Wednesday, March 31, 2021

रात की रानी

वर्ष का अंतिम महीना शुरू हो गया है। दिसंबर का पहला दिन पर बंगलूरू में ठंड का कुछ पता नहीं चल रहा है, यहाँ मौसम सुहावना है। आज दोपहर को पहले सोनू आयी, फिर नन्हा। वह दो दिनों से घर से बाहर था, अपने मित्र की बैचलर पार्टी में गया था। आजकल यह नयी  प्रथा चली है। दोपहर को सबने मिलकर वे फ़ोटो चुने जो फैमिली ट्री में लगाने वाले हैं। नन्हे के विवाह में यह उपहार मिला था, बड़े से पेड़ में कई फ्रेम हैं जिसमें पूरे परिवार के फ़ोटो लगाए ज्या सकते हैं। सीढ़ियों के साथ वाली दीवार पर वे इसे लगाएंगे। 


शाम को वे टहलने गए, रात की रानी के फूल अभी खिले नहीं थे. मुख्य सड़क के डिवाइडर पर काफी दूर तक लगे हैं इसके पौधे, जो फूलों से लदे हुए हैं। देर शाम को या बहुत भोर में उनकी खुशबू दूर से ही आने लगती है। वापस आकर भोजन बनाया, बच्चों ने कहा, उन्हें अभी भूख नहीं है, सो भोजन पैक करके दिया। एक नया स्टार्ट अप शुरू हुआ है यहाँ,'बाउंस' जिसमें किराये पर स्कूटर मिलते हैं तथा उन्हें पार्क करके किसी भी स्थान पर रख सकते हैं। वे कार से उन्हें उस स्थान पर ले गए जहाँ स्कूटर खड़ा था, पर उसपर कोई हेलमेट नहीं था। यहाँ बिना हेलमेट के द्विपहिया वाहन चलना जुर्म है, सो 'उबर' से टैक्सी बुलाई और उन्हें छोड़कर वे वापस आ गए । सुबह सोलर पैनल लगाने का काम आरंभ हुआ। कल सुबह दीदी-जीजा जी का शुभ प्रभात का संदेश आया, जिसे देखकर  उनके दिल खिल गए। दिल से दिल का रिश्ता इतना गहरा होता है कि ऊपर की थोड़ी सी नाराजगी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। शाम को पिताजी का फोन भी आया, वर्षों से वे हर इतवार को उनसे बात करते आ रहे हैं, सुबह व्यस्तता के कारण नहीं कर पाए थे। पिताजी कितना भी कहें कि मोह-माया से दूर हैं, पर उनकी आवाज से ऐसा नहीं लग रहा था। ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे व स्वास्थ्य ठीक रहे उनका। रिश्तों के न दिखने वाले धागे बहुत मजबूत होते हैं। इनका सम्मान करना होगा। सभी परिवारजनों के प्रति मन में जब कभी भी अतीत में कोई शिकायत या तल्खी पनपी हो, उसके लिए उसने ईश्वर से तथा उन सभी की शुद्धात्मा से हृदय से क्षमा मांगी। परमात्मा उनके हर भाव, हर विचार पर नजर रखे हुए हैं। उन्हें उनके हर कर्म का हिसाब चुकता करना ही होता है। उसका मन शुद्ध रहे, उसमें कोई कपट न हो , किसी के प्रति कोई संदेह न उठे। क्योंकि उसका हर भाव अंतत: उसके प्रति ही होगा। हर भाव की जिम्मेदारी स्वयं को ही लेनी होगी, क्योंकी यहाँ  सिवाय एक के दूसरा है ही नहीं ! एक ही चेतना भिन्न -भिन्न रूपों में स्वयं को प्रकट कर रही है !


आज का दिन मिल-जुला रहा, हल्की बूँदाबाँदी में छाता लेकर वे टहलने गए। जून डाक्टर से मिलने गए तब तक उसने सफाई करवायी। उनकी नैनी बेहद हँसमुख है और दिल लगाकर काम करती है, इसी तरह दूसरी शाम वाली नैनी भी ठीकठाक है। दोपहर को ब्लॉग पर लिखा पर पूरा नहीं कर पाई। बीच में ही मन को वर्तमान में रखने के लिए एक संदेश देना पड़ा। एक कविता जैसी बन गई, कवि की स्वयं को दी गयी सीख औरों के भी काम आ जाती है। दो सखियों ने कमेन्ट लिखा है। मन की तो आदत है गड़े मुर्दे उखाड़ने की, वह एक छाया मात्र ही तो है। अहंकार भी तो छाया है, वे जो वास्तव में हैं, वहाँ न कोई मित्र है न शत्रु, वहाँ एक के सिवाय दूजा कोई भी नहीं है। उन्हें आत्मा के उस सिंहासन पर विराजमान होना है। यहाँ पर घर के बने पकवान आदि बेचने के लिए एक ग्रुप बना हुआ है, कल कोई पड्डू बेच रहा है। शनिवार को भी एक के यहाँ से कुछ खाद्य पदार्थ लाए थे, उन महिला से बात हुई, एक ही पुत्र है जो इंजीनियरिंग कर रहा है। योग कक्षा में कुछ उपकरणों की सहायता वे नए-नए आसन सीख रहे हैं। अकार, उकार तथा मकार का उच्चारण किया शवासन में लेटकर, बहुत अच्छा अनुभव था। आज फिटबिट में देखा दिन भर में अठारह हजार कदम हो गए ।    


