Wednesday, January 31, 2018

पुनर्नवा- बाज पक्षी


कल शाम जून आ गये. सुबह जब वे उठे वर्षा हो रही थी. छाता लेकर प्रातः भ्रमण के लिए गये. आज पुराने अखबार व वर्षों से सहेज कर रखीं पत्रिकाएँ रद्दी वाले को दे दीं. जीवन आगे बढ़ता जाता है, वे पुरानी वस्तुओं को व्यर्थ ही सहेजकर बैठे रहते हैं. कल एक पुरानी परिचिता का फोन आया, वह दो माह बाद दादी बनने वाली हैं. जून के सहकर्मी की पत्नी से भी बात हुई. वे बच्चे का आगमन शल्य क्रिया द्वारा चाहते हैं. आजकल सामान्य प्रसव को भी लोग छोड़ते जा रहे हैं, भारत में कुछ ज्यादा ही. परसों पुस्तकालय से रसेल की यूरोपीय दर्शन पर लिखी पुस्तक लायी थी, कठिन है, फिर भी प्रयास तो करना है. आज ब्लॉग पर यात्रा विवरण प्रकाशित किया.

आज मौसम धूप भरा है. गर्मी बढ़ गयी है. उसे चाय की जगह अब शरबत पीना शुरू करना होगा. दोपहर को भीतर किसी ने कहा, मन के कहे में जो चलेगा उसे परिणाम तो भुगतना होगा. शब्द कठोर थे. फेसबुक पर रश्मिप्रभा ने भी लिखा, जानते हुए कि आग में हाथ डालने से जलेगा, फिर भी लोग डालते हैं. होश जगाना है, प्रतिपल होश जगाये रखना है. ऊर्जा जो इतनी कीमती है, बेहोशी में यूँ ही बही जाती है. सुबह उठकर सबसे पहला काम यही करना है, रात को सोने से पूर्व भी होश जगाना है और दिन भर भी इस बात का ध्यान रखना है. भीतर का मौन जितना प्रगाढ़ होगा, होश बढ़ेगा. होश जितना बढ़ेगा, मौन गहरा होगा. सुबह उठी तो स्वप्न जैसा कुछ चल रहा था, व्यर्थ का मनोराज्य..जो कभी-कभी जाग्रत में भी चलने लगता है. आज जून को आने में देर हो रही है. बाहर से कुछ लोग आये हैं, सम्भवतः उन्हीं के साथ व्यस्त होंगे. उसने मोबाइल पर सद्गुरू का एक संदेश सुनना आरम्भ किया, कितना सुंदर ज्ञान है और कितनी आसानी से उपलब्ध है. सुबह माली से कहकर ग्रीन हॉउस पर पारदर्शी पोलीथिन लगवा कर पौधों को वर्षा के जल से बचाने का प्रबंध किया. धूप तो मिलती रहेगी. ऐसे ही उन्हें मन को व्यर्थ के चिन्तन से बचना है, सार्थक तो जारी रहेगा ही.

कल ईद का अवकाश था. सुबह विशेष अल्पाहार बनाया. जून शाम को मेहमान कक्ष के लिए नये पर्दे लाये. इस वर्ष क्लब की कमेटी में उसका नाम भी है, वह मीटिंग में गयी. भोजन गरिष्ठ था, सो रात को स्वप्न देखे. एक स्वप्न में उसका पर्स खो जाता है, सारा सामान उसके हाथ में है पर खाली पर्स कहीं रख दिया है. एक स्वप्न में रेत और कोयले के चूरे से भरे गढ्ढे, बड़ी विशाल मशीनें, और काम करते हुए लोग दिखे. अजीब गोरखधन्धा है उनका अवचेतन मन. सुबह टहलने गयी तो कितने शुभ विचार मन में आ रहे थे. मृणाल ज्योति की सहायता किस प्रकार करे, इसके विचार. उनके लिए वे एक कमरा बनवा दें, एजीएम में चाय का प्रबंध कर दें. एक बच्चे की फ़ीस ही दे दें. हर महीने खाद्य सामग्री दें. जून को कहा, उन्होंने भी दान की महत्ता को समझा और बाजार से ढेर सा सामान ले आये. माली के लिए अपनी चप्पल निकाल दी., ट्रैक सूट भी देने को कहा. आज शाम को मौसम सुहावना हो गया था, शायद रात को वर्षा हो.

आज दोपहर अस्पताल गयी थी. उस नन्ही बच्ची को देखने, जो आज सुबह ही जन्मी है दस बजे के लगभग. जून के सहकर्मी की पत्नी ठीक थी, कोई दर्द नहीं हुआ, दवाइयों की मदद से कितना आसान हो गया है बच्चे को जन्म देना. उसकी टीचर माँ ने भी बताया, उनके स्कूल की तीन शिक्षिकाओं के बच्चे भी सिजेरियन हुए हैं. आज सद्गुरू की लिखी पुस्तक ( उन्होंने तो बोला है, उसे संकलित किया गया है) दोबारा पढ़ रही है. समझ कुछ बढ़ी है, सो ज्यादा समझ में आ रही है. फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी बाज पक्षी के बारे में. वृद्ध होने पर वह अपने को पुनः युवा बनाता है. एक सौ पचास दिनों का समय लगता है उसे अपने पंजों, पंखों व चोंच को तोड़कर पुन नया उगाने में. उसके बाद कुछ वर्ष और जीवित रहता है. उन्हें भी स्वयं को पुनः-पुनः नया करना है. आज सुबह उठी तो मन में कई विचार थे. ध्यान में उत्तर मिले. परमात्मा उनके भीतर ही है, उन्हें उसे देह से पृथक जानना है. जानना तो शुद्ध बुद्धि से ही होगा. मन का दर्पण जब शुद्ध होगा तभी उसमें वह झलक दिखायेगा. उनका जीवन विशाल हो, प्रेममय हो तथा उस परमात्मा की गवाही देने वाला हो तभी मानना होगा उसको उन्होंने प्रेम किया है. अगले माह राखी है. उसके लिए सामान लाना है. इस माह के अंत में गुरू पूर्णिमा है. साधना का फल है सेवा, अब यही मन्त्र है जिसे उन्हें जपना है. क्लब का काम भी सेवा की भावना से साधना है, तब यह बोझ न लगकर आनन्द ही देगा !  


Monday, January 29, 2018

उड़ीसा के मंदिर


सवा दस बजे हैं, दोपहर का भोजन लगभग बन गया है. आज भी गर्मी बहुत है. पंखे के नीचे  बैठकर भी पसीना सूख नहीं रहा है. परसों दोपहर वे लौटे. सफाई का काम शुरू किया है. अगले महीने छोटी बहन आ रही है. उसके आने से पहले सभी कुछ ठीक-ठाक करना है. यात्रा विवरण लिखन आरम्भ किया  है. कल नन्हे का जन्मदिन है, कोई अच्छा सा व्यंजन बनाकर बंगाली सखी को भेजेगी. उसने परसों पनीर की स्वादिष्ट सब्जी भिजवाई थी, जब वे लौटे थे. उन्हें जो कुछ भी मिलता है, प्रकृति से, जगत से, वह उन्हें भरने के लिए है. उन्हें बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार करना आ जाये तो वे हर क्षण भरे जा रहे हैं. परमात्मा हर क्षण बरस रहा है. भीतर खाली आकाश है, जिसे जितना भी भरें वहाँ जगह है. यदि वे किसी का विरोध भी बिना विरोध के स्वीकारने की कला सीख जाते हैं तो हर क्षण उनके लिए एक नया अनुभव लेकर आता है. उनका अहंकार ही जगत से दूरी सिखाता है. उस दिन लेह में एक सखी का फोन आया, उनका तबादला पुनः यहाँ हो गया है. सम्भवतः इसी वर्ष वे लोग आ जाएँ. दुनिया गोल है, उनका जीवन भी लौट-लौट कर वहीं घूमता है. मन खाली है और भीतर एक गहन शांति है. अब जीवन जो भी लायेगा, सहज स्वीकार्य होगा !

