Friday, September 26, 2014

शुभकामना

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
आने वाले सभी पर्वों के लिए शुभकामना के साथ अगले दस-बारह दिनों के लिए विदा. आज ही हम बंगलुरु तथा कुर्ग की यात्रा पर जा रहे हैं. आशा है आप सभी के जीवन में विजयादशमी का उत्सव नई विजय की सूचना लेकर आएगा. परमात्मा हर क्षण हम सभी के साथ है.

अनिता 

साहित्य अमृत - एक पत्रिका


सत्-चित्त-आनन्द और सत-सिरी-अकाल एक ही सत्ता की ओर संकेत करते हैं, उस आनन्द को पाने के लिए ध्यान में उतरना होगा, क्योंकि इस आनन्द को कोई भौतिक इन्द्रियों से महसूस नहीं कर सकता, उसे तो निर्विकार, निर्विकल्प होकर ही अनुभव किया जा सकता है. आज जून ने उसकी किताब के प्रकाशक शर्मा जी से बात की, उन्हें किताब मिल गयी है, पर अभी तक फ्लापी नहीं देखी है. अब उन्हें धैर्य रखना होगा, उनका कार्य समाप्त हो गया है, अब शेष कार्य प्रकाशक का है. आज कोई नया स्वीपर आया है, इसके काम में सुघड़ता है. कल उन्होंने ‘साहित्य अमृत’ के संपादक को वार्षिक चंदा भेजा. कल एक पुरानी डायरी में लिखी कई कविताओं को पुनः पढ़ा तो कई स्थानों पर नये शब्द सूझ गये, उसकी साहित्य यात्रा का आरम्भ धीरे-धीरे हो रहा है. नन्हा आज स्कूल गया है, आज सुबह जल्दी उठाया था उसे ताकि आराम से तैयार हो सके.  जून कल शाम को थोड़े खफा हो गये लगते थे, ‘स्क्वैश’ की सब्जी में नमक बहुत ही कम था, नन्हा और उसने खा ली पर वह नहीं खा पाए. आजकल वह उनका विशेष ख्याल नहीं रख रही है, अभी-अभी ‘ध्यान’ पर लिखी एक पुस्तक में पढ़ा, दूसरों की भावनाओं का सदा ध्यान रखना चाहिए, स्वयं को महत्व न देकर सामने वाले की ख़ुशी का ध्यान रखना चाहिए, मन जब निज स्वार्थ से ऊपर उठ जायेगा, जब अपनी ख़ुशी ही सर्वोपरि नहीं होगी तभी ध्यान सधेगा, और वास्तव में वही असली स्वार्थ सिद्धि होगी, अर्थात दूसरों का ख्याल रखकर कोई अपना ही ख्याल रख रहा होता है. घोष वाली वह किताब काफी पढ़ ली है, ‘डॉली’ उसकी एक पात्रा भी ध्यान करती है. दिल्ली की जनता CNG बसों के पर्याप्त मात्र में न होने के कारण बेहाल है, हिंसा पर उतर आए हैं लोग, उसे भतीजी का ध्यान हो आया, उसे स्कूल जाने में जरूर दिक्कत हुई होगी इस अव्यवस्था के कारण. अभी उसे दो पत्र और लिखने हैं, समय मिलते ही लिखेगी.

मानक.आज सुबह जो सुना था वही इस वक्त उसके मन में घुमड़ रहा है. सत्य की राह पर चलने वाले को कदम-कदम पर ध्यान रखना पड़ता है, मन को कुसंग से बचाना है, क्रोध से भी, न जाने कितने जन्मों के संस्कार, कर्म बीजों के रूप में  जो मन में पड़े हुए हैं, जरा सा प्रोत्साहन पाते ही विकसित हो जाते हैं. हर देखे, सुने का चित्र मन पर अंकित हो जाता है, इसलिए अनावश्यक देखना भी नहीं है, सुनना भी नहीं है. जाने अनजाने वे कोई जो भी इच्छा करता है वह समय पाकर किसी न किसी रूप में जरुर पूरी होती है. दुःख को मिटाते-मिटाते और सुख की चाह करते-करते जीवन बीत जाता है, मिथ्या की सत्यता स्पष्ट नहीं होती, तपन कम नहीं होती. ज्ञान रूपी सूर्य को पीठ देकर छाया के पीछे दौड़ते हैं. जीवन में क्रम या नियम तो होना ही चाहिए, इससे ही दक्षता आती है, दक्षता से ही खुद में श्रद्धा होती है, और श्रद्धा से ही खुद को पा सकते हैं. स्वयं को कोसना स्वभाव न बन जाये, इसका अर्थ होगा अपने से तुच्छ को ज्यादा महत्व दे दिया. सुखों के पीछे की गयी अंधी दौड़ पतन के मार्ग पर ही ले जाती है. The glass palace में एक-एक कर सभी मुख्य पात्र मृत्यु के ग्रास बनते चले जाते हैं, उनका भी एक दिन यही हश्र होगा, उससे पूर्व ही सचेत होना है. जिन वस्तुओं के पा लेने पर वे गर्व से फूले नहीं समाते वे उस वक्त काम नहीं आएँगी जब जीवन की अंतिम यात्रा पर जा रहे होंगे. वास्तविक सुख कहाँ है, उसकी खोज करनी है अथवा परम सत्य की खोज करनी है. यह संसार और सारे संबंध सभी वस्तुएं सापेक्ष हैं जो प्रतिक्षण बदलती हैं लेकिन कुछ तो इन सबके पीछे है जो मानक है जिसको मानक मानकर वे उसके जैसा होना चाहते हैं. वह आगे बढ़ते तो हैं, वहाँ तक पहुंच नहीं पाते पर प्रयत्न तो यही रहता है. इस एक परम सत्ता, परम सत्य की खोज में ही वास्तविक आनन्द है, शेष सारे कार्य उनके उस एक उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त ही होने चाहिए, उनका व्यवहार, उनका संग, उनकी वाणी इस बात के परिचायक हों कि वे उस पथ के यात्री हैं !

पिछले दो दिन डायरी नहीं खोली, और आज भी सुबह नहीं लिख पाई, ढेर सारे कपड़े प्रेस करने थे, सो बाकी सारे कार्य तो किये बीएस यही रह गया, क्योनी डायरी लिखना यानि खुद के करीब आना, और खुद के करीब आना एक खस मन स्थिति में ही सम्भव है. आज गोयनका जी आये थे, उनकी बताई विधि से ध्यान में देर तक बैठ पायी. बाबाजी ने भी इन्द्रियों को मन में, मन को बुद्धि में, बुद्धि को स्व में स्थित कर ध्यानस्थ होने की विधि बताई. कल शाम वे 'ग्लैडिएटर' देखने गये, वापस आये तो जैसे फिल्म का प्रभाव उनके मन, वाणी पर पड़ चुका था, वे एक-दूसरे से क्रोध में बात कर रहे थे. सुबह तक उसे यह असर महसूस हुआ. कल दोपहर को उसे पूसी के बच्चों की आवाजें आयीं, परसों उन्होंने अनुमान लगाया था की पूसी माँ बनने ही वाली है. कल शाम को दूर से उसे देखा, छत के निचे बनी पर छत्ती पर वह बैठी थी. कल रात में स्वप्न में एक मार्जारी को देखा, जो उन्हें पंजों से पकड़ क्र बुला रही थी, बिलकुल वैसे ही जैसे इन्सान बुलाते हैं. आज दोपहर उसने नैनी के लिए उसी के लाये कपड़े का ब्लाउज सिला कपड़ा नया तो नहीं था, पर सही हालत में था. हाथ का काम वह खुद करेगी. पूरे दो घंटे लगाये पर पता नहीं कितना सही बना है. अभी अभी एक सखी को फोन किया तो पता चला परसों वे डिब्रूगढ़ गये थे तो उनके लिए तरबूज लाये थे, जून से ड्राइवर को भेजकर मंगवाने के लिए कहा है. सवा तीन हो गये हैं, नन्हा अभी तक नहीं आया है, उसका गला बभी सुख रहा है, दोपहर जून के जाने के बाद से चाय या पानी कुछ नहीं पिया है और अब एक गिलास ठंडा पानी पीने का वक्त ही रह गया है, थोड़ी ही देर में जून भी आते होंगे और उनके दिन का तीसरा भाग शुरू हो जायेगा.

  


Thursday, September 25, 2014

अमितव घोष की किताब



पिछले दिनों दो कार्य उससे ऐसे हुए हैं जो आज ध्यान के समय आकर कचोट रहे थे. जून को दफ्तर में किसी ने तोहफा दिया जो नूना के काम में आने वाला था, पहले तो नूना ने आनाकानी की पर बाद में स्वीकार कर लिया, जून ने इसे लिया यह भी ठीक नहीं था चाहे देने वाला उसके बदले में अभी कोई लाभ नहीं चाहता, पर भविष्य में जब भी उनके मध्य व्यवहार होगा इस उपहार की बात दोनों को याद रहेगी. दूसरी बात कि कल एक महिला अपने बीमार पुत्र का हवाला देकर कुछ सहायता मांगने आई थी, देखने में अच्छी खासी लग रही थी, उसने पात्रता/ सुपात्रता का बहाना बनाकर उसे कुछ भी नहीं दिया जबकि उस दिन मीटिंग में कुछ खरीद लिया, यह पैसे उसके कितने काम आ सकते थे. ईश्वर ने उन्हें इस योग्य बनाया है कि वे सहायता कर सकते हैं फिर अपने दरवाजे पर आये याचक को जब वे कठोर हृदय बन दुत्कार देंगे तो ईश्वर के दरवाजे पर उनकी फरियाद अस्वीकार होती रहे इसमें कौन सी बड़ी बात है. कल ही प्रायश्चित के महत्व पर सुना था आज वह अवसर भी आ गया है. उस महिला का दुःख तो किसी न किसी ने दूर कर ही दिया होगा पर उसके मन की कचोट जाने कब दूर होगी.

कल इतवार के कारण दिन भर कुछ नहीं लिखा. सुबह सफाई में जुट गये, दोपहर को कुछ देर टीवी और शाम को सुहाने मौसम में भ्रमण. The Golden Palace भी पढ़ी, काफी रोचक किताब है. आज इस समय सुबह के सवा आठ बजे हैं. राम नवमी है आज. उतर भारत में अवकाश का दिन. कुछ देर पूर्व छोटे भाई का फोन आया, उसके बैंक में क्लोजिंग है सो जाना पड़ेगा. उससे बात करके ख़ुशी हुई, सहोदरों से बात करके एक विशेष प्रसन्नता का अनुभव होता है. आज प्रार्थना में देर तक बैठ सकी. सुबह समाचारों में सुना, देश भर में कस्टम अधिकारियों के यहाँ छापे पड़ रहे हैं, करोड़ों की सम्पत्ति जब्त की जा रही है. वर्षों तक सरकार आख मूंद कर बैठी रहती है जबकि उसकी आँखों के सामने ही सब घटित हो रहा होता है. आज नन्हे के लिए एक लडकी का फोन आया जिसने दोस्त कहकर परिचय दिय नाम नहीं बताया. आवाज उसकी पुरानी स्टूडेंट से मिलती-जुलती थी. नन्हे के स्कूल में सभी टीचर्स काफी गम्भीर हैं इस वर्ष, वह भी नियमित पढ़ने बैठता है. उनके वक्तों से आज काफी कुछ बदल गया है. वे किसी तरह रट कर पास हो जाते थे पर आज के बच्चे सीखते व समझते हैं तभी इतने इतने अंक भी पाते हैं, उस समय पढ़ाई का सिस्टम ही अलग था.

