Friday, June 29, 2012

यह दिल दीवाना है


अंततः वह दिन आ ही गया, जून की परीक्षा का दिन. कल इंटरव्यू है आज लिखित परीक्षा है. पिछले कई हफ्तों से वह तैयारी कर रहा था. उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी, विभाग में पदोन्नति होगी. सुबह का पहला पहर है, नन्हा उठकर फिर सो गया है, कल रात उसे नींद नहीं आ रही थी, नूना कब सो गयी उसे भान नहीं, जून ने ही फिर उसे  संभाला. ज्यादातर ऐसा ही होता है शाम को घर आने के बाद दोनों का साथ छूटता ही नहीं. उन्होंने जो तस्वीरें उतारी थीं, कुछ बहुत अच्छी आयी हैं, कुछ सामान्य, पहली बार खीचीं थी शायद इसीलिये, छत का पंखा कितना गंदा हो गया है, उसकी नजर ऊपर की ओर गयी तो आभास हुआ. पूरा घर ही एक बार सफाई मांगता है, सफेदी भी होनी चाहिए अब. कुर्सियों के कवर भी धोने चाहिए, पिछले दो महीनों से इस ओर नजर ही नहीं गयी. अब अगले महीने पूजा की छुट्टियाँ है, तभी यह काम होंगे उसने मन ही मन निश्चय किया. तब नन्हा भी तीन माह का हो जायेगा. पाकशाला में भोजन बनाते हुए वह ट्रांजिस्टर पर भारत-आस्ट्रेलिया क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल सुन रही थी कि  उसके कुनमुनाने की आवाज आयी, वह सब काम छोड़ कर कमरे में गयी.

मन में कितनी ही बातें आती हैं पर उसकी समझ में नहीं आता कैसे कहे और किससे ? पता ही नहीं चलता, दिन कैसे बीत जाता है, समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा है हर रोज वही दिनचर्या, सुबह, शाम, रात. आज सुबह जून की बस छूट ही जाती उसकी बातों में, पता नहीं क्यों वह बार-बार उसे उन दिनों की याद दिलाती है जब वे मुक्त होकर शाम को दूर तक घूमने जाया करते थे, कभी मन होने पर कोई फिल्म ही देख आते थे, या यूँही आराम से लेटे रहते थे घंटों...क्यों नहीं वह समझ लेती कि वह कल था और आज, आज है, इस परिवर्तन को स्वीकार करना ही होगा, और बदलाव ही तो जीवन में रंग भरता है. यूँ ऊपर से देखा जाये तो ये कोई आवश्यक कार्य नहीं, जिनके पूरे न होने से कोई शिकायत होनी चाहिए. पर मन तो मन है कुछ भी सोचता है. उसे परेशान किए बिना कहीं नहीं लगता है, बेचैनी का दूसरा नाम ही मन है. एक चिंता और है मन में अगले सप्ताह डॉक्टर के पास जाना है जिसके निवारण के लिये.

Wednesday, June 27, 2012

पल-पल रंग बदलता मौसम


ग्यारह बजने को हैं, भोजन भी बन गया है और स्नान भी हो गया, कभी-कभी एक ही काम हो पाता है, दूसरा जून के आने के बाद और कभी एक भी नहीं, जब नन्हा पूरी सुबह जगता है. वैसे  पिछले दो-तीन दिनों से उसका उठने-सोने का समय कुछ-कुछ निश्चित होता जा रहा है. सो अब उतनी जल्दबजी नहीं होती. धीरे-धीरे वह बड़ा हो जायेगा. एक साल का फिर दो तीन वर्ष का, स्कूल जाने लगेगा फिर वह अकेली रह जायेगी, उन दोनों की प्रतीक्षा करते हुए. वह मुस्कुराई, अभी बहुत दिन हैं उस बात को, फ़िलहाल तो आज की बात करनी है. नन्हे की दायीं आँख से पानी आ रहा है, डॉक्टर को दिखाना होगा. उसे डिब्बे का दूध देना भी बंद कर दिया है, शायद अभी इसकी जरूरत ही नहीं थी. उसे घर की याद आयी, छोटी बहन के पत्र की प्रतीक्षा थी, पहली बार घर से बाहर गयी है अभ्यस्त होने में थोड़ा वक्त लगेगा. उसने अगस्त माह की सर्वोत्तम उठा ली, लगभग हर अंक में वैवाहिक जीवन पर एक न एक लेख होता है, जो बहुत व्यवहारिक होता है, सीधी-सादी भाषा में. जून आज बाइक से दफ्तर गया है थोड़ा जल्दी आ सकता है.

