Thursday, June 25, 2015

जस्सी की दुनिया


पिछले दो दिन डायरी नहीं खोली, सुबह का वक्त नियमित कार्यों में बीत गया और सप्ताहांत होने के कारण दिन भर अलग तरह की व्यस्तता रही. आज ससुरजी वापस चले गये, नन्हा और जून उन्हें छोड़ने गये हैं तथा उनका पुराना फ्रिज ट्रेन में घर के लिए बुक करवाने भी, इसी महीने उन्होंने नया फ्रिज लिया है फ्रॉस्ट फ्री ! माँ उनके साथ रहेंगी. उनका प्रिय धारावाहिक टीवी पर आ रहा है, जैसे उसका प्रिय है जस्सी, जो अब रोचक मोड़ पर पहुंच चका है. नन्हा और दो हफ्ते साथ रहकर कॉलेज जाने वाला है. उसे एक अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला मिल गया है, जो जिसका हकदार होता है उसे ही वह वस्तु मिलती है. वैसे वह आत्मनिर्भर है, जीवन में तरक्की करेगा. दुनिया जिसे तरक्की मानती है वैसी तरक्की न भी करे पर वह खुद की तलाश में लगा है. इन्सान का जीवन खुदा ने इसलिए बनाया है कि वह खुद को ढूँढे, खुदी के पीछे ही खुदा है जो खुद से मिल गया वह खुदा को भी पा ही लेता है. जून उससे बेहद प्यार करते हैं, इसे मोह ही कहा जायेगा. वे उसे कभी किसी तकलीफ में नहीं देख सकते, लेकिन तकलीफ पाए बिना कोई नेमत भी नहीं मिलती है. कल शाम को घर में कितनी चहल-पहल थी. सभी पिताजी से मिलने आये थे, आज चुप्पी छायी है. जीवन इसी उतार-चढ़ाव का नाम है, उन्हें इसका साक्षी बनना है !

इस क्षण को देखे तो सिर में हल्का भारीपन है, वर्षा हो रही है, नन्हा सो रहा है, जून कुछ देर पूर्व घर आकर ऑफिस गये हैं, आज से पांच दिनों तक उनकी ट्रेनिंग है, दोपहर के भोजन के लिए घर नहीं आयेंगे. टीवी पर शहनाई वादन हो रहा है. नैनी कपड़े धो रही है. उसके सिर के भारीपन का एक कारण है मानसिक द्वंद्व, उसे तो द्वन्द्वातीत होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है फिर यह क्या ? यह है असहिशुष्णता, किसी अन्य को सहन न कर सकने की प्रवृत्ति, ‘प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाय’ उसका मन एकाकी रहना चाहता है, विरक्त, दीन-दुनिया से परे, उसे किसी भी वस्तु की न तो कामना है न ही परवाह, पर समाज ऐसे व्यवहार को अच्छा नहीं मानता. एकाकी व्यक्ति से समाज को डर लगता है. वह उसे भीड़ में वापस लाना चाहता है. उसके मन का दर्द तन में भी प्रकट होने लगा है. मन में जो भी घटता है उसका प्रतिबिम्ब तन पर पड़ता ही है. मन की थोड़ी सी नकारात्मकता भी शरीर के स्रावों पर काफी प्रभाव डालती है. भीतर जो कुछ भी घटता है उसका कारण भी भीतर होता है. वह जो भी सोचती है, कहती है अथवा करती है, उसका परिणाम भीतर पड़ता है. इधर-उधर के दर्द सब उसी का परिणाम हैं !


Wednesday, June 24, 2015

घन घन गरजें मेघा


जून माह का प्रथम दिन ! वर्षा की झड़ी लगी है, गर्जन-तर्जन भी जारी है. यात्रा से लौटने के बाद से दिनचर्या अभी तक सुव्यवस्थित नहीं हो पायी है. शनिवार को सासु माँ व ससुरजी आ रहे हैं, उसके पूर्व ही सब कुछ संवारना है. भीतर जब तक बिगड़ा है, बाहर भी बिगड़ा रहेगा. झुंझलाहट, अहंकार, कटु शब्द, अवमानना तथा आलस्य ये सारे अवगुण बाहर दिखायी देते हैं, पर इनका स्रोत भीतर है, भीतर का रस सूख गया है. सत्संग का पानी डालने से भक्ति की बेल हरी-भरी होगी फिर रसीले फल लगेंगे ही. संसार का चिंतन अधिक होगा तो उसी के अनुपात में तीन ताप जलाएंगे. प्रभु का चिन्तन होगा तो माधुर्य, संतोष, ऐश्वर्य तथा आत्मिक सौन्दर्य रूपी फूल खिलेंगे. कितना सीधा-सीधा हिसाब है. जगत जो दुखालय है दुःख ही दे सकता है, ईश्वर जो अनंत सुख का भंडार है, नाम लेते ही सारी पीड़ा हर लेता है. अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष तथा अभिनिवेष ये पांच ही तो क्लेश हैं जो तामसी बुद्धि होने के कारण सताते हैं. उसने ईश्वर से प्रार्थना की उसकी बुद्धि को प्रकाशित करे.

आकाश में घने बादल छाये हुए हैं, गरज भी रहे हैं और बरस भी रहे हैं. हवा शीतल हो गयी है और मन भी. ध्यान में कुछ देर बैठी, ज्यादा समय नहीं मिलता. ईश्वर प्राप्ति के लिए मन में दृढ़ता नहीं है तभी नियम में दृढ़ता नहीं रहती. मन में तड़प हो, छटपटाहट हो तभी उसका स्मरण सदा बना रह सकता है.

आज ध्यान में कई दृश्य दिखे, अंतर्मन की गहराइयों में कितना कुछ छिपा है. एक संस्कार जगते ही उसके पीछे विचारों की एक श्रंखला जग जाती है. ऊपर-ऊपर से वह कहती है कि देह नहीं है पर भीतर जाकर पता चलता है, चिपकाव देह से, मन से, बुद्धि से कितना गहरा है.


उसे फिर इस सत्य का अनुभव हुआ, न बोलना ज्यादा अच्छा है, व्यर्थ बोलने से, यह सही है कि बहुत बार वह बोलकर बाद में सचेत हुई है, न बोलने से कभी कोई समस्या नहीं हुई. वे जो बोल सकते हैं यह सोच सकते हैं पर जो बोल ही नहीं सकते वे कितनी विवशता का अनुभव करते होंगे. इस जगत में कितनी विचित्र परिस्थितियाँ हैं, एक से एक सुखकारी तथा एक से एक दुखकारी. यह जगत अनोखा है पर अब यह उसे आकर्षित नहीं करता. उसके भीतर का जगत ज्यादा सुंदर है, वह उसकी पहुंच में भी है. पूरा का पूरा ब्रह्मांड भीतर है. सूक्ष्म संवेदनाएं, सूक्ष्म भाव, सूक्ष्म तरंगें और विचित्र रंग, विचारों का उदय..ये सभी कुछ तथ कुछ दृश्य जो ध्यान में दीखते हैं , एक नयी दुनिया में ले जाते हैं, शायद मृत्यु के बाद और जन्म से पहले की दुनिया ! एक दिन तो उन्हें वहीं जाना है ! 

