Friday, October 31, 2014

प्रेमचन्द की कहानियाँ


आज उसका जन्मदिन है, सुबह से कई फोन आ चुके हैं. सखियों के, भाई बहनों के, पिता का फोन और मामीजी का जवाब भी आ गया है. सुबह से कई बार माँ को याद कर चुकी है, उनका फोटो देखती है तो हाथ अपने आप ही जुड़ जाते हैं. शाम को छोटी सी पार्टी है. आज सुबह एक कहानी टाइप की, नन्हे को हिंदी में भावार्थ लिखाया, अब वह सो रहा है वरना यह समय भी उसी के साथ बीतता. कुछ देर पहले सोचा क्यों न समय का सदुपयोग करते हुए बैठक की थोड़ी सफाई ही कर दी जाये पर हाथ के झाड़न से वह थर्मस कप टूट गया जो मंझले भाई ने विवा हके अवसर पर उसे तोहफे में दिया था. खैर..पर उसका कुछ असर और कुछ इसका कि बगीचे में पत्ते बिखरे हैं, नैनी ने अभी तक सफाई नहीं की है, मन उत्साहित नहीं है. जन्मदिन पर क्या उदास होने का भी हक नहीं है ! यूँही मन भी बदलते मौसमों की तरह होता है जैसे कोई बाहर के मौसम का साक्षी रहता है उसमें अपनी इच्छा से फेर बदल नहीं कर सकते वैसे ही भीतर के मौसमों को साक्षी भाव से देखते रहना होगा. शाम को कोई दूसरा मौसम आ जायेगा. जून और नन्हा दोनों ने उसे बहुत सुंदर कार्ड्स दिए हैं. उसने सोचा एक कविता यदि लिखे तो मन फिर अपने आप में लौट आए !

न ही परसों और न ही कल वह ‘जागरण’ सुन सकी, आज सुना है. मौसम की तरह मन शांत है. रात भर होने के बाद इस समय वर्षा रुकी हुई है. मन में ईश्वर के लिए यानि अच्छाई के लिए, सत्य के लिए चाह बनी रहे, स्मृति बनी रहे तो संसार का आश्रय नहीं लेना पड़ेगा. निर्भयता का भाव उदय होगा. ईश्वर कार्य का प्रेरक भी है, निर्वाहक भी है, और फलदाता भी है. उसकी स्मृति बनाये रखें तो जीवन की नाव अबाध गति से चलती रहेगी. मन. बुद्धि और अहंकार के शोर में ईश्वरीय प्रेरणा सुनाई नहीं पडती. वह इतने निकट है कि उससे निकट कोई और नहीं. वह हर क्षण सद्कार्यों के लिए प्रेरित करता है लेकिन मन अनसुनी करता है. और संसार के शोर को सुनने के लिए अपने को व्यस्त रखता है.

आज दीदी का जन्मदिन है, सुबह उन्हें फोन पर शुभकामनायें दीं. पिता से भी बात हुई, मकान का सौदा हो गया है. इसी महीने रजिस्ट्री भी हो जाएगी, सम्भवतः जून को जाना पड़े. इस समय नन्हा और वह दोनों घर पर नहीं हैं. वह अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता के मूड में नहीं है. बाबाजी की बात पूर्णरूप से सही है जब कोई ईश्वर का स्मरण करता है तो अंदर का स्रोत अपने आप खुल जाता है. इधर जन्मदिन के बाद से वह सुबह ठीक से ध्यान आदि नहीं कर पा रही है, हो सकता है इसका कोई शारीरिक कारण भी हो, वही हरमोन का चक्कर, खैर इस महीने की साहित्य अमृत भी आ चुकी है, प्रेमचन्द की कहानियों की किताब भी लायी है, सो हिंदी का वातावरण तो है घर में और नन्हे को हिंदी भी पढ़ा रही है पर लिखें के लिए समय व एकांत चाहिए जो फ़िलहाल नहीं मिल पाते, थोड़ी ही देर में वे दोनों आते होंगे. लंच का समय होने वाला है.




बादल का टुकड़ा


वाणी मधुमंडित, सुवासित हो जिसमें अहंकार की गंध न हो, स्वार्थ की महक न हो. ऐसी वाणी निर्वासनिक मन से ही उपजती है. निष्कपट भक्ति भी ऐसे ही मन में जगती है. प्रार्थना भी ऐसी ही भावदशा में  की जा सकती है. ऐसा मन सभी तरह के विक्षेपों को पचाने योग्य बनता है. कल रात वह प्रार्थना करते-करते सोई. स्वप्न में कन्याकुमारी के दृश्य देखे. सुबह उठी तो मन शांत था. बाबाजी कहते हैं देर सबेर ईश्वर सबके हृदयों में अवश्य प्रकट होगा, उसके स्वागत के लिए मन का दरवाजा हमेशा खुला रखना होगा, मन को निष्कपट, स्वच्छ और कोरा रखना होगा. कामना हर पल नीचे गिराने का प्रयत्न करती है और प्रार्थना ऊपर उठाने का. कल शाम कुछ पुरानी कविताओं को पूर्ण किया. कादम्बिनी को भी दो कविताएँ भेजी हैं, उसके अंतर में कई कविता संग्रह अभी भी दबे हुए पड़े हैं. थोड़ा सा प्रोत्साहन मिले तो बाहर आ जायेंगे, न भी मिले तो कोई हर्ज नहीं, अपने सुख के लिए कविता रचना तो सदा ही जारी रहेगा !

कल अंततः उसकी इच्छा फलवती हुई जून और वह मार्किट गये, उसके जन्मदिवस पर पहनने के लिए हल्के हरे रंग की एक ड्रेस लाये, थोड़ी लम्बी है उसे ठीक किया जा सकता है. आभी आज और कल दो दिन का वक्त शेष है. कल उसने अपना इमेल अकाउंट खोला. आज सुबह हरिद्वार मामीजी के लिए पहले इमेल लिखा, अभी भेजा नहीं है. नन्हे का आज टेस्ट है. गर्मी पूर्ववत है. सुबह नींद खुली तो स्वप्न में कम्प्यूटर, इमेल यही सब देख रही थी, उसके चेतन मन से ज्यादा अवचेतन मन पर इसका प्रभाव पड़ा दीखता है. आज बाबाजी और गोयनका जी दोनों को कपड़े प्रेस करते-करते सुना, एक जो कहता है दूसरा उसका विपरीत कहता हुआ सा लगता है पर दोनों का लक्ष्य एक है. गोयनका जी का मार्ग ज्यादा कठिन है, बाबाजी का बिलकुल सहज ! सहज भाव से अपने भीतर के आत्मदेव पर भरोसा करना है. सुख में ललक पैदा न हो बल्कि सुख बांटने की प्रवृत्ति हो और दुःख में सिकुड़े नहीं, सम भाव रहे यही उनकी शिक्षा का सार है. जैसे-जैसे व्यवहार में समता आती जाएगी, ममता छूटती जाएगी और एक दिन मन सुख-दुःख से ऊपर उठ जायेगा. देह या मन में कोई पीड़ा हो तो यह याद रखना होगा कि यह अनित्य है, सदा रहने वाली नहीं है. परसों उसके जन्मदिन के दिन ही लेडीज क्लब की मीटिंग है, एक सीनियर सदस्या का विदाई दिन भी है. पर वह नहीं जा पायेगी, दो साल पूर्व जब वह जाते-जाते रह गयी थीं, उनके लिए जो लेख लिखा था वह ऐसे ही रखा रह जायेगा. जून और नन्हे को मनाना आसान नहीं होगा, सो जो हो रहा है उसे होने देना चाहिए, वैसे भी इतने वर्षों में कुल मिलाकर दस-पन्द्रह बार से ज्यादा नहीं मिली होगी उनसे, उनके लिए शुभकामनायें घर से ही भेज सकती है.


