Wednesday, February 24, 2021

पराशक्ति


कल दीपावली का उत्सव सोल्लास सम्पन्न हो गया। नन्हे ने सदा की तरह दिल खोलकर कर उत्सव व विशेष भोज का आयोजन किया। लगभग बाईस लोग आए थे। सभी ने घर की तारीफ की। दोपहर को वह उन्हें गो-कार्ट ले गया। ड्राइविंग सीखी हुई थी सो ज्यादा परेशानी नहीं हुई। वैसे भी वह गाड़ी उलटती नहीं है। रात को सोने में देर हुई. नन्हा व सोनू भी अपने मेहमानों को लेकर बारह बजे घर पहुँचे थे । आज दोपहर वे दोनों फिर आ गए थे। घर से ही काम किया। कल भाईदूज है, उम्मीद है भाइयों को टीका मिल गया होगा। इस समय रात्रि के साढ़े नौ बजे हैं, बाहर से लगातार पटाखों की आवाजें आ  रही हैं। 


आज यहाँ  आने के बाद पहली बार वे आश्रम गए, जहाँ जाने मात्र से ही भीतर एक अनोखा सुकून मिलता है। विशालाक्षी मंडप में बैठकर कितनी ही पुरानी सुखद स्मृतियाँ भी सजीव हो उठीं। गुरूजी वहाँ नहीं थे पर उनकी मोहक तस्वीर भी उनकी उपस्थिति का अहसास करा रही थी। उनकी आँखें अपनी ओर खींचती हुई सी लग रही थीं। आश्रम के सुंदर वातावरण की कई तस्वीरें भी उन्होंने उतारीं। कुछ देर भजन में भाग लिया और कुछ खरीदारी की। गुरुजी की बहन भानु दीदी की लिखी एक पुस्तक ‘पराशक्ति’ ली, जिसमें पुराणों में वर्णित देवियों के बारे में जानकारी है, अवश्य ही पठनीय होगी।  कल एक मित्र परिवार आ रहा है, उन्हें लेकर कल फिर वे यहाँ आएंगे। कुछ देर पहले पड़ोस से पटाखे फोड़ने की आवाजें आ रही थीं, सड़क पर कागजों का ढेर लग गया है, इतना वायु प्रदूषण होता है सो अलग। यहाँ आने के बाद पहली बार ब्लॉग पर एक पोस्ट प्रकाशित की। बाहर वर्षा आरंभ हो गई है। इस कमरे के बाहर खुला बरामदा है। काफी खुला-खुला घर है यह, आकाश भी कमरे से दिखाई देता है और इस मौसम में सुबह की धूप सीधी कमरे में आती है। जीवन फिर से पटरी पर आता दीख रहा है। घर काफी व्यवस्थित हो गया है। कार्पेट अभी तक बिछाए नहीं हैं, उसके बाद यकीनन और अच्छा लगेगा। किचन में बर्तन धोने की मशीन काफी उपयोगी सिद्ध हो रही है, कपड़े धोने की मशीन भी। 


कल दोपहर मित्र परिवार आया, पति-पत्नी और कालेज में पढ़ने वाली बिटिया।  आज सुबह नाश्ते के बाद वे लोग चले गए। समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। शाम को आश्रम गए। संध्या के समय भजन का कार्यक्रम चल रहा था, वे सब भी कुछ देर के लिए वहाँ बैठ गए और सम्मिलित हुए। बिटिया ने माँ से धीरे से पूछा, वे यहाँ क्यों बैठे हैं ? उसने सुन लिया, और मुस्कुरा दी। मंदिर में बैठना या भजन गाना सबके बस की बात नहीं है और युवाओं के लिए यह बहुत मुश्किल है, जिन्हें कभी बचपन से इससे परिचित न कराया गया हो। पाँच मिनट और बैठकर वे उठ गए और आश्रम के सुंदर प्रांगण में घूमते रहे।  वापसी में खाद खरीदी, जो कल सभी गमलों में डालनी है। मौसम आज सुहावना है, दोपहर बाद वर्षा की भी भविष्यवाणी है। आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है। आज से  लद्दाख व जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। कश्मीर में हिंसा की घटनाएं बंद नहीं हो रही हैं।  भारत में आज से अठ्ठाइस राज्य व नौ केंद्र शासित प्रदेश हैं। 