दा-विंसी-कोड-एक रोचक उपन्यास


उन्होंने शब्दों की होली खेली, कुछ शब्दों की बौछार इधर से हुई और कुछ शब्दों की बौछार उधर से और लग गई आग दिलों में. इस होली से तो भगवान ही बचाए. न जाने क्यों वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाते फिर वही वाणी के रूप में बाहर आ जाती हैं. जानती है वह कि बाद में पश्चाताप के सिवा कुछ हाथ आने वाला नहीं है. समाज में परिवार में सभी को साथ लेकर चलना है, साधना के लिए स्वार्थी तो नहीं हुआ जा सकता, उसकी आवश्यकता को कोई अन्य कैसे समझ सकते हैं, उसे ही धीरे-धीरे इस पथ पर लाना होगा. संसार का पथ तो अनेक जन्मों में चल कर देख चुकी है, यह बेपेंदी के लोटे जैसा है कितना भी जल डालो यह खाली ही रहेगा. परमात्मा के पथ पर आनंद ही आनंद है, लेकिन इस आनंद का भी यदि लोभ वह करने लगी तो...सहज रहना सीखना होगा, समभाव में रहना. परीक्षा की घड़ियाँ आएँगी पर स्वयं पर नियन्त्रण रखना है.
आज होली है, उसने ज्ञान की पिचकारी का रंग लगाया है, अब कोई और रंग उस पर चढ़ता ही नहीं. होली का अर्थ है सारी पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं को ज्ञान की आग में जलाकर मन को खाली कर देना. फिर से नव जीवन का आरम्भ हो, भुला देना सारे शिकवे-शिकायत, तब जो भीतर उमड़ेगा उसमें सारे रंग मिले होंगे.
कल रात को नन्हे ने जब फोन पर कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं लग रही है तो जून और उसका चिंतित होना स्वाभाविक था. उन्होंने उसे आवश्यक निर्देश दिए और अपने रोज के कार्य सामान्य रूप से करते रहे. सुबह वह उठी तो जून ने कहा उन्हें देर तक नींद नहीं आयी, वह नन्हे की अस्वस्थता की बात से परेशान हो गये थे. वह भी जब अपने मन की अवस्था पर नजर डालती है तो उनसे बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. यह बात और है जब मन को परेशान देखा उसने तो भगवन्नाम का ही आश्रय लिया, परमात्मा को सब कुछ सौंपना चाहा. उससे प्रार्थना भी की. भक्ति के लिए भक्ति अर्थात उससे कुछ भी न मांगे, यह दृढ़ता तो दूर हो ही गयी. उसने उन सबके लिए सुख व स्वास्थ्य माँगा. वह दाता है, सबकी सुनता है, किसी को निराश नहीं करता, उसकी मर्जी से ही वे सब इस दुनिया में आए हैं. वही चैतन्य है, उसका अंश आत्मा रूप से उनमें स्थित है. अभी यह उनका अनुभव नहीं है तभी वे मन की समता खो बैठते हैं. जैसे चित्रकार चित्र बनाता है वे दुःख बना लेते हैं.
कल की रात्रि स्वप्नों भरी थी, नन्हे को कई बार देखा, वह छोटा सा है और खाली फर्श पर सोया है. मन भी कितना पागल है, खुद ही सपने बनाता है और खुद ही परेशान होता है. नन्हे का रिजल्ट आ गया है उसने पहली बाधा पार कर ली है. जून भी निश्चिन्त हुए हैं. उसने da-vinci-code पढ़ ली है, बहुत रोचक किताब है. अज गुरूजी ने ‘योग वशिष्ठ’ पर चर्चा शुरू की. जीवन में दुःख है इसे पहचानना जरूरी है. तभी तो मन के पार जाया जा सकता है.

आज उन्हें यात्रा पर जाना है, इस यात्रा का उद्देश्य है नन्हे को सालभर की कड़ी मेहनत के बाद परीक्षा दिलाकर घर वापस लाना, परीक्षा से पहले उसे उत्साह दिलाना तथा उसका स्वास्थ्य ठीक रहे उसका ध्यान रखना. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनकी यात्रा को सफल करे.

Tuesday, June 23, 2015

विवाह की धूमधाम


मकर संक्रांति के दिन वे यात्रा पर निकले थे और दो हफ्ते बाद वापस आये, सो आज कई दिनों के बाद डायरी खोली है. सभी से मिलकर अच्छा लगा, बड़ी भांजी की शादी भी भली प्रकार से हो गयी. उन्होंने नये-नये स्थान देखे, पुराने मित्रों से मिले. कुल मिलाकर दो हफ्ते उनके लिए उम्मीदों व आशाओं से भरे थे. कभी-कभार ऐसे पल भी आए जब मन चिन्तन में लीन था. संगति का असर पड़ना स्वाभाविक था, लोभ भी जगा, कामना भी उठी. नये वस्त्रों की चाह उठी, संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ी. चमचमाते बाजार देखकर खरीदने की इच्छा उठी, पर अब अपने पुनः अपने घर लौट आये हैं. यात्रा  बहुत कुछ सिखाती है, बीच-बीच में समय मिला तो सद्गुरु के वचन भी सुने. क्रिया नियमित रूप से की. मन टिका रहा इसी कारण. प्रमाद ने घेरा अवश्य पर भीतर की आग बुझी नहीं. कल रात को एक स्वप्न देखा, जिसमें ईश्वर चर्चा चल रही थी. भीतर जिसने आत्मा को एक बार जाना है वह उससे कभी भी विलग नहीं हो सकता चाहे गला डूब संसार में उसे क्यों न रहना पड़े.

मन जिस भाव में टिकता है, समझना चाहिए उस समय वही प्रबल है. उसका मन स्मरण में न टिककर संसार में जा रहा है. कल फिल्म देखी, जस्सी का भी आकर्षण है. सद्गुरु कहते हैं अपनी परीक्षा स्वयं नहीं लेनी है. अंततः मन लौट कर वहीं तो जाता है जो उसका आश्रय है. आज सुबह सड़क दुर्घटना में डा.विद्यानिवास मिश्र के निधन का समाचार सुना, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे. ईश्वर उनके साथ सदा था, उनके भी और उनकी धर्मपत्नी के भी जिनका देहांत अभी डेढ़ महीने पूर्व ही हुआ था. आनंद के महासमुद्र में निरंतर वास करने वाली आत्मा शुद्ध है, बुद्ध है, नित्य है, चेतन है, अविनाशी है तथा प्रेममयी है. इसे जानते हुए यह जगत का व्यवहार उन्हें  करना है. जगत तब उन्हें छू भी नहीं सकता.


आज सुबह-सुबह एक स्वप्न देखा, एक संत जो भक्ति में नृत्य कर रहे थे और गा रहे थे, उसके सम्मुख आए. उनसे दृष्टि मिली, उसके देखते-देखते उनकी दृष्टि प्रखर होती गयी, आँखों की पुतलियाँ जैसे स्थिर हो गयीं और उनमें से कोई तेज निकलने लगा. उसकी आँखों तक पहुंचा और उसके सिर पर रखा दुप्पटा बल से ऊपर उठ गया और शरीर पर किसी आघात का अनुभव हुआ और अगले ही क्षण अभूतपूर्व आनंद तथा हँसी उसके सारे अस्तित्त्व से फूट पड़ी तो उसके आसपास के लोग भी चकित हो रहे थे, तभी अलार्म बजने लगा और उसकी नींद खुल गयी. आज जब ध्यान में बैठी तो निर्विचारिता के क्षण अधिक देर तक टिके तथा मौन का अनुभव भी हुआ. कितना अनोखा अनुभव था, आँखें खोलने का भी मन नहीं हो रहा था. आज की अनुभूति अलग थी. वैसे तो हर दिन का ध्यान अलग होता है. 

Monday, June 22, 2015

सुनामी की लहरें


नये वर्ष में पहला कदम, मन नव उत्साह से भरा है. जीवन की यात्रा में एक नया अध्याय लिखने का वक्त आ गया है. बगीचे में गुलाब व गुलदाउदी के फूल खिल रहे हैं. इस वर्ष पहले से ज्यादा सजग रहना है, समय का सदुपयोग करना है. अपने लक्ष्यों को पुनः निर्धारित करना है तथा नियमित दिनचर्या को भी. प्रतिदिन किये जाने वालों कार्यों की एक सूची यह भी हो सकती है- क्रिया, व्यायाम, संगीत अभ्यास, बागवानी, डायरी लेखन, कविता सृजन, कम्प्यूटर पर कार्य, सेवा कार्य, शास्त्र अध्ययन, घर के किसी हिस्से की सफाई, हस्त कला का कोई कार्य, अख़बार व पत्रिकाएँ पढ़ना. सोनामी लहरों के कहर को  बरपे एक हफ्ता हो गया है पर उसका प्रभाव अभी तक ताजा है पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया को तबाह करने वाला भूकम्प तथा तूफान एक लाख पचास हजार लोगों को मृत्यु के मुंह में झोंक गया है. लाखों लोग बेघर हो गये हैं, कितनों के पूरे जीवन की कमाई खत्म हो गयी है लोगों को इस झटके से उबरने में अभी काफी लम्बा वक्त लग सकता है. प्रकृतिक आपदा के शिकार लोग अपने भीतर की ऊर्जा को एकत्र कर पुनः अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं. कहाँ है वह कृष्ण ? जिसने गोकुल को वर्षा के कहर से बचाया था.

आज सुबह देर से उठे, दोपहर में वे सर्दियों की धूप का आनंद लेने घर के सामने वाले चाय बागान में घूमने गये वापसी में नन्हे के एक मित्र के यहाँ गये. नन्हा कोटा में है, उसे एक ऑब्जेक्टिव परीक्षा के दैरान बीच से उठकर आना पड़ा. फुफेरी बहन से बात की, आज फूफाजी की तेहरवीं है. योग रहस्य सीडी देखा व सुना, बाबाजी बहुत सरल शब्दों में गूढ़ बातें बताते हैं.