जो हमारे पास है उसका महत्व जानें और जो नहीं है उसके पीछे न भागें तो जीवन में सुख ही सुख है. लेकिन जो भी है वह सदा के लिए नहीं रहेगा यह भी याद रखना है. लक्ष्मी सदा खड़ी रहती है और सरस्वती सदा बैठी रहती है. ज्ञान कभी साथ नहीं छोड़ता लेकिन धन-दौलत व वस्तुएं साथ छोड़ भी सकती हैं. सत्संग को सुनकर गुनने से ही उसका लाभ मिलता है. “एक बुढ़िया थी वह बचपन में ही मर गयी”. यह कहानी बताती है कि सारी उम्र लोग नादान ही बने रहते हैं. ईश्वर स्मरण बना रहे तो यही नादानी समझदारी में बदल जाती है. कल वह ध्यान में ज्यादा देर तक नहीं बैठी, इतर कार्यों में लग गयी सो रात को मन अशांत था, नींद नहीं आ रही थी, कोई कारण नजर नहीं आ रहा था. आज बाबाजी के संगम तट पर दिए गये प्रवचन की रिकार्डिंग सुनाई गयी. हजारों लोगों को पल में हँसा व रुला सकने की सामर्थ्य है. वह लोगों के मन में स्थित ईश्वर को जगा देते हैं. मन उच्च केन्द्रों की ओर चला जाता है, दुनियावी बातें सारहीन लगती हैं. सभी के प्रति मन प्रेम से भर जाता है. आज सुबह उसने बगीचे में काम करने की इच्छा व्यक्त की पर धूप तेज थी, न जाने कहाँ से बादल का एक टुकड़ा आ गया. हवा भी बहने लगी. आधा घंटा वह काम कर सकी. कल उसके जन्मदिन पर भी मौसम अच्छा हो जायेगा, ऐसा उसका पूर्ण विश्वास है.   

Thursday, October 30, 2014

मॉडेम जरूरी है



हर क्षण यदि ईश्वर का स्मरण बना रहे तो मन अपने आप शांत रहेगा, जब उसके प्रेम में हृदय डूब जाये तो संसार मन में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि जब ईश्वरीय प्रेम की वीणा की झंकार गूँजती हैतो सारा ध्यान वहीं लग जाता है. आज भी उन्हें उठने में देर हुई, जून ने ही उसे उठाया. कल शाम जून और नन्हा एक मित्र के साथ कम्प्यूटर में नई हार्ड डिस्क लगाने में व्यस्त थे, वह अकेले टहलने गयी, शाम का धुंधलका छा चुका था और हवा शीतल थी. बातूनी सखी का फोन आया वह अपने पुत्र की हिंदी को लेकर परेशान है, वह खुद इतनी अच्छी हिंदी बोलती है फिर भी अहिन्दीभाषियों को कुछ दिक्कत तो आती ही है. कल रात मूसलाधार वर्षा हुई, इस समय धूप निकल आई है. कल उन्हें इंटरनेट की सर्विस भी मिल गयी पर मॉडेम ठीक न होने के कारण सर्फिंग नहीं कर सके. नन्हे का आज केमिस्ट्री का टेस्ट है. आज लिखने की शुरुआत ईश्वर स्मरण से की थी पर उसे भूलकर कलम संसार में विचरण करने लगी है. नाव पानी में रहे तो ठीक है पर पानी नाव में आ जाये तो विनाश ही होगा न, मन यह जो खिंचा-खिंचा सा उड़ा-उड़ा सा रहता है, इसी कारण !

अहंकार की हवा मन रूपी गेंद को ठोकर खिलवाती रहती है. जो हम इस दुनिया को बांटते हैं, वही हमें मिलता है. सारा ब्रह्मांड एक प्रतिध्वनि है, प्रतिबिम्ब है. हम जैसा देखना चाहते हैं, दिखाना चाहते हैं वही हमें दिखायी पड़ता है. नम्रता धारण करें तो अहंकार अपने आप छूटता जायेगा, विनीत होकर इस हृदय रूपी घर को ईश्वर को अर्पित करें तो कृपा अपने आप मिलेगी. आज बाबाजी कातर स्वर में ईश्वर को पुकार रहे थे, ऐसी भावपूर्ण प्रार्थना को कौन अनसुना कर सकता है. ईश्वर उनके हृदय में आ बसे हैं, वह श्रोताओं को सिखाने के लिए ही ऐसी प्रार्थना कर रहे हैं ! उसने भी प्रार्थना की, इस जग से विदाई हो उसके पूर्व ही वे ईश्वर का अनुभव कर सकें, बुढ़ापा आये अथवा चिता की अग्नि उन्हें जलाए इसके पूर्व ईश्वर का ज्ञान उनके अज्ञान को जलाकर खाक कर दे. मोहपाश के जाल टूट जाएँ, बंधन खुल जाएँ औए वे पूर्ण मुक्त हो जाएँ. आजाद पक्षी की तरह वे निस्सीम आकश में उड़ान भरना सीख लें, यह जग उनके लिए बंधन का कारण नहीं बल्कि विकास का, उन्नति का साधन बन जाये ! आज वर्षा अभी तक आ रही है, खिड़की से शीतल हवा आकर पंखे की हवा को भी ठंडा कर रही है. नन्हे को आज पढ़ने नहीं जाना है. सोमवार को होने वाले इम्तहान की तैयारी करनी है. आज सुबह वे पहले की तरह पांच बजे उठे. ससुराल से फोन आया, मायके से कोई खबर नहीं आई है. न ही किताब के बारे में कोई खबर मिली है. अगले हफ्ते वे फोन करेंगे. कल शाम फिर जून मॉडेम लगाने में व्यस्त थे, शायद खराब है. वह टहलने गयी और पड़ोसिन से मिल आई, वह स्वस्थ नहीं है, घर जाकर पूर्ण स्वास्थय परीक्षण कराएगी. आजकल मन दुनियादारी में ही उलझा रहता हो सो उसकी कलम यही सब लिखी जा रही हैं, लेकिन ईश्वर हर क्षण उसके निकट है, इन सारी उलझनों के बीच वही तो एक सुलझन है !


कल दांत के उस एक्सरे की रिपोर्ट मिल गयी जो परसों कराया था, डाक्टर ने कहा है RCT करना पड़ेगा, पिछले साल भी जून महीने में घर से वापस आने पर करवाया था. कल रात डायरी में पढ़ा, लगभग १०-१२ दिन लगे थे फिर कुछ हफ्ते बाद परमानेंट फिलिंग हुई थी, उसी सब प्रक्रिया से अब फिर गुजरना होगा, लेकिन इस वर्ष वह ज्यादा जानती है सो तकलीफ कम होगी. आज जागरण में अद्भुत वचन सुनने को मिले, सुबह उठकर प्रभु को नमस्कार करें और दिन भर के लिए उससे आशीष की कामना भी..अपने विश्वास को त्याग पर केन्द्रित करें न कि संग्रह पर. ईश्वर से मिलने जाना हो तो गुनगुनाते हुए उमंग सहित, आह्लाद व उल्लास से भरा मन व चेहरा लिए जाना चाहिए. पूजा करना व्यर्थ होगा जब पहले से ही पूजा की समाप्ति का क्षण नियत कर लेते हैं. सांसारिक जेल से मुक्त होकर जब उस मुक्त से मिलने का क्षण आये तो क्यों न उस मुक्तावस्था को जीभर के महसूस करें. चौबीस घंटों में से कुछ समय तो उल्लसित, उमंग युक्त हृदय लिए उस परमेश्वर की निकटता में गुजारें ! मन तो प्रलोभनों की ओर हर पल दौड़ता रहता है, न चिन्तन करने योग्य विषयोंका चिन्तन करता है, ऐसे मन को समझा-बुझा कर अपने पास बैठाना आ जाये तो आराधना सच्ची होगी.   

Tuesday, October 28, 2014

सिन्धी पुलाव


मोह सदा दुखदायी होता है, सन्तान के मोह में पड़कर माता-पिता कम संताप नहीं पाते. मोहवश उन्हें अपनी सन्तान में वे कोई दोष देखना ही नहीं चाहते. ऐसे में वे स्वयं के साथ साथ सन्तान को भी दुःख की ओर ले जाते हैं. इस मोह के पीछे होती है आशा, सन्तान से स्नेह और सम्मान पाने की आशा, संसार में भी वे सन्तान द्वारा सम्मानित होना चाहते हैं. यदि निस्वार्थ भाव से सन्तान के प्रति वे अपने कर्त्तव्यों का पालन करें, उसे अपने मार्ग पर जाने की स्वतन्त्रता दें यही दोनों के लिए श्रेष्ठ है. इस जगत में यदि कोई अपना है तो वह है नितांत अपना आप. आत्मा ही अपनी है. सुख-दुःख का केंद्र वही होनी चाहिए. बाहरी वस्तुओं, व्यक्तियों, घटनाओं के द्वारा स्वयं को सुख-दुःख के झूलों में झूलने देना आत्मा या ईश्वर का अपमान है. एक न एक दिन सभी को इस सत्य का सामना करना है, मृत्यु का पल कौन सा होगा कोई नहीं जानता. ये जो थोड़े से दिन एक-दूसरे के साथ बिताने को मिले हैं, वे तप-तप कर नहीं सहज होकर जीने हैं. जो कुछ जैसा है वैसा ही स्वीकारें. मन को बिगड़ने न देना ही समझदारी है. यह दुनिया सिर्फ उनके लिए नहीं बनी है, दिए को तो बुझना ही है, तूफानों का सामना करते हुए वह उतनी देर जला क्या यह आश्चर्य की बात नहीं ! ईश्वर के बिना कोई विश्रांति स्थल नहीं, वही उनकी कामनाओं का, आकांक्षाओं का केंद्र होना चाहिए, मन उसी की शरण ले और किसी का न आश्रित हो न कभी अपने कर्त्तव्य को भूले. हृदय और वाणी जब एक हो तो प्रार्थना सफल होती है. ईश्वर निकटतम है, उससे निकटतम और कोई भी नहीं !

