Monday, April 29, 2013

बिटिया का जन्म



शनिवार को क्या व्यस्तता थी याद नहीं आ रहा और कल यानि रविवार को तो लिखने का समय होता ही नहीं. हर पल तो जून के साथ बीतता है न. शनि की दोपहर को वे एक मित्र के यहाँ गए, कैरम खेला. शाम को क्लब, जून ने "क्विज प्रतियोगिता" में भाग लिया था, उनकी टीम तीसरे नम्बर पर रही, इनाम में उन्हें लाल रंग की सुंदर सी बड़ी ट्रे मिली है. इतवार शाम उसने एक सखी (जिसको नौवां महीना चल रहा है) तथा उसके सास-ससुर को खाने पर बुलाया, उसके पति देश से बाहर गए हैं, उनके आने में अभी एक महीना है, उसे लगा, उसकी सखी बहादुर है और समझदार भी. धीरे-धीरे पता चल रहा है कि उसे अपने बारे में कितनी खुशफहमियां हैं...खैर ये खुशफहमियां और गलतफहमियाँ तो हरेक को होती हैं. कल शाम को लेखक ‘कुबेरनाथ राय’ का एक ऐसा लेख पढ़ा जिसमें बातें उसके मन की ही थीं. कितने सीधे-सरल परन्तु ओजपूर्ण शब्दों में देशप्रेम का भाव जगाने में सफल हुए हैं, देशप्रेम एक संकुचित भावना नहीं है, एक विशाल, उदार भावना है. आज पत्र लिखने का दिन भी है. बादलों के कारण वे आज सुबह देर से उठे, आज नन्हे का अवकाश है, सो देर से उठने से कोई विशेष परेशानी नहीं हुई.

  पिछले दो दिन फिर व्यस्तता में बीते, दोनों दिन सफाई में ही. किचन, स्टोर और किताबों की शेल्फ कितने अच्छे लग रहे हैं और स्वच्छता=सौंदर्य=अच्छाई. आज वही रोज के कार्य किये. कल बुआ जी का एक खत मिला और माँ-पिताजी का भी.बुआ जी के पत्र में एक बात मन को छू गयी, अपने ननदोई की मृत्यु पर उन्होंने लिखा है-

“जीवन से ही सब कुछ मिला है और मिल सकता है, किन्तु सब कुछ देकर भी जीवन नहीं मिल सकता”.

 कल शाम को वे एक सोशल विजिट पर गए, उसने बहुत दिनों बाद तांत की कोक कलर की साड़ी पहनी, अपना-आप अच्छा लग रहा था, आईना उस दिन से उसका मित्र हो गया है. परसों लाइब्रेरी से दो किताबें लायी थी, मन हो रहा है एक कहानी पढ़े और मन को किसी उच्च धरातल पर ले जाये, फिर तो भोजन की तैयारी करनी है. जून को आने में आधा घंटा तो है ही.
   पता नहीं क्यों आजकल वह बहुत जल्दी थक जाती है. कल रात टहलने गए, दो ही चक्करों में थक गयी, स्टैमिना कम हो गया है या आलस्य के कारण खुद को इतना कमजोर बना लिया है. मौसम इतना गर्म भी नहीं था, पर रात को गेस्ट रूम में बिना एसी के सोने की उनकी योजना असफल हो गयी, नन्हे ने एक सूत्र निकाला है, “जब वे सर्दियाँ खत्म होने पर एसी रूम में पहली बार सोते हैं तो बहुत अच्छा लगता है, पर छोड़ते समय बहुत कठिनाई होती है”

आज सुबह-सुबह ही पता चला कि उसकी सखी ने कल रात दो बजे बेटी को जन्म दिया है. वह क्या सोच रही होगी अपने पति की अनुपस्थिति पर इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है. शाम को वे अस्पताल जायेंगे, जून पहले ही हो आए हैं. सुबह धूप तेज थी अब जाने कहाँ से बदली आ गयी है. आज ओणम है, और नन्हे के स्कूल में कहानी सुनाने की प्रतियोगिता भी, कल शाम उसे अभ्यास कराते समय ज्ञात हुआ कि अब वह बड़ा हो गया है और अपनी सुदृढ़ राय रखता है, किसी भी विषय पर, उसे बहलाना आसान नहीं है. आज दोपहर के भोजन में वह जून की पसंद पर इडली बना रही है. दूध वाले सरदार जी ने इस बार भी पनीर के लिए उतना ही परेशान किया जितना नन्हे के जन्मदिन पर किया था, इनका नाम भुल्लकड़  सरदार रख देना चाहिए. कल सुबह वह पड़ोसिन के यहाँ गयी हफ्तों बाद, उसके बेटे की आँखें लाल थीं, घर आते-आते उसे भी लगने लगा कि उसकी आँख में दर्द हो रहा है, जाने क्यों मनोवैज्ञानिक असर बहुत ज्यादा होता है वस्तुओं का उस पर. आज भारत-पाकिस्तान का मैच है दोपहर बाद, जिसमें भारत की विजय की ज्यादा संभावना है.










Sunday, April 28, 2013

वाणी जयराम- बोले रे पपीहरा



अगस्त माह का अंतिम दिन, गर्मी कुछ ज्यादा ही है आज, सो सुबह साढ़े नौ बजे ही उसने एसी चला दिया है, दीन-दुनिया से दूर इस बंद कमरे में कितना सुकून मिलता है गर्मी से व्याकुल तन को और मन को भी. बाहर पौधे धूप में झुलस रहे हैं, कल शाम उन्हें पानी भी नहीं मिला शायद. आज सुबह उठते ही उसे ज्ञात हुआ कि इस बार फिर उसकी कल्पना, कल्पना ही रह गई और इसे रहना भी चाहिए वास्तविकता, क्यों कि कठोर होगी, इतने वर्षों बाद घर में...जून को भी सुनकर राहत हुई होगी. कल उनकी असमिया भाषा की परीक्षा है, उन्हें इतना तो आ ही गया है कि पास हो जाएँ. नन्हा आज cubs की ड्रेस पहन कर गया है, वह बहुत खुश था, अच्छा भी लग रहा था..स्मार्ट..महीने का अंतिम दिन होने के बावजूद आज उसका हाफ डे नहीं होगा, ड्रिल होगी. कल उसने अपने कक्षा के एक लड़के की चोरी की बात बताई कि उसने टीचर के हस्ताक्षर खुद कर लिए और पकड़ा गया. उसे अपने बचपन की एक बात याद आ गयी बल्कि दो, जब वह पकड़ी नहीं गयी...पर उम्र भर वे बातें उसे भूल नहीं पाएंगी...”आदमी जो करता है.. आदमी जो कहता है.. जिंदगी भर वे सदाएं पीछा करती हैं”..कितनी सही है यह बात.