आज भतीजी का जन्मदिन है, बड़े भैया की बिटिया का, उसने  कविता लिखी, सभी को भेजी, पर भतीजी के सिवाय किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सब जैसे बहुत व्यस्त हो गए हैं, भाव की सरिता नहीं बहती मन में या बहने ही नहीं देते। कल शाम जून भी थोड़ा नाराज हुए, पर सुबह गुरु माँ को सुना तब उनका मन शांत हुआ। सुबह नाश्ते के बाद वे पीछे गाँव के मंदिर को देखने गए, पर वह सुबह छह बजे खुलता है और शाम को भी उसी समय। आते समय जंगली फूलों की तस्वीरें उतारीं। 


उसने कालेज के दिनों की डायरी के पन्नों पर तीन महापुरुषों के उनके द्वारा लिखे सन्देश पढ़े, जो उन्हीं से मिलकर उसने तीन वर्षों में प्राप्त किये थे. उसे याद है पहली बार छोटे भाई के साथ बनारस में राजघाट में वह दादा धर्माधिकारी से मिलने गयी थी. कुछ देर बातचीत के बाद उन्होंने लिखा था- 


“बने बनाये राजमार्ग छोड़ो, नयी पगडंडियाँ बनाओ, यह तरुणाई की विशेषता है." 


मिर्जापुर में एक सन्त पथिक जी आये थे, जो उनके घर के निकट ही ठहरे थे. उन्होंने उसकी डायरी में लिखा-

“सेवा की पूर्णता तथा दोषों के त्याग की पूर्णता और निष्काम भाव से प्रेम की पूर्णता में ही जीवन की पूर्णता है.” 


सहारनपुर में स्वामी शिवानन्द के एक शिष्य योग सिखाने आये थे, उन्होंने भी एक सुंदर संदेश लिखकर दिया था- 

“ अपने ‘स्व’ को जानो. स्त्री का भूषण लज्जा, शील और पवित्रता है, उससे पृथक न हों ! अपने आंतरिक सौंदर्य को प्रस्फुटित करो. वह सौंदर्य कभी नहीं मुरझाये इसके लिए जाग्रत रहना. सदा ‘स्व’ में स्थित रहें. ईश्वर की अहैतुकी कृपा का वरदान आपको आंतरिक शांति, आनंद एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष प्रदान करे. यही प्रार्थना है.”


उस समय इन शब्दों का क्या अर्थ उसने ग्रहण किया होगा अब याद नहीं है, लेकिन आज इनकी महिमा पूर्ण रूप से स्पष्ट हो रही है. 

  

 

Wednesday, March 24, 2021

रागी की रोटी

 

आज का दिन भी सद्गुरू की वाणी के साथ प्रारंभ हुआ। गूढ ज्ञान को वह सरल शब्दों में समझाते हैं, बिल्कुल अपना मानकर। गुरू कितना महान होता है, यह कोई-कोई ही जान सकता है। शाम को वे आश्रम गए, सत्संग में भाग लिया। वहाँ भीड़ बहुत थी पर कई लोग इधर-उधर टहल रहे थे, कुछ खरीदारी कर रहे थे। ज्ञान के ग्राहक सब नहीं हो सकते, प्रेम के तो और भी कम ! जीवन का भेद जो जान लेता है वही गुरू की महिमा को जान सकता है। गुरू जीवन से परिचय कराता है ! परमात्मा ही जीवन है और परमात्मा ही गुरु के रूप में प्रकट होता है। उसने गुरू को कोटि-कोटि नमन किया ! रात्रि भोजन भी वहीं अन्नपूर्णा में ग्रहण किया, शुद्ध, सात्विक भोजन ! सुबह भांजा आ गया था, वह भी साथ गया। रास्ते में पौधों के लिए खाद व कुछ फल खरीदे। नन्हे ने फूलों की पौध लगाने के लिए एक किट भिजवाया, बीज डाल दिए हैं, आठ-दस दिनों में निकल आएंगे। बागवानी का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। आज पड़ोसिन ने भी एक पौधा दिया। दोपहर को एक कविता जैसा कुछ लिखा। अपने आप ही मात्रा आदि ठीक ठाक हो गई। एक अन्य लेखिका की कविता पढ़ी।  


