Thursday, October 29, 2020

नीला आकाश



आज मौसम काफी गरम है, पसीना सूखने का नाम ही नहीं ले रहा था दोपहर को, पर एसी चलाकर बैठे, एक बार भी ऐसा नहीं लगा, शायद इसे ही साक्षी भावमें टिकना कहते हैं। शाम को योग कक्षा में एसी में से काली चीटियाँ बरसने लगीं, गर्मी से बचने के लिए संभवत: वे वहाँ आयी होंगी। बाहर बरामदे में कार्पेट बिछाकर सबने साधना की. पश्चिम बंगाल में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। एक आतंकवादी हमले में कश्मीर में सीआर पी एफ के जवान मारे गए हैं। ‘’जीन  पर लिखी किताब अब कठिन होती जा रही है,  सोचा है फिर भी पूरा पढ़ेगी।  कितने वैज्ञानिकों की मेहनत का फल होती है एक खोज। जून ने रिटायरमेंट से पहले होने वाली तैयारी आरंभ कर दी है। 

 

आज भी गर्मी बहुत थी, शाम को अचानक वर्षा होने लगी, पर बूँदाबाँदी तक ही सीमित रही। आजकल लगभग रोज ही ऐसा होता है। योग कक्षा में एक साधिका पुदीने की शिकंजी बनाकर लाई, जो वे योग दिवस पर सबको पिलाने वाले हैं। आज उनकी कार बंगलूरू के लिए रवाना हो गई। उनसे पहले वही पहुँच जाएगी। एक मित्र परिवार को भोजन पर बुलाया था, वह  सेवा निवृत्त हो चुके हैं। उनके दातों का इलाज चल रहा है, खिचड़ी बनाने को कहा था उन्होंने स्वयं ही। हींग वाले आलू, बेक की हुई सब्जियां और घी के साथ खिचड़ी जब उन्होंने खाई तो बार-बार कह रहे थे, उनके लायक भोजन बना है, खाने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई। इस माह के अंत तक वे लोग चले जाएंगे। शाम को क्लब में रिहर्सल थी, अभी दो दिन और होगी, तीन दिन बाद कार्यक्रम है। फैशन परेड के लिए रैम्प पर चलना इतना भी कठिन नहीं होना चाहिए। 


आज सुबह जून टूर पर गए हैं, परसों आ जाएंगे। सुबह दक्षिण भारतीय नाश्ता बनाया था। योग कक्षा  में बच्चों को योग प्रोटोकाल के अनुसार योग कराया, बाद में योग पर एक प्रश्नोत्तरी और योग दिवस पर उन्हें एक चित्र बनाने को भी दिया। शाम को बगीचे में बैठकर ध्यान कर रही थी कि  पूनम का चाँद दिखा, तस्वीरें लीं, चाँद को देखकर सदा ही मन में उमंग की एक लहर दौड़ जाती है, ग्रहों का कितना प्रभाव पड़ता है जीवन पर। बचपन में आकाश के नीचे लेटकर वे बादलों को देखा करते थे, मन भी जैसे आकाश जितना फैल  जाता था। आज पहली बार यू जी कृष्णामूर्ति को सुना। गुरुजी को भी सुना, नींद और भोजन ऊर्जा को बढ़ाने वाले हों न कि सुस्त बनाने वाले, ऐसा उन्होंने कहा। 


आज का दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। सुबह उठने में थोड़ी देर हुई। प्रात: भ्रमण से लौटी तो रोज गार्डन के सामने फूलों की चादर बिछी थी। पीले फूलों से गेट  से सड़क तक जैसे कालीन बिछ गया था। वापस लौटकर तस्वीरें उतारीं, एक वीडियो भी बनाया। स्कूल जाना था, बच्चों को संगीत के साथ योग कराया, प्रिंसिपल ने कहा, योग दिवस टीचर्स के साथ ही मनाएंगे। वापस आकर कुछ देर कंप्यूटर पर बैठी। दोपहर बाद मृणाल ज्योति, लौटकर, शाम की योग कक्षा फिर क्लब, वापस आकर कुछ देर ध्यान किया फिर रात्रि भोजन।  