सितम्बर का पहला दिन, यानि भादों का महीना...भाद्रपद..भगवान कृष्ण के जन्म का महीना. कल दोपहर बाद झमाझम बरसात हुई, शाम कितनी सुहानी हो गयी थी, लेकिन आज फिर धूप खिली है, सर्दियों में यही धूप कितनी भली लगती है, अद्भुत है यह ऋतुओं का आना-जाना, लेकिन..कितना आवश्यक भी, यदि सारा साल एक सा ही मौसम रहे तो जीवन कितना नीरस  नहीं हो जाये...अब तो सर्दियों में गर्मियों की प्रतीक्षा करते और गर्मियों में सर्दियों की, दिन कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता, उन्हें घर से आये ढाई महीने हो गए हैं, जाने क्यों इस हफ्ते भी अभी तक कोई पत्र नहीं आया है. आज इस समय उसे पीड़ा नहीं है, कल शाम थी, जून चिढ़ा रहे थे, उन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा, उसका सारी शाम बिस्तर पर लेटे रहना. आज उनका असमिया का टेस्ट है, पढ़ने के लिए उकसाना पड़ा, उन्हें ज्यादा रूचि नहीं है ऐसा लगता है या फिर उन्हें सब आता है, देखें परिणाम कब आता है और कैसा? वैसे उसे पता चल गया है कि उन्हें असमिया पढ़ने के लिए कहना पसंद नहीं. “असम साहित्य” सभा की असमिया कक्षाएं तो अब पता नहीं कब शुरू होगी, उसे स्वयं ही पढ़ना होगा यदि वह  सीखना चाहती है. कल जिस वक्त वह फेमिना की एडिटर का लेख पढ़ रही थी कि एसी कमरे में बैठकर, बाहर दिन है कि रात, दोपहर है या वर्षा कुछ पता नहीं चलता, ठीक उसी वक्त बाहर आंधी आ रही थी और वर्षा भी, सारे कपड़े भीग गए, और उन्हें पता तक नहीं चला, बगीचे में गोबर भी भीग-भीग कर फ़ैलाने लायक नहीं रह गया होगा.

कल शाम जून ने बिना उससे पूछे ही एक मित्र से कह दिया कि वे लोग उनके यहाँ आएंगे आधे घंटे में, जबकि उसका मूड नहीं था, न ही मानसिक रूप से नही शारीरिक रूप से वह  तैयार थी. कितना बुरा लग रहा था उसे बाद में मना करते हुए, पर लोग कितनी आसानी से  ‘न’ कह देते हैं, वे तो शायद किसी और ही मिट्टी के बने हुए हैं शायद. आज वह ठीक महसूस कर रही है, बाल भी धो लिए हैं, एकदम हल्का महसूस कर रही है. बहुत दिनों बाद वाणी जयराम का गाया बोले रे पपीहरा....रेडियो पर बज रहा है. कितना मधुर है यह गीत, और अब  आशा भोंसले की यह गजल भी-

यूँ तो मिलने को हम मिले हैं बहुत
दरम्यां फिर भी फासले हैं बहुत

 कल घर से पत्र आ ही गया, छोटी बहन राखी पर घर गयी थी. नन्हे का आज ड्राइंग कम्पीटिशन है, सुबह उठकर एक ड्राइंग बनाई है उसने. कल सोशल स्टडी में साढ़े तेईस अंक मिले पच्चीस में से. उसकी इस डायरी के पन्ने में नीचे लिखी आज की सूक्ति भी अच्छी है, उसने सोचा, अच्छी बातें तो मोतियों सी बिखरी पड़ी हैं मगर उन्हें चुनने वाले हंस ही तो वे नहीं बन पाते.





Friday, April 26, 2013

टॉम एंड जेरी



नन्हा आज गेट खोलकर ही भागता हुआ बस में चढ़ गया, वह गेट बंद करने गयी तो वही अपनी आदत के अनुसार कल्पनाओं में गुम झटके से बिना यह देखे कि उसका हाथ चींटा युगल पड़ रहा है, बंद कर दिया पर दर्द का एक तीखा अहसास हुआ तो मालूम हुआ कि डंक खा चुकी है. इतना दर्द तो जोंक के काटने पर भी नहीं हुआ था. झट प्याज और नमक लगाया पर दर्द अभी भी है एक घंटे बाद भी. आज व्यायाम भी नही कर पायी अब तक, दलिया भूनना था. सुबह महरी भी देर से आई, दूधवाला भी और फिर स्वीपर भी, कभी-कभी ऐसा होता ही है और इसी चक्कर में उसकी दिनचर्या उल्ट-पलट हो जाती है. आज स्वामी योगानंद की पुस्तक का अध्ययन भी नहीं कर पायी. नन्हे का कल अंतिम इम्तहान है, आज सुबह थोड़ा धीरे-धीरे काम कर रहा था, फुर्तीला जरा कम ही है, तभी बस के लिए दौड़ना पड़ा, वह तो अच्छा है घर के सामने से ही बस गुजरती है. कल शाम को वर्षा के बाद रौशनी में चमकती गीली-भीगी सड़क पर साइकिल चलाना अच्छा लग रहा था. कल रात को फिर पहले देर तक ढेर सारे विचार और फिर स्वप्न...इसका कारण कल रात का गरिष्ठ भोजन भी  हो सकता है, आज से ध्यान रखेगी और गर्म स्नान भी. कल शाम ही ऑस्ट्रेलियन मेडिकल गाइड में गहरी नींद के दस उपाय पढ़े और पहले ही दिन नींद गायब. शायद जगह बदलने के कारण  भी ऐसा हो, कल बहुत दिनों बाद वे गेस्ट रूम में सोये. हाथ का दर्द लिखने में बाधक बन रहा है. भगवद् गीता का कैसेट बज रहा है उसने सोचा उसी में ध्यान लगाना चाहिए.  

  कल शाम को जून उससे नाराज हो गए इस बात पर कि वह रात को भोजन में सिर्फ दो फुल्के ही क्यों खाना चाहती है, और वह उन्हें समझा-समझा कर थक चुकी है कि खाने के विषय में किसी को विवश नहीं करना चाहिए खैर....यह तो उनकी गृहस्थी में कोई नई बात नहीं है, चलता ही रहता है, पर खामख्वाह नन्हा परेशान हो जाता है. ओवर सेंसिटिव है यह लड़का. आज वह साढ़े बारह तक आ जायेगा फिर तीन छुट्टियाँ, उन्होंने कितने काम सोचे हुए हैं जो इन छुट्टियों में करने हैं. ग्यारह बजने वाले हैं पर आज अभी तक खाना नहीं बन पाया है, जून की पसंद की भरवां करेले की सब्जी बनाने में काफी वक्त लग गया है और पता नहीं खान में कैसी लगेगी.