आज सुबह वे इस सोसाइटी में अंगूर की खेती देखने गए फिर पिछले गेट से गाँव की तरफ निकल गए। अंगूर के बगीचे के पास तीन फ़ौवारे हैं, पानी में पड़ती हुई रोशनी के कारण सूर्यास्त का दृश्य अनुपम लग रहा था।  एक किंगफिशर देखा तथा एक अन्य लाल व काला बड़ा सा पक्षी। आज से शाम को एक घंटे की योग साधना भी आरंभ की है. उसके बाद जब संध्या भ्रमण के लिए निकले तो बच्चों की एक बड़ी सी टोली देखी, उन्होंने हालोइन की ड्रेसेज पहनी हुई थीं। वे इधर से उधर दौड़ रहे थे। 


उस पुरानी डायरी में कुछ सुंदर सूक्तियाँ उसने लिखी थीं, उस समय तो उनका क्या अर्थ समझा होगा उसे ज्ञात नहीं पर आज वे उस आश्चर्य से भर देती हैं -


स्वयं के ब्रहमत्व की अस्वीकृति अज्ञान है। 


स्वयं कभी स्वयं से अलग नहीं, किन्तु पर में दृष्टि रहने के कारण स्वयं में ध्यान नहीं रहता। 


मन में जब विकार और विचार भरे हैं, तब निराकार नहीं। 


Wednesday, February 17, 2021

छोटी दीवाली

 

कल का पूरा दिन घर को व्यवस्थित करने में ही निकल गया। मेहमानों का कमरा अभी भी  शेष है। आज आखिरी कार्टन भी खोल दिए। योग कक्ष में किताबें लगा दी हैं, कमरा अच्छा लग रहा है। अब शाम को यहाँ बैठकर स्वाध्याय व साधना दोनों किए जा सकते हैं। आज सुबह सिट आउट यानि शयनकक्ष के बाहर बड़ी बालकनी या बरामदे में आसन किए। चार-पाँच दिनों के बाद दीवाली है, इस नए घर में उनकी पहली दीवाली ! नन्हा कुछ लोगों को बुलाने वाला है। आजकल यहाँ शाम होते ही काले बादल छा जाते हैं और मूसलाधार वर्षा आरंभ हो जाती है। इस समय सिर में हल्का दर्द हो रहा है, नया शहर, नई दिनचर्या एडजस्ट होते-होते कुछ समय तो लगेगा। 


आज सुबह पाँच बजे से कुछ पहले ही उठे। एक नए इलाके की तरफ टहलने गए। पार्क नंबर छह व सात देखा। पूरे नापा में चौदह पार्क हैं, सभी सुंदर हैं। एक-एक करके वे सभी में जाएंगे और सुंदर तस्वीरें उतारेंगे। इस समय उसकी आँखें अश्रुओं से भरी हैं, पता नहीं कौन सी पीड़ा है, क्या दुख है, साथ ही एक मुस्कुराहट भी रह-रह कर आ रही है अधरों पर, कौन है जो यह क्रीड़ा कर रहा है ? सुबह टहलने गई तो दोनों पैर जैसे  अकड़े हुए थे, चलने में श्रम प्रतीत हो रहा था, गति भी कम हो गई थी। वापस आकर योगासन किए। नन्हा व सोनू उठ गए थे। हरसिंगार के फूल चुने। जून इडली का नाश्ता  ले आए। नौ बजे वे बच्चों को उनके घर छोड़ते हुए डेन्टिस्ट के पास गए। बाएं गाल में अंतिम दांत पर मसूढ़ा चढ़ गया था, उसने थोड़ी सी सर्जरी की, टांके लगाए। अगले हफ्ते फिर जाना है। दोपहर का भोजन सोनू ने अच्छी तरह से मेज पर लगाया था। आज सुबह असम से नैनी ने फोन किया, एक-एक करके घर के सभी सदस्यों ने बात की। उसके ससुर की तबीयत ठीक नहीं है।  दो दिन बाद दीवाली है, कल बिजली की लड़ी लगाने इलेक्ट्रिशियन आएगा। शाम को टहलते समय जून को पैरों की जकड़न के बारे में बताया तो उन्होंने कहा यह मन की उदासी के कारण है, और कोई बात  नहीं, कोई इंसान दूसरे की पीड़ा का अनुभव कैसे कर सकता है ? हर कोई स्वयं से ही पूरा भरा होता है ! परमात्मा सब जानता है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है, कोई कर्म उदय हुआ है। 


