Tuesday, March 20, 2012

बंद प्लांट


उसने सोचा, क्यों रहना पड़ता है उन्हें दूर... सुबह वह जल्दी उठ गयी थी, पिछली रात की तरह मच्छरों ने परेशान नहीं किया सो ठीक से सो सकी. वह दिन भर घर पर ही रही, कल की तरह लाइब्रेरी नहीं गयी. शिवानी की पुस्तक ‘चौदह फेरे’ पूरी पढ़ ली. दो तीन दिन या पता नहीं कितने दिन और लगेंगे अभी जून को आने में. वहाँ रहकर भी उसे नूना के खाने-पीने की, सोने-जागने की, पढ़ने-लिखने की फ़िक्र लगी रहती है. दिन में कुछ देर सोयी तो जून को स्वप्न में देखा पर अच्छा नहीं था वह स्वप्न, पता नहीं ऐसे स्वप्न क्यों आते हैं. जून नहीं है तो लगता है जैसे उसे कोई काम ही नहीं है, सारा घर सूना-सूना सा और वह अकेली.
जून ने बताया है कि प्लांट बंद कर देना पड़ा है, उसका मन ठीक नहीं है, उसे भी अच्छा नहीं लग रहा है. अब तो उससे सुबह ही बात हो सकेगी, हो सकता है रात भर में स्थिति नियंत्रण में आ सके और सुबह काम फिर से शुरू हो जाये. उसने मन ही मन शुभकामनायें भेजीं और कहा कि वह एक बार भी नहीं कहेगी उसे वापस आने के लिये. वह यहाँ बिल्कुल ठीक है, जून वहाँ रहकर भी उसके हर कार्य में उसके साथ है, उसका स्नेह उसके साथ है तो फिर उसे भी तो बल देना होगा उसने दुआ मांगी कि वह अपने काम में सफल रहे. आज भी वह घर पर ही रही कल किसी परिचित के यहाँ जायेगी. आजकल ठंड ज्यादा नहीं है, या उसे महसूस नहीं होती, वह दिन भर बंद घर में रहती है शाम को कुछ देर टहलती है. आज इंदिरा गाँधी की चौठसवीं सालगिरह है, उनकी मृत्यु के बाद उनकी अनुपस्थिति में दूसरा जन्मदिन.
  

Sunday, March 18, 2012

स्वप्न में स्वप्न


रेडियो पर यह गीत बज रहा है, मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही... नूना का मन भी कुछ ऐसा ही कहना चाह रहा था, सुबह फिर एक बार उसे उदास और अकेले( नहीं, वह अब भी उसके साथ था...) छोड़कर जून फिर कुछ दिनों के लिये चला गया था. थोड़ी ही देर बाद वह व्यस्त हो गयी थी इधर-उधर के कार्यों में. खाना खाकर सो भी गयी. स्वप्न देखा, वह आया है, कहता है देखो मैं वापस आ गया हूँ. वह कहती है, क्या यह सच है या वह स्वप्न देख रही है. वह आँखें खोल-खोल कर देखने की कोशिश करती है. वह अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाता है, कहता है क्या मेरा सामान कोई नहीं दे गया. पर नींद खुली तो वह अकेली थी. पांच बजे फोन सुनने गयी, वह व्यस्त था छह बजे फिर फोन पर मिलना हुआ. उसने बाद में सोचा जून को गेस्टहाउस जाकर गर्म-गर्म चाय मिल गयी  होगी और टिफिन भी, स्वेटर भी उसने पहना होगा. वह दूध पी रही थी कि कॉल बेल बजी, कोई दो जन परिचित आये थे, उन्हें याद नहीं रहा कि जून नहीं था. दीवाली पर आ नहीं सके इसलिए आये थे. उन्हें चाय पिलाई. कुछ देर रेडियो सीलोन सुना, कुछ देर पढ़ने के बाद स्वेटर बुना और फिर रात्रि भोजन के बाद सोने गयी, याद आया कि इस वक्त भी जून को फील्ड जाना है, मन ही मन उसे ठंड से बचने की हिदायत दी और एक मानसिक पत्र भेजा, “तुम्हारी बेहद याद आती है, अभी तो कुछ ही दिनों की बात है कभी भी भविष्य में हमने अधिक दिनों के लिये दूर नहीं रहना पड़े, सब कुछ अधूरा अधूरा लगता है, घर घर नहीं लगता. याद आती हैं तुम्हारी बातें, इस समय भी तुम जो भी कर रहे हो पर मेरा ख्याल तो तुम्हें बना ही रहता होगा.”  
  