एक सप्ताह बीत गया, सब कुछ सामान्य चलता रहा. कल नन्हें के फोटो भी बन कर आ गए, कितना छोटा सा लगता है वह उनमें. जून अपनी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा है. उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी. आजकल यहाँ छात्र संगठन के कारण तनाव है. वह तो दिन भर घर में ही रहती है. जून कहता है कि शाम पांच-छह बजे के बाद बाजार या क्लब जाना सुरक्षित नहीं है. मौसम आजकल रोज ही कितने रूप बदलता है, सर्दी, गर्मी, वर्षा तीनों एक ही दिन में.  


Thursday, June 21, 2012

अरबी की सब्जी


आज शिक्षक दिवस है. कभी वह भी पढ़ाती थी. पहले स्कूल में, फिर घर पर, और तब कॉलेज में. बचपन से ही वह शिक्षिका होना चाहती थी. वे बचपन में स्कूल-स्कूल खेला करते थे. सब भाई-बहन, जिसमें फुफेरे भाई–बहन भी शामिल होते थे और कुछ आस-पड़ोस के बच्चे. और आज वह इतनी बड़ी हो गयी है कि माँ बन गयी है, उसने सोते हुए शिशु की ओर देखा. तभी तो वह लिख पा रही है. सुबह भी वह सोया था जब जून ऑफिस गया. उसने स्नान किया, खाना बना कर रख दिया. तब जाकर वह उठा. उसके सारे काम करते, नहलाते-खिलाते दो घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला, और तब पुनः उसे नींद आने लगी, मालिश-स्नान व आहार पाकर वह अब सुख की नींद सोया है. अब वह स्नान के समय पहले की तरह रोता नहीं है उन्हें हँसते देखकर, कितना प्यारा हँसता है. कल दिन भर बहुत कम सोया, शाम से रात तक बहुत परेशान रहा, जून उसे रोता हुआ नहीं देख पता, घंटा-घंटा भर तक गोद में लेकर झुलाता है जब तक कि वह सो न जाये.

जून को दुबारा बाजार जाना पड़ा, सेब लाया था वह, पूरे चौदह रूपये किलो, पर खराब निकल गए, दुकानदार वापस लौटा तो लेगा. सुबह फिर वह देर से उठा, रात को नींद पूरी नहीं हो पाती, दिन भर भी वह आराम नहीं कर पाता. आज उसके एक सहकर्मी की माँ की मृत्यु हो गयी, वह आंध्रप्रदेश के रहने वाले हैं, उन्हें घर के लिये विदा करने वह उनके घर गया था.

आज नन्हा पूरे दो महीने का हो गया. अभी लिखने के लिए उसने कलम उठाया ही था कि वह जग गया पर जब तक चुपचाप लेटा है, तब तक वह दो चार लाइनें लिख ही पायेगी, उसने सोचा. बाहर मूसलाधार वर्षा हो रही है. अभी शाम है पर रात का आभास हो रहा है.
रात को उन दोनों ने मिलकर इस मौसम में पहली बार अरबी की सब्जी बनायी, नूना के हाथों में अरबी छीलने पर काटती है, इसलिए जून स्वयं ही काट कर देता है, बहुत ख्याल है उसे हर बात का.


नीरज की कविता



आज राजीव गाँधी का जन्मदिन है और हरचंद लोंगोवाल की पुण्य तिथि, दोनों पर समाचारों में सुना. कल रात इतनी जोर से बिजली कड़की लगा कि कमरे की छत टूट कर गिरने ही वाली है. शायद कहीं बादल फटा हो. माँ का पत्र आया है, बच्चे के बारे में कितनी सारी बातें पूछी हैं, सुबह से कितनी बार सोया और उठा है, अब कम से कम दो घंटे तो उसे सोना ही चाहिए. पढ़ा था कि बच्चे नींद में बढ़ते हैं.
कई दिनों तक कुछ नहीं लिखा, कभी व्यस्तता कभी मूड. आज कृष्ण जन्माष्टमी है. बचपन में वे कितने उत्साह से प्रतीक्षा करते थे. उस दिन झांकी सजाते थे, या शाम को झांकियां देखने जाया करते थे. सुबह वह गीता पाठ करती थी. कृष्ण के भजन तो कुछ दिन पूर्व से ही बजने आरम्भ हो जाते थे. और उस दिन तो कृष्ण भजन ही सुनाई देते थे सभी रेडियो स्टेशनों पर गानों की जगह. किन्तु अब तो सभी त्यौहार बस नाम के लिये हैं, रेडियो पर समाचारों से सुनकर पता चल जाता है आज यह त्योहार है, इतना ही बहुत है. उस दिन ‘नीरज’ की कविता सुनी, “युद्ध नहीं होगा”, बेहद सुंदर थी. और शोभा सिंह का इंटरव्यू भी कम नहीं था. दोनों घरों से पत्र आया है, छोटी बहन का मेडिकल में चुनाव हो गया है, बड़ी नन्द का विवाह तय हो गया है. दिसम्बर में होगा,, तिथि अभी तय नहीं हुई है. आज वे नन्हे को पहली बार प्रैम में घुमाने ले गए, शायद थक गया होगा सो शाम के वक्त भी सो रहा है. 

