट कर तीन दिन पहले वह वापस गयी और कल नन्हा भी चला गया. आज सुबह से उसे हल्का जुकाम है.

सुबह से वर्षा हो रही है हल्की-हल्की सी. आज घर की विशेष सफाई भी करवाई, साफ घर में रहना सभी को पसंद है. मंझली भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उन्हें त्वचा का कोई रोग हो गया है. उन्हें अपने आपको खुश रहना सिखाना होगा. भतीजी विदेश से वापस आना चाहती है. भाई तभी अपनी नौकरी ठीक से कर पायेगा. आज सुबह क्लब के लिए कितने नये-नये विचार मन में आ रहे थे. सदस्यों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए कुछ उपाय तो करने ही होंगे. कल वार्षिक सभा थी इसके बावजूद संख्या कम थी. अगले महीने कमेटी की तरफ से कार्यक्रम होगा, उसने सोचा वह एक कविता लिखेगी, जिसमें  अपने सुझाव भी दे सकती है और अपनी बात भी रख सकती है. नन्हे ने इस बार उन्हें उपहारों से लाद दिया है. उसने मृणाल ज्योति की सदस्यता के लिए भी फार्म भरा पर जमा नहीं कर पाया. कल क्लब में ‘दृश्यम’ दिखाई जाएगी.

आज बड़े भांजे का जन्मदिन है, सुबह उसके फेसबुक अकाउंट पर जाकर फोटो देखे और छोटी सी कविता लिखी, आजकल मिलना तो ऐसे ही होता है. दो दिन बाद छोटे भाई का जन्मदिन भी है, उसके लिए भी कुछ लिखना है. राखी पर भी एकम कविता लिखनी है. सुबह से बादल बने हैं. मौसम अच्छा है अब जुकाम भी ठीक हो गया है. यू ट्यूब पर प्रधानमन्त्री के स्वागत का कार्यक्रम देखा. यूएइ में उनका भव्य स्वागत किया वहाँ रहने वाले भारतीयों ने. मोदी जी का भाषण आ रहा है, जैसे किसी राजनीतिज्ञ का होता है, उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली है. देशभक्ति का जज्बा उभरने में भी कामयाब हुए हैं. सुबह नींद खुली अलार्म सुनकर, पर दो मिनट तक लेटी रही, फिर किसी ने भीतर से कहा, जगे हुए का सोये रहना बहुत खतरनाक होता है. जो सोया है उसे क्षमा किया जा सकता है पर जो जगा हुआ है और सोने का नाटक कर रहा है, वह क्षमा के योग्य नहीं. उठकर प्रातः भ्रमण को गये, वापस आकर बोगेनविलिया की छंटाई करवाई, उसे अपराजिता की बेल ने छाकर ढक लिया था. माली व नैनी का  झगड़ा जो उनके न रहने पर हुआ था, उसकी सुलह करवाई. दोपहर को नींद में स्पष्ट दृश्य देखे, लगा जैसे जागकर ही देख रही है. एक रहस्य भीतर खुलता जाता है और एक रहस्य भीतर जुड़ता जाता है. आकर देखा, बगीचे में अभी तक झाड़ू नहीं लगा है. तरीके से माली को रोज आकर अपना काम करना चाहिए, पर कई बार बुलवाना पड़ता है, यह सोचते हुए ही भीतर हल्की सी क्रोध की रेखा दिखी, तो उसने सोचा यह क्रोध उसका ही नुकसान तो नहीं कर रहा, एक पल पहले जो था अब नहीं है, आत्मा तो सदा एकरस है.  

Thursday, February 8, 2018

बोलती आँखें


अगस्त का प्रथम दिन ! आज जून यात्रा पर गये हैं पांच दिनों के लिए. जिस शहर में वे गये हैं, सौभाग्य से दीदी-जीजाजी भी वहाँ आये हुए हैं, कल शाम को उनसे मिलेंगे. दोपहर के चार बजे हैं. नैनी काम कर रही है. आज सुबह वह भी अस्पताल गयी थी. डाक्टर ने कहा, उसके बदन में खून की कमी है, अब बच्चे को रखना ही एकमात्र उपाय है. भगवान ने उसे भी इस कृत्य से बचा लिया है. आने वाली आत्मा का स्वागत करना होगा. आज सुबह उसकी देवरानी आई थी, घर के काम में सहायता करने. उसे जब कहा रात के डेढ़-दो बजे एम्बुलेंस के लिए नहीं जगाएगी, वह बुरा मान गयी. माँ बनने वाली स्त्री के मन में कितने डर होते हैं. वह मन में सोचती होगी कि पुत्र न हुआ तो क्या होगा. उसे इन लोगों के साथ सहानुभूति से काम लेना होगा. बच्चों को भी प्रेम से स्वीकारना होगा. परमात्मा जब उन्हें स्वीकार रहा है तो वे कौन हैं ?