Friday, March 16, 2012

एक नया मोड़



कई दिनों से उसने कुछ नहीं लिखा है, मन में कितने विचार उठते हैं. हर समय एक सवाल सा रहता है. आज वे डॉक्टर के पास गए थे. डॉक्टर ने जाँच की और बताया कि वह जो सोच रहे हैं, सही है. जिस तरह जाँच की गयी वह तरीका नूना को पसंद नहीं आया, वह परेशान हो गयी घर आकर भी काफ़ी देर तक परेशान रही, उसे उदास देखकर जून भी परेशान हुआ. अगले माह उन्हें घर  जाना है. ऐसे में यात्रा नहीं करनी चाहिए पर उसने सोचा देखा जायेगा. अस्पताल जाने से पूर्व वह जितनी खुश थी वापस आकर उसकी शतांश भी नहीं है. कल दीवाली है, जून आज अकेले तिनसुकिया जायेगा सब सामान लाने.
  

Thursday, March 15, 2012

लाल मिर्च


उस दिन नूना के पैर की अंगुली में चोट क्या लग गयी, जून ने उसे कहा, पलंग पर बैठ जाओ. वह खुद किचन में गया है, भोजन लाने. आज वह मोरान भी नहीं गया. उसे अकेला छोड़कर जाना उसे जरा भी अच्छा नहीं लगता. दवा लगा कर पट्टी भी बांध दी है. उसका यह स्नेह देखकर कभी कभी उसे लगता है क्या वह इसके योग्य भी है. पर अगले ही पल वह सोचती है अगर वह न होती तो उसका प्रेम किस तरह प्रकट हो पाता. आज वे एक अच्छी सी श्वेत-श्याम फिल्म देखने गए, ‘दोस्ती’. गीत बहुत मधुर थे. मुहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज का तो कहना ही क्या. दोपहर को उनकी तेलुगु मित्र आयीं थीं, शाम को दक्षिण भारतीय भोजन का निमंत्रण देने. वे गए थे और दोसे के साथ लाल मिर्च के पाउडर की चटनी पहली बार देखी.
आज वह पिता से उपहार में मिले पार्कर पेन से लिख रही है, जब उन्होंने दिया तो उसने कहा इतना महंगा पेन, वे बोले, तुम भी तो महंगी हो, और वह उनका मुख देखती रह गयी कुछ न कह सकी. उसने सभी को पत्र भी लिखे. रेडियो पर गाना आ रहा है, 
जब शाम का आंचल लहराए
और सारा आलम सो जाये
तुम मुझसे मिलने शमा जलाये
ताजमहल में आ जाना

उन्होंने स्वेटर निकाल लिए हैं और स्नान भी गर्म पानी से शुरु कर  दिया है. कल वे डॉक्टर के पास भी गए थे. कुछ दिनों में पता चलेगा कि उनके जीवन में क्या कोई गुल खिलने वाला है. पिछले दिनों वे इस बात को लेकर भी कुछ परेशान थे पर अब नहीं हैं. वे दोनों तो इस दिन को लेकर कितने सपने भी देखते थे.
  

