Friday, August 16, 2013

बुद्ध पूर्णिमा


आज उनके यहाँ फोन लग गया, पीएंडटी फोन. अब जब चाहें जिससे चाहे बातें कर सकते हैं. कल शाम उसकी एक परिचिता ने फोन करके पूछा, क्या वह उनके स्कूल में एक महीने के लिए हिंदी पढ़ाने के लिए तैयार है, वह खुद एक महीने के लिए घर जा रही हैं और कोई टीचर नहीं है उनकी कक्षा लेने के लिए. पर उसे सम्भव नहीं लगता, सुबह सात बजे से दोपहर एक बजे तक उसे घर से बाहर रहना होगा, जून के लिए खाना सुबह से बना कर रख जाना होगा, फिर घर की सफाई और सारे काम... वह कभी राजी नहीं होंगे.

कल दोपहर बाद वह कुछ परेशान थी, उसकी एक सखी ने शाम को आने के लिए कहा था, उसने सारी तैयारी कर ली थी पर अचानक उसका फोन आया वे नहीं आ पायेंगे, तो उसके सब्र का बांध टूट गया और वह जानती है यह सिर्फ उसी घटना के कारण नहीं था बल्कि पिछले दिनों का मन में एकत्र गुबार था. उसे यह अहसास हो रहा था कि वह कुछ भी ऐसा नहीं कर पा रही है जो उसकी दृष्टि में सार्थक हो. एक अजीब से खालीपन का अहसास और एक ऐसी भावना जो तब उत्पन्न होती है जब अपने कुछ भी न होने का अहसास होता है. उस दिन उसकी इतनी इच्छा होते हुए भी जून उसके साथ वोट डालने नहीं गये, उनका नाम थो था ही, पर कहने पर नाराज हो गये. उसे लगता है उनके बीच एक रिश्ता भय का है जो और सारे रिश्तों पर हावी हो जाता है. वह उसे कभी उदास या कमजोर नहीं देख पाते, उनके सामने उसे सदा ही खुश और बहादुर नजर आना है. उन्हें किसी को परेशान देखकर सांत्वना देना या समझाना नहीं आता, बल्कि खुद भी परेशान हो जाते हैं, शायद यही फर्क है स्त्री और पुरुष में, लेकिन वह उसे और नन्हे को बहुत चाहते हैं, जैसे वे दोनों उन्हें.

आज सुबह दादा वासवानी ने बहुत विनम्रता पूर्वक बहुत सुंदर ज्ञान दिया. उनकी मुस्कान अप्रतिम है और शब्द उनके मुख से ऐसे झरते हैं जैसे बहुमूल्य मोती. उन्होंने कहा, अगर कोई स्वस्थ और प्रसन्न रहना चाहता है तो उसे अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखना होगा, नकारात्मक भावनाएं जीवन को अभिशाप बना देती हैं. उस दिन जून ने भले ही उसे नाराज होकर समझाया पर उसे उस भाव दशा से बाहर निकल लाये, उसने मन ही मन उन्हें धन्यवाद दिया. इस बार की यात्रा से वापस आते समय पिता ने उसे कुछ कापियां तथा नोटबुक्स दी थीं, उनमें से एक उसने आज पढ़ी, उसमें विचारों और सुझावों का एक खजाना है. विभिन्न विषयों पर छोटे-छोटे अनुच्छेद लिखे हैं. मनुष्य विचारों का एक पुतला ही तो है, जैसा कोई सोचता है वैसा ही वह हो जाता है. स्वस्थ रहने के लिये स्वस्थ विचार होने चाहिए. यह शत-प्रतिशत सही है क जिस दिन उसके मन में द्वेष के विचार पनपते हैं तो मन उखड़ा-उखड़ा सा रहता है और जब कभी प्रकृति की सुन्दरता को देखकर कोई अच्छा सा विचार, चाहे एक क्षण के लिए ही क्यों न हो, आता है, तो मन कैसे खिल जाता है

आज बुद्ध पूर्णिमा है, नन्हा अभी तक सो रहा है, जून टीवी पर गुड मोर्निंग इंडिया दख रहे हैं, विनोद दुआ ने यह कार्यक्रम शुरू किया है कुछ दिनों से. सुबह जागरण में ‘गिरी महाराज’ से सुना, जीवन में संयम होना चाहिए. पूरे वक्त उसे अपनी वाचालता का स्मरण होता रहा, पता नहीं क्यों उसे लगता है जब वे किसी के यहाँ गये हों या कोई उनके यहाँ आया हो तो चुप बैठना अच्छा नहीं है, और वह माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए अपनी तरफ से किसी विषय या व्यक्ति  पर बातचीत शुरू कर देती है. पर हर बार पछतावा होता है, किसी व्यक्ति के पीछे उसके बारे में बात नहीं करनी चाहिए या फिर अपनी निजी बातें भी हरेक को बताने की क्या आवश्यकता है. सिर्फ बोलने के लिए बोलना तो असंयमित होना ही कहा जायेगा. वह वादे क्योंकि निभाती नहीं इसलिए वादा नहीं करेगी पर यह प्रयास अवश्य करेगी कि भविष्य में सोच-समझ कर ही बोले.



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