आज पुन: आश्रम गए। वहाँ प्रवेश करते ही मन हल्का हो जाता है। गुरूजी नहीं थे आज, संभवत: अगली बार मिलें। सत्संग चल रहा था। एक स्वामी जी भजन गा रहे थे, सभी तन्मय होकर साथ दे रहे थे। कुछ विदेशी महिलाओं ने नृत्य करना भी आरंभ कर दिया। उसने दो भजनों का वीडियो बनाया, कल व्हाट्सएप पर योग साधिकाओं के ग्रुप में भेजेगी। आज लौटते समय इडली बनाने के लिए बड़ा कुकर खरीदा। आश्रम जाने से पूर्व योग कक्षा में कुछ नए आसन किए। एक घंटा कैसा बीत जाता है पता ही नहीं चलता। कल योग कक्षा में त्राटक ध्यान  किया, अच्छा लगा। उनके साथ एक और महिला आती हैं, वह भी पूरे मनोयोग से आसन करती हैं। आज घर बैठे ही साइकिल की सर्विसिंग करने वाला मकैनिक आ गया। जीवन की धारा मंथर गति से बह रही है। 


पिछले दो दिन रात को सोने में देर हुई, सो लिखने का समय नहीं मिला। आजकल सोने से पूर्व ही डायरी खोलती है वह। दिन भर का लेखा-जोखा लेकर मन जैसे खुल जाता है, खाली हो जाता है और रात्रि की नींद पहले की सी गहरी और विश्राम पूर्ण होती है। यह तमस की अधिकता है या मन का विश्राम में टिकने की कला सीख लेना, जो हो, सभी कुछ स्वीकार करना है। कल नन्हे व सोनू  के लिए साई-भाजी, ढोकला और खीर बनाकर ले गए थे, गुलदाउदी व गुलाब के दो पौधे भी। उनके विवाह की दूसरी सालगिरह थी। अपने काम में दोनों इतने व्यस्त हैं कि उन्हें भविष्य के बारे में या अपने बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता, परिवार बढ़ाने की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वक्त को जो मंजूर होगा, वही होगा। अगले हफ्ते वह अपने एक मित्र की बैचलर पार्टी में जा रहा है, उसके बाद उसके विवाह में मध्य प्रदेश। 


पिछले दो दिन भी डायरी नहीं खोली। आजकल दिन, तिथि, महीने, समय आदि सब पहले की तरह याद नहीं रहते, शायद ध्यान हर समय उसी ‘एक’ की तरफ रहता है इसलिए ! आज का दिन कितने नए-नए अनुभवों से भरा हुआ है। सुबह वे टहलने गए, जून अक्सर यहाँ की तीन मुख्य समांतर सड़कों की बात करते हैं, उसने कहा, एक बार एक-एक करके वे उनपर जाएंगे ताकि ठीक से उसे रास्तों का ज्ञान हो जाए, जवाब में उन्होंने कहा, उसे दिशा बोध ही नहीं है। यह आलोचना वह पहले भी कर चुके हैं पर आज मन ने विद्रोह कर दिया, क्रोध किया, बाद में कुछ ही देर में सब शांत हो गया। क्रोध करते समय भीतर कोई देख रहा था कि अब क्या हो रहा है। जून शांत रहे, उनके धैर्य की परीक्षा हो गई। नाश्ते में यहाँ आकर पहली  बार ओट्स उपमा बनायी। अखबार पढ़ते समय जून ने कहा, दीदी-जीजा जी से बात नहीं हुई यात्रा से  वापस आकर, उसने फोन मिलाया तो वे कुछ नाराज लगे। उनका ही एक वाक्य याद आया, ‘जब जब जो-जो होता है, तब तब तब वह वह होना है, फिर किस बात का रोना है ? रात्रि भोजन के लिए वे यहीं की एक निवासी के यहाँ से ‘रागी’ की रोटी लाए, बहुत स्वादिष्ट थी, साथ में टमाटर वाली नारियल की चटनी भी उतनी ही स्वादु थी। महाराष्ट्र में तिकड़ी सरकार बन गई, कब तक चलेगी, कोई नहीं जानता। जीवन विविधरंगी है, शाम को आकाश के नीले रंग कैमरे में कैद किये। 