आज गर्मी अपेक्षाकृत कम है. सुबह वर्षा के आसार नजर आ रहे थे. कल शाम काफी तेज वर्षा हुई. जून तिनसुकिया गये थे, ढेर सारे फल व सब्जियां लाये. आज नन्हे का जन्मदिन है उसने बायीं तरफ के दो दांत निकलवाये हैं, कह रहा था, काफी दर्द है. शाम को एक मित्र परिवार आ रहा है, दक्षिण भारतीय भोजन बनाया है यानि इडली, सांबर और नारियल की चटनी साथ में सेवईं की खीर और आम रस. बगिया से कच्चा नारियल भी तोड़ा है, उसके मीठे पानी के लिए. एक पका अनानास भी मिल गया. बगीचे में कटहल पकने लगे हैं, आज धोबी ने देखे, पर उसे तोड़ना नही आता. कह गया है, अगली बार ले जायेगा. वह माली से कह कर तुड़वा देगी.

साढ़े आठ हुए हैं, रात्रि के. जून को आज ही टूर पर निकलना पड़ा है, कार्य तो सोमवार को ही है, पर कल की कोई टिकट ही नहीं मिल रही थी. नन्हा घर से काम कर रहा है, उसका संदेश आया. आज नूना ने कटहल के बीजों की सब्जी बनायी थी. शाम को बगिया में कुछ देर काम किया, आजकल तितलियाँ बहुत आती हैं. गोयनका जी को सुनकर सोयी थी, स्वप्न में उन्हें देखा. सुबह स्नान के बाद एक गीत रचा पर बाद में भूल गयी, कुछ पंक्तियाँ ही याद रहीं. परमात्मा जिस क्षण मुखर होता है, तभी उन्हें अंकित कर लेना होगा. कभी-कभी ही ऐसे पल आते हैं. अब उसी का घर है उसका मन, स्वयं का होना ही तो दुःख है. मन का दूसरा नाम उलझन है, माया है, तो ऐसे मन को खाली रखना ही बेहतर है. अमन इसी में है और जब भी किसी का मन खाली हो जाता है, वही रहता है वहाँ !

इतवार की शाम. योग कक्षा में उड़िया सखी ने कोणार्क मन्दिर की कहानी बताई. मन्दिर का कलश नहीं लग पा रहा था तब एक कारीगर के बारह वर्षीय पुत्र ने आकर उसे लगाया था और स्वयं पानी में कूद गया. पुरी में सुभद्रा, बलराम व कृष्ण की मूर्तियाँ बनाने की कथा भी बहुत रोचक है. एक वृद्ध कारीगर मूर्तियाँ बना रहा था. वायदे के खिलाफ जब राजा ने उसे बीच में ही टोका तो हाथ नहीं बने थे. कितनी अनोखी कथाएं हैं भारत के अद्भुत मन्दिरों से जुड़ी. कृष्ण के पास तुलसी की सुगंध से भरा राधा का पत्र आया ऐसा एक गीत में उसने सुना था, यह भी उसने बताया. अगले हफ्ते रथयात्रा का त्यौहार है. उसी दिन ईद का उत्सव भी है. नन्हे से शाम को बात हुई, अब वह ठीक है.


Thursday, January 25, 2018

गुरुद्वारे में कड़ाह प्रसाद


आज लेह में उनका अंतिम दिन है. कल रात भी स्वप्न में कितने ही दृश्य दिखे, लद्दाख में देखे स्थानों के भी और अन्य भी. स्वप्न अलग थे पर जगते हुए इन दृश्यों को देखना एक अलग अनुभव है. चेतना जैसे ज्यादा मुखर हो गयी है. प्रकाश भी बहुत तीव्र है यहाँ. तेज धूप निकलती है जो ग्लेशियर्स को पिघला रही है. नहरों-नालों में जल का तेज बहाव शुरू हो गया है, जो खेतों को सींचने में काम आयेगा. यहाँ मुख्यतः वर्ष के तीन-चार महीने ही खेती की जाती है. कल शाम वे लेह पैलेस तथा शांति स्तूप देखने गये. लेह महल बहुत पुराना है, यह नौ मंजिला इमारत सत्रहवीं शतब्दी में राजा सेंग्गे नामग्याल द्वारा बनवायी गयी थी, अब इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया गया है. इसे बनाने में मुख्यतः लकड़ी का प्रयोग हुआ है. 
शांति स्तूप जापान के सहयोग से एक पहाड़ी पर बना एक अनोखा स्मारक है जिसमें नीचे बुद्ध मन्दिर है तथा ऊपर भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति, तथा निर्वाण के दृश्यों को मूर्तिकला के माध्यम से दर्शाया गया है. यह १९८५ में पूरा हुआ और दलाई लामा के हाथों इसका उद्घाटन हुआ.
आज की यात्रा का मुख्य आकर्षण था मेगनेटिक हिललिकिर  अलची के गोम्पा तथा पत्थर साहेब गुरुद्वारे में दोपहर का लंगर. सुबह नौ बजे नाश्ता करके वे दोरजी की इनोवा में निकले तथा सिंधु व झंस्कर नदी के संगम स्थल पर पहुंचे. दोनों नदियों के जल का रंग भिन्न था यह स्पष्ट दीख रहा था. गर्मी के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पर्वतों की ढलानों से मिट्टी के साथ पानी तेज गति से बह रहा है, सो मटमैला होने के बावजूद दो रंगों का था. वहाँ रिवर-राफ्टिंग के लिए भी साजो-सामान रखा था. 
मैग्नेटिक हिल पहुंचने पर कार अपने आप ऊंचाई पर चढ़ने लगी, ऐसा प्रतीत हुआ. लिकिर गोम्पा में भावी बुद्ध की विशाल स्वर्ण प्रतिमा है जिसे जापान की सहायता से बनाया गया है. मन्दिर में अद्भुत चित्रकला के माध्यम से भगवान बुद्ध के जीवन के मुख्य पड़ावों जन्म, ज्ञान प्राप्ति, दानवों पर विजय तथा निर्वाण को दर्शाया गया है. उन दस अर्हतों के भी चित्र वहाँ थे जिन्होंने बुद्द्ध की शिक्षाओं को संकलित किया था. 
लेह के पश्चिम में ७० किमी दूर स्थित अल्ची एक हजार वर्ष पुरानी मॉनेस्ट्री है, जहाँ मुख्य द्वार तक पहुंचने का मार्ग घुमावदार, शांत व शीतल है, संकरे मार्ग में दोनों और दुकाने लगी थीं. कई विदेशी यात्री वहाँ दिखे जो इतिहास में काफी रूचि दिखा रहे थे. 
पत्थर साहब गुरुद्वारा भी बहुत भव्य है जो सेना द्वारा संचालित किया जाता है. इसका महत्व इस बात से बढ़ जाता है कि गुरु नानक देव अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान यहाँ ठहरे थे. कहा जाता है कि एक दानव के उनके ध्यान को भंग करने के लिए एक चट्टान उनकी तरफ फेंकी पर उन्हें कोई नुकसान पहुंचाए बिना पत्थर की वह चट्टान वहाँ रुक गयी, जिसे आज तक पूजा जाता है. वहाँ उन्होंने कड़ाह प्रसाद तथा भोजन का प्रसाद ग्रहण किया. लेह शहर में स्थित एक स्थल दातुन साहब के बारे में भी एक पुस्तक में पढ़ा था, जहाँ गुरु नानक ने सोलहवीं शताब्दी में एक वृक्ष लगाया था.