Wednesday, March 14, 2012

एक पत्र


इतवार को वे तिनसुकिया गए थे पूजा देखने, बहुत भीड़ थी. दुर्गापूजा के कितने सुंदर पंडाल सजाये गए थे. उससे पहले घर की सफाई की, जून ने छत व दीवारों की, नूना ने फर्श की. फिर नाश्ता बनाया और तैयार होकर निकले. एक फिल्म देखी, शाम को घर लौटे तो बहुत थकान थी.
जून को फिर से जाना पड़ा सात दिनों के लिये और एक बार फिर दिन में दो या तीन बार फोन पर मुलाकात का सिलसिला. नूना को वे दिन याद आये जब वे साथ थे, जैसे दूध में शक्कर, इस तरह घुल गए थे और अब यह अकेलापन उसे ज्यादा खल रहा था. जैसे सब कुछ होते हुए भी सब अधूरा अधूरा सा हो. उसने फोन पर बात की तो लगा जैसे कि कितने दिनों बाद उसकी आवाज सुन रही है. दिन में दूध और सेब खाकर रही पर शाम होते होते सर में दर्द होने लगा. अगले दिन सुबह सोकर उठी तो लगा सब ठीक था. दिन में वह उड़िया पड़ोसिन मिलने आयी थी बहुत बातें की, उसके पास एक खजाना है जैसे बातों का.
उसने एक पत्र लिखा जून को और कहा कि इस बार वह पिछली बार की तरह उदास नहीं है बल्कि नियमित दिनचर्या का पालन कर पा रही है. रात को मच्छरदानी लगाकर सोयी सो नींद भी अच्छी आयी. लाइब्रेरी गयी किताबें पढीं, क्रोशिया बनाया और उसका इंतजार किया फोन पर. और इसी तरह पूरा सप्ताह बीत गया.


Tuesday, March 13, 2012

स्वप्न का संसार



आज सुबह वह एक स्वप्न देख रही थी कि दस बजे परीक्षा देने जाना है. देर से सोकर उठी है, तैयारी कुछ की नहीं है, बड़ी मुश्किल से तैयार हो पाती है कि वर्षा आरम्भ हो जाती है. जाना बहुत दूर है एक सहेली है उसका भाई स्कूटर पर उन दोनों को छोड़ आने को कहता है पर रास्ते में उसका स्कूटर खराब हो जाता है. चप्पल भी कहीं छूट जाती है नंगे पैरों अब बस से जाते हैं, पर चप्पल होना जरूरी है, एक दुकान पर जाते हैं, चालीस रूपये की एक चप्पल दुकानदार दिखाता है जो बहुत अच्छी तो है पर इतनी मंहगी खरीदनी नहीं थी. परीक्षा छूट न जाये यह डर अलग है एक पुलिसवाला भी दिखा छड़ी दिखाते हुए जब एक स्कूटर पर तीन लोग जाने वाले थे, और तभी बजी दरवाजे की घंटी, दूधवाला आया था और उसकी जान में जान आयी.
शुक्रवार होने के बावजूद आज क्लब में फिल्म नहीं है, पहले हर शुक्रवार को कोई न कोई फिल्म दिखाई जाती थी. पूजा की छुट्टियाँ होने वाली हैं, सो एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है. कल उन्होंने शतरंज खेला और कॉपी पर खेलने वाले कई अन्य खेल. नूना को कभी-कभी लगता है कि उसकी ऊर्जा व क्षमता के अनुरूप कोई कार्य उसे नहीं मिल रहा है, वह अपना समय व्यर्थ कर रही है. 

