Tuesday, August 6, 2013

आर्मी कैंटीन


अभी कुछ देर पहले ही एक सखी का फोन आया, कल दोपहर को उसने ‘मौन व्रत’ रखा था, सो फोन नहीं उठाया. उसने सोचा गाँधी जी की आत्मकथा में उपवास और मौन के बारे में पढ़ेगी. आज धूप तेज है जो उनके नये लगाये भिंडी और मकई के बीजों के लिए अच्छी है. इस समय उसका मन कैसे एक बात से दूसरी बात पर जा रहा है. आज पीटीवी पर एक मजाहिया ड्रामा भी देखा कुछ देर, कैसे दोनों पति-पत्नी एक दूसरे की मौत का इंतजार करते-करते एक दूसरे की फ़िक्र करने लग जाते हैं. अचानक उसे ख्याल आया बरसों बाद जब जून और वह रिटायरमेंट के बाद जीवन बिता रहे होंगे तो यह सब पढकर हँसेंगे, पर कुछ भी हो, कुछ तो मिलता ही है...घास की नोक पर ओस की बूंद सा सुख का अहसास या सुकून !

कल घर से पत्र आया, माँ ने लिखा है, शायद उसने अपनी पत्र लिखने की आदत छोड़ दी है, लो..और इधर वह उनका पत्र न मिलने से परेशान थी. यानि उन्हें भी पत्र समय पर नहीं मिल रहे हैं. आज बहुत दिनों बाद शाम से ही बादल घिर आये हैं, सुबह ही उसने उड़द दाल की बड़ी बनाई थी, हर साल की तरह किचन में ही सुखानी पड़ेगी. जून अभी क्लब से नहीं आए हैं, नन्हा पढ़ाई में व्यस्त है और वह अभी अभी पीटीवी पर यह सुनकर आ रही है कि इन्सान जिस तरह झाड़ियों से अपना दामन बचाकर निकलता है, वैसे ही संसार में रहते हुए संसार के गुनाहों से बचकर निकल जाना चाहिए. बुराइयाँ बुराई का रूप धरकर नहीं आतीं, वह रूप बदल कर आकर्षित करती हुई आती हैं, और लोग उनके वश में हो जाते हैं, उनसे बचना तभी सम्भव है जब हर वक्त  अल्लाह की मौजूदगी का अहसास होता रहे. अध्यात्मिक उन्नति करने के लिये पहले नैतिक बनना होगा. हर क्षण इस तरह बिताना कि पवित्रता का अहसास हो न कि अपराध बोध का. उसे महसूस हुआ की सारे धर्म एक ही बात कहते हैं.

आज सुबह वह नहाकर ‘एक योगी की आत्मकथा’ पढ़ने बैठी ही थी, फोन की घंटी बजी, अभिमान जगा और मन ने कहा उसी सखी का फोन होगा जिसने उसका फोन नहीं उठाया था, वह भी तो पाठ कर रही है, पर पांच मिनट बाद फिर घंटी बजी, उसी का था, अपने साथ आर्मी कैंटीन ले जाना चाहती थी, वे गये और उसने ढेर सारा सामान खरीदा, उसे भी ख़ुशी का इजहार करते हुए एकाध सामान खरीदना पड़ा और समय तो गया ही, इसी कारण घर में सफाई नहीं हो पायी. एक सखी के कहने पर उसने ढेर सारे मटर छिलवा कर फ्रिज में रखवाए हैं. इस उम्मीद में कि अब उन्हें गर्मी के मौसम में भी मटर-पुलाव व मटर-पनीर खाने को मिल सकेगा. इन्सान जन्मजात संग्रही होता है, अगले क्षण का भरोसा नहीं पर अगले महीनों, सालों के लिए जुगाड़ कर लेता है. मानसिक शांति व स्थिरता भंग करने वाले कारणों में एक यह संचयी प्रवृत्ति भी है.

हवा चलेगी तो मेरी खुशबू बहेगी
पाकिस्तान की शायरा से गुफ्तगू उसे पसंद आई और यह है उनकी गजल-

छुपा हुआ मेरा घर इस्तराब रहने दो
कि कर चुके हो बहुत अभी बात रहने दो

सफर का साथ है यह मंजिलों का साथ नहीं
गुजर ही जायेंगे लम्हे हिसाब रहने दो

शिकस्ता करके इन्हें फासले बढ़ा दोगे
सजे हुए मेरे हाथों में ख्वाब रहने दो

और इसके आगे चंद अश्यार उसके खुद के कुछ इस तरह हैं-

इकतरफा ही सही सिलसिला जारी रहे
जगह दो दिल में खत का जवाब रहने दो

सूखे हुए पत्तों को धीमे से रख वर्कों में
 घर के किसी कोने में किताब रहने दो

बरसों से उजड़े इस वीरान चमन से

 काट दो जंगल जंगली गुलाब रहने दो 

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