Thursday, July 21, 2011

असम की बारिश


उन दिनों कितनी चहल-पहल रहती थी घर में हर वक्त, पहली बार ससुराल के सभी लोग यहाँ आए थे. उसने घर सजाया, बाहर माली भी काम करता रहा. किचन में नई-नई डिशेज बनती रहीं, एक महीने सब लोग यहाँ रहे. वे उन्हें छोड़ने तिनसुकिया गए. 'मसरूर आलम' की कहानी पर बनी एक फिल्म देखी, मौसम बहुत गर्म था,  लौटे तो वर्षा शुरू हो गयी और जैसे राहत मिल गयी हो तपते हुए सूरज को भी धरती को भी उनको भी. वे देर तक पानी में भीगते रहे, पहली बार असम की बारिश में उसके साथ. रात को उसने मटर पुलाव बनाया पर नमक डालना भूल गया. आज नूना ने पहली बार दलिया बनाया उसे अच्छा लगा. कल की शाम बेहद गर्म थी, वे पहले मार्केट गए फिर लाइब्रेरी, और इस बीच में दो-दो गिलास मैंगो शेक पीया सो रात को खाना नहीं बनाया और फर्श पर ही सो गए. रात को वर्षा शुरू हो गयी जो दूसरे दिन भी देर तक होती रही. उनके विवाह को पूरे छह महीने हो गए. कितने महीनों से नूना ने कुछ भी नहीं लिखा है पर लिखना तभी संभव है जब पढ़ा जाये, पढ़ना भी तो छूट गया है. 

Friday, July 15, 2011

मोटरसाइकिल


आज सुबह से ही वह घर पर नहीं है, जोरहाट गया है मोटरसाइकिल लाने, सुबह कितनी वर्षा हो रही थी उसने कहा था कि हो सकता है उसे लौटने में देर हो जाये. पर अब तो मौसम कितना साफ है, स्वच्छ, सुंदर, निर्मल आकाश बिल्कुल उसके प्यार की तरह. नूना को सुबह से प्रतिपल उसका स्मरण हो रहा है. उसे लगता है जैसे अभी उसके प्रेम में उतनी पूर्णता नहीं है, जबकि वह उसके क्रोध को हँसी में उड़ाता रहा है.
परसों रात उनकी मोटरसाइकिल आ गयी, वह बहुत प्रसन्न है. कुछ देर पहले उसने नूना को बाइक पर घुमाया. आज वह मोरान गया है कल सुबह वापस आयेगा.  उसका मन उदास है, उसे मालूम है वह दुःखी होगा यह जानकर सो अब वह खुश रहेगी. उसने पुराने पत्र पढ़े और ठीक से फाइल में लगाये.
वे पहली बार बाइक से डिब्रूगढ़ गए. यहाँ से पचास किलोमीटर दूर, वह कितना थक गया होगा. वह बहुत अच्छी बाइक चलाता है. उन्होंने दोस्तोवस्की की white nights पढ़नी शुरू की है. उसका गला खराब है, आवाज बदल गयी है पर अपनी तबियत खराब होने पर भी वह नूना का ध्यान रखना नहीं भूलता. नूना ने एक पेंटिंग बनानी शुरू की है, किताबें पढ़ने के अलावा पहला कुछ ठोस काम. एक और किताब पढ़ी, captain’s doll . खबरों में सुना कि दिल्ली व अन्य पड़ोसी राज्यों में सिख आतंकवादियों ने बम विस्फोट किये. बीसवीं सदी में मनुष्य कितना विवश और असहाय हो गया है, क्रूरता, पाशविकता और भयानकता के आगे.

   

Friday, July 1, 2011

सूना घर


आज वह सुबह ही जोरहाट चला गया, कितना खाली-खाली लग रहा है घर उसके बिना, जाते वक्त कितनी-कितनी हिदायतें देकर गया, सुन-सुन कर नूना को कैसा-कैसा लग रहा था कि उसके बिना वह अच्छा सा खाना बना कर खाये, आज इतने दिनों में पहली बार अकेले खाना खाया. आज बिजली भी नहीं है, वह पड़ोसन के यहाँ गयी थी कुछ देर के लिये, वह भी अकेली थी, समय का पता ही नहीं चला, अभी कुछ देर में वह आने वाला है. उसने कहा है, नूना दो तकियों के गिलाफ पर उसका और अपना  नाम काढ़ दे, कुछ सिलाई का काम भी शेष है.