आज सुबह पंछियों की आवाजों के साथ नींद खुली, कोहरा घना था पर इस समय धूप खिली है. आज दोपहर एक सखी परिवार सहित भोजन पर आ रही है. वे लोग आज ही घर से आये हैं, उसकी माँ का दिल का आपरेशन पिछले माह हुआ था, जो अब स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं. सुबह आस्था पर स्वामी रामदेव जी का योग कार्यक्रम देखा. मन में एक द्वंद्व चल रहा था, मृणाल ज्योति के लिये कार्यरत रहने वाली लेडिज क्लब की सदस्या से मिलने का वायदा किया था, पर जा नहीं जा पाई, मिलकर आई तो मन जैसे हल्का हो गया.


आज सर्दियों की पहली बरसात हो रही है, रात को भी बादल गरजते रहे. मौसम ज्यादा ठंडा हो गया है, रात को एक स्वप्न में एक घायल बच्चे को देखा. सुनामी लहरों के विनाश की खबरों से आजकल अख़बार भरा रहता है. इतन दुःख उन लोगों को झेलना पड़ रहा है. जीते जी नर्क का अनुभव उन्हें हो रहा है, पर मानव के अंदर एक ऐसी शक्ति है जो हार नहीं मानती, वह फिर से खड़ा होता है. समय के साथ घाव भी भरने लगते हैं. जीवन क्षण भंगुर है यह संत सदा से सिखाते आये हैं. 

Friday, June 19, 2015

अनुभव की गूंज


परसों रात को लगभग साढ़े दस बजे होंगे जब सद्गुरु के दर्शन निकट से प्राप्त हुए, ‘अब खुश हो’ ये तीन शब्द उन्होंने उससे कहे, जब उसने एक हाथ से उनका पांव छूने का प्रयत्न करते हुए उनकी आँखों में झाँका. कैसी भ्रमित कर देती है उनकी उपस्थिति, वह कुछ भी न बोल पायी, मात्र सिर हिला कर मुस्करा दी, पर उनकी दृष्टि भीतर तक छू चुकी थी, उसने अपना काम कर दिया था. बाहर निकलते-निकलते तो मन भावों से इतना भर चुका था कि एक अनजान महिला ने, जो सत्संग में उसे देख चुकीं थी, कहा, जय गुरुदेव तो वह उनके गले लगकर रोने लगी. आसपास के लोगों को अजीब लगा होगा स्वयं वह महिला भी पूछने लगी कि आपने ऐसा क्यों किया, पर इन बातों का कोई उत्तर नहीं होता, बस मौन रह जाना पड़ता है. होटल वापस आकर चुपचाप सो गयी. ऐसी मधुर नींद आई जो सुबह साढ़े चार बजे खुली. क्रिया के दौरान अनोखा अनुभव हुआ, जैसे कोई अंतर्मन में प्रविष्ट होकर कुछ समझा रहा हो, तुम वही हो, वही तो हो, तुम्हीं वह हो की गूँज भीतर उठने लगी. वह यह मानकर गोहाटी गयी थी कि इस बार उसे सद्गुरु में ईश्वर के दर्शन होंगे. उसका विश्वास दृढ़ कराने के लिए ही ऐसे दुर्लभ अनुभव कराए. पहले से ही विश्वासी मन अब पूरी तरह ठहर गया है. उस क्षण से जिस भाव समाधि में डूबा है वह अभी तक उतरी नहीं है, रह-रह कर नेत्र भर आते हैं. ट्रेन में लेटे हुए आँखें बंद करने पर न जाने क्या-क्या दिखाई दे रहा था. जंगल, नदी, कभी तालाब, वृक्ष और आज सुबह क्रिया के बाद अनोखा दर्शन हुआ. गुरू की कृपा उसके साथ है !

मन यदि एक बार उच्चावस्था में चला जाये तो उसे और कुछ भाता भी नहीं, कोई अमृत पाकर विष क्यों चाहेगा, कृपा से उसने उस अवस्था का अनुभव किया है अब वहीं लौटने के लिए ही सारी साधना है. पहले आलम यह था कि ध्यान में मन टिकता नहीं था और अब आलम यह है कि ध्यान से मन हटता नहीं है. परमात्मा को पाना कितना सरल है, जगत को पाना उतना ही कठिन, जगत को आज पाया कल खोना ही पड़ेगा, परमात्मा शाश्वत है एक बार मिल जाये तो कभी छोड़ता नहीं. जगत यदि थोड़ा सा मिले तो और पाने की इच्छा जगती है, परमात्मा एक बार मिल जाये तो और कोई चाह शेष नहीं रहती. जगत मिलता है तो दुःख भी दे सकता है, परमात्मा सारे दुखों का नाश कर देता है. और ऐसे परमात्मा का ज्ञान सद्गुरु देता है. सद्गुरु से सच्ची प्रीति किसी के हृदय में जग जाये तो उसका जीवन सफल हो जाता है. गुरु भौतिक रूप से कहीं भी हों, वह शिष्य को तत्क्ष्ण उबार लेते हैं. परसों रात को सोने से पूर्व उसके मन में जो पीड़ा थी, उसे उनके स्मरण ने कैसे हर लिया था. ‘अब खुश हो’ यह वाक्य उसके लिए एक मन्त्र ही बन गया है. गुरुमुख से निकला हर शब्द एक सूत्र ही होता है. कल रात को मृत्यु का ख्याल करके जब वह थोड़ी देर को शंकित हो गयी थी तो प्रार्थना करते-करते सोई. स्वप्न में अनोखा अनुभव हुआ जैसे वह बड़े वेग से शरीर छोड़कर ऊपर की ओर जा रही है, थोड़ा सा भय था, फिर नीचे आना शुरू हुआ और पुनः शरीर में वापस आ गयी. मृत्यु का अनुभव भी कुछ ऐसा ही होता होगा. एक दूसरे स्वप्न में बाथरूम के पॉट से विशाल जानवर निकलते देखे. ईशवर की महिमा विचित्र है. यह सृष्टि अनोखी है और इसका रचियता इससे भी अनोखा है, वह जादूगर है और यह उसकी लीला है. कोई यदि लीला समझकर जगत में रहे तो जगत बंधन में नहीं डाल सकता.         

Thursday, June 18, 2015

श्याम सुंदर का आगमन


आज कृष्ण जन्माष्टमी है, उन्होंने फलाहार लेने का व्रत किया है. मौसम भीगा-भीगा है जैसे उस दिन जब हजारों वर्ष पूर्व कृष्ण ने मथुरा की जेल में जन्म लिया था. कृष्ण उनकी आत्मा हैं, जगत में रहते हुए यदि उनका स्मरण बना रहे तो ही कोई अपने स्वरूप में स्थित रह सकता है. कृष्ण का अवतरण जब-जब भीतर होता है, तब-तब कोई अपने में स्थित होता है, अन्यथा स्वरूप से हट जाता है. कितने नाम हैं कृष्ण के, श्यामसुन्दर का अर्थ उसने सुना, श्याम हो गयी आत्मा को जो सुंदर बना दे वही है श्यामसुंदर ! गोपियों ने कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण किया था पर राधा ने स्वयं को मिटा ही दिया. स्वयं को मिटाकर वह कृष्ण रूप ही हो गयी. जब वह कृष्ण से अलग रही ही नहीं तो कैसा विरह, कैसी पीड़ा. विसर्जन करना बहुत कठिन है, अहम् का विसर्जन, शक्ति, समय, सेवा का विसर्जन, प्रिय के साथ एकाकार हो जाना. भक्त भगवान को स्वयं से अलग मानकर उसकी पूजा करता है, वह अपनी निजता को बचाए रखता है पर ज्ञानी भक्त स्वयं को मिटा देता है, वह स्वयं को उनसे अलग कैसे मान सकता है. किन्तु सेवा की यह भावना किसी बिरले को ही प्राप्त होती है. जन्मों के संस्कार अहंकार से मुक्त होने नहीं देते. कर्म का बंधन काटना उनका कर्त्तव्य है, मुक्तामा ही भक्ति कर सकता है. उसने प्रार्थना की, मनसा, वाचा, कर्मणा ऐसा कुछ भी न करे जो किसी को दुःख दे, ईश्वर उसे सुबुद्धि दे. एक न एक दिन लक्ष्य मिलेगा, अहम् का विसर्जन होगा और वह परम प्रिय परमात्मा के प्रेम की भागी बनेगी. ज्ञान के साथ जीना यदि आ जाये तो संसार में दुःख का नाम भी नहीं दीखता, वही संसार जो पहले अशांति का कारण बन जाता था उसकी जगह एक सुंदर संसार ने ले ली है !
अभी कुछ देर पहले उसे कान्हा की झलक मिली, कितना सुंदर रूप था उसका, ऐसा रूप क्या उसका मन बना सकता है, विश्वास नहीं होता, वह परब्रह्म परमात्मा ही कृष्ण बनकर उसकी बंद आँखों के सामने प्रकट होने आया था. उनके मध्य माया का पर्दा थोड़ा झीना हुआ है, पर्दे के पार से वह कितना मोहक है तो जब सम्मुख आएगा तो हालत क्या होगी. प्रकृति पहले उन्हें तैयार करती है फिर अपने रहस्य खोलती है. उसका मन अभी तक पूर्ण शुद्ध नहीं हुआ है, तभी एक झलक दिखाकर कृष्ण लुप्त हो जाते हैं. शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि, शुद्ध आत्मा तीनों एक ही बात है. ईश्वर की निकटता का अहसास ही जब इतना मधुर है तो स्वयं ईश्वर कैसा होगा. संतजन इसलिए उसकी महिमा का बखान करते नहीं थकते. सद्गुरु की कृपा भी अनंत है जो अनंत का दर्शन करा देती है. सारा ज्ञान भीतर ही है, कहीं-कहीं वह प्रकट होता है, वे संतजन होते हैं जिनके भीतर का ज्ञान प्रकट होने लगता है.