  दो दिन कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला, परसों उन्हें मेला देखने जाना था, पर कोलकाता से उन पंजाबी दीदी के पति आ गए, काफी देर बैठे रहे, उनसे बातें करके अच्छा लगा, अगले दिन उन्हें लंच पर बुलाया था, लगभग डेढ़ बजे आये, मन में एक ख्याल आया था कि दीदी के लिए कुछ भेजेगी, पर उस समय कुछ समझ में नहीं आया और कल वे वापस भी चले गए. कल वह अपनी बंगाली सखी के यहाँ गयी, वह आजकल काफी व्यस्त रहने लगी है, ट्यूशन भी देती है, बागवानी तो है ही. उनके यहाँ एक इंग्लिश फिल्म देखी कुछ देर. आज सोमवार है, ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ का त्योहार भी, नन्हे का एक मित्र आया है, उसके साथ वह भी कोई कार्टून फिल्म देख रहा है. उसन सोचा अब लिखना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि मन एकाग्र नहीं हो पा रहा है, थोड़ी देर ‘योगी कथामृत’ पढ़ेगी, अच्छा लगेगा.  





रामायण की कहानी-अशोक बैंकर



अचानक घर के सारे के सारे बॉल पेन्स की स्याही जैसे एक साथ ही खत्म हो गयी है, उसे हरी स्याही वाले इस जैल पेन से लिखना पड़ रहा है, जो इतना अच्छा नहीं लिख रहा. मौसम आज भी सुहावना है, शायद यही कारण तो नहीं कि आजकल वह वे सभी कार्य सुबह कर  पाती है, जो ज्यादा गर्मी होने के कारण पहले टाल दिया करती थी, लिखना भी उनमें से एक है. सुबह जल्दी उठने से नन्हे को भी कुछ वक्त दे पाती है, आज से उसके टेस्ट शुरू हैं. कल से नई नैनी सीमा ने काम सम्भाला है, उसने सोचा, देखें, यह कितने दिन टिकती है, पिछले आठ महीनों में यह पांचवीं नैनी है. जून के आने का वक्त हो रहा है, हो सकता है वह आज भी थोड़ा लेट आयें, शनिवार को पूरा एक घंटा देर से आये, उसके पूछने पर नाराज होने लगे.. जल्दी ही मान भी गए, वाकई वह भाग्यशाली है जो इतना अच्छा साथ मिला है उनका...माँ-पिता से मिलने यदि किसी वर्ष न भी जा सके वे लोग तो उसे कोई दुःख नहीं होगा, उसने सोचा अचानक ये बातें उसके मन में क्यों आने लगीं. रक्षाबंधन की स्मृति अभी ताजी है, शायद इसीलिए..

फूलों के कितने गाँव राह में मिले
आते रहेंगे याद सावन के वे झूले

  कल शाम एक परिचित परिवार आया था, यूँ ही उलझ गयी उनसे बातों में, खत्री और क्षत्रिय की बहस को लेकर, उसका कहना था कि खत्री क्षत्रिय का ही अपभ्रंश है, पर वे मानने को तैयार नहीं थे. उनके अनुसार खत्री वे जो लड़ने से घबराते थे, क्षत्रिय वे जो वीर थे. रात भर स्वप्नों के बीच गुजरी, कल ही जून उससे कह रहे थे कि वह व्यर्थ ही छोटी-छोटी बातों पर चिंता करती है. इस तरह के मन को लेकर जीने से तो अच्छा है कि अपने को बहस की स्थिति में डाला ही न जाये. मन भी शांत रहेगा और रिश्ते भी मधुर बने रहेंगे, चाहे ऊपर-ऊपर से ही क्यों न सही. सर्वेंट रूम की बिजली ठीक करने आए इलेक्ट्रीशियन ने घंटी बजाई. लौट कर आई तो उसकी कलम रुक गयी, खाली रहे या कोई काम भी करती रहे तो मन में ढेरों विचार आते ही चले जाते हैं मगर जब कलम उठाओ तो सबके सब गायब. यूँ पिछले आधे घंटे में दो-तीन बार उठना पड़ा है लिखने के दौरान, यूँ लेखन भला क्या होगा, लिखने के लिए एकाग्रता चाहिए और चाहिए विचारों का ठहराव, जो जून की प्रतीक्षा करते समय सम्भव होगा. कल बड़ी ननद का पत्र बिहार से आया, लिखा है वे लोग अब पटना छोड़ देंगे, और पश्चिम में रहेंगे या सुदूर दक्षिण में. दीदी का पत्र कई दिनों से नहीं आया, कल जून ने भी याद दिलाया, कितने साल हो गए उन्हें देखे. उसने सोचा उस सखी के लिए एक अच्छी सी गज़ल या नज्म लिख दे, वह भी कहीं रात भर सोचती न रही हो, उसकी हम राशि है न आखिर.

  आज फिर लिखना रह ही जाता, भला हो पौराणिक कथाओं के लेखक "अशोक बैंकर" का जिनके कारण कुछ न कुछ लिखते रहने की कोशिश जारी रखने का संदेश मिला. आज सुबह समय बिलकुल नहीं था, जून लंच के बाद गए तो कुछ देर सोयी, अखबार पढ़ा और सोसाईटी पत्रिका के पन्ने पलटे जो जून बुक क्लब से लाए थे. सुबह उसने उस सखी को एक क्षणिक उत्साह में फोन किया, इतवार को अपने वहाँ जाने कई बात कही, कुछ विशेष होना चाहिए, सामान्य सामाजिक मुलाकात से हटकर, विशेष स्नैक्स पार्टी, कैरम या कोई फिल्म देखें, फिर सोचा देखें, ईश्वर कितना साथ देता है उसकी योजना सफल होने में.  आज सुबह ‘योगानंद जी’ कि पुस्तक में क्रिया योग नाम का अध्याय पढ़ा, लेकिन पूरी तरह समझ में नहीं आया, यूँ भी पढते समय मन एकाग्र नहीं रह पाता आजकल. पहले जितनी सहजता से ईश्वर आराधना कर पाती थी अब प्रयास करना पड़ता है, शायद लोग जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं..ज्यादा जटिल होते जाते हैं. कभी-कभी कोई पुरानी बात याद आने पर जो उसे आज भी झेंप दिला जाती है या हाल ही की कोई बात जिसे याद करके उसे अच्छा नहीं लगता, वह मस्तिष्क को भुलावा देने के लिए वही पुराना तरीका अपनाती है, नाम-स्मरण, जो उसकी सारी उलझनों को दूर करने का साधन बन सकता था. शायद सभी के साथ या बहुतों के साथ ऐसा होता हो. आज नन्हे का गणित का टेस्ट है, बस दो दिन और फिर छुट्टियाँ यानि मस्ती, मेले में घूमना, शुक्र व शनि को वीडियो गेम खेलने अपने मित्र के यहाँ जायेगा, इतवार को तो उसके मनपसंद टीवी कार्यक्रम हैं ही. उसने मन ही मन उसे स्नेह भेजा और उसके पिता को भी. 