Monday, March 12, 2012

घर वापसी


उजाला रहते वह लाइब्रेरी गयी थी, लौटी तो अँधेरा होने लगा था. जबकि छह ही बजे थे, सात व आठ के बीच फोन आयेगा इसकी स्मृति मन में उल्लास जगा रही थी. आज फ्रिज की सफाई की, शायद एक दो दिन में जून वापस आने वाला है.
अभी-अभी जून वापस गया है, पहले ऑफिस फिर वहीं से दुबारा फील्ड. कल शाम जब फोन आया तो उसने शायद नूना की आवाज में छुपे दुःख को समझ लिया था. उसे किसी तरह नींद भी आ गयी पर रात को साढ़े ग्यारह बजे जानी-पहचानी डोर बेल बजी तो वह चौंक कर उठ बैठी. कितनी खुशी हुई उसे जून को देखकर, कितना सुकून मिला मन को और कितनी राहत आँखों को. उन्होंने कितनी बातें कीं, कितने आँसू पोछें, उसका कोई हिसाब नहीं, पर यह रात उसे कभी भी नहीं भूलेगी. वह उसे ही खोज रही थी और तब वह आया अपने अंतर का सारा स्नेह लिये. उसकी पुकार व्यर्थ नहीं गयी.
आज फोन आया कि वह वापस आ रहा है और फिर नहीं जाना है. नूना को लगा कि कहीं वह उसकी वजह से तो नहीं आ रहा या कि कल रात को उसके आने से किसी ने कोई बात कह दी है. वह आकर ही बताएगा कि क्या कारण है इस शीघ्र वापसी का. दोपहर को मेजपोश बनाने किसी परिचित के यहाँ गयी वह बुनाई का कार्य कर रहीं थीं.
जून आया तो कार से उतर कर दरवाजे तक आते समय उसकी मुस्कान देखकर ही (वह विवश मुस्कान) वह समझ गयी थी कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है. पिछले दिन फोन पर बात करने से और यह जानकर कि वह तीन-चार घंटे तक काम के समय सो रहा था, वह समझ गयी थी कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. अब वह घर आ गया था, उसे एक-दो दिन में ठीक हो जाना था. वहाँ उसे धूप में खड़ा होना पड़ता था और कुछ घर की, कुछ उसकी चिंता के कारण वह ठीक से नहीं रह पाया. पहली बार उसे दो दिन की सिक लीव लेनी पड़ी. आज गया है वह ऑफिस. दो दिन वे चौबीस घंटे साथ रहे, वह जो मोरान जा कर दूर हो गया था भौतिक रूप से, यहाँ उसके बहुत पास आ गया था, दिन भर वर्षा होती रही शाम को वे टहलने गए.

Friday, March 9, 2012

फोन पर मुलाकात


शाम हो गयी है, नूना को उसके फोन का इंतजार है, जो सात से आठ बजे के बीच कभी भी आ  सकता है. पर फोन पर वह कुछ भी बात नहीं कर पाती, सिर्फ सुनती है. अभी तीन दिन और हैं जून को वापस आने में. आज सुबह से वह घर पर ही थी. सामने वाली उड़िया लड़की घर गयी है और दूसरी काफ़ी देर से घर आयी है. बाहर अँधेरा हो गया है. सुबह का भोजन फिर बच गया है. एक किताब पढ़ी, The Promise अच्छी प्रेम कहानी है, उसने सोचा जून के आने पर उसे सुनाएगी. आज एक खत भी आया है घर से.
कल शाम जून का फोन नहीं आया, काफ़ी इंतजार के बाद उसने कुछ नहीं किया, भोजन भी वैसे ही पड़ा रहा. बाद में पता चला कि फोन किया था पर जिनके यहाँ किया था वे ही बता नहीं पाए थे. आज शाम वह बाजार गयी, वे तीन थीं, कार आ गयी थी, उसने खीरा व कोल(केले) खरीदे. दोपहर को एक तेलुगु परिचिता के यहाँ गयी. इस समय उसके सर में हल्का दर्द हो रहा है, शायद दिन भर आराम नहीं किया इसलिए या कि मार्केट से वापस वे पैदल आये इसलिए. उसने सोचा जून के न रहने से ही सारी समस्या है. उसकी दिनचर्या भी यहाँ की तरह नियमित नहीं रह पाती होगी.
आज उन्होंने फोन पर आराम से बात की. नूना बहुत खुश है. जून ने बताया काम बहुत है, दिन भर व्यस्त रहना होता है, तो उसने कहा, कोई बात नहीं, वह तो कभी काम से घबराता नहीं, जिस काम के लिये वह गया है बस उसे शीघ्र ही पूरा करके लौट आये. दोपहर को वही तेलुगु परिचिता आ गयी थीं, कुछ देर लूडो खेला फिर रमी भी, कुछ समय पंख लगा के उड़ गया. आज रात भी वह फलाहार करने वाली है, पहले खीरा, फिर कुछ देर बाद केला व दूध. सुबह तोरई की सब्जी व रोटी बनायी थी पर रात को कुछ बनाने का मन नहीं होता.

