कल रात्रि
फिर एक अनोखा स्वप्न देखा..एक विशाल मैदान है. नीचे बालू
है और एक बड़ी से मेज पड़ी है, खुले गगन के नीचे..लकड़ी की मेज है भूरे रंग की, रंग
भी स्पष्ट दिख रहा था. उसे देखते ही मन में विचार आया, इस पर लेटकर आकाश को तकना
कितना सुंदर ध्यान होगा..और अगले ही पल सामने आकाश में एक सुंदर मंदिर की आकृति
स्पष्ट हो गयी..और क्षण-क्षण में उसके रंग बदलते जा रहे थे. तभी अचानक कृष्ण की
विशाल आकृति भी दिखी..कि पीछे से एक सखी की आवाज सुनाई दी, उसे कहा, देखो सामने
कितना सुंदर दृश्य है, पर अब वहाँ धुंध थी. सब लुप्त हो गया. उस सखी ने एक अन्य
सखी का नाम लेकर कहा, कि उसे भी बताया गया है यहाँ कुछ है. पर अब स्वप्न टूट गया.
कृष्ण कितने वास्तविक लग रहे थे...उनके भीतर न जाने कितने रहस्य छिपे हैं ! आज जून
एक दिन के दिल्ली जा रहे हैं. शाम को योग कक्षा घर पर होगी. इसी महीने उन्हें
बैंगलोर भी जाना है.
एक दिन का अन्तराल.. कल सुबह वह स्कूल गयी, फिर दोपहर
को कुछ देर सो गयी, दिन भर कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. आज जून वापस आ गये हैं,
ढेर सारा सामान भी लाये हैं. दीवाली की रोशनियाँ भी लगनी शुरू हो गयी हैं. दोनों माली
मिलकर लगा रहे हैं. आज सुबह भी नींद देर से खुली, क्योंकि रात देर तक पढ़ती रही. अनुशासन
जहाँ भंग हुआ आत्मा पर एक आवरण छा जाता है.
आज धनतेरस है. जून के गले में हल्की खराश है. वह सुबह
के जॉब पर गये अभी वापस आये हैं. दोपहर का भोजन भी दिगबोई में था, कम्पनी के
गेस्टहाउस में. उन्होंने अपने विभाग के सभी सहकर्मियों को परसों शाम सात बजे का
समय दिया है, दीवाली के लिए. चार परिवार नहीं आ पाएंगे. एक अवकाश पर है, एक सरकारी
दौरे पर, एक के परिवार में किसी की मृत्यु का शोक मनाया जा रहा है, एक की पत्नी
मायके में है, सो वह भी गये हैं. सो परसों सुबह से ही उसका समय रसोईघर में गुजरेगा.
पटाखों की आवाजें आनी शुरू हो गयी हैं. आज बड़ी बुआ को फोन किया तो पता चला गिरने
से उन्हें कूल्हे में चोट लग गयी है. वह बहुत हिम्मत से बात कर रही थीं. ईश्वर
उन्हें शक्ति दे, अभी काफी दिनों तक उन्हें अस्पताल में रहना पड़ सकता है.
आज छोटी दीवाली है. घर की सफाई का काम अब पूरा हो गया
है. बाहर बरामदे में रंगोली बनानी है और स्टोर में पूजा घर सजाना है. आज दोपहर को
ये कार्य करने हैं. मौसम आज सुहावना है. सुबह दीपावली के लिए एक नई कविता लिखी,
कितना उमंग भरा त्यौहार है यह. छोटी बहन का फोन आया, वह परेशान थी. रिश्तेदारी
निभाना इतना सरल तो नहीं है. जब तक स्वयं का स्वयं से रिश्ता नहीं बन जाता तब तक
किसी और के साथ बन भी कैसे सकता है. दीवाली तो वह इस बार नहीं मना रही है, परसों
उसकी परीक्षा भी है. जीवन में कितने ही क्षण ऐसे आते हैं जब वे अपने स्वभाव से हट
जाते हैं, अभाव या प्रभाव में आ जाते हैं, पर जिस सदा के लिए हर पीड़ा से मुक्त
होना हो उसे तो स्वभाव में टिकना सहज बनाना होगा. परमात्मा की निकटता का अनुभव उसे
हर क्षण होता रहेगा तब. बंगलूरू में परसों से लगातार वर्षा हो रही है, चेन्नई में
भी. इसी हफ्ते उन्हें भी वहाँ जाना है. शायद तब तक मौसम सुधर जाये.
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १२ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १२ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया साधना वैद और आदरणीया डा. शुभा आर. फड़के जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/