Wednesday, June 20, 2012

कामवाली का इंतजार


आज लग रहा है जो भी बदलाव था वह ऊपर ही ऊपर था, दरअसल लोग जब खुद उदास होते हैं तो आस-पास के वातावरण पर भी उसकी झलक पड़ने लगती है. वे वही देखते हैं जो उनका मन दिखाता है, आज उसका मन कितना हल्का है. वे पहले की तरह ही अनुभव कर रहे हैं. यही जीवन है. वह अक्सर सुबह न स्नान कर पाती थी न समय पर नाश्ता ही. जून की परीक्षा भी नजदीक आ रही है, वह रात को देर तक पढ़ता है पर ध्यान उसका उन दोनों की ओर ही रहता है. नन्हें के सब काम करना चाहता है.
शिशु की नींद गहरी थी, उसे मालिश करके बाँधकर सुलाने से आराम से सोता रहता है. सो दोपहर को उसने कई पत्र लिखे राखी भेजने के लिये सभी भाइयों को. घर से इस हफ्ते का पत्र अभी तक नहीं आया है, शायद सोमवार को आये, उसने सोचा. इसी महीने जून का जन्मदिन है और स्वतंत्रता दिवस भी, वे दोनों दिन बड़े जोश से मनाते हैं.
नन्हा बड़ा हो रहा है, खूब हँसता है, और रोता भी तो बहुत है. कल रात शायद कोई स्वप्न देखकर डर गया, पहले बहुत रोया फिर दुबक कर सो गया. उसके नए कपड़े सिलकर आ गए हैं, बहुत जंचता है वह उन वस्त्रों में. आज काम वाली अभी तक नहीं आयी है, कुनमुना कर, हिलडुल कर वह पुनः सो गया है, अभी उसे नहीं उठना चाहिए, महरी को अब आ ही जाना चाहिए, या वह आज नहीं आयेगी? उसने अलसाते हुए किचन की ओर देखा.



Tuesday, June 19, 2012

विवाह का एल्बम


अगस्त माह का पहला सोमवार ! सुबह पांच बजे ही कमरा कितना रोशन हो गया है, चमचमाती धूप से. आज तीज है, मेहँदी और झूला याद आ रहा है, इस समय बाप-बेटा दोनों सो रहे हैं, वह पिछले दिनों नियमित नहीं लिख पायी, जून से कहा पर उसकी अपनी विवशता है, वह हर काम में नूना की सहायता करना चाहता हैं, उसकी सुविधा, उसके आराम का उसे हर क्षण ध्यान रहता है और इन्हीं सब कामों में वह थक जाता है. रात को दोनों को ही नन्हें के कारण कई बार जागना पड़ता है, दिन में कभी-कभी मन व शरीर दोनों थकान से बोझिल लगते हैं, बस चुपचाप सो जाने का मन होता है. कितना बड़ा हो गया है वह, उसे पहचानने लगा है अच्छी तरह से. उसकी आवाज भी वह पहचानने लगा है. रो रहा हो तो कुछ कहते ही चुप हो जाता है. सुबह उसकी मालिश करके जब स्पंज करती है तो दूध पीते-पीते ही वह सो जाता है.
आज सुबह जून की नींद देर से खुली, कहने लगा आज देर हो गयी है आधी छुट्टी ले लेते हैं, रात्रि जागरण का असर उसकी आँखों में साफ दिखाई दे रहा था. उसने कोई जवाब नहीं दिया, जैसे उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं था, पर बाद में उसी के कहने पर वह जल्दी-जल्दी तैयार होकर ऑफिस गया. कल शाम को वह पहली बार क्लब गया था नन्हे के जन्म के बाद. लौटकर चुप-चुप ही रहा, उसे समझ नहीं आया, क्या यह नन्हें के कारण है, शायद यह स्वाभाविक ही है, सब कुछ बदल रहा है. कल उन्होंने अपने विवाह का एल्बम देखा, लगा ही नहीं कि यह उनका अतीत है, लगा जैसे किसी और का एल्बम देख रहे हैं. कितने सजे संवरे लग रहे थे उसमें और अब दिन भर कितना असत-व्यस्त सा रहता है सब कुछ. 