दोपहर के दो बजने को हैं. आज सुबह ओस से भीगी घास पर चलते हुए मन में कितने सूक्ष्म भाव जग रहे थे. नेट पर प्रेमचन्द की दो कहानियाँ पढ़ीं, नहीं.. सुनीं, कितनी उम्दा पेशकश है, बहुत स्पष्ट आवाज है. आज मिनी ट्रक ड्राइवर अपनी गाड़ी में दूधवाले के यहाँ से गोबर लाने का काम कर रहा है, दो बार वे ला चुके हैं, शायद इस बार अंतिम हो. इतनी तेज धूप में वे लोग काम कर रहे हैं. माली ने दूब घास की पौध भी लगा दी है जो वह नर्सरी से लायी थी. नन्हे ने बताया उसकी नई मित्र घर पर ही थी जब मासी का परिवार आया. उसने अपने फ़्लैट मेट के बारे में भी कहा कि वह सामान्य नहीं है. उसे सुनकर धक्का लगेगा, ऐसा उसने कहा, पर उसे भीतर जरा भी हलचल नहीं हुई. लोग जैसे हैं वैसे हैं, चीजें जैसी हैं, वैसी हैं..वे इस दुनिया को वह जैसी है वैसी ही स्वीकार लें तो व्यर्थ के झंझटों से बच जाएँ. नन्हे की मित्र अन्य संप्रदाय की है. इस वर्ष के अंत तक का समय उन्होंने दिया है एक दूसरे को जानने-समझने के लिए. आज की पीढ़ी रिश्तों को भी प्रोफेशन की तरह निभाती है, प्रोबेशन पीरियड चल रहा है ऐसा कहा था उसने. उसे हँसी भी आई और भीतर विचार भी आया, कब तक चलेगा यह रिश्ता.

रात्रि के दस बजने को हैं, जून यहाँ होते तो इस समय वे सो चुके होते पर आज पूना में वह भी जाग रहे होंगे इस वक्त. क्लब में फिल्म देख रही थी तब उनका फोन आया था. पूना में एक पुराने मित्र परिवार से मिले. उसे भी क्लब में एक पुराने परिचित मिले. जून के आने पर घर भी आएंगे. फिल्म अच्छी थी, शाहिदा का रोल जिसने निभाया है वह लड़की नन्ही सी बहुत प्यारी है, उसकी आँखें बोलती हैं. कुछ देर पहले नैनी डेटोल मांगने आयी. उसके ससुर को फिर चोट लग गयी है, नशे में साईकिल से गिर गया होगा. सुबह एक सखी का फोन आया, स्कूल खुल गया है, जहाँ वह सप्ताह में एक बार योग सिखाने जाती है. अगले हफ्ते से जाएगी. सुबह देर तक साधना करने के बाद मन कितना शांत रहता है. आज एक अनोखा अनुभव भी हुआ, अचानक सभी के भीतर ईश्वर की ज्योति के दर्शन होने लगे. जून से फोन पर बात की तो अपनी ही आवाज इतनी मधुर लग रही थी और जून की और भी ज्यादा, वे दूसरों को जो तरंगे भेजते हैं, वही लौटकर वापस आती हैं, जैसे कि वे खुद से ही बात रहे होते हैं. परमात्मा ने यह सृष्टि कितनी अनोखी बनाई है. यहाँ प्रेम ही प्रेम है. यदि कोई महसूस करने वाला हो. यहाँ एक आधार है, जिसका कोई कुछ नहीं कर सकता. अविकारी है वह, अजर, अमर, अविनाशी, अखंड, कालातीत और भी बहुत कुछ ! उस परमात्मा को प्रेम से ही जाना जा सकता है !