और सुदूर अतीत में .. उस दिन के पन्ने पर विनोबा भावे की सूक्ति थी, “दूसरों को प्रेम करने से प्रेम मिलता है।” उसने लिखा.. और वह दुनिया से प्रेम करती है, सारी दुनिया से और ईश्वर से.. और उसके प्रिय जनों से भी। उस दिन एक और पेपर हो गया, कैसा हुआ यदि कोई पूछे तो कहना पड़ता, बुरा, फिर उसने स्वयं को सुधारा, इस दुनिया में ‘बुरा’ शब्द के अलावा कुछ भी बुरा नहीं है, उसे इस शब्द का प्रयोग कभी नहीं भाया। यदि कुछ पसंद न आए तो वह ‘अच्छा नहीं है’ ही  कहती थी। उसने सोचा पचास प्रतिशत अंक तो मिल ही जाएंगे, कुछ न से तो कुछ होना ही अच्छा है। अब चार दिन के बाद केवल एक ही पेपर शेष था। कालेज से लौटते समय जिस व्यक्ति ने उसे सीट दी, बुजुर्ग था,पढ़ा-लिखा था । शहर में आप किस मोहल्ले को बिलॉंग करती हैं ? यही प्रश्न था जो शायद वह पूछ रहा था, बस के शोर में उसे कुछ सुनाई नहीं दिया बाद में जोड़ने पर यह समझ में आया पर वह चुप बैठी रही। 


Tuesday, October 20, 2020

कोयल की कूक

 

शाम को बिजली चली गयी और एक लगभग पौन घण्टा वे मोमबत्ती के प्रकाश में बैठे रहे. एक मित्र परिवार आया था, उन्हें घर से लायी मिठाई खिलाई. चाय बनाना थोड़ा मुश्किल था अँधेरे में, रियल जूस पिलाया. बाद में एक जगह जाना था, विदाई भोज के लिए. कचौड़ी-पूरी, छोले, दही-बड़े यानि बहुत ही गरिष्ठ भोजन. दस बजे से थोड़ा पहले ही लौट आये. छोटे भाई ने फ़िल्मी गीतों का एक संग्रह पेन ड्राइव में दिया था, कुछ देर सुनती रही, बचपन में सुने थे उनमें से कितने ही गीत. दोपहर का लन्च अकेले ही खाया, जून के दफ्तर में प्रमोशन की ख़ुशी में पार्टी थी.  छोटी बहन कनाडा गयी है अपनी पुत्रियों से मिलने. वीडियो कॉल करके दिखाया बेहद खूबसूरत जगह है कनाडा. 

सुबह उठे तो झमाझम वर्षा हो रही थी, उसने सोचा जब तक वे पानी पीकर व नित्य क्रिया के बाद तैयार होते हैं तब तक रुक जाएगी, और ऐसा ही हुआ. यदि किसी कार्य को शिद्दत से कोई करना चाहता है तो प्रकृति पूरा साथ देती है. कितनी ही बार ऐसा हुआ है जब वे लौट कर घर आ गए हैं, तभी वर्षा आरम्भ होती है. अमलतास के पेड़ फूलों से लदे थे, उसने कुछ तस्वीरें भी उतारीं. दोपहर को बच्चों के साथ स्वच्छता अभियान में भाग लिया. बच्चे इतने उत्साह और ऊर्जा से भरे होते हैं, उनमें अहंकार जरा भी नहीं होता.  जून तिनसुकिया गए और ढेर सारे मौसमी फल लाये. फेसबुक पर स्वतःस्फूर्त एक कविता प्रकाशित की, काफी लोगों ने पढ़ी. भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट विश्वकप का मैच चल रहा है. भारत ने अच्छा स्कोर खड़ा किया है. अगले महीने छोटी ननद के आने की सम्भावना है, यदि उनके कालेज में पढ़ रहे पुत्र का परीक्षा परिणाम ठीक रहा, उसके कालेज में हड़ताल हो गयी थी, जिन छात्रों ने उसमें भाग लिया उन्हें डर है कि परिणाम उनके अनुकूल नहीं होगा. यहाँ से विदा होने के पहले एक बार असम की यात्रा करने का उनके लिए सुअवसर है. 


