Wednesday, February 27, 2019

हवा में गंध



आज आकाश में बादल हैं, शायद शाम तक वर्षा हो, हवा में एक अजीब तरह की गंध है, यहाँ के अस्सी प्रतिशत लोग खेती से जुड़े कार्यों में रत हैं. साधन न होने के कारण खेती के लिए उपलब्ध जमीन के मात्र छह प्रतिशत पर ही खेती की जा रही है. कल रात को किसी पशु के रोने की आवाज आ रही थी, जिसे सुनकर बचपन में मेहतरों के मोहल्ले से आती करूण पुकार स्मरण हो आयी. काश इन्हें भी शाकाहारी भोजन व्यवस्था के बारे में जानकारी देने वाला कोई संत मिले. चर्च में इनकी आस्था है पर वहाँ न नशे के खिलाफ कुछ कहा जाता है न मांसाहार के ही. डेढ़ वर्ष पहले तक यह शुष्क राज्य था, पर अब सरकारी दुकानें हैं तथा हर व्यक्ति को कार्ड के आधार पर नियत मात्रा में मादक पेय दिया जाता है.

गेस्टहाउस के कर्मचारियों ने जो वहाँ पिछले कुछ वर्षों से रह रहे हैं कुछ रोचक बातें बतायीं. मिजोरम में संयुक्त परिवार होते हैं. परिवार के बड़े पुत्र को जायदाद नहीं मिलती, बल्कि सबसे छोटे पुत्र को परिवार का उत्तराधिकारी बनाया जाता है. विवाह और तलाक के मामलों में भी चर्च का कानून ही चलता है. माता-पिता के न रहने पर अथवा असमर्थ होने पर बच्चों की देखभाल का जिम्मा भी चर्च का होता है. क्रिसमस के अलावा छरपार कुट मनाया जाता है, उत्सव के लिए मिजो शब्द कुट है. यहाँ कोई पिक्चर हॉल नहीं है. हिंदी फ़िल्में यहाँ नहीं दिखाई जातीं. टीवी पर आने वाले धारावाहिक वे मिजो भाषा में डब करके देखते हैं. यहाँ की साक्षरता दर केरल के बाद दूसरे नम्बर पर है. मिजो भाषा की कोई लिपि नहीं है, रोमन भाषा को ही इन्होंने अपनाया है. यहाँ की यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होती है. यह छात्रों का एक संगठन YMA बहुत शक्तिशाली है. यह समाज हित के कार्य भी करता है तथा दुर्घटना आदि होने पर आपसी सुलह भी कराता है. यहाँ किसी के घर में प्रवेश करने पर सबसे पहले रसोईघर में प्रवेश होता है, यहीं मेहमानों को बैठाया जाता है. पीने का पानी यहाँ खरीदना पड़ता है. अन्य कामों के लिए ये लोग वर्षा ऋतु में पानी का संग्रह कर लेते हैं, हर घर के नीचे पानी का टैंक होता है. इसी तरह सोलर पावर का भी लगभग सभी लोग इस्तेमाल करते हैं.

सुबह ग्यारह बजे ही उन्होंने वापसी की यात्रा आरम्भ की, एक दिन कोलकाता में रुकना पड़ा क्योंकि डिब्रूगढ़ में अभी तक रात के समय फ्लाईट उतरने की सुविधा नहीं है. अगले दिन सुबह की उड़ान से वे मिजोरम की मधुर स्मृतियों को मन में संजोये हुए वापस घर आ गये.  

सोलोमन टेम्पल



आज भी सुबह मुर्गे की आवाज आने से पहले ही नींद खुल गयी. आज की सुबह भी पहले से बिलकुल अलग थी. कमरे की विशाल खिड़की से जिस पर लगे शीशे से बाहर का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है, पर्दे हटा दिए. अभी बाहर अँधेरा था. आकाश पर तारे नजर आ रहे थे. धीरे-धीरे हल्की लालिमा छाने लगी और गगन का रंग सलेटी होने लगा, फिर नीला और पांच बजे के बाद सूर्योदय होने से पहले आकाश गुलाबी हो गया. साढ़े पांच बजे चर्च की घंटी बजने लगी और लाल गेंद सा सूरज का गोला पर्वतों के पीछे से नजर आने लगा. इसके बाद कुछ दूर कच्चे रास्ते पर नीचे उतर कर वे घाटियों में तिरते बादलों को देखने गये. दूर-दूर तक श्वेत रुई के से बादलों को पर्वतों की चोटियों पर ठहरे हुए देखा. नहाधोकर नाश्ता करके साढ़े सात बजे वापसी की यात्रा आरम्भ की, दोपहर एक बजे वापस आइजोल पहुंच गये. रास्ता सुंदर दृश्यों से भरा था, हरे-भरे जंगल, बेंत के झुरमुट तथा छोटे-छोटे गाँव था कस्बे. मुश्किल से एकाध जगह ही खेत दिखे. इस इलाके में झूम खेती की जाती है. मार्ग में पड़ने वाला वानतांग नामक झरना देखने भी वे गये. काले पत्थरों को काटता हुआ काफी ऊँचाई से बहता हुआ अपनी तरह का एकमात्र जलप्रपात !

मिजोरम में यह उनकी अंतिम रात्रि है. दोपहर का भोजन करके शहर के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल देखने गये. ताजमहल नामक एक स्मारक देखा, जो एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की स्मृति में बनवाया था, जिसमें उसके वस्त्र तथा अन्य सामान भी सहेज कर रखे हैं, अब इस स्मारक में उसके पूरे परिवार को दफनाया गया है. इसके बाद आइजोल की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बना थियोलोजिकल कालेज देखने गये. जहाँ से पूरा शहर दिखाई देता है. इसके बाद हमारा पड़ाव था निर्माणाधीन सोलोमन टेम्पल, जो पिछले बीस वर्षों से बन रहा है और अभी भी इसके पूरा होने में काफी समय लगेगा. कल दोपहर उन्हें वापस जाना है.

कल रात्रि लगभग एक बजे से लगतार समूह गान की आवाजें उनक कानों में सुनाई दे रही हैं. खिड़की से झांककर देखा तो पिछवाड़े की एक इमारत में लगभग पचास-साथ लोग बेंचों पर बैठे हैं और एक ड्रम की बीट के साथ लय बद्ध गा रहे हैं, लगातार यह गाने का कार्यक्रम चल रहा है. गेस्ट हॉउस के रसोइये ने बताया, कल शाम को ही लाऊडस्पीकर पर एक घोषणा की गयी थी कि कोई व्यक्ति देह त्याग गया है. उसी के शोक में यह गायन चल रहा है. दोपहर बारह बजे के बाद मृतक को ले जायेंगे.
सुबह वे गेस्ट हॉउस के पीछे वाली सड़क पर लगने वाले स्थानीय शनि बाजार को देखने गये, बीसियों दुकानें लगी थीं, ज्यादातर महिलाएं सड़क के दोनों ओर दुकानें लगा रही थीं, दस प्रतिशत ही पुरुष रहे होंगे. कपड़े, बरतन, सजावट की वस्तुएं, खाद्य पदार्थ यानि हर तरह की वस्तुएं वहाँ  बिक रही थीं, उस समय सुबह के साढ़े पांच बजे थे, अर्थात वे लोग अवश्य ही तीन बजे उठ गये होंगे. 

