Monday, August 12, 2013

होलिका दहन


पिछले तीन दिनों से डायरी नहीं खोल सकी. कल सुबह घर की सफाई, दोपहर गुझिया बनाने, शाम नन्हे को पढ़ाने तथा देर शाम वासन्ती पूजा में बीती. कल शाम का होलिका दहन का अनुभव चिर स्मरणीय रहेगा. आग की ऊंची उठती लपटें और उसके चारों ओर घेरा बनाकर खड़े लोगों के ख़ुशी से चमकते चेहरे. और बाद में एक साथ बैठकर भोजन वह भी हाथ से खाना, उसे बहुत आनन्द आया. सोने में ग्यारह बज गये, दिन भर की थकन के कारण फौरन नींद आ गयी. और सबसे बड़ा कारण था उसके मन की अद्भुत शांति जो ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है उसके लिए. जून ने भी कल पूरे उत्साह के साथ भोजन परोसने के काम में भाग लिया. घर आकर वह प्लास्टिक के ग्लास भी खोजकर ले गये. परसों वे तिनसुकिया गये, सभी के लिये उपहार लेने, जून का मन बेहद उदार है, उसे एक गाउन भी दिलाया, सफेद रंग पर नीले बिदुओं वाला. सुबह टीवी पर होली के उपलक्ष में एक प्रोग्राम देखा, ‘मौसम रंगों का’, उसमें सात देवरों की भाभी ने एक अच्छी कविता सुनाई.

होली आकर चली गयी, उसने सभी के लिए हर साल की तरह टाईटिल लिखे और सुनाये. दो दिन स्वीपर नहीं आया उसने ज्यादा पी ली थी, इस उत्सव का यह सबसे बुरा अंग है. आज सुबह उसने सुना दादा अन्यों को समझने की कला पर बोल रहे थे, मन में एक तीव्र उत्कंठा होनी चाहिए तभी सम्बन्ध अच्छे होंगे, अन्यथा सतही ही रहेंगे. कल रात तेज तूफान आया, उस समय जून टीवी पर ‘फ़िल्मी चक्कर’ शौक से देख रहे थे..
Women’s day ! today again Dada vasvani talked about the art of understanding and gave practical suggestions, like – learning the art of listening, art of appreciation and then not try to get others feel low, all these things are interrelated and teaches the art of understanding. These days each one wants someone who understands him/her, and to get that someone first one has to forget himself and understand other with an ardent desire and then it will come to him automatically. Such person is humble, he lives with humility. He does not has ego. Then only without  arguing others he can develop a relationship with others.

इस घड़ी कुछ कहने की कुछ लिखने की इच्छा, जिसे प्रेरणा भी कहते हैं और मूड भी, सुगबुगा रही है, जून का फोन आया है कि वह देर से आएंगे सो अभी एक घंटे का एकांत है, नितांत निजी एकांत और मौसम भी सुहाना है, उसका प्रिय मौसम, बरसात की रिमझिम लिए ठंडा-ठंडा सा, जिसमें अपने ही गालों को अपने हाथ बर्फ से ठंडे लगते हैं, सांसों की गति थोड़ी सी तेज जरुर होगी, ऐसी ही कैफियत होती होगी जब शेर होता है, मगर वह गजल लिखने नहीं जा रही है. क्योंकि हदों में बंधकर रहने और कहने के लिए जो सलाहयित चाहिए वह शायद उसमें नहीं है, या फिर अभी मूड नहीं है. अभी तो वह एक ऐसी कविता लिखना चाहती है जिसमें उन भावों की झलक हो जो हर सुबह जागरण देखते सुनते वक्त मन में उठते हैं, इस ब्रह्मांड के रचेता उस महान जादूगर के प्रति श्रद्धा के भाव !

अल्लाह की बनाई इस कायनात में
हर तरफ हजारों रंग बिखरे पड़े हैं
मौजुआत की कमी नहीं इजहारे फन चाहिए
दिलों को थोड़ी –थोड़ी देर, ठहर कर धड़कन चाहिए
नामालूम सा कोई वाकया कब फसाना बन जाये
पत्थर को तराश कर बना दे हीरा ऐसी लगन चाहिए
अंदर एक सागर बहता है कोई मोती ढूँढ़ कर लाये तो
जाने का भीतर जज्बा हो ऐसा कोई शख्स चाहिए



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