इस समय संध्या होने में अभी कुछ समय है. तेज हवा के कारण पेड़ों की टहनियाँ आपस में व टिन के शेड से टकरा रही हैं, जिसके कारण आवाज पैदा हो रही है. धूप सात बजे तक कम होगी तब वे सांध्य भ्रमण के लिए जायेंगे तथा बाद में आज उतारे फोटो देखेंगे. सामान की पैकिंग लगभग हो चुकी है. कल सुबह आठ बजे की उड़ान से उन्हें दिल्ली जाना है और परसों इस वक्त असम में अपने घर में होंगे.                                                                  

Wednesday, January 24, 2018

पैंगोंग झील में चाँद


ठंड बिलकुल गायब हो चुकी है, जो एक घंटा पूर्व सुबह की लगभग चार किमी की सैर के दौरान महसूस हो रही थी. जाते समय चढ़ाई है कुछ प्रयास करना पड़ता है पर वापसी में सहजता से दूरी तय हो जाती है. यहाँ काफी स्वच्छता है तथा सडकें भी काफी अच्छी हालत में हैं.  आज तो लौटते समय गोएयर के जहाज की लैंडिंग की वीडियो फिल्म बनाई. वे हवाई अड्डे के थोड़ा पीछे ही रह रहे हैं. लगभग सारी फ्लाइट्स सुबह के वक्त ही आती हैं, क्योंकि धूप तेज होते ही यहाँ तेज हवा चलने लगती है. आज उन्हें पेंगौंग झील देखने जाना है, जो एशिया की सबसे बड़ी साल्ट वाटर की शांत झील है जो इतनी ऊंचाई पर स्थित है. १४००० फीट की ऊंचाई पर स्थित इस झील का दो तिहाई भाग तिब्बत में है. रात को वे वहीं रहने वाले हैं, कल शाम तक वापस लौटेंगे. टीवी पर जो समाचार आ रहे हैं, एक नई उम्मीद जगा रहे हैं. डिजिटल इंडिया के बाद स्किल इंडिया का अभियान भी सरकार द्वारा चलाया गया है. लद्दाख की उनकी अब तक की यात्रा सुचारू रूप से चल रही है. यहाँ के रास्ते भी उतने ही सीधे-सरल हैं जैसे यहाँ के लोग, कहीं भटकने की गुंजाइश नहीं है. कल रात्रि भी कुछ स्वप्न देखे जो भीतर मन की गहराई में चल रही उथल-पुथल को बाहर निकलने में सक्षम रहे. परसों रात भी स्वप्न देखा था और एक पुरानी समस्या का समाधान पाया. कल यात्रा में हुए अनुभव को फिर से महसूस किया. नींद गहरी नहीं आती यहाँ, कल दिन में भी सो गयी थी जो हवाई अड्डे पर दिए गये निर्देशों के अनूरूप नहीं था.
कल सुबह नौ बजे वे झील के लिए रवाना हुए. कारू होते हुए चांगला पहुंचे जो १७ ६८८ फीट की ऊंचाई पर है. बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ भव्य लग रही थीं. मार्ग में याक, जंगली घोड़े, खच्चर तथा फे नामके जंगली पीले बड़े आकार के चूहे दिखे. हर जगह रुककर कुछ तस्वीरें लीं और आगे की यात्रा आरम्भ की. 

मार्ग में एक गाँव जिसका नाम सक्ति है साथ-साथ चल रहा था. हरे-भरे सरसों व जौ के खेत तथा सीधे पंक्ति बद्ध खड़े वृक्ष. पर्वतों के मध्य से जब पहली बार झील के दर्शन हुए तो वे मंत्रमुग्ध से देखते रह गये. पथरीले पर्वतों पर बनी सड़क पर बढ़ते हुए हम झील के निकट पहुंचे. आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट’ के नाम पर एक रेस्तरां भी वहाँ था. दोरजी ड्राइवर उस स्थान पर ले गया जहाँ फिल्म की शूटिंग की गयी थी. 

झील का नीला और हरा जल मीलों तक फैला हुआ था, एक तरफ पर्वत थे और दूसरी ओर यात्रियों के लिए कैंप व तम्बू लगाये गये थे. कई श्वेत व सलेटी पंखों वाले पक्षी जिनकी चोंच व पंजे लाल थे, पानी में किलोल कर रहे थे. धूप तेज थी पर हवा भी तेज थी. उन्हें ऊंचाई पर होने वाली समस्या का अनुभव होने लगा था. रात्रि निवास के लिए एक कैम्प में डेरा डाल लिया. कुछ देर वहाँ विश्राम के बाद साढ़े छह बजे पुनः झील पर गये. धूप अब दूर पर्वतों के शिखरों पर खिसक गयी थी, ठंड उसी अनुपात में बढ़ गयी थी. मफलर, स्कार्फ. दस्ताने आदि पहनकर संध्या का आनंद लिया. एक व्यक्ति पानी में पैर डाले हुए चिल्ला रहा था, ठंड के कारण उसकी जान निकल रही थी पर फोटो खिंचाने के लिये शायद पानी में उतर गया था. रात्रि भोजन के बाद आकाश में दिख रहे पूर्ण चन्द्रमा को तथा झील के जल में नृत्य कर रही उसकी चन्द्रिका को देखकर कैम्प के बाहर से ही उसकी तस्वीरें उतारीं. ऊपर आकाश में चमकते हुए सैंकड़ों तारे इतने निकट प्रतीत हो रहे थे जैसे उन्हें छुआ जा सकता है.
  
सुबह साढ़े पांच बजे थे जब हम टेंट से निकले, सूरज काफी ऊँचा चढ़ आया था. पानी में उसकी सफेद रौशनी पड़ रही थी. कई तस्वीरें लीं. रात को एक बजे सिर दर्द की कारण नींद खुल गयी थी, समझ में आया इसीलिए ज्यादातर लोग रात्रि को झील पर रुकते नहीं हैं. नहाने के लिए गर्म पानी दिया जो यहाँ भी सोलर पॉवर से गर्म किया गया था. स्नानघर का फर्श कच्चा था, कोई फ्लोरिंग नहीं डाली गयी थी और ठंड भी बहुत थी सो हाथ-मुंह धोकर ही वे तैयार हो गये.  नाश्ते में पोहा तथा नमक व अजवायन के तिकोनाकर सादे परांठे (अमूल मक्खन व जैम के साथ) और चाय लेकर सवा आठ बजे वापसी की यात्रा आरम्भ की. साढ़े बारह बजे वे पेगौंग झील से लौट आये. 


Tuesday, January 23, 2018

पनामिक के गर्म चश्मे

कल शाम वे ऊंट सफारी के लिए तैयार हुए. कुछ ही दूरी पर वह स्थान था. रेतीले मैदान जो मार्ग में दूर से लुभा रहे थे अब निकट से देख पाए. लगभग २५-३० सजे हुए ऊंट थे जिनपर लाल अथवा गहरे रंगों की गद्दियाँ लगी थीं. दूर एक लाल झंडा लगा था जहाँ तक जाकर ऊंट चालक वापस मुड़ते हैं और एक उचित स्थान देखकर तस्वीरें उतारते हैं. ऊंट चालक ने हर कोण से चार-पांच तस्वीरें लीं जैसे कोई प्रशिक्षित फोटोग्राफर हो. वहाँ से लौटकर वे उस तम्बू में गये जहाँ से संगीत की ध्वनि आ रही थी. विभिन्न पोशाकों में नृत्यांगनाओं ने सहज मुद्राओं में स्वयं गीत गाकर नृत्य दिखाया. अनेक पर्यटकों के साथ उन्होंने भी लद्दाखी लोक नृत्य का आनंद लिया. उनके बोल मधुर थे और समझ में न आने पर भी एक पवित्रता का अनुभव करा रहे थे. उनके हाथों का संचालन ही मुख्य था, शरीर सीधा ही रहता है तथा नृत्य धीमी गति से चलता है. कुछ समय वहाँ बिताया और एक लद्दाखी पोषाक पहन कर तस्वीर भी खिंचाई. 