Sunday, June 17, 2012

हँसता शिशु


सुबह के साढ़े सात बजे हैं, नन्हे को अभी कुछ देर पूर्व ही सुलाया था पर दादी ने उसे उठा दिया है. बस अब दो ही दिन तो रह गए हैं उन्हें वापस जाने में, चाहते हैं कि वह अधिक से अधिक जगता रहे.  रात से ही वर्षा हो रही है. कल रात सोने से पूर्व उसने जून से कहा था कि रात को वह न जगा करे, शिशु के उठने पर वह खुद ही सम्भाल लेगी, उसकी नींद पूरी नहीं हो पाती, वह तो दिन में किसी भी समय सो जाती है. कल बड़ी बुआ का एक अच्छा सा पत्र मिला. यह पेन जिससे वह लिख रही है जून ने उसे उपहार में दिया था उनके विवाह के अवसर पर, कुछ दिन खराब रहकर यह पुनः लिखने लगा है अपने आप.
कल सुबह से ही उसकी मनःस्थिति ठीक नहीं थी जिसका असर शायद अब तक है, अक्तूबर से ही उन्होंने पैसे इकठ्ठे करने आरम्भ किये थे, वह चाहती थी कि उसके खुद के नाम से एक पासबुक हो, माना कि वह अभी तक सब आवश्यक वस्तुएं ले आया है पर उसे स्वयं के आत्मनिर्भर न होने का दंश तो चुभ ही रहा है. पिछले कई महीनों से वह जून को नए कपड़े लेने के लिये कह रही है पर वह उसे टाल जाता है. उसे आश्चर्य भी होता है कि धन के बारे में उसके विचार ऐसे थे उसे खुद भी पता नहीं था.
सब लोग चले गए हैं, घर पर वे तीनों रह गए हैं. नन्हें को ठंड लग गयी लगती है, उसके गले से खर-खर आवाज आ रही थी, और उसके पेट से भी आवाज आ रही थी, छोटा सा तो है वह और इतनी सारी मुसीबतें. हँसता है तो बहुत प्यारा लगता है. अगस्त के दूसरे हफ्ते में जून के इम्तहान  हैं, ऑफिस से आकर उसका ज्यादातर समय बच्चे के साथ ही बीतता है. आज से उसे पढ़ाई में ज्यादा समय देना है, वह तो सम्भाल ही सकती है उनके बेटे को.

  

Friday, June 15, 2012

जन्मदिन का गीत


सुबह के सात बजे हैं. लगभग दो हफ्ते बाद वह डायरी लिख रही है. सुबह नन्हे का एक काम याद आ गया था. जून उसके लिये कमीजों का कपड़ा लाया था जब वह अस्पताल में थी. उसने आज कटिंग कर दी है बड़ी ननद सिलाई कर देगी. अभी कुछ देर पूर्व ही उसे दूध पिलाकर सुलाया था पर लगता है उठ गया है, कपड़े बदल दिये हैं, कुनमुना कर फिर सो गया. आज पहली बार वर्षा हो रही है, जब से वह दुबारा अस्पताल से आयी है. घर आने के बाद उसे बेबी जौंडिस हो गया था पुनः चार दिनों के लिये अस्पताल में रहना पड़ा. कल उन्होंने पहली बार उसकी फोटो उतारीं.
सुबह पांच बजे ही वह उठ गया था, उसके पापा भी साथ ही उठ जाते हैं, दोनों दोबारा सो गए और कितना उठाने पर भी नहीं उठ रहे थे, फिर जल्दी-जल्दी बिना नहाये-धोए चले गए हैं. मौसम सुहाना है, बादल हैं छितराए हुए, वर्षा समेटे बादल. छोटी बहन का जन्म दिन है उसे बधाई कार्ड भेजना है,कुछ पंक्तिया उसके मन में आ रही हैं-
बचपन की बीती सुधियाँ
याद दिलाने, कुछ बतलाने  
पुनः आया जन्मदिवस तुम्हारा
समेटे हुए कुछ नूतन स्वप्न
और छुपाये कई सौगातें !
तुम थीं कल नन्हीं सी गुड़िया
आज खड़ी हो जीवन पथ पर
विश्वास दिलाने, नई राह दिखाने
फिर आया शुभदिन
स्नेह सहित लो दुआ हमारी.....