आज ‘अमृत कलश’ में एक हास्य कवि आये थे, उन्होंने कुछ आध्यात्मिक कविताएँ भी सुनायीं, पर उनके पास कहने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था, एक ही बात को घुमा-फिरा कर कह रहे था, पर इतना तो सत्य है की ईश्वर प्रेमी थे और जो वास्तव में ईश्वर को चाहता है उसकी बातों में सत्य झलकता है. ईश्वर प्रीति के लिए कर्म करने से मानव स्वस्थ होते जाते हैं क्योंकि तब श्रम किया जाता है विश्राम पाने के लिए ! आज बाबाजी ने कहा, “जीवात्मा को इस शरीर और संसार से सुख ढूँढना व्यर्थ है, उसी तरह जैसे यात्री के लिए अजगर का सिराहना बना कर शैया करना व्यर्थ है.”

आज उनकी नींद देर से खुली, जून और उसके सिर में जो भारीपन कल सुबह से बना हुआ था, आज सुबह उठकर भी बरकरार था. परसों रात उन्होंने देर तक जागकर फिल्म देखी, उसके पूर्व जून ने सिन्धी भोजन खिलाया. पुलाव, भिन्डी और तला हुआ पापड़, दोनों का मिलाजुला असर...और शायद उसके भी पूर्व शाम को रेकी के कोर्स को लेकर उनका गर्मागर्म वार्तालाप...जिसमें कोई तत्व नहीं था या फिर इतवार की सुबह व्यर्थ ही अलसाये हुए देर से उठना. इन सबका असर यही रहा कि मन से सात्विक भाव पूर्णतया जाते रहे और तामसिकता ने अड्डा जमा लिया. कल दो बार वह क्रोध करते-करते भी सजग हुई. आज सुबह भी नन्हे को उठाने के लिए थोड़ा जोर से बोलना पड़ा. पर जगत के व्यवहार के लिए इतना खूँटा तो बांधना ही पड़ेगा. कुछ ही देर में नन्हा पढ़ने जायेगा. उसकी सखी ‘रेकी’ के बारे में विस्तार से बताने वाली था, उसे लगा शायद अब वह न बताये या यह उसके ही मन का भ्रम है. वे अपने आसपास वही देखते हैं जो मन का दर्पण दिखाता है. बहुत दिनों से संगीत अभ्यास भी नहीं किया है, शायद सिर के भारीपन का इलाज संगीत में छुपा हो !



Monday, October 27, 2014

सत्यकाम-धर्मेन्द्र की फिल्म


सुख लेने की इच्छा का त्याग कर सुख देने की कला सीख लें तो अंतर से सुख का वास्तविक स्रोत उजागर होगा, जिन वस्तुओं से भौतिक सुख मिलता है उन्हें बांटने से भी आंतरिक सुख मिलेगा. बाबाजी बहुत सरल शब्दों में मन को संयमित करने के उपाय बताते हैं, ऐसे व्यक्ति इस धरा पर हैं तभी यहाँ रौनक है वरना धरती पर सत्य के लिए स्थान कहाँ हैं. कल ‘सत्यकाम’ फिल्म देखी, वर्षों पहले इसका नाम सुना था, धर्मेन्द्र की प्रसिद्ध फिल्म है. रात को देखकर सोयी थी सपने में भी वही देखती रही. सत्य के कारण कितने दुःख उन्हें झेलने पड़े लेकिन सत्य ने ही अंततः उनकी रक्षा की. जून को भी अच्छी लगी, देर रात तक जग कर वह कम ही टीवी देखते हैं. कल गोयनका जी भी आये थे, कहा, “प्रतिक्रिया ही सुख-दुःख का कारण है, यदि पहले क्षण में कोई प्रतिक्रिया न करे तो संवेगों से बच सकता है.”

आध्यात्मिकता आखिर है क्या ? मन को खाली करना ही तो, ऐसा मन फूल की तरह हल्का होगा, निर्झर की तरह निर्मल होगा, स्फटिक के समान चमकीला होगा और ऐसे मन में उठा संकल्प शुद्ध ही होगा और वह पूर्ण भी होगा. धर्म भीतर है, उसमें टिकने की कला भी आध्यात्मिकता है, उसके बाद ही जीवन में उत्सव का आगमन होता है, अपने आसपास के वातावरण को बेहतर बनाने का प्रयत्न होता है.

आज जैन मुनि को सुना, “जीवन रहते ही जीवन का बहीखाता सही कर लेना चाहिए, जीवन का हिसाब-किताब यदि ठीक रहेगा तो मृत्यु के महोत्सव को मनाने की प्रेरणा जगेगी. मरण यदि सजगता में हो तो मन शरीर से अतीत हो जाता है और आत्मा में टिक जाता है. राम को घासफूस की कुटिया में भी चैन था और रावण को स्वर्ण महलों में भी नींद नहीं आती थी. पर न वह कुटिया रही न महल, क्योंकि यहाँ सब नश्वर है. यह मकान भी मरघट है हर क्षण प्राण मर के घट रहे हैं”.  इस समय दोपहर के तीन बजे हैं. सुबह उठे तो पिता को फोन किया. उन्होंने मकान खरीदने वालों के बारे में बातें कीं, अपनी तथा परिवार के अन्य सदस्यों की एक वाक्य में ‘सब ठीक है’ कहकर ही टाल दिया. छोटी बुआ को फोन करने का मन था पर नहीं किया. एक सखी ने कल शाम ‘रेकी’ के कोर्स के लिए पूछा था पर जून साफ मना कर रहे हैं. उसे लगता है वह भी इस वक्त इसके लिए तैयार नहीं है. आज वह पुस्तक फिर से पढ़नी शुरू की है. कल शाम नन्हे के न पढ़ने पर सखी की टिप्पणी ने उसे दो पल के लिए विचलित कर दिया था. पढ़ाई की कोई सीमा नहीं है, दसवीं में तो बिलकुल नहीं. इस वक्त वह टीवी देख रहा है. गणित और हिंदी कुछ देर पढ़ाया पर समय का पूरा उपयोग नहीं हुआ. आज कुछ नया लिखा भी नहीं.

जीवन क्या है ? इसका उत्तर छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ दास ने दिया – गति और सतर्कता ही जीवन है, प्रवाह में ही मानव प्रगति को पा सकते हैं. जिज्ञासा और जागरूकता भी जीवन है. जिस दिन हृदय में जिज्ञासा न रही वह मृत हो जायेगा. संक्षेप में कहें तो गति, जिज्ञासा और प्रयत्न ही जीवन है. आज भी वही कल का सा मौसम है. कल शाम एक फिल्म देखी, ‘हमारी बहू अलका’. अभी सुबह के आठ बजे हैं पर पंखे से गर्म हवा आ रही है. बाबाजी ने आज कहा कि शीत और ग्रीष्म को सहने की शक्ति भी शरीर में उत्पन्न की जा सकती है. गीता में भी सुख-दुःख के साथ शीत-ग्रीष्म का जिक्र भी आता है. साधक को इन छोटी-मोटी बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि मन को सम रखने का प्रयत्न सदा करते रहना चाहिए.


Sunday, October 26, 2014

विधान सभा के चुनाव


“राग और द्वेष भीतर से निकलते नहीं, परमात्मा की प्रीति को भरने से ये अपने आप निकल जायेंगे” आज बाबाजी ने सुबह यह सुंदर वचन कहा साथ ही कबीर के तीन  सूत्र बताये- जोड़ो और तोड़ो, खाली करो और भरो, याद करो और भूल जाओ. अब क्या जोड़ना है और क्या तोड़ना है, किसे और किससे खाली करके फिर भरना है, किसे याद करना है और किसे विस्मृत...ये चिन्तन का विषय है. प्रेम हृदयों में उपजे तो जुड़ना संभव होगा. अहम इसमें सबसे बड़ा शत्रु है, कोई अपना भी यदि प्रतिकूल बात कह दे तो मन कुम्हला जाता है, उस फूले हुए गुब्बारे की तरह पिचक जाता है जिसमें सूई से छेद कर दिया गया हो. इस समय शाम के चार बजे हैं, वर्षा हो रही है, आज सांध्य-भ्रमण का कार्यक्रम सम्पन्न नहीं हो पायेगा. सुबह वह उठी तो जून से कल पड़ने वाले वोट के बारे में थोड़ी बहस हुई, वह वोट देने जाना चाहती है पर जून इसके सख्त खिलाफ हैं, उनकी राय में नेताओं की वजह से ही समाज में सारी बुराइयाँ हैं. नेता लोग करोड़ों का चारा, सीमेंट, यूरिया सभी कुछ हजम कर जाते हैं. दो सखियों से बात की, दोनों सपरिवार वोट देने जाएँगी, यानि उसकी तरह सोचने वाले लोग ज्यादा हैं, पर सदा बहुमत ठीक हो यह जरूरी तो नहीं.