Thursday, June 30, 2011

तीन महीने


ल उनकी शादी को तीन महीने हो गए, इस खुशी में एक फिल्म देखी ‘प्रेम रोग’. Guide पूरी पढ़ ली वही जिस पर देवानंद की फिल्म भी बनी थी, पर उपन्यास व फिल्म में बहुत अंतर है, और अब यहाँ लॉन में है, हवा का शीतल स्पर्श भला लगता है. कितने दिनों बाद इस तरह प्रकृति के सान्निध्य में बैठकर कलम हाथ में ली है. आज वह देर से आने वाला है. कल कुछ नहीं लिख सकी, इस ओर ध्यान ही नहीं गया. कल रात खाना उसने बनाया, नूना ने थोड़ी सी सहायता की. वह सब कुछ बहुत अच्छी तरह कर लेता है, और उसके न होने पर घर कितना सूना-सूना लगता है. कल घर में रंग-रोगन होगा, घर कितना साफ-सुथरा लगेगा तब, काश यह बगीचा भी ठीक हो जाये !    

Wednesday, June 29, 2011

मसहरी, मच्छर और नींद


रात मीठी नींद आयी थी कि मसहरी में चोरी से चले आये जनाब मच्छर ने जगा दिया. सो सुबह नींद कुछ देर से खुली. इस समय रेडियो सीलोन से ‘एक रंग एक रूप’ कार्यक्रम आ रहा है. आज मौसम सुहावना है जैसे वसंत का मौसम हो. सुबह वह जाते समय कह गया था पूरा एक गिलास दूध पीना, पता नहीं वह नूना को क्यों इतना प्यार करता है, उसका इतना ख्याल रखता है. उसके स्नान के लिये गर्म पानी रखकर गया, सचमुच लगता है वे एक हो गए हैं. कह गया है आराम करना कोई काम न करना, जैसे वह सब जानता हो कि उसे आज आराम की जरूरत है, कल घर से पत्र आया था बहुत दिनों के बाद माँ के हाथ का लिखा पत्र.  



   

Monday, June 27, 2011

गीता ज्ञान


समय है शाम का, वे दोनों डाइनिंग कम रायिटिंग टेबिल वाले कमरे में हैं, आज का दिन अच्छा सा था, उजला-उजला. सुबह नींद खुली छह बजे, जल्दी-जल्दी में बस हॉर्लिक्स बनाया. दोपहर बाद टीटी खेलने गए फिर लाइब्रेरी, शाम का नाश्ता और अब यहाँ हैं, पत्र लिखने हैं. आजकल नूना लोकदास बर्मन की सरल गीता पढ़ रही है पर पढ़ते वक्त जितना समझ में आता है, बाद में याद नहीं रहता, आचरण में नहीं ला पाती. जैसे क्रोधित न होने की सीख है, छोटी-छोटी बातों पर रुष्ट होना और दुखी होना नहीं छूटता. वह सोचती है कि ईश्वर उसके साथ है और वही उसे मार्ग दिखायेगा.   

Saturday, June 25, 2011

दादा जी


ल फिर पता नहीं क्या हुआ मुट्ठी में से रेत की तरह समय फिसल गया और नूना कुछ भी नहीं लिख सकी...वास्तव में यह लिखना अर्थयुक्त है या नहीं? किन्तु वह बिना इसकी परवाह किये अपने विवाहित जीवन के आरंभिक वर्ष की सुखद या कभी दुखद भी, घटनायें लिखती जायेगी, फिर साल दर साल बीतते जायेंगे... उन्हें यहाँ आये पूरे दो महीने दो दिन हो गए हैं. कल लाइब्रेरी में साप्ताहिक हिंदुस्तान व धर्मयुग के होली विशेषांक के कुछ भाग पढ़े, Captain Pascoe की एक मार्मिक कहानी Rose and Rainbow भी पढ़ी. कल सुबह वह बोला, नींद आ रही है, सो जाओ तुम भी, हाफ सीएल ले लेंगे, पहले भी कितनी बार वह ऐसा कहता है पर कल वह सचमुच बहुत थका लग रहा था सो पहली बार  वे पुनः सो गए और आठ बजे उठे, पर दिन भर भारीपन बना रहा. अब कभी वह उसे ऐसा नहीं करने देगी. उसने सोचा अब तक घर में सभी दादाजी की मृत्यु की घटना के दुःख से उबर चुके होंगे.  

Friday, June 24, 2011

भरवां टमाटर


ज यह गीत याद आ रहा है, यह जिंदगी चमन है, सुख-दुःख फूल और काँटे, क्यों न हम तुम मिलकर इनको बांटें...आज दोपहर को नूना ने उसे खुशी-खुशी विदा नहीं किया था, बाद में वह सोचती रही कि क्या वह भी अब तक इस बारे में सोचता होगा या काम में व्यस्त होकर भूल गया होगा, अब वह आने ही वाला है, कल उसने एक अच्छी बात कही थी कि जहाँ अपनत्व होता है कोई अपने मन की बात झट कह देता है, और मजा तब है जब दूसरा उसको अन्यथा न ले. पर उसे अपनी ही बात याद नहीं रही. आजकल वह टैटिंग सीख रही है. शाम को वे पहले टेबल टेनिस खेलते हैं फिर लाइब्रेरी जाते हैं. आज उसने वही नीली कमीज पहनी है, जो पहन कर घर आया था मंगनी के वक्त, कितने फोटो हैं उसके इन कपड़ों में. कल साप्ताहिक हिंदुस्तान से पढ़कर भरवां टमाटर बनाये थे उसे बहुत पसंद आये.