Monday, February 25, 2019

नया नियम



मिजोरम के लोगों के रहन-सहन तथा रीतिरिवाजों के बारे में कई रोचक जानकारियां मिली हैं. ये लोग सुबह जल्दी उठते हैं, चार बजे से भी पहले तथा सुबह छह बजे ही दिन का भोजन कर लेते हैं. इसके बाद काम पर निकल जाते हैं तथा दोपहर को भोजन नहीं करते. शाम का भोजन छह बजे ही कर लेते हैं, इसलिए यहाँ बाजार जल्दी बंद हो जाते हैं. कुछ देर पहले हम बाजार गये लेकिन ज्यादातर दुकानें बंद हो चुकी थीं. यहाँ भोजन में ज्यादातर चावल, मांस तथा उबली हुई सब्जियां ही खायी जाती हैं. मसाले भी नहीं के बराबर. यहाँ बहुविवाह प्रथा प्रचलित है तथा स्त्री या पुरुष दोनों को इसका समान अधिकार है. महिलाएं यहाँ सभी प्रकार के काम करती हैं, बचपन से ही उनके साथ कोई भेद भाव नहीं किया जाता. उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा अवसर मिलता है. तलाक लेना यहाँ बहुत आसान है. किसी भी तरह का विवाद लोग आपसी बातचीत से सुलझा लेते हैं. पुलिस तथा अदालत तक मामला पहुंचने की नौबत नहीं आती. सडकों पर ड्राइवर एक दूसरे को रास्ता देते हैं तथा अपने वाहन को पीछे ले जाने में जरा भी नहीं हिचकते.

लुंगलेई में उनकी पहली सुबह है. पंछियों की आवाजों ने जगा दिया, कमरे की खिड़की से परदा हटाया तो सामने पर्वतमालाएं थीं और आकाश पर गुलाबी बादल. जैसे सामने कोई चित्रकार अदृश्य हाथों से अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा हो. सामने वाले पहाड़ हरे वृक्षों से लदे थे, उसके पीछे काले पर्वत जिनके वृक्षों की आकृतियाँ खो गयी थीं पर आकार फिर भी नजर आ रहे थे. तीसरी श्रेणी, जहाँ ऊँची-नीची सी वृक्षों की चोटियाँ मात्र दिख रही थीं, और उसके पीछे स्वप्निल से पहाड़ जो धुंध और सलेटी कोहरे में लिपटे थे. एक के पीछे एक तीन-चार पर्वत श्रेणियां और ऊपर गहरा नीला आकाश और उस पर सुनहरे चमकते बादल, जो गगन के राजा के आने का संदेश दे रहे थे. तभी चर्च से घंटियों का स्वर आने लगा और पूरा वातावरण एक आध्यात्मिक रंग में सराबोर कर गया. कुछ देर बाद वे प्रातः भ्रमण के लिए निकले, हवा ठंडी थी, बाहर का तापमान आठ डिग्री था. निकट ही बादलों को पर्वतों की श्रंखलाओं पर सिमटते हुए देखा, एक अद्भुत दृश्य था.

अब शाम के पांच बजे हैं. वे आज बाजार से जल्दी जाकर लौट आये हैं. सुबह जून जब अपने काम के सिलसिले में चले गये तो उसने कुछ देर कमरे में रखी बाइबिल पढ़ी, नया नियम नाम से छोटी सी हिंदी में लिखी पुस्तक, जो कई स्थलों पर बहुत रोचक और उत्साहवर्धक लगी, परमात्मा का राज्य उनके भीतर है, वे इस बात को भुला देते हैं और व्यर्थ ही परेशान होते हैं. कल उन्हें वापस आइजोल जाना है और परसों कोलकाता, तथा उसके अगले दिन असम.

लुंगलेई का सूर्यास्त



मिजोरम की उनकी यह पहली यात्रा है. इस प्रदेश के बारे में वे कितना कम जानते हैं, १९७२ में केंद्र शासित प्रदेश बनने से पूर्व यह असम का एक जिला था, फरवरी १९८७ में लंबे हिंसक संघर्ष के बाद भारत सरकार व मिज़ो नेशनल फ्रंट के मध्य समझौता होने पर यह भारत का तेइसवां राज्य घोषित किया गया. इसके पूर्व और दक्षिण में म्यांमार है तथा पश्चिम में बांग्लादेश. मिजोरम से उत्तर-पूर्व भारत के तीन राज्यों असम, मणिपुर तथा त्रिपुरा की सीमाएं भी मिलती हैं. प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यह प्रदेश विभिन्न प्रजातियों के प्राणियों तथा वनस्पतियों से सम्पन्न हैं. इसी अनजाने प्रदेश के आठ जिलों में से एक लुंगलेई जिले में पेट्रोलियम पदार्थों की उपलब्धता का सर्वे करने के लिए भारत सरकार की और से विभिन्न सरकारी तेल कम्पनियों के अधिकारियों को नियुक्त किया गया है. इसी कारण उसे भी जून के साथ यहाँ आने का अवसर मिल गया है. मिजोरम का अर्थ है पहाड़ी प्रदेश के लोगों की भूमि ! यह प्रदेश जैसे भारत की मुख्य भूमि से बिलकुल अलग-थलग है. माना जाता है कि यहाँ के निवासी दक्षिण-पूर्व एशिया से सोलहवीं और अठाहरवीं शताब्दी में आये थे, बर्मा की संस्कृति का इन पर काफी प्रभाव है, देखने में भी यह उन जैसे लगते हैं. उन्नीसवीं शताब्दी में यहाँ ब्रिटिश मिशनरियों का प्रभाव फ़ैल गया. लगभग पचासी प्रतिशत लोग ईसाई धर्म के अनुयायी हैं भारतीय संसद में प्रतिनिधित्व के लिए लोकसभा में यहाँ से केवल एक सीट है. विधान सभा में चालीस सदस्य हैं.

सुबह पांच बजे से भी पहले मुर्गे की बांग सुनकर वे उठे गये. सूर्योदय होने को था, कुछ तस्वीरें उतारीं. पल-पल आकाश के बदलते हुए रंग यहाँ के हर सूर्योदय को एक आश्चर्यजनक घटना में बदल देते हैं. रंगों की अनोखी छटा दिखाई देती है. गेस्ट हॉउस के रसोइये ने आलू परांठों का स्वादिष्ट नाश्ता परोसा. सवा आठ बजे वे आइजोल से, जो मिजोरम की राजधानी है, लुंगलेई के लिए रवाना हुए. लगभग पांच घंटों तक सुंदर पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर चलते हुए दोपहर सवा एक बजे गन्तव्य पर पहुंच गये. सड़क अपेक्षाकृत बहुत अच्छी थी, पता चला यह सड़क विश्व बैंक के सहयोग से बनी है, मार्ग में एक दो स्थानों पर भूमि रिसाव के कारण सड़क खराब हो गयी है, जिसके दूसरी तरफ मीलों गहरी खाई होने के कारण बड़ी सावधानी से चालक वाहन चलाते हैं. मार्ग में एक जगह चाय के लिए विश्राम गृह में रुके, मिजोरम के हर जिले में एक से अधिक सरकारी यात्रा निवास हैं. लुंगलेई का यह टूरिस्ट लॉज भी काफी बड़ा व साफ-सुथरा है. बालकनी से पर्वतों की मनहर मालाएं दिखती हैं. सामने ही मिजोरम के बैप्टिस्ट चर्च की सुंदर भूरे रंग की विशाल इमारत है. बाहर निकलते ही एक बड़ा अहाता है, जिसमें एक वाच टावर बना है. जिसपर चढ़कर उन्होंने सूर्यास्त का दर्शन किया, तथा रंगीन बादलों और आसमान की कुछ अद्भुत तस्वीरें उतारीं. रात्रि में यहाँ का आकाश चमकीले तारों से भर जाता है और धरती भी चमकदार रोशनियों से सज जाती है. हजारों की संख्या में पास-पास घर बने हैं, जो पहाड़ियों को पूरा ढक लेते हैं और शाम होते ही चमकने लगते हैं. यहाँ की हवा में एक ताजगी है.  