  

रात्रि जागरण


कल एक नहीं दो मधुर स्वप्न देखे, रात को जून ने उससे कहा था कि मधुर स्वप्न देखना और मुझे बताना, यह जीवन भी स्वप्नों की एक लंबी श्रंखला ही तो है. जो है भी और नहीं भी...कल दोनों घरों से पत्र आये, पापा ने जून के उस पत्र का जवाब लिखा है, वह बहुत खुश है. सारे देश में मानसून आ गया है, रिमझिम बरसता सावन सभी को मुग्ध कर रहा है. वहाँ कमल कुंड पर भी बादल बरसते होंगे, जहाँ हम बचपन में जाते थे, जहाँ कमल की पंखुडियों पर पानी की बूंदें चमकती थीं.
जून ने एक क्यारी में आज भी काम किया, उसके हाथ में छोटा सा फफोला पड़ गया है, उन्हें दूसरा माली रख लेना चाहिए उस माली का इंतजार करना अब ठीक नहीं. जून उसे समझाता है, पर एक अनजाना सा भय ...नहीं, उसे कुछ भी नहीं सोचना चाहिए, सब ठीक होगा, ईश्वर पर विश्वास रखना होगा.
पिछले चार दिनों में दिनचर्या इतनी बदल गयी है, सभी कुछ तो बदल गया है, उनके जीने का ढंग भी किसी हद तक, ऐसा होना स्वाभाविक ही है, चार दिन पहले रात लगभग दस बजे ही उसे संकेत मिला कि अब वह पल आने वाला है, जिसकी प्रतीक्षा वे कबसे कर रहे थे. वे चित्रहार देख रहे थे, क्रिकेट मैच के कारण चित्रहार उस दिन साढ़े नौ बजे दिखाया जा रहा था. फिर जून और माँ के साथ पड़ोसी की कार में वे अस्पताल गए. दर्द धीरे-धीरे बढ़ रहा था और वह सोच रही थी कि आगे क्या होगा. वे दोनों उसे अस्पताल में दाखिल करके घर आ गए पर सुबह पांच बजे से पूर्व ही वे पुनः आ गए थे. फिर सिलसिला शुरू हुआ, नर्सेस व डॉक्टर के आने का, चेकअप का, सेलाइन चढ़ाने का, दर्द बढ़ता जा रहा था. जून उसकी आवाज सुनकर आ जाता था, वह भी उसकी ही तरह परेशान था उसकी हालत देखकर. माँ बार-बार सांत्वना दे रही थीं. आखिर वे उसे लेबर रूम में ले गए, दर्द के एक लम्बे अंतराल के बाद ( लेकिन बाद में उसे लगा कि समय उतना नहीं हुआ था जितना उसे महसूस हो रहा था) उनके पुत्र का जन्म हुआ, सभी बहुत खुश हैं, सभी उसका व शिशु का बहुत ध्यान रख रहे हैं. पहली बार देखने पर वह उसे बहुत प्यारा लगा था अब और भी सुंदर लगता है अपना सा, जून कभी-कभी परेशान हो जाता है पर वह जानती है कि अंदर से वह बहुत खुश है. तीसरे दिन वे घर आ गए थे. कितने लोग आ रहे हैं बधाई देने. नन्हे ने उन्हें सोने नहीं दिया रात भर, पर दिन में वह आराम से सोया रहा.   

  