कल रात भर वर्षा होती रही, मौसम ठंडा हो गया है. सुबह-सुबह एक सखी का फोन आया, नन्हे के बारे में पूछ रही थी, कल स्कूल से आया तो ढीला था, टिफिन भी वापस ले आया था, सो गया, रात को दवा दी अब ठीक है. वह फिल्म देखने के लिए बुला रही थी, नहीं जाना था उसे, वह इतने अधिकार से बुला रही थी कि एक बार तो मन हुआ पर जून और नन्हे को देखकर नहीं गयी. इतने दिनों से ‘रूपकुमार राठौर’ के कार्यक्रम में जाने को उत्सुक थी अब वह शौक भी नहीं रहा है. परिवार के सभी सदस्य जहाँ न जा सकें वहाँ जाना कुछ जंचता नहीं. गजल सुनना और वह भी तरन्नुम में... एक नायाब अनुभव होगा. अभी उस कार्यक्रम में बहुत दिन शेष हैं सो उसके बारे में सोचकर ज्यादा समय और ऊर्जा व्यय करना व्यर्थ है. कल शाम उड़िया सखी आई, उसे गुलदाउदी के पौधे चाहिए थे, उसने कुछ पौधे नये गमलों में से भी दिए जिनके फूल उन्होंने भी अभी तक नहीं देखे हैं. नन्हा आज घर पर ही पढ़ाई कर रहा है. आज भी भाई से बात हुई, जून ने उससे घर में चल रहे कार्य के बारे में पूछा, लकड़ी का काम अभी तक चल रहा है. फर्श जो उनके सामने बन गया था उसकी घिसाई का काम भी अभी तक नहीं हुआ है. जितना जल्दी हो सके उन्हें इस मकान को बेच देना है. उसकी किताब की पांडुलिपि मिल जाने की खबर अभी तक नहीं मिली है, वक्त आने पर सभी कार्य अपने आप होते जायेंगे, उसे ईश्वर पर उसके कार्यों पर पूरा भरोसा है, इसका अर्थ यह नहीं कि वह भाग्यवादी है बल्कि यह कि वह धैर्यशील है. उसने ध्यान दिया लिखाई उतनी सुंदर नहीं है यह उसके मन की उद्व्गिनता का संकेत तो नहीं, यह बेचैनी ही तो जीवन का संकेत है !


Tuesday, September 23, 2014

भागवद पुराण का श्लोक


आज उनके महिला क्लब की मीटिंग है, उस दिन अंध विद्यालय में जाने के बाद से क्लब के प्रति उसका सम्मान बढ़ गया है, सो आज वह जा रही है. सुबह भाई-भाभी से बात की. आज जून उसकी किताब भेज रहे हैं. अभी-अभी असमिया सखी का फोन आया, उसने दूरदर्शन पर एक नीति वचन सुना था, बताया, यह भी कहा कि उसकी किताब देखकर उसे बेहद ख़ुशी हुई है. उम्र के साथ-साथ उनकी मित्रता भी परिपक्व हो रही है. बाबाजी ने आज एक श्लोक का अर्थ बताया जो भागवद पुराण से लिया गया था, “कल का अजीर्ण आज के उपवास से दूर किया जा सकता है और कल का प्रारब्ध आज के पुरुषार्थ से”. मानव अपने भाग्य का विधाता स्वयं है. वास्तव में यदि वे प्रयत्न करें और सच्चे हृदय से ईश्वर के मार्ग पर चलें, ईश्वर का मार्ग यानि सच का मार्ग, तो उनके कार्य सफल होने लगते हैं. खोट भीतर नहीं होनी चाहिए, ईमानदारी का सौदा है यह. आज नैनी ने कहा उसके पास एक धार्मिक पुस्तक है जिसमें उर्दू और असमिया दोनों भाषाओँ में लिखा है. एक सूरा ऐसी है जिसको पढ़ पाने से शैतान कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. अन्धविश्वास में डूबा है आज भी मुस्लिम धर्म. वह उस किताब को पढ़ना चाहती है क्यों कि उसे कुरान को छूने की इजाजत नहीं है. कल रात वर्षा हुई और कहीं पास ही बिजली भी गिरी. बादलों की गड़गड़ाहट की जोरदार आवाज हुई उसकी नींद खुल गयी और उस कविता का स्मरण हो आया जिसमें दिल धड़कने का जिक्र है. संसद में अवकाश है सो पता नहीं चल पाता दोनों पार्टियाँ कितना विरोध कर रही हैं, धीरे-धीरे तहलका का ज्वर उतरने लगा है. लोग एक दूसरे से क्षमायाचना कर रहे हैं. भविष्य में वे लोग सचेत रहेंगे इतना तो फायदा इस प्रकरण से होगा ही. उसे आज दोपहर को वह अधूरी गजल पूरी करनी है.  

कल की मीटिंग अच्छी रही. एरिया टेन ने एक रीमिक्स कोरस गया और एक समूह नृत्य भी पेश किया. एक महिला कुछ कास्मेटिक प्रोडक्ट्स लेकर आई थी और कुकिंग प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया था. वह पड़ोसिन सखी के साथ गयी थी. उसने ‘ध्यान’ करने का प्रयास किया पर सफल नहीं हुई, नैनी का बेटा तेज संगीत बजा रहा था, सडक पर वाहनों की आवाजें थीं और वर्षा की रिमझिम भी, जो कल रात से हो रही है. उसने आँखें बंद कीं तो तंद्रा घेरने लगी, कभी-कभी ऐसा होता है जब मन शांत नहीं हो पाता. आज का दिन सामने पड़ा है कोरे कागज की तरह, जो चाहे लिख दे. दोपहर का कार्य नियत है. शाम कुछ भिन्न हो सकती है. कल लाइब्रेरी से अमितव घोष की एक पुस्तक लायी है कल शाम ही थोड़ी सी पढ़ी. अभी robert फ्रॉस्ट की कविताएँ भी पढ़नी हैं. ढेर सारी पत्रिकाएँ भी अनपढ़ी पड़ी हैं. रोज का अख़बार पढ़ने में भी समय जाता है. इन्सान का छोटा सा दिमाग (ब्रह्मांड से भी विशाल है वास्तव में ) कितना कुछ समेटना चाहता है. कल GLSV का प्रक्षेपण किसी खराबी के कारण टाल देना पड़ा, शुरू होने से पहले उसका दिल धड़क रहा था, लग रहा था, सब कुछ ठीक नहीं होगा. खैर, अगली बार जरूर वैज्ञानिकों को सफलता मिलेगी. कल भारत मैच भी हार गया. नैनी ने असमिया में वह पुस्तक लाकर दी है जिसमें से उसे ऐसी सूरा चाहिए जिसे पढ़कर शैतान भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

कल की शाम एक सखी और उसके बेटे के नाम थी. वे शाम को साढ़े चार बजे ही आ गये थे, जून को हाउसिंग सोसाइटी की मीटिंग में जाना था. साढ़े आठ पर वे वापस आये तब तक नन्हा और उसका मित्र खाना खा चुके थे. वह सखी के साथ पहले टहलने गयी फिर चाय पी और बाद में डिनर की तैयारी. उसका साथ सहज लगता है, कितनी बातें बतायीं उसने अपने परिचितों की और इधर-उधर की. कुछ देर उन्होंने क्रॉस वर्ड्स हल किया. समाचार नहीं सुन पायी कल रात. आज सुबह सुना पश्चिम बंगाल में कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ रही हैं. राजनीति में कोई भी स्थायी मित्र अथवा विरोधी नहीं होता. आज जागरण में एक सन्त का भावपूर्ण प्रवचन सुना, कह रहे थे रोना, हँसने से ज्यादा बेहतर है बशर्ते आँसूं पश्चाताप के हों यहाँ तो कोई गलत है यह तक स्वीकारने को तैयार नहीं होता तो पछतावा क्यों करेंगे, हर कोई अपने को सही साबित करने पर तुला है. आज सुबह ससुराल से फोन आया, कल वे लोग नये घर में रहने चले गये हैं, गृह प्रवेश में बड़ी ननद भी आई है, काफी चहल-पहल रहती होगी. दिन भर किचन में भी हलचल रहती होगी. आजकल ‘ध्यान’ में वह पांच-दस मिनट से ज्यादा नहीं बैठ पाती है सम्भवतः आस-पास होती हलचल इसका कारण हो, उसे दूसरा समय चुनना होगा जब कोई बाधा न हो. यह भी सही है कि जे कृष्णामूर्ति की पुस्तक पढ़े काफी समय बीत गया है और प्रतिपल सजग रहने का जो अभ्यास उन दिनों हो गया था आजकल छूट गया है. एक बेखुदी सी छायी रहती है जैसे वह किसी spell के अंदर है. जमीन पर आ जाना ही बेहतर होगा,. वास्तविकता की ठोस जमीन पर, जहाँ अपनी कमियां भी बखूबी नजर आती रहें. एक परिचिता से मिलने का वादा किया था जो आज ही पूरा करना होगा.