Friday, February 22, 2019

मिजोरम की चोटियाँ



दो दिनों का अन्तराल, जून गोहाटी गये हैं कल. उन्हें जून के पूर्व मुख्य अधिकारी को विदाई भोज के लिए घर पर बुलाना है. शनिवार को उन्हें निमंत्रित करने गये पर वे लोग शायद शहर से बाहर गये थे. दोपहर को उसने बगीचे से तोड़ी ब्रोकोली के चावल बनाये और शाम को कच्चे केले की सब्जी. इस वर्ष भी सर्दियों की सब्जियां इतनी हो रही हैं कि महीनों से वे आलू, प्याज, टमाटर, खीरा आदि के अतिरिक्त बाजार से कुछ नहीं खरीद रहे हैं. कल एक सखी के यहाँ से योगानन्द जी की एक पुस्तक मिली, गॉड टॉक्स विथ अर्जुन, अच्छी है. उनके भीतर निरंतर युद्ध चल रहा है. आत्मा और अहंकार के मध्य. अहंकार है देहभान तथा आत्मा है कृष्णभान. सारा दारोमदार इस बात पर है कि इस युद्ध में कौन जीतता है. सामने नीला आकाश है और उस पर श्वेत बादल, हवा बह रही है, जिसका स्पर्श सुखद है और सुखद है देह के भीतर तरंगों का स्पर्श भी !

सुबह से बादल बने हैं पर बरस नहीं रहे हैं. तीन दिन फिर किन्हीं व्यस्तताओं में गुजर गये. आज शाम को तीन परिवारों को रात्रि भोज पर बुलाया है. काफी काम हो गया है, थोड़ा शेष है. कुछ कार्य जून को करना है, कुछ नैनी को. आज सिलापत्थर  में एक बंगाली समूह ने असम के छात्र संघठन के दफ्तर पर हमला किया, उसी के विरोध में असम  बंद का एलान किया गया है. काफी दिनों से असमिया-बंगाली शांति से रह रहे थे, अचानक यह बदलाव कहाँ से आ रहा है. तीन दिन बाद होली है. उसने सोचा, वे आज ही होली भोज का आयोजन कर रहे हैं. अगले हफ्ते उन्हें मिजोरम की यात्रा पर निकलना है.

सुबह पौने छह बजे वे असम से रवाना हुए थे. सवा आठ बजे फ्लाईट डिब्रूगढ़ के मोहनबारी हवाईअड्डे से चली और पौने दस बजे कोलकाता पहुंची. जहाँ तीन घंटे प्रतीक्षा करने के बाद दोपहर एक बजे स्टारलाइंस-एयर इंडिया के विमान ने आइजोल के लिए उड़ान भरी. हवाईअड्डे पर कई मिजो लड़के-लडकियाँ थे, सभी काफी प्रसन्न, जरा उनसे नजरें मिलाओ तो मुस्कुराने को तैयार ! छोटी सी फ्लाईट थी लगभग पचास मिनट की, ऊपर से सैकड़ों मीलों तक फैली हरियाली से ढकी पर्वतों की श्रृंखलायें दिख रही थीं, एक के बाद एक पहाड़ों की चोटियाँ, घाटियाँ नहीं के बराबर. दोपहर दो बजे वे मिजोरम के लुंगपेई हवाईअड्डे पर पहुंचे, जहाँ कई सुंदर छोटे-छोटे बगीचे फूलों से भरे थे. बाहर निकले तो हर तरफ वृक्षों की कतारें. शहर से काफी दूर है हवाईअड्डा, लगभग सवा घंटा पहाड़ों के सान्निध्य में छोटी सी पतली सड़क पर यात्रा करने के बाद कम्पनी के गेस्ट हॉउस पहुंचे. यह हल्के हरे रंग से रंगी चार मंजिला इमारत है. रास्ते में बांसों के झुरमुट और फूल झाड़ू के पेड़ बहुतायत में दिखे. दो तीन जगह पिकनिक स्पॉट जाने के मार्ग बताते बोर्ड दिखे. स्वादिष्ट नाश्ता करके शहर घूमने निकले. पूरा शहर या कहें पूरा प्रदेश ही पहाड़ियों पर बसा है, सडकें ऊंची-नीची हैं, कहीं-कहीं तो खड़ी चढ़ाई है, लेकिन यहाँ के ड्राइवर इतने अभ्यस्त हैं कि ऐसी सड़कों पर आराम से वाहन चला लेते हैं. उसने एक पारंपरिक मिजो ड्रेस खरीदी. यहाँ के लोग कुत्तों से बहुत प्रेम करते है. एक महिला को देखा स्कूटर पर एक कुत्ते को शाल में लपेटे ले जा रही थी, जैसे कोई अपने बच्चे को ले जाता है. याद आया, एक मिजो लड़की यात्रा में उनके निकट बैठी थी, जो हैदराबाद में ब्यूटी पार्लर में काम करती है, अब छुट्टियों में घर जा रही थी. उसने बताया था, मिजोरम में कोई स्ट्रीट डॉग नहीं होता. सडकों पर महिलाएं और बच्चे ज्यादा नजर आ रहे थे, सभी प्रसन्न मुद्रा में.

Tuesday, February 19, 2019

आंधी और तूफान



कल वे वापस घर असम पहुंच गये. यहाँ तो बरसात का मौसम जैसे आरम्भ हो ही गया है. परसों रात्रि से ही लगातार वर्षा हो रही है. बंगाली सखी से बात हुई, आज उसके विवाह की वर्षगांठ है, उसने बुलाया तो नहीं है पर वे अवश्य जायेंगे. अभी एक और पुरानी सखी से बात हुई, उसने कहा, उसकी बिटिया ने घर के कार्यों में दिल से भाग लेना शुरू कर दिया है. उसे नन्हे का सहयोगी स्वभाव बहुत अच्छा लगा. बच्चे देखकर ज्यादा सीखते हैं.