Wednesday, April 24, 2013

गणपति बप्पा मोरया



श्रीलंका में ‘पीपुल्स अलाइंस’ को वरीयता, श्रीमती चन्द्रिका कुमार तुंगे नई प्रधान मंत्री चुनी गयी हैं. आज फिर एक अंतराल के बाद उसने डायरी खोली है, जबकि पिछले कई दिनों से मन में यह बात आ रही थी, अपने विचारों को केंद्रित करने का यही एकमात्र साधन है. पिछली रात से ही मस्तिष्क में विचार मंथन चल रहा है, यहाँ तक कि सुबह प्रार्थना के समय भी मन स्थिर नहीं रह पाया. लगा शायद तन के भारीपन के कारण ऐसा हुआ हो, सो दोपहर भोजन में फल ही लिए, एक नाशपाती और एक सेब. जून भी देर से आने वाले थे, अब तन हल्का है ही डायरी उठाते ही मन भी शांत है. कई बार वादा तोड़ चुकी है सो अब नियमित लिखने का कोई वादा नहीं, जबकि उसे मालूम है, यह उसके लिए नितांत आवश्यक है और वर्षों बाद कभी इस साल की कोई बात देखने के लिए डायरी खोलेगी तो खाली पन्ने उसका मुँह तो नहीं चिढ़ायेंगे. पिछले दिनों अपने करीब आने से बचने के लिए ही भागती रही इन पन्नों से. आज शाम को एक मित्र परिवार में बच्चे के पहले जन्मदिन की पार्टी में जाना है, याद आता है उनकी शादी के बाद उन्हें चाय पर बुलाया था. उसने पिस्ते के छिलकों से एक गणपति की आकृति बड़े से लकड़ी के बोर्ड पर बनाई है, उसे सेलोफेन पेपर से ढकना होगा धूल से बचाने के लिए और शिव-पार्वती की उस पेंटिंग को भी फ्रेम करना है जो भाभी ने बनायी था.

  कल शाम पार्टी में किसी दक्षिण भारतीय महिला ने कहा, यू हैव एन आर्टिस्टिक फेस, वर्षों बाद कोई ऐसी बात  सुनकर मन में कई भूली यादें ताजा हो गयीं. वह उसकी परिचिता नहीं थीं, और न ही उसने उनका नाम पूछा. पर घर आकर बाथरूम के शीशे में अपने ही चेहरे को ऐसे देखा जैसे पहली बार देख रही हो. पार्टी में जाने से पहले वे एक और परिचित के यहाँ गए थे, उसने ध्यान दिया अच्छा सामान स्टोर में रखा है और सामान्य सामान बाहर सजाया है. उसका मन हुआ कहे क्या एक दिन उन्हें घर सजाने में मदद कर दे.. ? जून को उसने कहा, वही, उस कम्प्लीमेंट के बारे में, कुछ नहीं बोले...तारीफ करने के मामले में थोड़ा कंजूस हैं, पर प्यार के मामले में नहीं. उसके स्वास्थ्य को लेकर जरा सा पता चल जाये तो इतना ध्यान रखते हैं..नन्हे का आज हिंदी का टेस्ट है, और सोमवार से उसके यूनिट टेस्ट भी हैं, अब उसे परीक्षा से कोई घबराहट नहीं होती, आनंद आता है. कल पार्टी में एक और परिवार मिला, वही जो उस दिन उनके यहाँ आये थे, जून के बीएचयू के प्रोफेसर तथा उनकी बेटी व दामाद. होस्ट अच्छी लग रही थी, बहुत जीवंत है वह, ढेर सारे स्वर्ण आभूषण और भारी बार्डर वाली साड़ी, थकावट का नामोनिशान नहीं था उसके चेहरे पर, शायद नन्हे के पहले जन्मदिन पर नूना भी इतनी ही खुश थी, किसी ने कहा भी था, बेटे से ज्यादा खुश माँ है. गमले में गुलाब का एक सुंदर फूल खिला है उसने सोचा, जून को दिखाएगी.

  सुबह के सवा दस हुए हैं, शनिवार को इस वक्त वह टीवी के सामने होती हैं, ‘जमीन-आसमान’ के पात्रों के साथ, लेकिन आज बिजली चली जाने के कारण पसीने में तर हवा के झोंके की प्रतीक्षा कर रही है. सचमुच अभी-अभी हवा का एक हल्का सा झोंका उसके चेहरे को सहला गया है. ‘धर्मयुग’ में उस लम्बी कहानी का अंत अच्छा नहीं हुआ, बुरे अंत भाते न हों, लेकिन होते हैं, वेद राही की कहानी में बांधे रखने की क्षमता थी. कल बहुत दिनों बाद वे एक परिचित के यहाँ गए, जून ने कहा, लुकिंग गुड, गले में नेकलेस पहन लेने से कितना अंतर आ जाता है व्यक्तित्व में, उसे अब बढ़ती उम्र के साथ इन बातों का ख्याल ज्यादा आ रहा है, शायद यही उचित भी हो. कल उन लोगों से भगवद् गीता का एक कैसेट भी लायी, अभी ध्यान से बैठकर नहीं सुना है, वाचक की आवाज उतनी मधुर नहीं है, पर उसे आवाज से क्या लेना, उनकी बात पर ध्यान देना होगा. सुबह-सुबह एक स्वप्न देखा, वे लोग घर गए हैं, राखी का दिन है पर वह राखी लाना ही भूल गयी है, सभी भाई बैठे हैं, इतने वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि शायद उसकी राखी वक्त पर नहीं मिलेगी. इसी कारण यह स्वप्न आया होगा. कल शाम उन्होंने कैरम खेला. खुली हवा में साइकलिंग की, अब उसे आसान लगती है, अभ्यास न होने के कारण ही पहले उसे परेशानी होती थी.  