Thursday, June 23, 2011

पूर्वाभास


ज एक बार फिर तीन दिन बाद इस डायरी से बातें कर रही है. शुक्रवार की दोपहर एक अजीब स्वप्न देखा, वह दादाजी के घर पर है, सीढ़ियों से उतर रही है चाचाजी कुछ कह रहे हैं समझ नहीं पाती. फिर अचानक लगा कोई सफेद छाया छत से उतर कर उसके पास आयी और छूकर चली गयी. नींद खुल गयी और मन कितनी आशंकाओं से भर गया, और आज ही यह दुखद समाचार मिला कि  दादाजी नहीं रहे. कितना जरूरी होता है परिवार में एक बुजुर्ग का साया. शनिवार को गोल्फ फील्ड में एक चौकीदार ने उन्हें टोका तो उन्होंने निर्णय लिया कि अब से शाम को वहाँ टहलने नहीं जायेंगे. पर वे बहुत उदास थे इस घटना से. कल लगभग दो माह बाद वे तिनसुकिया गए, यात्रा अच्छी रही. आजकल नूना Elk Moll  की  Sideman and son  पढ़ रही है. वह इस समय लैब में होगा. उससे इतना प्यार करने के बावजूद नूना कभी कभी उसके प्रति विनम्र नहीं रह पाती पर वह इतना भरा हुआ है स्नेह से कि उसकी बात घुल जाती है और बाकी रहता है प्यार बस प्यार !

Wednesday, June 22, 2011

भुने चने


ज सुबह उसे बहुत नींद आ रही थी, पर ऑफिस जाना था सो नूना ने उठा दिया. कल रात्रिकालीन भोज अच्छा रहा. वे ग्यारह बजे घर लौटे. वह पहली बार ऐसी किसी पार्टी में शामिल हुई थी, कभी तो बहुत उलझन सी लगती थी, पर यहाँ के लोगों के जीवन का यह भी एक हिस्सा है. नए लोगों से परिचय भी हुआ एक बंगाली व एक असमिया महिला से बातचीत हुई. कल शाम को बहुत तेज वर्षा हुई, दोपहर को वह जल्दी घर आ गया था, वे बाहर खड़े थे, एक माली को आवाज दी नूना ने, उनके लॉन की घास बहुत बड़ी-बड़ी है, एक बार बराबर हो जाने पर लॉन कितना सुंदर लगेगा. कल उसे अचानक रेत में चने भूनने का ख्याल आ गया, कितने दिनों बाद भुने हुए चने खाए उन्होंने. आजकल ज्यादातर समाचार इराक-इरान युद्ध के बारे में होते हैं, पिछले साढ़े चार वर्षों से चली आ रही यह लड़ाई जाने कब खत्म होगी. सोने का मूल्य दो हजार से ऊपर जा रहा है.

Tuesday, June 21, 2011

गुलाब का पौधा


नूना स्नानघर में थी कि दरवाजे पर खटखटाहट हुई, कल भी ऐसा हुआ था. बहुत कोफ़्त होती है ऐसे में. अभी सवा सात ही हुए थे, दूधवाला आज जल्दी आ गया था. आज सुबह वह साथ-साथ ही उठ गये  थे. बाहर लॉन में गए, सुबह का समय उसे सदा से सर्वप्रिय लगता है, उस वक्त वह सबसे अच्छी मनःस्थिति में होती है. याद आती हैं वे सुबहें जब प्रातः भ्रमण के समय गुलाब की झाड़ियों के साथ साथ चलती थी दूर तक अकेले पर हमेशा उसके बारे में सोचते हुए..... फूफाजी का पत्र आया है दादाजी की तबियत ठीक नहीं है, बुआजी घर गयी हैं. अब दूसरा पत्र आने तक उन्हें उनके स्वास्थ्य के बारे में पता भी नहीं चलेगा. आज रात्रिभोज पर जाना है, उसकी पसंद की पीली साड़ी पहनने वाली है नूना, कल रात को सपने में खूब होली खेली, बचपन की सहेली संतोष को देखा. उसकी मकान मालकिन व उनकी बेटियों को भी. उन गमलों का पता नहीं क्या हाल होगा, छोटी बहन ने एक बार भी तो नहीं लिखा, वह गुलाब का पौधा अब बड़ा हो गया होगा. 