बाहर निकले तो देखा रेतीले मैदान में एक तरफ भेड़ों-बकरियों का एक रेवड़ हरी-घास व कांटेदार वृक्षों के पत्ते खा रहा था. लगभग दो घंटे वहाँ बिताकर लौट आये, कुछ देर के विश्राम के बाद साढ़े सात बजे भोजन कक्ष में पहुंचे. टमाटर सूप और पापड़ से शुरुआत की, भोजन में मुगल नामका एक स्थानीय साग भी था जो वहाँ काम करने वाली महिला ने अपने घर में बिना किसी रासायनिक खाद के बनाया था यानि ऑर्गैनिक. अरहर की घुली हुई दाल, पनीर-मटर, पास्ता तथा फुल्के... इतनी दूरस्थ जगह में इतनी कठिन परिस्थितियों में इतना स्वादिष्ट भोजन मिल सकता है उन्हें उम्मीद नहीं थी. रात को सोये तो नदी की कलकल धारा जैसे लोरी सुना रही हो. हल्की बूंदा-बांदी भी शुरू हो गयी थी, जो तम्बू की छत पर गिरती हुई टपटप आवाज से असम की याद ले आई. 

 सुबह उठे थे तो जल्दी से जैकेट-टोपी आदि पहनकर बाहर निकले थे, पंछियों की मधुर ध्वनियाँ आकर्षित कर रही थीं. पीले व काले पंखों वाली एक चिड़िया यहाँ बहुतायत से मिलती है जैसे और जगह गौरैया. आकार में उससे कुछ बड़ी है. उसकी कई तस्वीरें लीं, यहाँ मैगपाई नहीं दिखा पर काले रंग का पीली चोंच वाला एक बड़ा पक्षी था. उस जल से जो स्फटिक के समान स्वच्छ थासीधा ग्लेशियर से आ रहा था और सूर्य की किरणों से गर्म किया गया था, नहाकर वे ताजगी का अनुभव कर रहे थे. नाश्ता भी उतना ही लाजवाब था, लाल तरबूज, कॉर्न फ्लेक्स, उपमा, पनीर व आलू परांठा तथा छोले, चाय या काफ़ी. 

 साढ़े आठ बजे तैयार होकर गाड़ी में बैठ चुके थे पनामिक जाने के लिए, जहाँ गर्म पानी के चश्मे हैं. रस्ते में सूमुर गाँव भी आया जहाँ वापसी में उन्हें रुकना था. पनामिक का ३५ किमी का रास्ता बहुत मनोरम है. रेतीले बालू भरे तट तथा बड़े-बड़े पत्थर, ऊंचे नंगे पहाड़ तो कभी हरे-भरे खेत. नुब्रा नदी भी साथ-साथ बह रही थी. एक घंटे की यात्रा के बाद वे उस स्थान पर पहुंचे. तीन विभिन्न स्रोतों से पानी निकल रहा था, भाप भी नजर आ रही थी, छूकर देखना चाहा पर तापमान काफी अधिक था, कुछ लोग उसमें पैकेट वाला भोजन भी पका रहे थे. कई जगह गुजराती पर्यटक मिले थे, यहाँ भी उनकी भाषा से ऐसा लगा. दूर घाटी में सरसों के पीले खेत भी नजर आये. किसी बीते समय जब बाहरी दुनिया से लद्दाख का कोई संपर्क नहीं था, यहाँ के निवासी जौ और सरसों से काम चलाते थे, भेड़ों की ऊन से बने वस्त्र स्वयं ही बुनते थे जिन्हें पट्टू कहते हैं. 

 पनामिक से लौटकर वे सूमुर गाँव के गोम्पा पहुंचे जहाँ कोई प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता. गोम्पा अपेक्षाकृत बाहर से आधुनिक लगता है तथा सेब व खुबानी आदि फलों के कई वृक्ष अहाते में लगे हैं.  कुछ तस्वीरें लीं, फिर मुख्य कक्ष में गये जहाँ भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति थी तथा तारा की दो मूर्तियाँ थीं. मंजुश्री तथा वज्रपाणि की भी एक-एक मूर्ति थी. बौद्ध धर्म के बारे में कुछ जानकारी वहाँ के लामा ने दी जो एक पुस्तक पढ़ रहे थे पर प्रश्न पूछने पर सहजता से जवाब देने लगे. कक्ष से बाहर निकले तो एक वृद्ध लामा आते हुए दिखाई दिए, ‘जूले’ कहने पर मुस्कुरा कर उन्होंने भी जवाब दिया. शेष हर तरफ एक गहन शांति छायी हुई मिली. सूमुर गाँव से वे चले तो सीधे खरदुम गाँव में रुके जहाँ पुनः पहले दिन की तरह चाय मिली. आज यात्री बहुत ज्यादा थे सो चाय में दालचीनी का स्वाद नहीं आया तथा चीनी भी अधिक थी. एक साथ बीसियों लोगों के लिए चाय बनाना कोई आसान काम तो नहीं. लोग मैगी का आर्डर भी दे रहे थे, हर ब्रांड के नूडल्स को मैगी ही कहा जाता है यहाँ. खर्दुन्गला दर्रे तक वे पहुंचे तो दोपहर के दो बजे थे. इस बार  गाड़ी में बैठ-बैठे ही कुछ तस्वीरें लीं तथा वापसी की यात्रा का आरम्भ किया. 


नदियाँ, पहाड़, हिमपात  तथा वर्षा के दृश्य समेटे वापस पौने चार बजे लेह लौटे. खर्दुन्गला से पहले ही हिमपात शुरु हो गया था. बर्फ के सूक्ष्म कण कार की जरा सी खुली खिड़की के शीशे से भी अंदर आ रहे थे. कितने ही मोटरसाइकिल चालक दिखे जो इसी खराब मौसम में फिसलन भरी सड़क पर अपनी जान को जोखिम में डाल रहे थे. उनको देखकर उनकी बहादुरी पर रश्क भी होता था और करुणा भी. भगवान बुध के इस पावन स्थल पर सभी एक-दूसरे के लिए सद्भावना से भरे नजर आए. यहाँ कोई ऊंची आवाज में बात करता नजर नहीं आया, लोग विनम्र हैं, तथा धर्म उनके लिए जीवन का अभिन्न अंग है, धर्म तथा जीवन दो अलग-अलग बातें नहीं हैं. 

Friday, January 19, 2018

हिमालय के निकट


आज वे नुब्रा वैली आये हैं. जो लेह से एक सौ तीस किमी दूर है. रात्रि में यहीं रहेंगे तथा कल शाम तक वापस लौटेंगे. बहते हुए पानी का कल-कल शोर, रंग-बिरंगी चिड़ियों का मधुर कलरव तथा धारा के दोनों तरफ उगे घने वृक्षों की कतार एक अनुपम दृश्य का संयोजन कर रहे हैं. परमात्मा की बनाई इस सुंदर सृष्टि का आनंद लेने के लिए वे घर से इतनी दूर यात्रा करके आये हैं, कूर्ग की याद दिला रहा है यहाँ का वातावरण ! सुबह दही व अजवायन के परांठों का नाश्ता करके नौ बजे यात्रा पर निकले. इस बार  ड्राइवर थे टी दोरजी जो हाल ही में सेना से रिटायर्ड हुए हैं, शांत स्वभाव के इस बौद्ध के मन में दलाई लामा के प्रति विशेष आदर है. मार्ग में जहाँ वे आये थे, उन स्थानों को दिखाया, किस तरह लोगों ने उनका स्वागत किया इसका विवरण बताया. दलाई लामा ने लद्दाख वासियों को शाकाहारी रहने का उपदेश दिया है. इतनी ठंड होने के बावजूद यहाँ अस्सी प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं. ज्यादातर लोगों के चेहरे एक सरल मुस्कान से खिले रहते हैं. यह रिजॉर्ट ‘रॉयल कैम्प’ भी पूर्णतया शाकाहारी व्यंजन परोसता है, प्याज लहसुन के बिना भी, क्योंकि कई जैन लोग भी यहाँ आते हैं.  लेह से चलते समय जो पहला शांति स्तूप आया उसका एक चक्कर लगाकर ड्राइवर आगे बढ़ा. शहर से बाहर निकलते ही दोनों ओर विशाल पर्वत मालाएं आरम्भ हो गयीं. सलेटी, ग्रे, भूरे कहीं काले पर्वत और उनके पार बर्फ से ढकी चोटियाँ ! किस दृश्य को कैद करें यह सोचते ही अगला दृश्य आ जाता जो उससे भी बेहतर होता. कहीं-कहीं हरियाली भी थी, कहीं कोई छोटी जलधारा, बीच–बीच में कोई गाँव जिसमें जौ तथा सरसों की खेती भी की हुई थी. 