तन की पीड़ा की झलक अब भी विचलित करती है मन, बुद्धि को, अभी देहात्म बुद्धि का क्षरण नहीं हुआ. क्षण दो क्षण को ही सही पर झुंझला जाता है मन अब भी, अर्थात मन का निग्रह अभी नही हुआ, पर भीतर जाते ही कैसा आनंद मिलता है और तब सब कुछ विस्मृत हो जाता है. सद्गुरु के ज्ञान का आश्रय लेकर स्वयं को समझाने में सफल भी हो जाती है वह. वाणी में कोमलता नहीं तो भक्ति अभी अधूरी है, कभी-कभी न चाहते हुए भी बोलना पड़ता है, तब भी भीतर का प्रेम जाना तो नहीं चाहिए, प्रेम तो सभी से बड़ा है न, प्रेम तो ईश्वर है न, ईश्वर किसी से बात करेगा तो प्रेमपूर्वक ही करेगा, चाहे वह पुण्यात्मा हो या पापी, और फिर वह तो उनके चरणों की धूल के बराबर भी नहीं, तो उसे अपनी वाणी पर प्रतिक्षण नजर रखनी होगी. कठोर बात न निकले, कहने का ढंग भी अप्रिय न हो, साधक यदि सचेत नहीं रहेगा तो पीछे चला जायेगा.        

Wednesday, June 17, 2015

श्रावणी पूर्णिमा


बाहर कौए बहुत शोर मचा रहे हैं. घर में सासू माँ कि तबियत ठीक नहीं है. रोज वह नहा-धोकर नाश्ता आदि करके टहलने निकल जाती हैं, आज अस्वस्थ होकर लेटी हैं. एक सखी ने कल रात को खाने पर बुलाया है, एक दूसरी सखी को वह बुलाना चाहती थी. तीसरी सखी ने शाम को सत्संग पर बुलाया है, पर अब सम्भवतः कुछ भी सम्भव नहीं हो पायेगा. ससुराल से फोन आया तो उन्होंने पिताजी को नहीं बताया, शरीर है तो सुख-दुःख लगा ही रहता है. उन्हें यहाँ आये पूरा एक वर्ष हो गया है. नन्हे को गये एक महीने से ऊपर, समय अपनी रफ्तार से चलता रहता है.

आज बहुत दिनों के बाद खुली आँखों से उसे दर्शन हुए. क्रिया के वक्त भी आज अतिरिक्त उत्साह था. जीवन जैसे एक मधुर स्वप्न के समान बीत रहा है. ईश्वर प्रेम स्वरूप है, सद्गुरु का यह वचन कितना सच्चा प्रतीत होता है. यह जगत अब बंधन रूप नहीं लगता. आज पूर्णिमा है, श्रावण की पूर्णिमा अर्थात रक्षाबन्धन का पावन दिवस ! उसने कान्हा को राखी बाधी, वही उसका रक्षक है और जगत के सभी प्राणियों का भी.

उसके दाहिने कान से मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही है, ऐसी ध्वनि जो भीतर से उपजती है, अनहद नाद. बहुत पहले, जब वह साधना नहीं करती थी, उसने एक लेख में लिखा था कि योगियों को अनहद नाद सुनाई देता है, शायद वह उसका पूर्वाभास था. सद्गुरु की क्रिया से ऐसे-ऐसे अनुभव हुए हैं जिन्हें शब्दों में बताना अत्यंत कठिन है. ऐसे परमात्मा, जो सुख स्वरूप है, को छोड़कर वे व्यर्थ ही अपना सुख संसार में खोजते हैं. आज उसने सुंदर ज्ञान सुना- वे पांच इन्द्रियों के गुलाम हैं, खाना, देखना, सुनना, सूँघना और स्पर्श करना इन कृत्यों को करते हुए वे मूलाधार चक्र में ही रहते हैं. अहम् का जब विकास होता है, तो परिवार आदि का पोषण करते हैं स्वाधिष्ठान चक्र में. स्वयं को मन का राजा मानकर मणिपुर में, अनहत तक आते-आते अहंकार बढ़ जाता है. विशुद्धि में देहाभिमान कुछ कम होता है, आज्ञा चक्र में वह पूरी तरह चला जाता है. सभी के साथ एकात्मकता का अनुभव होता है. तब जीवन में सच्चे प्रेम का उदय होता है, ऐसा प्रेम जो सभी का हित चाहता है, बिना शर्त है.      

बोस्टन की बर्फबारी



आज बहुत दिनों के बाद डायरी का चिर-परिचित पृष्ठ उसके सम्मुख है. मौसम ठंडा है बदली भरा. जून दो दिन की छुट्टी के बाद आज दफ्तर गये हैं. उन्हें घर आये तीन-चार दिन हो गये हैं, अभी तक पूर्व दिनचर्या आरम्भ नहीं हो पायी है. पिछले महीने के मध्य में वे यात्रा पर निकले थे, एक महीने बाद वापस आये तो उसका गला ठीक नहीं था, जो अभी तक भी पूरा ठीक नहीं है. यहाँ इतने दिनों के बाद आकर सब कुछ बदला-बदला सा लग रहा है. सम्भवतः सब कुछ वही है उनका मन ही बदल गया है. पहले सा नहीं रहा. ह्यूस्टन से वे तीन दिनों के लिए बोस्टन गये थे, जहाँ जून के मित्र और उसकी पत्नी ने स्वागत किया. मौसम बहुत ठंडा था, जितने समय वे वहाँ रहे, बर्फ गिरती रही, पहली बार बर्फ से इतने निकट से आमना-सामना हुआ था, वे मंत्रमुग्ध से खिड़की से देखते रहते, बाहर भी गये तो ढेर सारे वस्त्र पहन कर तथा उन लोगों के दिए जूते पहन कर. बोस्टन से वे लन्दन गये जहाँ तीन दिनों में मुख्य-मुख्य स्थान देखे. वहाँ भी ठंड बहुत ज्यादा थी पर बर्फ नहीं गिर रही थी. लन्दन से दिल्ली पहुंचे तो सब कुछ कितना अलग लग रहा था, वहाँ से एक दिन के लिए पिताजी से मिलने घर गये और फिर वापस असम. नन्हे की परीक्षाओं में बहुत कम समय रह गया है. अगले महीने उसके इम्तहान है. अभी-अभी उसे देखा तो पढ़ते-पढ़ते आँखें बंद थीं. जब उसने कहा, सो जाये, तो जग गया, और सीधे होकर बैठ गया.
आज बहुत दिनों बाद गुरु माँ को सुना, कह रही थीं कि बिजली की तार पर जैसे प्लास्टिक की परत होती है और फिर कपड़े की, छूने पर कुछ भी महसूस नहीं होता इसी प्रकार मन पर कितनी परतें चढ़ी हैं तभी तो ईश्वर का नाम लेते रहने पर भी कुछ नहीं होता. वे उस प्रभु को दूर-दूर से ही याद करते हैं, पास आने से डरते हैं क्यों कि ऐसा करने पर अभिमान को तज देना होगा.