Monday, September 22, 2014

ब्रेल लिपि में पुस्तक


अभी-अभी जून का फोन आया उन्हें उसका फोटोग्राफ चाहिए था जो किताब के अंतिम पृष्ठ पर छपेगा. प्रकाशक का इमेल आया था उसने पूछा है कि वे पाण्डुलिपि कब भेज रहे हैं. वे अगले हफ्ते के शुरू में ही भेज पाएंगे, उसका स्वप्न अब आकार लेता हुआ प्रतीत हो रहा है. इसके बाद ही वह सबको पत्र लिखेगी. तहलका प्रकरण इस कदर मन पर छा गया है और इसको बढ़ावा देने वाले हैं टीवी व अख़बार. क्या ये सब मिलकर सड़ी-गली इस व्यवस्था में सुधर ला पायेंगे ? वे पत्रकार जिन्होंने पर्दे के पीछे छिपे ढके कारनामों को सबके सम्मुख ला दिया है, क्या सचमुच बदलाव चाहते हैं ? कल शाम वे उड़िया मित्र के यहाँ गये, उनका छोटा बेटा अस्वस्थ था, घर में सीलन की सी एक गंध आ रही थी जो बीमारी का कारण हो सकती है. आज सुबह एक परिचिता से बात हुई, उनका पुत्र दसवीं की परीक्षा दे रहा है, आगे की पढ़ाई के लिए कहीं भेजना चाहते थे पर अब यहीं रहकर पढ़ेगा. उन्हें भी नन्हे के लिए निर्णय लेना है, वह भी बारहवीं तक की पढ़ाई यहीं रहकर करे तो उन सभी के लिए अच्छा होगा. अभी-अभी एक सखी से बात हुई, बात तहलका से शुरू होकर मिसेज गाँधी पर लिखी किताब के जिक्र पर पहुंच गयी जिसमें उनके प्रेम प्रसंगों की जानकारी है. किसी के व्यक्तिगत जीवन पर कलम चलाना, फिर जो व्यक्ति कितने उच्च पद पर रह चुका हो और जो इस दुनिया में नहीं है, बहुत साहस का काम है, सच को उजागर करना इतना आसन नहीं है, लेकिन यही कार्य यदि कोई सस्ती लोकप्रियता के लिए करे तो बेहद निचले स्तर का लेखन है यह.

पिछले दो दिन व्यस्तता में गुजरे, परसों यानि शनिवार की सुबह उन कार्यों में व्यस्त रही जो इतवार की सुबह करती है और कल यानि इतवार की सुबह मोरान जाने के लिए तैयार होने में. बहुत समय से उसका मन था वहाँ के अंध विद्यालय जाने का, एक बार वे गये थे तो अवकाश चल रहा था, बहुत थोड़े से विद्यार्थी ही वहाँ थे. कल लेडीज क्लब की दो सदस्याओं के साथ उन लोगों के लिए भोजन लेकर वह गयी थी. इतने सारे अंध बच्चों या व्यक्तियों को देखने का यह उसका प्रथम अनुभव था. पहली नजर में वे सामान्य ही लगते हैं, वैसे ही बातें करते, मुस्कुराते चलते हैं पर पास से देखने पर उनके चेहरे के भाव सामान्य नहीं लगते. वे ज्यादा शांत लगते हैं. उन्हें दुनिया की कुरूपता को देखने का मौका जो नहीं मिला. लडके-लडकियाँ दोनों ही थे, हर उम्र के थे. वे आपस में या उनसे एक बार भी नहीं टकराए. अपनी-अपनी नियत सीट पर आकर बैठ गये और भोजन आरम्भ करने से पूर्व समूह प्रार्थना के स्वर गूँजे, जिसमें मधुरता थी. प्रिंसिपल के ऑफिस में कई वाद्य यंत्र पड़े थे, उन्होंने कहा, यदि वे इतवार अथवा छुट्टी के दिन आयें तो स्कूल का वातावरण देख पाएंगे, बच्चे उनके लिए संगीत का आयोजन करेंगे और वह चहल-पहल जो आमतौर से किसी भी स्कूल में होती है उन्हें देखने को मिलेगी. उसने पहली बार ब्रेल लिपि की पुस्तक भी देखी. यह विद्यालय पश्चिम बंगाल के फिल्म कलाकार विक्टर बनर्जी के पिता ने आरम्भ किया था, पच्चीस साल हो चुके हैं. स्कूल के पास काफी जमीन है बिल्डिंग भी बड़ी है, निर्माण कार्य चल रहा है. आस-पास की समाजसेवी संस्थाएं मदद देती रहती हैं. उनका क्लब भी हर महीने बच्चों के लिए भोजन भेजता है. वे बच्चे एक दूसरे से सामान्य बच्चों की तरह छेड़खानी भी कर रहे थे. उन्हें अपनी कमी का जैसे अहसास ही नहीं था क्यों कि दुनिया की रंगीनियों से वे बेखबर हैं.

 कल पिछले साल की डायरी में कविताएँ ढूँढ़ रही थी, कुछ पन्नों पर दृष्टि अटक गयी, लगा उस वक्त वह सत्य के ज्यादा निकट पहुंच गयी थी. उन्ही दिनों एक पेज पर ‘मिशन स्टेटमेंट’ लिखा था, पुस्तक छपवाने का और आज वह फलीभूत हो रहा है. प्रतिपल मन पर नजर रखने का प्रयास तो चलता ही रहता है, लेकिन वक्त के एक-एक क्षण का सदुपयोग और वाणी का संयम, ये नहीं सधते. पिछले दिनों आहार का विशेष संयम भी नहीं किया सो भारी तन से विचार भी गरिष्ठ ही उत्पन्न होंगे न. पत्र लिखने क कार्य शुरू नहीं कर पा रही है, अंतर्प्रेरणा की प्रतीक्षा है. कल दीदी, छोटे भाई व बहन तीनों से ही बात हुई. वे सभी भाई-बहन एक दूसरे के मन को समझते हैं, एक अटूट डोर से बंधे हैं. माँ की आँखें सामने रखे फोटो में यही कहती हुई प्रतीत हो रही हैं. जून उसकी किताब के लिए पूरे मनोयोग से जुटे हैं, उनका प्रेम उसके प्रति असीम है, जो हर छोटे-बड़े काम में झलकता है. नन्हा अपने मन की करना चाहता है, वह उम्र के उस दौर से गुजर रहा है जहाँ अपने निर्णय स्वयं लेने की प्रवृत्ति बेहद बलवती होती है. कल शाम वे पड़ोसी के यहाँ गये. पिता की मृत्यु होने पर उन्होंने मुंडन करवा लिया था. उसे लगा उनके पंजाबी समाज में यह रिवाज अब खत्म सा ही हो गया है. पड़ोसिन सखी ने कई अंग्रेजी फिल्मों के बारे में बताया. उन्हें फ़िल्में देखने का समय ही नहीं मिल पाता. वर्षों पहले नूना बहुत देखती थी पर अब अपनी संस्कृति ही भाती है. आज समाचारों में पाकिस्तान में टेप पर रहस्योद्घाटन की बात सुनी जिसमें नवाज शरीफ द्वारा जज पर जोर डाला गया है कि बेनजीर के खिलाफ मुकदमे का फैसला जल्दी हो और उसके खिलाफ हो. पत्रकारिता और जासूसी में कोई भेद नहीं रह गया है. आजकल फोन पर हों या अपने घर में, राजनेता कहीं सुरक्षित नहीं हैं. उनके पाप का घड़ा भर गया लगता है.


Saturday, September 20, 2014

अदरक वाला पुलाव


जो उसका है, उसकी मान्यता अथवा उसका विचार है, वही सत्य नहीं है, बल्कि जो सत्य है वह सम्पूर्णता के साथ उसे स्वीकार्य है. सत्य अंततः प्रकट होकर ही रहता है, देश इस वक्त ऐसे ही दौर से गुजर रहा है, जहाँ सच- झूठ में भेद स्पष्ट नहीं दीख रहा. कानपूर के लोगों को कट्टरपंथियों की हिंसा का शिकार होना पड़ा. जो शहर ऐसे लोगों को प्रश्रय देता है उसे उसका फल कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है.
कल उन्होंने एक सौ दस कविताओं की सूची बना ली और सभी को जाँच भी लिया है. आज प्रकाशक से फोन पर बात करेंगे, सम्भव हुआ तो इसी हफ्ते अथवा सोमवार को पाण्डुलिपि भेज देंगे. कल शाम कम्प्यूटर के सामने ही बीती, सांध्य भ्रमण का वक्त भी नहीं निकाल पाए. नन्हे के स्कूल में पढ़ाई शुरू हो गयी है. इस वर्ष से हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम प्रतिशत में नहीं बल्कि ग्रेड्स पर आधारित होगा, इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति जो डर बैठा हुआ है, विशेषतया हाई स्कूल के लिए, वह कम होगा. पिछले दिनों उनकी अनुपस्थिति में माली ने बगीचे की उपेक्षा की और आने के बाद उसने भी ठीक से देखभाल नहीं की, कल शाम ऐसे बहुत से कार्यों पर नजर गयी जो शीघ्र ध्यान चाहते हैं. गन्धराज का वृक्ष एक तरफ से सूख गया है, कुछ वर्ष पूर्व यह फूलों से लद जाता था, एक बार ज्यादा कटवा दिया तो छोटे भाई के शब्दों में वह नाराज हो गया, वृक्ष बहुत संवेदनशील होते हैं. कल उसने हफ्तों बाद रियाज किया, मन-प्राण संगीत के रस में डूब गये.

 मन के बन्धनों को उन्हें स्वयं ही खोलना है, अज्ञान ने उन्हें बेसुध कर रखा है. ज्ञान जो शाश्वत है वही साधन बनेगा और ज्ञान को ही उन्हें साध्य भी बनाना है. यह सही है सदा उसके दुःख, पीड़ा या परेशानी का कारण अज्ञान ही होता है. सच का आश्रय लेकर यदि जीवन के यात्री बनें तो यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हो सकती है. लेकिव वे क्षणिक सुख की ललक अथवा लोभ वश झूठ का साथ दे देते हैं. सुविधाओं का आकर्षण ही तो रिश्वत लेने पर विवश करता है. देश या राष्ट्र के सर्वोच्च पदों पर आसीन व्यक्ति भी जब अनैतिक कार्य करते हैं तो साधारण जन में दिशाहीनता व अराजकता की भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है. कानपूर के दंगे इसी का परिणाम हैं. पिछले कई घोटालों की तरह यह बात भी धीरे-धीरे ठंडी पड़ जाएगी और लोग फिर विश्वास करने लगेंगे उसी व्यवस्था पर, जो आज पूरी तरह सड़ चुकी है. पर इसी विनाश में से पुनः निर्माण होगा, करोड़ों लोगों की आस्था व्यर्थ नहीं जाएगी. कल शाम उन्होंने उसकी पुस्तक का मुखपृष्ठ भी बना लिया, नीला रंग जो उसे प्रिय है और शांति व पवित्रता का प्रतीक भी है, मुख्य है. कल छोटी बहन का फोन आया, एक वृद्धा के बारे में बताया जो कई व्याधियों से ग्रस्त हैं पर अपने स्वाद पर संयम नहीं रख पातीं. रसमलाई, बेसन के लड्डू और तला हुआ चिवड़ा-मूंगफली बहुत अधिक मात्रा में बना कर रख रही हैं. उनका मन भोजन में बुरी तरह से अटका हुआ है, खाना बनाना उनका प्रिय कार्य है. कल शाम एक मित्र परिवार मिलने आया, दोनों बच्चे बेहद दुबले थे, हाथ-पैर जैसे बांस की खरपच्चियों के बनाये हों, जिन्हें छूने से भी डर लगता था. बातों में उसने महसूस किया बच्चों की माँ भी अपने स्वर्गीय माँ-पिता को बहुत याद करती है.