रात्रि के नौ बजे हैं. दिन के सभी कार्य हो चुके हैं. रात्रि का, विश्राम का समय है. कुछ देर पहले अख़बार पलटा, पहेली हल की. जून का फोन आया, परसों वह आ रहे हैं, उसी शाम को ही उनके दो मित्र जो यहाँ आये हुए हैं, भोजन पर आयेंगे. इतने दिनों की शांति के बाद चहल-पहल हो जाएगी. फिर इसी सप्ताहांत में छोटी बहन का परिवार व नन्हा आ जायेंगे. आज बगीचे में काम किया. दोपहर को टालस्टाय की अन्ना केरेनिना पढ़नी आरम्भ की है. रोज की तरह ब्लॉग पर लिखा, ध्यान किया. परमात्मा में होना कितना सुखद है, आनंददायक है वह परमात्मा !  

    

Wednesday, February 7, 2018

फूलों की माला


पिछले तीन दिन कुछ नहीं लिखा. शनिवार और इतवार को काम कुछ ज्यादा रहता है. कल सोमवार को फिर नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. माली की पत्नी को भी अस्पताल जाना है, आज उसका आपरेशन हो सकता है, नूना ने ही बहुत समझा-बुझा कर भेजा है. वह भी समझ गयी है, दो बच्चों से परिवार पूर्ण हो गया है, अब तीसरे की कोई आवश्यकता नहीं है. कल रात्रि भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे नहीं रहे. हर कोई उनसे प्रेम करता था. उनके जीवन की तरह उनकी मृत्यु भी शानदार रही. शिलांग में व्याख्यान देते हुए ही उनका अंतिम समय आया. वह भी ऐसी ही मृत्यु चाहती है और ऐसी ही मृत्यु उसे मिलेगी ऐसा विश्वास भी है. अब्दुल कलाम जी के अंतिम क्षणों के बारे में उनके असिस्टेंट ने बेहद मार्मिक शब्दों में जो कहा है, उसे पढ़कर आँखें नम हो गयीं. सचमुच वे भारत रत्न थे. कल रात को पुनः अजीब सा स्वप्न देखा, उनके मन की गहराई में क्या-क्या छिपा है, कुछ पता नहीं चलता. शायद किसी कर्म का भुगतान भी स्वप्न द्वारा होता होगा, शायद नहीं, ऐसा ही है. उनके हर छोटे-बड़े कर्म का फल तो मिलने ही वाला है, सो कुछ कर्मों का फल वे सूक्ष्म देह में पा लेते हैं, कुछ का स्थूल में. कुछ देर पहले बड़ी ननद का फोन आया, वह नन्हे के विवाह के बारे में उत्सुक है. एक रिश्ते की बात कर रही थी. आज धूप बहुत तेज है, तापमान ३६ डिग्री है. एसी रूम में बैठकर कुछ राहत मिल रही है.