आज चुनाव हैं. चार प्रदेशों असम, बिहार, तमिलनाडु, केरल तथा केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी में तेरह करोड़ मतदाता वोट के अधिकार का प्रयोग करेंगे, अपने भाग्य का फैसला स्वयं करेंगे. शाहजहांपुर तथा कर्नाटका के किसी स्थान पर लोकसभा का उपचुनाव भी होगा. गणतन्त्र ही आज के समाज के लिए या किसी भी युग में सर्वोत्तम शासन पद्दति है. इसमें मानव को पूरी स्वतन्त्रता है, उसके मूल अधिकारों का हनन आसानी से नहीं किया जा सकता. आज सुबह छुट्टी के कारण वे देर से उठे सो सभी कार्य देर से हो रहे हैं. साढ़े दस होने को हैं, बाबाजी को भी ध्यान से नहीं सुना, न ही उचित ढंग से व्यायाम हो पाया न ही हारमोनियम को हाथ लगाया है. आज नाश्ते में कोटू के आटे की रोटी खायी, वर्षों बाद.. बचपन में माँ के हाथ की बनी रोटी खाते थे, व्रत के दिनों में वह इसे बनाती थीं. नन्हा इस समय केमिस्ट्री का गृहकार्य कर रहा है, जून टीवी देख रहे हैं. मौसम आज खुला है, अधिक से अधिक लोग वोट देने जा सकें इसलिए मौसम सहायक हुआ है. कल दिन भर वर्षा होती रही. इस समय चारों ओर निस्तब्धता है, कोई गाड़ी नहीं चल रही है, सिर्फ पंछियों की आवाजें रह रहकर आती हैं या कभी-कभार कोई साइकिल खड़कती हुई चली जाती है, लो, अभी-अभी एक वैनेट भी निकल गयी. नन्हे के कमरे का दरवाजा खोल कर बैठें तो ठंडी हवा हर वक्त आती रहती है तथा सड़क का आवागमन भी स्पष्ट दिखाई देता है !

बाबाजी अक्सर मंत्र की शक्ति की बात करते हैं, पर वह मंत्र जाप नहीं कर पाती, उसे ध्यान में प्रार्थना ही उच्चतर केंद्र तक ले जाने में सहायक होती है. आज सुबह भी कितनी काम की बातें उसने सुनीं. ‘भोजन मात्र पेट भरने का साधन नहीं है, इसके पीछे जीवन दर्शन होता है. रसोईघर की पवित्रता जीवन की पवित्रता बनकर सम्मुख आती है. शुद्ध और निर्मल सात्विक आहार विचारों को संस्कारित करता है. अन्न का प्रभाव विचारों पर, जीवन दृष्टि पर पड़े बिना नहीं रह सकता. भूख लगने पर खाना प्रकृति है इसके विपरीत विकृति है, मेहमान को खिलाना संस्कृति है’. व्यक्ति को बदलने का काम व्यक्ति करता है. जब कोई किसी श्रद्देय व्यक्ति को जानता, मिलता अथवा उसके बारे में अध्ययन करता है तो उसके गुणों को धारण करने की प्रेरणा जगती है. बचपन से उसके जीवन पर न जाने कितने जीवन प्रभाव डाल चुके हैं. माता-पिता, संबंधी, शिक्षक सभी से कुछ न कुछ ग्रहण किया है. उसके व्यक्तित्त्व को ढालने में पुस्तकों के अलावा इनका ज्यादा हाथ है. आज ‘अमृत कलश’ में एक अन्य कलाकार से मुलाकात हुई, ‘राजेश जौहरी’ का यह कार्यक्रम अंतर्मन को छू जाता है. आज भी बदली बनी हुई है, पंखे से ठंडी हवा आ रही है. नन्हा अभी कुछ देर पूर्व ही सोकर उठा है. रात को देर तक जगता है सो सुबह उठ नहीं पाता. कल दोनों बहनों को फोन किया, घर पर फोन करने का अब उत्साह नहीं होता, माँ तो अब सदा उसके साथ हैं, पिता सुबह-सुबह व्यस्त रहते हैं, चाहें तो वह भी कभी-कभी कर सकते हैं पर उन्हें कभी इसकी आवश्यकता महसूस नहीं हुई, पहले भी नहीं और अब माँ के जाने के बाद भी नहीं.


Wednesday, October 22, 2014

बंटवारे की याद


आज टीवी पर ‘अमृत कलश’ कार्यक्रम में कोई लेखक व समाज सेवी आये थे, पार्टीशन के समय उनके पाकिस्तान से भारत आने की बातें सुनकर उसे पिता का स्मरण हो आया. वह भी लगभग उसी उम्र के थे जब भारत आये थे. उन्होंने एक प्रसिद्द शेर सुनाया-

हम पर दुःख का पर्वत टूटा तो हमने दो चार कहे
उन पर क्या-क्या बीती होगी जिसने शेर हजार कहे

बाबाजी ने आज ईश्वर कीं शरण में जाने का वास्तविक अर्थ बताया. जहाँ से विचारों का उद्गम होता है वहाँ यदि मन विश्रांति पाना सीख ले तो ईश्वर की शरण अपने आप मिल जाती है. आजकल वह स्थितप्रज्ञ के लक्षणों पर विस्तृत व्याख्यान माला पढ़ रही है जो पिता की डायरी में लिखी है. उन्हें फोन पर धन्यवाद भी देना है पर जब तक स्वतः स्फूर्त प्रेरणा नहीं होगी फोन पर बात करना औपचारिकता ही होगी. माँ के न रहने से पत्र व फोन का उत्साह जैसे खत्म ही हो गया है. सुबह शाम उनकी आँखें उसे देखती रहती हैं. वह अब इस संसार के कर्म बन्धनों से मुक्त हो गयी हैं.

अशुद्ध बुद्धि में आत्मबोध नहीं होता, शुद्ध बुद्धि में ही यह सम्भव है. प्रज्ञा अर्थात शुद्ध बुद्धि तभी प्राप्त होती है जब मन शांत हो, निर्विचार और निर्विकल्प हो और चित्त शुद्ध हो और वह हर क्षण अपने चित्त की निर्मलता को मलिन करने के प्रयास में जुटी रहती है, फूलों को छोडकर कांटे चुनने की आदत जाती ही नहीं, अपने आप को क्रोध से रहित हुआ जानती है फिर किसी दुर्बल क्षण में क्रोध कर बैठती है. कल शाम एक सखी के यहाँ निंदा रस की भागी भी बनी, किसी अनुपस्थित व्यक्ति के बारे में चर्चा को यही कहा जायेगा न. ज्यादा बोलना भी शुरू कर दिया है जबकि मौन से ही चित्त शांत होता है. अहंकार पीड़ा है, दुःख है, नर्क का द्वार है फिर भी अहंकार पीछा नहीं छोड़ता. समय के एक-एक क्षण का उपयोग करना चाहती है पर सारे कार्य नहीं कर पाती. जून की छुट्टियाँ हों तो ऐसे भी मन बँटा रहता है. नन्हे को खांसी है पर सुबह गरारे नहीं करता, सबकी यही दशा है जो कार्य उनके लिए सुखद हैं वे नहीं करते जो नहीं करने चाहिए वही करते हैं.