Monday, June 20, 2011

उसकी याद


पिछले तीन दिनों से डायरी नहीं लिखी, एक दिन यदि क्रम छूट जाता है तो साथ में एक-दो दिन और निकल जाते हैं. शनिवार की शाम कितनी तेज बारिश हो रही थी, वे छाता लेकर घूमने भी गए, कितनी सुखद व सुंदर शाम थी. रविवार को बहुत मजा किया. सुबह-सुबह ही वे दोनों ने लॉन की सफाई करने लगे, शाम को गोल्फ-फील्ड भी गए, खेलने नहीं घूमने, और फिर देखी अच्छी सी फिल्म 'जीवनधारा', कल क्लब में बच्चों की एक फिल्म भी है. अगले रविवार वे तिनसुकिया जायेंगे ऐसा उसने कहा है. वह तीन गुलाब की कलमें लाया था जिन्हें बड़े प्यार से गमलों में रोप दिया है, कल एक में फूल खिलेगा. कल उसके सिर में दर्द था, वह खाना खाने के बाद ठीक से बोल भी नहीं पा रहा था. वह इतना अच्छा है कि उसे कुछ भी नहीं होना चाहिए. उसको देख के लगता है, जैसे उसे बरसों से नूना के साथ रहने का, उसका ख्याल रखने का अभ्यास हो. घर से छोटी व बड़ी दोनों बहनों के पत्र आये है. अभी साढ़े नौ बजे हैं वह डिपार्टमेंट में होगा इस वक्त बहुत याद आ रहा है.  

Saturday, June 18, 2011

पहली होली


रात्रिभोज का आयोजन किया था उन्होंने, अच्छा रहा, कुछ नए लोगों से परिचय हुआ. कल वे गोल्फ फील्ड में एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठे रहे, अँधेरा था, बायीं ओर बड़े-बड़े वृक्ष अर्धवृत्त बना रहे थे, स्पष्ट दिखाई दे रहे थे, ठंडी हवा बह रही थी, महीनों बाद नूना इस तरह के वातावरण में फिर से थी, अपने शहर में कल्पना में उसके साथ होती थी, पर कल वह सचमुच साथ था.
वही कल का समय है, वह ऑफिस में है, कल दोपहर को जब वह घर आया तो कितनी देर  दरवाजा खटखटाता रहा, पर नूना की नींद नहीं खुली, याद नहीं पड़ता पहले कभी ऐसा हुआ हो, इतनी गहरी नींद आयी हो कभी. उसने एक बार रसगुल्ले का नाम लिया तो ढेर सारे ले आया. वे क्लब से वापस आ रहे थे तो उसने मजाक में एक बात कही जो नूना को नागवार गुजरी, सुलह तो रास्ते में ही हो गयी पर घर आकर उसने उसके लिये चाकलेट ड्रिंक बनाया नूना ने चिवरा-मूंगफली तला, भीतर तक भरे-भरे वे दूर-दूर तक घूमने गए.

आज नूना को यहाँ आये पूरा एक महीना हो गया है. कितनी ठंड है आज, धूप भली लग रही है. कल उसने एक साड़ी को फाल लगाई, आज देखा तो पता चला सीधी ओर लगा दी है, फिर से खोल कर लगाई. उन दोनों को एक नामालूम सा डर लग रहा है, कल शाम को शायद उसी कारण से उसे कुछ बेचनी सी भी हो रही थी. रविवार होने के बावजूद आज वह घर पर अकेली थी, उसे ओसीएस जाना पड़ा है, यानि आयल कलेक्टिंग स्टेशन नूना को भी तेल उद्योग के बारे में काफी जानकारी हो गयी है, एक्सप्लोरेशन, ड्रिलिंग, प्रोडक्शन तथा ट्रांसपोटेशन सभी के बारे में उसने बताया, उसे एक परीक्षा भी देनी है लेकिन विशेष पढ़ाई नहीं कर पाया है.

अभी कुछ देर पूर्व वह आया, नूना स्नानघर में थी. कपड़े भी धोने थे, इतवार को धोने लगी तो उसने कहा यह सब काम तुम किसी और दिन भी तो कर सकती हो,  वे हर पल साथ होना चाहते हैं. कल शाम वे स्टेशन पर घूमने गए, छोटा सा स्टेशन, वे चलते ही चले गए, आकाश में रुई के फाहों की तरह बादल थे, चाँद आधा था, और शाम के धुंधलके में वृक्ष मनमोहक लग रहे थे, सुपारी के लम्बे-लम्बे वृक्ष यहाँ बहुतायत से मिलते हैं जो एक अलग ही माहौल बना देते हैं.
मार्च महीने का प्रथम दिन.. वसंत का महीना यानि फाल्गुन का महीना... नहीं.. होली का महीना !
उसके साथ पहली होली... वह अभी कुछ देर पूर्व आया था, शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब वह एक बार बीच में न आता हो फील्ड जाते या आते समय. कल रात वे कितनी देर पुरानी कॉलेज की बातों में खोये रहे, उन दिनों की यादें कितनी मधुर हैं. उसने अपने कुर्ते का बटन का एक बटन टांकने को कई दिन पहले कहा था, नूना को याद ही नहीं रहा, पर उसने सोचा कि यह इतना आवश्यक कार्य है सो अभी करूंगी. उसके पास रुमाल होते हुए भी चेहरा हाथ से पोंछता है, उसे खुद समझना होगा यह अच्छी आदत नहीं है.. कभी यह बात वे दोनों तीसरे से कह रहे होंगे.