शाम के चार बजने वाले हैं. आज भी धूप कल की सी तेज है. दोपहर को एसी में कुछ जल गया, वे गेस्ट रूम में शिफ्ट हो गये, फिर मकैनिक को बुलाया. आज भी नैनी काम पर नहीं आई. उसने पानी का बड़ा पतीला उठा लिया, रीढ़ की हड्डी में कुछ महसूस हो रहा है. उठाते वक्त एक ख्याल आया था कि भार ज्यादा है पर जोश में ध्यान नहीं दिया. सुबह नैनी से पूछा, अस्पताल गयी या नहीं, तो उसने कहा वह इस बच्चे को जन्म देना चाहती है. कल रात ही उसने बीमारी का असली कारण बताया था, पता चला कि जिस भय से मुक्त करने के लिए वह उसे अस्पताल भेज रही थी वह तो पहले ही सत्य सिद्ध हो चुका है. दो बेटियों के बाद उसे पुत्र की चाह है. अभी छोटी बेटी दो वर्ष की भी नहीं हुई है. देवरानी अगले हफ्ते ही सन्तान को जन्म देने वाली है. पता नहीं ये लोग किस मिट्टी की बनी हैं. उसने एक परिचिता को फोन किया जिसके पति डाक्टर हैं. उसने कहा अस्पताल में महला समिति का एक ग्रुप है जो ग्रामीण व अबोध महिलाओं को परिवार नियोजन की जानकारी देता है. बातों-बातों में उसने एक बंगाली कलाकार रॉबिन बार के बारे में बताया, जो दोनों हाथों से एक साथ चित्र बनाता है, जरूरत पड़ने पर पैर से भी. जब वह परिचिता उससे मिली तो मात्र उसके हस्ताक्षर से उसने कृष्ण का चित्र बना दिया. जैसे कला की कोई सीमा नहीं है कलाकार की भी नहीं. छोटी बहन कल नन्हे के यहाँ पहुँच गयी. आज शाम वह आश्रम जा रही है. परसों उसका जन्मदिन है. गुरूजी तो विदेश में हैं पर आश्रम में उनकी उपस्थिति का अहसास फिर भी होता होगा. गुरू से एक बार जुड़ना होता है फिर मुक्त भी होना होता है. जैसे बच्चा माँ की ऊँगली पकड़कर चलता है फिर समर्थ होने पर छोड़ भी देता है वैसे ही शिष्य भी एक दिन उसकी छाया में चलता है फिर जब वह जानता है कि गुरू, आत्मा व परमात्मा में कोई भेद नहीं है तो वह स्वयं को उससे पृथक नहीं मानता. फिर पीछे चलने की बात ही नहीं रहती. भीतर का गुरू तब जाग जाता है जो हर कदम पर चेताता रहता है. शाम उसे भी एक मित्र परिवार के यहाँ जाना है, पर गर्मी इतनी है कि जाने का मन नहीं होता. वे लोग भी गर्मी से परेशान होंगे.

कल शाम आजादी की पहली लड़ाई का चित्रण देखा ‘भारत एक खोज’ में.  वे भाग्यशाली हैं कि आजाद भारत में साँस ले रहे हैं. आज गुरू पूर्णिमा है, शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर जाना है. अभी-अभी बगिया से पुष्प तोड़कर उसने गुरूजी के लिए माला बनाई है. रात को एक सखी के पतिदेव की सेवानिवृत्त होने पर विदाई पार्टी में भी जाना है. आज से चार वर्ष बाद लगभग इसी समय उन्हें भी यहाँ से विदाई मिलेगी. समय तो पंख लगाकर उड़ता जाता है. एक अन्य सखी से बात हुई, उसका पुत्र घर आया हुआ है, उसे त्वचा का कोई रोग हो गया है. जून के एक सहकर्मी को एंजियोग्राफी करानी है, उस के बारे में भी पूछ रही थी, किन्तु उसे इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है. नेट पर पढ़ा, कुछ समझ में तो आया कि रक्त में कोई कैप्सूल डालकर हृदय की धमनियों व शिराओं की जाँच एक्स रे के द्वारा की जाती है. कैमरे जैसा कोई यंत्र होता होगा. उसने ईश्वर से उनके स्वास्थ्य की कामना की. वे किसी भी क्षण उतना ही स्वस्थ होते हैं जितना स्वयं को महसूस करते हैं. आज जून को यात्रा के लिए सामान भी सहेजना है, कल वह पांच-छह दिनों के लिए यात्रा पर जा रहे हैं. उसे अपने समय का सदुपयोग करना होगा. आज सुबह आवाज में हल्की सी तेज आयी तो झट ज्ञान हो गया, फिर सफाई कर्मचारी को पैंट्री में पोछा लगाने पर टोका तो मन की असहनशीलता का तत्क्षण भान हो गया. कभी किसी क्षण जब लगता है कि कुछ सार्थक नहीं घट रहा है तब कोई कहता है, स्वयं में टिकना ही सार्थक है. घास उग रही है, झरना बह रहा है, पंछी गा रहे हैं, यदि ये सब सार्थक हैं तो उनका होना भी सार्थक है. यदि सार्थक से तात्पर्य है कि वे ऐसा कुछ करें जिससे जगत का कल्याण हो तो मानसिक सेवा भी की जा सकती है. कोई गीत रचा जा सकता है, ऐसा गीत जो पाठकों को को प्रेरणा से भर दे. नाचा जा सकता है. बगीचा संवारा जा सकता है और नहीं तो घर का कोई कोना सजाया जा सकता है ताकि जो भी आये उसे ख़ुशी मिले. भीतर का भाव शुद्ध हो तो हर काम पूजा ही है !    