जैसे-जैसे ऊंचाई बढती गयी चट्टानों और पहाड़ों पर जो बर्फ दूर से दिखाई देती थी पास से नजर आने लगी. एक जगह भेड़ों व बकरियों का एक बड़ा रेवड़ सडक पार करता हुआ दिखा. अब सडक पर बर्फ का कीचड़ नजर आने लगा. लगभग तीस किमी की लम्बाई तक सड़क खराब थी, रास्ते में कई जगह मजदूर काम कर रहे थे. ड्राइवर ने बताया उनमें से कई बिहारी थे. अब वे ‘खर्दुन्गला दर्रे’ के नजदीक पहुंचते जा रहे थे. चारों तरफ श्वेत हिम से आच्छादित पर्वत मालाएं ! जिन्हें पहले हवाई जहाज से देखकर ही आनंदित होते थे, उनके निकट से गुजरना और उन्हें छूना एक अविस्मरणय अनुभव था. १८३२५ फीट की ऊंचाई पर स्थित यह विश्व की सर्वाधिक ऊंची मोटरेबल रोड है. सभी गाड़ियाँ वहाँ रुक गयीं और प्रफ्फुलित यात्रीगण उतर कर हिमाच्छादित पर्वतों के साथ तस्वीरें उतारने लगे. वह भी निकट के एक पर्वत पर चढ़ गयी और लगभग पांच मिनट ही वहाँ रुकी पर जब नीचे उतर कर आई तो जैसे दिल बैठने लगा, कार तक पहुंचते-पहुंचते तो होश उड़ने लगे. ड्राइवर कार पार्क करके चला गया था जून  ने उसे बुलाया और जितनी जल्दी हो सका उस ऊंचाई से वे नीचे उतरने लगे, सारे लक्षण जितनी तीव्रता से आये थे वैसे ही मिटने लगे और जल्द ही स्थिति सामान्य हो गयी. कई जगह पढ़ा था कि दस-पन्द्रह मिनट से ज्यादा चोटी पर ठहरना खतरनाक हो सकता है.


 वापसी में एक जगह रुककर पुनः हिम की तस्वीरें लीं. नुब्रा वैली पहुंचने से पूर्व एक गाँव खरदुम में चाय पी, छोटे से रेस्त्रां में लोगों का तांता लगा हुआ था, भोजन भी मिल रहा था और चाय, मैगी, कोल्ड ड्रिंक्स भी. ड्राइवर वहाँ का परिचित था उसने वहीं भोजन करने को कहा पर उन्हें गंतव्य पर पहुंचने की शीघ्रता थी, सो उसने खाना खाया और वे आगे बढ़े. कलसार नामक स्थान पर पहुंचे तो ट्रैफिक रुका हुआ था, पता चला सड़क पर कोलतार बिछाने का काम चल रहा है. दूसरी तरफ भी गाड़ियों का काफिला इकट्ठा हो गया था. आधा घंटा वे आराम से बैठे रहे फिर जैसे-जैसे समय बीतने लगा भूख सताने लगी. एक घंटा हो गया तो यही उचित समझा, उतर कर कोई ढाबा खोजें, आगे गये तो कितने ही यात्री वहाँ स्थित होटलों, ढाबों में बैठे थे. एक पंजाबी ढाबे में पंजाबी लडकी ने हमें चावल पर चने-उड़द की दाल जिसमें राजमा भी दिख रहे थे, परोसे तथा साथ में सूखी मिश्रित सब्जी. तब तक ट्रैफिक भी खुल गया था और यात्रा पुनः आरम्भ हो गयी. दिस्कित गाँव में पहुंचे तो दूर से ही एक सुंदर बुद्ध प्रतिमा के दर्शन होने लगे थे जो एक पहाड़ी पर बने मन्दिर के ऊपर बनी थी. चमकदार रंगों से सजी प्रतिमा को देखते ही एक अद्भुत शांति का अनुभव हो रहा था. ऊपर पहुंचे ही थे कि वर्षा होने लगी सो जल्दी ही नीचे उतरकर मन्दिर के भीतर गये जहाँ भगवान बुद्ध, मंजुश्री, तथा तारा देवी कि मूर्तियाँ थीं. दलाई लामा का एक चित्र भी था, पता चला एक बार दलाई लामा वहाँ आकर ठहरे थे. 


आगे की यात्रा का दृश्य अत्यंत मनोरम था, एक ओर ऊंचे पर्वत दूसरी और श्योक नदी का साफ जल तथा हरियाली भी नजर आने लगी थी. जौ की खेती की हुई थी और कहीं-कहीं घाटियों में काली गायें नजर आ रही थीं. हुन्दर गाँव में उन्हें रुकना था जो रेतीले मैदानों तथा दो कूबड़ वाले ऊंटों के लिए जाना जाता है. दोरजी उन्हें ‘रॉयल कैम्प’ में ले गया, जहाँ का वातावरण इतना भाया कि अन्य गेस्ट हाउस या कैम्प देखने की जरूरत महसूस नहीं हुई. गर्मजोशी से उनका स्वागत हुआ, अरुण नामका केयरटेकर जो दार्जलिंग का रहने वाला था, उसने कैम्प दिखाया, अच्छा लगा. बाहर से श्वेत तथा भीतर से पीले रंग का, फ्लैप वाली चार खिड़कियाँ, एक द्वार जो चेन से बंद होता था, तथा सटा हुआ स्नानघर. सोलर पैनल लगे थे उन्हीं से बिजली भी बनती है तथा सुबह के समय गर्म पानी भी आता है. 