आज बाबाजी ने कहा, “भक्ति स्वयंफल रूपा है. जब मन पूरी तरह समर्पित होता है, ध्यान अपने आप होने लगता है. परमात्मा की प्रतीक्षा नहीं करनी है बल्कि समीक्षा करनी है. बुद्धि और हृदय जब एक हो जाते हैं तब कृपा का अनुभव होता है.” कल शाम पुस्तक का प्रारूप लगभग तैयार हो गया, अब आत्मपरिचय देना शेष है जो आज दोपहर वह टाइप करने वाली है. टीवी पर तहलका मामले के खिलाफ़ और पक्ष में इतने बयान  आते हैं कि सच-झूठ का फैसला करना कठिन होता जा रहा है. लेकिन उसकी निजी राय यह है कि यह प्रकरण सरकार गिराने के लिए किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है. कल दोपहर पिता को पत्र लिखना आरम्भ किया, पर पूरा नहीं कर पाई, अधूरा ही फाड़ देना पड़ा, माँ के बिना उन्हें पत्र लिखना एक कष्टप्रद कार्य है. माँ की तस्वीर जबकि हमेशा सामने रहती है, वह मुस्काते हुए आश्वासन देती हुई सी लगती हैं. फिर भी दिल है कि मानता नहीं.


कल दोपहर जून लंच पर नहीं आये, उसने अदरक डाल कर पुलाव बनाया, घर से आने के बाद भोजन पर ज्यादा ध्यान जाता है. वहाँ सभी हष्ट-पुष्ट नजर आते थे, उनका परिवार ही सबसे दुबला-पतला लगता था. वे अपना वजन कम रखने के चक्कर में नन्हे को भी कम तेल-घी का भोजन दे रहे हैं, हो सकता है यही कारण हो कि वह अभी तक पूरी लम्बाई नहीं ले पाया है. उसके लिए ही केक बनाया था, अगले हफ्ते चॉकलेट केक की फरमाइश की है उसने. कल जून उसके लिए हिंदी का अख़बार लाये जिसमें वह अपनी कविताएँ भेजना चाहती है. 

Friday, September 19, 2014

चाणक्य नीति


अभी कुछ देर पूर्व उसके मन में यह विचार आया कि क्यों न अपने नित्य के डायरी लेखन को ऐसा रूप दे जो बाद में पुस्तक रूप में आने के योग्य हो जिसका नाम हो उसकी आध्यात्मिक डायरी और यह उसके उन प्रयासों का लेखा-जोखा हो जो वह एक बेहतर मानवी बनने के लिए करना चाहती है. कभी सफल होती है कभी नहीं भी होती. यह परिवार, समाज, राज्य और देश उससे भी अधिक मानव मात्र के प्रति उसके संबंधों को प्रदर्शित करे जिसमें दिन-प्रतिदिन में (बाहरी तथा आंतरिक दोनों) घटने वाले व्यापारों का निष्पक्ष विवरण हो, जो आज के समय का दर्पण हो, व्यक्तिगत स्तर के साथ साथ देश के स्तर पर भी जो महत्वपूर्ण घटा हो तथा जसका असर किसी न किसी रूप से उन पर पड़ने वाला हो. वह यह लिख रही थी कि नन्हा अस्पताल से चिकन पॉक्स का प्रतिरोधक टीका लगवा कर आ गया. कल ही उसके पापा ने कम्पनी के अस्पताल में बेहद महंगा यह टीका लगवाने का प्रबंध किया था. न जाने क्यों उसे इसके प्रति श्रद्धा नहीं है और उसने देखा कि न ही नन्हे को इसके लग जाने से कोई राहत का अहसास हुआ, भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता, क्या यह टीका लगवा लेने के बाद कभी भी उसे चिकन पॉक्स नहीं होगा, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता. जिस देश में आपरेशन करा लेने के बाद भी औरते माँ बन जाती हैं वहाँ ऐसा संदेह होना क्या स्वाभाविक नहीं ? कल नन्हे को दसवीं की किताबें मिल गयीं यह वर्ष उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष है और उनके पूरे परिवार का भविष्य इससे कहीं न कहीं जुड़ा है.

‘तहलका डाट कॉम’ नामक कम्पनी ने खोजी पत्रकारिता के द्वारा देश की सत्तारूढ़ पार्टी तथा गठ्बन्धन के दिग्गज नेताओं व रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों को बेनकाब कर  देश में तहलका मचा दिया है. एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधि बन कर कुछ पत्रकार छह महीनों तक नेताओं व अधिकारियों से बेरोक-टोक मिलते रहे, उनको सौदे कराने में सहायता करने के एवज में रिश्वत देते रहे, उनकी तस्वीरें उतारते रहे और किसी को भनक भी नहीं हुई. इससे यही अर्थ निकाला जा सकता है कि रक्षा संबंधी मामलों में पैसों का लेनदेन एक सामान्य घटना है, कि पार्टी फंड के नाम पर ऐसा तो हमेशा से होता आया है. प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री ने अपने टीवी भाषण में देशवासियों को विश्वास में लेने की कोशिश की है पर जनता जो पहले से ही राजनीतिज्ञों को भ्रष्टाचार में लिप्त मानती है, एक और नाटक की साक्षी बनी यह सवाल पूछेगी कि नेताओं का पेट इतना बड़ा क्यों बनाया ईश्वर ने ?

कल शाम कुछ मित्र परिवार मिलने आये, चर्चा का विषय तहलका ही बना रहा. यह भी सम्भव है, सरकार गिर जाये और दुबारा चुनाव हों पर भ्रष्टाचार का अंत तो इससे नहीं हो जायेगा. बातों-बातों में किसी ने कहा, चाणक्य शाम को जब अपने निवास पर लेखन कार्य करता था तो दरबार का कार्य होने पर राज्य की लेखन सामग्री का उपयोग करता था, अपना कार्य अपनी लेखन सामग्री से करता था. आज के मंत्री चाहते हैं, उनके परिवार का ही नहीं आने वाली पीढ़ियों का व्यय भी राज्य वहन करे.

आज नन्हे की नई कक्षा की पहली क्लास होगी, आज पूरे एक महीने की छुट्टियों के बाद  स्कूल खुला है. कल उसकी स्कूल ड्रेस की जाँच की तो पता चला पैंट छोटी हो गयी है और कमीज बेरंग, जून उसी समय नये कपड़े दिलाने ले गये, भाग्यशाली है वह कि आवश्यकता होते ही उसकी पूर्ति का साधन उसके माता-पिता के पास है, ऐसे हजारों-लाखों बच्चे हैं जो धन के अभाव में स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. कल वे एक मित्र के यहाँ गये, उनके वृद्ध माता-पिता आये हुए थे. पिता अशक्त हो गये हैं, डायबिटीज के मरीज हैं लेकिन मन उतना ही सशक्त और इच्छालु है. दूसरों की बात समझना ही नहीं चाहते अपनी इच्छा यदाकदा जाहिर कर देते हैं, वरना चुप रहते हैं. माँ सामान्य हैं. पिछले दिनों कई वृद्धजनों से मिलने का अवसर मिला है. अंत समय तक जो समझदारी का परिचय दे, दूसरों की भी सुने, सदा अतीत में ही न विचरे, ऐसे कम ही मिले. उनकी अपनी वृद्धावस्था आदर्श हो ऐसी उसकी कल्पना है. शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें इसका प्रयास अभी से करना होगा. आर्थिक रूप से किसी पर बोझ न बनें और ऐसी प्रवृत्तियों को प्रश्रय देना भी त्यागना होगा जो बुढ़ापे में तकलीफदेह होती है जैसे स्वाद के आधार पर भोजन का चुनाव, व्यायाम करने में आलस्य और व्यर्थ ही बोलने की आदत. आज गोयनका जी ने कहा, सम्यक शील और सम्यक समाधि होगी तभी सम्यक प्रज्ञा जागेगी और प्रज्ञा यानि प्रत्यक्ष ज्ञान, अपनी अनुभूतियों पर उतरा ज्ञान ही काम आता है, दूसरों का ज्ञान प्रेरणा भर बन सकता है अपर जीवन दृष्टि नहीं दे सकता.



बादल और सूरज


कल रात फिर माँ को सपने में देखा. वे सभी थे. पिता, सभी भाई-बहन. वह काम कर रही थी, जैसे कि सशरीर हों, वास्तव में वह नहीं थीं, फिर वह पलंग पर बैठ जाती हैं और पानी मांगती हैं. वे उन्हें पानी नहीं दे पाते क्योंकि उनका भौतिक अस्तित्त्व नहीं है. मंझला भाई बोतल से उन्हीं के सामने पानी पी रहा है और वह गिड़गिड़ाती हैं, फिर दुःख और क्रोध से कहती हैं कि उन्हें पानी न देकर क्या वे सब जीवित रह पाएंगे? कैसा अजीब सा स्वप्न था, पर स्वप्न का अर्थ ही है अजीब...इसके बाद ही वह जग गयी और यही सोचती रही कि उसके ही मन ने इसे गढ़ा होगा, वास्तव में ऐसा नहीं होगा कि माँ को अंतिम समय में पानी की जरूरत रही हो और वह उन्हें न मिला हो. पर अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं है, जाने वाले एक बार जाकर वापस नहीं आते. कल जून ने “बस इतना सा सरमाया” की spiral binding भी करवा दी. नन्हे ने उस दिन कवर पेज भी कम्प्यूटर पर प्रिंट कर दिया था. माँ की कृतज्ञ है कि न होने पर भी उन्होंने उसे इतना बल दिया. कल शाम वे उड़िया मित्र के यहाँ गये. सखी की तबियत ठीक नहीं थी पर उसने अच्छी आवभगत की अब वापसी पर घर आने का निमन्त्रण भी दे दिया है. आज सुबह से सूरज निकला है अभी पैकिंग का कुछ काम शेष है. जून के आने से पहले समाप्त हो जाने से अच्छा है वरना वह बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं.

आज सुबह पिता से बात की, ठंड वहाँ कम हो गयी है सो ज्यादा गर्म कपड़े ले जाने की आवश्यकता नहीं है. इस समय फिर आकाश बादलों से ढका है, धूप निकलती है तो सब कितना स्पष्ट दिखाई देता है ऐसे ही जब मन पर अज्ञान के बादल छाये हों तो कुछ भी स्पष्ट नहीं सोच पाता. ज्ञान की एक किरण ही कितना प्रकाश भर देती है. सुबह बंगाली सखी ने उसकी कविताओं की तारीफ की उसने अपने पति से उनके बारे में सुना था. कल दो और मित्र परिवारों ने भी पांडुलिपि देखी. एक रचियता के लिए सबसे सुखद पल वे होते हैं जब कोई उसकी रचना को पढ़े व समझे.    