मार्च १९८५
दो-तीन वर्ष पूर्व जब नूना उत्तर प्रदेश में थी, वह उससे मिलने आया था और उसे करेले की सब्जी और मूँग की दाल खिलाई थी, आज उसी दिन को याद करते हुए वैसा ही खाना बनाया है. कल उसने पूछा  कि आज सुबह कोई विशेष कार्य तो नहीं है, क्योंकि उसे कुछ अपना काम करवाना है, जैसे उसके काम नूना के कार्यों से अलग हैं, पर इससे यह भी तो पता चलता है कि उसे मेरे कार्यों का कितना ख्याल है, उसने सोचा. कल वे टेबिल टेनिस नहीं खेल पाए क्योंकि क्लब में टीटी बाल नहीं थी. क्लब में ‘नदिया के पार’ वाली साधना सिंह की फिल्म थोड़ी देर देखी ‘ससुराल’, पर इसमें वह उतनी अच्छी नहीं लगी. घर से पत्र आये हैं हमें भी होली से पहले सभी को खत लिखने हैं.

कल का वह ना मालूम सा डर अभी तक दोनों के मन में है. आज सुबह बहुत जल्दी नींद खुल गयी और वे घूमने गए. कल शाम वे उसके बॉस के यहाँ गए थे जो कन्नड़ हैं, पहली बार गाजर का हलुआ बनाया जो उसके अनुसार अच्छा बना है, छोटे भाई का खत आया है उसकी नौकरी शुरू हो गयी है.  आज जीप में ओसीएस गए, उसका इम्तहान ज्यादा अच्छा नहीं हुआ, नूना ने सोचा कि अब मैं ध्यान रखूंगी, अध्ययन भी उतना ही जरूरी है जितना भोजन, यह भी तो मानसिक भोजन है.

कल वह नहीं लिख सकी. सुबह उठी तो स्वस्थ थी, उसके जाने के बाद उत्साहपूर्वक आसन किये, ‘स्वर संगम’ प्रभात देखते हुए ऐसा करना उसे बहुत भाता है, फिर कपड़े धोने के लिये सर्फ घोल रही थी कि  मालूम हुआ वह डर मिथ्या था, खुशी तो थी ही पर खाना बनाते समय घबराहट बढ़ने लगी और खड़ा होना मुश्किल हो गया, फिर उसके आने तक सिवा दर्द, बेचैनी के कुछ भी महसूस नहीं कर पा रही थी. कमजोरी पता नहीं कहाँ से एकाएक आ गयी थी. फिर उसकी हिदायतें याद आने लगीं वह कितनी बार कहता है कि कुछ खा लेना, चाय, काफ़ी या बिस्कुट ही सही. आने के बाद उसने बहुत अच्छी तरह देखभाल की, कभी हार्लिक्स वाला दूध, कभी बोर्नविटा वाला, फिर अंगूर और नारंगी ले आया, रात को इतना मना करने पर भी बासी रोटियाँ ही खा लीं, उसके लिये कार्नफ्लेक्स बनाया. तभी तो एक ही दिन में नूना पहले जैसी हो गयी है.