कल ‘बुद्ध पूर्णिमा’ का अवकाश था पर उसने एक बार भी महात्मा बुद्ध का स्मरण नहीं किया, अनजाने में नन्हे को हिंदी पढ़ाते समय बुद्ध प्रतिमाओं का विवरण अवश्य पढ़ा था. बुद्ध की हजारों, लाखों प्रतिमाएं विश्व के कई देशों में स्थित हैं, जिनमें उनके चेहरे पर शांति का अनोखा भाव झलकता है, सोयी हुई, खड़ी और बैठी मूर्तियाँ अपने शिल्प के लिए प्रसिद्ध हैं. उनके सान्निध्य में शांति का अनुभव भी होता है. बुद्ध ने जीवन को दुखों का घर कहा था जो सत्य ही था और हर दुःख का कारण है इच्छा, इच्छाओं की उत्पत्ति संकल्पों से होती है, उनको ही नष्ट करना है. इच्छा जब अपने मूल रूप में है, बीज रूप में तभी उसका नाश आसान है, जब वह जड़ पकड़ लेती है तब उसका नाश कठिन है. इस समय उसके मन में कोई संकल्प नहीं है सिवाय आत्मबोध के संकल्प के. उसे नन्हे को सुधारने के संकल्प का भी त्याग करना होगा. जब उसे सुझावों या सलाह की आवश्यकता होगी और जब वह स्वयं इसके लिए कहेगा तभी उसे कुछ कहेगी. ज्यादा बोलना प्रभावशाली नहीं होता, मौन ज्यादा प्रभाव डालता है. इससे घर में शांति भी रहती है और मन भी संकल्प-विकल्प से परे रहते हैं. वह अपने कर्त्तव्य का पालन करती रहे, किसी पर भी अपने विचार न थोपे, इसी में उसकी व अन्य की भी भलाई है. वह अन्य चाहे कितना भी निकटस्थ हो ! हरेक के पास अपनी जीवनदृष्टि है, हरेक में वही परमात्मा विराजमान है. हरेक को वही उसके हित हेतु  मार्गदर्शन देता है. हरेक को अपना रास्ता स्वयं बनाना है. वे अपनी ऊर्जा व्यर्थ ही गंवाते हैं जब अन्यों पर अपना अधिकार समझते हैं, साधक को तो इससे बचना चाहिए, साधक की दृष्टि में सभी प्राणी समान हैं सभी उस एक पथ के राही हैं, देर-सवेर हरेक को वहीं पहुंचना है. अपनी-अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार कोई पहले तो कोई बाद में वहीं जायेगा, उस पूर्णता की ओर !    

Tuesday, October 21, 2014

अमराई की छाँव



आज असम बंद है, आसू की मांग है कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की जगह सेना की नियुक्ति की जाये. जून साइकिल से ऑफिस गये पर थोड़ी ही देर में वापस लौट आये. इस वक्त टीवी पर एक पुरानी फिल्म देख रहे हैं. सुबह-सुबह समाचारों में सुना कि डिब्रूगढ़ से बीजेपी के प्रत्याशी तथा कुछ अन्य राजनितिक कार्यकर्ताओं की उल्फा ने गोली मारकर हत्या कर दी है. वे लोग राज्य में शांति के पक्षधर नहीं लगते, चुनाव का बहिष्कार करने का कितना भयंकर मार्ग उन्होंने अपनाया है. नन्हा आज पहली बार एक आंटी से विज्ञान विषय पढने गया है, वह काफी उत्साहित है. आज लंच में वह दक्षिण भारतीय भोजन बना रही है. शाम के टिफिन के लिए जून तरबूज लाये हैं. इस समय नौ बजे हैं, धूप बहुत तेज है जैसे हजारों वाट के बल्ब लगा दिए गये हों. ऐसा ही ज्ञान का प्रकाश उनके दिलों में उदित हो ऐसी ईश्वर से उसकी प्रार्थना है.

धर्म को जीवन में उतारना होगा तभी क्रोध, मोह, अहंकार और लोभ से स्वयं को मुक्त किया जा सकता है. अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए सदा अपने आप में स्थित रहना होगा. जीवन की कहानी का पटाक्षेप हो जब वे एक मुट्ठी राख में बदल जायें इसके पूर्व ही स्वयं को जानना होगा. यदि पुकार भीतर से फूटी हो तो कभी खाली नहीं जाती. आज भी बंद के कारण नन्हे का स्कूल बंद है. मौसम कल की तरह है. जून भी एक बार वापस आकर दुबारा दफ्तर चले गये हैं. कल शाम दो मित्र परिवार आये, दिन भर बंद के कारण शाम को बाहर निकलना चाहते थे. उसने बाद में अनुभव किया वह भी दिन भर चुपचाप अपना काम करते रहने के कारण शाम को कुछ ज्यादा मुखर हो गयी थी. आज आकाश में बादल हैं. संगीताभ्यास की जगह नन्हे को आज नरोत्तमदास की एक कविता पढ़ाई. कुछ नया लिखा भी नहीं, उसके लिए भी एक खास मूड की जरूरत होती है जो नितांत एकांत चाहता है. कहीं से कोई व्यवधान न हो मन कल्पना तथा विचारों के धरातल पर विचरने के लिए मुक्त हो, तभी कुछ सृजन सम्भव है. कल रात छोटी बहन का फोन फिर आया, अब वह ठीक है. इतना तो स्पष्ट है कि वे उसकी समस्या को हल करने के विषय में कुछ भी नहीं कर सकते. हर कोई अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है और इस बात के लिए भी कि कोई अन्य उस उस पर कितना और किस तरह का प्रभाव डाल रहा है.

‘बड़ा होने की दौड़ में ही लोग अपने जीवन में द्वंद्व पैदा करते हैं. भौतिक उपलब्धियों को अपनी उपलब्धि मानकर उसके सहारे बड़ा होने का प्रयास कितना बचकाना है. मनों के बीच दीवारें तब खिंचती चली जाती हैं जब सभी स्वयं को एक दूसरे से आगे दिखाना चाहते हैं.’ आज जागरण में उपरोक्त विचार सुने. नन्हा अंततः आज स्कूल जा सका. मौसम कल की अपेक्षा ठंडा है. कल शाम माली ने नींबू का एक पेड़ बगीचे में लगाया. जीनिया की पौध भी लगा दी है. कल पेड़ से गिरी अम्बियाँ भी लायी, छोटी-छोटी अम्बियाँ देखकर बचपन के दिनों की याद हो आयी. अल्फ़ा की हिंसा का शिकार कुछ और लोग भी हुए हैं, उन लोगों के घरों में भी शोक का माहौल होगा. मृत्यु किस रूप में और कब मिलेगी कोई नहीं जानता पर असम के राजनीतिज्ञों को चुनाव से पहले बंदूक की गोली से मिलेगी इतना तो कोई भी कह सकता है.



Monday, October 20, 2014

एंथोनी रॉबिन्स की किताब


आज उसने सुना, “मन को बहते हुए पानी सा होना चाहिए, जिसमें निरंतरता हो, सत्य हो, अगर मन रुके हुए पानी सा निष्क्रिय हो जाये तो ऊर्जा चुक जाएगी. जहाँ से तन, मन तथा बुद्धि को सत्ता मिलती है, उस परमेश्वर का स्मरण सदा बना रहे, कर्मों में योगबल बना रहे. कर्म बंधन स्वरूप न हों.” सुबह उठी तो कुछ देर के लिए मन दुखाकार वृत्ति से एकाकार हो गया था पर शीघ्र ही सचेत हो गयी. ईश्वर उसके साथ है. आज भी प्रकाशक महोदय से बात हुई, उन्होंने कविताएँ पढ़ीं, सराहा भी, कुछ नये शीर्षक भी उन्होंने सुझाये, जिनमें से चुनकर दो भेजने हैं. आज भी वर्षा की झड़ी लगी हुई है, रात भर बरसने के बाद भी वर्षा थमी नहीं है. कल दोपहर उनके बाएं तरफ के पड़ोसी के यहाँ एक बीहू नृत्य और गायन मंडली आ गयी थी. शोर बहुत था, बिजली भी नहीं थी, वह कुछ पंक्तियाँ ही लिख पायी. आज से दूसरी किताब के लिए कविताएँ टाइप करने का कार्य आरम्भ करना है. एक सखी के लिए विवाह की वर्षगाँठ का कार्ड बनाना है तथा एक कविता भी उसके लिए लिखनी है. आज नन्हे की सोशल की परीक्षा है जो अंतिम है. हिंदी में वह पेपर समय पर पूरा नहीं कर पाया, उसे इन छुट्टियों में हिंदी तथा गणित नियमित पढ़ाना होगा.

कर्म अपने अहम का पोषण न करे, किसी को दुःख देने वाला न हो तो मुक्ति का कारण हो जाता है अथवा कर्म बंधन में डालने वाला होगा. मनसा, वाचा, कर्मणा जो भी हो अंतरात्मा की प्रसन्नता के लिए हो न कि अहम् को संतुष्ट करने के लिए. जीवन उस महान सूत्रधार का प्रतिबिम्ब हो, जीवन से उसका परिचय मिले, जीवन उसका प्रतिबिम्ब हो. ऐसा करने के लिए मन को संयमित करना होगा. कल शाम को Anthony Robinson की पुस्तक में भी इसी प्रकार के विचार पढ़े. यह सब आचरण में उतरे तो यात्रा पूरी हो सकती है. कलाकार का दिल पाया है तो उसकी कीमत भी चुकानी होगी. अपनी संवेदना को तीव्रतर करना होगा और भावनाओं को पुष्ट. चिन्तन करते हुए दर्शन भी तलाशना होगा और यही अध्यात्म के मार्ग पर ले जायेगा, जो भीतर से उपजेगा वही सार्थक होगा और सुंदर भी, वही शाश्वत भी होगा.