बृहस्पति ग्रह का धूमकेतु


  

 एक माह का अंतराल, कारण एकाध नहीं कई गिनाये जा सकते हैं, लेकिन आज इसकी सुध ली है तो एक सखी के फोन के कारण. सुबह-सुबह उसने पूछा, दादा साहब फाल्के अवार्ड इस वर्ष किसे मिला है, वह नहीं बता सकी. पिछले कई दिनों, घर से आने से पहले व बाद में भी लिखना-पढ़ना छूट ही गया था. डायरी लिखने से कुछ विशेष समाचार भी नोट हो जाते हैं,   अब जैसे कि विश्वकप फुटबाल में ब्राजील, इटली, बुल्गारिया और स्वीडन की टीमें सेमी फाइनल में पहुंची हैं. पिछले दिनों कई अच्छी बातें हुईं. नन्हे का जन्मदिन उन्होंने अच्छी तरह से मनाया, पिताजी की चिट्ठी आई थी, उनके मकान में किरायेदार रहने आ गए हैं., यानि वह मकान अब घर बन गया है. आज दोनों घरों पर पत्र भी लिखने हैं. मौसम आजकल बेहद गर्म है, काफी दिनों से वर्षा नहीं हुई है.

 आज सुबह जून को विदा करने जब बाहर गयी तो प्रकृति की सुंदरता को देखकर मन विभोर हो उठा. ग़ालिब के शेर को गुनगुनाते हुए, बेला के फूलों की खुशबु समोते हुए...

पानी में भीगा ऐसे मन
अंतर में एक नदी उग आई
हरी दूब के कोनों को छूकर पोरों में
हरियाली, नदी किनारे छायी

 बृहस्पति ग्रह के शूमेकर धूमकेतु के टुकड़ों के टकराने की घटना सदियों बाद हुई है, अगर धरती से भी कोई धूमकेतु टकराए तो प्रलय ही आयेगी न.

 कल लिखना शुरू ही किया था कि जून आ गए और वे हास्पिटल गए. उसकी दायीं आँख में कभी-कभी पानी आता है, सुबह से गले में चुभन है. यह सब उसकी गलत सोचों का नतीजा  है, आलस्य और मद का परिणाम. हर समय श्रम करने की अपनी आदत को छोडकर विश्राम करने की आदत का परिणाम. नन्हे को छोड़ने गयी तो तो एक अस्थमा का बूढा मरीज कुछ सहायता मांगने आया, उसने मना कर दिया, अगर कुछ दे ही देती तो क्या फर्क पड़ जाता, बल्कि मन को बेचैनी न होती. पर जून को शायद अच्छा नहीं लगता, लेकिन उसके समझाने पर वह भी सहमत हो जाते संभवतः. डेक पर यह गजल आ रही है-

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

उस अकेले व्यक्ति के लिए कितनी सही हैं ये लाइनें. कई दिनों से पुरानी पड़ोसिन से नहीं मिली, शायद आज ही वे लोग आयें. दीदी का पत्र भी कई दिनों से नहीं आया है, यूँ तो किसी का भी नहीं आया है, सारे रिश्ते मुंह देखे के ही होते हैं, लेकिन यह कोई अफ़सोस करने की बात नहीं है, रिश्ते हैं, रिश्ते होते हैं, यह भी क्या कम है? नन्हा बड़ा होगा तो उसके बच्चों को बुआ, चाचा इन रिश्तों का अर्थ भी नहीं मालूम हो पायेगा शायद...दुनिया सिमटती जा रही है और फैलती भी जा रही है एक साथ ही.

 अभी-अभी जून के लाए एक उपन्यास पर नजर पड़ी, कुछ पल पूर्व पढ़ी ‘स्वामी योगानंद’ की आत्मकथा के अंश का असर हवा हो गया. मन इतना अस्थिर क्यों है, सांसारिक विषयों में कितनी आसानी से रमता है, भगवद विषयों में उतनी ही कठिनाई से. उसने स्वयं ही उसे छूट दी हुई है, कई बहाने हैं इसके लिए कि वे सब बातें भी जीवन में आवश्यक हैं जिन्हें हम सांसारिक कहते हैं. कल धर्मयुग में ‘साधु वासवानी’ के शिष्य ‘जे पी वासवानी’ का प्रवचन दुबारा पढ़ा था, उन्होंने भी कहा, ईश्वर सिर्फ कल्पना जगत की वस्तु नहीं है, उसे हर क्षण अपने कार्य कलाप में शामिल करना होगा. उन सभी बातों से दूर रहना होगा जो हमें ईश्वर से दूर ले जाती हैं. कल शाम उसकी असमिया सखी आई, वे काफी देर तक बातें करते रहे, समय का भान ही नहीं रहा. सुबह एक सखी ने फोन करके पूछा, रक्षा बंधन कब है, मंझले भाई ने खत का जवाब नहीं दिया, न ही बड़े व छोटे भाई का ही खत आया है, जवाब आने पर ही राखी भेजेगी ऐसा दिमाग कहता है, पर दिमाग दिल के आगे हार ही जायेगा... डायरी लिखते समय सभी की यादें घेर लेती हैं, अपने करीब न जा पाए क्या इसलिए ? छोटी बहन का पत्र अच्छा सा पत्र आया है, एक महीने पूर्व का लिखा, शायद लिखकर पोस्ट करना भूल गयी होगी.
जगजीत सिंह की यह गजल कितनी अच्छी है-
धूप में निकलो, घटाओं में नहा कर देखो
जिंदगी क्या है किताबों को हटकर देखो




Monday, April 22, 2013

आंधी और तूफान



आज वे बाजार गए थे, उसने सोफा बैक के लिए प्रिंटेड कपड़ा खरीदा, जून को अवश्य पसंद आयेगा, सीनरी बनाने के लिए आधा मीटर दसूती कपड़ा भी. उसने चप्पल भी खरीदी, पर जून के बिना शॉपिंग करने में आनंद नहीं आता, यह उसका वहम ही था कि आयेगा. कल रात की बात याद आते ही सिहरन होती है, वे सोये ही थे कि आंधी-पानी शुरू हो गया, बेर के बराबर आकार के ओले और पानी की बौछारें खिड़की से उनके बिस्तर पर आ गयीं, बड़ी मुश्किल से खिड़कियाँ बंद कीं, फिर बिजली भी चली गयी जो आज दोपहर को आयी. देर तक वे सो नहीं पाए, सुबह के वक्त ही नींद गहरी आई.

