‘अपने आप
को जानो’ आचार्य गोयनका जी का प्रवचन आज सुबह फिर सुना. ध्यान लगाने बैठी तो मन को
मुश्किल से दस मिनट के लिए ही स्थिर रख पायी. उन्होंने कितना सहज उपाय बताया है कि
मात्र सांस का आना-जाना ही अनुभव करो. मन को उस बिंदु पर केन्द्रित करो जहाँ से
साँस आती व जाती है पर मन है कि एक क्षण में कुछ का कुछ सोचने लगता है. अभ्यास से
वह अवश्य ही केन्द्रित कर पाएगी. कल शाम उसने कुछ शेर लिखे, ग़ालिब की पुण्य तिथि
थी, शायद उसी का असर था. जून आज जल्दी घर आ गये हैं, कल शाम वे साइकिल से क्लब गये थे, शायद वापसी
में सर्द-गर्म हो गया. कल शाम को उसने ‘मारियो पूजो’ की पुस्तक The Dark arena पढ़नी
शुरू की है, रोचक है और भाषा भी सरल है.
शनिवार को पीटीवी पर एक पाकिस्तानी शायरा के ‘आजादी’ के पैगाम को सुनकर और
वह खूबसूरत नज्म “सफर जारी रहना चाहिए”....’इसी
शहर में सुबह से शाम तक बस एक थैला और एक रोटी....बड़ा मजा आता है’ सुनकर उसके मन
में भी घर से निकलने का जोश तारी हो गया. और पड़ोसिन के यहाँ गयी. उसे तो बड़ा मजा
आया पर उसकी आजादी की कीमत जून को चुकानी पड़ी. उस शायरा ने यह भी तो कहा था कि एक
की आजादी की हद वहीं तक होनी चाहिए जहाँ से दूसरे की आजादी शुरू होती है. पर यह
बात उसकी समझ में नहीं आई. दोपहरी थोड़ी सी उदास होकर ठीक हो गयी, शाम क्लब में ‘फ्लावर
शो’ देखने गये, फिर एक मित्र के यहाँ, पर वे व्यस्त थे, अनचाहे मेहमान की तरह कुछ
देर रुक कर वे वापस आये. आकर कुछ देर साइकलिंग की. इतवार शाम वे क्लब गये टीटी
खेलने, जून के साथ घर आकर क्रिकेट मैच देखा, भारत अपना पहला मैच जीत गया. आज फिर
खत लिखने हैं, बहुत दिनों बाद बड़ी भाभी का पत्र आया है, वर्षों बाद पाए मातृत्व से
वे अभिभूत हैं. मंझले भाई का पत्र भी आया है, लिखता है, उसके पत्र का इंतजार रहता है, आखिर भाई किसका है. अपने आप से किये वायदे को निभाना ज्यादा जरूरी है न कि
दूसरों से किये वादों को.
...और आज धूप फिर से निकल आई है, कल दोपहर को फोन पर उस सखी से बात करके
दोस्ती का सूरज फिर से निकल आया था, शायद वे खुद भी नहीं जानतीं कि इस मित्रता की
जड़ें कहीं गहरे जा चुकी हैं. कल दोपहर पत्र तो नहीं ही लिख पायी, अख़बार पढ़ती रही,
और फिर स्वेटर बनाया, शाम को क्लब. आज सुबह गोयनका जी को देर से सुना, कह रहे थे ‘धर्म
सार्वजनीन है, प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक जीवन व्यतीत करके अपने जीवन को शांत, सरस
व सुखमय बना सकता है’.
आज इदुलफितर है, जून और नन्हे दोनों का अवकाश, और उसका काम तो रोज की तरह ही है.
गृहणियों की छुट्टी कभी नहीं होती, लेकिन उसे अपनी यह दिनचर्या भाती है. जून मार्च
में उनकी यात्रा के लिए टिकट बुक कराने तिनसुकिया गये हैं. नन्हा आराम से स्नान कर
रहा है. छुट्टी के दिन वह स्टीम बाथ लेता है. आज भी बदली छाई है. कल लेडीज क्लब की
मीटिंग थी उसने वही आसमानी सिल्क की साड़ी पहनी जो जून लाये थे. उस साड़ी की तारीफ़
भी हुई, सचमुच जून की पसंद बेहद अच्छी है. जीप की आवाज आ रही है, लगता है वह आ गये
हैं और वहीं से इशारा भी किया है, टिकट मिल गयी है.
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