सुबह वे उठे तो बगीचे में चारों ओर पत्ते बिखरे हुए थे, जो रात की आंधी की खबर दे रहे थे. लंच के बाद जून जब चले गये तो बहुत दिनों बाद अयोध्या काण्ड में आगे लिखना आरम्भ किया. दोपहर को थोड़ी देर थमने के बाद संध्या पूर्व वर्षा फिर आरम्भ हो गयी थी. शाम को जब योग कक्षा चल रही थी, आंधी और तूफान के कारण कुछ देर के लिए बिजली भी चली गयी. एक योग साधिका के दांत में दर्द था, अन्य के सिर में, उसने उन्हें विश्राम करने को कहा. निरंतर योग साधना करने से एक दिन अवश्य ऐसा आता है जब छोटे-मोटे रोग इसमें बाधा नही बनते. उसके बाद क्लब जाना था, मीटिंग थी, पाक कला की प्रतियोगिता थी, वायलिन वादन, नृत्य तथा एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी. अभी-अभी छोटे भाई से बात की. नन्हे की शादी में आने के लिए अभी से टिकट करवाने के लिए बिटिया से कह रहा है. इस समय रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. बाहर बगीचे से एक पक्षी की ध्वनि निरंतर सुनाई दे रही है, जैसे जाप कर रहा हो.

आज प्रातः भ्रमण को गये वे तो हवा में ठंडक थी और खुशबू भी. दो हफ्तों बाद स्कूल भी गयी, बच्चों को योग करने में और उसे कराने में आनन्द आता है. स्कूल में नई प्रिंसिपल आई हैं. कल इतवार को भी लॉन में बच्चों ने कुछ आसन किये और भजन गाये. आज सुबह पड़ोसिन के यहाँ गयी. उनकी बेटी व दामाद से भी मिलना हुआ, उन्हें फूल तथा अपनी पुस्तक भेंट की. दोपहर को लेखन. परसों दोपहर से जून उदास थे, कल दोपहर बाद तक मन में एक उहापोह सी रही. आज मन ठीक है उनका. कल उन्हें दो दिन के टूर पर जाना है.

तीन दिनों का अंतराल, जून देहली गये तो उस दोपहर देर तक लिखती रही. कल वे वापस आ गये. खाने-पीने के सामान के साथ तीन कुर्तियाँ भी लाये हैं उसके लिए. माया से छूटने का कोई क्या उपाय करे. परमात्मा नित नये बंधन में बाँध रहा है. कल रात को इस समय की भांति तेज वर्षा हो रही थी. जून जोर-जोर से खर्राटे ले रहे थे. उसकी नींद खुल गयी, सुबह सिर भारी था. एक दिन पूर्व किसी ने मस्तक पर अगूँठे का स्पर्श करके जगाया था, इसके बाद एक दिन एक स्पष्ट ध्वनि सुनी, ‘निकल’ और नींद खुल गयी. एक दिन ध्यान करते समय कोई साथ-साथ श्वास ले रहा था. कितने रहस्य छुपे हैं उनके चारों ओर. सुबह सद्गुरू को सुनती है, दिन का आरम्भ कितना सुंदर होता है. आजकल कविता जैसे रूठ गयी है !

Friday, February 15, 2019

फुलकारी की कढ़ाई




जून का प्रेजेंटेशन ठीक हुआ आज, छोटा सा ही था, इसके लिए इतनी दूर आना तथा इतने सुंदर वातावरण में रहने का अवसर मिलना भी एक सौभाग्य ही है. सुबह लंच से पूर्व सभी महिलाओं ने अंताक्षरी खेली तथा तम्बोला भी. उसके पूर्व वह दो अन्य महिलाओं के साथ कैम्पटी फॉल देखने गयी. बहुत ऊंचाई से गिरता हुआ जल अद्भुत दृश्य उत्पन कर रहा था. रास्ते में छोटी-बड़ी दुकानें थीं, जहाँ से कुछ खरीदारी भी की. उससे पूर्व पौष्टिक व स्वादिष्ट नाश्ता. दोपहर बाद वे मालरोड के लिए निकले. होटल की शटल बस द्वारा दो अन्य महिलाओं के साथ, जिनके पति भी इसी कांफ्रेंस में भाग लेने आये हैं. वे लोग एक दुकान में गये जहां फुलकारी किये हुए सूट, दुपट्टे तथा साड़ियाँ मिल रही थीं. उसने तीन कुर्तियों का कपड़ा खरीदा. मॉल रोड पर काफी चहल-पहल थी. उन्होंने एक बड़ा सा भुना हुआ भुट्टा भी लिया और तीन टुकड़े कर के खाया. ज्यादा भूख नहीं थी बस ठंड को दूर करने के लिए कुछ खाना था. शाम होते-होते कोहरा छाने लगता और ठंड बढ़ गयी थी. कल रात्रि भोजन से पूर्व ‘गजल संध्या’ भी शानदार थी, दोनों गायक श्रेष्ठ थे तथा गीतों व गजलों का चयन भी अच्छा था. अब वह शाम के डिनर पर जाने के लिए तैयार है. आज शाम भी संगीत का कोई न कोई कार्यक्रम अवश्य होगा. कल दोपहर के भोजन के बाद उन्हें वापसी की यात्रा आरम्भ करनी है. सुबह इसी रेजॉर्ट में कुछ देर घूमकर कुछ तस्वीरें उतारेगी, जब जून अपने कार्य में व्यस्त होंगे.

हवा में ठंडक है और सामने पहाड़ों पर धूप चमक रही है. नीले आकाश पर हल्के श्वेत बादल और पंछियों की आवाजें ! पहाड़ों की हवा कितनी अलग होती है, प्रदूषण मुक्त और शीतल, हरियाली और नीरव एकांत भी पर्वतों पर ही मिल पाते हैं. होटल के कमरे से बाहर निकल कर इस छोटे से लॉन में बैठकर डायरी लिखने का आज अंतिम दिन है. कुछ देर पूर्व ही वे टहलने गये, कुछ और फोटोग्राफी की. कल रात नींद ठीक आई, स्वप्न आयें भी हों तो कुछ याद नहीं. आज पिताजी के पास जाना है, उन्हें जून से मिलकर बहुत अच्छा लगेगा. इसके बाद अब वर्ष भर बाद ही मिलना होगा. परमात्मा ने उसे एक और पाठ इस बार की यात्रा में सिखाया है. देने का सुख कितना बहुमूल्य है, बदले में कुछ भी पाने की तिलमात्र भी ललक यदि भीतर है तो मानो दिया ही नहीं. जो उनकी अपनी निधि है वह तो उनसे मृत्यु भी नहीं छीन सकती, वह है उनका परमात्मा, वह सदा ही है, सदा ही रहेगा ! मसूरी में यह दो-ढाई दिनों का प्रवास एक सुखद यादगार बनकर मन पर अंकित हो गया है.