कल वह अस्पताल गयी, डॉक्टर ने देखते ही कहा I shall admit you पहले तो कुछ समझ ही नहीं पायी, दुबारा पूछा और पूरे २३ घंटे वहाँ रहने के बाद आज घर आयी है. अभी एक हफ्ता और आराम करने को कहा है डॉक्टर ने. वह चार-पांच बार मिलने आया, वह इतना ख्याल रखता है कि नूना को बरबस ही उसके प्यार पर प्यार आ जाता है. वह एक मित्र भी है और सरंक्षक भी. अभी समाचारों में सुना कि देश भर में होली का उत्सव मनाया जा रहा है, पर यहाँ तो होली की छुट्टी कल है, उसने क्या-क्या सोचा था इस दिन के बारे में, क्या वह सब पूरा होगा? वह साथ है तो अवश्य होगा, वे एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर देंगे.
आज होली है, या कहना चहिये कि होली थी क्योंकि इस वक्त रात के दस बजे हैं, सुबह वे बहुत जल्दी उठ गए थे. मौसम अच्छा था पर डॉक्टर ने घर से बाहर जाने को मना किया है, सात दिनों के लिये बेड रेस्ट, सो घूमने या लॉन में ही टहलने का सवाल ही नहीं था, फिर चाय पीकर उन्होंने गुझिया बनायी, अच्छा लग रहा था उसे गुझिया भरते हुए देखना, वह इतना मन लगा कर हर काम करता है कि उसके साथ काम करना बहुत आसान हो जाता है, फिर नाश्ता करके नूना आराम करने थोड़ी देर   लेट गयी और उसे सोता देख कर उसने ढेर सा रंग लगा दिया, फिर तो उनकी होली शुरू हो गयी, हमेशा याद रहेगी यह पहली होली. उसके साथी आये थे क्लब ले जाने के लिये पर वह उसके स्वास्थ्य की वजह से नहीं गया,  बड़ी मुश्किल से रंग छुड़ाया, फिर भोजन बनाया, सब उसने, नूना ने सिर्फ पूड़ी बेली. शाम को वे बाहर बरामदे में बैठे, आसमान बहुत सुंदर था. उसके असीम प्यार की तरह. उन्होंने पुरानी चिट्ठियाँ पढीं, एल्बम देखा और अब सोने का वक्त हो गया है.

नूना को उसकी प्रतीक्षा है, घड़ी बंद हो गयी है, समय का पता ही नहीं चल रहा, साढ़े दस तो बजने ही वाले होंगे. सुबह वह कह गया था कि आठ-साढ़े आठ बजे एक बार वह आयेगा, सिर्फ दो गुझिया खाकर चला गया था, सो भूख भी लगी होगी. संभव है वह आया हो, वह सो गयी थी दरवाजा बंद था, उसकी बात न मान कर सदा बाद में उसे दुःख होता है, वह दरवाजा खोल कर रखने को कह गया था. पर अब वह आने ही वाला है. मन होता है उसके लिये खाना बनाना शुरू करे पर उसे अच्छा नहीं लगेगा, उसने वादा लिया था कि उसके पीछे वह कोई भी काम नहीं करेगी. वैसे अब वह ठीक है, गला भी ठीक है और मन भी खुश है. जल्दी से फिर वे दिन आ जाएँ जब वह दस से ग्यारह के बीच उसकी प्रतीक्षा करते हुए भोजन बनाती थी. कितनी जल्दी बीत जाता था तब समय और अब काटे नहीं कटता. वही पक्षी फिर बोल रहा है वे दिन में कई बार उसकी आवाज सुनते हैं. कहीं से हारमोनियम पर गाने की आवाज भी आ रही है. मौसम अच्छा है आज, धूप निकली है. वह आने ही वाला होगा या और प्रतीक्षा कराएगा.

उसके आने का वक्त हो गया है. टालस्टाय भी क्या खूब लिखते हैं. सुबह से ही ‘अन्ना केरेनिना’ मन मस्तिष्क पर छायी है, पता नहीं आगे क्या होगा, क्या अन्ना और बोन्सकी विवाह कर लेंगे या उसी तरह रहते आएँगे जैसे अब तक रहते आये हैं, और कीटी से मिलने लेविन जायेगा ही, ऐसा लगता है. आज दोनों घर से खत आये हैं. लगातार काफ़ी देर तक पढ़ने से आँखें जलने लगी हैं अब नहीं पढ़ेगी. उसे अब आ जाना चाहिए, उसका साथ कितना अच्छा है, पर वे  सदा हल्की-फुलकी बातें ही करते हैं, ऐसी बातें जो सिर्फ उन्हें और निकट लाती हैं, जीवन की गम्भीर बातों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता.    
वही कल का समय है, उस पुस्तक का तीसरा भाग पढ़ रही है, इस सप्ताह के अंत तक अवश्य ही उसे पूरा पढ़ा जा सकता है. आज डॉक्टर ने और दवा लिख दी, उसके यह कहने पर कि साँस लेने में कठिनाई महसूस होती है. उसे वास्तव में समझ नहीं आता कि सचमुच कुछ हुआ भी है, कभी तो सब ठीक लगता है पर किसी वक्त एक घुटन सी महसूस होती है, पर यह कोई विशेष नहीं होती. आज शाम वे  कई दिनों के बाद लाइब्रेरी जायेंगे. जीवन अबाध गति से चल रहा है या कहें चल निकला है, पर इतना काफ़ी नहीं है, कुछ करना चाहिए, इतनी सुविधापूर्ण जिंदगी की कल्पना उसने नहीं की थी. मौसम अच्छा है आज. उसके कदमों की आवाज आ रही है, वह आते ही उसे देखना चाहेगा जैसे वह उसे.