उस पुरानी डायरी में कुछ सुंदर वाक्य पढ़े -


थोड़ी सी  दर्शनिकता मनुष्य को नास्तिकता की ओर ले जाती है, गंभीर दर्शनिकता धर्म की ओर ले जाती है। 


सार्थक होती हैं वे जिंदगियाँ , जो दरिद्रता, कठिनाइयों और संघर्षों के बीच पलती हैं। ठोकरें और थपेड़े खाते हुए जो लोग मुसीबतों के पहाड़ों को तोड़कर अंतत: एक ऊंचाई पर पहुँच जाते हैं, दूसरों के लिए वे एक मशाल का काम देते हैं। 


हमें कोई देखता हो तो हम बुरा व्यवहार नहीं कर सकते। जब हम मन को अलग होकर देखते हैं तो मन कभी बुरा व्यवहार नहीं करता। 


मन से लड़ना नहीं, किन्तु मन को शुभ भावना से देखना चाहिए। 


Wednesday, March 17, 2021

रामदाने की खीर

 

वे घर लौट आए हैं। दस-ग्यारह दिनों के इस सफर में कितने ही अनुभव हुए। कितने ही लोगों से मिले, नए व पुराने परिचितों, दोनों ही से। इस समय कितना सन्नाटा है, झींगुर की आवाज आ रही है। मौसम ठंडा नहीं कहा जा सकता, दिन में गरम था। रात्रि के नौ बजे भी वे पंखा चलाकर बैठे हैं जबकि दिल्ली में कल इसी समय स्वेटर व शाल ओढ़कर बैठी थी वह। भतीजी का विवाह हो गया, ईश्वर उसे नए जीवन में सभी खुशियां दे। उसका ससुराल काफी अच्छा जान पड़ता है, काफी सारे बाराती आए थे। रिश्तेदारों के साथ अच्छे संबंध हों तब ही पता चलता है कि परिवार में मेल है। भाई-भाभी ने बहुत अच्छी तरह सारी व्यवस्था की, बहुत ही शानदार प्रबंध था। पिताजी आए होते तो देखते पर हर कोई यहाँ अपनी ही दीवारों में कैद है।  छोटी बहन की सुंदर कंघी जो उसने उसके पर्स में रखवाई थी, साथ ही आ गई है, उसने संदेश भेज दिया है। अब उसकी बिटिया के विवाह में मिलेंगे। पिछले दिनों बाहर का खाना खाया, गरिष्ठ और तला हुआ, जरूर वजन बढ़ा होगा। पिछले दिनों न ही नियमित व्यायाम हुआ न योगासन। सृजन के नाम पर भी विशेष कुछ नहीं किया। उत्साह से भरा हल्का मन ही सृजन कर सकता है। ऐसा मन ही उदारवादी होता है और निर्भय भी। अस्तित्व के प्रति कृतज्ञता का अनुभव करके वह सहज ही ज्ञान में स्थित होता है और आनंदित भी ! जीवन में गुरू की उपस्थिति कितनी जरूरी है। कुछ लोग जीवन को संकुचित बना लेते हैं, उनके लिए जीवन असीम है, अनंत संभावनाओं से भरा। आज एक नए परिवार से मुलाकात हुई दुकान में, वह इलाहाबाद की हैं, कन्नड बोल रही थीं। 


आज सुबह उसे खुद पर आश्चर्य हुआ, यह भी याद  नहीं रहा कि आज कौन सा वार है, एक बार नहीं दो बार उसने गलत दिन बताया। हर कर्म का फल मिलता है इसका अनुभव कराती है यह बात, वर्षों पूर्व उसने सासु माँ की इस भूलने वाली बात पर उन्हें टोका था, यह कहकर कि इतनी सी बात उन्हें कैसे याद नहीं रहती।  आज से योग सेंटर में योग कक्षा में जाना आरंभ किया है। योग शिक्षिका मूलत: हिमाचल की है, पर उत्तराखंड में जन्मी है, ऋषिकेश से आई है। एक महीना पहले ही उसने यहाँ सिखाना शुरू किया है। अच्छा लगा पहला सत्र, सोमवार से वे नियमित जाएंगे। जून भी साथ गए, उन्हें भी शाम को नियमित योग करने का अवसर मिलेगा। लेखन का कार्य आज भी नहीं हुआ, समय जैसे भाग रहा है। दोपहर को भानु दीदी की पुस्तक का एक अंश पढ़ा, सुबह गुरूजी का एक बहुत ही ज्ञानवर्धक वीडियो देखा-सुना था, उनका ज्ञान अथाह है सागर जैसा ! छत पर सोलर पैनल लगाने का काम शुरू हो गया है। बालकनी व छत पर शेड का काम अभी शेष है। पिताजी से आज बात नहीं हुई, उनके मन में मोह-ममता नहीं है, वह संसार से निर्लिप्त हो गए हैं, ऐसा वह खुद ही कहते हैं। दीदी भी उसी राह पर हैं। जगत जैसे उनके लिए है ही नहीं। कौन जाने कौन सही है, जो खुश रहना जानता है वही सही है, जिसे न कोई शिकायत है न कोई अपेक्षा, वही सही है !  