एक लम्बे अन्तराल के बाद आज डायरी खोली है. आज सुबह वह हिंदी पुस्तकालय गयी थी. पिछले महीने उसको सर्दी लगी थी और अब एक-एक करके घर में सभी को जुकाम हो रहा है. मौसम हर दिन नये रूप में आता है, कभी तेज-गर्मी तो कभी बरसात के बाद की ठंड. आज सुबह से ही शीतल हवा चल रही है. वह हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा डा. राधाकृष्णन की पुस्तकें लायी है. अध्यात्म के अतिरिक्त और कोई विषय नहीं सुहाता, इसी जन्म में मुक्त होना चाहती है. जीवन दुखों का घर है, मन को कितने-कितने विकार तपाते हैं. तन को रोगादि, तथा जरा व मृत्यु तो हैं ही. वह दुखों से भागकर ही मुक्ति चाहती है, ऐसा भी नहीं है, वह उस अवस्था का अनुभव करना चाहती है जो शब्दातीत है, जहाँ सद्गुरु पहुंचे हैं. उसकी साधना में कभी-कभी विघ्न पड़ते हैं पर जैसे सहज भाव से चलते हुए नदी अपनी मंजिल पा लेती है वैसे ही उसकी साधना भी फलवती होगी. सद्गुरु का ज्ञान उसका सबसे बड़ा सहारा है, ईश्वर का प्रेम भी उसमें मिल जाता है और मन का विश्वास तथा हृदय की श्रद्धा और आस्था भी उसमें सम्मिलित है, उसे पथ दिखाने के लिए इतने साधन तो हैं फिर उसके परिजन जो सदा उसका सहयोग करते हैं, वह अपने ज्ञान की परीक्षा परिवार में ही कर सकती है. हृदय कितना निर्मल हुआ इसकी परख व्यवहार से ही होती है.

Monday, June 15, 2015

ह्यूस्टन का वनस्पति उद्यान



आज वे लोग एक विस्तृत वन देखने गये, वनस्पति उद्यान..जहाँ ऊंचे-ऊंचे वृक्ष थे, हरियाली थी, जंगल भी था और बगीचा भी. कितने ही लोग वहाँ साइकिलों पर घूम रहे थे. जून के एक अमेरिकन सहयोगी उन्हें वहाँ ले गये. डील-डौल में काफी बड़े थे. अमेरिका के अधिकतर निवासी कद-काठी में काफी बड़े होते हैं, और चेहरे लाल-गुलाबी. यहाँ सब कुछ बड़ा है, देश तो बड़ा है ही, हवाई अड्डे इतने बड़े हैं कि भारत के कई गाँव समा जाएँ. उस दिन जब पहली बार वे यहाँ के जार्ज बुश हवाई अड्डे पर उतरे थे तो सामान रखने के लिए ढूँढने पर कोई ट्राली नहीं मिली, इधर-उधर पता लगाकर बाहर सड़क से उन्हें एक ट्राली मिली. सड़कें चौड़ी-चौड़ी हैं. इमारतें विशाल हैं. कारें भी उसी अनुपात में लंबी-चौड़ी हैं. वे खाने-पीने का सामान खरीदने गये थे तो आलू-प्याज, गाजर भी दुगने आकार के मिले. यहाँ के फल भी बड़े हैं और स्वाद भी थोड़ा अलग है. पानी में क्लोरीन कि गंध आ रही है. टमाटर कच्चा खाने की कोशिश की तो उसमें भी क्लोरीन जैसी गंध आयी. चावल भी पार बॉयल्ड मिले हैं साइज में बड़े और मोटे. दूध का कैन पांच लीटर का, दाल का पैकेट दो किलो का. चाय की तो इतनी वैरायटी उन्हें दिखी कि अचरज से भर गये. स्ट्राबेरी चाय उसने पहली बार पी, वैसे यहाँ का राष्ट्रीय चाय है ‘आइस्ड टी’, और वनीला फ्लेवर राष्ट्रीय फ्लेवर है आइसक्रीम का. वे सभी कुछ बड़े साइज का इस्तेमाल करते हैं, उनका दिल भी जरूर विशाल होगा तभी दुनिया भर के लोग अमेरिका को अपना देश बनाकर रह पाते हैं. भारतीयों की संख्या काफी है. यहाँ घूमने आने वालों के लिए कई आकर्षण हैं. शहर में कई झीले हैं, छोटी-बड़ी धाराएँ हैं जिनके किनारे पर सुंदर बगीचे हैं. कई स्टेडियम हैं, एस्त्रोडोम जिसे विश्व का आठंवा आश्चर्य कहा जाता है, विश्व का पहला वातानुकूलित स्टेडियम है.  

आज भी सुबह से वर्षा जोरदार हो रही है, सड़कों पर भरा पानी देखकर उसे असम की याद आ रही है. चैनल २ पर मौसम का हाल बताया जा रहा है. कुछ घरों के आगे भी १-२ फीट से अधिक पानी भर गया है. शुगर लैंड में लोग आहत भी हुए हैं. टीवी पर बार-बार दिखा रहे हैं, एक नीली गाडी में पेड़ की बड़ी शाखा घुसी हुई है. कहीं कहीं १३-१४ फीट तक पानी भर गया है. जून की आज की ट्रेनिंग भी हो गयी है, उनका फोन आया था, वे लोग आने के लिए टैक्सी खोज रहे हैं. ट्रेनिंग सेंटर के बाहर भी पानी है.  होटल के इस कमरे में बैठकर उसे तूफान की विभीषका का पता नहीं चला. केटी फ्री वे का रास्ता भी पूरी तरह पानी से भर गया है.

अभी कुछ देर पहले भारत बात की, वहाँ अभी सवेरा हुआ है, नन्हा उठ चुका था, यह कार्ड पांच  डालर का था जिससे सिर्फ एक बार बात कर सकते हैं. नन्हे ने मेल भी पढ़ लिए थे. जून ने आकर बताया कि टैक्सी ड्राइवर अच्छा था, अच्छे मूड में था, उसने अपना कार्ड दिया भविष्य में उसे बुलाने के लिए. यहाँ लोग बिजनेस करना जानते हैं, वैसे वे प्रैक्टिकल हैं भारतीयों की तरह जरा भी इमोशनल नहीं. लोग पहली बार मिलने पर अभिवादन करते हैं फिर अपने काम से काम रखते हैं.  टीवी पर लोग मुस्कुराते हुए विस्तार से समाचार देते हैं पर अक्सर उसे लगता है कि उनकी मुस्कान वास्तविक नहीं है.


जून ने एक मोटा सा अख़बार लिया होटल के गेट पर लगी वेंडिंग मशीन में सिक्का डालकर, उसे पढ़कर कितनी ही जानकारी उसे मिली है. ह्यूस्टन अमेरिका के टेक्सास प्रदेश का दक्षिणी शहर है. यहाँ ९० से अधिक भाषा भाषी लोग रहते हैं. यहाँ सड़क पर कोई पैदल चलता हुआ नजर नहीं आता. कई लोग मोटापे के मामले में गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम लिखाने को तैयार बैठे हैं. लोगों के खाने-पीने का कोई समय नहीं है. ड्राइव करते समय स्कूल के रस्ते में, ऑफिस में जहाँ कहीं भी लोग हों कुछ न कुछ खाते-पीते रहना उनकी आदत है. कॉफ़ी के मग होते हैं कप नहीं.  

अंगूर का बगीचा


She wrote these beautiful lines from the book kept in the table drawer-

O lord, you have searched me and known me. You know my siting down and my rising up; you understand my thought afar off.  You comprehend my path and my lying down and are acquainted with all my ways. For there is not a word on my tongue, but behold, o lord, you know it altogether. You have hedge me behind and before, and laid your hand upon me. Such knowledge is too wonderful for me, it is high, I cannot attain it. Where can I go from your spirit? Or where can I flee from your presence? If I ascend into heaven, you are there, if I make my bed in hell, behold you are there. If I take the wings of the morning, and dwell in the uttermost parts of the sea, even there your hand shall hold me. If I say surely the darkness shall not fall on me, even the night shall be light on me. Indeed the darkness shall not hide from you, but the night shines as the day, the darkness and the light both are alike to you.
For you formed my inward parts, you covered me in my mother’s womb. I will praise you, for I am fearfully and wonderfully made, marvelous are your works and that my soul knows very well.  My frame was not hidden from you, when I was made in secret and skilfully wrought in the lowest parts of the earth.
A
nd listened these inspiring lines on TV - we had to set our priorities. God is vine and we are his branches, we need pruning to produce good yield and then we should offer God the first fruit not the leftover. God should be part of our life in every sphere. If we do the things that take us away from God and they take most of our energy and time then we should keep them away by pruning. Our life should be organized and orderly with right priorities set and we should be able to do first thing first. God is with us and keeps doing pruning also but we keep the dead branches and cut branches on our head unnecessarily making us heavy. We should be fresh tree of God’s garden helping him in pruning our self. The good work which we start doing will be performed by him and useless work will be taken away if we try to live in God. When we are with God he takes care of deeds done by us. We should have deep confidence in him. He makes us nice.      