Thursday, January 18, 2018

लेह के मठ


शाम के पौने आठ बजे बजे हैं. आज की यात्रा पूर्ण हो चुकी है. सुबह पांच बजे नींद खुल गयी, रात को हवा में ऑक्सीजन की कमी का अहसास हुआ सो एक खिड़की खोल दी थी, बाहर हवा तेज थी, उसकी आवाज आती रही. सुबह उठे तो ठंड बढ़ गयी थी. भाई को प्रातः भ्रमण के लिए तैयार देखकर वे भी उसके साथ टहलने गये, यह गेस्ट हाउस हवाई अड्डे के पीछे स्थित है, काफी साफ-सुथरा है और नया बना है. बाहर निकलते ही चारों ओर सलेटी, मटमैले, काले, धूसर पहाड़ और उनके पीछे बर्फ से ढकी चोटियाँ नजर आती हैं. पर्वतों पर विभिन्न आकृतियों के अंकित होने का भ्रम होता है. एक घंटे के भ्रमण काल में हमने चार उड़ानों को हवाई पट्टी पर उतरते देखा, पहाड़ के पीछे से आता हुआ जहाज जब पलों में आगे आकर एक निश्चित स्थान से नीचे उतरता है तो यह दृश्य दर्शनीय होता है. नहा-धोकर ठीक साढ़े आठ बजे ग्लास हॉउस के रूप में बने भोजन कक्ष में गये, कुक ने तिकोन पराठों के साथ पनीर की भुज्जी बनाई थी. एक लोकल ड्राइवर दोरजी की इको वैन उन्हें साठ किमी दूर ‘हेमिस गोम्पा’ में ले गयी. रास्ता विभिन्न दृश्यों को समेटे था. सरसों के छोटे खेत भी दिखे तथा मनाली रोड पर घने वृक्ष भी. जगह-जगह श्वेत शांति स्तूप बने थे. मॉनेस्ट्री एक विशाल चट्टान पर बनी है तथा छह सौ वर्ष पुरानी है. मुख्य हॉल में बुद्ध की एक सुंदर प्रतिमा है तथा दोनों और बैठने के लिए लकड़ी की बेंच तथा मेजें हैं. कुछ देर वहाँ बैठकर ध्यान भी किया, तभी वहाँ बैठा एक लामा शायद तिब्बती या लद्दाखी भाषा में मंत्रजाप करने लगा, वातावरण और भी प्रभावशाली हो गया. दीवारों पर आकर्षक रंगों में विभिन्न दृश्य अंकित किये गये हैं जिसमें भगवान बुद्ध व देवी तारा के चित्र हैं, अवलोकेश्वर के चित्र भी अंकित हैं. कला यहाँ इतनी सहजता से प्रस्तुत की गयी है कि विस्मयकारी प्रतीत होती है. प्रकृति ने जिस तरह अपना खजाना यहाँ लुटाया है उसी के अनुपात में बौद्ध लामाओं ने मठों को सजाया है. मन्दिर के बाहर जंगली गुलाब की एक झाड़ी थी जो फूलों से लदालद भरी थी. मार्ग में भी ऐसी कई झाड़ियाँ दिखीं. एक श्वेत-श्याम पक्षी भी दिखा जो बाद में पता चला मैगपाई था.                     
हेमिस के बाद वे थिकसे मठ’ देखने गये जो दूर से ही अपनी वास्तुकला के कारण आकर्षित कर रहा था. विशाल चट्टान पर बना छह सौ वर्ष पुराना यह मठ अपने में महान इतिहास व वंश परंपरा छिपाए है. यहाँ बुद्ध की विशाल प्रतिमा है जो पद्मासन में बैठे हैं तथा दोनों हाथों को विशेष ढंग से बनाया गया है. मन्दिर के कक्ष में प्रवेश करते ही कमल की पंखुड़ियों के आकार में उनकी सुन्दर अँगुलियों के दर्शन होते हैं, फिर ऊपर देखें तो चेहरा और नीचे देखने पर पैर नजर आते हैं. एक लामा सामने बैठकर एक बड़े वाद्य से लयबद्ध ध्वनि निकाल रहा था. कुछ देर हम वहाँ रुके फिर नीचे उतरकर संग्रहालय में गये. स्मृति चिह्नों की दुकान से कुछ खरीदारी की.
इसके बाद शे पैलेस’ देखने गये. वहाँ काफी चढ़ाई थी. लद्दाख का राज परिवार पहले यहाँ रहा करता था. यहाँ भी एक सुंदर बुद्ध मन्दिर है. बुद्ध की प्रतिमा इतनी ही विशाल थी पर उसे सुंदर वस्त्रों से ढका हुआ था. सभी बौद्ध मठों में रंगीन रेशमी वस्त्रों का बहुत उपयोग होता है. रंगों से इन्हें बहुत प्रेम है, यहाँ के पहाड़ बेरंग हैं शायद इसीलिए.
सिन्धु नदी के घाट’ पर पहुंच कर मन इतिहास की कई घटनाओं का स्मरण करने लगा. इसी नदी के कारण इस देश का नाम हिंदुस्तान पड़ा और यहाँ के निवासी हिन्दू कहलाये. इसे पार कर कितने ही आक्रमणकारी भारत आये. नदी का बहाव तेज था तथा पानी ठंडा. जल का हाथ से स्पर्श किया उसमें उतरने का सवाल ही नहीं था. सिन्धु घाट दर्शन स्थल पर हर वर्ष उत्सव का आयोजन होता है. दलाई लामा या अन्य कोई लामा आते हैं तो यहीं पर उनका कार्यक्रम व उत्सव भी होता है.
वे गेस्ट हॉउस पहुंचे तो सवा दो बजे थे. भोजन कर कुछ देर आराम किया. शाम को पांच बजे चाय पीकर पुनः ड्राइवर को बुलाया. दोरजी शांत स्वभाव का लद्धाखी ड्राइवर है. यहाँ के लोग बौद्ध धर्म को मानने के कारण काफी शांत व प्रसन्न नजर आते हैं, वे मिलन सार हैं, एक जगह एक वृद्ध महिला के साथ, दूसरी जगह एक बच्चे के साथ तथा स्कूल में एक गाइड लड़की के साथ तस्वीर ली, सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी हामी भरी. शाम को वे स्पितुक मठ देखने गये उसी के ऊपर काली माँ का मन्दिर था. काफी सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहुंचे तो मठ बंद मिला, मन्दिर तक जाने के लिए पुनः चढ़ाई करनी थी, पर मन्दिर का शीतल, शांत वातावरण देखते ही सारी थकान पल भर में ही दूर हो गयी. सभी मूर्तियों के चेहरे रेशमी वस्त्रों से ढके थे पर जितने भी भाग दिखाई दे रहे थे. आश्चर्य जनक थे. काली माँ का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था. यमराज और भैरवी की मूर्तियां भी वहाँ थीं.
मन्दिर से उतरकर वे हॉल ऑफ़ फेम’ देखने गये जो सेना द्वारा बनाया गया एक आधुनिक संग्रहालय है. यहाँ विभिन्न युद्धों में भाग लेने वाले सेना के जवानों के चित्र हैं, लद्दाख का नक्शा  है, हथियार हैं. बच्चों के लिए एक एडवेंचर पार्क है. संग्रहालय में काफी समय बिताया. यहाँ के पौधों, पशुओं, पक्षियों के बारे में, यहाँ के लोगों के वस्त्रों, रहन-सहन की जानकारी भी यहाँ मिलती है.  पास ही एक कॉफ़ी शॉप थी. कुछ देर वहाँ बिताकर वे गेस्ट हॉउस लौट आये. रात होते होते हवा काफी तेज चलने लगी. कई तरह की आवाजें आ रही थीं जब सोने गये, काफी देर तक नींद नहीं आई, एयरपोर्ट पर उस दिन सुना था ऊंचाई के कारण होने वाली परेशानियों में नींद न आना भी एक समस्या है. 