समाचारों में सुना, बारह भ्रष्ट आई टी अधिकारियों को  सरकार ने शीघ्र सेवा निवृत्त कर दिया है. पश्चिम बंगाल में हिंसा के विरुद्ध बीजेपी ने काला दिवस मनाया. कल के मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया. ननद का फोन आया, वे लोग अभी नहीं आ रहे हैं, जैसी आशंका थी, भांजे को तीन विषयों की परीक्षा दुबारा देनी होगी. वे परीक्षा के बाद आएंगे. शाम को क्लब की कमेटी मीटिंग थी, कार्यक्रम तय हुआ, फैशन शो भी होगा, उसे भी भाग लेने को कहा गया है, यह उनके जाने से पूर्व का अंतिम कार्यक्रम होगा सो उसने हामी भर दी. इसी माह उन्हें क्लब में विश्व योग दिवस का आयोजन भी करना है. आज बहुत अल्प तेल में स्क्वैश की सब्जी बनायी, विशेष स्वाद आया. दोपहर को ब्लॉग पर लिखा, मृणालज्योति के उस अध्यापक की बात लिखी जिसे स्वतः देह त्यागे पौने दो वर्ष हो गये हैं, कौन जाने अब वह किस रूप में कहाँ होगा. सुबह स्कूल गयी, तो प्रिंसिपल ने कहा हो सके तो जाने से पूर्व स्कूल के लिए पुराना फर्नीचर देकर जाये.  टीवी पर लोभ से मुक्ति के लिए रामा का प्रयत्न दिखाया जा रहा है. वहाँ की जनता को भय दिखाकर लोभ से मुक्त करता है. लोभ मानव को अंधा कर देता है. राजा कृष्णदेव राय धन के लालच में एक वृद्धा से विवाह करने को तैयार हो जाते हैं. 


उस दिन... वह बहुत खुश थी, केवल दो पेपर शेष रह गए थे. उसके कमरे की खिड़की से लॉन दिखता था.आम के पेड़ पर कोयल कूक रही थी, जिसे और कोई काम नहीं बस उड़ते रहो और थक जाओ तो बैठ कर कूकने लगो. उस दिन वह आम के पेड़ से एक कच्ची अम्बी तोड़कर लायी थी. वह उम्र ऐसी थी जब इंसान सपनों को ही सत्य मान लेता है, और मन को ही संसार जान लेता है. लेकिन स्वप्न क्या कभी पूरे होते हैं और मन का अकेलापन भी दूर नहीं होता. जगत तो दूसरों के दुःख में दुखी होने का नाटक ही करता है, पर मन यह वास्तविकता समझ कर भी समझना नहीं चाहता. आत्मा का सत्य या मन का सत्य तो किसी-किसी पल में मुखर होता है. प्रकृति ही इस सत्य को जानती है फिर जगत की बेरुखी से परेशान होना व्यर्थ है. यहाँ हर सुख भी तो उतना ही क्षणिक है, केवल मन की गहराई में छिपा विश्वास ही अटल है जो आगे बढ़ने को प्रेरित करता है.


Sunday, October 4, 2020

जीन का इतिहास

 

आज ईद का अवकाश है. वे नाश्ते की मेज पर बैठे थे कि एक सखी का फोन आया, भूटान के बारे में जानकारी लेने के लिए, संयोग की बात है कि पिछले वर्ष आज ही के दिन वे भूटान गए थे. कितनी ही स्मृतियाँ लौट आयीं. जीवन की तरह यात्रा में भी हर तरह की बातें होती हैं, कुछ सुखद और कुछ दुखद भी.  एक ऐसी बात भी याद आयी जिसे अपने संस्कारों के कारण उसने शिकायत की थी. मन की प्रतिक्रिया से एक रचना का जन्म हुआ. इस जगत में सभी अपने-अपने संस्कार से बंधे हैं. जब तक वे मन से ऊपर उठकर जीना नहीं सीख जाते दुःख से छुटकारा नहीं है, अथवा तो उन्हें जीवन के वास्तविक दुखों का सामना नहीं करना पड़ा है सो काल्पनिक दुखों का निर्माण कर लेते हैं. जून भी वृक्षारोपण के कार्यक्रम में गए थे, पेड़ लगाने के बाद एक सुंदर रेशमी गमछा पहनाया गया उन्हें. हजारों बल्कि लाखों की संख्या में वृक्ष लगाए गए होंगे इस अवसर पर पूरे देश और विश्व में.शाम को योग कक्षा में एक साधिका ने वृक्षों को समर्पित एक व्यक्ति के अद्भुत कार्यों की बात बताई. उन्होंने भजन गाये और प्रसाद वितरण किया, सभी कुछ न कुछ लेकर आयी थीं.  समाचारों में सुना इस वर्ष के अंत तक जम्मू-कश्मीर व लेह में चुनाव कराये जायेंगे.   