Friday, February 2, 2018

नन्ही योगिनी


वर्षा सुबह से लगातार हो रही है. ग्यारह बजने में चंद मिनट शेष हैं, भोजन बन गया है, सो उसने डायरी उठा ली है. नैनी को बुखार हो गया है, पिछले दो दिनों से उसके पति को था सो माली की पत्नी को बुलाकर काम करवाया. दूधवाले की घंटी गेट से सुनाई दे रही है. पियक्कड़ है यह भी नैनी के ससुर की तरह. कह गया है, गोबर है उसके पास, गाड़ी भेज कर मंगवा लें. सुबह माली को बुलाकर समझाया कि पत्नियों पर हाथ न उठाए. कैसा नाटक का सा जीवन जीते हैं ये, पर समझते नहीं. माली की माँ एन.आर.सी के लिए गाँव गयी थी, कुछ कागज-पत्र लाने, कहने लगा, अब उसे भी जाना होगा एक दिन, नहीं तो सरकार उसके बच्चों को कोई सुविधा नहीं देगी. 

आज सुबह नींद खुली तो कोई भीतर कह रहा था, भोजन के प्रति आसक्ति को त्यागना होगा. रात भर सोने के बाद भी देह हल्की नहीं हुई थी. कल शाम जून आये तो ढेर से फल खाए जो वे लाये थे. वैसे भी आहार के प्रति कुछ ज्यादा ही सजग रहती है. परमात्मा हर चीज की खबर रखता है. वर्षों पहले की बातें भी याद आने लगीं. शुरू-शरू में ससुराल में एक बार जब समय से भोजन नहीं मिला तो रोने का मन हो गया था. आर्ट ऑफ़ लिविंग के कोर्स के दौरान सेवा करने से पूर्व स्वयं खा लेने की प्रवृत्ति भी याद आई. चेतना जब देह में ही अटकी रहेगी तो साधना आगे कैसे बढ़ेगी. चेतना को देह से मुक्त करना है. धरती का आकर्षण त्यागना है तभी आकाश में मुक्त्त उड़ान सम्भव है. पड़ोसिन से बात हुई, वे लोग रिटायर्मेंट के बाद जा रहे हैं. क्लब की तरफ से विदाई देने उसके घर कुछ महिलाएं गयी थीं. ऐसा लगता है, काम के दबाव में आकर सभी लोग काम को निपटा लेना चाहते हैं, काम कैसे हुआ इसकी चिंता कम ही रहती है. उसने भी हजारों बार ऐसा ही किया होगा, पर अब लगता है, चाहे कम काम करें वे पर काम सही ढंग से होना चाहिए. समारोह क्लब में होने पर पड़ोसिन के लिए लिखी कविता वह सबके सम्मुख पढ़ सकती थी, अब उसके घर जाकर देनी होगी. कल शाम वह नवजात कन्या को पुनः देखने गये. नन्ही-नन्ही उसकी अंगुलियाँ कितनी मुद्राएँ बना रही थीं. पैरों को मोड़कर भी जैसे आसन कर रही थी.  

आज भी बादल बरस रहे हैं, सुबह से, प्रातः भ्रमण भी नहीं हुआ. नैनी काम पर आ गयी है, घर पुनः व्यवस्थित लग रहा है. आज पुरुषार्थ के बारे में सुना. पुरुषार्थ का अर्थ है पुरुष के लिए अर्थात आत्मा के लिए. उन्हें स्वयं की मुक्ति के लिए ही कर्म करने हैं. परमात्मा तो सदा है ही, उसकी उपस्थिति को भीतर महसूस करते हुए स्वयं की शक्ति बढ़ानी है. उसके आनंद व शांति को स्वयं में जगाकर जगत में बांटना है. परमात्मा उन्हें मुक्त रखता है, कभी कोई मांग नहीं रखता, उन्हें भी स्वयं को छोटी-छोटी बातों से मुक्त रखकर उसे अपने द्वारा व्यक्त होने देना है. आज शाम को वे रामदेव जी का बताया दलिया बनाकर रखेंगे, चावल, मूंग दाल, गेहूँ का दलिया, ज्वार की जगह ओट्स, अजवायन और तिल.. इन सभी को भूनकर मिलाकर रखना है. अगले पांच-छह महीनों के लिए पर्याप्त होगा.