Wednesday, June 13, 2012

ऑरेंज कैंडी


कल संध्या जब जून ऑफिस से घर आया, उसके हाथ में एक पार्सल था जो माँ ने भेजा था. वह देखते ही समझ गयी थी कि उसमें वही बेबी एल्बम होगा जो वे लोग भी लाए थे. आज ही वह उन्हें पत्र लिखेगी, उसने सोचा. जून का दफ्तर स्थानांतरित हो रहा है अगले हफ्ते से उसे भी नयी इमारत में जाना होगा.
आज इतवार है, जून सुबह से लॉन में काम में लग गया था, जीनिया के पौधों व गुलाब की क्यारी में से घास निकाली. कल वह दो क्रोटन के पौधे व हैंगिंग पॉट में लगाने के लिये  भी पौधे लाया है, लगा भी दिए हैं और बहुत सुंदर लग रहे हैं. कल धर्मयुग में मन को छूने वाली एक कहानी पढ़ी, जून उस दिन जो किताबें लाया था उसमें भागवत् पुराण भी था.
आज के दिन के साथ कितनी मधुर स्मृतियाँ संयुक्त हैं, दो वर्ष पूर्व जून जब उनके घर आया था उसे अंगूठी पहनाई थी, और वे सोच रहे थे कि आज ही उस नवांगतुक का जन्मदिन भी होगा. पर अभी तक तो कुछ भी अनुभव नहीं हो रहा है. कल से वह सभी सामान्य कार्य आराम से कर पा रही है. डॉक्टर ने तीन दिन बाद बुलाया है.  
कल बाबू जगजीवन राम जी का स्वर्गवास हो गया. पिछले कई दिनों से यह आशंका थी कई अब वे बचेंगे या नहीं, रेडियो पर तो एक बार गलती से उनकी मृत्यु का समाचार भी दे दिए था. कल चार बजे से टीवी पर कोई मनोरंजक कार्यक्रम नहीं दिखाया गया. ऑफिस भी बंद हो गया है. दोपहर को बिजली चली गयी, गर्मी बहुत थी, बाहर आइसक्रीम वाले ने आवाज दी तो वह ले आया, ऑरेंज कैंडी, पर कड़वी थी. शायद ज्यादा मीठे के कारण कड़वी हो गयी थी.

Monday, June 11, 2012

जीवन इक स्वप्न



जुलाई का पहला दिन...इस महीने की कितनी प्रतीक्षा किया करते थे वे लोग बचपन में. नयी कक्षा, नयी किताबें और कभी नया स्कूल भी. छोटी बहन का जन्मदिन भी तो जुलाई में पड़ता है और अब उस नवांगतुक का भी इसी माह में आने वाला है, डॉक्टर के अनुसार पांच दिन रह गए हैं, क्या जाने कोई लेकिन कब ? कल से बेहद गर्मी है, ऊपर से बिजली चली गयी, दोपहर ढाई बजे आयी, पर शाम को मौसम अच्छा था, वर्षा हुई और उसके बाद का धुला-धुला आकाश और धुला हुआ वातावरण.
आज उसकी बेचैनी बढ़ गयी है, पता नहीं और कितना इंतजार करना पड़ेगा, अभी तो कुछ भी परिवर्तन महसूस नहीं होता. उसने जून से कहा तो वह उसे समझाने लगा, स्नेह लुटाने लगा, उसे खुश करके ही माना. कितना सम्बल देता है उसका साथ. सच ही तो कहता है वह, कभी भी  निराशावादी नहीं होना चाहिए, जो भी सामने आये उसे खुशी-खुशी ग्रहण करना ही होगा. आशंका, चिंता को जन्म देती है. उसने निश्चय किया कि अब वह भी खुले-खुले मन से उस घड़ी का इंतजार करेगी न कि यह सोचते हुए कि जाने क्या होगा. शाम को जून ने लॉन में फिर कुछ देर काम किया, रोज आधा घंटा करने से कुछ ही दिनों में सफाई हो जायेगी. आज सुबह उठी तो एक स्वप्न देख रही थी, उसे अंग्रेजी की परीक्षा देने जाना है पर पेन नहीं मिल रहा है, बॉल पेन तो है पर काला पेन जो उसके छोटे भाई ने दिया था वही खोज रही है, शेष सभी परिवार जनों को भी देखा.
एक और नए दिन का शुभारम्भ ! अत्यंत सुंदर सुबह है आज की, शीतल, स्वच्छ, मधुर. जून को छाता लेकर जाना पड़ा, उस समय वर्षा हो रही थी, शायद रात भर बादल बरसते रहे. कल बहुत दिनों बाद चाची जी का खत आया, भाभी का भी दो दिन पहले आया था. जून घर समय पर आ गया था, वह चाहता तो है, पर आजकल बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर पाता, यदि वह पक्का निश्चय करले तो कम से कम एक घंटा तो पढ़ ही सकता है, उसने सोचा, आज से वह बैठेगी उसके साथ पूरा एक घंटा.
  