कल का दिन कुछ जल्दी-जल्दी गुजर गया, डायरी नहीं लिख  पायी. जितना भी समय मिला वह अन्ना, लेविन और कीटी के साथ बिताया, इतनी अच्छी किताब है यह, अब तक नहीं पढ़ी थी आश्चर्य होता है. परसों वह पूरा एक घंटा देर से आया था, फिर हम क्लब गए, वहाँ धर्मयुग में एक मजेदार बात पढ़ी. आज छोटी बहन का पत्र आया है उसने सोवियत नारी में से ‘वह मेरे दिल की रानी’ की  बारहवीं किश्त भेजी है. उसने बीच की कुछ किश्तें नहीं पढीं. आज अन्ना की किताब भी पूरी पढ़ ली, उसका कितना दुखद अंत हुआ. अब रात के आठ बजे हैं, खाना बनाना है, उसे पसंद नहीं फिर भी पता नहीं क्यों उसने बैंगन कई सब्जी बनायी है, वह भी सोचता होगा.

भी सुबह के पौने आठ ही बजे हैं, नूना ने स्नान कर लिया है और ट्रांजिस्टर पर नूरजहाँ का यह सुंदर गीत सुन रही है, ‘’आवाज दे कहाँ है’..... आज सुबह वह जल्दी उठ गयी थी पर वह उठा अपने वही पुराने वक्त पर. कल शाम को वह उसे एक बात बता रही थी कि उसने चुप कराते हुए कहा, समझ गए...समझ गए... चाहे वह समझ ही क्यों न गया हो पहले वह पूरी बात सुनता था. और उससे पहले किसी मित्र के यहाँ से आते समय उसने दो-तीन बातों का विरोध किया, फिर तो उसने चुप रहना ही ठीक समझा. शायद यह उसका वहम हो और वह चाहती है कि यह वहम ही हो कि ...पर सुबह उनकी सुलह हो गयी वह कह गया है, उसके जाने के बाद वह उदास न रहे. नूना खुश तो है. आज सुबह सूरज कितना सुंदर था..उदय होता हुआ अरुणिम सूर्य...ठंडी हवा और सड़क पर एक सफेद बकरी खड़ी थी, दो कुत्ते आये तो वह डर कर गेट की ओर भाग आयी थी उसने गेट खोला तो वह अंदर आ गयी, अगर उस वक्त वह उसके साथ होता तो सुबह और भी सुंदर होती पर यह हो नहीं सकता.


Thursday, June 2, 2011

भूलने की आदत


रात के दस बजे हैं, उसे नींद आ रही है कल रात वे  देर तक बातें करते रहे शायद एक बजे के बाद सोये हों. नूना ने  टालस्टाय की ‘अन्ना केरेनिना’ पढनी शुरू की है. उसने सोचा, अब बत्ती बंद करती है, उसे रोशनी में नींद नहीं आती.

कल शाम नूना ने उससे पूछा आज फरवरी की अठाहरवीं तारीख है या उन्नीसवीं, इसका सीधा सा अर्थ है कि आजकल उसे  तारीखें भी याद नहीं रहतीं, न दिन व समय का ध्यान है, इतना खो गयी है वह  अपने इस छोटे से संसार में... कल कुछ लिखा भी नहीं. शनिवार को वे  डिनर पार्टी कर रहे हैं उसके सहकर्मी आएँगे. दूध वाले को ज्यादा दूध के लिये कहना था भूल गयी, और कल दोपहर दूध गैस पर रखकर भूल गयी, कुछ भी हो, यह अच्छा नहीं है कितना दुःख हुआ उसे, अच्छा हुआ वह घर पर ही था. कल शाम क्लब में intelligence beyond thoughts पर एक भाषण था, इतने दिनों के बाद इस तरह के विषय पर सुनना एक सुखद अनुभव था. लौट कर साथ-साथ खाना बनाया, वह किचन में इतनी अच्छी तरह से मदद करता है, वे और निकट आते जा रहे हैं.

Tuesday, May 31, 2011

साथ-साथ


पिछले तीन दिन तक उसने डायरी नहीं लिखी, शनिवार और इतवार को तो वे हर पल साथ होते है ऐसे किसी काम के लिये वक्त निकाल पाना मुश्किल है जिसे दोनों एक साथ न कर सकते हों. शनिवार को वे दूर तक घूमने गये, बहुत अच्छा लगा पर यदि वह अपने परिवार जनों के साथ होती तो कुछ दूर तक कच्ची सड़क पर भी जरूर जाती. कितने दिन हो गए हैं मुक्त भाव से खुली हवा में घूमे हुए, वह शामें जब वह बड़े से मैदान में अस्त होते हुए सूर्य व बादलों के बदलते हुए रंगों को देखा करती थी. पूजा की छुट्टियों में जब वे घर जायेंगे तब शायद वह कुछ देर के लिये वहाँ जा सके. परसों उससे एक कप टूट गया और वह जो पहले से ही उदास थी और उदास हो गयी, पर ऐसे वक्त उसने नूना को संभाला, उसको सचमुच कई बार सम्भालना पड़ता है, कई बार तो समझ ही नहीं आता वह इतना धैर्य कहाँ से लाता है.