आज शाम योग कक्षा में ‘वीरभद्रासन’ करते समय गायत्री ग्रुप का स्मरण हो आया उसे। वे लोग योग साधना ठीक से तो कर रहे होंगे। यहाँ की योग शिक्षिका बहुत अच्छी तरह सिखा रही है। जून आज सुबह साढ़े छह बजे ही डाक्टर के पास जाने के लिए निकले थे, त्वचा का इलाज हो गया है, एक सप्ताह तक धूप से बचना है। उसने गुरुजी की कठोपनिषद पर व्याख्या सुनी, वे तीन एषणाओं के बारे में बता रहे थे। पुत्र एषणा, वित्त एषणा तथा लोक एषणा के बारे में, जिनसे आत्मा पर आवरण आ जाता है। कोई जब तक स्वयं में टिका रहता है, सहज ही प्रसन्न रहता है, मन में इच्छा जगते ही कर्म का संसार शुरू हो जाता है। मन हर कामना के साथ डोलता रहता है। जगत का हल्का सा भी प्रभाव उसे कंपित कर देता है। मन सदा राग जगाता है अर्थात सुख चाहता है, दुख से बचना चाहता है पर स्वयं ही तुलना करके या किसी के शब्दों को सुनकर अथवा पुरानी स्मृति के कारण ही दुखी होता है। वह अपनी पहचान बनाना चाहता है पर अपूर्णता का दंश उसे चुभता रहता है। मन जब तक स्वयं को आत्मा में विलीन नहीं कर लेगा, दुख झेलता ही रहेगा। वह कौन है, जब तक यह नहीं जान लेगा तब तक दुख से मुक्ति नहीं है। मन अशान्ति का ही दूसरा नाम है। आत्मा शांति का सागर है। उसका ज्ञान ही मानव को वास्तविक प्रसन्नता का अनुभव कर सकता है। दोपहर को उसने नन्हे और सोनू के लिए एक कविता लिखी। कल वे उनके घर जाने वाले हैं, रामदाने की खीर बनाकर ले जाएंगे। यहाँ आने के बाद ब्लॉग पर कल पहली बार कुछ पोस्ट किया। 


उस पुरानी डायरी में पढ़े ये शब्द, किसी भी मनुष्य का सही मूल्यांकन करना हो तो उसकी त्रुटियों य कमजोरियों को उस समय अलग करके फेंक दो,, क्योंकि ये चीजें उसकी अपनी नहीं हैं। त्रुटियाँ तो मानव मात्र की सामान्य दुर्बलताएं हैं। महान सद्गुण ही मनुष्य की अपनी चीजें होती हैं। 


“दुनिया क्या कहेगी” ऐसा सोचना ही कमजोरी है, तुम्हें खुद को अच्छा जान पड़ता है, वही करो। जीवन का रहस्य यही है। 


हमारे अंदर का वह आध्यात्मिक जीव ही सत्य है, सक्षम है, अनंत है । चाहे हमारी वर्तमान स्थिति और वांछित स्थिति में कितना बड़ा अंतर हो, वह जीव यदि जागृत हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। 


सत्य इसलिए बोलना चाहिए क्योंकि कठिन से कठिन स्थितियों में भी अपने पूर्वाथों  को सोचना नहीं पड़ता; लेकिन कभी एक झूठ भस्मासुर बनकर सारी सच्चाईयों को पी सकता है।  