मार्च का मध्य आ गया है. फरवरी के अंतिम सप्ताह में वे यात्रा पर निकले थे. उस दिन के बाद आज पहली बार डायरी खोली है. वे तीन दिन पहले वापस आ गये थे, आने के बाद सफाई आदि के कार्य से निबट कर पुनः पुस्तक के काम में जुट गयी है. अभी भी आठ-दस दिनों का काम शेष है. नन्हा सुबह सोकर उठा तो पेट दर्द की शिकायत कर रहा था, उसे सम्भवतः अपच हो गया है. सुबह एक सखी से बात हुई उसने कहा, वह कहानियाँ भी लिखे, एक बार पहले भी उसने यह बात कही थी. उसकी अगली पुस्तक कहानियों की हो सकती है, विचार बुरा नहीं है. अज सुबह छोटी बहन से बात की, वह थोड़ी चुपचुप लगी, परिवार से दूर होने के कारण या वे उससे मिलने नहीं गये शायद इस बात का मलाल हो या उसका वहम् भी हो सकता है. आज नन्हे को नई किताबें लेने स्कूल जाना है जून उसे दोपहर को ले जायेंगे.




Thursday, September 18, 2014

सद्भावना यात्रा


आज की सुबह बहुत व्यस्त रही, सुबह वे रोज की तरह उठे, नन्हा और जून स्कूल और ऑफिस गये, इसी बीच उसने कुछ देर बगीचे में काम किया. सूखे फूलों को काटा फिर बड़े भाई से फोन पर बात की. उन्हें दिल्ली में किसी प्रकाशक का पता मालूम करने को कहा जो हिंदी कविताओं की पुस्तक छापता हो. उसकी पुस्तक आकार लेती प्रतीत हो रही है. जून ने कल रिपोर्ट लिखवाई थी, प्लम्बर आया उसके पहले गैरेज में स्थित जंक्शन बॉक्स देखने व सीमेंट से उसे ठीक करने दो अलग-अलग समूह आये. उनमें से एक व्यक्ति ने आंवले मांगे, उसने अपने लिए भी आंवले तुड़वाये. सुबह दो सखियों से बात की, तीन कवितायें टाइप कीं, यही सब करते कराते जून के आने का वक्त हो रहा है. प्रवचन में मन नहीं लगा न पाठ में, जब आस-पास इतना कुछ चल रहा हो तो मन जिसे एक मौका चाहिए, फुर्र से उड़ जाता है. कल दोपहर को भी भाई का फोन आया था, माँ के जाने के बाद उनमें थोड़ा बदलाव तो आया लगता है, शायद उन सभी पर किसी न किसी रूप में असर डाला है इस होनी ने, वह जो इतने दिनों से पुस्तक छपवाने का स्वप्न भर देखा करती थी, रोज इस पर काम कर रही है. समय बहुत कम है, कौन जाने कोई कब इस जहां से चला जाये वक्त रहते यदि नहीं चेते तो सिवा पछतावे के और कुछ हाथ नहीं आएगा.

आज नन्हे का हिंदी का इम्तहान है, उसने कल शाम को आधे दोहे के अर्थ के अलावा कुछ नहीं पूछा, अब वह आत्मनिर्भर हो गया है. कल जून ने भी पिता से बात की. सभी अपनी तरह से उसे समझाना चाहते हैं. पिता के अनुसार जिस तरह कोई गिरे हुए दूध का अफ़सोस नहीं करता वैसे ही किसी के जाने का भी दुःख नहीं करना चाहिए. भाभी के अनुसार उसे अपना दुःख सभी के साथ बांटना चाहिए. भाई ने कहा, वक्त लगेगा पर धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा. इस क्षण उसके मन में लेशमात्र भी दुःख नहीं है, लेकिन वे कारण धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहे हैं जिनके कारण इतने दिनों तक वे परेशान थे. सर्वप्रथम तो अपराध भावना कि तेहरवीं पर वे जा नहीं पाए, दूसरे घरवालों को अपनी बात ठीक से समझा न पाना और तीसरा और सबसे बड़ा कारण तो उस स्रोत का न रहना जिससे वह जुड़ी थी और वे सारे दृश्य तथा वेदना, जो अंदर तक महसूस की.

आज नन्हे का आखिरी इम्तहान है. धूप निकली है, परसों रात की आँधी-वर्षा के बाद मौसम कुछ ठंडा अवश्य हो गया है. कल दोपहर भर वह कवितायें टाइप करती रही अब पूरी सौ हो चुकी हैं. शाम को जून ने कुछेक को प्रिंट भी कर दिया है. इसी हफ्ते उन्हें जाना भी है. उसका मन सभी के प्रति स्नेह से भरा हुआ है, माँ के प्रति जो उसका प्रेम था वह कई धाराओं में बंट गया लगता है. एकाएक ही सभी भाभियाँ बहुत प्रिय लगने लगी हैं और उनके परिवारों के प्रति सदा शुभकामनायें प्रस्फुटित होती रहती हैं, इस बार की अपनी यात्रा को ‘सद्भावना यात्रा’ का नाम देना उचित रहेगा. कल रात भी उसने सपने में सभी को देखा. माँ को भी देखा, पर सुखद अनुभूति थी. वे सभी यहाँ आए हुए हैं और वे उन्हें क्लब ले गये हैं. कल नन्हे का गणित का पेपर बहुत अच्छा नहीं हुआ लेकिन वह जल्दी ही सामान्य हो गया, उसका देर तक परेशान रहना उन्हें भी अच्छा नहीं लगता.  


कल सुबह व्यस्तता के कारण डायरी नहीं खोल पाई, लेकिन पिछले एक महीने की व्यस्तता रंग लायी है और आज सुबह ही उसकी किताब की दो पांडुलिपियाँ पूरी तरह से तैयार हो गयी हैं, और जब इतना कार्य जून और नन्हे की मदद से व ईश्वरीय प्रेरणा से सम्पन्न हो गया है तो भविष्य भी उज्ज्वल होगा. परसों उन्हें जाना है, अभी पैकिंग नहीं हुई है. इस बार का जाना हर बार से थोड़ा अलग है, कल छोटे भाई का भावपूर्ण पत्र आया जिसे पढ़कर आँखें बरस पड़ीं, जून ने उसे संभाला, यह ऐसा दुःख है जिसको दूर होने में शायद सारी उम्र लग जाएगी. उस दिन जब वह माँ कविता पर काम कर रही थी, कैसे गैस पर रखे चावलों को जलने से एक आवाज ने बचा लिया था. उसे यह एक चमत्कार ही लगा था, वह किचन में चावल रखकर भूल गयी थी, अचानक बर्तन गिरने की आवाज हुई, दौड़ कर गयी तो वहाँ कोई नहीं था, खिड़की भी बंद थी, किसी पक्षी या बिल्ली के आने की कोई जगह नहीं थी, यहाँ तक कि कोई बर्तन भी गिरा हुआ नहीं था, फिर वह आवाज...उस क्षण उसने माँ को अपने पास ही महसूस किया था. इसी तरह वे सब किसी न किसी रूप में उनकी स्मृति को उनकी उपस्थिति को हमेशा अपने आस-पास पाते हैं, पाते रहेंगे. पिछली रात तेज गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा हुई, इस वक्त थमी है. नन्हा अपने मित्र के यहाँ गया है. आज सुबह ‘जागरण’ में प्रेरणादायक वचन सुने, कुछ देर ध्यान भी किया. संगीत का अभ्यास पिछले कई हफ्तों से छूट गया है. उसने सोचा है, वापस आने पर पुनः शुरू करेगी, 

Monday, September 15, 2014

यादों की परछाइयाँ




 ध्यान वह स्थिति है जहाँ मन नहीं रहता अथवा तो मन समाहित हो जाता है, न भूतकाल की चिंता न भविष्य की कल्पनाएँ ! संसार समय की बदलती हुई स्थिति को दर्शाता है. ध्यान समय, संसार और विचार तीनों से पार ले जाता है. ध्यानस्थ मन ही ज्ञान का अधिकारी हो सकता है. ध्यान एक तरह से मन का स्नान है, मन उज्ज्वल होता है, हल्का होता है, स्वस्थ होता है अर्थात स्व में टिक जाता है, स्वच्छ होता है अर्थात निर्मल होता है. आज बाबाजी ने कितनी सुंदर बातें कहीं, जगत का अभिन्न उपादान ईश्वर है, जो इस जगत को ईश्वरमय जान लेता है उसका ध्यान टिकता है. आज सुबह छोटी बहन से बात की उसे इसी माह पुनः फील्ड ड्यूटी जाना है, अगले माह ही पूरा परिवार पुनः मिलेगा. कल शाम जून ने उसकी डायरी पढ़ी, वर्षों बाद उन्होंने ऐसा किया है. नन्हे की आज बायोलॉजी की प्रयोगात्मक परीक्षा है. कल रात खाने के समय उसका मनपसन्द कार्यक्रम टीवी पर देखने को नहीं मिला तो कैसे चुप हो गया था, हरेक के पास नाराजगी जाहिर करने का कोई न कोई उपाय है.

इस क्षण ऐसा लग रहा है, सब ठीक है. आज से दो हफ्ते पहले आज ही के दिन वे कितने उदास थे. एक बार पढ़ा था कि जब भी किसी दुःख या विपत्ति का सामना करना पड़े तो उसे दो हफ्ते या दो महीने बाद कल्पना में देखना चाहिए कि उस वक्त उसका क्या प्रभाव पड़ रहा होगा. दुःख की घड़ी में बुद्धि भ्रमित हो जाती है, सही निर्णय लेना तो दूर सही वार्तालाप भी नहीं कर पाते. अब माँ की यादें ही उनके साथ रह गयी हैं, वह स्वयं पूर्ण विश्रांति पा चुकी हैं. उसने याद करने की कोशिश की, पिछले वर्ष या पिछले महीने आज के दिन वे किस मनः स्थिति में थे. दुःख या सुख का अनुभव किया होगा किन्तु कुछ याद नहीं आया, वह समय बीत गया परन्तु वे फिर भी हैं ऐसे ही आज के सुख-दुःख भी बीत जाने वाले हैं. वे साक्षी भाव में उसे देखते चलें. उसमें डूब कर अपनी मानसिक, आत्मिक व शारीरिक ऊर्जा का हनन न करें. सन्त कहते हैं, सारा संसार सपना  है और जो उसे देखने के योग्य बनाता है वह परमात्मा ही अपना है. कल उसने बैक डोर पड़ोसिन के यहाँ, जो घर में ही पार्लर चलाती है, हेयर कट करवाए. बहुत अच्छे तो नहीं कटे पर जून ने कहा ठीक हैं, और उसके जीवन की नैया की पतवार तो उनके ही हाथ में है. गुजरात में कल फिर भूकम्प के झटके महसूस किये गये, भयभीत और पीड़ित लोग और घबरा गये. ईश्वर इतनी परीक्षा क्यों ले रहा है. धीरे-धीरे वहाँ जीवन सामान्य होता जा रहा था. पुनर्निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका है.