‘बीज बोते हुए सजग रहें तो फल अपने आप सही आयेगा, कर्म  करते समय सजग रहें तो उसका फल अपने आप ही सही आएगा. नीम का बीज लगाकर कोई आम की आशा करे तो मूर्ख ही कहायेगा, ऐसे ही कर्म यदि स्वार्थ हेतु, क्रोध भाव से किया गया हो तो परिणाम दुखद ही होगा.’ आज बहुत दिनों बाद उसने गोयनका जी का प्रवचन सुना. आज नन्हे का स्कूल ‘तिनसुकिया बंद’ के कारण बंद है. तिनसुकिया में सोनिया गाँधी चुनावी दौरे पर आ रही हैं. सुबह-सुबह समाचारों में सुना काश्मीर में हिंसा बढ़ गयी है तथा असम में उल्फा ने नेताओं व कार्यकर्ताओं पर आक्रमण तेज कर दिए हैं. इस बेमकसद हिंसा से किसी का भी लाभ होने वाला नहीं है. श्रीलंका में सैकड़ों सैनिक अपनी जान दे रहे हैं, अंतहीन लड़ाई जो जमीन के एक टुकड़े के लिए अपने ही देश के लोगों से लड़ी जा रही है. कल शाम ‘बंदिनी’ फिल्म देखी. नूतन का अभिनय प्रभावशाली था. वह उसे सदा से अच्छी लगती आयी है. आजकल उसका हृदय अलौकिक आनन्द से ओतप्रोत रहता है, उस ईश्वर की स्मृति बनी रहती है. जिसका स्मरण ही इतना शांतिदायक है उसका साक्षात दर्शन या अनुभव कितना मोहक होगा. लेकिन उस स्थिति को पाने के लिए अभी हृदय को विकारों से पूर्णतया मुक्त करना होगा, शुद्ध, निष्पाप, पवित्र हृदय ही उसका अधिकारी है !


आज सुबह छोटी बहन से बात की वह फिर कुछ परेशान थी, निकट के व्यक्ति को समझ पाना या समझा पाना भी कभी-कभी कितना कठिन हो जाता है. उसने प्रार्थना की, ईश्वर उनके हृदयों में प्रेम उत्पन्न करे. मानव तो निमित्त मात्र हैं, रक्षक तो वही है. वही उसे व उसके परिवार को बुद्धियोग देगा. कल शाम उसने बैक डोर पड़ोसिन को पौधों के लिए फोन किया, वह घर पर नहीं थी पर उसका संदेश उस तक पहुंच गया होगा क्योंकि अभी कुछ देर पूर्व ही उसने माली की बेटी से कुछ पौधे भिजवाये हैं, कैसे न कहे कि वह उसकी सुनता है ! आठ बजने को हैं अभी तक स्नान-ध्यान शेष है. सन्त वाणी में इतना रस आता है कि टीवी के सामने से हटने का मन नहीं होता. मन उद्दात विचारों से भर जाता है, ईश्वर के निकट पहुंच जाता है. नन्हे को कल कई बातें बतायीं, वह सुनता तो  है पर महत्व नहीं समझता. वह भी उसकी उम्र में ऐसी रही होगी. पर ईश्वर तब भी उसके साथ था.   

Friday, October 17, 2014

चिकन सूप फॉर कपल्स


कुछ नया करें, नया सोचें, नया बोलें...कुछ नया होगा तो उस पर चिन्तन होगा, बेहोशी टूटेगी, जीवन में जागरण होगा. गंगोत्री से गंगा सागर तक तो काठ का टुकड़ा भी यात्रा कर लेता है, जीवन से मृत्यु तक का सफर तो हर कोई तय कर ही लेता है. लेकिन जिसे गंगा सागर से गंगोत्री जाना है उसे जागना होगा, मृत्यु को पार करके ही वास्तविक जीवन की प्राप्ति होती है. उसे जरूरत है नेतृत्व करने की क्षमता की. जो बाधाओं को सीढ़ियाँ बनाकर ऊपर चढ़ सकता है वही ऊँचाई को छू सकता है. आदर्श और संघर्ष दोनों साथ-साथ चलते हैं. संघर्षों का सामना किये बिना आदर्श नहीं पाले जा सकते. आदर्शों पर चलने से हृदय में आह्लाद उत्पन्न होता है जो अंतर को संचित करता है. आज जागरण में दो संतों से जो सुना था उसका सार उसने अपने शब्दों में लिखा. आज नन्हे का गणित का पेपर है. कल रात उसे पढ़ाती रही. कल दोपहर को सोयी थी सो रात जग सकी. परसों रात के जागरण की कीमत कल दोपहर को सोकर देनी पड़ी थी. हर कार्य का, हर विचार का असर किसी न किसी रूप में झेलना पड़ता है. कल ‘चिकन सूप फॉर कपल्स’ में पति-पत्नी संबंधों पर कुछ मार्मिक कहानियाँ पढ़ीं थीं. सुबह तक मन स्नेह से ओतप्रोत था. जाने कैसे जून को पता चला गया और उन्होंने वर्षों बाद सुबह उसी तरह शुभकामना दी जैसे विवाह के बाद देते थे. अभी-अभी दीदी का फोन आया, उन्हें उसका खत मिल गया है. आज वे लोग ‘डाक-पत्थर’ की सैर का कार्यक्रम बना रहे थे.

जीवन में अनुशासन हो, साधना हो तभी मन का कोलाहल शांत हो सकता है और जब तक यह कोलाहल शांत नहीं होगा ‘ध्यान’ नहीं टिकेगा. ध्यान के लिए स्वयं को तैयार करना होगा. सभी तरह के कार्यों को कुछ देर के लिए तिलांजलि देकर मन को हर तरह की तरंगों से मुक्त करना होगा, नहीं तो ‘ध्यान’ में दिया गया समय व्यर्थ ही जायेगा. कल शाम को और रात तक वह उद्ग्विन थी, कारण जो भी रहे हों पर उसके लिए यह पथ पर आगे बढ़ने के बजाय पीछे जाने के संकेत थे, तभी कबीर ने कहा है, इस पथ पर वही चले जो शीश कटाने को तैयार हो, पर यहाँ वह अपना अहम् पल-पल आगे ले  आती है. कल मौसम भी काफी गर्म था, लेकिन सुख-दुःख, शीत-ग्रीष्म, मान-अपमान में एक सा रहना होगा. मौसम को इतना महत्व देने की वृत्ति बना ली तो ‘ध्यान’ में मन कैसे टिकेगा, आधा घंटे के ‘ध्यान’ से चौबीस घंटे के लिए ऊर्जा मिल सकती है, जो मन को स्थिर रखने में सहायक होगी. अभी-अभी क्लब की एक सदस्या का फोन आया, वह उन्हें पहचानती नहीं, पर फोन पर उसने बहुत प्यार से बात की. आज शाम को मीटिंग में पढ़ने के लिए कविताएँ उसे डायरी से उतार लेनी चाहिए, सम्भव है कुछ नये शब्द या भाव भी उतर आयें. कुछ पंक्तियाँ भूमिका के लिए भी लिखनी होंगीं. कल शाम को बड़े भाई का फोन आया, अगले हफ्ते वे छोटी बहन के पास हिमाचल जा रहे हैं. रात का छोटे भाई व पिता का फोन भी आया.

मृत्यु बोध को प्राप्त हुए बिना जीवन विकार मुक्त नहीं हो सकता. यदि कोई हर क्षण मृत्यु को याद रखे तो जीवन यात्रा निर्विघ्न चलेगी, आज जागरण में सन्त ने मृत्यु का प्रभावशाली शब्दों में एक कविता के रूप में वर्णन किया. जिसमें अपनी ही अर्थी के आगे आगे चलते हुए कवि स्वयं गाता है. दो दिन की गर्मी के बाद होती हुई वर्षा और बादल आज मोहक लग रहे हैं. कल की मीटिंग अच्छी रही, उसने गजल पढ़ी, कई लोगों ने तारीफ़ भी की लेकिन ज्यादातर को समझ में नहीं आयी होगी जैसे उसे असमिया भाषा की रचनाएँ समझ नहीं आ रही थीं. आज नन्हे का हिंदी का इम्तहान है. कल वह दो किताबें लायी, एक रेकी पर है और दूसरी self help पर. जून कल शाल्मीरा नामक स्थान पर फ़ील्ड ड्यूटी पर गये थे. शाम को काफी थक गये थे, सो शाम के वक्त का उपयोग केवल टीवी देखकर किया, लेकिन उसे आजकल सिवाय समाचार के कुछ भी  देखने में रूचि नहीं रह गयी है. कल दोपहर उसने पिता की दी हुई डायरी में से कुछ कोटेशन्स पढ़े जो उन्होंने ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के ‘सेक्रेड स्पेस’ से कई दिनों तक या वर्षों तक कॉपी किये हैं. कुछ बहुत प्रेरित करने वाले थे. आज फिर पढ़ेगी.  