आज दोपहर से ही बाहर बिजली की झालर आदि लगाने का काम चल रहा है। कल छोटी दीवाली है, सोनू की चचेरी बहन व भाई-भाभी आए हैं, वे लोग भी परसों आएंगे। नन्हे ने पार्टी की पूरी तैयारी कर ली है। भोजन बाहर से ही बनकर आएगा, पूरी व रोटी यहाँ बनेगी।सुबह भी पैरों में जकड़न महसूस हो रही थी। शायद हार्मोन्स की समस्या हो, जरूरत से ज्यादा भावुक होना और जल्दी थकान होना इसके लक्षण हैं। जून ने आज पैरों व हाथों में तेल लगाया, उनमें सेवा भाव बहुत है पर उसे जगाना पड़ता है, वरना उन्हें उसकी बात सुनने की भी फुरसत नहीं रहती कभी-कभी। 


वे धीरे-धीरे नए घर में रहने के अभ्यस्त हो रहे हैं। लगभग रोज शाम को भोजन के बाद सोसाइटी में स्थित छोटे से सुपर मार्केट जाकर एक-दो जरूरी समान ले आते हैं। एक महिला उसे चलाती हैं, हिंदी बोल लेती हैं। शाम को टहलने गए तो तेज वर्षा होने लगी, दस मिनट का ही रास्ता था पर घर आते-आते काफी भीग गए, आकर देखा, एक व्यक्ति उनके गैरेज में बारिश से बचने के लिए खड़े हैं। जून ने कुछ देर उनसे बात की, कह रहे थे तीन करोड़ में आपका घर बिक सकता है। आज सुबह सूर्योदय देखते हुए छत पर योगाभ्यास किया। अंग्रेजी अखबार के साथ हिंदी का एक अखबार राजस्थान पत्रिका भी लेना शुरू किया है, कुछ देर पढ़ा। दोपहर बाद डाइनिंग हॉल में बिजली की दो लड़ियाँ लगाईं। शाम को ग्यारह दीपक जलाए, कल्याण के पर्व अंक में दीपावली उत्सव के बारे में  विस्तृत जानकारी पढ़ी। इस बार पूजा का समान नहीं ला पाये हैं अभी तक। रंगोली के लिए रंग भी नहीं हैं। यहाँ वे बाजार से काफी दूर हैं। उत्तर भारत में जिस उत्साह से दीवाली मनाते हैं वैसा यहाँ नहीं है। आज सुबह वे पड़ोसियों को शाम के भोज के लिए निमंत्रित करने गए। उनके पुत्र सैकड़ों के पटाखे जलाता है ऐसा उन्होंने बताया। 


उस पुरानी डायरी के पन्ने पर उसने कहीं से एक सूक्ति लिखी थी, “स्वप्न से भागना नहीं, जागना है। स्वप्न में भागकर भी तो स्वप्न में ही रहेंगे; किन्तु स्वप्न से जागकर स्वप्न ही नहीं रह जाएगा। आज लगता है, जीवन भी तो एक स्वप्न ही है जो वे देखे ही जा रहे हैं, जाग कर पुन: सोने का अभिनय करते हुए। 


Wednesday, February 10, 2021

नया घर

 