Wednesday, March 10, 2021

मूंगफली मेला

 मूंगफली  मेला 

रात्रि के पौने दस बजे हैं। आज सुबह भी वे प्रतिदिन की तरह अंधेरे में ही टहलने गए। सुबह सोसाइटी की तरफ से बगीचे व गमलों में खाद डाली गई। ग्लैडियोली के बल्ब फूटने लगे हैं। जून को पिटुनिया लगाने का मन है। जिनके लिए  यहीं स्थित सुपर मार्केट में रेलिंग में लगाये जाने वाले दस गमलों का ऑर्डर दिया है, बालकनी में लगाएंगे।  नैनी सुबह सफाई करके नहीं गई, दोपहर को बेटी को साथ लाएगी, ऐसा कहकर। दोपहर को दोनों ने मिलकर सभी खिड़कियों के शीशे साफ किए।अब भाषा के कारण कोई समस्या नहीं होती, वह इशारों से सब समझ व समझा लेती है। 


शाम को वे एओल आश्रम जाने से पहले मैसूर रोड पर स्थित बालाजी नर्सरी गए, पर वहाँ फूलों की पौध नहीं मिली। आश्रम की नर्सरी से  फूल के दो पौधे लिए। वहाँ भीड़ बहुत थी। गुरूजी लगभग साढ़े छह बजे आए, उसके पहले भजन गाए जा रहे थे। आज गुरूजी ने डाक्टर्स तथा वैज्ञानिकों के प्रश्नों के सदा की तरह आनंदित करने वाले जवाब दिए। कुछ पुलिस अधिकारी भी उनसे मिलने आए थे।  जापान से आए एक व्यक्ति ने जल को शुद्ध करने का एक सस्ता व सरल तरीका बताया। उन्हें कुछ सर्दी भी लगी हुई थी, एक-दो बार छींक आयी। वहाँ से आकर मन कितना हल्का लग रहा है।आश्रम के कैफे में ही दोसा खाया।


रात्रि के नौ बजे हैं। नवंबर का महीना है,  कमरे में गर्मी का अहसास हो रहा है। यहाँ सर्दी का मौसम मात्र दिसंबर-जनवरी में ही होता है। दोपहर को टेलर से कपड़े ले आए, ठीक सिले हैं. लक्ष्मी नर्सरी से गुलदाउदी के पौधे लिए तथा एक स्नेक प्लांट, जो कमरे में रखा जा सकता है। आज लेखन का कोई कार्य नहीं हुआ, एक कविता पर एक प्रतिक्रिया लिखी। बड़े भाई ने पिताजी के लिए एक वीडियो बनाया है जिसमें उनकी अकेले तथा सबके साथ तस्वीरें हैं। आज मार्केट में पहली बार ‘रिलाइन्स ट्रेंड्स’ गए वे, घर ले जाने के लिए कुछ उपहार खरीदे, उनके साथ एक चादर मुफ़्त मिली, तथा कुछ कूपन भी, उन्हें आश्चर्य हुआ जितने का समान था उतना ही गिफ्ट, यह कैसा व्यापार है ! 


आज राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गये ऐतिहासिक फैसले का दिन था। सरकार ने बहुत सावधानी बरती और सबको बार-बार कहा कि फैसला किसी के भी पक्ष में हो, हिंसा नहीं होनी चाहिए; और ऐसा ही हुआ है। कई मुस्लिम संस्थाओं ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। पिताजी से बात हुई, उन्हें भी इस फैसले से खुशी हुई है। छोटा भाई आज छोटी ननद के घर गया है, वह बैंक के काम से पूरे भारत में घूमता है। शाम को एक सखी का फोन आया, अब वह उनके असम वाले कंपनी के घर में रहने वाली है। अच्छा है कि वह पुरानी नैनी को सर्वेन्ट रूम में रहने देगी। आज एओल के एक ऐप से योग साधना में सहायता ली। शाम को गुरूजी का एक सुंदर प्रवचन सुना, “फीलिंग द प्रजेन्स”, कितने सरल शब्दों में कितनी गहरी बात उन्होंने बता दी। 


आज वे मूंगफली मेला देखने गए, जिसे यहाँ पर ‘कंदले काई फरशे’ कहते हैं। बसवन गुड़ी में कार्तिक माह के अंतिम सोमवार को आयोजित होने वाला यह मेला चार सौ वर्ष पुराना है। लगभग दो किमी सड़क पर मूंगफली बेचने वाले किसान व व्यापारी अपने दुकानें लगाते हैं। मेले में अन्य दुकानें व झूले आदि भी होते  हैं। सात दिनों तक चलने वाले इस मेले में लगभग बारह से पंद्रह टन मूंगफली बेची जाएगी। ज्यादा भीड़ होने के कारण वे बीच से ही लौट आए, नन्हे का एक मित्र भी साथ था, पहले वे उसी के घर गए थे, जो उसी इलाके में रहता है। उसने बताया कि बचपन के बाद इतने वर्षों में वह आज पहली बार ही मेले देखने आया है। कभी बाद में देखेंगे यह सोचकर अपने ही शहर के दर्शनीय स्थल देखने लोग नहीं जा पाते हैं।  