Saturday, June 13, 2015

थैंक्स गिविंग परेड - ह्यूस्टन


Yesterday was very cold; she was in the room whole day. Once went out but cool wind was piercing. Jun came around six thirty in the evening. Today they all went to BJ Company in the afternoon and returned in the evening. From tomorrow onward three days are holidays. Already shops are decorated with Christmas trees and toys. Jun clicked some photographs of the shops and they have come nicely.
आज छुट्टी का पहला दिन है, सुबह उठकर ‘क्रिया’ आदि कर वे दस बजे तक तैयार थे. एक अच्छी फिल्म देखी, एक छोटा बच्चा जो ईश्वर में अटूट विश्वास करता है, अपने अथक प्रयास से उसे पा लेता है. विश्वासी सदा ईश्वर के निकट है. वे हार्विन  रोड भी गये पर वहाँ की दुकानों में सामान भरा होने के बावजूद कुछ खरीदने का मन नहीं हुआ, फिर वे डॉलर शॉप में गये जहाँ बच्चों के लिए गिफ्ट खरीदे, Manhattan pizza shop में पिजा खाया और चलते-चलते वापस होटल पहुंचे. वे लगभग चालीस मिनट चले होंगे पर थकान जरा भी नहीं थी. यहाँ हवा स्वच्छ है और ऐसा कुछ है जो लोगों को अनथक चलते रहने को प्रेरित करता है. दोपहर बाद वालमार्ट गये, कुछ और उपहार लिए. यहाँ के भौतिकतावादी जीवन का असर उन पर भी पड़ने लगा है, लेकिन आसपास दुकानों के अलावा कुछ है भी नहीं. भारत से इतना दूर रहकर वे अपने मित्रों- संबंधियों से अधिक स्नेह करने लगे हैं, सभी के लिए कुछ न कुछ खरीदने का मन होता है.
Just now they talked to Nanha, papa and ma in India. They said that they all are happy and fine but she felt a trace of sadness or something in their talk. Due to continental distance time lag prevents to speak smoothly. But at least they can chat from their room whenever they wish with the help of phone card. Today is thanksgiving festival, celebrated with great joy and show in America. There will be a parade in down town; they will see it on TV. Shops will be closed. Got up at five, did pranayama and yoga, it helps them very much in starting their day energetically. There friends are going to Las Vegas today and from there to Las angels. Yesterday they went to Harvin road to purchase a camera, but could not get it. Trip to Harvin was free, the other day cab driver promised them to take to Harvin free of cost, and he kept his words.  Sitting here and viewing thanks giving parade is a thing which does not happen often, it’s a life time experience. She is thankful to God who made it possible for her and thankful to all the people through whom God made it possible. Jun, Nanha, in-laws, jun’s company and many persons across the globe who made their journey a pleasant one. Her thanks go to these hotels’ personals and also to America, where people of every part of the world live gracefully is celebrating thanksgiving today!
She wrote the description of parade in her diary-
·         Blue, orange and white clad children are dancing on fast tune.
·         A black suited man was dancing amazingly, with some ladies, very fast on his steps.
·         Some wicked looking green clad dancers, some are wearing long pointed caps, and main dancer is black.
·         Here come fat clowns having long neck.
·         An eleven year old boy is singing and dancing wearing white shirt, grey half pant and red tie.
·         Wearing Red frocks with white fur border and heavy silver ornaments looking like circus artists, girls are showing there dance item.
·         A big turkey made of a balloon is being shown with other balloons of different shapes. Judy Collins is singing in slow tune wearing a black dress with pink shawl, big size red capsicum and other vegetables are being shown on the stage.
·         Now Pulaski high school Houston band has come on the center stage.
·         A big yellow bird (wool bird) with two small chicks is singing.
·         A white big plastic dog is moving slowly and a girl is singing.
·         Now Disney’s jungles have come with Micky and mini and other cartoons characters. Peter pan wearing green dress is large and huge, double story high.
·         Sam Houston high school band is playing some fast tune.
·         Other balloon is Pinocchio.
·         Now Santa clause is coming with Christmas bell and other decor of Christmas.
·         One Indian group is also coming with a big elephant decorated with golden plate on forehead and group of sari clad women and girls are dancing.
·         A  sardar ji is displaying his sword action.

Friday, June 12, 2015

क्रिसमस ट्री का सौन्दर्य


Today she is at home, means in the hotel room. Jun left at seven thirty in the morning, after having a delicious breakfast. he rang her some time back, will be back at five in the evening, and then they will go to Walmart. She watched news and then one movie to know the tit bit of American culture. Yesterday she went to training center. Emailed to didi and Nanha, who had written, Assam is in the grip of violence, she hoped things get better soon. They ate some nice cookies and drank milk chocolate in the lunch break and went for a walk around the center. They saw fast moving heavy traffic, large hotels, restaurant and big showrooms on the way.  In the evening they went to market with jun’s friend, he showed them some big shops of vegetables, flowers and gifts. They had Indian food in Balaji and brought some strawberries, avocados, brinjals and cucumbers. The waiter at Balaji was sad although he was smiling to see them. There was an Indian girl in the front of dollar shop asking for help. In the Indian food mart sales persons were not looking well dressed. So everybody is not so well to-do in Houston. Yesterday she read much about the city, its hot and humid weather, its traffic, concrete jungle and also about its plus points. Now she is familiar with many names and places of the city. It is a huge city. She is enjoying every moment here. They have another two weeks here to see the city, to feel it, to live in the richest country of the world, some of the most talented people, most beautiful people and story teller live here. Holidays are always fun and holidaying in US is  really something.
Today morning she was in petro skill training center's coffee room. She got there a guide to Houston; some of the findings are interesting so she has noted it down for the article, which she is going to write afterwards-
The city was named after Samuel Houston, who was in his life time governor of Tennessee and Texas, signer of Texas declaration of independence from Mexico.
The first word spoken from the surface of the moon when the first astronauts landed in July 1969 was Houston.
The racial mix here is 54% white, 23% Hispanic, 19% Black and 4% other Asian or other races.
 Oil is in the veins of Houston. Texaco and Exon are two petroleum industry top giants.
In the evening they went for sightseeing. They saw the museum of natural sciences, IMAX theatre, aquarium and zoo. They went to Galleria and Katy mills mall and saw number of beautiful shops decorated with Christmas trees and toys. It was all like a dreamland. There one could buy anything under the sun from eatables to furniture and camera to microwave ovens.
Today she is again in the hotel room alone. Jun has gone for his field visit part of the tour. Yesterday they went to NASA, Mr Mike sun-in-law of jun friend’s relative showed them the surrounding and explained many interesting things about NASA. They spent good time there, earlier it was hot and suddenly rain started and temperature dropped down and they all were shivering with cold.  They drove in to NASA metro train and toured around the space mission center and saw the actual size mars rockets and shuttle, which will be part of the next space station of NASA, it is international space station made by the help of 150 nations other than America. There they bought two souvenirs for Nanha. They went to the clear lake city also and saw a semi complete house; it was fully carpeted white large, centrally air-conditioned house and belonged to an Assamese family, whose daughter was married to this American astronaut. They served delicious lunch for them. Then they saw another house which had four bedrooms, fully air conditioned, it belonged to Mr Mike.


Thursday, June 11, 2015

बारिश और तूफान


It is raining outside since early morning, clouds can be seen and thunder can be heard continuously from the room, so she did not go for a walk as she had thought, did some yogasan and kriya.  Room temperature is quite comfortable. They have brought so many woolens but no need for them inside.  She has almost prepared meal for today, moong dal, rice and mix veg, for lunch, tried salad but did not like the flavour of tomato. It was a bit hard also. She thought, American think big, eat big, drink big and they do everything big. Otherwise food was good. It is a nice experience to cook in US and watch TV while cooking. It is a bit lonely but she is feeling good, will learn many new things about American culture in coming days.

TV news is full of weather forecasting. A tornado is about to come in the city by evening. There is traffic jam on some places and roads are covered with few inches of water. She finds it amazing that roads are flooded here also like India. TV coverage of weather is excellent here with coloured diagrams. They told about some day care center where children got hurt due to rain and big storm. It seems they are obsessed with rain telling how many inches were rained during last hour in different areas and how much will be in next half an hour. They are telling to be in the room away from windows. She can here fire brigade siren outside hotel room. Many cars are parked in the open area. There is a small grass patch looking beautiful after rain.