दोपहर  के सवा बारह बजे हैं. मौसम आज गर्म है, बाहर तेज धूप निकली है. गेस्टहाउस के इस वीआईपी सूट में एसी चलने से गर्मी का अहसास नहीं हो रहा है. आज यहाँ अंतिम दिन है, शाम को एक बार घर जाना है, माली से कुछ पौधों की कटिंग्स लेनी है. आर्ट ऑफ़ लिविंग टीचर से मिलना है और आठ बजे विदाई पार्टी के लिए क्लब जाना है. जून के सारे काम हो गये हैं, आज सुबह वे एडमिन डिपार्टमेंट गए थे. उसके पहले मागुरी बील से लौटकर नाश्ता किया. सुबह चार बजे से पहले ही उठ गए थे, पौने पांच बजे ही ड्राइवर आ गया था. आकाश पूर्व दिशा में लाल था, पर थोड़ी ही दूर जाने पर कोहरा छा गया और सूरज छिप गया. काफी देर बाद जब तिनसुकिया आने ही वाला था, कोहरा छंटा, सूरज तब तक ऊपर चढ़ आया था. टूरिस्ट कैम्प में पहुंचने पर गाइड मिला जो लकड़ी की नाव में एक नाविक को लेकर चला. दो प्लास्टिक की कुर्सियां उसने रखवा दी थीं. पिछले वर्ष फरवरी के महीने में में वे वहां गए थे, तो अनेक पक्षियों को देखा था.  आज ज्यादातर स्थानीय पक्षी ही दिखे, दिसम्बर से प्रवासी पक्षी आना आरम्भ कर देते हैं. कमल के अनेकों फूल वहां खिले थे, श्वेत व लाल कमल दोनों ही थे. छोटे और बड़े कई पक्षियों जैसे किंगफिशर, वैगटेल बर्ड, ओपन बीक बर्ड आदि की तस्वीरें उतारीं. कितनी तरह की छोटी बड़ी मछलियां और बत्तखें भी यहाँ हैं. एक सुखद अनुभव था यह. 


शाम के पौने सात बजे हैं, वे नए घर में हैं. उनकी जरूरत का हर सामान यहाँ है और जरूरत से ज्यादा भी ! कल सुबह साढ़े पांच बजे गेस्टहाउस से वे रवाना हुए थे और शाम को साढ़े आठ बजे के बाद ही नन्हे के घर पहुंचे. वे दोनों उन्हें लेने जब तक पहुँचते, वे पांचवी मंजिल तक आ गए थे. भोजन के बाद नीचे टहलने गए, हवा ठंडी थी पर भली लग रही थी. सुबह भी नीचे स्पोर्ट्स कोर्ट में बैठकर प्राणायाम किया. भीतर का गुरू या परमात्मा स्वयं पढ़ाने आता है. जिन श्वासों में उसे स्मरण नहीं  करते, चंदन की लकड़ी का हम कोयला बना लेते हैं और गंगाजल को नाले में  बहा देते हैं. जो सुगन्ध बनकर भीतर विद्यमान है उसे दुर्गंध बनाने की कला भी जगत सिखा देता है. सुख का सागर भीतर लहरा रहा है पर उन्हें तपती रेत पर चलना भाता है. जीवन जो प्रतिपल दिए जा रहा है, उसे न देख उन्हें मांगने से ही फुर्सत नहीं है. हर इच्छा उन्हें अपने स्वरूप से नीचे गिरा देती है. जीवन का यह मर्म सद्गुरु के सिवा कौन बता सकता है. अभी तो ट्रक आना शेष है, जिसमें मुख्यतः किताबें हैं और कुछ क्राकरी, शेष कपड़ों के कार्टन्स हैं. अभी तक तो ऐसा लग रहा है जैसे वे यहां  घूमने आये हैं. वैसे भी आज वापस जाना है, परसों से यहाँ रहना आरम्भ करेंगे. 