Thursday, October 16, 2014

गजल का जादू


कल दोपहर उसने एक नई कविता लिखी, सृजन मन को हल्का कर देता है. आज सुबह बड़ी ननद से बात हुई, अगले एक दो वर्षों में माँ-पिता यहाँ आ जायेंगे ऐसा उसने कहा है. अभी छोटी ननद के बच्चों की देखरेख के लिए वे उसके पास रहते हैं क्योंकि वह कामकाजी महिला है. पहले भी ऐसी बात हुई है पर वे बच्चों के मोह के कारण आना नहीं चाहते. अब भी मान जायेंगे इसमें उसे संदेह है. इसका निर्णय वक्त ही करेगा और जो भी होगा अच्छा ही होगा. ईश्वर सबके लिए है और सबकी परवाह उसे है.
या अनुरागी चित्त की गति समझे नहीं कोय
ज्यों ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय !

जिसकी सत्ता से भरण-पोषण होता है, आवागमन की सामर्थ्य होती है, वाणी उत्पन्न होती है तथा यह सब न रहने पर भी जो रहता है वही भगवान है ! वह अनंत ऊर्जा व अखंड आनंद का स्रोत है. वह हमारे साथ है चित्त की प्रसन्नता उसी का आशर्वाद है. आज सुबह जैसे ही उठी, किसी ने कानों में कहा, congratulations ! दो-एक दिन पहले भी किसी की आवाज कानों में पड़ी थी. उस दिन स्वप्न में जून भी उसके साथ पाकिस्तान गये थे और उनके साथ चचेरी बहन भी थी. कल देखा उनके घर की छत व आंगन लकड़ियों से भरे हुए हैं. बड़े-बड़े लकड़ियों के गट्ठर सलीके से पड़े हुए हैं. अभी-अभी छोटे भाई का फोन आया है, रूड़की के एक इंजीनियर उनके मकान को खरीदने में उत्सुक है, जून यह सुनकर जरूर खुश होंगे. लेकिन वह पूरा पैसा छह महीनों में ही दे पाएंगे. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये, परसों से नन्हे की परीक्षाएं हैं और कल शाम उसे क्लब जाना है सो आज शाम घर पर रहना ही ठीक होगा.

कल दोपहर ‘ध्यान’ में उसने ईश्वर की झलक का अनुभव किया, एक अनोखी स्फूर्ति का अनुभव और जैसे उसके तन से एक सुगन्धि फूट रही है. उसके बाद भी देर तक इसी अहसास से तन-मन ओत-प्रोत रहा, पर कल शाम को उन्हें ‘रूपकुमार राठौर’ और ‘सोनाली राठौर’ के गायन के कार्यक्रम में जाना था, उसे और एक सखी को. रात को लौटने में देर हुई, नींद पूरी नहीं हुई अभी भी सिर में हल्का दर्द है. लेकिन कार्यक्रम अच्छा था. कभी-कभी शोर बहुत खलता था. गायक का धैर्य और लगातार गाने की क्षमता, शास्त्रीय संगीत पर उसकी पकड़ बेजोड़ थी. संगीतकार भी श्रेष्ठ थे. तबला, ढोलक हो या गिटार, वायलिन, सभी मंजे हुए कलाकार थे. उसने सोनाली राठौर से बात भी की, वह सीधी-साड़ी शांत दिखीं. कुछ गजलें अच्छी थीं कुछ हल्की-फुलकी सी ही थीं, लेकिन उन्हें सभी तरह के श्रोताओं को ध्यान में रखकर गाना होता है. आज बाबाजी ने मंत्रजाप का महत्व बताया तथा नाम जप का भी, वह दोनों ही नहीं कर पाती है. कल सुबह कैंसर का एक रोगी सहायता मांगने था, वह उसके दुःख को महसूस कर सकी, उसकी सहायता की, जाते वक्त उसने हाथ जोड़े. मन हल्का हुआ पहले जिनको खाली हाथ ठुकराया था, कुछ प्रायश्चित हुआ. देने से किसी का कुछ घटता नहीं बल्कि आत्मसंतोष का धन पाकर वह धनी ही हो जाता है. ईश्वर सदा उसके साथ रहकर सद् विवेक का भागी बनाये ! उसका जीवन स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि कर्त्तव्य रूप में बीते, वह सदा ईश्वर के निकट है !
 



Wednesday, October 15, 2014

हाउ टू नो गॉड - दीपक चोपड़ा की किताब


आज बैसाखी है, बीहू और गुड फ्राईडे भी. पूरे भारत में लोग कोई न कोई त्योहार मना रहे हैं. नन्हा और जून दोनों की छुट्टी है पर जून अपने विभाग में किसी कार्य में व्यस्त हो गये हैं. कल रात भी देर से घर आये, वह दिन में छूट गया अपना संगीत अभ्यास कर रही थी. उसके पूर्व मित्र परिवार आया था, उन्होंने स्वादिष्ट केक काटा जो दिन में बनाया था. नन्हा घर पर हो तो आजकल पढ़ाई और कम्प्यूटर गेमिंग ये दो काम ही करता है. आज सुबह वे उठे तो पहले वोल्टेज बहुत कम था फिर बिजली चली गयी. सुबह ‘जागरण’ एक दिन भी न सुने तो दिन की शुरुआत ढंग से नहीं हुई लगती है. सुबह वीमेन’स इरा का क्रॉस वर्ड हल करने में कुछ समय लगाया शेष सामान्य कार्यों में. समाचारों में सुना वाजपेयी जी ईरान के सांस्कृतिक शहर शीरान पहुंच रहे हैं. अमेरिका व चीन में टोही विमान की टक्कर के मामले को लेकर अभी तक आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं. आस्ट्रेलिया में nascom के प्रमुख श्री देवांग जो भारत में सूचना तकनीक के प्रमुख कार्यकर्ता थे, की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गयी है. इस वक्त भी हिंदी कविता की किताब उसके पास है. इन छुट्टियों में करने योग्य कई कार्य थे जो अभी तक शुरू भी नहीं किये हैं. उसने देखा है अक्सर योजना बनाकर काम करना सम्भव नहीं हो पाता, कुछ अप्रत्याशित आ जाता है जिसे स्वीकारना होता है. अभी दो पत्र लिखने भी शेष हैं, क्यों न पत्र लिखने से ही शुरुआत की जाये.
कल रात छोटी बहन का फोन आया, उसने कहा कल सुबह उसे शहर में होने वाली cross-country race में जाना है, पांच बजे उसे उठाना है सो वे फोन करके उसे उठा दें. नूना को हँसी भी आई और अच्छा भी लगा. सुबह पांच बजे से पहले ही उसे उठा दिया पर जैसी मूसलाधार बारिश यहाँ इस वक्त हो रही है वैसी ही वहाँ हो रही थी. उसे अंदेशा था की रेस टल जाएगी. कल जून रात को आठ बजे घर आ पाए. उसने शाम को घर का कुछ काम किया, आज पर्दों की धुलाई का भी काम हो गया.
कल सुबह वह लिख नहीं पाई, काफी समय एक सखी से फोन पर बात करने में चला गया. दोपहर को गुलाब जामुन बनाने के बाद टीवी चला लिया सो ‘कविता’ से मुलाकात नहीं हो पायी. लेकिन आज से यह असावधानी और प्रमाद नहीं होगा. उसकी यात्रा जारी रहेगी. कल लाइब्रेरी से दीपक चोपड़ा की किताब लायी है उसने भी उसके विश्वास को बल दिया है. वर्षा का मौसम जारी है. माली ने बगीचे से प्याज की फसल निकल कर दी है अभी कई दिन इसे सूखने में लगेंगे. कल जून ने प्रकाशक से बात की वह किताब के कुछ और नाम बतलाने वाले हैं. वर्षा तेज हो गयी है अभी तक स्वीपर नहीं आया है. उसका ध्यान कुछ देर के लिए नैनी पर चला गया जो कपड़े धो रही है. उसे काम करने का इतना अभ्यास हो गया है कि जिस काम को करने में नूना को आधा घंटा लगता है उसे सिर्फ दस मिनट लगते हैं अभी-अभी सफाई वाला भी आ गया है पानी में तरबतर है उसे उसने जून की एक पुरानी कमीज पहनने को दी है. जब कोई ईश्वर के निकट होता है, वह उसे शुभ की ओर स्वयं ही लगा देता है.  
कल शाम क्लब की एक सदस्या का फोन आया, इस महीने महिला समिति की बैठक में उसे कविता पढ़ने के लिए कहा है. literary meet का आयोजन किया जा रहा है. एक सखी का फोन अभी आया उसकी माँ अस्पताल में किसी जानलेवा रोग से संघर्ष कर रही थीं, कल उन्होंने बहुत दिनों बाद आँख खोली. उसने सोचा पड़ोसिन के साथ वह उससे मिलने जाएगी. नैनी ने अपने बेटे के कुरान की कसम खाने पर विश्वास कर लिया है कि रूपये उसने नहीं चुराए. माँ का दिल ऐसा ही होता है. बेटा लेकिन भविष्य में इससे गहरी चोट भी दे सकता है यदि उसे अभी से संभाला नहीं गया.
‘जागरण’ में परसों सुना था इच्छाओं को निवृत करना है, आवश्यकता की पूर्ति होती रहे क्या इतना पर्याप्त नहीं. आज सुबह से दो बार उसने स्वयं को सुने हुए पर अमल करते देखा. एक बार क्रोध का भाव जगने से पहले ही उसे समझा दूसरी बार इच्छाओं को पोषण करने वाली मानसिक वृत्ति को टोका. इस समय जितना कुछ है पर्याप्त है और की न आवश्यकता है न ही कल्पना करके स्वयं को अपनी ही दृष्टि में गिराने की जरूरत है. व्यर्थ की बातें ही साधक को मार्ग से भटकाती हैं. कल दीपक चोपड़ा की किताब का काफी अंश पढ़ा. बहुत अच्छी पुस्तक है. अपने हृदय के कई प्रश्नों के जवाब उसमें मिले. कई बातों की पुष्टि हुई. एक गुरु की तरह वह सारे संशयों का निराकरण करते जाते हैं. ईश्वर के प्रति उसकी निष्ठा और दृढ हो गयी है, वैसे निष्ठा अगर है तो है, नहीं है तो नहीं है.  