 Jun has left for his work place that is training center. It is sun shining outside. They had brown bread with butter and tea in breakfast. Yesterday they could go for a walk for some time, rain had stopped.  They needed some butter and biscuits. First shop was near petrol pump, here they call it convenience store, sale person was a Pakistani named Wahid and second shopkeeper was Chinese or Japanese. They bought one nail cutter also. Jun came back around five in the evening; they had peanuts and tea with his friends. Dinner was again rice+dal with veggies. Today she will make fried rice, there is no provision for making roti. Last night they could talk to Nanha and parents, it was five am in India.  Jun got nanha’a email also. Tomorrow she will go to training center with jun. her right ear is ringing, perhaps God is trying to talk to her, and his ways are strange. They did kriya in the morning, but when opened the windows for fresh air, noise was disturbing very much. They cannot open window here because across the hotel is highway, where heavy traffic is continuously moving.

Just now she heard melodious violin on TV played by children in annual student concert. Now she has to take bath, do neti kriya, exercise, pranayama, meditation and write e mails, also to read books she has brought from India, and then make a list of gifts they will buy for friends and relatives. Then she will go for a walk around the hotel, cook food for lunch and take a nap in the afternoon. At this moment she is feeling homesick, feeling a bit lonely.  Never thought about this perhaps this is due to cold or pin drop silence in the room. It will be good to keep TV on, but most of the programmes show violence. God is with her here this moment and after completing all the jobs mentioned above will feel good.


After bath and all she went outside, sun was shining and strong wind was blowing also. Houston is near sea so it seems that storms are common phenomena here.  She could not walk due to wind and loud noise from the high way. Continuous flow of big and very big vehicles on the road was making great noise. One cannot walk on the roadside here even she could not in front of hotel in the parking area. She wondered where they are going all the time. While eating breakfast she watched some part of a movie, persons are confused, weeping, having complex relations, speaking bad language and ill-treating each other. But she knows this is not real America as Indian movies do not present reality of Indian society.   

Wednesday, June 10, 2015

ह्यूस्टन में पहला दिन


Hotel extended stay, America
Today is their first day in Houston. It was around six months back when jun first told about his official trip and things improved in his favour, then he suggested her to accompany him.  Father and Mother-in-law came to live with them. Last month they went to Kolkata for visa and had to stay for four days. jun was doing most of the preparations officially as well as personally and it is his gift to her. It will cost them much but visiting America is a dream comes true. At this hour in India she used to watch sanskar channel, here will miss those inspiring talks of guruji .

Day before yesterday they started from Assam to Delhi and  Yesterday by sahara flight to Mumbai after a long preparation for this trip, they bought a suit length for Nanha by bid and buy scheme in flight. Younger sister and her husband came to receive them and took them to their new home, which was in challenger tower a twenty seven story building. Nearby were oberoy and viceroy towers. Both of their daughters welcomed them with zeal, showed magic and puppet show. Nuna gave books and some stationary them, they gave pastries and chocolates, and in the evening took them to D-mart, a new big shopping complex. After dinner brother-in-law dropped them at chatrapati shivaji international airport but before that he showed his hotel, where he works. It was a grand five star hotel. First time she saw the kitchen, bakery and cold storage of a five star hotel. They also saw live salad, live sweet shop and live snacks bar.  Mumbai airport was very impressive. Big duty free shops were of great attraction. It was eleven pm when they reached there, flight was scheduled at quarter to three, so they took some rest on large sleeping couches, and all other three of their group except her slept.  She read for some time and took a stroll for some time. It was all like a different place, not everyday experience so she was seeing it with open mind to capture the feelings so that she could write afterwards. 

They entered BritishAirways flight no 318 directly from the airport via aero bridge. Three of the crew members were Indian air hostess, they served them Indian food. Seats were a bit congested and journey was long but she enjoyed every moment of it. Even at three thirty at night she ate Dal-chawal. They drank lot of orange, apple and tomato juices and ate different kind of snacks during all flights. They reached London Heathrow Airport around six in the morning (local time), in India it was twelve am after nine hours. They watched maps on the screen in front of them and she watched a movie Hulk during London to Houston flight. London airport was bigger, they rested for some time and then rechecked for Chicago again by British airways, during this whole journey many times they had to go through security checks starting from the US consulate in Kolkata where they were thoroughly checked up.  In Chicago their hand baggages were checked and nail cutter +scissor were taken away. From London to Chicago food was very American, taste was different, seats were better and staffs were more efficient and good. Again they watched for some time on the small TV screen, a comedy film of body obsessed people, reached Houston airport around five. First impression was that of a factory, big pipes and long hollow structure was looking like inside of a factory. They got a big van type cab outside the airport and reached in this hotel around six fifteen. In India it was eight forty five of next day. 

This room is quite large having a separate table for writing and dinner and a large bed. It has a large window and outside view is good. kitchen is also nice with hot plate, microwave oven and washbasin. Some utensils are also there with plates and spoons. Hotel provides laundries facilities also using coin. One Jun’s Indian friend came to visit them and then took all three of them for shopping. They bought rice, dal, milk and oil etc. for three weeks stay here. They ate sandwiches in the dinner, they have enough eatables now.  It is cloudy, a small park, a high pink building and few trees are visible from the room. She thought, she will go outside after sometime for a stroll nearby. Jun has gone to his training place with his two colleagues. They will return in the evening. He will call from the office. They took corn flex and sandwiches in the breakfast. Now it is eight am, she has to cook lunch for her and dinner for both of them. Her heart goes to India to all the family members and friends. They will be having their dinner at this time and will be asleep when she would be roaming here in day light.



Tuesday, June 9, 2015

पहली विदेश यात्रा


ध्यान उसे भाता है पर आजकल उसके लिए समय व स्थान निकाल पाना कठिन होता जा रहा है. आँख बंद करते ही कैसे प्रभु का प्रेम पूरे तन-मन को ढक लेता सा लगता है. सिर के ऊपरी बिंदु पर हलचल सी होती है नहीं तो सिहरन और लगता है कि कुछ रिस रहा है. धीरे-धीरे बढ़ रहा है भीतर...उतर रहा है उस प्रभु का नाम फिर पोर-पोर में भर जाता है, उसका ताप मोहक है, उसकी याद सांसों को भर लेती है. वह जैसे छा जाता है फिर बाहर की दुनिया का होश किसे रहता है. कल बहुत दिनों के बाद सत्संग में गयी, शायद उसी का परिणाम है अथवा तो दीपावली के आगमन का उल्लास. सुबह-सवेरे संगीत का अभ्यास भी मन-प्राण को प्रफ्फुलित कर देता है और सुबह प्राणायाम का अभ्यास भी किया था, बीच-बीच में ध्यान था अथवा तंद्रा जिसके कारण श्वास गहरी नहीं हो पा रही थी. आजकल मौसम भी सुहावना है, वर्षा के बाद का आकाश कितना निर्मल होता है. कल अमावस्या है, यह दीपकों का प्रकाश इसे पूर्णिमा में बदल देगा ! उनके भीतर भी दीपक जल रहे हैं, भीतर प्रकाश ही प्रकाश है. प्रकाश के इस सागर को उसने कितनी बार देखा है, उनके भीतर ही नगाड़े भी बज रहे हैं, कितनी बार जिसे सुना है, सोहम, हंसा का अंतर्नाद स्पष्ट सुना है जैसे कोई भीतर बैठकर जप कर रहा हो, उनकी आत्मा का संगीत है वह और आत्मा का प्रकाश. आत्मा तो परमात्मा का अंश है तो वह उसका ही प्रकाश हुआ. उन्हें रस पूर्ण करने वह परमात्मा ही धीरे से घट खोल देता है, अपने रस का घट जो पूर्ण है जो मधुमय है, जो सुखमय है, जो शक्ति देता है, ज्ञान देता है और स्फूर्ति देता है. जो सभी ऐश्वर्यों का दाता है !