जब नूना एक पुस्तक पढ़ रही थी कि लिखने का ख्याल आया, यह पुस्तक एक आत्मकथा है world within world . कुछ देर पूर्व वह आया था, सिर्फ यह बताने कि आज  घर आने में थोड़ी देर हो जायेगी, यद्यपि कहा यही कि वह उसे हॉस्पिटल ले जाने भी आया था. उसे चिंता थी कि देर हो जाने पर नूना को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. पिछले इतवार उसने पहली बार टेबिल टेनिस खेला और इस शहर में पहली हिंदी फिल्म साथ-साथ देखी. कल की शाम उसने रुबिक क्यूब को बनाने के प्रयत्न में बितायी. वे मित्रों की तरह रहते हैं पर अब वह सोचती है, उन्हें सिर्फ अपने बारे में सोचना छोड़ कर औरों के बारे में और बातों के बारे में भी सोचना चाहिए.
 क्रमशः

Monday, May 30, 2011

यादें और सपने


आज के दिन एक महीना पूर्व वे विवाह बंधन में बंधे थे, कितने वर्षों की अद्भुत प्रतीक्षा के बाद तो आया था यह दिन, अद्भुत इसलिए कि उन्होंने खुशी-खुशी बिताए थे ये वर्ष एक दूसरे की याद के सहारे, खतों के सहारे. आज वे सब कल की बातें लगती हैं. नूना को तो लगता है कि वे कब से यूँ ही एक साथ जिए चले जा रहे हैं. आज संभवतः घर से कोई खत भी आयेगा, आज ही के दिन वह उन सबको छोड़कर इस नए संसार में आयी थी, कितनी मधुर यादें हैं इस दिन की आँखें बंद करे तो... पर अभी वक्त नहीं है सपने देखने का... सपने तो वे साथ बैठकर देखेंगे ..अपने भविष्य के सुंदर सपने !

दोपहर के दो बजे हैं, मौसम ठंडा है. लगभग रोज ही ऐसा होता है. बादल बने ही रहते हैं, कभी बरस जाते हैं कभी यूँ ही चहलकदमी करते हैं और ताका करते हैं धरती को. पंछियों की आवाजों के अतिरिक्त कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही, हाँ एक आवाज आ रही है फ्रिज की आवाज. कपड़े कब तक सूखेंगे पता नहीं शायद कल धूप निकल आये. ‘चिनार’ यह पुस्तक कल पढ़नी शुरू की थी, रात को तो कुछ पढ़ पाना संभव नहीं है, दोपहर का यही वक्त होता है. आज सुबह उसके जाने के बाद वह लेट गयी, सोचा पांच मिनट में उठती है पर नींद खुली महरी के आने के बाद, इतनी गहरी नींद आती है आजकल और सपनों में रोज ही सबको देखती है, मम्मी-पापा और छोटी बहन, जैसे तब इनको देखा करती थी. 
क्रमशः

Saturday, May 28, 2011

पहला महीना



पिछले माह यह सुंदर डायरी जून ने नूना को दी थी कि वह अपने अनुभवों को लिपिबद्ध कर सके, पर यह हो न सका, वह नहीं जानता कि शब्द नहीं मिलेंगे उन भावों को व्यक्त करने के लिये जो पिछले दिनों उसके साथ रहकर नूना के मन में उमड़ते रहे हैं. आज भी कितनी जल्दी उनकी नींद खुल गयी थी, लगभग रोज ही ऐसा होता है और एक के जगने पर दूसरा अपने आप उठ जाता है, जीना इतना सरल है यह आज के पहले वह नहीं जानती थी. अपने घर की जैसी कल्पना उसने की थी यह वैसा ही सुंदर है.
अभी दस भी नहीं बजे हैं सुबह के, आज बारिश हो रही है. उसने सब काम जल्दी-जल्दी कर लिये हैं जिससे कुछ पढ़ने का या चिट्ठी लिखने का समय मिल जाये. उसके घर पर होने पर तो यह संभव ही नहीं हो पाता, बस मन होता है ढेर सारी बातें करते रहें या यूँ ही बैठे रहें पास-पास. कल रात को उस ने जून से कहा कि घूमने चलते हैं, पहले ही दिन कहा था, नियमित जायेंगे रात के खाने के बाद पर जनाब को तो ठंड लगने लगी, दिन पंख लगाकर उड़ रहे हैं. कल उनकी शादी को एक महीना हो जायेगा.
क्रमशः