सुबह के ध्यान में भगवान राम, सीता व लक्ष्मण के सुंदर विग्रहों का दर्शन हुआ, अद्भुत था वह दर्शन, मणि-माणिक से सजे सुंदर रंगीन चित्र के समान पल भर के लिए आये और विलीन हो गए . मन की गहराई में कितने खजाने छुपे हैं, जिनका उन्हें खुद ही भान नहीं है. इस समय टीवी पर तेनाली रामा आ रहा है, मानव के छह रिपु काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद व मत्सर राजा कृष्णदेवराय को पराजित करने के लिए तत्पर हैं. अब देखना है कि इस युद्ध में रामा कैसे राजा को बचाता है. जेनेटिक्स पर सिद्धार्थ मुखर्जी की लिखी किताब आगे पढ़ी, द जीन- एन इंटिमेट हिस्ट्री. बहुत रोचक ढंग से लिखी गयी है, जीन का विज्ञान भी बहुत पुराना है और इसमें नित नए अविष्कार हो रहे हैं. सौ वर्षों पूर्व कितना अन्धविश्वास था समाज में, इसकी जानकारी भी मिल रही है. विज्ञान ने या कहें समय ने मानव को ज्यादा संवेदनशील बनाया है. बहुत दिनों बाद फेसबुक पर नजर दौड़ाई, बड़ी भांजी का स्टेटस देखा तो उदासी की खबर दे रहा था, उससे व्हाट्सएप पर बात की. हमारे कर्मठ प्रधानमंत्री मालदीव और श्रीलंका की यात्रा पर गए हैं. वायुसेना का एक विमान ए एन 32 पिछले तीन दिनों से लापता है, उसमें 13 यात्री थे, उसने मन ही मन उनके सकुशल रहने की प्रार्थना की. 


आज शाम को अचानक तेज हवा चलने लगी, आकाश काला हो गया और देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी, पर एक घंटे बाद सब थम गया. प्रकृति की लीला को कौन समझ सकता है. आज ‘श्रद्धा सुम’न ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद लिखा. काव्यालय पर भवानी प्रसाद मिश्र की एक और कविता आयी है, उन्होंने मृत्यु का स्वागत सहजता से किया. आज सुबह ध्यान में एक दुबला -पतला बच्चा दिखा, मन भी विचित्रता से भरा है. कल रात स्वप्न में नन्हे को देखा, वह चाइना से असम आ गया है. 