पर्वतों की रानी



बचपन से लेकर आज तक कई बार इस घर में आना हुआ है और हर बार दीदी ने प्रेम से स्वागत किया है. मेज पर ढेर सारे व्यंजन और आग्रह करके खिलाना. जीजाजी भी उतना ही ध्यान रखते हैं. बड़ी भांजी भी अपनी बेटी के साथ आई हुई थी. आज दोपहर बारह बजे वे उत्तराखंड की राजधानी के लिए चले, ट्रैफिक जाम के कारण दो बजे की बजाय साढ़े तीन बजे यहाँ पहुँचे. भोजन के पश्चात बड़ी बुआ से मिलने गये. चचेरी बहन व उसकी बिटिया भी मिली, पुत्र बड़ा हो गया है, सो नहीं आया. मौसम यहाँ ठंडा है पर घर बंद है सो भीतर ठंड का अहसास नहीं हो रहा है. छोटे भाई के कई रूप आज देखने को मिले, सहज और आनंदी भी, परेशान और शिकायती भी. परमात्मा सारे विरोधों को स्वीकार करता है. पिताजी ने सुबह अपने हाथों से चाय बनाकर दी, कल रात को बिस्तर लगाया. उनकी उम्र में इतना ऊर्जावान और प्रेम से भरे रहना आश्चर्य की बात है !


होटल के इस शांत कमरे में बैठकर लिखना एक सुखद अनुभव है. एयर कंडीशनर की आवाज के अलावा कोई ध्वनि नहीं है. कमरे का तापमान न ज्यादा है न कम. बाहर लॉन में अब धूप चली गयी है, ठंडी हवा है और पहाड़ों पर सफेद कोहरे का आवरण छा गया है. आज सुबह साढ़े दस बजे वे दीदी के घर से रवाना हुए और पौने दो बजे मसूरी के इस सुंदर स्थल पर पहुँच गये. लम्बी गैलरी से चलते हुए कमरे तक, फिर सामान रखकर टैरेस पर, जहाँ धूप में बैठकर भोजन का आनंद लिया. उसके बाद दूर तक फैले सुंदर बगीचे और बच्चों के पार्क में घूमते हुए सुंदर दृश्यों की तस्वीरें उतारीं. जून को रजिस्ट्रेशन के लिए जाना था, वह यहाँ एक कांफ्रेस में भाग लेने आये हैं. वह कमरे से बाहर बने लॉन में कुछ देर बैठकर आशापूर्णा देवी की पुस्तक ‘चैत की दोपहर में’ पढ़ती रही, एक छोटा सा नंग-धड़ंग बच्चा जिसकी माँ को मसूरी में मोच आने से व्हील चेयर पर आना पड़ा था, खेल रहा था और पौधे उखाड़ रहा था. बाद में उसे डांटने पर जोर-जोर से रोने लगा. बाहर ठंड बढ़ जाने पर वह कमरे में आ गयी, केतली में पानी गर्म किया एक कप काफी बनाई. पिताजी से फोन पर बात की. दीदी का व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल आया. और अब उसके पास समय ही समय है. चाहे जो लिखे या पढ़े. चाहे तो बाहर घूमने भी जा सकती है, पर ठंड अवश्य ही बढ़ गयी होगी. ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर बने मकान तथा नीचे गहरी घाटियों में घने जंगल, बहर का दृश्य बहुत सुंदर है. उसने दीदी-जीजाजी, जून, छोटे भाई-भाभी, पिताजी, बड़े भाई, मंझले भाई-भाभी सभी के लिए उपजे मन के भावों को छोटी-छोटी कविताओं में पिरोया. सबसे मिलकर जो ख़ुशी भीतर उपजी थी उसी को शब्दों में ढाल दिया तो ख़ुशी कम होने के बजाय और भी बढ़ गयी. ख़ुशी का गणित ही कितना अलग है, यह बांटने से बढती है. ऐसे ही दुःख भी बांटने से बढ़ता ही है, उसे तो चुपचाप हृदय में रख लेना होगा. 

Tuesday, February 12, 2019

काले और हरे अंगूर



सुबह के साढ़े नौ बजे हैं. दिल्ली आये दूसरा दिन है. कल दोपहर साढ़े ग्यारह वे घर से निकले, फ्लाईट समय पर थी. जून रास्ते में ही उतर गये यानि गोहाटी में. वह शाम को दिल्ली पहुंची, बड़े भाई लेने आये थे. कार पार्क जोन में वह मिले, उन्हें उसकी वजह से कार छोड़कर आना पड़ा, थोड़ी सी परेशानी हुई पर जल्दी ही वे घर पहुंच गये. रात्रि भोजन मंझली भाभी के यहाँ किया, वापस आते-आते देर हो गयी थी. भतीजी ने अपने विवाह की तस्वीरें दिखाईं एक वीडियो भी. भाई सोसाइटी के दफ्तर में काम करते हैं, उन्होंने बताया लोगों के बिल बनाने के लिए उन्होंने एक तकनीक बनाई है, जिसमें वर्ड में बनाये फॉर्म में एक्सेल से डाटा अपने आप ट्रान्सफर हो जाता है. हो सकता है यह विधि मृणाल ज्योति में वे काम में ला सकें. रात को सांख्य शास्त्र सुना और सुबह ओशो को. ज्ञान के बिना मन तूफान में डोलती नैया की तरह डांवाडोल ही रहता है. ज्ञान जैसे एक लंगर का काम करता है जिसके सहारे नाव स्थिर हो जाती है. सुबह वे दूर तक घूमने भी गये, तापमान १०-१२ डिग्री रहा होगा, लेकिन अनेक लोग पार्कों में निकले हुए थे. वापस आकर चाय पी, भीगे हुए बादाम, खजूर और बिस्किट के साथ. कुछ देर धूप में बैठकर इधर-उधर की बातें कीं तत्पश्चात नहाधोकर नाश्ता. भाई द्वारा बनाया अंकुरित मूंग व मोठ का नाश्ता, फिर वह सब्जी लेने नीचे चले गये. सफाई करने व खाना बनाने दो सहायिकाएं अपना काम कर रही थीं. सामने बालकनी में धूप आ रही थी, उसने सोचा कुछ देर धूप में बैठने का आनंद लिया जा सकता है.

धूप तेज है, ऊपर छत पर धूप में बैठकर उन्होंने फलों का आनंद लिया. घर में गमले में उगा अमरूद, पपीता, काले व हरे अंगूर तथा केला. सभी फल मीठे व रसीले. आज सुबह वह दिल्ली से पिताजी से मिलने आ गयी है. ट्रेन समय पर थी, छोटा भाई डिब्बे में ही आ गया था. सामान लेकर प्लेटफार्म से सीढ़ी चढकर वे बाहर निकले. अकेले आने पर भाइयों का सहयोग मिलता है निस्वार्थ और स्नेह भरा. स्टेशन से घर आते समय भाई ने मिठाई व फल खरीदे.