कल सुबह जून को उसने जब परेशान होकर कहा कि छोटे भाई ने फरवरी में आने के लिए मना किया था अपने बच्चों की परीक्षाओं के कारण और इस विषय में बहनों से ही उसकी बात हुई है तो वे सोच में पड़ गये. उन्होंने भी तो नन्हे की परीक्षाओं को महत्व देते हुए उनके बाद ही यात्रा करने का निर्णय लिया था. दोनों का ही दिन सोच-विचार में बीता, पर शाम होते-होते उन्होंने निर्णय ले लिया कि अब इस बात को यहीं छोड़कर आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. बड़े भाई का फोन आया, उन्हें उसकी फ़िक्र है ऐसा लगा, उन्होंने पुनः फोन करने को कहा है. कल रात वे ठीक से सो पाए, फिर भी एक स्वप्न तो उसने पिछली कई रातों की तरह देखा जो माँ से जुड़ा था. अभी अभी ससुराल से फोन आया वे लोग इस महीने के अंत तक नये मकान में चले जायेंगे.

कल रात छोटे भाई का फोन आया, उसके अनुसार उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि आने को मना करना इतना बुरा लगेगा. उन्होंने सामान्य तौर पर यह बात कही थी. छोटी बहन ने माना कि उसने ही पिता को इसके बारे में बताया था. जून ने भी सभी से बात की, इतने दिनों का उहापोह खत्म हो गया. उसने दीदी को भी धन्यवाद देने के लिए फोन किया जिन्होंने भाई को नूना की मनः स्थिति से परिचित कराया पर वह पूजाघर में थीं, उसने जीजाजी को संदेश दे दिया.  

आज सुबह बहुत दिनों बाद वे आराम से उठे, क्यों कि रात आराम से बीती. कल ‘जनगणना’ कार्यालय के कर्मचारी आये, उसने उनके प्रश्नों के उत्तर दिए. उनका घर जाना अब तय हो गया है. मन जैसे हल्का हो गया है. इस दौरान उन्हें भाई व दीदी के शहर भी जाना है. हो सका तो एक दिन के लिए मामीजी से मिलने उनके शहर भी जाना है. बड़ी बुआ जी के साथ भी एक दिन बिताना है. पैतृक निवास पर भी जाना होगा. चचेरी बहन से मिलना है. फुफेरी व ममेरी बहन से फोन पर बात करनी है. छोटी बुआ से भी वह बात करेगी, हो सका तो रास्ते में मासी के घर भी जाएगी. वह उन सब के साथ मिलकर माँ की उन यादों को बांटना चाहती है जो उनके मध्य साझी हैं. इसके अलावा अपनी किताब के लिए प्रकाशक की तलाश करनी है.   


दुःख का अस्तित्त्व


कल शाम दीदी व छोटी बहन का फोन आया, वे दोनों टहलने निकलीं थीं तो पीसीओ से फोन कर लिया, जबकि घर पर दो फोन हैं. कल तेहरवीं है, जिस पर उसे जाना चाहिए था पर परिस्थिति वश नहीं जा पा रही है. उसका अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य आड़े आ गया. घटनाएँ कब क्या मोड़ लेंगी कोई कुछ नहीं कह सकता. अब माँ को याद करके उसे दुःख नहीं होता बल्कि शांति का अनुभव होता है. वह अब मुक्त हैं तथा हर समय उसके पास हैं. उनके बचपन से लेकर अपने बचपन तक फिर अपने बचपन से उनकी वृद्धावस्था तक के सारे चित्र सजीव हो उठते हैं. जून आज भी हमेशा की तरह पहले उठे वह एक स्वप्न देख रही थी जिसमें वह अपना मान तथा धन दोनों बचाने में सफल हो जाती है. एक लुटेरा उसके पीछे था पर वह स्वयं अपमानित होता है.

उसने सुना, अहंकार का त्याग और समर्पण की भावना का विकास ही शांति प्रदान करता है. अहंकार और स्वाभिमान में अंतर है, स्वाभिमान की आहुति देने के बाद तो पास में कुछ भी नहीं रह जाता. एक सखी ने पूछा वे घर जा रहे हैं या नहीं, यह उनके लिए एक अबूझ प्रश्न बन गया है जिसका उत्तर समय ही बतायेगा. सुबह-सुबह एक अन्य का फोन आया. कल सुबह दो परिचित महिलाएं मिलने आई थीं. दुःख इन्सान को इन्सान से जोड़ता है. इस समय सुबह के नौ बजे हैं, आज धूप तेज है, पिछले दिनों दोपहर तक कोहरा रहता था फिर मद्धिम सी धूप के दर्शन होते थे. अभी उसे भोजन तैयार करना है फिर रियाज और दोपहर से कविताएँ टाइप करने का काम. कल का दिन तो गंवा दिया पर अब और नहीं, कहीं उसके इस आलस्य के कारण उसका सपना अधूरा न रह जाये और जिन्दगी की शाम आ जाये. मृत्यु हर मोड़ पर बाट जोहती खड़ी रहती है. जीवन इतना अल्प, इतना कीमती है कि हर पल का सदुपयोग होना ही चाहिए.

आज सुबह एक स्वप्न देखा जिसमें वह अकेले विदेश यात्रा पर जा रही है. माँ को भी देखा. जून ने उठकर विश किया और दफ्तर जाने से पूर्व उसने उन्हें फिर उस फोन की याद दिलाकर नाराज कर दिया. ससुराल से फोन आया था, पिता को भी यही उम्मीद थी कि जून अवश्य तेहरवीं में शामिल होने गये होंगे. कल छोटी बहन का फोन आया उसने किन्हीं मामीजी से उसकी बात करवाई, वह पहचान नहीं पायी. सभी रिश्तेदार वहाँ आये हुए हैं. छोटी बुआ व ममेरी बहन भी आए हैं, उसे एक बार फिर न जा पाने का दुःख हुआ, शायद जीवन भर यह अपराध बोध उसे सालता रहेगा. बाबाजी कहते हैं, सुख-दुःख मिथ्या हैं सिर्फ मानने से होता है न मानें तो इसका कोई अस्तित्व  ही नहीं है. यदि वह जाती तो यहाँ जून और नन्हा परेशान रहते किसी को सुखी करके किसी को दुखी होना ही पड़ता, फिर जो नितांत उसके अपने हैं उन्हें दुखी करने का उसे क्या हक है ? कल स्वप्न में बहुत दिनों बाद कॉलेज भी देखा, गणित के अध्यापक को भी. जैसे सुबह नींद खुलने पर स्वप्न टूट जाता है वैसे ही ये स्मृतियाँ भी कुछ वर्षों बाद भुला दी जाएँगी. जीवन फिर भी चलता रहेगा. नन्हा आज फिर देर से उठने के कारण हाथ-मुंह धोकर ही स्कूल गया है, उनके समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता, कभी-कभी जिन्दगी इतनी मुश्किल हो जाती है कि.. कल शाम फिर दो मित्र परिवार मिलने आये थे, वे भी उनके घर जाने के बारे में पूछ रहे थे. भविष्य के गर्भ में ही छिपा है इसका उत्तर, कौन जाने तब तक असम में भी भूचाल आ जाये, उन्हें इसका जवाब अपने आप ही मिल जायेगा.
कल रात पहले छोटी बहन का फोन आया, फिर मंझले व बड़े भाइयों का, उन्हें कल उसका वह पत्र मिला जिसमें “हमारी माँ - एक सम्पूर्ण व्यक्त्तित्व” में माँ के बचपन से लेकर जैसा उन्हें देखा, समझा लिखा था. इतने दिनों से संबंधों में जो बर्फ जम गयी थी पिघली. सुबह उठते ही पिता को फोन किया, वह चाय बना रहे थे. माँ के बिना रहने की आदत उन्हें धीरे-धीरे पड़ती जा रही है. आज फिर बदली छाई है, नन्हे की आज संगीत की लिखित परीक्षा है. सोमवार से मुख्य विषयों की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं.   


  

Monday, September 8, 2014

सीता का वनवास


फरवरी महीने का प्रथम दिन, मन की तरह आकाश पर भी बादल छाये हैं. जून आज मोरान गये हैं, शाम तक आयेंगे. सुबह वे जल्दी उठे. जून के जाने के बाद उसने फोन पर बात की, पिता अभी सोकर नहीं उठे थे, सो बात नहीं हो पायी. दीदी से बात की, उन्होंने एक अच्छी बात बतायी कि सभी लोग जो जीवित हैं अभी इस संसार में स्वप्न देख रहे हैं, माँ का स्वप्न पूरा हो गया, उनकी नींद खुल गयी है और वह इस सुख-दुःख के चक्र से मुक्ति पा गयी हैं. कल शाम वे टहलने गये तो मन में भरा विषाद फूट पड़ा. जून ने उसे सहारा दिया, कहा कि सुबह सभी से बात करे. नन्हे की परीक्षाओं के बाद फरवरी में घर जाने के लिए राजी किया. उन्हें उसकी मनः स्थिति का पूरा भान है. माँ कभी भी कोरी भावुकता की पक्षधर नहीं थीं. मोह, माया और ऊपरी दिखावा उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था. जो उचित हो और जिससे किसी का अहित नहीं होता हो सोच-विचार कर ऐसा काम ही करना चाहिए.

उसके भीतर कभी ख़ुशी का एक झरना हुआ करता था, जिसमें से ख़ुशी रिस-रिस कर अधरों पर, कभी आँखों से झलका करती थी. दुनिया हसीन लगती थी पर आज वह सोता कहीं सूख गया सा लगता है. भीतर एक खालीपन उतर आया है और साथ ही एक नया  स्रोत उभर आया है, खरे पानी का स्रोत. आँसूं बेबात ही छलका करते हैं. दिल कमजोर हो गया है. दुनिया पर से विश्वास हटने लगा है. भूचाल की त्रासदी से पीड़ित लोगों को देखकर सिहरन होती है, उनका दुःख अपना सा लगता है. यह इतना सारा दुःख कहाँ से आ गया है. माँ जो इन सब दुखों से परे चले गयी हैं, उनके जाने से भी जिन्दगी में एक खालीपन आ गया है. कल एक परिचिता मिलने आयी, रोने लगी और फिर उसे चुप कराना पड़ा. संभल-संभल कर फिर कुछ ऐसा हो जाता है. जून उसके मन की हालत  समझते हैं और हर क्षण वह साथ देते हैं. लेकिन यह खालीपन बाहर से नहीं भरेगा, भीतर से ही इसे भरना होगा. बाहरी संबंध तो माने हुए हैं, स्थायी नहीं हैं. समय के साथ बदलते रहने वाले हैं. जीवन को पुनः परिभाषित करना होगा. स्वयं के सहारे जीना होगा. जीवन की क्षणभंगुरता को कौन समझ सकता है, जानते तो सब हैं. अन्यों से किसी बात की अपेक्षा नहीं रखनी होगी. हरेक को अपना रास्ता स्वयं बनाना है. कुछ भी स्थायी नहीं है. इतने दिनों से जो उसके मन में साध पल रही थी कि कोई तो कह दे, माँ नहीं है तो दुःख मत करो, हम तो हैं. पर कोई नहीं कहेगा. सभी बेबस हैं, जैसे वह खुद !