और अब अतीत के पन्नों से - उस दिन की सूक्ति में लिखा था, गरीब लोग प्रेम और सहानुभूति के भूखे होते हैं. यह  पढ़कर ही सम्भवतः उसने लिखा था, यदि कोई जानता होगा तो उस दिन फिर एक दिव्य संदेश उसे प्राप्त होगा. जिस प्रकाश से आवृत होने की बात कुछ दिन पूर्व  लिखी थी, प्रकाश का वह पुंज छितरा गया था जब अगले दिन का पेपर अच्छा नहीं हुआ, किन्तु उसकी आवश्यकता तो सदा ही रहती है. आज इस क्षण से वह पुंज उसका मार्गदर्शक हो ऐसी प्रार्थना ईश्वर से करती है, उस ईश्वर से जिसके अस्तित्त्व पर उसे संदेह है. फिर क्यों कर वह उसकी बात सुनेगा, पर ईश्वर उसे अपनी प्रतीति स्वयं कराएगा. वह अज्ञानियों पर भी उतनी ही दया रखता है ऐसा सब कहते हैं. अज्ञानता में सार न हो पर उसमें पाप है ऐसा वह नहीं समझती. पाप और पुण्य की समझ उसे नहीं है, वह हर वक्त किसी का आश्रय चाहती है क्योंकि वह इतनी दुर्बल और क्षीण है कि अकेले चलना उसके बस का नहीं फिर वह एक कोई अपना हो या ईश्वर !  व्यक्ति है उसके सम्मुख जीता-जागता, उसकी बातों का जवाब देने वाला ! पर व्यक्ति कभी -कभी आपस में नहीं बोलते ऐसे पलों में उसे लगता है ईश्वर की मित्रता कभी अस्थायी नहीं होती. वह कभी उससे नाराज़ नहीं होगा, होगा भी तो मान जायेगा फिर ... किन्तु अपनों के साथ जुड़े होते हैं कितने अनोखे क्षण, स्मृतियाँ ! क्या स्मृतियाँ मृत होती हैं ? क्या उनमें कोई वस्तु स्पंदन नहीं कर रही होती. यदि वे मृत प्रायः हैं तो किसी के होने का मूल्य सिर्फ वर्तमान में है क्योंकि भविष्य में क्या छुपा है उन्हें नहीं ज्ञात. लेकिन ऐसा नहीं है वे जो ‘कुछ’ हैं, ‘वह’ कभी वे थे ! 


Friday, October 2, 2020

वृक्षारोपण

 

रात्रि के नौ बजने को हैं. जून होते तो कहते, अब दिन को विदा करो, लेट्स कॉल इट आ डे. वह पोर्ट ब्लेयर में हैं, रॉस आईलैंड देख लिया, सेलुलर जेल भी. कल कोलकाता आ जायेंगे और परसों घर. शाम को वह पुस्तकालय गयी और दो किताबें लायी, एक मध्यकालीन इतिहास पर और दूसरी जीन(डीएनए) पर. दोनों का कुछ अंश पढ़ा. वापसी में गुलाबी फूलों वाले पेड़ की तस्वीर खींची. जिसके यहाँ चम्पा का पेड़ है उस सखी के यहाँ भी गयी, उसने बताया, यहाँ जो सफाई करने आता है, उसे भूलने की बीमारी है, उसे अपना नाम भी याद नहीं है. चीजें रखकर भूल जाता है, एक ही काम को दोबारा करने लगता है, पर वे लोग उसकी शिकायत करने को तैयार नहीं हैं, करुणावश ही सम्भवतः। सखी ने बताया उसके ससुर जी को भी यही बीमारी थी और पिता को भी है. जीवन में कब क्या होगा, कौन जानता है ? सुबह मृणाल ज्योति के लिए कुछ सामान ख़रीदा और एक शिक्षिका को देने गयी, कई महीनों से जिसका गला खराब चल रहा था, आज कुछ ठीक था. उसकी बिटिया का जन्मदिन आने वाला है, उसकी तैयारी में व्यस्त थी, बेहद ऊर्जावान,  रचनात्मक कार्यों में लगी रहती है. घर लौटी तो नैनी अपने बेटे को डांट रही थी, पता चला उसके बेटे ने गेट पर लगाने वाला ताला गैरेज पाइप में डाल दिया है जिसे निकालने का कोई उपाय नहीं है.


जब वे अपने मन के अंधकार में भटकते हैं तो स्वयं की अनुभूति रूपी प्रकाश की किरण आते ही सारा अंधकार खो जाता है. आज सुबह टहलने गयी तो गुलमोहर, अमलतास और अज़ार के फूलों से लड़े वृक्ष पुनः देखे. हजारों फूल जाने कहाँ से आते हैं अपने मौसम में अपने आप ही, कोई अज्ञात ऊर्जा जैसे उनके रूप में प्रकट हो रही हो. दोपहर को बच्चे आये थे आज, पर्यावरण दिवस पर उन्होंने सुंदर चित्र भी बनाये. अंडमान की सुंदरता को निहार कर जून कोलकाता आ गए हैं. माली ने बगीचे में कई जगह फूलों की पौध लगाई, लॉन में मशीन से घास भी एक समान की. क्लब की वर्तमान प्रेसिडेंट से बात की उसने बताया भूतपूर्व प्रेसिडेंट अभी तक उसे फोन करके क्लब की बातों के बारे में पूछती रहती हैं. उसे लगा जीवन कल्पनाओं के जाल में व्यर्थ ही उलझ रहता है. जब तक उनका मन दर्पण तुल्य हो, वे कोई प्रतिक्रिया न करें , ऐसा मन यदि नहीं है तो वे व्यर्थ ही जगत में फंस जाते हैं. 