Thursday, June 7, 2012

अमलतास रोड



कल रात को फिर वही हुआ, पर सुबह उठकर वह बहुत हल्का महसूस करती है, नींद न आने के कारण कोई थकान या सुस्ती नहीं होती. उसे लगता है कि रात हो ही न, दिन ही दिन रहे उसके लिये..शायद किसी ने तभी कहा होगा तमसो मा ज्योतिर गमयो...पर सारी दुनिया के लिये तो रात जरूरी है जून के लिये भी. वह भी कुछ ही घंटे सो पाता है, शाम को कुछ देर सो गया, पर स्नान का समय निकल जाने के कारण व उनके साथ घूमने भी न जा सकने के कारण ‘डल’ सा हो गया था. चार-पांच किताबें लाया है वह डिपार्टमेंट से, उसे बहुत पढ़ना है पर वह जरा भी नहीं पढ़ पाया. घर में माँ आलू चिप्स बना रही हैं, नूना ने एक बार कहा कि दोनों ननदें उत्साह से भर गयीं. सभी उसका बहुत ख्याल रखते हैं.

कल जून वह सब सामान ले आया है, जिसकी उन्हें आने वाले दिनों में जरूरत होगी, अभी भी पूरा सामान तो नहीं आ पाया है. कल शाम बाकी सब फिल्म देखने क्लब गए थे, वे दोनों उसी अमलतास रोड पर घूमने गए. जून ने बताया कि आज उसे असम आये पूरे तीन वर्ष हो गए. माली के न आने से उनके छोटे से लॉन व किचन गार्डन का बुरा हाल हो गया था. इतवार होने के कारण आज जून खुद ही सफाई में लगा है, एक दिन पहले नई खुरपी भी खरीद लाया. पसीने से लथपथ हो गया है वह. नई मिक्सी आयी है, पहली बार दोसे व नारियल की चटनी बनी घर में, दोपहर को वे टीवी देख रहे थे कि एक परिचित का फोन आया वे लोग तेलगु फिल्म ‘शंकरार्पण’ देखना चाहते थे, फिर सबने मिल कर देखी वह फिल्म. शाम को ‘अनंत यात्रा’ भी देखी अच्छी फिल्म थी.
  

Wednesday, June 6, 2012

मैं हूँ न


इक्कीस जून को चंडीगढ़ पंजाब को दिया जाना था, कितने दिनों से यह खबर सुन रहे थे पर आज सुबह बी.बी.सी पर सुना कि पन्द्रह जुलाई तक यह मामला टल गया है. वह डिब्रूगढ़ से समाचार नहीं सुन पाती, सिर्फ रात को टीवी पर ही सुनते हैं वे. पता नहीं क्या कारण है, डिब्रूगढ़ रेडियो स्टेशन की प्रसारण क्षमता इतनी कम कर दी गयी है. सुबह के सवा आठ बजे हैं, उसने कपड़े प्रेस किये उसके पहले किचन में थोड़ी सफाई. जहाँ वह बैठी है उस कमरे का पंखा बहुत आवाज करता है. मौसम बादल भरा है, फुहारों भरा भी. वह सुबह बाहर निकल गयी कुछ देर के लिये भीगने. रात को फिर दो तीन बार नींद खुली, जून ने कहा अब थोड़े ही दिन तो रह गए हैं, फिर सारे दुःख, (दुःख तो कोई है ही नहीं ) सारी परेशानी खत्म हो जायेगी. डॉक्टर के अनुसार अब दो हफ्ते रह गए हैं.

कल इतवार था, सुबह जल्दी उठकर फोटो खींचने का कार्यक्रम था पर इतवार मनाने के लिये देर से उठे, अश्विनी के फोटो उन्होंने कल शाम उतारे थे, शाम को वे घूमने गए उसी रोड पर. तब उसने नूना की भी तस्वीरें उतारीं और एक तस्वीर उसने भी पहली बार ली जून की. कल सब कुछ देर से हुआ नाश्ता लंच के समय, लंच शाम की चाय के समय, डिनर रात को दस बजे. रात को एक स्वप्न देखा जिसमें वह कह रही थी कि ‘इसमें’ तो जरा भी पेन नहीं होता यूँ ही लोग कहते हैं... अब जल्दी ही एक दिन पता चल जायेगा कि क्या और कैसे होता है. सुबह जल्दी उठे वे, जून को बाइक साफ करनी थी, कल रात उसने बताया कि उसने पापा को एक पत्र लिखा है, वह उन्हें आश्वस्त करना चाहता है कि उसके रहते उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.
   