 


Monday, October 13, 2014

ब्लैक फारेस्ट केक


मानव हर क्षण अपनी ही मूर्खता का शिकार होता रहता है, जीवन का ढंग यदि सुंदर करना हो तो इस जीवन को प्रश्रय देने वाले से नाता जोड़ना है. चलते, फिरते उठते, बैठते उसका स्मरण बना रहे तो विवेक जाग्रत रहेगा. ज्ञान ही संतुलित होना सिखाता है. सुख की चाहना को त्याग दें तो दुःख से घबराएंगे नहीं.” ये सभी विचार आज सुबह उसने  ‘जागरण’ में सुने. सुनना, पढ़ना तो जारी है पर गुनना कभी-कभी ही हो पाता है और आदर्शों पर चलना, वह तो टेढ़ी खीर है. सुबह जब बाबा जी आये तो एक सखी का फोन आ गया, वह खुश थी, उसके पतिदेव को एक प्रेजेंटेशन के सिलसिले में दिल्ली जाना है, शायद उन्हें पुरस्कार भी मिले. जून जब लंच पर आये तो चौबीस पैकेट दूध के ले आये जैसे कि अगले चौबीस दिन का उन्हें पूरा भरोसा है यहाँ अगले पल की खबर नहीं...फिर उसे याद आया वे लोग तो अन्य सामान भी महीने भर का एक साथ ले आते हैं. पिछले हफ्ते ही उसका अपनी पुरानी डायरियों में से कविताएँ उतारने का कार्य पूर्ण हो गया था, अब नई रचनी हैं, हर दिन एक नई कविता जो भावपूर्ण भी हो और जिसमें अंतरात्मा का प्रकाश झलके. उस दिन उन्नीस साल पुरानी डायरी में सरसों के फूलों पर किसी कवि की बहुत अच्छी एक कविता पढ़ी. कल नैनी का ब्लाउज सिलकर दे दिया तथा साथ ही अपना एक पुराना भी. अज वह नाहरकटिया गयी है. वेलवेट का काला ब्लाउज उसने पहना था, बाहर निकलने पर अच्छा कपड़ा पहनने का उसे शौक है. पूसी अभी तक नीचे नहीं उतरी है, आज भी उसे खाना ऊपर ही दिया.

श्वास-श्वास में सुमिरन चलता रहे, सारी गांठे खुल जाएँ तो मन मुक्त आकाश मन विचरण करेगा, जीवन में सदा ही वसंत ऋतु बनी रहेगी. आज भी पिछले कई दिनों की तरह वर्षा हो रही है, रात भर मूसलाधार वर्षा हुई. कल रात की आंधी वर्षा में तो पूसी ने अपने बच्चों की रक्षा कर ली पर बिलाव से नहीं बचा पायी. रात को उसकी करुण पुकार तथा चीत्कार सुनाई दी थी. सुबह उसने आवाज देने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की, अभी भी वहीं बैठी है. नैनी के बेटे ने सीढ़ी पर चढकर दूध-रोटी दिया तो गुस्सा कर रही थी. इस समय कितना दुःख व क्रोध होगा उसके मन में. जून आज मोरान गये हैं. कल से नन्हे के स्कूल में बीहू का अवकाश शुरू हो रहा है. बैसाखी का उत्सव भी आ रहा है. कल रात उसने स्वप्न में फिर माँ को अस्पताल में देखा, वह बेहद कमजोर लग रही थीं. आज दोपहर को उसने नैनी को स्टोर की सफाई के लिए बुलाया है. इन छुट्टियों में बाकी सफाई भी करनी है. नन्हे के कमरे के पर्दों की धुलाई, ओवन, कम्प्यूटर, हारमोनियम आदि के कवर भी धोने हैं. अलमारियां ठीक-ठाक करनी हैं और बुक केस तथा शो केस भी साफ करने हैं. स्वच्छता पवित्रता की निशानी है, रहने का स्थान स्वच्छ हो तो रहने वालों का मन भी साफ-सुथरा रहता है. जैसे जून का मन है निर्विकार, उन्हें कभी किसी पर टिप्पणी करते कम ही देखा है. कुछ न करते हुए भी वह शांत रहे सकते हैं एक उसका मन है हमेशा किसी न किसी उधेड़बुन में लगा हुआ.

ईश्वर उसे सद्बुद्धि दे ! अपने आत्मस्वरूप को व जान सके, यह जो संसारिक बुद्धि है जो ऊपर से ओढ़ी हुई है, उसे उतार फेंकें. आज नन्हा घर पर है, फरमाइश की है केक बनाने की, ‘ब्लैक फारेस्ट केक’ पहले भी एक दो बार बना चुके हैं वे. अभी एक सखी का फोन आया तो शाम को उसे आने का निमन्त्रण दे डाला, अब कोई केक की तारीफ करने वाला भी तो होना चाहिए. कल शाम वे स्वयं असमिया सखी के यहाँ गये थे, उसने पकौड़े, मूंगफली, पॉपकॉर्न और नमकीन के साथ चाय परोसी. उसकी बिटिया और बेटे से मिलकर ख़ुशी हुई. नन्ही सी बेटी बहुत प्यारी बातें करती है और बेटा बहुत अच्छी भावपूर्ण कविताएँ लिखता है English में. अभी अभी वे केक ओवन में पकने रख आये हैं. साढ़े दस हो चुके हैं, आज वह रियाज नहीं कर पायी, नन्हा जिस दिन घर रहता है, रूटीन बदल जाता है, अभी सुबह ही है और उससे बातें करके (उस समझाना टेढ़ी खीर है और एक एक काम के लिए कई-कई बार कहना भी ) जैसे सारी ऊर्जा चुक गयी है. नन्हे का यह साल बहुत महत्वपूर्ण है. कल से जून का दफ्तर भी बंद हो रहा है, वे कहीं घूमने जायेंगे. कल दोपहर उसने “हिंदी साहित्य का इतिहास तथा हजार वर्ष की हिंदी कविता” की भूमिका दुबारा पढ़ी. कविता को लिखा नहीं जाता यह खुद को लिखवा लेती है ऐसा वह पहले भी कहीं पढ़ चुकी है. पर वह तभी हो सकता है जब कोई पूरी तरह से भावमय हो चुका हो, संवेदनशील हो और सत्य का अन्वेषक हो. सच्चा कवि समाज को नई दिशा देता है. सत्य के छोटे से छोटे क्षण को ही उद्घाटित कर पाए इसी में कविता की सार्थकता है. जो असत्य है ऊपर से ओढ़ा है वह कविता का विषय नहीं हो सकता यह तो अंदर से निकलती है, नितांत स्पष्ट, शुद्ध और सच्ची वाणी !