आज कोई फोन नहीं आया. मन स्थिर है. टीवी पर ‘उत्तर रामायण’ आ रहा है. लक्ष्मण को सुमन्त्र और राम को गुरु वसिष्ठ ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं. सीता को वनवास होगा, राम को पत्नी वियोग सहना होगा यह सब बातें सुमन्त्र को पहले से ही ज्ञात थीं, फिर भी ऐसा होने पर वह दुखी थे, विह्वल थे. ऐसे ही सबको पता था कि हरेक की मृत्यु निश्चित होती है, कि माँ की हालत ठीक नहीं थी, कि उन्हें अंततः जाना ही था फिर भी इससे उनके जाने का दुःख कम तो नहीं हो जाता. वे सभी संवेदना की डोर से बंधे हैं. उनके मन सुख-दुःख, प्रसन्नता-अप्रसन्नता के वाहक हैं. दुःख के वक्त कोई किस तरह अपना कर्त्तव्य धर्म निभाता है वही उसके चरित्र को दर्शाता है. वह इस वक्त अपने आप को दुखी नहीं मान रही. रामायण के पात्रों ने जैसे उसकी चोट पर मरहम रख दिया है. एकाएक भूचाल आने पर जैसे सारे रास्ते और पथ गायब हो जाते हैं वैसे ही दुःख आने पर प्राणी हतप्रभ हो जाता है. ऐसे में उसे ज्ञान व दर्शन की बातें ही सहारा देती हैं. भूचाल से पीड़ित लोगों में नये जीवन की आशा का संचार करना होता है. उन्हें पुनः नये पथों का निर्माण करना होगा.


  

Sunday, September 7, 2014

गुजरात का भूकंप


परसों सुबह छोटी बहन ने फोन पर खबर दी, बात करते वक्त वह सामान्य थी पर फोन रखते-रखते ही रुलाई फूट पड़ी. मन जानता था कि यह होने ही वाला है. गुजरात में आए भूचाल में लाखों प्रभावित हुए हैं, हजारों की मौत हो गयी. एक झटके में वे गहरी नींद में सो गये. जीवन कितना क्षण भंगुर है. इलाहबाद में महाकुम्भ में एक ओर लाखों स्नान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गुजरात के लोग दुःख और पीड़ा में डूबे हुए हैं. इन्सान प्रकृति के आगे कितना बेबस है.

कुछ देर पूर्व मंझली भाभी से बात की. आज वहाँ सभी फूल चुनने गये हैं. आज चौथा रस्म है, शनिवार को दसमी और छह को तेहरवीं. कल दिन भर जून बेहद उदास दिखे, उन्हें ऐसा देखकर उसने सामान्य रहने का प्रयास किया, पर सहज रूप से रहना अलग बात है कोशिश करना अलग. नन्हे का स्कूल आज बंद है, आज बसंत पंचमी है. सरस्वती पूजा का आयोजन जगह-जगह किया जा रहा है.

जीवन के सच बहुत कड़वे होते हैं, मानव आँखों पर रेशमी पर्दे डाले रहता है पर सच्चाई सारे पर्दे उठा सामने आ खड़ी होती है. मृत्यु भी एक ऐसी सच्चाई है. आज बापू की पुण्य तिथि भी है ‘शहीद दिवस’, सो आज मरण दिवस ही है. पर मृत्यु के बाद नया जन्म भी तो होता है. आत्मा को नव शिशु का कलेवर मिलता है एक बार फिर मृत्यु का ग्रास बनने के लिए. इसलिए ही संतों ने इस चक्र से मुक्ति को ही मानव का अंतिम लक्ष्य माना है. कितने जन्मों में कोई कितना कुछ पाए अथवा खोये, अंततः मृत्यु सब समेट लेगी. किन्तु इससे जीवन की महत्ता कम तो नहीं हो जाती. जीवन चाहे एक क्षण का हो या कुछ वर्षों का, अपने आप में एक उपहार है. जैसे और भौतिक वस्तुएं सदा साथ नहीं देतीं वैसे ही शरीर भी एक दिन नष्ट हो जायेगा. यही सनातन सत्य है. फूल खिलता है झरता है फिर खिलता है फिर झरता है, इससे फूल की महत्ता कम तो नहीं होती. जिसका जितना साथ मिला है उतना ही कृतज्ञ होते हुए उसे सम्मान देना चाहिए. गुजरात के उन हजारों लोगों को जो भूकम्प से आहत हुए हैं या मृत हो गये हैं, सच्ची श्रद्धांजलि वे सैनिक और समाज सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता दे रहे हैं जो दिन-रात वहाँ काम में जुटे हैं.


मन के आकाश पर काले घने बादल छा गये कहीं कोई रोशनी की लकीर नहीं, फिर एकाएक बादल छंटने लगे और नीला आकाश धूप की चमक लिए स्पष्ट हो उठा, यह आकाश जिस तरह है नहीं पर दीखता है, उसी तरह मन का यह भ्रम उहापोह है नहीं, दीखता है. सब कुछ स्वप्नवत है आज जागरण में फिर शरीर की अनित्यता और परमात्मा की नित्यता के बारे में सुना, वर्षों से सुनती आ रही है कि देह मरण धर्मी है. लगता था कि समझ भी लिया है पर ऊपर-ऊपर से समझना और उसे वास्तव में जानना, इन दोनों में काफी फर्क है. पता नहीं कहाँ से यह दुःख मन में आकर बैठ गया है जो माँ के इस तरह चले जाने से ही उत्पन्न हुआ है. पहले-पहल लगा था कि मन सम्भला रहेगा पर पिछले दिनों की तरह उनकी स्मृति के अलावा कोई और बात मन में नहीं टिकती. शायद उसे स्वयं को ज्यादा समय देना चाहिए, धीरे-धीरे सब स्वयं ही सामान्य हो जायेगा. जून भी आजकल बहुत चुप रहते हैं. कल जब वह आये और यह बताया कि वे नहीं जा रहे हैं तो उसे बहुत दुःख हुआ. उन दोनों में से एक को वहाँ पहुंचना है ऐसा निर्णय वे कर चुके थे क्यों कि नन्हे को ले जाना ठीक नहीं होगा. कल उसके स्कूल में कवि सम्मेलन प्रतियोगिता थी. उसका हाउस अंतिम स्थान पर रहा, उसने भाग लिया और आज working model competition में भी भाग ले रहा है. सुबह दो सखियों के फोन आये उनके साथ भी वही बात हुई. गुजरात में मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है. प्रकृति निर्मम है. 

Friday, September 5, 2014

कोहरे का जाल


आज पूरे एक हफ्ते बाद डायरी खोली है. उस दिन जून उसे छोड़ने एयरपोर्ट गये थे. वह दिल्ली पहुंच गयी थी शाम साढ़े सात बजे, घर पहुंचते नौ बज गये. अगले दिन सुबह साढ़े चार बजे ही भाई के साथ टैक्सी स्टैंड गयी. कोहरा घना था और स्टेशन तक के रास्ते में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, लग रहा था कोई स्वप्न चल रहा है. उड़ान के दौरान भी और ट्रेन में भी सारा वक्त मन में एक वही ख्याल मंडरा रहा था. कोहरे के कारण उनकी ट्रेन बहुत रुक-रुक कर चल रही थी. दोपहर बाद वे गन्तव्य पहुंचे, मंझला भाई लेने आया था पर उसकी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया, भागदौड़ में उसे भरवाने का वक्त ही नहीं मिला था, बस से वे अस्पताल पहुंचे. जहाँ शेष सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. थोड़ी देर में ही अस्पताल गयी, उनको ऑक्सीजन दी जा रही थी और भी कई नलियां उनके विभिन्न अंगों से जुडी थीं, देखकर उसकी आँखें भर आयीं. वह उसे देखकर पहले तो खुश हो गयी थीं, जिसे उन्होंने ताली बजकर भी दर्शाया पर उसके आँसूं देखकर दुखी हो गयीं. वह बोल नहीं सकती थीं. उन्हें इतनी पीड़ा सहते देख सभी दुखी हैं पर कोई कुछ नहीं कर सकता. उसके बाद वह चार दिन वहाँ और रही. एक बार माँ ने उसका लिखा संदेश पढ़ा और आशीर्वाद भी दिया. लिखना भी चाहा पर इस बार उनकी लिखाई ठीक नहीं रह गयी थी. एक दिन बाद वह वापस दिल्ली आ गयी और अगले दिन असम, जहाँ जून और नन्हा उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे.

कल रात भर उसे वही स्वप्न आते रहे. ऑक्सीजन, हीमोग्लोबिन, ICU, और डॉक्टर, अस्पताल शब्द कानों में गूँजते रहे. एक बार माँ को बोलते हुए भी सुना. वह ठीक होकर आ गयी हैं और किसी बारे में पिता के सवाल का जवाब दे रही हैं. कल शाम वे लाइब्रेरी भी गये और माँ की बीमारी पर जानकारी हासिल की. उन्होंने बहुत कष्ट सहा है इस रोग के कारण. ईश्वर ही अब उनका सहायक है. उसका सिर भारी है, मस्तक के दोनों ओर की नसें तन गयी हैं. कल शाम को जून को तनावमुक्त रहने का उपदेश दे रही थी पर स्वयं तनावमुक्त रहना कितना मुश्किल है. आज सुबह सुना विजयाराजे सिंधिया तेईस दिन ICU में रहने के बाद स्वर्ग सिधार गयीं तो दिल धक से रह गया. माँ को भी अस्पताल में दो हफ्ते हो गये हैं. अभी-अभी छोटी बहन को फोन किया, शायद वह व्यस्त थी, फोन नहीं उठाया. जून भी उसे उदास देखकर परेशान हो गये हैं. उसे स्वयं को सामान्य रखने का प्रयास करना चाहिए, जिस बात पर उनका कोई वश नहीं है उसके बारे में चिन्तन करते रहने से क्या लाभ ? आज से संगीत का अभ्यास शुरू करेगी, मन को व्यस्त रखने से ही वह शांत रहेगा. सबसे बड़ा दुख संसार में है इच्छा, इच्छा पूरी हो जाये तो दूसरी उत्पन्न होगी, पूरी न हो तो दुःख देगी.