Tuesday, June 5, 2012

स्वामी रामतीर्थ




आज मौसम कुछ कह रहा है, खिड़की के पर्दे हटा दिए हैं, ठंडी हवा भीतर तक आ रही है, तन व मन दोनों को सहलाती हुई सी. रात को भी ठंडक थी वातावरण में, उसे नींद नहीं आ रही थी, पर इससे कोई असुविधा हो ऐसा भी नहीं था, अँधेरे में कभी आँखें बंद किये कभी आँखें खोले वह सोचती रही, आने वाले दिनों के बारे में और नवांगतुक के बारे में, कैसी होगी वह या कैसा होगा वह, कैसे रखेंगे वे उसे, कैसे उसका स्वागत करेंगे, जून गहरी नींद सो रहा था, कल वह बेहद थक गया था. डिब्रूगढ़ गया था सुबह और शाम को लौटा सात बजे के लगभग, फिर जिस कार्य के लिये गया था वह पूरा नहीं हो पाया. पर आज सुबह खुश था हमेशा की तरह.

शाम को उसने ऑफिस से आकर पूछा, क्या वह उसे दो घंटे के लिये कहीं जाने की अनुमति दे सकती है, वह अपने एक मित्र के साथ अंग्रेजी फिल्म देखने जाना चाहता था, इसमें उसके मना करने का सवाल ही कहाँ था, फिर वह टिकट भी तो ले कर रखने के लिये कह कर आया था, डिब्रूगढ़ में भी उन्होंने एक फिल्म देखी थी, घर आकर उसने बताया कि फिल्म वैसी नहीं थी जैसी वे सोच रहे थे. उसके वापस आने के बाद वे शाम की चाय पीने बैठे ही थे कि कोई पुरानी परिचिता आ गयीं, जो पूरे ढाई घंटे बैठी रहीं. रात को उसकी नींद फिर भाग गयी, एक चुभता हुआ अहसास, बेचैनी और कंपा देने वाले स्वप्न. मौसम फिर गर्म हो गया है उन दिनों की तरह जब वे वर्षा का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे. कल घर से पत्र आया था, माँ ने सभी के बारे में कुछ न कुछ लिखा है, पिता ने स्वामी रामतीर्थ के विचार लिखे हैं. उन्हें भी इंतजार होगा उस खत का जिसमें वह खबर होगी जो उनके आने वाले जीवन को बदल देगी, सचमुच बहुत बदल जायेगा जीने का ढंग और किसी हद तक सोचने का ढंग भी, अभी तक वे दोनों अपना सारा ध्यान, सारा स्नेह एक-दूसरे पर ही लुटाते आये हैं, फिर वह होगा उनकी भावनाओं का केन्द्र.   
   

Monday, June 4, 2012

आटे का हलवा


लगता है वह अब दिन जल्दी ही आने वाला है, कितना उत्सुक है नव जीवन भी बाहर आने के लिये, एक छोटे बच्चे को स्वप्न में देखा पर बाद में वह दीदी की गोद में था. रात को नींद खुल गयी फिर करवट बदलते बीता कुछ समय, उसके बाद भी स्वप्न देखती रही, माँ-पिता को देखा छोटे भाई व बड़ी बहन को भी, छोटा भांजा कितना बड़ा हो गया होगा, बड़ा स्कूल जाने लगा होगा. सुबह वे जल्दी उठ गए थे, रात को जून ने कहा था सुबह जल्दी उठकर आधा घंटा बातें करेंगे, कल दिन भर वे आधा घंटा भी साथ नहीं बैठे होंगे. वह कैमरा लाया था ऑफिस से आते समय जो उसने नागपुर से किसी से मंगवाया था, सोच ही रहा था कि कैमरे के बारे में जानकारी लेने किसी के पास जाये तभी कोई अतिथि आ गए फिर वह उन्हें छोड़ने गया. शाम को वे पुनः पड़ोस के नव शिशु से मिलने गए, अश्विनी नाम रखा है उन्होंने उसका. उसे वही वस्त्र उपहार में दिये जो माँ बनारस से लायी थीं. शाम को एक बंगाली मित्र आयी, तब वे टीवी पर एक नाटक देख रहे थे, जो नूना का पढ़ा हुआ था.
आज दिन की शुरुआत बेसुरे ढंग से हुई है. बाएं पैर में हल्का दर्द है. जून शायद आज डिब्रूगढ जाये सुबह उसके लिये आटे का हलवा बनाया जो बिल्कुल अच्छा नहीं बना, पता नहीं उसे आटे का हलवा इतना पसंद क्यों है. बचपन में घर पर साल में एक बार बनने पर भी वह नहीं खाती थी. रात को अजीब सा स्वप्न देखा, स्वप्न में जून से झगड़ा होता है उसका, इतना सब होने पर यदि मन उदास हो जाये तो स्वाभाविक ही है पर जाते समय वह कह कर गया है कि खुश रहना. और अभी गीता का पांचवा अध्याय पढ़ने के बाद संभव है कुछ सांत्वना मिले.