पिछले दो दिन नए घर को व्यवस्थित करने में कैसे निकल गए पता ही नहीं चला. कल दोपहर ट्रक आ गया था, शाम तक काफी सामान खोल लिया था. नन्हे का एक मित्र व उसकी पत्नी भी आये थे. पुलाव बनाया, सफेद डाइनिंग टेबल पर, नए डिनर नए सेट में, नए कुकर में बने पुलाव का स्वाद विशेष लग रहा था. इस समय  रात्रि के सवा नौ होने को हैं. बाहर वर्षा होकर थम चुकी है. वे कुछ देर टहल कर लौटे हैं. कितने नए वृक्ष देखे और अन्य घर भी. कुछ लोगों ने बगीचे के चारों ओर बाड़ लगायी है, वे भी लॉन को दो तरफ से घेरने की सोच रहे हैं. खिड़कियों पर छज्जे भी लगवाने होंगे. आज बेडरूम की खिड़की खुली रह गयी थी, पानी भीतर आ गया. खिड़की के आगे एक बैठने का स्थान है, जिस पर कुशन लगा है, यहां बैठकर पढ़ने-लिखने का अपना ही आनंद है. बाहर कंचन का पेड़ है और हरसिंगार का भी, जो अभी खिड़की तक नहीं पहुँचा है. आज सुबह उसके ढेर सारे फूल उठाये और सुगन्धित श्वेत फूलों की एक माला भी मालिन दे गयी, जून ने उससे कहा है रोज दे जाये. अभी किताबों के बॉक्स खोलने शेष हैं. अगले एक हफ्ते में सभी कुछ व्यवस्थित हो जायेगा. 


Thursday, February 4, 2021

पके धान के खेत

दोपहर का समय है. कुछ देर पहले टीवी पर ‘वंदे भारत’ ट्रेन के बारे में सुना, जो दिल्ली से कटरा जाएगी, सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त है यह भारत में ही बनी रेल. आज रसोईघर व पैंट्री के सामान को अलग किया, जो बाँट देने हैं और जो ले जाने हैं. परसों नन्हा व सोनू आ रहे हैं, पांच-छह दिन रहेंगे. तब पुस्तकों को पैक करने का कार्य आरम्भ करेंगे. आज एक मित्र परिवार के यहाँ भोजन पर जाना है. उसके लिए एक कविता लिखेगी, विदाई का उपहार ! सुबह टहलने गए तो वापसी में बात  की कि कब वे घर कम्पनी को हैंडओवर करेंगे. एक दिन पहले उन लोगों को बुलाएँगे जिन्हें सामान देना है ताकि अगले दिन घर की चाबी जमा करके गेस्टहाउस में शिफ्ट हो जाएँ. वहाँ रहने के लिए सूटकेस भी पैक कर दिया. केवल एक सप्ताह ही शेष है इस घर में. आज नाश्ते में जौ का दलिया बनाया. मुक्तिबोध की कविता के बारे में एक आलेख पढ़ा. 


कल नवरात्रि के दौरान सप्तमी का व्रत रखना है, देवी के कालरात्रि के रूप की पूजा होती है इस दिन. परसों बच्चों को अंतिम बार प्रसाद खिलाना है. उसके बाद वे सब एक रात के लिए दिगबोई जायेंगे. आज शाम को एक दक्षिण भारतीय सखी के यहाँ गयी, उसने सुंदर मूर्तियों व वस्तुओं से अद्भुत मंदिर सजाया है, प्रसाद खिलाया, दिया और तस्वीरें भी उतारीं। उसके लिए लिखी कविता पढ़कर सुनाई. आज अंतिम बार घर पर घी बनाया, पता नहीं बंगलूरू में इतना अच्छा दूध मिलेगा या नहीं. 