  वही रात का समय है, नन्हा भी आज जग रहा है, उसके जन्मदिन के लिए कार्ड बना रहा है, वही  चिड़ियों वाला. कल से उसे बहुत आइसक्रीम खाने को मिल रही है. माँ दूध व ब्रेड की आइसक्रीम बहुत अच्छी बनाती हैं. उसने सोचा जून के आने पर उसे भी खिलाएगी. यूँ लगता है जैसे लिखते समय वह जैसे उससे बातें कर रही हो. अब उसके आने में ज्यादा दिन नहीं हैं. आज उसने मेहमानों की लिस्ट बनाई और उन वस्तुओं की भी जो उसे जून के लिए खरीद कर रखनी हैं.

  आज उसका फोन आया, सब जरूरी बातों के बाद उसने कहा..., पता नहीं क्यों वह नहीं कह पाई, शायद इतने लोग वहाँ थे, पर उस दिन तो केवल माँ, व नन्हा थे, पिता दूसरे कमरे में थे, तब भी नहीं कह पायी थी, उसने मन में यही सोचा कि वह स्वयं ही समझ लें....समझ ही गए होंगे. आज उसका जन्मदिन अच्छा रहा, जून की कमी तो थी ही, पर इतने वर्षों बाद परिवार वालों के साथ एक यादगार अनुभव बन गया. सुबह नींद जल्दी खुल गयी थी, सवा पांच ही बजे थे, मकान पर गयी, बाहर आंगन में वहीं पोर्च में रखा बुरादा इकट्ठा किया, फिर दोपहर से पहले ही नन्हा और पिताजी के साथ दुबारा गयी, लोहे के दोनों गेट साफ किये, बुरादा फेंका, धुलाई की. आज दरवाजों पर पीली मिट्टी का पेंट हो गया, सुंदर लग रहे हैं दरवाजे.

 मंझला भाई अपने परिवार के साथ आ गया है. घर में चहल-पहल हो गयी है, सुबह व्यस्तता में बीती, दोपहर वीडियो पर अंजाम देखी और रात होते-होते उसकी आँखें दुखनी शुरू हो गयी थीं, चुभन शाम से होने लगी थी पर उसने सोचा, शायद लगातार फिल्म देखने के कारण ऐसा हुआ है, पर लगता है कल सुबह ही डॉ के पास जाना होगा. मकान पर पेंटिंग का काम पूरा हो गया है. सैनिटरी का सामान आ गया है, फिटर ने चेक भी कर लिया है.

  आज दीदी का जन्मदिन है, उन सबने उन्हें बहुत याद किया. उसकी आँखें अभी तक ठीक नहीं हुई हैं, सो लिखने का क्रम भी टूटने लगा है, यूँ भी आजकल मस्तिष्क हजार बातों से भरा रहता है कि...यह उथल-पुथल जून के आने पर ही खत्म होगी.

  आज पूरे आठवें दिन सुबह उठने पर उसकी आँखें बिना धोए खुल गयीं. कल रात जून का फोन आया था, उनकी ट्रेन बारह घंटे लेट थी, उसने प्रार्थना की कि अपने माँ –पिता को लेकर बनारस से यहाँ का उनका सफर आराम से बीते, बिना किसी परेशानी के. नन्हा कितने  आराम से सो रहा है, उसे गर्मी, मच्छर कोई भी नहीं जगा सका. अभी सुबह के सवा छह ही हुए हैं, यहाँ बरामदे में कितनी ठंडी हवा आर ही है. परसों से वे अपने घर के बरामदे में बैठेगें, कितनी हवा और कितनी धूप आती है यह तो वहाँ रहने से ही पता चलेगा. फोन की घंटी बज रही है, शायद जून हों, जब भी फ़ोन आता है उसे ऐसा ही लगता है.

किसी पत्रिका में उसने ये पंक्तियाँ पढीं, शायर का नाम नहीं पता, अच्छी लगीं-

पैदा न हो जमीं से नया आसमां कोई
दिल काँपता  है आप की रफ्तार देखकर

भरे बाजार में चलने से पहले सोच लो आकर
न कोई हाथ थामेगा न कोई रास्ता देगा

ऐसा नहीं कि खुश्क मिले हर जगह जमीं
प्यासे जो चल पड़े हैं तो दरिया भी आयेगा

....और ये पंक्तियाँ छोटी बहन के खत से जो उसने छोटे भाई को लिखा था-

तुम्हें सपनों की प्रतीक्षा है
मुझे नींद की
अब तो
मैं जानती हूँ सपनों की असलियत
आँखों से घुसकर वे
आने वाले कल को
अतीत में रख आते हैं
बासी बनाते हैं आज का दिन
बीतने के पहले ही...








Saturday, April 20, 2013

मिस यूनिवर्स - सुष्मिता सेन


   

 आज न ही कोई खत आया न फोन, पता नहीं आजकल पत्र इतनी देर से क्यों मिलते हैं, जून का पिछला पत्र पूरे सत्रह दिनों के बाद उसे मिला था. सुबह साढ़े पांच बजे ही नींद खुल गयी, अमूमन उस वक्त शीतल हवा बहती है पर आज हवा ने छुट्टी ली थी. छत पर व्यायाम करने गयी, कमर का घेरा बढ़ता ही जा रहा है, घी लगे फुल्के और ताजा मक्खन लगाकर माँ परांठे खिलाती हैं. उसने सोचा जून भी अपने भोजन का ख्याल रखते होंगे. आज पूरे घर की बाहरी दीवारों की सफेदी हो गयी है, कल से अंदर की होगी. शाम को आंधी-तूफान के कारण बिजली गुल हो गयी थी, काले बादलों में बिजली इतनी तेज चमक रही थी कि शाम के वक्त ऐसा लगने लगा जैसे सूरज चमकने लगा हो. फिर जैसे-जैसे शाम गहराती गयी, अँधेरा बढ़ता गया, अंधेरे में तकिये में मुंह छिपाए नन्हा जैसे कुछ देख रहा था, पापा को याद कर रहा था. उसे रोज नई कहानी सुनानी होती है, नानाजी के साथ जाकर ढेर सारी कॉमिक्स भी लाया है पास में ही किसी दुकान से जो पच्चीस पैसे में एक दिन पढ़ने के लिए देते हैं. कभी-कभी अकेले उसे संभालना मुश्किल हो जाता है, सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स बन गयी है, कोई भारतीय जब किसी क्षेत्र में जब नाम पाता है तो कितनी खुशी होती है न.