उसने कालेज के दिनों की डायरी में पढ़ा, विनोबा के विचार उसने लिखे थे। ‘अध्यात्म-ज्ञान से बगावत की हिम्मत आएगी’ 


“हम देह से अलग अविनाशी, आत्मरूप हैं, परमेश्वर अंदर विराजमान है, इसी जन्म में उसका दर्शन सुलभ है, सारे जीव हमारे रूप हैं” इस अध्यात्म विचार में प्रवीण होना चाहिए। 

शिक्षण में सत्यनिष्ठा और जीवन में तपस्या की सख्त आवश्यकता है जिससे मौजूद समाज के खिलाफ बगावत करने की हिम्मत आए। जिसके अंदर अध्यात्म विद्या है उसे सारी दुनिया भी दबाना चाहे तो दबा नहीं सकती। मेरा विश्वास है कि अध्यात्म विद्या से हम जबरदस्त क्रांति कर सकते हैं। पुस्तकों से मदद अवश्य मिलती है, परंतु अगर मूल विचार मिलता है तब ही आगे की बात हो सकती है । आत्मजज्ञान ही सही ज्ञान है जिसकी सबको जरूरत है। मुख्य रूप से तीन प्रकार का ज्ञान हरेक को होना चाहिए - आरोग्य ज्ञान, नीति ज्ञान, आत्मज्ञान ! 


Wednesday, March 3, 2021

एस्टोनिया के फूल

 इस समय वे पहली मंजिल पर बैठक में बैठे हैं। राजस्थान पत्रिका में पढ़ा, दिल्ली में प्रदूषण के कारण स्कूल पाँच तारीख तक बंद कर दिए गए हैं। एक सप्ताह बाद उन्हें भी यात्रा पर निकलना है, तीसरे सप्ताह में दिल्ली पहुंचेंगे। तब तक संभवत: हालात सुधर जाएं। शाम को जून साइकिल से गैस सिलिन्डर की बुकिंग के लिए गए और उसने यहाँ आने का बाद पहली बार ध्यान किया, मन कितना शांत लग रहा है। सुबह सूर्योदय की तस्वीरें उतारीं, मोबाइल से प्राकृतिक दृश्यों की तस्वीरें उतारना कितना सहज है और अब तो यह  उसके जीवन का एक भाग ही बन गया है। आजकल सुबह-शाम दोनों समय टहलते समय फूलों की गंध आती है, एस्टोनिया के फूलों की गंध ! कल शाम नन्हा व सोनू आ गए थे, सुबह उनके साथ पहले डेन्टिस्ट के पास गए फिर कपड़े सिलने देने के लिए दर्जी के पास। मार्च तक उन्हें तीन शादियों में सम्मिलित होना है। 


तुलसी का पौधा लगाने के लिए पत्थर का एक विशेष गमला कल खरीदा था, कल उसमें पौधा लगाना है।  आज सुबह बुरादा, खाद मिलकर मिट्टी तैयार की। तुलसी व अजवाइन के पौधे लगाए, शेष गमलों में खाद डाली। ग्लेडियोली के बल्ब से पौधे निकलने लगे हैं। जून को बालकनी में पिटूनिया लगाने का मन है।  वे निकट स्थित एक नर्सरी में गए, पर वहाँ पौधे नहीं मिले, आश्रम की नर्सरी से दो फूल के पौधे लिए। आज मौसम अपेक्षाकृत गरम है, यहाँ ठंड का मौसम आता ही नहीं शायद। पिताजी को फोन किया तो उन्हें यहाँ आने का निमंत्रण दिया।आज टाटा स्काई लगाने के लिए लोग आए थे, शायद कल से वे कुछ देर टीवी भी देख सकें।


मन दर्पण है, परमात्मा बिम्ब है, जीव प्रतिबिंब है, यदि दर्पण साफ नहीं हो तो उसमें प्रतिबिंब स्पष्ट नहीं पड़ेगा। संसार भी तब तक निर्दोष नहीं दिखेगा जब तक मन निर्मल नहीं होगा। हम अपने मन के मैल को जगत पर आरोपित कर देते हैं और व्यर्थ ही जगत को दोषी मानते हैं। जब कभी हमने किसी को दोषी माना, उस पर अपना ही मत थोपा है। हर कोई जैसा है वैसा है। आत्मा सभी के भीतर बीज रूप में विद्यमान है। उसमें फूल खिलाना जिसने सीख लिया, सुगंध उसे ही मिलती है, उसे वृक्ष बनाना जिसने सीख लिया, छाया उसे ही मिलती है। उसे जाने बिना जो रह गया, उसके लिए आत्मा का होना या न होना क्या अर्थ रखता होगा ? 