Monday, March 5, 2012

सूना सूना घर



आज जबसे जून गया है वह उसे याद कर रही है. जानती है वह भी उसे याद कर रहा होगा चाहे वह कितना ही व्यस्त क्यों न हो. सुबह उसकी जीप अभी मोड़ तक ही गयी थी कि उसकी आँखें...और  दिल जैसे बैठने लगा. अंदर आयी तो याद आयी उसकी बात खुश रहना..सो सम्भल गयी. कुछ खाकर क्रोशिया उठा लिया. दस बजे तो खाना बनाया सब कुछ वैसे ही क्या जैसे उसके होने पर करती. किताब पढ़ी फिर भोजन किया. सोचा वह भी पहुँच गया होगा. दोपहर को कढ़ाई की फिर सोने का प्रयास किया पर नींद नहीं आयी. फिर प्रेमचन्द का उपन्यास कायाकल्प पढ़ती रही. तभी उसका  फोन आया हँस कर बात की पर वापस आयी तो वह और भी याद आया. पांच बजे तक तो किसी तरह रही फिर अकेला घर किसी तरह अच्छा नहीं लगा किसी तरह नहीं सो पड़ोस में उसी उड़िया परिचिता के घर चली गयी उसे खुद नहीं पता था कि उससे दूर रहना इतना कठिन होगा. 

Friday, March 2, 2012

पुराने खत


आजकल सुबह शाम ठंड बढ़ जाती है और दोपहर को गर्मी रहती है. अक्टूबर शुरू हो गया है. कल वे टहलते हुए क्लब गए, धर्मयुग का नया अंक पढ़ा नूना ने और जून ने स्वामी विवेकानंद की एक किताब के कुछ पन्ने. लाइब्रेरी में ही एक परिचिता मिलीं, पुरानी पड़ोसिन, कहने लगीं, उनके पति शाम को देर से घर आते हैं सो वे लोग इतने दिनों से मिलने नहीं आ सके.
कल जब जून घर आया तो नूना पुराने खत पढ़ रही थी. कितनी स्मृतियाँ सजीव हो उठीं. उसने कहा कि वह बस यही चाहता है, वह खुश रहे, जब तक वह साथ रहता है, नूना खुश रहती है, उसके जाने के बाद उसकी बातें याद करके. रेडियो पर हिंदी फ़िल्मी गीत की धुन पर आधारित एक असमिया गीत बज रहा है. वह कढ़ाई का काम लेकर बैठी है.
सात अक्तूबर ! आज पूरे नौ महीने हो गए उन्हें साथ-साथ रहते हुए. यह तिथि कितनी यादों को समेट लाती है. विवाह पूर्व के वे वर्ष, महीने और दिन इसी तारीख पर आकर सिमटे थे और विवाह के बाद का यह अनुराग पूर्ण जीवन इसी तिथि से प्रारम्भ हुआ था. उस दिन आधी रात्रि को जून उसे उसके परिवार से बाहर एक नए घर में लाया था. आश्वासन था उसके स्पर्श में, एक पल को लगा था उसकी आँखें देखकर कि वह उदास है या कहीं मन में घबराया हुआ है कि क्या होगा आगे, पर दूसरे ही पल उसका साथ उसे बहुत पुराना लगने लगा था. जैसे वे तो पहले से ही साथ-साथ थे. जैसे उन्हें तो सब मालूम था कि आगे क्या होने वाला था. उसने इतना स्नेह दिया है कि पहले के जीवन में जिसकी झलक कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ती थी. कल उसे मोरान जाना है कुछ दिनों के लिये, नूना को अकेले रहना होगा, रहना ही होगा उसके लिये, उनके लिये.