  आज का इतवार भी तरबूज के नाम था, भाई परिवार सहित यहीं आ गया था. आज घिसाई वाला आया था, पिता को उसकी बातों पर, उसके टालमटोल पर आज क्रोध आया गया, पर बाद में वे बेहद परेशान थे. आज धूप तेज है, उसने मन ही मन जून से कहा, तुम्हारे पास बादल हैं और मेरे पास धूप है.

  कल दोपहर को जून का खत मिला, मन फूल की मानिंद हल्का था, सुबह ही माँ किसी सम्बन्धी के यहाँ दसवें पर चली गयीं थीं. शाम को लौटीं तो बुआ जी उनके साथ थीं, वे छोटे-छोटे रसगुल्ले लायीं थीं. ज्यादा मुखर होना हमेशा पछतावे का कारण बनता है, उसे स्वयं पर संयम रखना चाहिए, जून भी यही चाहते होंगे उसने सोचा. आज सुबह एक बार फोन की घंटी बजी, कहीं दूर से कोई आवाज आ रही थी, बेहद धीमी, बात नहीं हो सकी, लाइन नहीं मिल रही थी शायद. उसने सोचा क्या जून ही थे उस पार. सुबह उसने पिता के कहे अनुसार हिसाब की कापी से मुख्य मद्दों पर खर्च का जोड़ किया. आज एक खुशी की बात और हुई, फर्श की घिसाई पूरी हो गयी, कल से वायरिंग का काम भी शुरू हो जायेगा. शाम को माँ की एक परिचिता आई थीं, नूना को साड़ी पहने देखकर कहने लगीं, साड़ी उस पर अच्छी लगती है. वह धीरे-धीरे बोलती हैं, चलती भी धीरे-धीरे हैं. शाम को नन्हे और भतीजी ने कवितायें सुनायीं, सबको बहुत आनंद आया.




Friday, April 19, 2013

बेल का शर्बत



आज बिजली ने फिर बहुत परेशान किया, पूरी दोपहर.. फिर शाम को भी गायब रही, नौ बजे के बाद आई. गर्मी भी बेहद थी, पसीना बहा देने वाली गर्मी. दोपहर को पाकिस्तानी लेखक ‘इब्ने इंशा’ की आखिरी किताब के कुछ पन्ने पढ़े. तंज बड़ा चुभता हुआ है इस किताब में. उसने जून को तीन कवितायें भेजने का वायदा किया है, कभी ऐसा होगा कि एक ही पल में पंक्तियाँ फूटतीं जाएँगी....मन उभर कर पन्ने पर अंकित हो जायेगा. शाम को वे भाई-भाभी के यहाँ गए, भाई के स्वभाव में गम्भीरता अभी तक नहीं आई है, बिलकुल बच्चों का सा स्वभाव है उसका. उन्होंने बर्फ वाला बेल का शर्बत पिलाया, जो उसे पसंद नहीं आ रहा था,पर वे दोनों इतनी तारीफ कर रहे थे कि उसने भी हाँ में हाँ मिला दी. आने के बाद से ही उसका गला शिकायत करने लगा था. साढ़े दस हो गए हैं, नन्हा सो गया है, दोपहर को सो नहीं पाया ठीक से, उसके दांत में छोटा सा काला पदार्थ फंस गया  था, उसका पूरा ध्यान नहीं रख पाती, वह कभी-कभी. छोटी-छोटी बात पर टोक देती है, कल से इस बात का ध्यान रखेगी. पापा के प्यार से दूर वह उसके पास ही तो रह रहा है, दोनों का प्रेम देना चाहिए न. उसके लिए उससे बढ़कर कुछ है ?

  आज जून का फोन आया, पर दो-तीन बार कट जाने के बाद, बात पूरी न हो सकने के कारण मन कुछ उखड़ा-उखड़ा सा रहा सुबह. फोन पर वह कुछ उदास भी लगे, शायद उसके खत में मकान की परेशानियों की बात पढ़कर, लेकिन अपने और उनके प्रति ईमानदार तो रहना ही चाहिए. उसने सोचा, वे दोनों कितने भी चिंतित हो लें, बातों को दिल से लगा लें. होना तो वही है जो होना है, जहां तक हो सके अपने आपको इन सारी दुनियावी बातों से ऊपर ही रखना चाहिए. उसने सोचा, वैसे भी जून का दिल बहुत बड़ा है, वह सदा की तरह उसकी भूल को भुला देंगे. दोपहर को भाभी, भतीजी आ गए सो घर में हलचल रही. उसने तुलसी-अदरक की चाय पीकर गले को ठीक किया.

 कल से घर के बाहर की पुताई शुरू हो जायेगी. कल शाम को वे अपने घर की छत पर गए, छत पर पड़ी मार्बल चिप्स को बोरी में भरकर रखा, पिता भी वहीं थे. नन्हा भी, शायद उसी धूल से उसकी आँखें फिर हल्की लाल हो गयी हैं. माँ-पिता उनके मकान के लिए कितना श्रम कर रहे हैं. वे सदा उनका भला चाहते हैं, किसी का बुरा न चाहने वाले सीधे-सादे स्वभाव के... सब्जी वाले ने थोड़ी सब्जी ज्यादा दे दी तो परेशान हो जाते हैं कि कल जाकर उसे पैसे  दे देंगे. सुबह पॉलिश लाए तो सोच रहे थे कि गलती से कहीं दुकानदार ने कम पैसे तो नहीं ले लिए. उस दिन अखबार वाले को चालीस पैसे देकर ही माने. मनोरमा में सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कवितायें पढीं.







Thursday, April 18, 2013

मक्खन वाला केक



...और आज जून का फोन आ ही गया, सुबह-सुबह ही...उसने फोन पर इतनी सारी बातें कीं...इतनी अच्छी बातें और अंत में सकुचाते हुए..कहना, उससे भी कहा, और कुछ नहीं कहना है, वह चाहते हुए भी नहीं कह पायी...जबकि उसके मन का हर अणु उस वक्त वही कहना चाह रहा था जो वह सुनना चाहते थे. उसे कल रात लिखा पत्र भी पोस्ट कर दिया. आज पहली बार शाम को वह बनता हुआ मकान देखने नहीं गयी, सुबह दस बजे गयी थी, बढ़ई आया था, उसका काफी काम हो गया है, दरवाजे लगाने ही बाकी हैं, और खिड़कियों के पल्ले फिर से खोल कर लगाने हैं. ‘जुरासिक पार्क’ फिल्म देखी, अच्छी लगी, आश्चर्यजनकरूप से रोमांचक फिल्म है, अपने आप में अनूठी. उसके सूट सिल कर आ गए हैं, दुपट्टे का रंग मैच नहीं कर  रहा, भाई को ही कहना पड़ेगा.