पिछले पांच दिन व्यस्तता में बीते. नन्हा और सोनू शिलांग में एक रात बिताकर वापस अपने घर पहुँच गए हैं. आज वे गेस्टहाउस आ गए हैं. साढ़े दस बजे तिनसुकिया जाना है. कुछ सामान खरीदना है. यूट्यूब पर पुष्पेंद्र जी कश्मीर के इतिहास पर बात कर रहे हैं. कश्मीर को इस्लामिक राज्य बनाने के एजेंडे पर वह आजादी के बाद के दौर के नेताओं की अदूरदर्शिता की बात कर रहे हैं. आज सुबह गोल्फ फील्ड में टहलने गए, सूर्योदय हो चुका था, कुछ तस्वीरें उतारीं। आज शाम को दो जगह लक्ष्मी पूजा में जाना है. कल एक शादी में जाना है और परसों कम्पनी की तरफ से विदाई पार्टी है. गेस्टहाउस में सभी सुविधाएँ  हैं.  34 वर्ष पहले जब विवाह के बाद वह पहली बार वह असम आयी थी तो घर मिलने तक इसी गेस्टहाउस में दो-तीन दिन रुकी थी. 


आज दोपहर को मृणालज्योति से कुछ लोग मिलने आये. सुबह नाश्ते के बाद वे हाथियाली स्थित विल्टन चाय बागान देखने गए. मीलों तक फैले हरे-भरे बागान और बीच-बीच में धान के खेत, जिनमें से कुछ में धान पकने लगा है. सुनहरे रंग के खेत दूसरे हरे-धानी खेतों में विशेष रूप से चमक रहे थे. कमल के पोखर भी दिखे, पर उनमें कमल कम दिखे, कल लक्ष्मी पूजा के कारण सभी कमल सम्भवतः तोड़ लिए गए थे. कल सुबह उन्हें मागोरीबील जाना है, जहाँ प्रकृति का एक अन्य रूप उन्हें देखने को मिलेगा. प्रकृति से जुड़ना हृदय से होता है, तभी प्रकृति सभी को मोह लेती है. दोपहर को खाने में करेले और छोले थे. खाना यहाँ घर की तरह होता है, तेल-मसालों की अधिकता नहीं होती. शाम को टहलते हुए वे पब्लिक लाइब्रेरी जायेंगे और रात को एक अधिकारी के बेटी के विवाह में. परसों इस समय वे बंगलूरू पहुँचने वाले होंगे. असम एक खूबसूरत याद की तरह मन में बसा रहेगा. उसके सिर में कई दिनों से हल्का दर्द बना रहता है. यह उस दुःख की वजह से है जो यहां से जाने के कारण कई बार महसूस हुआ है. कितनी बार गला भर आया और आँखें भीगीं, अथवा तो दिनचर्या में व भोजन में आये बदलाव के कारण हुआ है. जीवन में परिवर्तन स्वाभाविक है. कल शाम पार्लर में मसाज से नसों को आराम मिला. टी गार्डन से लौटते समय एक सन्त के वचन सुने, सहज स्वीकार भाव मन में नहीं होता तभी तनाव का जन्म होता है. जो कुछ भी होता है वह उस महान अस्तित्त्व का ही भाग है, वह गलत हो ही नहीं सकता. नीरू माँ भी कहती हैं, इस जगत में सब जगह इंसाफ ही होता है. 


बरसों पुरानी उस डायरी के पन्ने पर उस दिन की सूक्ति थी, जो इंसान इच्छाओं से मुक्त है, वह सदा स्वतंत्र रहता है, उसने नीचे लिखा,  मगर स्वतंत्रता भी कभी-कभी अप्रिय लगती है, बंधने को जी चाहता है, मनचाहा बंधन हो तो ! उस वक्त कहाँ ज्ञात था हर बंधन बस बंधन ही होता है. 

अगले पन्ने पर था- सम्पूर्ण संसार की सार्थकता या निरर्थकता का दारोमदार सिर्फ उसके स्वयं के सार्थक या निरर्थक होने में है. उसके पास शक्ति है, आज है, जोश है, युवा जन उत्साह से भरे होते हैं और मुस्कुराहट से भी... वे बांटते हैं स्नेह, विश्वास और भरते हैं दूसरों में साहस ! नहीं डिगते.. उसने खुद से वायदा किया कि वह नहीं करेगी वंचित प्रकृति को अपने स्नेह से !