जून वापस आ गए हैं, विभाग में उनकी पदोन्नति हो गयी है. सभी की बधाइयाँ और फोन आ रहे हैं. शाम को वह क्लब की दो सदस्याओं के साथ वृक्ष लगाने के लिए उचित स्थान देखने गयी. एक जगह एक ऐसा पार्क मिला जिसे बनाना तो आरम्भ किया गया था पर बीच में ही छोड़ दिया गया. वहीं रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया, ठेकेदार बीच में ही भाग गया था.  विश्व पर्यावरण दिवस पर क्लब की तरफ से वृक्षारोपण कार्यक्रम के अंतर्गत कल सुबह नौ बजे जाकर गड्ढे खुदवाने हैं और शाम को पेड़ लगाने हैं. दोपहर को मृणाल ज्योति के काम से एक बैंक जाना था, गर्मी बहुत थी और लोगों की भीड़ लगी थी. सुबह एक अनोखा अनुभव हुआ, एक कविता लिखी उसी भाव दशा में ! 


पर्यावरण दिवस पर सुबह से शाम तक वह व्यस्त रही. तीन माली लगाकर पार्क का गेट व सामने का थोड़ा सा भाग उन्होंने साफ करवाया. दस-पन्द्रह गड्ढे खुदवाये. जब तक यह काम चलता रहा क्लब की एक सदस्या के साथ विभिन्न विषयों पर सार्थक वार्तालाप हुआ वह समाज के लिए कुछ करना चाहती है. शाम को उसमें  फूलों और शरीफे के वृक्षों की पौध लगाई. पार्क के अंदर बोगेन्विलिया के  कुछ पौधे भी लगाए. उसके पूर्व वे बच्चों के स्कूल में भी वृक्षारोपण कर के आये थे, पीले व नारंगी रंग के गुड़हल के पौधे वहां लगाए. कुछ वर्षों में जब ये पौधे वृक्ष बन जायेंगे तो वातावरण को प्रफ्फुलित करेंगे. शाम को घर लौटी तो योग कक्षा चल रही थी, अब साधिकाएं इतनी सक्षम हो गयी हैं कि अपने आप ही सभी अभ्यास कर लेती हैं. जून ने रात के भोजन की तैयारी भी कर दी थी. 


वर्षों पूर्व डायरी में उस दिन के पन्ने पर ऊपर लिखी सूक्ति कन्फ्यूशियस की थी - ‘चिंतन के बिना अध्ययन मेहनत खोना है’. उसे लगा इसका अर्थ हुआ अब तक का उसका जो भी अध्ययन है वह व्यर्थ है, अर्थात उसका कालेज का अध्ययन यानि गणित, क्योंकि वह केवल परीक्षा देने के लिए पढ़ती है। उसके बाद कोई उपयोग उसके सम्मुख नहीं रह जाता कि उसका चिंतन भी करे. कैसा विरोधाभास है, यही विरोधाभास तो हर पल उसके जीवन में दिखाई पड़ता है और अब तो उसे इससे स्नेह भी हो गया है. यह भी एक तरह का विरोधाभास ही हुआ. एक पत्र पाकर उसे लगा जैसे कोई भार उतर गया हो. उसका खोया चैन उसे वापस मिल गया. जैसे अस्तित्त्व उसे एक नए रूप में मिला हो, पहले से ज्यादा प्रसन्न, ज्यादा उत्साह से भरा और उसके प्रति अनूठी भावनाएं लिए ! वह जो निष्क्रिय हो गयी थी फिर भर गयी हो प्राण से, स्पंदन से, जीवन से ! उसकी चिर ऋणी वह उसे ही चाहती है. उस अनन्त आभामय सुबह के स्वर्णिम काल का अभिनन्दन करते हुए  उसने कृतज्ञता पूर्वक प्रणाम किया.