“कबिरा सब ते हम बुरे हम तज भलो सब कोई
जिन ऐसा करि देखिया मीत हमारा सोई”

मन को जितना धोते हैं उतना पता चलता है कि मैल की कितनी परतें चढ़ी हैं.


Thursday, September 4, 2014

जीवन और मृत्यु


कल दिन भर एक अजीब सी पशोपेश में गुजरा, जून के फोन भी कई बार आए. पहले वह मान गये कि नन्हा और मुझे वहाँ पहुंच जाना चाहिए पर रात को अस्पताल पहुंचकर उन्होंने न आने के लिए कहा. वह उसे व नन्हे को परेशानी से बचाना चाहते हैं. सभी लोग तो वहाँ हैं ही, दीदी, छोटी बहन, सभी भाई, पिता और जून. माँ की हालत में थोड़ा सुधार तो हुआ है पर अभी भी ऑक्सीजन दी जा रही है और वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ेगा, जिसके लिए बड़े हॉस्पिटल में शिफ्ट करने की जरूरत थी. अब तक शायद यह कार्य हो चुका होगा. जून का फोन आने पर ही पता चलेगा. उसके मन में विचारों का एक प्रवाह चल रहा है. देह का संबंध तो एक न एक दिन छूट ही जाना है, मृत्यु के पाश से कोई नहीं बच सकता पर आत्मा का संबंध अमर है, उसका संदेश अवश्य माँ तक पहुंच रहा होगा. वह इस समय अस्पताल में जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रही हैं, किसकी जीत होगी कहा नहीं जा सकता. वह किसी भी फैसले के लिए तैयार है. उनका दुःख कम होगा. पिछले कई महीनों से जो परेशानी वह झेल रही थीं, उससे मुक्त हो जाएँगी. अपने जीवन के सारे कर्त्तव्य पूरे कर चुकी हैं. कोई ऐसी बात नहीं जो उन्हें मोहयुक्त कर सके, सत्संग व शास्त्रों का ज्ञान उन्हें है. मोहमाया के जाल को समझ कर काट चुकी हैं. अंतिम यात्रा पर निकलना तो एक दिन सभी को है. यदि ईश्वर ने उन्हें कुछ और मोहलत दी तो परिवार को उसका कृतज्ञ होना चाहिए, नहीं तो उनकी अंतिम यात्रा को स्वीकार कर भावपूर्ण श्रद्धांजलि देनी चाहिए. ईश्वर पर भरोसा रखते हुए उनकी यात्रा को सुखद बनाने का प्रयत्न करना चाहिए.

इस समय उसे जून के फोन का इंतजार है, कल रात फिर उन्होंने आज भी न चलने के लिए कहा, उसे उनकी बात माननी चाहिए पर अपने मन का क्या करे ? दीदी से बात की तो लगा उसे वहाँ पहुंच जाना चाहिए. माँ बहुत बेचैन हैं उसके बारे में पूछ रही थीं. रात भर सो नहीं पायीं, भाई ने बताया. उनकी तबियत काफी खराब है यह तो स्पष्ट ही है, इसके बिना कोई ICU में नहीं रहता. वह यह लिख ही रही थी कि जून का फोन आया , कल वह स्वयं ही आ रहे हैं, रात को फिर फोन करेंगे. उनसे बात करके मन हल्का हो गया, उनकी आवाज में कोई जादू है जो उसे अपने वश में कर लेती है. उनसे बात करने के बाद ही नित्य के कार्य-कलाप में व्यस्त हो पायी. ध्यान में ईश्वर से सलाह मांगी, वह भी जून की तरफ हैं.

सुबह से दो बार फोन आ चुका है. उनकी फ्लाइट लेट है. सुबह छोटी भाभी से बात हुई, माँ की तबियत जो सुधर रही थी, फिर खराब हो गयी है. अभी-अभी फोन की घंटी बजी तो दिल धक से रह गया, कहीं वही खबर न हो जिसका डर हमेशा बना रहता है. कल रात को सोये कुछ ही देर हुई थी कि किसी के फुसफुसाने की आवाज आई, दिल जोरों से धड़कने लगा. रात को स्वप्न में देखा, माँ नहाने गयी हैं, कपड़े धोने की आवाज आ रही है, पिता ने उसे उन्हें बुला लाने को कहा. उसने कपड़े धोने को मना किया तो बोलीं, हाँ, सिर में दर्द भी है. आवाज कमजोर थी. दूर होने की वजह से वह उनसे मिल नहीं पा रही है जबकि उसका मन हमेशा वहीं रहता है. नन्हा आज सुबह समय पर उठ गया, सभी काम समय पर किये फिर थोड़ा पहले ही बस स्टैंड चला गया. वह घर में रहता था तो चहल-पहल सी रहती थी पर अब न जाने क्यों मन रुआँसा सा हो रहा है. अभी-अभी फोन फिर से आया है. उनकी फ्लाइट कैंसिल हो सकती है. आज उन्हें  दिल्ली में ही रहना पड़ सकता है.

जून आज सुबह आ गये. कल उनकी फ्लाइट गोहाटी में ही टर्मिनेट हो गयी. आगे की यात्रा रात्रि बस से करनी पड़ी. आज उसे जाना है, पर फ्लाइट का कोई भरोसा नहीं है, देर से चलेगी. बड़े भाई दिल्ली में उसे लेने आयेंगे. आज ही उन्हें एक विवाह में भी जाना है. यही है जीवन की निस्सारता, दुनियादारी तो निभानी ही पड़ेगी. जून सुबह-सुबह ही ऑफिस चले गये. इतने दिनों की यात्रा के बाद भी वह अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर ठीकठाक हैं. उसे भी इस बल की बहुत आवश्यकता पड़ने वाली है. पहली बार हवाई जहाज से अकेले सफर करना है. सुबह नन्हे से बात भी नहीं कर पायी.



Tuesday, September 2, 2014

अस्पताल में


नन्हे का होमवर्क अभी भी खत्म नहीं हुआ है, उसका स्कूल अगले हफ्ते खुल रहा है. आज सुबह एक अच्छी बात सुनी, यदि किसी को आध्यात्मिक उन्नति करनी है तो अपनी आस्था, निष्ठा और श्रद्धा को एक बिंदु पर केन्द्रित करना होगा, भटकाव कहीं पहुंचने नहीं देगा, जैसे कोई किसान अपने खेत में जगह-जगह गड्ढे खोदता है, उसका विश्वास डगमगाता रहता है और इस तरह कुआँ कभी पूरा नहीं हो पाता. इसी तरह साधक कभी योगी, कभी भक्त, कभी वेदांती, कभी उपासक बन जाता है, उसकी निष्ठा एक तरफ न होकर अनेक ओर बिखर जाती है. उसका लक्ष्य कभी नहीं मिलता. ईश्वर के सान्निध्य का अनुभव वह क्षणिक रूप से तो करता है पर सदा उसी में अनुरक्त नहीं रह पाता.

आज के दिन की शुरुआत जून से फोन पर बात के साथ हुई, नैनी आज फिर छुट्टी पर है सो सुबह के काम करते-करते ग्यारह बज गये हैं, आज दोपहर को वह सखी अपने बेटे के साथ आएगी. पड़ोसिन का फोन आया, आजकल वह उसका ज्यादा ध्यान रखने लगी है. जब से उसे सूट लाकर दिया है, लिखकर वह मुस्कुरा दी. आज का प्रवचन करुणा और मैत्री पर था. सुनते समय कई उद्दात भाव हृदय में उठते हैं, संवेदनशीलता, करुणा, सहानुभूति और मैत्री. यही गुण मानव को मानव बनाते हैं. छोटी बहन से बात हुई, उसे बच्चों से अलग रहना मान्य  नहीं, चाहे बीच-बीच में परेशानी खड़ी हो, फ़िलहाल उसकी फील्ड ड्यूटी नहीं है. ‘योग वशिष्ठ’ में श्रीराम की जीवनचर्या का, उनके विषाद का वर्णन पढ़कर मन अभिभूत हो जाता है. रात को वह श्री अरविंद का ‘वेद रहस्य’ पढ़कर सोती है, अभी तक भूमिका ही चल रही है. 

आज उनका फोन डेड है सो जून से बात नहीं हो सकी, वह अवश्य ही प्रतीक्षा कर रहे होंगे. सुबह एक बार तो नींद खुल गयी पर वह पंछियों की आवाजों को सुनने का प्रयत्न  करने लगी, उसी समय हल्का उजाला भी खिड़की से स्पष्ट होने लगता है. सुबह ही सुबह लेडीज क्लब की एक सदस्या का फोन आया, उन्होंने शाम को बुलाया है. ‘हसबैंड नाईट’ के कार्यक्रम के लिए हिंदी में ‘नवरस’ पर कुछ लिखना है, ऐसा उन्होंने कहा. ‘जागरण’ सुना पर मन स्थिर नहीं रह पाया, कभी पढ़े साहित्य के नवरसों में डूबने लगा. महाकुम्भ पर समाचार देखे, दुनिया का विशालतम धार्मिक मेला कुम्भ करोड़ों लोगों के आगमन से सभी के आकर्षण का केंद्र बना है. मेले की व्यापकता का अनुमान लगाना कठिन है. भविष्य में कभी अवसर मिला तो वह अवश्य जाएगी. विदेशी पर्यटकों को योगासन करते व संगम में डुबकी लगाते देखना एक अनोखा अनुभव था. नागा साधुओं का जुलुस भी शोभनीय था. सदियों से यह मेला हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है, ईश्वर की अनोखी कृतियों में यह भी एक है. दोपहर को वह बच्चा आयेगा, पढ़ने में अच्छा है, उसका लेख भी स्पष्ट है.  

कल रात वे सो चुके थे, पता नहीं कितने बजे होंगे, फोन की घंटी बजी, उसने फोन उठाया पर उधर से कोई आवाज नहीं आई. अजीब सी बेचैनी मन पर छाई थी. कुछ देर बाद पुनः घंटी बजी तो उसने जानबूझकर फोन नहीं उठाया. फिर फोन शांत हो गया. कोई बुरी खबर होगी, इसका भी अंदेशा था, अजीब से ख्यालों ने मन को घेर लिया था. रात के सन्नाटे में धीमी आवाजें भी स्पष्ट सुनायी देती हैं. जून के बिना रात डरावनी लग रही थी. ईश्वर भी कहीं दूर चले गये थे, ईश्वर जिसको दिन में अपने आस-पास ही महसूस करती है. फिर पता नहीं कब सो गयी. नन्हा दूसरे कमरे में आराम से सोया था. सुबह फिर फोन की घंटी से ही नींद खुली, बड़ी भाभी का फोन था, माँ अस्पताल में हैं. वे लोग शताब्दी से घर जा रहे हैं. जून से बात हुई तो पता चला, वह भी यहाँ न आकर उनके साथ ही जा रहे हैं. उन्होंने कहा, वहाँ पहुंचकर खबर देंगे.