आज दीपावली है, दीयों का त्योहार, उजाले का त्योहार, उनके भीतर का उजाला जगमगाने लगे तभी असली दीपावली है. जब तक भीतर अंधकार हो तो बाहर का प्रकाश उनकी मदद नहीं कर सकता. आज सुबह क्रिया के बाद उसे ज्योति के दर्शन हुए, कान्हा ने भी अपने नीलमणि रूप में दर्शन दिए. परमात्मा उन्हें उनकी सभी कमियों के साथ स्वीकारता है, वह उनसे प्रेम निभाता है, चाहे वे कितना ही बड़ा अपराध करें उसे प्रेम से पुकारें तो वह जवाब देता है. वे ही उसके प्रेम को भुला देते हैं, तब जीवन कांटों में उलझ जाता है, कैसा ताप जलाता है. उसका साथ हो तो सारा जगत अपना-आप ही लगता है. उनका मन आत्मा में स्थित रहे तो हर क्षण ही उत्सव का क्षण है ! उसने प्रार्थना की, ‘उनके तन का पोर-पोर मन का हर अणु परमात्मा के नाम से इस तरह ओत-प्रोत हो जाये कि जैसे पात्र पूरा भर जाने पर जल छलकने लगता है, वैसे ही उसके नाम का अमृत उनके अधरों व नेत्रों से स्वतः ही छलकने लगे’. चित्त जब तृप्त होगा उसके नाम से पूर्ण होगा तो भीतर के ताप अशुभ वासनाएं भी धुल जाएँगी. अपनी भूलों पर वेदना होती है तो सजगता बढ़ती है, दुःख सिखाता है, क्रोध, मोह, आलस्य ताप को बढ़ाते हैं. ज्ञान उन्हें मुक्त करने के लिए, यह ज्ञान कि वे साक्षी मात्र हैं, सुख-दुःख के भोगी नहीं हैं.

उन्हें यात्रा पर जाना है, पहली बार विदेश यात्रा पर साथ-साथ. जीवन का सफर उन्होंने साथ-साथ तय करने का निर्णय वर्षों पहले लिया था, और अब यह छोटा सा सफर अमेरिका, इंग्लैण्ड की यात्रा. जिन स्थानों को टीवी अथवा पत्रिकाओं में देखा था, उन स्थानों को स्वयं देखने का अनुभव यकीनन अच्छा होगा. वे अपने साथ बहुत कुछ ले जा रहे हैं लेकिन सबसे उत्तम जो उनके साथ जायेगा वह है, वह  सुमिरन जो कान्हा ने उसे दिया है. कभी भी खत्म न होने वाला एक ऐसा प्रिय कार्य है प्रभु का स्मरण कि वे संसार में कहीं भी रहें, वह उनके साथ रहेगा. सद्गुरु की सिखाई साधना की विधि, सद्शास्त्रों का ज्ञान तथा ध्यान भी उसके साथ जायेगा और यही उसकी यात्रा के सम्बल हैं. टिकट-पैसे आदि का सारा प्रबंध जून देखते ही हैं, उन्हें ही उसकी फिकर करनी है पर उसके लिए उस परम पिता ने यही कार्य सौंपा है. गुरु माँ कहती हैं मन प्यासा है, भूखा है, और कड़वा है, न जाने कितनी बार वे संतों के उपदेश सुनते हैं, शास्त्रों का पाठ करते हैं पर फिर भी मन का बर्तन भरता नहीं, मन सूक्ष्म है वह स्थूल से कैसे भर सकता है और जब तक वह कड़वा है तब तक सूक्ष्म का स्वाद भी कैसे पता चलेगा. उन्होंने मन में न जाने कितनी गाठें बांध ली हैं पहले उन्हें खोलना होगा तभी तो मन बहेगा उस अनंत यात्रा पर. उनका अज्ञान ही उसे दुखी बनाता है, अहम् मन को सूखा रख जाता है और मोह ही भूखा रख जाता है. मन वास्तव में कुछ है ही नहीं, कल्पनाओं का एक जाल है, जो उन्होंने बुन रखा है !


Monday, June 8, 2015

अमेरिकन दूतावास


विपासना के आचार्य गोयनका जी की बात उसे आज याद आ रही थी, जब वे वीसा लेने के लिए इंटरव्यू देने जा रहे थे. मन चंचल है और न जाने कितने-कितने जन्मों के संस्कार इसमें दबे पड़े हैं. पता ही नहीं चलता क्या आँखें देखें, क्या कान सुनें और मन में क्या जग जाये. एक अथाह सागर है  मन, जिसका मंथन करो तो कितना कुछ ऊपर आता है, जिसमें कूड़ा-कचरा भी होता है, विष भी होता है और अमृत भी लेकिन अमृत की एक बूंद ही होती है जबकि व्यर्थ का सामान अधिक होता है. उसे स्वयं ही पता नहीं चलता कि अगले क्षण मन में क्या आने वाला है, कैसी बेहोशी में वे जीते हैं. महानगर का जीवन कितना भिन्न है, वातावरण का असर भी मन पर होता है और भोजन का भी. परसों सुबह वे घर से चले थे और इतवार को वापस पहुंचेंगे, अभी uk वीसा के लिए इंटरव्यू देना है जो परसों होगा. जून बाजार गये हैं अभी दो घंटे बाद ही लौटेंगे. उसके पास साधना के लिए पर्याप्त समय है, पहले कुछ देर पढ़ना ठीक रहेगा, जिससे मन भी एकाग्र हो सके. us दूतावास में अनुभव अच्छा रहा. इंटरव्यू ठीक था, उनके ट्रेवल एजेंट काफी ठीक हैं. कल तक सारी तैयारी हो जाएगी उनकी तरफ से. ठीक एक महीने बाद वे विदेश यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे. कान्हा उसके साथ है, जाने से पहले वह कालीघाट के ‘काली मन्दिर’, मदर टेरेसा के ‘निर्मल हृदय’ तथा ‘बेलूर मठ’ तीनों स्थानों पर जाना चाहती है. जून ने कहा है कि शनिवार को वे जा सकते हैं.

कल दक्षिणेश्वर में माँ काली कि भव्य मूर्ति के दर्शन किये, मन्दिर का प्रांगण भी विशाल है, सामने ही नदी भी है. संत प्रवर इसी मन्दिर में माँ काली से वार्तालाप करते थे. बेलूर मठ में उनकी मूर्ति जीवंत थी, कि लग रहा था वह वहीं हैं, उसे उनकी उपस्थिति का अहसास हुआ. विवेकानन्द की समाधि भी अनुपम थी. उनके कमरे को फूलों से सजाया गया था. पूरे आश्रम में एक अनोखी शांति फैली हुई थी. माँ शारदा के दर्शन नहीं हो सके, पर उनके कई चित्र देखे. जीता-जागता ईश्वर इस आश्रम में निवास करता था, उसकी उपस्थिति न जाने कितने सौ वर्षों तक मानवों को प्रेरित करती रहेगी. इस बार का कोलकाता प्रवास उसके लिये कई अर्थों में अनूठा है. अमेरिकन दूतावास की सुरक्षा व्यवस्था कितनी मजबूत थी, इंटरव्यू का अनुभव रोचक था. ‘मेट्रो’ के जूते भी नये तरीके के हैं. विदेश यात्रा के लिए तैयारी सुचारुरूप से चल रही है. वहाँ घर में भी नन्हे और उसकी दादी को अकेले घर सम्भालने और खाना बनाने में नये-नये अनुभव हो रहे हैं. आज दोपहर वे घर पहुंच जायेंगे. ईश्वर इस सृष्टि के कण-कण में है, वही जीवन है वही मृत्यु है. वही द्वन्द्वों को बनाता है पर स्वयं उनसे परे है. उसे वह अपनी ओर बुलाता है, वह जैसे कोई खेल खेल रहा है, यह जगत काली माँ की क्रीड़ा स्थली है, काली जो ईश्वर कि शक्ति है, वे दोनों एक ही हैं. कोई यदि इस खेल को जीतना चाहता है तो उसके पास लौटना होगा और उसका रास्ता सांप-सीढ़ी के खेल की तरह कई उतार-चढ़ावों से भरा है, उसे जब प्रतीत होता है कि मंजिल सामने है तो कोई सांप डस लेता है और वह नीचे उतार दिया जाता है. 


उसे लगता है, एक क्षण भी यदि उसके सुमिरन के बिना गुजरा तो कर्मों के बंधन मे फ़ंसना ही पड़ेगा, जब दिल में ईश्वर की स्मृति बनी रहती है तो वे पतन से बचे रहते हैं स्वार्थ उन पर शिकंजा नहीं कस सकता वाणी पवित्र रहती है मन बेकार की कल्पनाओं के जाल से मुक्त रहता है she has a small benign tumour in her body, today doctor told this fact and she is not at all worried. It seems that she knew it before, anything happens to her is done by God and he knows best for her. Her heart is filled with God’s love she is reading Ramkrishna’s story, she finds many thoughts similar as they are in her mind. Whenever she wishes he is real to her as the world is real. But this world is changing every moment and God is absolute, ever-present source of joy, knowledge and love. At this moment she is feeling his presence and whenever she closes her eyes she feels it and whenever she repeats his name feels a sensation. This whole world is his creation and who he loves him is dear to her. Ramkrishna and sri sri both are dear to her like God. Nothing in this world can give peace or joy that remembrance of Him can give. He is the total sum of all joy ever present here. He is the only one real, everything else is changing ever.