दिन खरामा-खरामा बीत रहे हैं, किसी नदी की शांत धारा की तरह। मौसम आज भी गरम है। सुबह ठंडी थी, उन्हें जैकेट पहनकर निकलना पड़ा। फूलों से लदे वृक्षों की तस्वीरें उतारीं। कुछ देर प्राणायाम किया पर आसन नहीं किए, जून के अनुसार ‘समय नहीं था’ उन्हें हर काम को जल्दी करने की आदत है। कल शाम उन्होंने पिताजी की पुरानी तस्वीरें खोजीं, जिन्हें स्कैन करके एक वीडियो बनाना है। उनके जन्मदिन पर यह उपहार होगा उस कविता के साथ जो उनके लिए उसने लिखी है।  बर्तन डिशवाशर में लगाकर वे ऊपर शयन कक्ष में आ गए हैं। आज इतने दिनों बाद टीवी पर तेनालीरामा देखा, कहानी जैसे आगे बढ़ी ही नहीं है। दोपहर को वे फोर्टिस अस्पताल गए, उसके हाथ के नाखूनों में सफेदी आ रही थी और जून को भी त्वचा विशेषज्ञ को दिखाना था। डाक्टर ने खाने व लगाने  की दवा दी है। दोपहर को सीढ़ी चढ़ने में दाहिने घुटने में कुछ दिक्कत महसूस हुई, बर्फ का सेक करने का सुझाव दिया है नेट पर, जून ने तिल के तेल से मालिश करने को कहा। दिन में कई बार सीढ़ियाँ चढ़नी व उतरनी पड़ती हैं, नया-नया अभ्यास है अभी। अभी छोटे भाई से बात हुई, वह नन्हे की ससुराल गया था, वहाँ बहुत खातिरदारी हुई उसकी। नन्हे ने  शाम को बिग बास्केट से कुछ नए प्रकार के फल भेजे, उनमें एक ड्रैगन फ्रूट भी है। 


आज उन्हें असम छोड़े हुए तीन सप्ताह हो गए हैं। यहाँ घर  की दिनचर्या लगभग निश्चित हो गई है।  सुबह वे साढ़े चार बजे उठते हैं, टहलने जाते हैं जब हल्का अंधेरा होता है। वापस आकर योग साधना। हॉर्लिक्स पीने के बाद बगीचे में कुछ देर काम और हरसिंगार के फूल चुनना। उसके बाद स्नान और नाश्ता बनाना। जिसमें सब्जी काटने से आरंभ करना होता है। उसके बाद अखबार पढ़ना, व्हाट्सएप व फ़ेसबुक पर पोस्ट डालना।  जून ने दीवाली की लाइट उतारने के लिए इलेक्ट्रिशियन को बुलाया है। कल की सेवा के बाद दायाँ घुटना ठीक है, अब बाएं में कुछ दर्द हो रहा है, उसकी भी सेवा-सुश्रुषा हो जाएगी। एक सब्जी वाली घर बैठे पालक व पुदीना दे गई है, निकट ही एक गाँव है, वहीं से आयी होगी। शाम को वे टहलने गए तो काफी रौनक दिखी, एक पार्क में महिलाओं की थ्रो बॉल प्रैक्टिस चल रही थी। एक जगह बच्चे स्केटिंग कर रहे थे।  


वर्षों पुरानी उस पुरानी डायरी में पढ़ा - 


सत्य यही है कि संसार में दो नियम हैं जन्म और मृत्यु ! 

नाश का ज्ञान रखने वाला क्या कभी पाप करेगा ? वह तो जितने दिन रहेगा, स्नेह और समता से ही इस संसार में रहेगा। आदमी जब तृष्णा, अहंकार और ईर्ष्या से शीघ्र ही कुछ प्राप्त कर लेने के लिए काम करता है, तब वह अपने भीतर ही असहिष्णु हो जाता है। अहंकार उसकी नींवों को ठोस भूमि पर खड़ा नहीं रहने देता। 


सबकी आत्मा की शक्ति समान है कुछ की शक्ति प्रकट हो गई, कुछ की प्रकट होनी बाकी है, बस इतना ही अंतर है ! 


बापू की एक सूक्ति भी उसने लिखी थी - क्षण भर भी काम के बिना रहना ईश्वर की चोरी समझो। काम के सिवा भीतरी और बाहरी आनंद का और कोई रास्ता मैं नहीं जानता।