Thursday, August 29, 2013

बिजली चली गयी


आज उसने सुना, तटस्थ भाव या साक्षी भाव से सुख-दुःख को भोगना ही सम्यक प्रज्ञा है. आरम्भ में बाधाएँ तो आएँगी ही, लेकिन होश सहित श्रद्धा के बल पर और ज्ञान के बल पर इस पथ पर बढ़ा जा सकत है. अनंत मैत्री, अनंत करुणा, अनंत मुदिता, अनंत उपेक्षा, ये चार गुण साथ में लेकर यदि श्रद्धा करें तो ही सच्ची श्रद्धा है, यानि विवेक युक्त श्रद्धा.

आज धूप बहुत तेज है, और अभी-अभी बादल के एक टुकड़े ने सूरज को ढक लिया है, शीतलता यहाँ तक महसूस हो रही है. इस हफ्ते सात पत्र मिले हैं, जवाब देने के लिए कम से कम एक घंटा तो लगेगा.

नन्हे की टेनिस कोचिंग के कारण वह इतनी सुंदर सुबह का आनन्द उठा पा रही है. आज सुबह साढ़े चार बजे ही उठ गया और आधे घंटे में तैयार होकर नन्हा चला गया है. बादल जो कल शाम से बनने शुरू हुए थे, अभी भी है, रात भर बरस चुके हैं सो मौसम में ठंडक है. आज उसकी एक मित्र का जन्मदिन है, कल रात नींद आने तक कुछ पंक्तियाँ उसके लिए मन में गढ़ रही थी-

आँखें हंसती रहें लब मचलते रहें
गीत अधरों से यूँ ही झरते रहें

दुःख की छाया न ही गम अँधेरा कभी
कदम दर कदम फूल खिलते रहें

सुख में शामिल सदा दुःख में भी साथ हों
सिलसिले दोस्ती के यूँ चलते रहें

खुशनुमा ही रहे हर दिवस इस तरह
बरस दर बरस वह चहकते रहें

जिन्दगी का हर इक रुख हो रोशन सदा
दिल में चाहत के दीपक जलते रहें

हमसफर साया बन के सदा साथ हो
चाहे मौसम फिजां के बदलते रहें

आज सुना, “अनित्य के प्रति जो आकर्षण है उसे तोड़ने के लिए उसका दर्शन करते करते ही नित्य तक पहुंचा जा सकता है. देखना जानने की क्षमता पैदा करता है. नित्य अवस्था में न तो उत्पाद होता है न क्षय होता है. स्थूल से सूक्ष्म तक आने के बाद उसका भी अतिक्रमण हो जाये”.

कल आखिर विश्वास मत पारित हो गया और देवेगौडा सरकार ने संसद में पूर्णमत हासिल कर लिया यानि अब हमारी एक अदद सरकार है. आज फिर मौसम बेदर्द होकर तपन बरसा रहा है, वे लोग जो बंद कमरों में पंखों और कूलरों के सामने रहते हैं उन्हें शिकायत करने का क्या हक है, जब हजारों लाखों लोग खुले आसमान के नीचे अपनी रोज़ी कमाने को विवश हैं.

आज उसने सुना, ‘अनुभूतियों से सच्चाई जानना ही धर्म ध्यान है. अपने भीतर उठने वाले विकारों पर तुरंत रोक लगाना और उन्हें जड़ से उखाड़ कर फेंकने को ही उपशमन कहते हैं. दमन नहीं चाहिए. जो क्षण अविद्या में बीतता है, विकारों का संवर्धन होता ही जाता है. मानस में एक विकार जागा तो उसके फल के साथ उस विकार का बीज भी आता है, और अज्ञान के कारण हम उसे सींचते रहते हैं. हमारे विकारों के दो सेनापति हैं, राग और द्वेष जिन्हें खत्म करना है ताकि हम अपने शिव को मंगल को न कुचल डालें. ध्यान जब जागता है तो हमारे पुराने कर्मों का बल समाप्त होता जायेगा और मन करुणा से भर जाता है. पुराने समाप्त हो गये नये बनते नहीं यही तो मुक्त अवस्था है. लेकिन बुद्धि के बल पर इसे समझने से कोई लाभ नहीं, होश में रहकर ही आग का मुकाबला पानी से करते हैं. अंदर तक स्वभाव बदलने के लिए अभ्यास करना होगा, अपने भीतर होने वाली संवेदनाओं के प्रति सजग रहने का अभ्यास नहीं किया तो स्वभाव वैसे का वैसा रहेगा. प्रज्ञ प्रत्यक्ष ज्ञान है”.

पिछले कई दिनों से मौसम बहुत गर्म है, पसीने से तर हैं वे लोग. कल रात बिजली चली गयी थी और इस समय भी वही हाल है, इस खिड़की के पास बैठकर कभी-कभी हवा का एक झोंका आकर गर्दन को छू जाता है. अभी जून को फोन किया तो वह कहने लगे आज दिन में करेंट जायेगा यह तो पता था पर कब आयेगा यह पता नहीं. देखें तब तक उनका क्या हाल होता है, ये नन्हे के शब्द हैं. कल रात वे एक मित्र के यहाँ सोये वहाँ बिजली थी, उनके घर की चाबी उनके पास थी. आज दोपहर को वे “एक बन्दर होटल के अंदर” देखने वाले थे और पीटीवी पर दायरे भी देखना  था पर अब बिजली के बिना सारे कार्यक्रम धरे रह गये हैं. पर उन्हें बिजली पर इतना निर्भर नहीं होना चाहिए, उन लोगों की तरफ देखना चाहिए जिन्हें ये सब सुविधाएँ नहीं मिलती हैं, या फिर बड़े शहरों में जहाँ बिजली अक्सर जाती ही रहती है.
  





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