रात्रि के दस बजे हैं. भाई-भाभी एक विवाह समारोह में शामिल होने गये हैं, पिताजी अपने कमरे में सोने चले गये हैं. घर में शांति है आज, कल रात पिताजी का ट्रांजिस्टर भी चल रहा था और नीचे तेज आवाज में टीवी. शाम को पुरानी तस्वीरें देखीं, उससे पूर्व नाद-ब्रह्म ध्यान किया. दोपहर को चचेरा भाई आया था, अकेला रहता है और अपना ध्यान जरा भी नहीं रखता. पैरों-हाथों पर मैल जमा था, उसे गर्म पानी व साबुन दिया. पिताजी ने कहा, सेवा का मौका दिया है उसने, करनी चाहिए. उसे हर बार यानि हर महीने आने के लिए कहा. सुबह पिताजी के साथ टहलने गयी बॉस थोड़ी सी दूर. उनमें जरा भी आलस्य नहीं है. हर समय काम करने को तत्पर हैं, चलने में दिक्कत होती है पर खुद के लिए बॉर्नविटा लेने खुद जाते हैं. कल भी उनके साथ टहलने जायेगी. उसके बाद छोटी भाभी के साथ बाजार गयी. दो छोटी लडकियों के लिए उपहार खरीदने थे. भाभी के माँ-पिता के विवाह की स्वर्ण जयंती पर लिखी कविता का प्रिंट लिया. जून ने इसमें दूर से ही सहायता की. दोपहर को ओशो की पुस्तक पढ़ी. छोटा भाई ओशो के प्रवचन सुनता है और बैठे-बैठे कहीं खो जाता है, वह भाव समाधि में रहता है, सदा होश्पूर्ण विश्राम की स्थिति में !  

Sunday, February 10, 2019

वसंत पंचमी



पिछले चार दिन डायरी नहीं खोली. अद्भुत थे ये चार दिन ! शनिवार को नन्हा अपने मित्रों के साथ आया. इतवार की सुबह सभी पिकनिक पर गये, शाम को भावी वधू के माता-पिता भी आ गये. सोमवार को सभी कोर्ट गये. शाम को घर पर छोटा सा आयोजन किया. सभी कुछ भली प्रकार हो गया. मंगलवार को सब वापस चले गये. कल बुध को सरस्वती पूजा थी, दोनों स्कूलों में होने वाली पूजा में शामिल हुई. इसके बाद दो वर्ष ही और हैं जब वह यहाँ वसंत पंचमी के उत्सव में शामिल हो सकती है. बंगाल और असम के अतिरिक्त भारत के अन्य भागों में पूजा के पंडाल लगाने की प्रथा नहीं है. आज भतीजी का विवाह है और भांजी का जन्मदिन भी ! उसके लिए कविता लिखी. अगले हफ्ते यात्रा पर निकलना है. उसने मन ही मन उपहारों की सूची बनाई, बड़े व छोटे भाई के लिए डायरी व पेन, भतीजी के लिए साड़ी, छोटी भाभी के लिए स्टोल, बड़ी बुआ व चाची जी के लिए शाल, बच्चों के लिए चाकलेट्स, किताबें व पेन, चचेरी बहन के लिए सलवार सूट. अभी कोऑपरेटिव जाना है, एक सखी की बिटिया का कल जन्मदिन है, उसके लिए भी उपहार लेना है.

शाम के सात बजे हैं. अभी कुछ देर पूर्व योग कक्षा समाप्त हुई. जून ‘रईस’ देखने गये थे, पर थोड़ी ही देर में लौट आये. दोपहर बाद उस सखी के घर गयी जिसकी बिटिया का दसवां जन्मदिन है, घर में सजावट चल रही थी. सुबह मृणाल ज्योति में बच्चों को योग कराया, उसके बाद तन-मन बेहद हल्का लग रहा था. कल सुबह एक पल में मन के विचलन को देखा फिर परिवर्तन किया, जादू जैसा लगा. कल रात्रि पल में जीने का सूत्र नींद में भी याद आ रहा था. चेतना कितनी शक्तिशाली है कि एक क्षण में इतने बड़े ब्रह्मांड को एक साथ महसूस कर सकती है. हर क्षण अपने भीतर एक अनंत को छिपाए है. भीतर अनंत शांति है. आजकल साधना का समय घट गया है, पर मन में स्थायी शांति का वास है, जो हर समय एक रस ही लगता है. भतीजी का विवाह व रिसेप्शन कल दोनों हो गये. तस्वीरें देखीं. मार्च में कुछ दिनों के लिये वह विदेश जाएगी.

रात्रि के आठ बजे हैं. मौसम अब ठंडा नहीं रह गया है. कमरे में बिना स्वेटर पहने रहा जा सकता है. टीवी पर उत्तर प्रदेश के चुनावों के समाचार आ रहे हैं. शामली में रेत के अवैधानिक खनन के समाचार बताये जा रहे हैं. आज जया एकादशी है. जून दोपहर को डिब्रूगढ़ गये थे, नन्हे के विवाह का सर्टिफिकेट मिल गया है. समधियों को फोन किया. जून अगले हफ्ते गोहाटी में उनसे मिलने वाले हैं. दोपहर को ब्लॉग पर एक पोस्ट प्रकाशित की, आजकल लेखन बहुत कम हो गया है. यात्रा के दौरान छूट ही जायेगा. परसों वे पड़ोसी के यहाँ गये थे, उनकी बिटिया का विवाह होने वाला है, उनके न रहने पर वे मेहमानों को उनके घर में ठहरा सकते हैं, ऐसा प्रस्ताव भी दिया. कल वह उन्हें बुलाकर मेहमानों का कमरा दिखा देगी, जिससे उन्हें बाद में आसानी हो. परसों उसे यात्रा पर निकलना है. पैकिंग हो गयी है.  


Saturday, February 9, 2019

गार्डन अम्ब्रेला



आज नेता जी का जन्मदिन है. बंगाली सखी की बिटिया का जन्मदिन भी है, सुबह उससे बात हुई. कल शाम को एक भोज में गयी थी. कुछ परिचित महिलाओं से बात हुई, यूँ ही इधर-उधर की बातें. एक पुरानी परिचिता जो अब यहाँ नहीं रहतीं, उनका फोन नम्बर भी लिया. सामने बगीचे में तरह-तरह के फूल खिले हैं व पंछियों की आवाजें आ रही हैं. अगले महीने पिताजी से मिलने घर जाना है दिल्ली होते हुए.

शाम हो गयी है, यानि एक और दिन बीतने में कुछ ही घंटे शेष हैं. आज सुबह कितनी देर से उठे वे, कारण, रात को देर तक नींद का न आना.. उसका कारण कल शाम को तीन-साढ़े तीन घंटे व्यर्थ ही बातों में बिता देना. जीवन को इतना भी हल्के में नहीं लेना चाहिए कि जीवन से रस ही चला जाए. मन को भी विश्राम चाहिए और जैसे कोई गायक रोज रियाज करता है, वैसे ही साधक को रोज ही साधना करनी होती है. थोड़ी सी भी लापरवाही मन को मूल से दूर ले जाती है और वह बिन जल की मछली की तरह तड़पता है. परमात्मा से एक क्षण की भी विलगता अब सहन नहीं होती. जब दरिया भीतर बहता ही है तो क्यों कोई प्यासा रहे. कल शाम को मंझली भाभी ने भतीजी के रिश्ते की बात बतायी. पंजाब का परिवार है, लड़का विदेश में रहकर नौकरी करता है. ईश्वर चाहेगा तो इसी वर्ष उसका भी विवाह हो जायेगा. नैनी की सास ने चार संतरे लाकर दिए हैं जो उसका बड़ा बेटा अरुणाचल प्रदेश के संतरे के बगीचे से लाया है. आज बड़े भाई से बात की, वह खुश लग रहे थे.

रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. शाम को लेडीज क्लब की मीटिंग में गयी, एक सदस्या के लिए कविता पढ़ी. एक सखी की माँ अस्वस्थ है, अस्पताल में है, वह उससे मिलने गयी है. जून अभी तक आये नहीं है. ऑडिट चल रहा है उनके दफ्तर में. शाम को योग कक्षा हुई, अगले हफ्ते दो दिनों के लिए एक साधिका को कहा है, अपने घर में करवा लें. कल शाम से पहले ही नन्हा अपने मित्रों के साथ आ जायेगा. घर में चहल-पहल हो जाएगी. शाम को बगीचे की सफाई करवाई. दोपहर को कुर्सियां और बगीचे के छाते भी आ गये हैं. जून घर का सामान भी ले आये हैं, यानि तैयारी पूरी है और उसने नन्हे और उसकी भावी पत्नी के लिए कविता भी लिख दी है जिसे जून ने प्रिंट कर दिया है. आज चारों ब्लॉग्स पर पोस्ट प्रकाशित भी कीं. दोपहर को दूध गैस पर रखकर सो गयी, उबल कर गिर गया, विश्राम की कीमत !

साढ़े दस बजने को हैं, मौसम आज बादलों भरा है. नन्हा और उसके मित्र कोलकाता पहुँच चुके हैं. दो घंटे बाद अगली फ्लाईट है. भोजन बन चुका है, जून आज देर से आने वाले हैं, उनका मन लेकिन इधर ही लगा हुआ है. वर्षा होने से पूर्व ही फोन करके कहा, सूखी लकड़ियाँ गैराज में रखवा दे, जो मेहमानों के आने पर एक रात्रि उन्हें जलानी हैं. सुबह-सुबह एक सखी आई थी, खुश थी, चाहती है नन्हे को स्वयं जाकर बंगाली सखी को बुलाना चाहिए, पर उसे लगता है इसकी कोई जरूरत नहीं है. उसने जो ठान लिया वह करके ही रहेगी, इसलिए जो होता है सब ठीक है. वर्षा होकर रुक गयी है, पूरे लॉन में पत्ते बिखर गए हैं. उन्होंने कल ही अच्छी तरह सफाई करवाई थी. Really God Loves Fun!

Wednesday, February 6, 2019

लकड़ी के गिलास



चार दिनों बाद परसों वे यात्रा से लौट आये. सोचा था कि रसोईघर व स्टोर में सफेदी का कार्य पूरा हो चुका होगा पर अभी भी एक दो-दिन का कार्य शेष था. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी नये वर्ष में पहली बार. जून ने कुछ डायरी दी थीं उन्हें देने के लिए और एक पुराना लैप टॉप. उसने बच्चों को योग कराया और बिस्किट बांटे. वापसी में बाजार में लाल गाजरें मिल गयीं, यहाँ कम ही मिलती हैं, ज्यादातर नारंगी रंग की चिकनी गाजरें होती हैं. दोपहर को स्टोर में सब सामान लगाया. गाजर का हलवा बनाया. शाम को क्लब में मीटिंग हैं, योग कक्षा में आने वाली महिलाओं में से जो वहाँ जाएँगी, उन्हें अपने शाम के कार्य पहले निपटाने होंगे. योग तो छोड़ा जा सकता है पर दूसरे कार्य कहाँ ? तभी तो जीवन में योग फलीभूत नहीं होता. आज जून को गोहाटी जाना था, घर से साढ़े बारह बजे से पहले ही चले थे, पर अभी तक एअरपोर्ट पर ही बैठे हैं सभी यात्रीगण, फ्लाईट अब सात बजे जाएगी.

आज निकट के एक गाँव में मृणाल ज्योति की एक कर्मी के विवाह का निमत्रंण था, लगभग ढाई घंटे वहाँ रुकी. पहली बार असमिया शादी के ‘जुरून’ रस्म को इतने निकट से देखा. अच्छा लगा. उन्हें भी यह रस्म निभानी होगी. जून से बात हुई वह गोहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने पुल पर ट्रैफिक में अटके हुए थे, कहने लगे एक-डेढ़ घंटा ज्यादा लग जायेगा गंतव्य तक पहुँचने में. सुबह एक सखी का फोन आया, शाम को आग जलाकर उसी में सिकी रोटी खाने के लिए, उसे इस कार्य में दक्षता हो गयी है.

सुबह उठते ही ध्यान में बैठी. भीतर जैसे कोई फिल्म चलने लगी हो. पुराने जन्म के सिलसिले जो इस जन्म तक चले आये हैं, दिखे, साक्षी भाव से सबको देखते रहो तो कुछ भी नहीं होता. दोपहर को नैनी के घर से लड़ने की आवाजें आ रही थीं, पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई भीतर. आत्मा में रहो तो कितना चैन है, कुछ नहीं छूता. मैत्री, करुणा, मुदिता व उपेक्षा सहज ही घटते हैं. जो कर्म प्रारब्ध के रूप में फल देने के लिए प्रस्तुत हो चुके हैं, वे क्षीण हो जाते हैं, जब कोई साधना करता है. जून गोहाटी से लौट आये हैं, बांस के बने दो कलात्मक मूढ़े लाये हैं और भी कुछ कलापूर्ण वस्तुएं, जैसे लकड़ी के गिलास, एक गैंडा, बेंत की टोकरी आदि, आने वाले मेहमानों के लिए सुंदर उपहार ! टाटा स्काई पर गुरूजी को सुन पाती है आजकल, अच्छा लगता है, वे ध्यान भी करवाते हैं. जिसे सुनते-करते वे प्राणायाम भी कर लेते हैं. कल शाम उस सखी के यहाँ आग में शकरकंदी भी भूनी, अच्छा रहा सारा कार्यक्रम, उस सखी में बहुत ऊर्जा है.

आज ठंड बहुत अधिक है. दोपहर के एक बजे हैं, वह लॉन में धूप में बैठी है. पीठ पर तपन महसूस हो रही है. एक योगाचार्य से सुना कि शरीर को जितना विटामिन डी चाहिए, उसके लिए कम से कम पौन घंटा धूप में रहना चाहिए. आज सुबह स्कूल गयी तो रास्ते में सह शिक्षिका ने जो बात बताई, उससे मन बेचैन है. कल अख़बार में भी ऐसी ही एक खबर पढ़ी. मानव के भीतर के पशुत्व को बताती बात, छोटे-छोटे बच्चों को उस पशुत्व का शिकार होने की बात. हर मानव के भीतर पशु भी छिपा है और देव भी, कोई किसे जगाना क्घहता है यह उस पर निर्भर करता है. उस शिक्षिका ने उसे बताया की वह परेशान है और अब उसने अपनी परेशानी उसे दे दी है. मालिन से पूछताछ करने के बाद ही जून को बताना होगा. यदि यह बात सच हुई तो आगे की कार्यवाही भी करनी होगी.   