  इतवार खरबूजे और तरबूज के साथ बीता. तरबूज बेहद मीठा था. दोपहर को इडली बनाई थी माँ ने. शाम को भाभी के साथ उन आंटी को देखने गयी, सिर पर पट्टियाँ बंधी थीं, न ही कुछ बोल पा रही थीं, न ही अपने आप उठ पा रही थीं. उनक बहू-बेटा व बहन भी आ गये हैं. शाम को चाचा आए थे, चचेरी बुआ के बड़े लडके की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी है, यहाँ आने के बाद यह चौथी खबर सुनी है ऐसी, उसने सोचा, मई का महीना क्या सिर्फ दुखद समाचार ही लाएगा..

  आज का दिन भी अच्छा रहा, शांत जल प्रवाह की तरह, यहाँ रहना अच्छा लग रहा है, बंधी-बंधाई दिनचर्या है, लेकिन वे अभ्यस्त हो गए हैं, मच्छर भी अब उतने नहीं हैं. घर में काम चल रहा है, कल रात गर्मी अपेक्षाकृत अधिक थी, आज कूलर चलाया है. शाम को भाई की बिटिया आई थी, नन्हा और वह खेलते रहे, भाभी ने केक बनाने की एक विधि बतायी, बहुत अच्छा बना था,- ५० ग्राम मैदा, १२५ ग्राम चीनी, एक कटोरी मक्खन, ५० ग्राम ब्रेड क्रम्ब, १ चम्मच बेकिंग पाउडर व खाने का सोडा और थोड़ा सा दूध. उसने कहा है, नूना के जन्मदिन पर बनाकर लाएगी. मंझला भाई भी परिवार सहित अगले माह आयेगा. दस जून को वे अपने नए घर में गृह प्रवेश की पूजा करेंगे. चार-पांच परिवार यहाँ आस-पास के, और आठ परिवार उनके अपने संबंधीजनों के, पहले चाय-नाश्ता फिर दोपहर का भोजन. उसने सोचा एक सप्ताह पूर्व से ही इसके लिए तैयारी करनी होगी.  






Wednesday, April 17, 2013

जुरासिक पार्क



आज फोन ठीक हो गया, कल रात पिता भी वापस आ गए. बिजली आज दिन भर रही, घिसाई का काम चलता रहा, दस-बारह दिन में पूरा हो जायेगा ऐसी उम्मीद है. बैठक का फर्श साफ निकल आया है, सुंदर लग रहा है. पहली कटाई है यह, एक बार फिर करेंगे. बढाई का काम हो जाये तो राहत मिले. साढ़े दस हुए हैं, उसने सोचा जून शायद सो चुके होंगे, वह रोज लगभग इसी वक्त लिखती है. दिन भर के काम व्यवस्थित हो चुके हैं. सुबह उठकर नौ बजे तक व्यायाम, स्नान, नाश्ता आदि, फिर नन्हे की पढ़ाई, मकान का चक्कर, अखबार पढ़ना. उसके बाद फलाहार जिसे माँ फ्रूट टाइम कहती हैं. क्रोशिये पर कुछ देर काम, फिर दोपहर का भोजन, एक झपकी. उठकर फिर कुछ देर कढ़ाई आदि, धूप थोड़ा कम होने पर मकान का एक और चक्कर, शाम को घूमना. रात का खाना, कुछ पढ़ना फिर टीवी. आज उसने एक नया डिजाइन सीखा है क्रोशिये का. काफी बन गया है, इसके बाद यू पिन से बनाएगी. हवा में ठंडक है, कूलर चलाने की जरूरत नहीं है. वहाँ असम में तो वर्षा हो रही होगी, उसने सोचा.

  उसे जून के फोन की प्रतीक्षा थी, जो नहीं आया, शायद वे मोरान में हों, उनका तीसरा पत्र भी अभी तक नहीं मिला है, आज उन्हें घर से आए पूरे उन्नीस दिन हो गए हैं. आज गर्मी ज्यादा थी दिन में. सुबह छह बजे से ही बिजली गायब थी. शाम को वह सामने वाले घर में गयी, नन्हे की उम्र का एक बच्चा रहता है वहाँ, उसकी दीदी ने गाढ़ा दूध वाला रूह अफजा पिला दिया, उसका जी मिचलाने लगा था. महरी आज दूसरे दिन भी नहीं आयी. शाम को माँ की परिचित एक लड़की मिलने आयी थी, उसे भी सिलाई-कढ़ाई का बहुत शौक है, परसों वह माँ व भाभी के साथ उसके यहाँ जायेगी. आज दोपहर बाद उसने पंजाबी दीदी को एक पत्र लिखा, सोच रही है, एक खत बुआ जी को लिखेगी, एक ससुराल में, एक बड़ी ननद को. एक खत जून को भी लिखना होगा, ऐसा खत जिसे पढकर वह जवाब दिए बिना न रह सके. आज हेमामालिनी के संपादन में छपी पत्रिका ‘मेरी सहेली’ पढ़ी, निहायत ही बचकाना पत्रिका है फ़िल्मी स्टाइल. समय वही है साढ़े दस, शायद स्वप्न में जून को देखे.

  आज शाम को माँ की परिचित एक प्रौढ़ महिला का यहीं कालोनी की सड़क पर टहलते समय स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया. उन्हें सिर में काफी चोट आयी है. वे लोग शाम को ही उनके घर गए, माँ तो बहुत देर बाद आयीं, लेकिन तब तक वह अस्पताल से लौटी नहीं थी. वक्त कैसे-कैसे रंग दिखाता है, यहाँ की खुली सड़कों पर जहां कोई ट्रैफिक नहीं, कोई भीड़भाड़ नहीं, यूँ ही खड़े-खड़े स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया. आज सुबह पिता ने उसे एक पत्र दिखाया जिसमें खर्चे का ब्यौरा था, जितना अनुमान था उससे कहीं ज्यादा, उसने कहा खत भेजने की जरूरत नहीं है, वे आ ही रहे हैं. शायद उन्हें अच्छा न लगा हो, पर जाहिर नहीं होने दिया. उसे ऐसा कहना चाहिए था या नहीं, पर इतना जरूर है, कि जून परेशान हो जाते, एकाएक इतना ज्यादा बिल देखकर, पता तो चलना ही है, उसने सोचा, पर अभी वह वहाँ अकेले हैं. आज घर में काफी काम हुआ. भाई ने कहा है कल वह उन्हें “जुरासिक पार्क” फिल्म दिखाने ले जायेगा.