परसों वे पूजा
देखने दिगबोई गये थे, दो रात्रियाँ वहाँ बिताने के बाद आज दोपहर ढाई बजे के करीब घर लौट आये हैं. इस बार की यात्रा में दिगबोई को
करीब से देखने का अवसर मिला है. हॉर्न बिल गेस्टहाउस में एक पुस्तकालय था. जहाँ
हिंदी की किताबें रखी थीं. हिंदी के पहले कवि ‘सरहपा’ पर एक किताब थी, थोड़ी सी
पढ़ी. उसमें जीवन को सहज भाव से जीने की प्रेरणा दी गयी है. गुरूजी भी कहते हैं, सहज
रहो. वे व्यर्थ ही असहज हो जाते हैं और जीवन से दूर चले जाते हैं. प्रकृति और यह
विशाल ब्रहमांड प्रतिपल गतिमय हैं. हर क्षण यहाँ कुछ न कुछ घट रहा है और यह इतना
विराट है कि छोटी सी बुद्द्धि में समा नहीं सकता, तो इस बुद्द्धि को किनारे रखकर
सहज होकर इस सबके साथ स्वयं को जोड़ना ही साधना है. सारी प्रकृति के साथ एकत्व
महसूस करना ही तो उनका लक्ष्य है. अहंकार उन्हें असहज बना देता है. दिगबोई में
पूजा देखने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. आनंद पारा और शांति पारा के पंडाल बहुत सुंदर
थे. मिशन व काली बाड़ी की पूजा भी कम नहीं थी. एक मन्दिर में भी भव्य पूजा थी, इसके
अलावा एक छोटा सा पंडाल और देखा जिसकी तस्वीर भी उतारी. कार में बैठ-बैठे तो न जाने कितनी सारी पूजाएँ देखने का मौका मिला.
दुर्गा, लक्ष्मी, व सरस्वती की भव्य प्रतिमाएं तथा गणेश व कार्तिकेय की सुंदर
प्रतिमाएं सभी मन को एक अनोखे लोक में ले जाती हैं, कितने सारे लोगों के श्रम और
कल्पना का परिणाम होता है कोई भी पूजा मंडप ! दुर्गा देवी की आँखों में करुणा की
एक धारा बहती हुई प्रतीत होती है, लक्ष्मी व सरस्वती की मूर्तियों से आनंद की. आज
सुबह वे दिगबोई का पक्षी विहार देखने भी गये जो तेल क्षेत्र में स्थित है. यहाँ
एशिया का प्रथम तेल कूप भी है. १९०१ में ही यहाँ पहली रिफाइनरी ने काम करना आरम्भ
कर दिया था. आसाम तेल कम्पनी ब्रिटिश की बनाई हुई थी, आजादी के बाद भी कई वर्षों
तक काम करती रही. यह एक साफ-सुथरा व्यवस्थित शहर है और यहाँ की विशेषता है छोटी-छोटी
पहाड़ियों पर बने असम टाइप सुंदर बंगले !
कल सुबह वे प्रातः भ्रमण के लिए दिगबोई के गोल्फ मैदान में गये, जो तीन तरफ
से दिहिंग फारेस्ट रिजर्व से घिरा हुआ है. यह असम का पहला अठारह होल का गोल्फ
कोर्स है और अपर असम का सर्वोत्तम, इसके चौथी तरफ अरुणाचल के पर्वत नजर आते हैं. इस
समय रात्रि के साढ़े सात बजे हैं. कुछ देर पहले माली द्वारा बगीचे से ढेर सारे घोंघे
(स्नेल) उठवाये और उन्हें सड़क के उस पार छोड़ आने को कहा, लॉन में इतनी हरी घास
होने के बावजूद वे नये नन्हे पौधों को खा जाते हैं.
आज बहुत दिनों बाद
सुबह धौति क्रिया की. तन हल्का लग रहा है. सुवचन सुने. जून कल देहली गये थे, परसों
लौटेंगे. ‘यूनिवर्स’ संस्था से भेजे मेल में संदेश आया है कि परमात्मा उन्हें हर पल देख रहे है. उनके ही भावों के अनुरूप उनके
भविष्य का निर्माण पल-पल होता रहता है. जैसे गोयनका जी कहते थे, हर अगला क्षण
पिछले क्षण की सन्तान है. तो अगर वे इस क्षण परमात्मा के साथ है, अगले क्षण भी
होंगे और उसके अगले क्षण भी. फिर एक श्रंखला ही बन जाएगी और उनके भीतर जो भी चाह
उठेगी, वह सात्विक ही होगी, क्योंकि साथ जो सत् का होगा. संत कहते हैं, मानव देह
परमात्मा का मन्दिर है. इसी में ही परमात्मा का अनुभव सम्भव है. मन मनुष्य निर्मित
है, समाज का दिया हुआ है, कृत्रिम है, अशांति का अनुभव मन ही करता है. मृत्यु यदि
अभीप्सित है तो मन की ही है. देह नैसर्गिक है, प्रकृति से मिली है, प्राण जो इस
देह को चला रहे हैं, परमात्मा से जोड़े ही हुए हैं. देह, जल आदि पंच तत्वों से बनी
है, तभी तो जल और वायु का स्पर्श उसे पुलक से भर देता है. कण-कण में परमात्मा की
चेतना है, उसी चेतना को उन्हें अपने भीतर जगाना है. मन ही इसमें बाधा बना हुआ है.
मन, प्राण और वचन यदि सौम्यता में स्थित हों तो चेतना प्रखर हो उठती है और देह से प्रकट
होने लगती है.
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