Wednesday, January 17, 2018

बूंदी का रायता


आज सुबह वे लेह पहुंच गये थे. कल दोपहर घर से निकले थे, धूप तेज थी पर डिब्रूगढ़ हवाई अड्डे के रास्ते में दो बार वर्षा हुई और ठंडी हवा चलने लगी. दिल्ली तक की हवाई यात्रा अच्छी रही, इन्डिगो का आतिथ्य स्वीकार करते हुए उपमा और मसाला चाय ली. शाम को मंझले भाई के घर पहुंचने से पूर्व भाभी को फोन किया, वह घर से बाहर थी, पर उनके पहुंचने से पूर्व ही लौट आई. भाई एक दिन पूर्व लेह पहुंच गया था, भाभी द्वारा परोसा स्वादिष्ट भोजन खाकर वे जल्दी ही सो गये पर देश की राजधानी में भी बिजली चले जाने से एसी बंद हो गया और नींद खुल गयी, सुबह अभी आकाश में तारे थे जब देहली एयरपोर्ट पर पहुंच गये. वहाँ एक लद्दाखी महिला बहुत अपनेपन से मिली जो अपने ग्याहरवीं में पढ़ रहे पुत्र को छोड़ने दिल्ली आई थी और अब वापस जा रही थी, लेह में उच्च शिक्षा का अभी उतना अच्छा प्रबंध नहीं है, हाई स्कूल के बाद बच्चे श्रीनगर, जम्मू, दिल्ली या चंडीगढ़ पढ़ने के लिए जाते हैं. पांच बजे जहाज में बैठे पर अंततः छह बजे जेट कनेक्ट का जहाज उड़ा और एक घंटे की यादगार यात्रा के बाद लेह के ‘कुशोक बकुला रिनपोछे एयरपोर्ट’ पर पहुंचा. उन्होंने खास तौर पर खिड़की के पास वाली सीट लेनी चाही थी पर पता चला पन्द्रहवीं कतार में खिड़की ही नहीं है, सीट बदल कर चौदहवीं कतार में आये पर खिड़की के पास जगह खाली नहीं थी, दूर से ही हिमाच्छादित पर्वत श्रृखंलाओं को देखते और तस्वीरें उतारते एक घंटे के समय का पता ही नहीं चला. जहाज से उतरते ही पता चला कि वायुदाब व ऑक्सीजन के कम होने का असर कैसे प्रभाव डाल सकता है. जगह-जगह सूचनाएं दी जा रही थीं कि चौबीस घंटों तक ज्यादा श्रम न करें, अपने कमरे में ही रहें और शरीर को यहाँ के वातावरण के अनुकूल होने दें. उन्होंने भी बचाव के लिए पहले ही डायमॉक्स नामक दवा की एक गोली ले ली थी और एक नाश्ते के बाद लेने वाले थे.

आज पहला दिन विश्राम का दिन है. यहाँ आंचल नामका एक डोगरी रसोइया जो ऊधमपुर का रहने वाला है, खाना बनाता है. सुबह आलू का परांठा, दो रोटियों के बीच भुने हुए आलू भर कर बनाया और दोपहर को भोजन के साथ बूंदी का रायता विशेष था जिसमें पुदीने की खुशबू आ रही थी. उन्हें अब तक तो कोई विशेष परेशानी नहीं हुई है बस हाथों की अँगुलियों में झुनझुनी सी महसूस हो रही है रह रहकर ! शाम के साढ़े पांच बजने को हैं, धूप बहुत तेज है अब तक. अब रात्रि के साढ़े नौ बजने को हैं. दिन भर आराम करने के बाद शाम को लेह शहर देखने गये, लगभग साठ प्रतिशत दुकानें कलात्मक वस्तुओं, पश्मीने व याक के ऊन से बनी शालों आदि की थीं, यानि पर्यटकों के लिए. नन्हा साथ में नहीं आ सका है, उसके लिए दो वस्तुएं खरीदीं. बाजार की कई तस्वीरें भी लीं. एक मठ ‘जौखांग’ भी देखा. जहाँ विभिन्न मुद्राओं में बुद्ध की आकर्षक मूर्तियों से सजा विशाल हॉल था. एक गोल बाजार देखा, तिब्बती लोगों का रिफ्यूजी मार्किट भी कई जगह था. एक रेस्तरां में कहवा पीया. एक तिब्बती वहाँ स्टिक्स से नूडल्स खा रहा था, तभी एक विदेशी लडकी भी आयी, मुस्कुराती हुई, उसने लद्दाख का अभिवादन ‘जूले’ कहा और प्रेम से दुकानदार से मिली. जब तक भोजन आया वह लिखती रही. वह बहुत आकर्षक थी और शांत लग रही थी. जिस दुकान से उपहार लिए, उसका कश्मीरी मालिक भी काफी मिलनसार था. बाजार में सडकें कई जगह टूटी हुई हैं, पुनर्निर्माण का काम चल रहा है. क्षेत्रफल के हिसाब से देखे तो लेह काफी बड़ा है पर पुराना बसा हुआ शहर छोटा सा ही है, तुलना में गाड़ियों की संख्या बहुत ज्यादा है. पूरा लद्दाख क्षेत्र दो जिलों से बना है, लेह था कारगिल. सारसिंग नामका एक वृक्ष यहाँ कई जगह उगते हुए देखा, वनस्पति ज्यादा नहीं है. चारों और खाली पहाड़ हैं और ऊपर बर्फ से ढके श्वेत पहाड़ ! सम्भवतः यह विश्व का सबसे ऊँचा और ठंडा, बसा हुआ प्रदेश है.  

Friday, January 12, 2018

दो नन्हे शावक


साढ़े नौ बजने वाले हैं. कुछ देर पहले जून का फोन आया. उन्हें लेह यात्रा की फ़िक्र है. वहाँ रहने, घूमने आदि का प्रबंध ठीक से हो सके इस बात की. आज वह भाई से दुबारा बात करेगी. सुबह जल्दी नींद खुल गयी थी. स्वप्न में जून को बिस्तर के बिलकुल नीचे की तरफ सोते देखा तो उन्हें उठाया कि ठीक से सो जाएँ, जैसे नन्हे को कहा करती थी. हो सकता है किसी जन्म में उनके मध्य यही संबंध रहा हो. जीवन रहस्यों से भरा हुआ है. अभी-अभी संत वचन सुने. परमात्मा सदा वर्तमान में मिलता है, अभी और यहीं. उसकी खोज भी एक दिन छोड़नी होती है. जिस क्षण मन में कोई इच्छा नहीं है तो वे परमात्मा में ही हैं. ध्यान में कितने ही अनुभव घटते हैं, लेकिन अनुभव करने वाला यदि बचा है तो अनुभव पूर्ण नहीं है.

आज सुबह उठने से पहले मन फिर सपने बुनने लगा. कभी गणित की पढ़ाई, कभी घर की चाबी नहीं है, यानि नींद खोलने के सारे उपाय किये आत्मा ने, पर मन ने कैसा उलझाया कि आधा घंटा यूँही बीत गया. सुबह जब जून ऑफिस गये तो गैरेज में एक बिल्ली का बच्चा दिखा, थोड़ी ही देर में दूसरा आ गया. इस समय आराम से कार के बोनट पर सोये हैं. उनके कई चित्र लिए, नन्हे को भेजे. उन्हें बिस्किट और दूध देकर आई पर वे आराम से लेटे हैं. उन्हें कुछ करने का भी मन नहीं है, गर्मी के कारण या उनका पेट भरा है शायद. अभी देखा वे लम्बी तान कर सोये हैं. कटोरी में दूध वैसे ही पड़ा है, कुछ देर पहले उनकी माँ आई थी, वही उनका पोषण करती है शायद. अभी कुछ और नहीं खाते-पीते, उन्हें देखकर अच्छा लग रहा है. नन्हे ने भी पूछा है उनके बारे में.


आज भी गर्मी बदस्तूर जारी है. बादल सारे देश के अन्य भागों को सरसाने चले गये हैं. आज जून का लंच दफ्तर में ही है, कोई विदाई पार्टी है. शाम को उसे भी एक विदाई पार्टी में जाना है. आज ही धोबी, माली, दूधवाले आदि का हिसाब कर दिया है, कल उन्हें यात्रा के लिए निकलना है. नन्हे शावक आज भी गैराज में आराम फरमा रहे हैं. उसके भीतर शांति है, यानि परमात्मा का साथ है ! आत्मा को अपने मूल संस्कारों की तरफ हर हाल में लौटना ही है ! छोटी ननद का फोन आया, वह हरिद्वार में एक आश्रम में रह रही है कुछ दिनों के लिए. सभी आत्माएं घर लौटना चाहती हैं. लद्दाख की यात्रा उनके लिए अवश्य सुखद होगी. नया अनुभव होगा, नये स्थान, नये लोग मिलेंगे !

