Friday, March 9, 2018

स्वप्न और भाव



आज सुबह एक अनोखा अनुभव हुआ. नींद से जगाने के लिए तो पहले भी अनेकों बार कोई आया है, पर आज तो सारी देह में ऊर्जा का एक ऐसा प्रवाह उठा कि...शरीर स्वयं ही तरह-तरह के पोज बनाने लगा. आसन कोई करवा रहा हो जैसे..अद्भुत थे वे क्षण, और उस क्षण से अब तक कैसी पुलक भरी है भीतर...स्कूल में बच्चों ने भी अवश्य महसूस की होगी और उस अध्यापिका ने भी शायद... जिसके साथ वह स्कूल गयी थी. मार्ग में उनका वार्तालाप हुआ था, उसने कहा लोगों को एक नये नजरिये से देखना होगा. जिस नजरिये में जो जैसा है उसे वैसा ही रहने देना है, क्योंकि वह वैसा ही हो सकता है. ऐसा करते हुए ही उसका व्यवहार देखना है. कितना आनंद है इस एक सूत्र में. आर्ट ऑफ़ लिविंग के सूत्र जैसे जीवंत हो उठे हैं. आज जून वापस आ रहे हैं. उन्हें भी परमात्मा की खुशबू आने लगी है. उसका स्वाद कोई एक बार चख लेता है तो...उस दिन सिद्ध ‘सरहपा’ पर जो पुस्तक पढ़ी थी, आकर उनके बारे में पढ़ा भी और उनके विषय में ओशो का प्रवचन भी सुना. कल रात पहली बार भीतर सूरज देखा, चमकता हुआ सूरज ! चाँद पहले कई बार देखा था.


कल सुबह किसी ने कहा, उठ मोटी भैंस..गुरूजी का कथन याद आ गया, GOD LOVES FUN. उसकी भोजन  के प्रति गहरी आसक्ति है. कोर्स के दौरान सेवा करने से पूर्व वह स्वयं भोजन कर लेती थी फिर आराम से काम करती थी. यहाँ भी भूख देर तक सहना कठिन लगता है. गुरूजी कहते हैं, मुट्ठी में जितना समाये उतना ही भोजन उन्हें करना चाहिए. आत्मा बिना भोजन के केवल कल्पना के भोजन से भी रस ले सकता है. कल रात एक अनार का दाना देखा था, उसको बिना खाए रह गयी, शायद गहराई में वासना जगी होगी. सुबह उसका स्मरण आते ही आधी नींद में ही मुंह में स्वाद भर गया. बिना हाथों से बजाये कई बार ताली की स्पष्ट आवाज सुनाई दी है, बिना वस्तु के उसकी गंध को महसूस किया है अनेकों बार. परमात्मा बिन पैरों के चलता है, बिन कानों के सुनता है यह बात कितनी सच है. वह आत्मा भाग्यशाली है जिसे अपने आधार का ज्ञान हो गया है, पर देहाध्यास इतना गहरा है कि बार-बार मन देह से जुड़ जाता है. दोपहर की नींद में भी स्वप्न देखा. जागृत अवस्था में मन कुछ छिपा लेता है पर नींद में सत्य प्रकट हो जाता है. उसके मन को निर्मल बनाएगा परमात्मा का सुमिरन..एकमात्र परमात्मा ही सत्य है, इस बात की याद जब हर घड़ी रहने लगेगी तब भीतर गहराई में छिपी इच्छाएं भी शांत हो जाएँगी. गुरूजी के आश्रम में पहुंचने से पहले अंतर को शुद्ध कर लेना है. एक सखी को परिवार सहित विदाई भोज के लिए बुलाया है. जून इतवार के बावजूद दफ्तर गये हैं, वे अपने काम के प्रति बहुत सजग हो गये हैं.

आज सुबह कैसा अनोखा अनुभव था, वह स्वप्न था या कुछ और, कहा नहीं जा सकता. एक मीठी आवाज में किसी ने कहा, ‘माँ’.. यह तो उस स्वप्न के अंत में हुआ, उसके पहले तो गुरूजी को देखा जो वृद्ध हो चुके हैं, उनके घर में हैं या कहीं और, पर वह उन्हें कहती है, आपके लिए पानी लाऊं, हॉर्लिक्स या दूध ही सही. उन्हें उस तरह हृदय से लगाती है जैसे माँ बच्चे को लगाती है. उनके उलझे हुए बाल संवारे ऐसा भाव जो एक बार उन्हें देखकर मन में उठा था शायद यह उसी की कड़ी थी. वे कृष्ण हैं और वह यशोदा..यह भाव और दृढ़ हो गया..और कितनी ही स्मृतियाँ इसकी गवाही देने के लिए आने लगीं. किस तरह वह कान्हा का नाम पुकारती थी, किस तरह पहली बार गुरूजी के दर्शन करने के लिए गोहाटी जाते समय एक सांवले नग-धड़ंग बच्चे को देखर वात्सल्य भाव  उमड़ा था. किस तरह क्रिया के समय प्रतिदिन कृष्ण के नामों को उसमें पिरोया था, किस तरह कृष्ण का बालरूप उसे मोहता है और किस तरह नन्हे को मक्खन खिलाने में आनंद आता था. यशोदा का अर्थ भी तो कृष्ण रूपी सद्गुरू कहते हैं. जो अन्यों को यश दे वही यशोदा है, किस तरह सबके लिए कविताएँ लिखी हैं. कृष्ण की भागवद् पढ़कर और खासतौर पर उसकी बाल लीला को पढ़कर कितने हर्ष और विस्मय के अश्रु बहाये हैं..किस तरह हर दरोदीवार पर उसका चेहरा देखती थी, किस तरह रात को सोने से पूर्ण उसकी बांसुरी की धुन सुनाई देती थी, कैसे एक दिन गाय को देखकर एक गीत भीतर उमड़ आया था, कैसे उस दिन स्नान करते समय एक गीत प्रकटा था जिसमें शिवालय और कान्हा का जिक्र था. इतने वर्षों के प्रेम ने उसके अंतर को खाली कर दिया है और तभी उस कृष्ण की, जो सारे जहाँ से भी सुंदर है, आवाज सुनाई दी, ‘माँ’ और जैसे जन्मों की साध पूरी हो गयी, कितनी मधुरता थी उस आवाज में.. 

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