Monday, February 4, 2019

छऊ नृत्य का प्रदेश



आज सुबह वे चार बजे से भी पहले उठ गये और पांच बजे से पहले तैयार भी हो गये. हल्का सा नाश्ता किया और जून ने ड्राइवर को फोन किया. वह लगभग बीस किमी दूर एक गाँव में रहता है, गोरखा बंद के कारण उसे एक सुरक्षा कर्मी भी अपने साथ लेते हुए आना था, किन्तु उसने बताया आधे रास्ते में ही धरना देने वाले लडकों ने उसकी कार को रोकर चाबी उससे ले ली है और अब उसके पास आने के लिए कोई साधन नहीं है. कुछ पलों के लिए वे परेशान हुए फिर उसे समझाया, वह घर चला जाये और उन लडकों का नम्बर ले ले. उन्होंने सुरक्षा अधिकारी को इस वारदात की खबर भी कर दी, जिसने सहायता का वादा किया. जून ने एक दूसरे ड्राइवर को फोन किया वह अपने स्कूटर से आया और उनकी कार में लगभग पचास किमी दूर हवाई अड्डे ले गया. गनीमत है रास्ते में और किसी ने नहीं रोका. एक बात और अच्छी हुई, जून बिजनेस क्लास में थे, उसका टिकट भी किसी स्कीम के कारण अपग्रेड हो गया और आरामदायक यात्रा के बाद वे ग्यारह बजे कोलकाता पहुंच गये. गेस्टहाउस जाकर सामान रखा और विवाह के लिए कुछ आवश्यक खरीदारी करने निकल पड़े, लौटकर सदा की तरह स्वादिष्ट भोजन और फिर रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े. रेल यात्रा भी सुखद थी. शाम की चाय शताब्दी ट्रेन में भारतीय रेल के सौजन्य से मिली. रात्रि आठ बजे वे धनबाद पहुंच गये. होटल का नाम है १७ डिग्री, पारंपरिक साज-सज्जा से सुशोभित यह होटल सुविधाजनक है. रात्रि भोजन के बाद कुछ देर टहलने के लिए गये. हवा ठंडी थी और भली लग रही थी. अब निद्रा का समय है.

रात्रि के दस बजे हैं, अभी-अभी वे आईएसएम धनबाद के यूनियन क्लब के बैंकेट हॉल से लौटे हैं. शाम सात बजे पहुँचे थे. लोहे की बड़ी-बड़ी पिंजरेनुमा अंगीठियों में कोयले के लाल अंगारे दहक रहे थे. कोयले की नगरी में आकर कोयले का ऐसा रूप देखना तो स्वाभाविक ही है. कार्यक्रम आरम्भ भी नहीं हुआ था कि चायनीज बेबी कॉर्न व सूप परोसा गया, पहली बार छऊ नृत्य देखने का सौभाग्य मिला. बेहद आकर्षक नृत्य था जिसमें सभी कलाकार पुरुष थे. जो पौराणिक कथाओं पर आधारित था, पारंपरिक वाद्य यंत्र थे जिन्हें कई अधेड़ व वृद्ध उम्र के कलाकार बजा रहे थे, एक मुख्य गायक था. उन्होंने वीडियो भी बनाया और तस्वीरें उतारीं. उसके बाद टीवी कलाकार तान्या मुखर्जी का कार्यक्रम था, जो सुरीले गीत गा रही थीं. वे थक गये थे सो जल्दी ही भोजन करके होटल लौट आये. ठंड काफी थी, तापमान १४ डिग्री था जो अग्नि के पास बैठने पर महसूस नहीं हो रहा था. शाम को वे विरसा-मुंडा पार्क देखने गये थे, जो काफी विशाल था पर वे थोड़ा सा भाग ही देख पाए. सुबह नौ बजे आईएसएम, जो अब आईआईटी बन गया है, पहुंच गये थे, कार्यक्रम लगभग दस बजे आरम्भ हुआ. दोपहर बाद जून को पेपर प्रस्तुत करना था. कार्यक्रम अच्छा था, काफी लोगों को सुना. कल पुनः सुबह साढ़े नौ बजे ‘शक्ति मन्दिर’ होते हुए उन्हें यहाँ आना है. दोपहर ढाई बजे तक कार्यक्रम है.

रात्रि के नौ बजे हैं, वे होटल लौट आये हैं, आज यहाँ  तीसरी और अंतिम रात्रि है. पैकिंग कर ली है और पालक व हरी सब्जियों का भोजन भी. शाम को बाजार से भावी वधू के लिए आभूषण खरीदे. सुबह शक्ति मन्दिर के दर्शन किये. मन्दिर अत्यंत विशाल व स्वच्छ था, पर द्वार के बाहर भिखारियों की लंबी कतार थी, जैसे पूरे के परिवार वहाँ थे, हर उम्र की औरतें, बच्चे और पुरुष. मानव होने की गरिमा से अनभिज्ञ कितने अभागे. सम्मान का जीवन क्या होता है, उन्हें पता ही नहीं. वहाँ से वे कैंपस गये, उसे कैंपस दिखाने के लिए एक विद्यार्थी को कह दिया गया था, जिसने पहले प्रयोगशाला दिखाई, फिर अन्य दो विद्यार्थियों ने पूरा क्षेत्र दिखाया. यह संस्था १९२६ की बनी हुई है तथा उस जमाने की विशाल इमारतें अभी तक सुरक्षित हैं और शानदार हैं. उसके बाद वह पुस्तकालय में बैठी रही. हिन्दी की पुस्तकें पढ़ीं. नरेंद्र कोहली की स्वामी विवेकानन्द पर आधारित पुस्तक, राहुल सांस्कृतायन के पत्र तथा अशोक वाजपेयी की एक पुस्तक जिसमें कई निबन्ध थे, अधिकतर कविता से जुड़े. तन्मय तथा राजेन्द्र ने स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर दिखाया, जो काफी बड़ा था तथा जिसमें अनेक कक्ष थे. लगभग हर क्षेत्र में रूचि रखने वाले छात्रों के लिए कोई न कोई क्लब था. योग, नृत्य, खेल, रेडियो, साहित्य, कला तथा अन्य कई. उन छात्रों ने कालेज के बारे में कई रोचक बातें बतायीं. जैसे, धनीराम चाय वाला जिसकी तीन पीढ़ियाँ उसकी दुकान को चला रही हैं. दोपहर का भोजन वहीं किया. धनबाद कोयले की राजधानी है, वे झरिया भी गये जहाँ दूर-दूर तक कोयले का क्षेत्र था, जहाँ आग लगी हुई थी तथा जगह-जगह धुआं भी निकल रहा था. ड्राइवर सुदर्शन उन्हें कोलकाता ले जायेगा. भोजन के बाद कैंपस में बगीचा देखा, जहाँ फूलों की बहार थी. विभिन्न प्रकार के फूल वहाँ की शोभा को बढ़ा रहे थे. माली काम में लगे थे, उनके इस सुंदर कार्य की प्रशंसा की, तस्वीरें उतारीं.

रात्रि के नौ बजे हैं, वे कोलकाता गेस्टहाउस लौट आये हैं, लकड़ी के फर्श और ऊंची-ऊंची दीवारों वाला यह सुंदर गेस्टहाउस उन्हें अपने घर जैसा ही लगता है. अभी-अभी भोजन किया, मेथी-आलू, भिंडी और मूंग की दाल के साथ छोटी फूली हुई रोटी, यहाँ का भोजन भी घर जैसा होता है. आज दिन में भी कुछ खरीदारी की. सब सामान पैक हो गया है और कल सुबह वापस घर जाना है.