Wednesday, January 10, 2018

बगीचे में काली मुर्गी


शाम के पाँच बजने को हैं, बाहर तेज धूप है, सो अभी लॉन में जाने के लिए आधा घंटा प्रतीक्षा करनी होगी. मालिन बर्फ मांगने आई थी, वे एयर कंडीशन कमरे में बैठे हैं, उनके यहाँ बहुत गर्मी होगी. बरामदे से एक जंगली काली मुर्गी मुँह में अपने से भी बड़ा एक घास का टुकड़ा लेकर दौड़ते हुए दिखी,  हुए दिखी, दूसरी अपनी पूँछ हिलाकर मुँह से आवाज कर रही थी. वे जाने किस भाषा में बातें कर रही थीं. उन्हें भी ऐसा ही लगता होगा कि अन्य प्राणी किस भाषा में बात करते हैं ! ‘भारत एक खोज’ में आज औरंगजेब का द्वितीय भाग देखा. नब्बे वर्ष तक जीया था वह अपने भाइयों व पिता को मरवा व कैद करवा कर. आगे शिवाजी का प्रकरण आरम्भ होगा. दोपहर को एक स्वप्न देखा. एक नन्हा बच्चा उसकी गोदी में है और कुनमुना रहा है. उसे चुप कराते उठा लेती है और वह लिपट कर सो जाता है. नैनी माँ बनने वाली है शायद इसी से जुड़ा हो यह स्वप्न या फिर ओशो की उस बात से कि हर स्त्री माँ होती है और तब जून का भी ख्याल हो आया. मन कृतज्ञता से भर गया था. परमात्मा ही तो विभिन्न रूपों में आकर उनकी मदद करता है. जीवन कितना विचित्र है. यहाँ रहस्यों की परतें कभी समाप्त ही नहीं होतीं. सुबह उठी तब भी एक विशेष स्वप्न देखा था, अब जरा भी याद नहीं है पर तीन बजे थे. नन्हे से बात की, वह घर पर ही था. भोजन की समस्या अब उसकी हल हो गयी है. उसके कॉलेज के फोटो फेसबुक पर पोस्ट किये वह उनींदा लग रहा है. शांति निकेतन की यात्रा के चित्र भी प्रकाशित किये. कल बीहूताली यानि ओपन थियेटर में योग कैम्प है, वह नौ बजे जाएगी. विश्व योग दिवस मनाया जा रहा है.

आज मौसम कल रात की गर्जन-तर्जन के बाद ठंडा है. उसे लग रहा है, प्राणशक्ति कुछ कम हुई है. ध्यान जो नहीं किया, रात को शोर से नींद खुल गयी. परमात्मा से जुड़े रहकर ही वे प्राणवान बनते हैं. आज शाम को मीटिंग है, क्लब का संविधान बन रहा है. फेसबुक पर रश्मिप्रभाजी ने परिकल्पना ग्रुप में उसे शामिल किया है. उसके ब्लॉग का जिक्र किया है. वह बहुत कर्मशीला हैं और सभी को जोड़कर रखना उनका स्वभाव है. उनके भीतर ऊर्जा का एक अनंत स्रोत है जो इस उम्र में भी उन्हें इतना गतिशील बनाये है.

मौसम ने फिर मूड बदला है, गर्मी है बाहर. वृक्षों के नीचे भी हवा महसूस नहीं हुई. पिछले कई दिनों से वह वहीं टहलते हुए चाय पीती थी. पूना के आकाश में कल पूर्ण इन्द्रधनुष देखा गया जिसे ब्रह्म धनुष का नाम दिया गया है. आज फेसबुक पर नन्हे के चित्र में उसका एक मित्र भी था, जाने कैसे उसने देख ली और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी है. नन्हे का वह तिब्बती मित्र कुछ दिन उनके यहाँ रहा था. अच्छा लगा था. उसने बौद्ध धर्म पर दो किताबें भी भेजी थीं. अब पढ़ने से शायद कुछ और प्रकाश मिले, उसने सोचा पुनः उन्हें निकालेगी.  

Tuesday, January 9, 2018

रिमझिम गिरे सावन


दोपहर का वक्त है, आसमान बादलों से ढका है. ढाई बजने वाले हैं. आज सुबह की प्रार्थना में कुछ ऐसा घटा है कि भीतर का मौन घना हो गया है, जैसे कोई मिट गया है भीतर जो बहुत शोर मचाता था. अब कोई नहीं है जो खोज रहा था, जिसे तलाश थी. क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं है जिसे पाया जा सके. न संसार में कुछ है न परमात्मा में कुछ है. एक परम मौन के अतिरिक्त कुछ भी तो नहीं है वहाँ, कुछ पाने को नहीं है. सत्य इस क्षण सम्पूर्ण है, न कुछ जोड़ना है उसमें न कुछ घटाना है. वहाँ कुछ है ही नहीं, जिसमें जोड़-तोड़ हो सके. पाने वाला ही झूठ है तो पायेगा कौन ? और पायेगा क्या ? जब वहाँ शून्य के सिवा कुछ है ही नहीं. जब कोई चाह नहीं बचती तो कुछ करने को भी नहीं रहता और न ही जानने को, क्योंकि जानने वाला ही नहीं बचता. जून आज गोहाटी गये हैं. अगले दो दिन पूर्ण मौन में बीतेंगे, कितने सही समय पर यह अनुभव घटा है. बाहर घास काटने वाली मशीन शोर कर रही है. नैनी मशीन पर सिलाई कर रही है पर भीतर का सन्नाटा उससे भी मुखर है. शाम को एक उच्च अधिकारी की पत्नी से बात करनी है, उनके लिए विदाई कविता लिखेगी. परसों पिताजी की बरसी है. बच्चों को बुलाकर खिलाना है. लेह जाने की तैयारी शुरू कर दी है.

आज सुबह से वर्षा नहीं हुई, हवा चल रही है. शाम के चार बजने को हैं. सुबह एक सखी के यहाँ गयी, वह अपने बगीचे के लिए कुछ और पौधे लायी है. बगीचे की हरियाली जून में देखते ही बनती है. दोपहर को जून का फोन आया था. उन्हें अपने यहाँ एक प्रोजेक्ट के लिए दो वर्षों हेतु एक रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए इन्टरव्यू लेने थे. कुल साठ अभ्यार्थी आये थे, चालीस का साक्षात्कार लंच से पहले हो गया था, शेष का होना था.

रिमझिम के तराने लेके आयी बरसात.! अभी-अभी बादल बरसने लगे हैं, धरती तृप्त हुई है, पंछी, पादप सभी झूम रहे हैं. जैसे परम बरसता है भीतर तो मन की धरती अंकुआने लगती है, मन भीग-भीग जाता है. आज पिताजी की दूसरी बरसी है. दोनों ननदों में से किसी का फोन नहीं आया है, न जून यहाँ हैं न ही नन्हा. जीवन ऐसा ही है, जो चला गया उसे जगत भूल जाता है. इन्सान जब तक है तब तक ही है, और भक्त तो तब भी, होकर भी नहीं ही है, केवल परमात्मा ही है, वह मिटकर ही तृप्ति पाता है. उसका होना भी क्या जो परमात्मा के बिना हो और सबसे बड़ी बात ऐसा करने में ही उसका हित है. वह अपने लिए ही ऐसा करता है, परमात्मा को भला किसी से क्या लेना. अहंकार का भोजन दुःख है और समर्पण का अर्थ है परम शांति, और इस शांति का अनुभव तो भक्त को ही होने वाला है, परमात्मा तो पहले से ही शांत है. वर्षा तेज हो गयी है.


जून वापस तो आये पर सीधे ऑफिस चले गये. उनके भीतर कार्य के प्रति समर्पण बढ़ा है, वैसे भी जिम्मेदारी बढ़ी है तो व्यक्तिगत सुख त्यागना ही होगा. शाम को मीटिंग है उसे जाना है. सुबह बाजार से लौट रही थी तो भीतर गायन स्वयं से उतर आया. धुन सहित गीत बजने लगा जैसे कोई भीतर से गा रहा हो. परमात्मा कितना सृजनात्मक है !